Feeds:
Posts
Comments

Posts Tagged ‘मीडीया’

थालीके छेदके नीचे क्या है?

थालीके छेदके नीचे क्या है?

जया भादुरीने कुछ इस मतलबका कहा कि, बोलीवुड देशकी सेवा करता है, ढेर सारा इन्कम टेक्ष भरता है. आज लोग उनको बदनाम कर रहे है. बोलीवुडने खानेकी थाली दी, तो उन्होंने उस थालीमें ही छेद किया.

क्या वास्तवमें जनता, समग्र  बोलीवुडके विरुद्ध है?

सर्व प्रथम हमें बोलीवुडके जो महानुभावों (सेलीब्रीटीज़)ने बोलीवुडके विषयके अतिरिक्त विषयोंमें अपना चंचूपात करना प्रारंभ किया और उनमें भी हिंदुओंकी प्रचीन सभ्यता और अर्वाचीन सहिष्णुताके विरुद्ध अपना मन्तव्य प्रदर्शित करना प्रारंभ किया तबसे आमजनता इन महानुभावोंके विषयमें उनका पुनर्मूल्यांकन करने लगी.

हिन्दी फिलमोंमें हिन्दु पात्रको पापाचारी दिखाना, मुस्लिम और ख्रीस्ती पात्रको सदाचारी और पुण्यात्मा दिखाना एक प्रणाली है..

इसका उत्कृष्ट उदाहरणपीकेफिलम था. इस फिल्ममे शिवजीके पात्रमें जो अभिनेता था उसका जब वह शिवजी के वस्त्रोंमे था तब ही उसका अपमान किया जाता है.

फिल्म भी नाट्य शास्त्रके नियमके अंतर्गत है

भारतीय संस्कृतिमें नाट्यशास्त्रके रचयिता भरत मुनि थे. नाटक के नियम भरत मुनिने बनाये है. नाट्यकारोंको उन नियमोंका पालन करना अनिवार्य है. उन नियमोंमेंसे एक नियम यह है कि जो अभिनेता ईश्वर/भगवानके पात्रका अभिनय करता है, और वह पात्र जब तक उस वेषमें होता है, तब तक उस पात्रकी गरिमा रखनी होती है. यदी उसके सामने राजा या सम्राट भी जाय, तो राजाको /सम्राटको भी उसका आदर करना पडता हैतात्पर्य यह है कि वह पात्र राजाको या सम्राटको नमस्कार नहीं करेगा किन्तु  राजा या सम्राट उसको नमस्कार करता है.

पीके फिलममें शिवजीके पात्रको अपमान जनक स्थिति में प्रदर्शित किया गया है.

यह एक घटना हुई.

हिन्दुओंकी कटु आलोचना करना आम बात है.

किन्तु  हिन्दु देवदेवीयोंको उपहासके पात्र बनाना बोलीवुडके महानुभावोंके लिये  शोभास्पद नहीं है. वास्तवमें ऐसा करना भारतीय संस्कृतिकी अवमानना है. जिस देशकी धरतीका का अन्न और पानीके कारण आप विद्यमान अवस्थामें है उस धरतीकी संस्कृतिका आदर करना आपका कर्तव्य बनता है.

परिस्थिति क्या है?

हिन्दु पर उसका हिन्दु होने के कारणसे ही अत्याचार किया जाय और वह चूप रहेने स्थान पर कोई यदि अत्याचारके विरुद्धमें भी बात करें तो उसका भी विरोध किया जाता है.

कश्मिरी हिन्दुओंकी हजारोंकी संख्यामें हत्याएं हुई, १००००+ कश्मिरी हिन्दु स्त्रीयोंके उपर  खुले रेप किया, कश्मिरके सभी ५०००००+ हिन्दुओंको घरसे निकाल दिया और यह भी खुले आम किया, और इसके अतिरिक्त इस आतंकवादीयोंके उपर कुछ भी कार्यवाही नहीं की गई. अनुपम खेर ने जब इस बातकी आलोचना की तो बोलीवुडके महानुभाव  नसरुद्दीन शाहने  कहा किअनुपम खेर तो मानो ऐसी बाते करता है कि मानो उसके उपर आतंकवादी हमला हुआ

नसरुद्दीन शाह जैसे महानुभाव तककी मानसिकता देखो. उसके हिसाबसे तो जिसके उपर अत्याचार हुआ है, उसको ही अत्याचार पर बोलनेका हक है. “मतलबकी जिस  हिन्दु पर अत्याचार हुआ वह ही उसके विरुद्ध बोलें. दुसरा हिन्दु मत बोलें.

यदि तू कश्मिरका है तो क्या हुआ? तेरे उपर तो आतंकवादीयोंने हमला नहीं किया . फिर तू काहेको बोलता है? बेशरम कहीं का !!”

एक हिन्दु मंदिरके उपर बनीबाबरी मस्जिदका ध्वंश हुआतो पुरी दुनिया हिन्दुओंके उपर तूट पडी,मुख्य मंत्रीको जाना पडा. कई सारे न्यायिक केस हो गये. किन्तु मुस्लिम लोग (पूरानी बाते छोडों) स्वातंत्र्यके पश्चात्कालमें भी  हिन्दुओंके कई मंदिर तोडते आये है और १९४७के बाद भी हिन्दुओंके मंदिर तूटते रहे है. बाबरी मस्जिदके ध्वंशके बाद तो काश्मिरमें और बंग्लादेशमें कई मंदीर तूटे जिसका कोई हिसाब नहीं.

हिन्दुओंको कुछ भी प्रतिशोध तो क्या शाब्दिक विरोध भी नहीं करना चाहिये. उनको तनिक भी शोर करना नहीं चाहिये. अरे भाई कुछ सहिष्णुता आप हिन्दुओंमें भी तो होना चाहिये !! आपको ज्ञात होना चाहिये कि हमारा भारत देश एक सेक्युलर देश है. तो आपका फर्ज़ बनता है कि हम लघुमति भारतमें सुरक्षित रहें. हमें हमारे धर्मका पालन करनेकी पूरी स्वतंत्रता है.

किन्तु हे लघुमति लोग, आपने कश्मिरके हिन्दुओंके उपर आतंक क्यों फैलाया?” हिन्दु बोला.

मुस्लिमने उत्तर दियाअरे अय, हिन्दु लोग !! आपको पता नहीं है कि हमने हमारे उपर थोपे जानेवाले राष्ट्रपतिके विरोधमें क्या क्या किया था. आपको हम मुस्लिमोंकी ईच्छाका कुछ खयाल ही नहीं है. तो हम प्रतिशोध तो करेगे ही . सियासत क्या होती है वह जरा समज़ा करो. मासुम बननेकी कोशिस मत करो. जब एक खास समूहके मानसका खयाल नहीं रक्खा जाता तो प्रतिक्रिया तो आयेगी ही.

किन्तु निर्दोषोंका खून करना और लाखों लोगोंको घरसे निकाल देनायह कोई प्रमाणभान है?” हिन्दु बोला.

अरे भैया हिन्दु !! जब लोग इकट्ठा हो जाते है तो क्या कोई तराजु लेकर बैठता है कि कितना प्रमाण हुआ और कितना नहीं !! क्या बच्चों जैसी बातें करते हो तुम हिन्दु लोग ..!!” मुस्लिम बोला

लेकिन तुमने पूरे मुंबईमें बोम्ब ब्लास्ट क्यों करवाये?” हिन्दु बोला.

अय हिन्दु, तुमने जो बाबरी मस्जिद तोडा उसका हमने बदला लिया.

लेकिन तुमने बोम्ब ब्लास्ट जैसे आतंकी हमले तो कई वर्षों तक किये उसका क्या?” मुस्लिम बोला

अय हिन्दु, तुम फिर बचकाना बात पर उतर आये. हम मुस्लिम लोग कोई ऐसे वैसे लोग नहीं है. हमारा हर व्यक्ति और हर जुथ अपना अपना बदला लेता है. और लगातार लेता रहेता है. इस लिये तो हमारे कोंगीके स्थानिक  मुस्लिम नेताने साबरमती एक्सप्रेसके कोचको आयोजन पूर्वक जला दिया था. क्यों कि उसमें रामसेवक बैठे थे. और वे अयोध्यासे रहे थे.

   ———————————————–

इस प्रकार कोंगीयोंकी कृपासे मुस्लिमोंकी आदत बीगडी.

१९९९में बीजेपीने सरकार बनाई. उसने काम तो अच्छा किया लेकिन कोंगीने अपनी व्युह रचनासे २००४में फिरसे शासन पर कबजा किया.

२००४ से २०१४के शासनकालमें कोंगीने और उसके सांस्कृतिक साथीयोंने खुले आप पैसा बनाया. हिन्दुओंको आतंकवादी सिद्ध करने की भरपुर कोशिस किया. उसकी किताब भी छपवाई.

२०१४के चूनावमें फिरसे बीजेपी सत्ता पर गई

  ————————————————–

हिन्दुमुस्लिम वैमनष्य के बीज अंकूरित हुए थे उतना ही नही एक वृक्ष तो कोंगीने उगा ही दिया था.

कोंगीने सोचा अपन के पैसे तो अपन के पैसे है. हमने अपने सांस्कृतिक  मित्रोंको भी पैसे बनाने की पुरी छूट दे दी थी.

लेकिन  बिना शासन पैसे बनाना दुष्कर है.

रा.गा. के सलाहकार तो निकम्मे सिद्ध हुए.  दाउद के दायें हाथ को बडा भाई बनाओ.

दाउदके दो हाथ दांया और बांया. वे दोनों भारतमें है. एक मार्केट सम्हालता है. दुसरा दंगे करवाता है. और भारतमें दाउदके सिपाई सपरे अलग.  

क्या क्या संवाद हो सकता है दाउदके दांये हाथ और एस सेना के बीच.

 “.भाऊ” , समय बदलत आहे म्हणून आता तुम्हाला आपली व्युहरचना बदलावी लागेल, तू बी.जे.पी. चा छोटा भाऊ आहे आणि नेहमी तेच राहणारमोठा भाऊ दीही बनूशकणार नाही , समजलं तूला.” दांया हथा 

[अब समय बदल गया है. अब  व्युह रचना बदलना पडेगा. तुम कब तक बीजेपीका  छोटा भाई ही रहेगा. बडाभाई बननेवाला नहीं. समज़ा समज़ा?].

 तर तात्या आता  मी काय करू ?” एस. सेना. भाउ      [बडेभाई, तो मैं अब क्या करुं?]

भाऊ तुम्ही अस करा पृथक पृथक बी.जे.पी.ची निंदा करा, अता ईलेकशन ची वेळ आली आहे म्हणून बी.जे.पी. सोबत गठ बंधन तोडू नका . सीट मिळविण्यासाठी लाहान लाहान स्टंट करून संतोष चा नाटक करू , तूला माझी वुयहरचना कळली का ?” दांया हाथनी वीचारल.

[भैया तुम ऐसा करो. अभी तो चूनाव दूर है. पर तुम छूटपूट बीजेपी की निंदा करते रहो. गठबंधन तोडना नहीं. ज्यादासे ज्यादा सीट मिले उसके लिये छोटी मोटी स्टंट करते करते असंतोषका नाटक करते रहेना]

 “त्याचा नंतर काय…?” एस. सेना भाउ    [“उसके बाद क्या?] 

इलेकशनचे  परिणाम काय येणार ?” बांया हाथनी विचारलं? [चूनावका परिणाम क्या आयेगा ?]

माला माहीत नाही.” एस. सेना भाउ                [मुज़े पता नहीं]

तुमचा पक्षाचा आणि आमच्या पक्षाचा संयुक्त सीट जळून बहुमता  मिळणारा आहे.”  दाउदका बांया हाथ            [तुम्हारा पक्ष और मेरा पक्ष दोनोंकी सीटें मिलाके हमे बहुमत मिलेगा]

जर बी जे.पी  ला स्वतंत्र बहुमत मिळाले तर…? ” एस. सेना      [ लेकिन यदि बीजेपीको बहुमत मिला तो?]

लक्शात ठेव तस घटणार नाही.” दायां हाथ बोला      [ऐसा होनेवाला नहीं है याद रख.] 

बर पण जर सीट बहुमता साठी कमी पडली तर…?” एस. सेना [ओके. यदि , बहुमतके लिये थोडी सीट कम पडी तो?] 

आपल्या कडे कोंगी आहेत , विसरू नको , त्यांच्या  सपोट॔ मिळणार आहे लक्षात ठेव.”  दाउद का दांया हाथ .     [हमारे पास कोंगी है . इस बातको भूल क्यों जाते हो?]

तात्या तुम्ही गाढवा सारखं का बोलतात , कोंगी  आपल्याला कशाला सपोटॆ करणारत्यांची सोन्या बघीतलं काय ? मी माकड बनुशकणार नाही.” एस. सेना      [बडे भैया, गधे जैसी बात क्यों करते हो. कोंगीकी सोनिया देखा है. मैं क्या बंदर हूँ?]

(मराठी भावानुवाद तोरल बहेनने किया है. आभार)

   …………………………………………………………

 

संवाद ऐसा चलता रहा  ……. सरकार बन गई महाराष्ट्रमें …. दाउदके दायां हाथ, बायां हाथ और एस. सेना की अघाडी.

कैसे ?

फिर दाउदके दांया हाथ सेना एवं  एस.सेना के बीच क्या हो संवाद हो सकता है?

देखो एस. सेना भाउ, पैसा बडी चीज़ है. पैसेका प्रवाह हमारे तरफ हमेशा आते रहना आवश्यक है. मध्य प्रदेश गया ही समज़ो. राजस्थान एक दरीद्रतापूर्ण राज्य है. वहांसे कमाया हुआ वहां ही खर्च करना पडेगा. महाराष्ट्र भारतका आर्थिक राजधानी है. इसको प्राप्त करना ही पडेगा. तुमने गत पांच सालमें बीजेपीके शासनमें कितना पैसा बना पाये?  … बहूत कमऐसा कब तक चलेगा?  …………………… अब मेरी व्युह रचना देखो. चूनावके बाद, बीजेपीके समक्ष एक ऐसी शर्त रखना कि यदि बीजेपी उस शर्त को स्विकार ले तो, वह देश में बदनाम ही नहीं  “सत्ता लालचीसिद्ध हो जाय …  यदि बीजेपी उस शर्तको माने तो तुम्हे गठ बंधन तोड देनाऔर बोल देना कि बीजेपी  हमारी चूनावके पूर्व हुई हुए समज़ौतेमेंसे मुखर गया है. जूठ बोलनेमें तो तुम माहिर हो ही. कोई हमे जूठ बोलनेवाला कहे उसके पहेले हमें ही उसे जुठ बोलने वाला केह देना.

तुम्हे किसीसे भी डरनेकी जरुरत नहीं है.  दाउदका पुरे नेट वर्क के सदस्य हमारे साथ है. लेकिन हमें भी उसके नेटवर्कके सदस्योंको फायदा करवाना पडेगा.

वह तो हमें पता है, लेकिन उनको फायदा? इसका मतलब?

मतलब यह कि दाउदके ड्रगका कारोबारका नेट वर्कको और दाउदके पूलीस के साथका नेट वर्कको हमें छूना तक नहीं है. उतना ही नहीं, उसको सहाय  भी करना है. तुम ऐसा करो, गृह मत्रालय हमें दे दो. हम सब नीपटा लेंगेराष्ट्रवादी बननेकी कोशिस नहीं करना

ये सब तो हम जानते है. लेकिन … !!!

देखोकाला धन किसके पास होता है? हम नेताओंके पास होता है वह तो तुम जानते ही हो. बील्डरोंके पास होता है …  वह भी तुम जानते हो …. बोलीवुडके महानुभावोंके पार होता हैवह भी तुम जानते होसरकारी बडे अफसरोंके पास होता है जिनमें पूलिस तंत्र भी आता हैतो अब दाउद को अपना ड्रग्ज़का  माल इन लोगोंको भी तो बेचना है !!! दाउद जब बोलीवुडमें इन्वेस्ट करता है तो उसकोआयभी तो होना चाहिये !!!  तो इन महानुभावोंको ड्र्ग्ज़की आदत भी तो डालनी पडेगी !!! समज़े समज़े !!!

दाउदका शराबका नेटवर्क तो चलता ही है …! फिर ये ड्रग्ज़ क्यों …?

अबे बच्चुशराब तो पानसुपारी है. भोजन कहाँ? और शराबका धंधा तो टपोरी भी कर लेता है.

टपोरीयोंका ड्रग्ज़ के कारोबारमें काम नहीं. ड्रग्ज़का कारोबार ही अलग है. इसमें तो बडे लोगोंका काम है. इस धंधेमें पकडे जानेका डर ही नहीं. क्यों कि हम ऐसे वैसे को प्रवेश देते ही नहीं. नेतापोलीसबोलीवुड महानुभावमीडीया कर्मीसप्लायर पार्टीका नेटवर्क और अन्डरवर्ल्डका नेटवर्कये सभी सामेल है. कोई भी इधर उधर जाता हुआ नज़र आया तो, वह खुदाका प्यारा ही हो जायेगा. किसीको खुदाका प्यारा करना है तो उसके हजार तरीके है हमारे पास, चाहे वह कोई भी हो. अब तुम लोगोंको इसमें आना पडेगा. ये सब फार्म हाउस बनाये हैं वे किस लिये है?

लेकिन

लेकिन क्या बच्चु. अब तुम नेटवर्कमें आ ही गये हो. इस नेट वर्कमें एक ही रास्ता है. वह है अंदर जानेका रास्ता. बाहर जानेका रास्ता केवल खुदाके पास ही जाता है

            ………………………………………………………………….

जनताका सोस्यल मीडीया, सुशांत मर्डर केसमें, क्यूँ इतना इन्टरेस्ट ले रहा है?

क्या जनता एक ही रातमें बोलीवुडके महानुभावोंके विरुद्ध हो गई?

जनता क्यूँ बोलीवुडकी थालीमें अनेक छेद करने लगी है?

जनता को तो मालुम है ही कि, बोलीवुडके अधिकतर महानुभाव लोग, लुट्येन गेंगके सदस्योंकी तरह भारतके हितोके विरुद्ध, भारतकी संस्कृतिके विरुद्ध, भारतके सच्चे इतिहासके विरुद्ध क्यूँ है! इतना ही नहीं वे भारतके दुश्मनोंकी सहायता क्यूँ करते है? इनके अतिरिक्त वे जूठका सहारा लेते है और विदेशमें भी बिकाउ मीडीया द्वारा भारतको और बीजेपी को बदनाम करते है.

तो अब बोलीवुडके साथ साथ विपक्षीय सेनाओंके नेताओंकी, भ्र्ष्ट मीडीया कर्मी और सरकारी अफसरोंकी भी सफाई होनेवाली है. ऐसी आशा भारतीय जनताको दिखाई दे रही है.

अधिकतम नेता महानुभाव लोग “जैसे थे वादी” होते है. कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथी पक्षोंमें अधिक “जैसे थे वादी” नेता है. यह बात तो स्वयं सिद्ध है, यदि ऐसा नहीं होता तो कोंगीयोंके ६५ वर्षके शासनके पश्चात्‌ भी  देश निरक्षर  और गरीब न रहेता.

आप, ओमानके सुलतान काबुसको ही देख लो. उसका देश एक मरुभूमि था. भूगर्भ ओईल तो कभीका निकला हुआ था. लेकिन उसके पिता जैसे थे वादी थे. सुल्तान काबुस, १९७0 में सत्ता पर आया. १९९० तक के समयके अंतर्गत उसने ओमानको समृद्धिके शिखर पर ले गया. क्यों कि वह कृतसंकल्प था. “जैसे थे वादी” लोग तो वहाँ पर भी थे. लेकिन उसने नियमका शासन लागु किया.

“जैसे थे वादी” में अधिकतर लोग नीतिमत्तामें मानते नहीं है. यदि सत्ता है तो उसको अपने लिये  संपत्ति उत्पन्न करनेका साधन मानते है. अपनेको और अपनेवालोंको नियमसे उपर मानते है. स्वयंने जो कहा वही नियम है. सत्ता है तो जूठ बोलो, अफवाहें फैलाओ. राजकारण खेलो, प्रपंच करो और विरोधियों के प्रति असहिष्णु, पूर्वग्रह और प्रतिशोधक बनो. समाचार माध्यम पर कब्जा कर लो. यदि सत्तामें न हो तो भी अपने सांस्कृत्क साथीयोंसे मिलकर जहाँ ऐसा हो सकता है  यह सबकुछ करो.

इस परिस्थितिका कारण?

जब किये हुए  परिश्रमकी अपेक्षा कहीं अधिक संपत्ति मिल जाती है तब व्यक्तिमें दोष आनेकी संभावना अधिक हो जाती है. “जैसे थे वादी” होना एक दोष ही है और जनतामें ऐसी मनोवृत्ति फैलानेका शस्त्र भी है.

“अरे भाई, ये मदिरा लेना, ड्रग्ज़ लेना, पार्टीयाँ करना हम मालेतुजार लोगोंका फैशन है. यह सब परापूर्वसे चला आता है. इसको कोई रोक नहीं पाया है. हम आनंद लेते है तो दुसरोंको क्यों कष्ट होना चाहिये? यदि पैसा चलता रहेगा मतलबकी पैसेकी प्रवाहिता (लीक्वीडीटी) रहेगी, तभी तो लोगोंको व्यवसाय मिलेगा! हम तो गरीबी कम करनेमें योगदान दे रहे है.”

 वास्तवमें यह एक वितंडावाद है. वास्तवमें ड्र्ग्ज़्का कारोबार केवल और केवल काले-धनसे ही होता है.

जहाँ तक भारतको संबंध है वहाँ तक, दाउद, ड्रग्ज़के कारोबार करनेवाले, ड्रग्ज़ लेनेकी आदतवाले  कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथीके अधिकतर नेतागण, बीजेपी-फोबीयासे पीडित मीडीया कर्मी,  दाउदके कन्ट्रोलवाले बोलीवुडके महानुभाव और अन्य मालेतुजार ग्राहक लोग, और उन तक पहोंचानेवाले  एजन्ट ये सब अवैध कारोबारके हिस्से है. इन सबके कारण  देश विरोधी प्रवृतियाँ होती है. क्यों कि आतंकवादीयोंको भी तो पैसा चाहिये. पैसे पेडके उपर नहीं उगते.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

होने वाला दुल्हा अपने मित्रके साथ कन्या के घर गया. दुल्हेके पिताने मित्रसे बोलके रक्खा था कि दुल्हेके बारेमें थोडा बढा चढाके ही बोलना.

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; कितनी पढाई की है ?

दुल्हेके मित्रने बोलाःपढाई ! अरे वडील, वह तो ग्रेज्युएट है. आई..एस. की परीक्षा देनेवाला है

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; “अब क्या कर रहे हैं?

दुल्हेके मित्रने बोलाःमेनेजर है, जनाब.

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; खेलनेका शौक तो होगा ही.

दुल्हेके मित्रने बोलाः केप्टन है क्रीकेट टीमके

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; पार्टी वार्टीका शौक तो होगा ही

दुल्हेके मित्रने बोलाः अरे साब, हमारा यार तो विदेशी शराब की बात तो छोडो, ड्रग्ज़के सिवा कोई हल्की पार्टी करता ही नहीं है. दाउदका करीबी दोस्त शमसद खानकी कंपनीका मेनेजर ही,  पार्टीका बंदोबस्त करता है. पोलिस कमीश्नरकी  खुदकी निगरानीमें सबकुछ होता है.

इतनेमें दुल्हेने खांसा.

होनेवाले श्वसुरने पूछा क्या जुकाम हुआ है?

पता नहीं कि दुल्हेके मित्रने “कोरोना हुआ है” कहा या नहीं.

Read Full Post »

मीडीया वंशवादको बढवा देता है

मीडीया वंशवादको बढवा देता है

बीजेपीका शस्त्रः

राष्ट्रवादी होने के कारण बीजेपीका,  विपक्षके विरुद्ध सबसे बडा आक्रमणकारी शस्त्र, वंशवादका विरोध था और होना भी आवश्यक है. वंशवादने भारतीय अर्थतंत्रको और नैतिकताको अधिकतम हानि की है.

वंशवाद क्या है?

हम केवल राजकारणीय वंशवादकी ही चर्चा करेंगे.

अधिकतर लोग वंशवादके प्रकारोंके भेदको अधिगत नहीं कर सकते.

पिताके गुण उसकी संतानोंमे अवतरित होते है. सभी गुण संतानमें अवतरित होनेकी शक्यता समान रुपसे नहीं होती है. वास्तवमें तो माता-पिताके डीएनएकी प्राकृतिक अभिधृति (टेन्डेन्सी) ही संतानमें अधिकतर अवतरित होती है. अधिकतर गुण तो संतान कैसे सामाजिक और प्राकृतिक वातावरणमें वयस्क हुआ उसके उपर निर्भर है. उनमें आर्थिक स्थिति, खानपान, शिक्षा, पठन, चिंतन, चिंतनके विषय, मित्र और मित्र-मंडल, दुश्मन, रोग, प्राकृतिक घटनाएं आदि अधिक प्रभावशाली होता है.

माता-पिताकी संपत्ति का वारस तो संतान बनती ही है, किन्तु, पढाई, आगंतुक विषयोंके प्रकारोंका चयन और उनके उपरके  चिंतन और प्रमाण, नैतिकता और श्रेयके प्रमाण की प्रज्ञा आदिको  तो संतानको स्वयं के अपने श्रम से विकसित करना पडता है.

स्थावर-जंगम संपत्ति तो संतानको प्राप्त हो जाती है. इसमें व्यवसाय भी संमिलित है, लेकिन व्यवसायको अधिक उच्चस्तर पर ले जानेका जो कौशल्य है उसके लिये तो संतानको स्वयं कष्ट उठाना पडता है.

“संतानको पिताके राजकीय पदका वारस बनाना” इस प्रणालीको पुरस्कृत करनेवालोंको हम वंशवादी कहेंगे और उनकी चर्चा करेंगे.

वंशवादकी प्रणालीको पुरस्कृत किसने किया?

नहेरुने वंशवादकी प्रणालीका प्रारंभ किया. वैसे तो मोतीलाल नहेरुने वंशवाद का आरंभ किया था. १९१९में मोतीलाल नहेरु कोंग्रेसके प्रमुख बने थे. किन्तु १९२०में जवाहरलाल नहेरु कोंग्रेसके प्रमुख बन नहीं पाये थे. तत्‍ पश्चात्‌, १९२८में भी मोतीलाल नहेरु कोंग्रेस पक्षके प्रमुख बने थे. १९२९में जवाहरलाल नहेरु कोंग्रेसके अस्थायी प्रमुख बने थे. १९३६में पुनः अस्थायी प्रमुख बने और १९३७में बने. १९४६में महात्मा गांधीके सूचनसे फिरसे हंगामी प्रमुख बने. फिर १९५१से सातत्य रुपसे १९५४ तक जवाहरलाल नहेरु कोंग्रेसके प्रमुख बने रहे.

इसके अंतर्गत कालमें नहेरु (जवाहरलाल)ने कोंग्रेसके प्रमुखपदकी सत्ता पर्याप्तरुपसे अशक्त कर दी थी. नहेरुने अपनी दुहिता (इन्दिरा) को भी कोंग्रेस पक्ष की प्रमुख बना डाला था. इस अंतरालमें कोंग्रेसमें क्रमांक – एकका पद प्रधान मंत्रीका हो गया था.

प्रच्छन्न और अप्रच्छन्न गुणः

भारतके उपर चीनकी अतिसरल विजयके बाद शिघ्र ही नहेरुने सीन्डीकेटकी रचना कर दी थी. इससे १९६५में लाल बहादुर शास्त्रीजीकी मृत्युके बाद इन्दिराको (शोक कालके पश्चात्‌)  नहेरुकी वारसाई (दहेजरुप) में  प्रधान पद मिला.

कौशल्य और अनुभवमें इन्दिरा गांधी अग्रता क्रममें कहीं भी आती नहीं थी. फिर भी उसको प्रथम क्रमांक दे दिया. जो दुर्गुण नहेरुमें प्रच्छन्न रुपसे पडे हुए थे वे सभी दुर्गुण  इन्दिरामें प्रकट रुपसे प्रदर्शित हुए. नहेरुकी पार्श्व भूमिकामें स्वातंत्र्यका आंदोलन का उनका योगदान था. इस कारणसे नहेरु प्रकट रुपसे स्वकेन्द्री नहीं बन पाये. किन्तु इन्दिरा गांधीके लिये तो “नंगेको नहाना क्या और निचोडना क्या”. वह तो कोई भी निम्न स्तर पर जा सकती थी. इन्दिराका स्वातंत्र्यके आंदोलनमें ऐसा कोई योगदान ही नहीं था कि उसको स्वकेन्द्रीय बननेमें कुछ भी लज्जास्पद लगें.

नहेरु और वंशवाद

नहेरुने कई काले कर्म किये थे इस लिये उनके काले कर्मोंको अधिक प्रसिद्धि न मिले या तो उनको गुह्य रख सकें, इस लिये नहेरुका अनुगामी नहेरुकी ही संतान हो यह अति आवश्यक था. इन्दिराकी वार्ता भी ऐसी ही है. संजय गांधी राजकारणमें था. संजय गांधीकी अकालमृत्यु हो गई.

वंशवादसे यदि पिताके/माताके सत्तापदकी प्राप्ति की जाती है तो सामाजिक चारित्र्यका पतन भी होता है और देशको हानि भी होती है.

ZERO TO MAKE HERO

इन्दिरा गांधीको नहेरुका सत्तापद मिलनेसे जो लोग इन्दिरासे कहीं अधिक वरिष्ठक्रमांकमें थे, उनकी सेवा देशको मिल नहीं सकी. जगजिवनराम, आचार्य क्रिपलानी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, मोररजी देसाई, राममनोहर लोहिया … आदि वैसे तो कभी न कभी कोंग्रेसमें ही थे. किन्तु उनका अनादर हुआ तो उनको पक्षसे भीन्न होना पडा. वंशवादके कारण, पक्षमें कुशल व्यक्तित्व वालोंकी अवहेलना होती ही रहेती है. इसके कारण पक्षके अंदरके प्रथम क्र्मांककी संतानको छोड कर अन्य किसीको, चाहे वह कितनाही कुशल और अनुभवी क्यूँ न हो, उसको सर्वोच्च पदकी कामना नहीं करना है. इसके कारण पक्षके अन्य  नेता या तो पक्ष छोड देते है, या तो पक्षमें रहकर, अपनी सीमित लोकप्रियताका प्रभाव प्रदर्शित करते रहेते है और इसी मार्गसे धनप्राप्ति करते रहेते है. नैतिकताका पतन ऐसे ही जन्म लेता है.

कोंग्रेसमें अनैतिकताका प्रवेश कैसे हुआ?

नहेरुने “सेनाकी जीपोंके क्रयन (खरीदारीमें)” सुरक्षा मंत्रीको आदेश जाँचका आदेश न दिया. तो ऐसी प्रणाली ही स्थापित हो गई. इन्दिरा गांधीने सोचा की ऐसा तो होता ही रहेता है. तो इन्दिरा गांघीने सरकारी गीफ्टमें मिला मींककोट अपने पास रख लिया. तत्‌ पश्चात्‌ ऐसा आचार सर्वमान्य हो गया. नेतागण स्वयको मिला सरकारी आवास ही छोडते नहीं है. दो दो तीन तीन सरकारी आवास रख लेते है और किराये पर भी दे देते है. यदि सरकार खाली करवायें तो स्नानागारके उपकरण, टाईल्स, एसी, कारपेट, फर्नीचर … उठाके ले जाते हैं. फिर सरकारी कर्मचारीयोंमें भी यही गुण अवतरित होता है. वे लोग सरकारी वाहनका अपनी संतानोंके लिये, पत्नीके नीजी कामोंके लिये उपयोग किया करते है.

प्रतिभा पाटिल जो भारतकी राष्ट्रप्रमुख रही वह अपना कार्यकाल समाप्त होने पर १० टनके १४ मालवाहक भरके संपत्ति अपने साथ ले गयीं थीं. और शिवसेनाके सर्वोच्च नेता बाला साहेब ठाकरेने जो स्वयं अपनेको धर्मके रक्षक के रुपमें प्रस्तूत करते है उन्होंने अपने पक्षके जनप्रतिनिधियोंको आदेश दिया था कि राष्ट्रप्रमुख पदके चूनावमें प्रतिभा पाटिलको, प्रतिभा पाटील, मराठी होनेके कारण  उनका अनुमोदन करें. नीतिमत्ता क्या भाषावाद और क्षेत्रवाद से अधिक है? नीतिमत्ताको कौन पूछताहै!!

शिवसेना भी वंशवादी है. बालासाहेब के बाद, उसके बेटे उद्धव ठाकरेको पक्षका प्रमुख बनाया. अब उद्धव ठाकरेने अपनी ही संतानको मुख्य मंत्री बनानेका संकल्प किया है. क्या शिवसेनामें कुशल नेताओंका अभाव है? यदि ६० वर्षकी शिवसेनाके पास वंशीय नेताकी संतानके अतिरिक्त  प्रभावी और वरिष्ठ नेता ही नहीं है तो ऐसे पक्षको तो जीवित रहेनेका हक्क ही नहीं है.

एन.सी.पी. के शरद पवार भी वंशवादी है. ममता बेनर्जी भी वंशवादी है. मायावती, शेखाब्दुला, मुफ्ती मोहम्मद सईद, मुलायम सिंघ … ये सब वंशवादी है और इन सभीके पक्षोंके नेताओंने वर्जित स्रोतोंसे अधिकाधिक संपत्ति बनायी है. इन लोगोंकी अन्योन्य मैत्री भी अधिक है. इन लोगोंके पक्षोंका अन्योन्य विलय नहीं होता है. क्यों कि उनको लगता है कि भीन्न पक्ष बनाके रहकर हम  सत्तामें प्रथम क्रमांक प्राप्त करें ऐसी शक्यता अधिक है. जब तक प्रथम क्रमांक का मौका नहीं मिलता, तब तक पैसा बनाते रहेंगे. यही हमारे लिये श्रेय है.

वंशवाद पर समाचार माध्यमोंका प्रतिभावः

वंशवादी पक्ष जब चूनावमें सफल होता है और सरकार बनानेमें जब वह  प्रभावशाली भूमिका प्रस्तूत कर सकता है तब मोदी-विरोधी ग्रुपवाले समाचार माध्यम, वंशवादी पक्षके गुणगान करने लगते है. जो समाचार माध्यम मोदी-विरोधी नहीं है वे भी असमंजसकी स्थितिमें आ जाते है.

भारतीय जनता पार्टी वंशवादसे विरुद्ध है. उनका यह विचार उनके लिये एक शस्त्र है. जो लोग मोदीके विरुद्ध है, वे लोग बीजेपीके इस शस्त्र को निस्क्रीय करना चाहते है.

इन समाचार माध्यमोंको देशहितकी अपेक्षा, निर्बल और अस्थिर सरकार अधिक प्रिय है. ये लोग वंशवादकी भर्त्सना नहीं करते है. वे कभी उद्धवकी संतानकी कुशलता की चर्चा नहीं करेंगे. ये समाचार माध्यम, बीजेपीकी कष्टदायक स्थितिका अधिकाधिक विवरण देंगे. उस विवरणमें अतिशयोक्ति भी करेंगे. क्यों कि चमत्कृति और रसप्रदीय रम्यता तो उसमें ही है न!!

यदि पिता/माताकी संतानको सत्तापदका वारस बनानेवाली प्रणाली को नष्ट करना है तो सभी समाचार माध्यमोंको पुरस्कृत वारसकी और उसी पक्षके अन्यनेताओंकी बौद्धिक शक्ति और अनुभव शक्ति की तुलना करनेकी चर्चा करना चाहिये और वंशवादीसे पुरस्कृत संतानकी भर्त्सना करना  चाहिये.

व्युहरचना कुछ भीन्न है

समाचार माध्यमोंका धर्म है कि वे या तो केवल समाचार ही प्रस्तूत करें या तो जनसाधारणको सुशिक्षित करें.

किन्तु हमारे देशके कई समाचार माध्यम के संचालक देश हितको त्यागकर, समाचारोंके द्वारा अपना उल्लु सीधा करने पर तुले हुए है. “भारत तेरे टूकडे होगे”, “कसाबको चीकन बीर्यानी खिलानेवाले”, “हिन्दुओंके मौतके जीम्मेवारों”, गुन्डों और आतंकीयोंको और उनके सहायकों … आदिके जनतांत्रिक अधिकार एवं उनके मानवाधिकारोंकी रक्षा यही उनका एजन्डा है. इनकी प्रज्ञामें भला देश हित कैसे घुस सकें?

सत्ता क्या चोरीका माल है?

ये लोग चाहते है कि शिवसेना के सबसे कनिष्ठ, अनुभवहीन और वरीष्ठता क्रममें कहीं भी न आनेवाले उद्धव ठाकरेके लडकेको सीधा ही मुख्यमंत्री बनाया जाय. यदि बीजेपी उसको उपमंत्री पद  दे तो भी यह व्यवस्था उचित नहीं है. क्यों कि विपक्षको तो मौका मिलजायेगा कि देखो बीजेपी भी वंशवादमें मानती है और वंशवादमें माननेवाले पक्षका सहयोग ले रही है.

बीजेपी को भी सोचना चाहिये कि यह  शिवसेना, एनसीपी और कोंगीकी चाल भी हो सकती है कि अब बीजेपी वंशवादके विरुद्ध न बोल सके. श्रेय तो यही होगा कि बीजेपी, शिवसेना को स्पष्ट शब्दोंमें कहे दे कि मंत्रीपद, योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर ही मिलेगा. यह कोई लूट का माल नहीं है कि ५०:५० के प्रमाणसे वितरण किया जाय.

शिवसेना अल्पमात्रामें भी विश्वसनीय नहीं है. इनके नेता, बीजेपीके उपर दबाव बनानेका एक भी अवसर छोडते नहीं है. और परोक्षरुपसे कोंगी आदि विपक्षको ही सहाय करते है.

याद करो ये वही शिवसेना है जिसके शिर्षनेता और स्थापक बालासाहेब ठाकरेने, जब बाबरी मस्जिद ध्वस्त हुई तो कहा था कि ये भूमि पर न तो मस्जिद बने न तो मंदिर बने. इस पर अब चिकीत्सालय बनना चाहिये.

यही शिवसेना के नेतागण यह कहेनेका अवसर चूकते नहीं कि बीजेपी मंदिर निर्माणमें विलंब कर रहा है.

ईन लोगोंसे सावधान,

शिरीष मोहनलाल दवे

Read Full Post »

पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – ३

पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदीऔर …. –

पाकिस्तान के आतंकवादीयोंने स्थानिक लोगोंकी मददसे भारतकी सेना पर बोम्ब ब्लास्ट किया इससे अस्थायी रुपसे बीजेपी/मोदी विरोधीयोंने हिन्दुओंकी एवं बीजेपी समर्थकोंकी असहिष्णुताके बारेमें बोलना बंद किया है.

पहेले जिन शब्दोंके उच्चारणोंका ये अफज़ल प्रेमी गेंग अपना हक्क और अपने इस हक्कको  लोकशाहीका एक अभिन्न अंग मानते है, और उसकी दुहाई देते थे उन्ही लोगोंने उनके पुनः उच्चारण पर एक अल्पविराम लगा दिया है. वे लोग दिखाना यह चाहते है कि हम भी सिपाईयोंके कुटुंबीयोंके दर्दमें सामील है. क्या यह इन अफज़लप्रेमी गेंगका विचार परिवर्तन है?

जिन शब्दोंको पहेले अभिव्यक्तिकी आज़ादी माना जाता था वे शब्द कौनसे थे?

पाकिस्तान जिंदाबाद,

भारत तेरे टूकडे होंगे

कश्मिरको चाहिये आज़ादी,

छीनके लेंगे आज़ादी,

बंदूकसे लेंगे आज़ादी,

अफज़ल हम शर्मिंदा है, कि तेरे कातिल जिन्दा है,

कितने अफज़ल मारोगे… घर घरसे अफज़ल निकलेगा,

आज इन्ही लोगोंमें इन सबका पुनः उच्चारण करनेकी शौर्य नहीं है.

ऐसा क्यों है?

पाकिस्तानके, आई.एस.आई.के, पाकिस्तानी सेनाके और आतंकवादीयोंके चरित्रमें तो कोई बदलाव आया नहीं है. फिर भी ये लोग अपने विभाजनवादी उच्चारणोंकी पुनरुक्ति क्यों नहीं करते? पहेले तो वे कहेते थे कि उच्चारणोसे गद्दारी सिद्ध नहीं होती है. ये नारे तो जनतंत्रका अभिन्न हिस्सा है. मोदी/बीजेपी वाले तो संविधानका अनादर करते है और यह मोदी/बीजेपी जैसे जनतंत्रके विध्वंशक है और वे हमारी अभिव्यक्तिकी आज़ादी  छीन रहे है.

यदि कोई समज़े कि ये स्वयंप्रमाणित स्वतंत्रताके स्वयंप्रमाणित सेनानीयोंको मोदी/बीजेपीकी विचारधारा समज़में आ गयी है तो आप अनभिज्ञतामें न रहे. पाकिस्तान प्रेरित ये आतंकवादी आक्रमणसे जो पाकिस्तान विरोधी वातावरण बना है इस लिये इन विभाजनवादी गेंगोंमें फिलहाल हिमत नहीं कि वे पाकिस्तान का समर्थन करे. उन्होंने एक अल्प समयका विराम लिया है. अब तो यदि कोई इस हमलेको “पाकिस्तानकी भारतके उपर सर्जिकल स्ट्राईक कहे … इतना ही नहीं पाकिस्तान जिन्दाबाद कहे और भारत सरकार उसके उपर कारवाई करें तो भी ये लोग अभिव्यक्तिकी आज़ादी के समर्थनमें चूँ तक नहीं बोलेंगे. हाँ जी अब आप पाकिस्तान जिंदाबाद तक नहीं बोल सकते.

विभाजनवादी गेंगोंका मौन रहना और सरकारके उच्चारणोंका और कदमोंके विरुद्ध न बोलना और मौन द्वारा समर्थन प्रदर्शित करना ये सब हकिकत क्या है?

हम जानते ही है कि पुरस्कार वापसी, हिन्दुओंकी अन्य धर्मोंके प्रति असहिष्णुता, बीजेपी सरकार द्वारा जनतंत्रका हनन, नारे लगानेसे गद्दारी सिद्ध नहीं होती… आदि वाक्‌चातुर्य दिखाने वालोंका समर्थन, वंशवादी कोंगी नेताओंने, टीवी चेनलओंने, मूर्धन्योंने विवेचकोंने, विश्लेषकोंने, कोंगीके सांस्कृतिक सहयोगीओंने उनके पास चलकर जाके किया था.

क्या ये सब तो कोंगीयोंकी एक बडी गेम का हिस्सा था?

कोंगीयोंकी और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंकी गेम क्या है?

हम जानते हैं कि जूठ बोलना कोंगीयोंकी पूरानी आदत है. चाहे वह नहेरु हो, इन्दिरा घांडी हो, राजिव घांडी हो, सोनिया घांडी हो या रा.घा. (रा.गा.) हो. अमान्य तरिकोंसे पैसे कमाना यह भी इन्दिराने आत्मसात्‌ की हुई आदत है. इन सबसे सत्ता प्रप्त करना और सत्ता प्रप्तिके बाद भी यह सब चालु रखना यह उनका संस्कार है.

अब हुआ क्या, कि कौभान्डोंके कारण कोंगीकी सत्ता चली गई. और नरेन्द्र मोदीने अवैध तरिकोंसे प्राप्त संपत्तिके लिये जाँच बैठा दी. वैसे तो कई किस्से पहेलेसे ही न्यायालयमें चलते भी थे. इन जाँचोंमेंसे निष्कलंक बाहर आना अब तो मुश्किल हो गया है, क्यों कि अब तो उनके पास सत्ता रही नहीं.

तो अब क्या किया जाय?

सत्ताप्राप्त करना अनिवार्य है. हमारा मोटो सत्ताप्राप्त करना. क्यों कि हमे बचना है. और बचनेके बाद हमारी दुकान चालु करनी है.

सबने मिलकर एक महागठबंधन बनाया. क्योंकि अवैध संपत्ति प्राप्ति करनेमें तो उनके सांस्कृतिक साथी पक्ष और कई मीडीया कर्मी भी थे. अब इस मोदी/बीजेपी हटाओके “गेम प्लान”में सब संमिलित है.

चूनाव उपयुक्त माहोलसे (वातावरण बनानेसे) जिता जाता है. मोदी/बीजेपीके विरुद्ध माहोल बनाओ तो २०१९का चूनाव जिता जा सकता है.

जूठ तो हम बोलते ही रहे है, हमारा रा.घा. (रा.गा.) तो इतना जूठ बोलता है कि वह सुज्ञ जनोंमे अविश्वसनीय हो गया है. लेकिन हमें सुज्ञ जनोंसे तकलिफ नहीं है. उनमेंसे तो कई बिकाउ है और हमने अनेकोंको खरिद भी लिया है. मीडीया भी बिकाउ है, इस लिये इन दोंनोंकी मिलावटसे हम रा.घा. को महापुरुष सिद्ध कर सकते है. अभी अभी जो मध्यप्रदेश, और राजस्थान और छत्तिसगढ में जित हुई है उसको हम मीडीया मूर्धन्योंकी सहायतासे रा.घा.के नाम करवा सकते है. रा.घा.के लगातार किये जा रहे जी.एस.टी., विमुद्रीकरण और राफेल प्रहारोंको हम अपने मीडीया मूर्धन्यों के द्वारा जिन्दा रखेंगे. प्रियंका को भी हम समर भूमिमें उतारेंगे और उसके सौदर्यका और अदाओंका सहारा लेके उसको महामाया बनाएंगे.

कोंगीके सीमा पारके मित्रोंका क्या प्लान है?

मणीशंकर अय्यर ने पाकिस्तान जाके कहा था कि, “मोदी को तो आपको हटाना पडेगा” जब तक आप यह नहीं करोगे तब तक दोनों देशोंके पारस्परिक संबंध और वार्ता शक्य नहीं बनेगी.

इसका सूचितार्थ क्या है?

“हे पाकिस्तानी जनगण, आपके पास मूर्धन्य है, आपके पास आइ.एस.आइ. है, आपके पास सेना है, आपके पास कई आतंकवादी संगठन है. याद करो… आपने उन्नीसौ नब्बे के दशक में कश्मिरके हमारे सहयोगी पक्षके मंत्रीकी पूत्री तकका हरण कर सकनेका सामर्थ्य दिखाया था. तो हमने आपके कई आतंकवादी महानेताओंको रिहा किया था. हमारे शासनके बाद की सरकारने भी कुछ आतंकवादी नेताओंको रिहा किया था. आपके पास हरकत उल जिहाद, लश्करे तोइबा, जैश ए मोहमद, हिजबुल मुज़ाही दीन, हरकत उल मुज़ाहीन, अल बद्र, जे एन्ड के लीबरेशन फ्रन्ट जिसको फुलेफलने हमने ही तो आपको मौका दिया था. आपके समर्थक  

अब्दुल गनी लोन, सैयद अली गीलानी, मिरवाज़ ओमर फारुख, मोहमद अब्बास अन्सारी, यासीन मलिक आदि कई नेताओंको, हमने पालके रक्खा है और हमने उनको जनतंत्रका और संविधानका फर्जी बहाना बनाके श्रेष्ठ सुविधाएं दी है. तो ये सब कब काम आयेंगे? और देखो … आपके खातिर ही हमने तो इज़राएलसे राजद्वारी संबंध नहीं रक्खे थे. आपको तो हम, हर प्रकारकी मदद करते रहे हैं और कश्मिरकी समस्या अमर रहे इस कारणसे हमने आपकी हर बात मान ली है. मुफ्ति मोहमद, फारुख अब्दुल्ला और ओमर अब्दुल्ला आदि तो हमारे भी मित्र है.

“अरे भाई, आपकी सुविधा के लिये आपके लोगोंने जब कश्मिरमें हजारों हिन्दु स्त्रीयों पर बलात्कार किया, ३०००+ हिन्दुओंका कत्ल किया जब ५ लाख हिन्दुओंको कश्मिरसे १९८९-९०मे बेघर किया तो हमारी कानोंमें और हमारे पेईड आदेशोंके प्रभावके कारण हमारी मीडीयाकी कानोंमे जू तक रेंगने नहीं दी थी. क्या ये सब आप भूल जाओगे?

“अरे भाई, ये फारुख और ओमर को तो हमने मुख्य मंत्री भी बना दिया था. और हमने भरपूर कोशिस की थी कि फिरसे ये साले कश्मिरी हिन्दु, कश्मिरमें, फिरसे बस न पाये. ये भी क्या आप भूल गये? हमने आपको मोस्ट फेवर्ड राष्ट्रका दरज्जा दिया है, हमने आपके दाउदको भारतसे भागनेकी सुविधा दी थी. और भारतके बाहर रखकर भी भारतमें अपने संबंधीओ द्वारा अपना कारोबार (हवाला-वाला, तस्करी, हप्ता, बिल्डरोंकी समस्या आदि आदि) चला सके उसके लिये भरपूर सुविधाएं दी है उनको भी क्या आप भूल जाओगे? अरे भाई आपके अर्थतंत्रमें  तो दाउदका गणमान्य प्रभाव है. क्या आप इसको भी भूल जाओगे?

“अरे मेरे अय्यर आका, आपको क्या चाहिये वह बोलो न..!!” पाकिस्तान बोला

मणीशंकर अय्यर बोले; “ देखो, मुज़े तो कुछ नहीं चाहिये. लेकिन आपको पता होगा कि मुज़े भी किसीको जवाब देना है … !!

“हाँ हाँ मुसलमान ख्रीस्ती भाई भाई … यही न !! अरे बंधु, वैसे तो हम मुसलमान, ख्रीस्ती और दलित भाई भाई भाई वैसा प्रचार, आपके यहाँ स्थित हमारे नेताओंसे करवाते है, लेकिन हमसे वह जमता नहीं है, वैसे भी हिन्दुओंको जातिके आधार पर विभाजित करनेका काम तो आप कर ही रहे हो न? जरा और जोर लगाओ तो मुसलमान, ख्रीस्ती दलित, पटेल, जट, यादव सब भाई, भाई, भाई, भाई भाई हो जायेगा ही न?” पाकिस्तान बोला.

“सही कहा आपने” अय्यर आगे बोले; “हमारा काम तो हम कर ही रहे है. हम कुछ दंगे भी करवा रहे है, आपको तो मालुम है कि दंगे करवानेमें तो हमे महारथ हांसिल है, लेकिन यह साला मोदी, बीजेपी शासित राज्योंमें दंगे होने नहीं देता. हम हमारे महागठबंधनवाले राज्योंमें तो दंगे करवाते ही है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है. आप कुछ करो न…? कुछ बडे हमले करवाओ न…? हम आपको, जो भी भूमिगत सहाय चाहिये, वह देगें. हम ऐसे आतंकी हमले मोदी/बीजेपी/आरएसएस/वीएचपी ने करवाये वैसी व्युह रचना करवाएंगे. लेकिन यदि आप बोंम्बे ब्लास्ट जैसा, हमला करवायेंगे तो ठीक नहीं होगा. वह साला कसाब पकडा गया, तो इससे हमारा पुरा प्लान फेल हो गया. वह ब्लास्ट आपके नाम पर चढ गया. इसलिये आप हमेशा आत्मघाती आतंकीयोंको ही भेजें. हमने जैसे मालेगाँव बोम्ब ब्लास्ट, हिन्दुओंने करवाया था, ऐसा प्रचार सालों तक हमने किया था और २००९के चूनावमें हमने जित भी हांसिल कर ली थी. आपका आदमी जो पकडा गया था उसको हमने भगा भी दिया था. क्यों कि हमारी सरकार थी न, जनाब.

“तो अभी आप हमसे क्या चाहते है? “ पाकिस्तानने बोला

“आपके पास दो विकल्प है” कोंगीनेताने आगे बोला “आपके पास कई आतंकवादी संगठन है. आप उनको कहो कि वह मोदीकी गेम कर दें. हमने गत चूनावमें बिहारमें मोदीको मारनेका प्लान किया था. मोदीकी पटनाकी रेली में हमने मोदीकी गेमका प्लान बनाया था. लेकिन साला मोदी बच गया. अब आप ऐसा करो कि यदि मोदीकी गेमका फेल हो जाय तो भी दुसरे विकल्पसे हमें मदद मिलें. आप कुछ बडे आतंकवादी हमले करवा दो, कोई और जगह नही तो तो कश्मिरमें ही सही.

“इससे क्या फायदा” पाकिस्तान बोला.

“देखो बडे हमले से भारतमें बडा आक्रोष पैदा होगा. बदले कि भावना जाग उठेगी. समय ऐसा निश्चित करो कि, मोदीके लिये बदला लेनेका मौका ही न रहे. मोदी न तो युद्ध कर सकेगा न तो सर्जीकल स्ट्राईक कर सकेगा. यदि मोदीने सर्जीकल स्ट्राईक कर भी दी तो वह विफल हो जायेगा,  क्यों कि आप तो सुरक्षाके लिये तयार ही होगे. मोदीके फेल होनेसे हमे बहोत ही फायदा मिल जायेगा. कमसे कम एक मुद्दा तो हमारे पास आ जायेगा कि मोदी १००% फेल है. वैसे तो हम, मोदी हरेक क्षेत्रमें फेल है, ऐसी अफवाहें फैलाते ही रहेतें है. लेकिन इस हमले के बाद मोदीकी जो पराजय होगी, इस फेल्योरको तो मोदी समर्थक भी नकार नहीं सकेंगे. हमारी मीडीया-टीम तो तयार ही है.

“बात तो सोचने लायक है” पाकिस्तान बोला.

“अरे भाईजान अब सोचो मत. जल्दी करो. समय कम बचा है. चूनावकी घोषणाका एक मास ही बचा है. जैसे ही एक बडा ब्लास्ट होगा, हमारे कुछ मीडीया मूर्धन्य दो तीन दिन तो सरकारके समर्थनमें और आपके विरुद्ध निवेदन बाजी करेंगे. धीरे धीरे चर्चाको मोदी की विफलताकी ओर ले जायेंगे.

बडा ब्लास्ट करना है तो पूर्व तयारी रुप काम करना ही है.

जम्मु कश्मिर राज मार्ग पर एक आतंकी/आतंकी समर्थक गाडी ले के निकला. रास्तेमें तीन चेक पोस्ट आये. दो चेक पोस्ट वह तोडके निकल गया. लेकिन जब तीसरा चेकपोस्ट उसने तोडा और भागा तो तीसरे चेकपोस्टवाले सुरक्षा कर्मीने गोली छोडी और वह आदमी अल्लाहका प्यारा हो गया. फिर तो कोंगी गेंग वाले मीडीया मूर्धन्य और फारुख, ओमर और महेबुबा आदि तो अपना आक्रोष प्रदर्शित करनेके लिये तयार ही थे. उन्होंने “एक सीटीझन को मार दिया, एक निर्दोष मानवीकी हत्या की, एक बेकसुरको मार दिया, एक मासुम को मार दिया…” मीडीया मूर्धन्योंने इस घटनाकी भर्त्सना करनेमें पूरा साथ दिया और कोंगी शासनकी कृपासे बने हुए नियमों से उस जवान को कारावासमे भेज दिया.  फिर यह सब चेक पोस्ट हटवा लिया. इसका फायदा पुलवामा में ब्लास्ट करनेमें आतंकीयोंने लिया.

अब कोंगीयोंका क्या चाल है?

कोंगीके सहायक दलोंने दो दिन तक तो मगरके आंशुं बहाये. लेकिन उसके कुछ मीडीया मूर्धन्य और मीडीया मालिक अधीर है. गुजरात समाचारकी बात तो छोडो. उसने तो पहेले ही दिन मोदीका ५६” की छातीपर मुक्का मार दिया. यह अखबार हमारी कोमेंट के लिये योग्य स्तर पर नहीं है. वह तो टोईलेट पेपर है

लेकिन तीसरे दिन डीबीभाईने (“दिव्य भास्कर” अखबारने) मैदानमें आगये. उन्होंने मोदीको   प्रश्न किया “अब तो मुठ्ठी खोलो और बताओ कि बदला कब लोगे?

मतलब की किस प्रकारका बदला कब लोगे वह हमें (“हमें” से मतलब है जनता को) कब कहोगे?

डीबीभाईकी बालीशता या अपरिपक्वता?

“आ बैल मुझे मार”

सरकार अपने प्रतिकारात्मक कदम पहेलेसे दुश्मनको बता दें, वह क्या उचित है? कभी नहीं. यदि कोई बेवकुफ सरकारने ऐसा किया तो वह “आ बैल मुज़े मार” जैसा ही कदम बनेगा. क्या ऐसी आसान समज़ भी इस अखबारमें नहीं है? शायद सामान्य कक्षाकी जनता, इस बातको समज़ नहीं सकती, लेकिन यदि एक विशाल वाचक वर्ग वाला अखबार, मोदीके विरुद्ध माहोल बनाने के लिये ऐसी बेतुकी बाते करे वह अक्षम्य है. वास्तवमें अखबार का एजन्डा, आम कक्षाकी जनताको गुमराह करनेका है. ताकि जनता भी मोदी पर दबाव करे कि मोदी तुम अपना प्रतिकारात्म प्लान खुला करो.

डीबीभाई के मीडीया मूर्धन्य कोलमीस्ट भी डीबीभाई से कम नहीं.

शेखर गुप्ताने तो एक परोक्ष मुक्का मार ही दिया. “क्या मोदी ‘इस कलंक’ के साथ चूनाव लड सकता है.?” मतलब कि शे.गु. के हिसाब से यह ब्लास्ट, “मोदीके लिये कलंक है.” याद करो कोंगी के नेतृत्ववाली सरकारमें तो आये दिन आतंक वादी, देशके भीतरी भागोंमें घुस कर बोम्ब ब्लास्ट किया करते थे तो भी इन महानुभावोने कोंगी उपर लगे वास्तविक कलंकको अनदेखा किया था. और प्रमाणभान रक्खे बिना, बीजेपी के विरुद्ध प्रचारको कायम रक्खा था. कोंगी अनगीनत कौभान्डोसे आवरित होने पर भी कोंगी के नेतृत्व वाली सरकारको जितानेमें भरपुर सहयोग दिया था. आज मोदीने आतंकवाद को काश्मिरके कुछ इलाकों तक सीमित कर दिया है और जो हमला हुआ उसके लिये तो, महेबुबा मुफ्ति, ओमर अब्दुल्ला, फारुख और कोंगीके नेतागण उत्तरदेय है. उनके उपर ही कार्यवाही करना चाहिये. इस हकिकतका तो, शे.गु. जिक्र तक नहीं करता है. उनका दिमाग तो जनताको उलज़नमें डालनेका है.

ममताने तो अभी से बोल ही दिया कि बिना सबुत पाकिस्तान स्थित आतंकवादी नेताओं पर कार्यवाही करनेको कहेना सही नहीं है. ममता का माइन्ड-सेट कैस है इस बातको आपको देखना चाहिये. कोंगीके कार्यकालमें और उरी एटेकमें सबुत दिये तो उसपर कार्यवाही क्यों नहीं की? इस तथ्यका ममता जिक्र नहीं करेगी. क्यों कि वह चाहती है कि अधिकतर मुसलमान और नेता आतंकवादी हमलेसे खुश है और उनको मुज़े नाराज करना नही चाहिये. केज्रीवाल और ममता एक ही भाषा बोलते है क्यों कि मुसलमान उनकी वोट-बेंक है.

सुज्ञ मुसलमानोंको ऐसे कोमवादी पक्षोंको वोटदेना नहीं चाहिये.

कोंगी और उसके सांस्कृतिक अहयोगी थोडे ही दिनोंमें “पुलवामा” एपीसोड के बीजेपी पर आक्रमण करने लगेंगे. क्यों कि सब उनके आयोजनके हिसाबसे आगे बढ रहा है.

यदि पाकिस्तान मोदीको हटाने पर तुला हुआ है. तो “पाकिस्तानको एक मोदी चाहिये” उसका मतलब क्या?

वास्तवमें पाकिस्तानकी जनता उनकी भ्रष्ट सियासतसे, सेनासे और आतंकवादीयोंसे तंग आ गई है. पाकिस्तानकी जनताका स्वप्न है उन्हे मोदी जैसा इमानदार, त्यागी, ज्ञानी, काम करनेवाला और होशियार प्रधान मंत्री मिले.

और भारतकी जनताको स्वप्नमें भी खयाल नहीं था कि उसको इमानदार, त्यागी, ज्ञानी, काम करनेवाला और होशियार प्रधान मंत्री मिल सकता है. वास्तवमें ऐसा प्रधान मंत्री भारतकी जनता को मिला, तो भारतके तथा कथित मीडीया मूर्धन्य, भारतकी जनता कैसे मोदी-मूक्त बने उसके बारेमें कारवाईयां कर रही है. यह भी एक विधिकी वक्रता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

https://wwwDOTtreenetramDOTwordpressDOTcom   

 

Read Full Post »

साहिब (जोकर), बीबी (बहनोईकी) और गुलाम(गण)

जोकर, हुकम (ट्रम्प) और गुलाम [साहिब, बीबी (बहनोईकी) और गुलाम]

गुजरातीमें एक कहावत है “भेंस भागोळे, छास छागोळे, अने घेर धमाधम”

एक किसानका संयुक्त कुटुंब था. भैंस खरीदनेका विचार हुआ. एक सदस्य खरीदनेके लिये शहरमें गया. घरमें जोर शोर से चर्चा होने लगी कि भैंसके संबंधित कार्योंका वितरण कैसे होगा. कौन उसका चारा लायेगा, कौन चारा  डालेगा, कौन गोबर उठाएगा, कौन दूध निकालेगा, कौन दही करेगा, कौन छास बनाएगा, कौन  छासका मंथन करेगा ….? छासके मंथन पर चिल्लाहट वाला शोर मच गया. यह शोरगुल सूनकर, सब पडौशी दौडके आगये. जब उन्होंने पूछा कि भैंस कहाँ है? तो पता चला कि भैस तो अभी आयी नहीं है. शायद गोंदरे (भागोळ) तक पहूँची होगी या नहीं पता नही. … लेकिन छास का मंथन कौन करेगा इस पर विवाद है.

यहां इस कोंगीके नहेरुवीयन कुटुंबकवादी पक्षका फरजंदरुपी, भैंस तो अमेरिकामें है, और उसको कोंगी पक्षका एक होद्दा दे दिया है, तो अब उसका असर चूनावमें क्या पडेगा उसका मंथन मीडिया वाले और कोंगी सदस्य जोर शोरसे करने लगे हैं.

कोंगीलोग तो शोर करेंगे ही. लेकिन कोंगीनेतागण चाहते है कि वर्तमान पत्रोंके मालिकोकों समज़ना चाहिये कि, उनका एजन्डा क्या है! उनका एजन्डा भी कोंगीके एजन्डेके अनुसार होना चाहिये. जब हम कोंगी लोग जिस व्यक्तिको प्रभावशाली मानते है उसको समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी प्रभावशाली मानना चाहिये और उसी लाईन पर प्रकाशन और चर्चा होनी चाहिये.

कोंगी नेतागण मीडीया वालोंको समज़ाता है कि;

“हमने क्या क्या तुम्हारे लिये (इन समाचार माध्यमोंके लिये) नहीं किया? हमने तुमको मालदार बनाये. उदाहरणके लिये आप वेस्टलेन्ड हेलीकोप्टरका समज़ौता ही देख लो हमने ४० करोड रुपयेका वितरण किया था. सिर्फ इसलिये कि ये समा्चार माध्यम इस के विरुद्ध न लिखे. हमने जब जब विदेशी कंपनीयोंसे व्यापारी व्यवहार किया तो तुम लोगोंको तुम्हारा हिस्सा दिया था और दिया है. तुम लोगोंको कृतज्ञता दिखाना ही चाहिये.

हमारी इस भैसको कैसे ख्याति दोगे?

मीडीया मूर्धन्य बोलेः “कौन भैस? क्या भैंस? क्यों भैंस? ये सब क्या मामला है?

कोंगीयोंने आगे चलाया; “ अरे वाह भूल गये क्या ?हम कोंगी लोग तो साक्षात्‌ माधव है.

“मतलब?

“मा”से मतलब है लक्ष्मी. “धव”से मतलब है पति. माधव मतलब, लक्ष्मी के पति. यानी कि विष्णु भगवान. हम अपार धनवाले है. हम धनहीन हो ही नहीं सकता. इस धनके कारण हम क्या क्या कर सकते हैं यह बात आपको मालुम ही है?

नहिं तो?

मूकं कुर्मः वाचालं पंगुं लंगयामः गिरिं

अस्मत्‍ कृपया भवति सर्वं, अस्मभ्यं तु नमस्कुरु

[(अनुसंधानः मूकं करोति वाचालं, पंगुं लंगयते गिरिं । यत्कृ‌पा तं अहम्‌ वन्दे परमानंदं माधवं ॥ )

उस लक्ष्मीपति जो अपनी कृपासे  “मुका” को वाचाल बना सकता है और लंगडेको पर्वत पार करनेके काबिल बना देता है उस लक्ष्मी पतिको मैं नमन करता हूँ.]   

लेकिन यदि लक्ष्मीपतियोंको, खुदको ऐसा बोलना है तो वे ऐसा ही बोलेंगे कि हम अपनी कृपासे मुकोंको वाचाल बना सकते है और लंगडोंको पर्वत पार करवा सकते है, इस लिये (हे तूच्छ समाचार माध्यमवाला, हम इससे उलटा भी कर सकते हैं), हमें तू नमन करता रह. तू हमारी मदद करेगा तो हम तुम्हारी मदद करेंगे. धर्मः रक्षति रक्षितां.

भैंसको छा देना है अखबारोंमें

IMG-20190104-WA0022

आर्टीस्टका सौजन्य

वाह क्या शींग? वाह क्या अंग है? वाह क्या केश है? वाह क्या पूंछ है…? वाह क्या चाल है? वाह क्या दौड है? वाह क्या आवाज़ है? इस भैंसने तो “भागवत” पूरा आत्मसात्‌ किया ही होगा…!!!

“हे मीडीया वाले … चलो इसकी प्रशंसा करो…

और मीडीया वालोंने प्रशंसाके फुल ही नहीं फुलोंके गुलदस्तोंको बिखराना चालु कर दिया. अरे यह भैंस तो अद्दल (असल, न ज्यादा, न कम, जैसे दर्पणका प्रतिबिंब) उसके दादी जैसी ही है.  जब दिखनेमें दादी जैसी है तो अवश्य उसकी दादीके समान होशियार, बुद्धिमान, चालाक, निडर …. न जाने क्या क्या गुण थे इसकी दादीमें …. सभी गुण इस भैंसमें होगा ही. याद करो इस भैंसके पिता भैंषाको, जिसको, हमने ही तो “मीस्टर क्लीन” नामके विशेषणसे नवाज़ा था. हालाँ कि वह अलग बात है कि बोफोर्सके सौदेमें उसने अपने  हाथ काले किये. वैसे तो दादीने भी स्वकेन्द्री होने कि वजहसे आपात्काल घोषित करके विरोधीयोंको और महात्मा गांधीके अंतेवासीयोंको भी  कारावासमें डाल दिया था. इसीकी वजह से इसकी दादी खुद १९७७के चूनावमें हार गयी थी वह बात अलग है. और यह बात भी अलग है कि वह हर क्षेत्रमें विफल रही थीं. और आतंकवादीयोंको पुरस्कृत करनेके कारण वह १९८४में भी हारने वाली थी. यह बात अलग है कि वह खुदके पैदा किये हुए भष्मासुरसे मर गई और दुसरी हारसे बच गई.  

गुजराती भाषामें “बंदर” को “वांदरो” कहा जाता है.

लेकिन गुजरात राज्यके “गुजरात”के प्रदेशमें “वादरो”का उच्चारण “वोंदरो” और “वोदरो” ऐसा करते है. काफि गुजराती लोग “आ” का उच्चारण “ऑ” करते है. पाणी को पॉणी, राम को रॉम …. जैसे बेंगाली लोग जल का उच्चार जॉल, “शितल जल” का उच्चार “शितॉल जॉल” करते है. 

सौराष्ट्र (काठीयावाड) प्रदेशमें “वांदरो” शब्दका उच्चारण “वांईदरो” किया जाता है.

अंग्रेज लोग भी मुंबईके “वांदरा” रेल्वेस्टेशनको “बांड्रा” कहेते थे. मराठी लोग उसको बेंन्द्रे कहेते थे या कहेते है.

तो अब यह “वाड्रा” आखिरमें क्या है?

वांईदरा?  या वांद्रा?  या वोंदरा?

याद करो …

पुर तो एक ही है, जोधपुर. बाकी सब पुरबैयां

महापुरुषोंमें “गांधी” तो एक ही है, वह है महात्मा गांधी, बाकी सब घान्डीयां

हांजी, ऐसा ही है. अंग्रेजोंके जमानेसे पहेले, गुजरातमें गांधी एक व्यापारी सरनेम था. लेकिन अंग्रेज लोग जब यहां स्थायी हुए उनका साम्राज्य सुनिश्चित हो गया तब “हम हिन्दुसे भीन्न है” ऐसा मनवाने के लिये पारसी और कुछ मुस्लिमोंने अपना सरनेम “गांधी”का “घान्डी” कर दिया. वे बोले, हम “गांधी” नहीं है. हम तो “घान्डी” है. हम अलग है. लेकिन महात्मा गांधीने जब नाम कमाया, और दक्षिण आफ्रिकासे वापस आये, तो कालक्रममें  नहेरुने सोचा कि उसका दामात “घांडी”में से वापस गांधी बन जाय तो वह फायदएमंद रहेगा. तो इन्दिरा बनी इन्दिरा घान्डीमेंसे इन्दिरा गांधी. और चूनावमें उसने अपना नाम लिखा इन्दिरा नहेरु-गांधी.

तो प्रियन्का बनी प्रियंका वाड्रा (या वांईदरा, या वांदरा या वादरा या वाद्रे)मेंसे बनी प्रियंका वांइन्दरा गांधी या प्रियंका गांधीवांइन्दरा.

IMG-20190124-WA0006[1]

आर्टीस्टका सौजन्य

हे समाचार माध्यमके प्रबंधको, तंत्री मंडलके सदस्यों, कोलमीस्टों, मूर्धन्यों, विश्लेषकों … आपको इस प्रियंका वांईदराको यानी प्रियंका गांधी-वांईदराको राईमेंसे पर्वत बना देनेका है. और हमारी तो आदत है कि हमारा आदेश जो लोग नहीं मानते है उनको हम “उनकी नानी याद दिला देतें है”. हमारे कई नेताओने इसकी मिसाल दी ही है. याद करो राजिव गांधीने “नानी याद दिला देनेकी बात कही थी … हमारे मनीष तीवारीने कहा था कि “बाबा रामदेव भ्राष्टाचारसे ग्रस्त है हम उसके धंधेकी जाँच करवायेंगे” दिग्वीजय सिंघने कहा था “सरसे पाँव तक अन्ना हजारे भ्रष्ट है हम उसकी संस्था की जांच करवाएंगे, किरन बेदीने एरोप्लेनकी टीकटोंमें भ्रष्टाचार किया है हम उसको जेलमें भेजेंगे”, मल्लिकार्जुन खडगेने कहा “ हम सत्तामें आयेंगे तो हर सीबीआई अफसरोंकी फाईल खोलेंगे और उसकी  नानी याद दिला देंगे, यदि उन्होने वाड्राकी संपत्तिकी जाँच की तो … हाँजी हम तो हमारे सामने आता है उसको चूर चूर कर देतें हैं. वीपी सिंह, मोरारजी देसाई, और अनगीनत महात्मागांधीवादीयोंको भी हमने बक्षा नहीं है, तो तुम लोग किस वाडीकी मूली हो. तुम्हे तुम्हारी नानी याद दिला देना तो हमारे बांये हाथका खेल है. सूनते हो या नहीं?

“तो आका, हमें क्या करना है?

तुम्हे प्रियंका वादरा गांधीका प्रचार करना है, उसका जुलुस दिखाना है, उसके उपर पुष्पमाला पहेलाना है वह दिखाना है, पूरे देशमें जनतामें खुशीकी लहर फैल गई है वह दिखाना है, उसकी बडी बडी रेलीयां दिखाना है, उसकी हाजरजवाबी दिखाना है, उसकी अदाएं दिखाना है, उसका इस्माईल (स्माईल) देखाना है, उसका गुस्सा दिखाना है, उसके भीन्न भीन्न वस्त्रापरिधान दिखाना है, उसका केशकलाप दिखाना है, उसके वस्त्रोंकी, अदाओंकी, चाल की, दौडकी स्टाईल दिखाना है और उसकी दादीसे वह हर मामलेमें कितनी मिलती जुलती है यह हर समय दिखाना है. समज़े … न … समज़े?

“हाँ, लेकिन आका! भैंस (सोरी … क्षमा करें महाराज) प्रियंका तो अभी अमेरिकामें है. हम यह सब कैसे बता सकते हैं?

“अरे बेवकुफों … तुम्हारे पास २०१३-१४की वीडीयो क्लीप्स और तस्विरें होंगी ही न … उनको ही दिखा देना. बार बार दिखा देना … दिखाते ही रहेना … यही तो काम है तुम्हारा … क्या तुम्हें सब कुछ समज़ाना पडेगा? वह अमेरिकासे आये उसकी राह दिखोगे क्या? तब तक तुम आराम करोगे क्या? तुम्हे तो मामला गरम रखना है … जब प्रियंका अमेरिकासे वापस आवें तब नया वीडीयो … नयी सभाएं … नयी रेलीयां … नया लोक मिलन… नया स्वागत …  ऐसी वीडीयो तयार कर लेना और उनको दिखाना. तब तक तो पुराना माल ही दिखाओ. क्या समज़े?

“हाँ जी, आका … आप कहोगे वैसा ही होगा … हमने आपका नमक खाया है …

और वैसा ही हुआ… प्रियंका गांधी आयी है नयी रोशनी लायी है …. वाह क्या अदाएं है … अब मोदीकी खैर नहीं ….

प्रियंका वादरा अखबारोंमें … टीवी चैनलोंमें … चर्चाओंमे ..,. तंत्रीयोंके अग्रलेखोंमें … मूर्धन्योंके लेखोंमें … कोलमीस्टोंके लेखोमें … विश्लेषणोंमें छाने लगी है …

प्रियंका वादराको ट्रम्प कार्ड माना गया है. वैसे तो यह ट्रम्प कार्ड २०१३-१४में चला नहीं था … वैसे तो उसकी दादी भी कहाँ चली थीं? वह भी तो हारी थी. वह स्वयं ५५००० मतोंसे हार गयी थी. वह तो १९८४में फिरसे भी हारने वाली थी … लेकिन मर गयी तो हारनेसे  बच गयी.

प्रियंका वांईदरा ट्रम्प कार्ड है. ट्रम्प कार्डको उत्तरभारतके लोग “हुकम” यानी की “काली” या कालीका ईक्का  केहते है. प्रियंका ट्रम्प कार्ड है. कोंगीके प्रमुख जोकर है. कोंगीके बाकी लोग और मीडीया गुलाम है.

साहिब यानी कोंगी पक्ष प्रमुख (यानी जोकर), (वांईदराकी) बीबी और दर्जनें गुलाम कैसा खेल खेलते है वह देखो.

“आँखमारु जोकर” गोवामें पूर्व सुरक्षामंत्री (पनीकर)से मिलने उनके घर गया था. उसने बोला कि “ … मैं पनीकरसे कल मिला. पनीकरने बताया कि राफेल सौदामें जो चेन्ज पीएम ने किया वह उसको दिखाया नहीं गया था.” ताज़ा जन्मा हुआ बच्चा भी कहेगा कि, इसका अर्थ यही होता है कि “जब रा.गा. पनीकरको मिलने गया तो पनीकरने बताया कि राफैल सौदामें जो चेन्ज किया वह पीएमने तत्कालिन रक्षा मंत्रीको दिखाया नहीं था.”

Untitled

आर्टीस्टका सौजन्य

ऐसा कहेना रा.गा.के चरित्रमें और कोंगी संस्कारमें आता ही है. रा.गा.के सलाहकारोंने रा.गा.को सीखाया ही है कि तुम ऐसे विवाद खडा करता ही रहो कि जिससे बीजेपी के कोई न कोई नेताके लिये बयान देना आवश्यक हो जाय. फिर हम ऐसा कहेगें कि हमारा मतलब तो यही था लेकिन बीजेपी वाले गलत अर्थमें बातोंको लेते हैं, और बातोंका बतंगड बनाते हैं. उसमें हम क्या करें? और देखो … मीडीया मूर्धन्य तो हमारे सपोर्टर है. उनमेंसे कई हमारे तर्क का अनुमोदन भी करेंगे. कुछ मूर्धन्य जो अपनेको तटस्थता प्रेमी मानते है वे बभम्‌ बभम्‌ लिखेंगे और इस घटनाका सामान्यीकरण कर देंगे. मीडीयाका कोई भी माईका लाल, रा.गा.के उपरोक्त दो अनुक्रमित वाक्योंको प्रस्तूत करके रा.गा.का खेल बतायेगा नहीं. 

कोंगीकी यह पुरानी आदत है कि एक जूठ निश्चित करो और लगातार बोलते ही रहो. तो वह सच ही हो जायेगा. १९६६ से १९७४ तक कोंगी लोग मोरारजी देसाईके पुत्रके बारेमें ऐसा ही बोला करते थे. इन्दिराका तो शासन था तो भी उसने जांच करवाई नहीं और उसने अपने भक्तोंको जूठ बोलने की अनुमति दे रक्खी थी. क्यों कि इन्दिरा गांधीका एजन्डा था कि मोरारजी देसाईको कमजोर करना. यही हाल उसने बादमें वीपी सिंघका किया कि, “वीपी सिंहका सेंटकीट्समें अवैध एकाउन्ट है”. “मोरारजी देसाई और पीलु मोदी आई.ए.एस. के एजन्ट” है….

ऐसे जूठोंका तो कोंगीनेताओंने भरपूर सहारा लिया है और जब वे जूठे सिद्ध होते है तो उनको कोई लज्जा भी नहीं आती. सत्य तो एक बार ही सामने आता है. लेकिन मीडीयावाले जो सत्य सामने आता है, उसको,  जैसे उन्होंनें असत्यको बार बार चलाया था वैसा बार बार चलाते नहीं. इसलिये सत्य गीने चूने यक्तियोंके तक ही पहूँचता है और असत्यतो अनगिनत व्यक्तियों तक फैल गया होता है. इस प्रकार असत्य कायम रहेता है. 

“समाचार माध्यम वाले हमारे गुलाम है. हम उनके आका है. हम उनके अन्नदाता है. ये लोग अतार्किक भले ही हो लेकिन आम जनताको गुमराह करने के काबिल है.

ये मूर्धन्य लोग स्वयंकी और उनके जैसे अन्योंकी धारणाओ पर आधारित चर्चाएं करेंगे.

जैसे की स.पा. और बस.पा का युपीका गठन एक प्रबळ जातिवादी गठबंधन है. हाँ जी … ये मूर्धन्य लोगोंका वैसे तो नैतिक कर्तव्य है कि जातिवाद पर समाजको बांटने वालोंका विरोध करें. लेकिन ये महाज्ञानी लोग इसके उपर नैतिकता पर आधारित तर्क नहीं रखेंगे. जैसे उन्होंने स्विकार लिया है कि “वंशवाद” (वैसे तो वंशवाद एक निम्न स्तरीय मानसिकता है) के विरुद्ध हम जगरुकता लाएंगे नहीं.

हम तो ऐसी ही बातें करेंगे कि वंशवाद तो सभी राजकीय दलोंमे है. हम कहां प्रमाणभान रखनेमें मानते है? बस इस आधार पर हम सापेक्ष प्रमाण की सदंतर अवगणना करेंगे. उसको चर्चाका विषय ही नहीं बनायेंगे. हमें तो वंशवादको पुरस्कृत ही करना है. वैसे ही जातिवादको भी सहयोग देना है. तो हम जातिवादके विरुद्ध क्यूँ बोले? हम तो बोलेंगे कि, स.पा. और ब.स.पा. के गठबंधनका असर प्रचंड असर जनतामें है.  ऐसी ही बातें करेंगे. फिर हम हमारे जैसी सांस्कृतिक मानसिकता रखनेवालोंके विश्लेषणका आधार ले के, ऐसी भविष्यवाणी करेंगे कि बीजेपी युपीमें ५ से ७ सीट पर ही सीमट जाय तो आश्चर्य नहीं.

यदि हमारी भविष्यवाणी खरी न उतरी, तो हम थोडे कम अक्ल सिद्ध होंगे? हमने तो जिन महा-मूर्धन्योंकी भविष्यवाणीका आधार लिया था वे ही गलत सिद्ध होंगे. हम तो हमारा बट (बटक buttock) उठाके चल देंगे.

प्रियंका वांईदरा-घांडी खूबसुरत है और खास करके उसकी नासिका इन्दिरा नहेरु-घांडीसे मिलती जुलती है. तो क्यों न हम इस खुबसुरतीका और नासिकाका सहारा लें? हाँ जी … प्रियंका इन्दिरा का रोल अदा कर सकती है.

“लेकिन इन्दिरा जैसी अक्ल कहाँसे आयेगी?

“अरे भाई, हमें कहां उसको अक्लमान सिद्ध करना है. हमें तो हवा पैदा करना है. देखो … इन्दिरा गांधी जब प्रधान मंत्री बनी, यानी कि, उसको प्रधान मंत्री बनाया गया तो वह कैसे छूई-मूई सी और गूंगी-गुडीया सी रहेती थी. लेकिन बादमें पता चला न कि वह कैसी होंशियार निकली. तो यहां पर भी प्रियंका, इन्दिरासे भी बढकर होशियार निकलेगी ऐसा प्रचार करना है तुम्हे. समज़ा न समज़ा?

“अरे भाई, लेकिन इन्दिरा तो १९४८से अपने पिताजीके साथा लगी रहती थी और अपने पिताजीके सारे दावपेंच जानती थी. उसने केरालामें आंदोलन करके नाम्बुद्रीपादकी सरकारको गीराया था. इन्दिरा तो एक सिद्ध नाटकबाज़ थी. प्रारंभमें जो वह, संसदमें  छूई-मूई सी रहती थी वह भी तो उसकी व्युहरचनाका एक हिस्सा था. सियासतमें प्रियंकाका योगदान ही कहाँ है?

“अरे बंधु,, हमे कहाँ उसका योगदान सिद्ध करना है. तुम तो जानते हो कि, जनताका बडा हिस्सा और कोलमीस्टोंका भी बडा हिस्सा १९४८ – १९७०के अंतरालमें, या तो पैदा ही नहीं हुआ था, या तो वह पेराम्बुलेटर ले के चलता था.

“लेकिन इतिहास तो इतिहास है. मूर्धन्योंको तो इतिहासका ज्ञान तो, होना ही चाहिये न ?

“नही रे, ऐसी कोई आवश्यकता नहीं. जनताका बडा हिस्सा कैसा है वह ही ध्यानमें रखना है. हमारे मूर्धन्य कोलमीस्टोंका टार्जेट आम जनता ही होना चाहिये. इतिहास जानने वाले तो अब अल्प ही बचे होगे. अरे वो बात छोडो. उस समयकी ही बात करो. राजिव गांधीको, तत्कालिन प्रेसीडेन्ट साहबने, बिना किसी बंधारणीय आधार, सरकार बनानेका न्योता दिया ही था न. और राजिव गांधीने भी बिना किसी हिचकसे वह न्योता स्विकार कर ही लिया था न? वैसे तो राजिवके लिये तो ऐसा आमंत्रण स्विकारना ही अनैतिक था न? तब हमने क्या किया था?  हमने तो “मीस्टर क्लीन आया” … “मीस्टर क्लीन आया” … ऐसा करके उसका स्वागत ही किया था न. और बादमें जब बोफोर्स का घोटाला हुआ तो हमने थोडी कोई जीम्मेवारी ली थी? ये सब आप क्यों नहीं समज़ रहे? हमे हमारे एजन्डा पर ही डटे रहेना है. हमें यह कहेना है कि प्रियंका होशियार है … प्रियंका होंशियार है … प्रियंकाके आनेसे बीजेपी हतःप्रभः हो गयी है. प्रियंकाने तो एस.पी. और बी.एस.पी. वालोंको भी अहेसास करवा दिया है कि उन्होंने गठबंधनमें जल्दबाजी की है. … और … दुसरा … जो बीजेपीके लोग, प्रियंकाके बाह्य स्वरुपका जिक्र करते हैं और हमारे आशास्वरुप प्रचारको निरस्र करनेका प्रयास कर रहे है … उनको “ नारी जातिका अपमान” कर रहे … है ऐसा प्रचार करना होगा. हमे यही ढूंढना होगा कि प्रियंकाके विरुद्ध होने वाले हरेक प्रचारमें हमें नारी जातिका अपमान ढूंढना होगा. समज़े … न समज़े?

कटाक्ष, चूटकले, ह्युमर किसीकी कोई शक्यता ही नहीं रखना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

Read Full Post »

राहुल गांधीकी घरवापसी या मूंहदिखाई या राहुलवर्सन – n+1

मूंह दिखाई

मीडीया धन्य हो गया.

यदि आपको मीडीयाका निम्नसे निम्न स्तर देखना हो तो भारतके समाचार माध्यमोंको देख लिजीये.

यदि आप भारतकी प्रज्ञा पर गर्व करते हैं, तो भारतीय समाचार माध्यमों का स्तर देखके आप लज्जासे नतमस्तक हो जाओ.

वैसे तो आप नतमस्तक हो जाओ, ऐसी कई घटनाएं है, जिसमें नहेरुवीयन कोंग्रेसी संस्कार पर चलनेवाली मुस्लिम नेतागीरी भी संमिलित है, जो सतत हिन्दुओंके मानव अधिकारोंका हनन किया करती है. ये लोग तो सिद्ध देशद्रोही है, उनके विषय पर क्या चर्चा करें ! आम जनताको धीरे धीरे सबकुछ ज्ञात हो गया है.

नहेरुका जूठ

नहेरुने स्वातंत्र्यके प्रथम दशकमें कई जूठ फैलायें थे.

उस समय मीडीया माध्यम को यह ज्ञात नहीं था कि सत्य और असत्य, श्रेय और अश्रेय क्या होता है. क्यों कि उनको ऐसी प्रशिक्षा नहीं दी गयी थी. वैसे तो १९४७के पूर्व समय, स्वातंत्र्य सेनानीयोंके द्वारा संचालित कई उत्कृष्ट समाचार पत्र थे जिनसे वे बोध ले सकते थे. लेकिन भय के कारण वे अंग्रेज सल्तनत के विरुद्ध लिखना नहीं चाहते थे. हो सकता कि वे लोग शिशु अवस्थामें हो. मीडीयामें परिपक्वता नहीं आयी थी.

किन्तु यदि २८ वर्षके बाद भी मीडीया पंडित परिपक्व नहीं बन सकते है तो कारण कुछ और ही हो सकता है.

इन मीडीया मूर्धन्योंको १९७५१९७६ के अंतर्गत, नहेरुवीयन फरजंद इन्दिराने झुकनेको कहा था. किन्तु इन मीडीया मूर्धन्योंने इन्दिरा संचालित सेन्सरशीप को साष्टांग दंडवत प्रणाम करके, उसके शासन द्वारा संचालित अफवाहें फैलानेमें और शासनके भाट बननेमें कोई शर्म नहीं रक्खी.

मीडीयाकी यह अपरिपक्वता कहां तक रहेगी?

मीडीयाका एजन्डा कुछ और ही है.

मीडीयाको क्या लिखना है, कैसे लिखना है, कितना लिखना है, ये सब पूर्व निश्चित है.

वैसे तो आदर्श मीडीया का धर्म है कि, वह जनताको माहिति प्रदान करे. जनताको सुशिक्षित करें. जनताके हितमें लिखे. सत्य लिखे, प्रमाणभान रखकर लिखें, सच्चे संदर्भमें लिखें, विवेकशीलतासे लिखें और निडरतासे लिखें.

नरेन्द्र मोदीने एक बार अपने वक्तव्यमें कहा कि समाचार माध्यम अपना वाचकगण और दर्शकगण बढानेके चक्करमें उत्तेजित शब्द प्रयोग करते है. ऐसा करनेमें ये समाचार माध्यम के पंडित लो यह नहीं देखते कि समाजमें नकारात्मक वातावरण फैलता है या सकारात्मक वातावरण फैलता है? जनताको सत्य अधिगत होता है या असत्य अधिगत होता है?   

सकारात्मक समाचारकी अखबारी परिभाषाः

एक ख्यातनाम समाचार पत्रने नरेन्द्र मोदीको लिखा कि वह, सप्ताहमें एक दिन सिर्फ सकारात्मक समाचार ही छापेगा. वैसे तो उस समाचार पत्रकी इस प्रकारकी घोषणा ही उसकी मानसिकता प्रदर्शित करती थी. क्यों कि वैसे तो प्रत्येक समाचार पत्रको हमेशा सकारात्मक समाचार ही प्रसिद्ध करना चाहिये.

लेकिन सकारात्मक समाचार की परिभाषा उस समाचार पत्र की अलग ही थी.

खून हुआ, दंगा हुआ, मारपीट हुआ, चोरी हुई, डकैती हुई, परिणित स्त्रीके साथ दुष्कर्म हुआ, सगिराके साथ दुष्कर्म हुआ, बच्चेके साथ दुष्कर्म हुआ, शिशुके साथ दुष्कर्म हुआ, विदेशीके साथ दुष्कर्म हुआ, कौनसी हिन्दु जाति द्वारा दुष्कर्म हुआ, ठगाई हुई, अकस्मात हुआ, किसीने गाली दी, कोंगीने प्रदर्शन किया, क्या क्या बोला आदि आदि ही नकारात्मक घटनाएं है.

वास्तवमें नकारात्म समाचार क्या है?

समझ लो. कोई भी घटना जब घटती है और जब वह जनमानसके दिमाग पर पडती है तब उसका असर भीन्न भीन्न प्रकारकी व्यक्ति के उपर भीन्न भीन्न होता है.

एक व्यक्ति है जो चोर है उसको यदि चोरीके समाचारसे पता चलता है कि फलां जगह पर इस प्रकारसे चोरी हुई, तो उसको चोरीका एक और तरिका मालुम हो जाता है.

जिसकी जातीय वृत्ति असंतुष्ट है उसको भी जब दुष्कर्म का समाचार मिलता है तो उसको पता चलता है कि इन इन व्यक्तियों पर ऐसे ऐसे प्रकारसे दुष्कर्म किया जा सकता है. दुसरे लोग करते है तो हम भी क्यों करें !

यदि कोई फिल्मी हिरो कहेता है कि यदि मैं सिग्रेट मूंहमें रखकर अपनी अदा बताउं तो मैं सोचनेका अभिनय कैसे करु? कोई हिरी (हिरो का स्त्रीलिंग), कहेगी मेरा शरीर मेरा है. मेरी जिंदगी मेरी है, मैं उसका जो चाहे वह करुं. … (फिर वह हिरोईन, आगे बहूत कुछ कहेती है जो समाजकी तंदुरस्तीके लिये विवादका विषय है, इसलिये यहां नहीं लिखा जा सकता).

ऐसे समाचारोंको ज्योंका त्यों और बार बार प्रसिद्ध करनेसे और ऐसे समाचारोंको ज्यादा महत्व देनेसे, वे नकारात्मक बन जाते है. यदि समाचार माध्यम, समाचारोंमे विवेकशीलता रखके समाचारको प्रसारित करता है और वह स्वयं तटस्थ बनकर पूर्व पक्ष और प्रतिपक्ष का मुद्दोंपर प्रतिक्रिया प्रकट करता है तब वे ही समाचार सकारात्मक बन जाते हैं.

एक समाचारपत्रकी मानसिकता देखो

“दिव्यभास्कर” गुजरातका एक ख्यात नाम समाचार पत्र है. वह नरेन्द्र मोदीके विदेश-प्रवासके वर्णन और विदेशप्रवासकी उपलब्धियां, केवल एक अष्टमांश पन्ने पर, और वे भी सातवें या नवमे या ग्यारवें पन्ने जो भितरके पन्ने है उनमेंसे कोई एक पन्ने पर ही प्रकट करता था.

वास्तवमे ऐसे समाचार भारतके भविष्य के विकास पर सर्वाधिक प्रभावशाली माने जाते है. तो भी हमारा यह समाचार पत्र इसको महत्व देना नहीं चाह्ता था. क्यों कि, बीजेपीके विषयमें सकारात्मक समाचार प्रकट करना, नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये नकारात्मक बन जाता है.

एक हंगामेका समाचार

“आवास योजनाके एक प्रकल्प के लिये बीजेपीकी सरकारने गुजरातके एक नगरमें शिलान्यासका आयोजन किया. इस प्रसंगमें कुछ लोगोंने हंगामा किया. मंडपको तोडा, कुर्सीयां तोडी, टेबल उलट दिये. पूरे समाचार पढने पर भी आपको ऐसा कोई विवरण नहीं मिलता है कि, ऐसा क्यूं हुआ? समाचार माध्यमके लिये हेतु प्रसारित करना महत्व का नहीं. जो हंगामा हुआ उसका वर्णन ही महत्वका है क्यों कि हंगामा बीजेपी द्वारा शासित राज्यमें हुआ है. बीजेपीके लिये नकारात्मक बनता है. और यही समाचार कोंगीके लिये सकारात्मक बनता है. समाचार माध्यमकी हेतुसूचिके अनुसार, समाचार हमेशा सकारात्मक (कोंगीके लिये) होना आवश्यक है.

अभी भूकंप के बारेमें बीजेपी सरकारकी कार्यवाही प्रसंशनीय बन रही है.

कुछ नकारात्मक तो ढूंढना पडेगा.

एक रुग्णालयमें भूकंप पीडित व्यक्तियों के कपोल पर “भूकंप” का लेबल लगाया गया. कर्मचारीका हेतू केवल भूकंप पीडितोंकी पहेचान का था. क्यों कि उनकी चिकित्सा निशुल्क करनी है. समाचार माध्यमोंने हंगामा खडा कर दिया.

“रुग्णालयका अमानवीय कृत्य”. हमारे डीबीने (दिव्यभास्करने) इस समाचारको प्रथम पन्ने पर विशाल अक्षरोंमे मुद्रित किया. हांजी, नरेन्द्र मोदीकी विदेशयात्राका विवरण और उपलब्धियां देशके लिये महत्वपूर्ण नहीं है. किन्तु एक गांवके रुग्णालयके कर्मचारीका “भूकंप”का लेबल लगाना कई गुना ज्यादा सकारात्मक है.

कोंगी साथी नेता उवाच

एक नहेरुवीयन कोंगके साथी नेताने बोला “नरेन्द्र मोदी भूकंपमें भूतानीयों पर और विदेशीयों पर  ज्यादा ध्यान केन्द्रित करता है”. इस नेताने न तो कोई विवरण दिया न तो मीडीयाने कोई विवरण मांगा. नरेन्द्र मोदी सभी भूकंप पीडितोंको मनुष्य माने उसमें समाचार माध्यमोंको और कोंगी और उसके साथीयोंको आपत्ति है. उनका संस्कार है कि सभी मनुष्योंको आपत्तिके समय पर भी भीन्नतासे देखना चाहिये.        

जिन समाचारोंके प्रकट करनेके पीछेस्वार्थरहता है वे नकारात्मक होते है. क्योंकिस्वार्थनामका अखबारी तत्व सत्यको ढक देता है.

हिरण्मयेन पात्रेण, सत्यस्य अपिहितं मुखं.

स्वर्ण पात्रसे (पीले चमकिले और आकर्षक शब्दोंसें ये पीले पत्रकारत्ववाले समाचारमाध्यम के पंडितोंसे) सत्य ढक जाता है

कुछ नेताओंकी व्यक्तिओंकी ऐसी प्रकृति ही होती है.  इनमें फिल्मी हिरोहिरोईन, राजकीय पक्ष के नेता खास करके जो नये नये है या पुराने है लेकिन सत्तासे हाथ धो बैठे है, वे ऐसे मौके ढूंढते है कि उनको प्रसिद्धि मिले. ऐसे लोग पैसे देके भी समाचार प्रसिद्ध करवाते है. समाचार माध्यमको और क्या चाहिये? समाचार माध्यमको तो पैसा और वाचक वर्ग चाहिये.

मजाक करना मना है?

बीजेपी के एक नेताने कहा कि नहेरुवीयन कोंग्रेसको चमडीके कलरसे कोंप्लेक्ष (ग्रंथी) है. यदि राजिव गांधीने नाईजिरीयाकी लडकीसे (श्यामा लडकीसे) शादी कि होती तो क्या वे उसको कोंग्रेस प्रमुख बनाते?

यह तो एक प्रश्न था. जो औरत श्वेत है उसको श्वेत कहा गया. यह बात कोई बुराई तो है नहीं. नाईजिरीयाकी लडकीयोंको ( कोई व्यक्ति विशेषको श्याम कहा गया) श्याम कहा गया. यह भी कोई बडी बात तो है नहीं. वैसे तो “ब्लेक इझ ब्युटीफुल” कहा जाता है.

वैसे भी, नहेरुको श्वेत रंग के लोग ज्यादा पसंद थे. नहेरुने विदेशोंकी एम्बेसीयोंमें मूलकश्मिरीयोंकी बिना योग्यता देखें ज्यादा ही भर्ती कर दी थी. उसके कारण भारतको लज्जास्पद स्थितिमें आना पडता था. ऐसे तो कई उदाहरण है.

कमसे कम श्वेत स्त्रीको परोक्ष या प्रत्यक्ष रुपसे श्वेत कहेना, उसकी बुराई तो नहीं है. रही बात श्यामा की. लेकिन यह तो सामान्यीकरण है. यह कोई व्यक्ति विशेषकी बात नहीं है. किन्तु नहेरुवीयनोंने तो नाईजिरीया तक यह बात पहूंचा दी.

प्रमाणभान हीनता

जो कुछ भी हो. श्वेत श्यामकी इस बातको उछालना, उसके उपर टीवीमें चर्चाएं रखना, कोंगी और उसके साथीयों द्वारा संसदकी कार्यवाहीको स्थगित कर देना क्या आवश्यक है?

मीडीया का क्या यही एजंडा है? अन्य कुछ तो नहीं?

क्या यह श्याम-श्वेत” की चर्चा भारतके लिये जिवनमृत्युकी समस्या है?

क्या इस कारण किसी नेतानेत्रीने आत्महत्या कर ली है?

क्या इस बातसे कोई नेता नेत्री बिमार पड या हैं?

संवेदनशीलताका मिथ्या प्रदर्शन या हास्यवृत्तिका अभाव

एक समय महात्मा गांधीने कोई एक महाकविके संदर्भमें कहा था कियदि दूध देने वाली गैया, लात मारे तो भी सहन कर लेना चाहिये.”

उस समय तो वह महाकविके भक्तोंने या वह महाकवि खूदने कोई कोलाहल नहीं किया था.

हांजी, महाकविने यह तो अवश्य कहा किमैं गैया नहीं हूं, मैं तो सांढ हूं”. बात खतम.

लेकिन यहां पर तो सोनियाने भी यह प्रदर्शित किया कि वह कोई संवेदनहीन नहीं है, लेकिन वह उच्चकोटीकी होनेकी वजहसे, निम्नकोटीकी व्यक्तिसे की गई अभिव्यक्ति पर कोई टीका नहीं करेगी. इस प्रकर, स्वयंको उच्चस्तरकी माननेवाली व्यक्तिने अन्यको निम्न कक्षाकी दिखाने की मानसिकता प्रदर्शित तो कर ही दी. (अभी बोला अभी फोक).

यह वही सोनिया गांधी है, जिसने खूदने, गुजरातकी जनताको गोडसे कहा था और नरेन्द्र मोदीको मौतका सौदागर कहा था. और उसके पक्षके लोगोंने नरेन्द्र मोदीको जगतके हर आततायीयोंके नामसे नवाजा था और हर निम्नकक्षाके माने जाने वाले प्राणीयोंके नामसे भी नवाजा था. उस समय इन नहेरुवीयन नेताओं की और सोनीयाकी संवेदनशीलता कहां गई थी? इसको कहेते है “सौ चूहे मारके बिल्ली हज करने चली.”

मीडीया पंडितोंने कोई चर्चा नहीं चलायी

एक और नहेरुवीयन फरजंद है जो नहेरुइन्दिराकी मिक्ष्ड स्टाईल मारता है. संसदके एक सवालके उत्तरमें नहेरुने कहा थायुनोमें लाईन ऑफ कन्ट्रोलकी परिभाषा नहीं है”.

घटना कुछ इस प्रकार थी. नहेरु चीनके चाहक थे. चीनका सैन्य लाईन ऑफ कन्ट्रोलका उलंघन करता रहेता था. महात्मागांधीके अंतेवासी जेबी क्रीपलानीने सवाल उठाया, कि, भारत सरकार चीनी घुस पैठके विषय पर क्या कदम उठा रही है?

तब नहेरुने ऐसी घटनाको ही नकार दिया.

वास्तवमें हमारे सुरक्षा दलके अधिकारीगण, चीनके साथ नियमित रुपसे होनेवाली बैठकोंमें यह मुद्दा उठा ही रहेते थे. और तब चीनी अधिकारी, नहेरुके कथनोंका हवाला देके घुसपैठको नकारते थे.

लेकिन जब चीनी लश्करकी घुसपैठ, हदसे ज्यादा बढ गयी, तो संसदमें जे बी क्रिपलानीजीने सूचित किया कि हम लाईन ओफ कन्ट्रोलका उलंघन करने वालों पर निगरानी करनेके लिये, लाईन ओफ कन्ट्रोल पर अधिक सुरक्षा व्यवस्था रक्खें और युनोमें केस दर्ज करें. तब नहेरुने कहा कि एल..सी. की कोई परिभाषा युनोके पास नहीं है. और युनोने अभी तक कोई समस्या हल नहीं की है.

क्रीपलानी ने कहा कि तो हम युद्ध करें.

तो नहेरुने कहा कि युद्धसे कोई समस्या हल नहीं होती.

इस प्रकार नहेरुके पास हरेक समस्याका उत्तर फिलोसोफीकल था. उसका यह प्रपोता भी ऐसा लुझ टोकींग करता है. “गरीबी एक मानसिकता है

यह नहेरुवीयन फरजंदके कितने वर्सन (अवतार) है?

राहुल ? अहो रुपं अहो ध्वनि?

राहुल वर्सन०१

बिहारमें राहुलकी नेतागीरीमें चूनाव लडा जायेगा ऐसा घोषित हुआ. मीडीयाने अहो रुपं अहो ध्वनिचलाया. वह था उसका अवतार वर्सन०१. फिर क्या हुआ? नहेरुवीयन कोंग्रेस पीट गयी.

ऐसा क्यों हुआ? नहेरुवीयन नेतागण बोले अरे भाई उसने अपना फर्ज निभाया लेकिन कार्यकर्ता लोग असफल रहें.

राहुल वर्सन०२

कोंगी बोली, अब राहुलजी एक बडी जेम्मेवारी लेने वाले है. वे युपी एसेम्ब्ली चूनावमें प्रभारीकी जिम्मेवारी ले रहे है.

मीडीयाने राहुलका वहीअहो रुपं अहो ध्वनिचलाया”. उसमें भी नहेरुवीयन कोंग्रेस पीट गयी. वर्सन०२ समाप्त.

लेकिन अब तो वे एक बहोत बडी जिम्मेवारी अदा करने वाले है…. ऐसा करके उनके कई वर्सन निकले.

फिर उनको महामंत्री बनाया. फिर उनका पक्षके उपप्रमुखका वर्सन आया. सबमें उसका पक्ष पीट गया.

फिर क्या हुआ?

प्रोडीगल सन क्या घर छोडके भाग गया?

या वालिया लुटेरा तप करनेके नाम पर ब्लेक मनी को ईधर उधर करने चला गया?

या जिम्बो कोई और बेनाम जगह चला गया?

रोबिन हुड …  खेल खेलने बेनाम जगह चला गया?

पूरे दो मास बिना कुछ काम किये गुमनाम हो गया. के सेवकोंने बताया वह छूट्टी पर गया है.

वैसे तो संसद सदस्यको सरकारी व्यक्ति मानना चाहिये. क्यों कि उसको जननिधि (पब्लीक फंड)मेंसे वेतन मिलता है. और उसका निवृत्ति वेतन भी सुनिश्चित है.

राहुलके लिये नैतिक धर्म बनता है कि वह क्यों जाता है, कहां जाता है और उसके अवकाशके समयका पता क्या है ये सभी माहिति संसदके स्पीकरको बतावें. ऐसा नहीं करनेसे उसको निलंबित किया जा सकता है. यदि कोई सर्वोच न्यायालयमें जनयाचिका प्रस्तूत करे तो सभी संसदोंको जनसेवक (पब्लिक सर्वन्ट) घोषित किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त भी राहुलका नैतिक धर्म बनता है.

खास करके इन्दिरा गांधीकी स्थापित प्रणालीके अनुसार गुप्तता रखना नहेरुवीयनोंका संस्कार बना है. सोनिया गांधीकी चिकित्सा जननिधि (पब्लिक फंड)में से हुई और वह भी विदेशमें हुई. क्या चिकित्सा? कौनसे रोगकी चिकित्सा? कौनसे रग्णालयमें चिकित्सा हुई? ये सब माहिति गोपनीय रक्खी गयी.

समाचार माध्यमोंने भी इसबात पर आपत्ति नहीं जताई.

राहुलके अज्ञातवासका अंत. उसके आगमनको कैसे प्रदर्शित किया जाय?

क्या कोई युद्ध जिता? नहीं तो.

क्या कोई अभूतपूर्व सेवाका काम किया? नहीं तो.

स्वागत तो अभूतपूर्व करना ही पडेगा !

दिये जलाओ, पटाखे फोडो, अब तो आनंद मंगल हो गया.    

मानो झीम्बो कम्स टु टाऊन.

मूंह दिखाई की रसममें सब उमट पडे. मीडीया भी उमट पडा.

वह जो कुछ भी हो, हमारे समाचार माध्यमोंने हेड लाईन दिया

राहुलने नरेन्द्र मोदीको आडे हाथ लिया. “शुट बुट की सरकार”, “किसानसे छीनके उद्योगपतियोंको जमीन देनेवाली सरकार”, “किसानको जमीनके बदलेमें कुछ भी नहीं देनेवाली सरकार”, “किसानोका खेतीका अधिकार छीना” … “राहुल है आत्मविश्वाससे भरपूर”.

शुट बुट की सरकारसे क्या मतलब है?

क्या राहुके पिता और प्रपिता, दादी, वे सब, महात्मा गांधीकी तरह सिर्फ दो कपडेके टूकडे लपेटके घुमा करते थे? क्या वे शुटबुट पहेनते नहीं थे? क्या अन्य नेता भी महात्मा गांधी की तरह कपडा लपेटके घुमते थे और घुमते है?

राहुलको खूदके पूर्वजोंके चरित्रको याद करना चाहिये

ईन्दिरा गांधीको नहेरुकी गद्दी विरासतमें लेनेकी थी, इसलिये वे नहेरुके साथ ही रहा करती थीं. उनके साथ विदेश भी जाती थीं. एक बार उनको सरकारी विदेशी डीग्नीटरी होनेके नाते, मींक कोट जिसकी किमत ३००००० रुपये होती है, भेटमें मिला.

सरकारी नियम अनुसार उनको, या तो उसकी किमत जनकोषमें जमा करा देनी चाहिये, या तो वह प्रधानमंत्रीके वस्तुभंडारमें जमा करवा देना चाहिये. इन्दिरा गांधीने उस भेटको अपने पास ही रख लिया.

राम मनोहर लोहियाने कुछ साल बाद यह प्रश्न संसदमें उठाया कि, वह मींक कोट कहां गया? संसदमें हंगामा हुआ. तब जाके इन्दिराने उस कोटको राष्ट्रीय कोषमें जमा किया.

अब आप तुलना करो. नरेन्द्र मोदीने क्या करते है?

उनको जो भेट मिलती है वह एक बार, भेट देनेवाले के मानके लिये पहन लेते है. फिर उस भेटका निलाम कर देते हैं और भेटकी वास्तविक किमतसे कई गुना ज्यादा मूल्य प्राप्त करके जनकोषमें रकम जमा करवाते है.

किन्तु नहेरुवीयनोंमे ऐसी विचार धारा और प्रज्ञा कहां हो सकती है?    

भूमि अधिग्रहणकी चर्चाएं

मीडीयाने तो चर्चा बहूत चलाई, मीडीयाने कई बातें अनदेखी भी की.

जिजाजी वाढेराने जो भूमि अधिग्रहण किया तो कितना पैसा किसानको मिला?

यदि किसानकी हालत दयनीय है तो अभी ६० सालतक नहेरुवीयन कोंग्रेसने किसानके लिये क्या किया कि किसानको आज भी आत्म हत्या करनी पडती है?

किन्तु समाचार माध्यमने ऐसे प्रश्न नहीं उठाये.

भूमिअधिग्रहण विधेयकको निजी उद्योगसे कोई संबंध नहीं तो भी इसकी चर्चा होती रहेती है और कोंगी वक्ता बिना कोई आधार असंबद्ध बाते बिना रुके करता रहेता है और समय पसार करता है. मीडीया कोंगीयोंको ऐसी बाते करने देता है.

मीडीयाको भी असंबद्ध बातोंको हवा देनेका ज्यादा शौक है.

राहुलका अब कौनसे नंबरका अवतार चलता है? तो मीडीयाको पता है, तो राहुल को पता है. तो फिर राहुल का नया अवतार…. राहुलका नया अवतार …. ऐसा कहेते रहो …. वही पर्याप्त है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः मूंह दिखाई, सकारात्मक, नकारात्मक, निम्न स्तर, समाचार माध्यम, मीडीया, पंडित, अपरिपक्व, कार्यसूचि, पूर्व निश्चित, हंगामा, एजंडा, नहेरु, इन्दिरा, नहेरुवीयन कोंग्रेस, सांस्कृतिक साथी, प्रभावशाली

 

 

Read Full Post »

नरेन्द्र मोदी के विरोधीयोंमें, दंभी सेक्युलरोमें और बीजेपी और उसके सपोर्टरोंको, कोमवादी कहेनेवालोंमें एक बात जरुर समान है कि जब भी कभी मौका मीले तो सांप्रत बातको अयोग्य तरीकेसे प्रस्तुत करके आम जनताको गुमराह करें और जो मूलभूत बात है उसको जानबुझकर दबाकर, अपनी राजकीय रोटी यानी कि, मतबेंककी राजनीति को उजागर करें.

नितीशकुमारकी वॉटबेंककी राजनीति

आसाममें बंगला देशी  घुसपैठीओने स्थानिक बोडोवासीयों के प्राकृतिक हक्क पर असीम आक्रमण किया तो बोडो वादीयों ने सरकारकी प्रलंब निस्क्रीयताके कारण प्रतिकार किया. और दंगे शुरु हुए. उसमें घुसपैठी मुस्लिम समुदायको भी नुकशान हुआ. लेकिन घुसपैठी मुस्लिम समाज भी तो आम मुस्लिम समाजकी तरह नहेरुवीयन कोंग्रेसकी वॉट बेंक है, और नहेरुवीयन कोंग्रेस की नीति रही है कि, सेक्युलर नीति के नाम की आडमें यह वोट बेंककी रक्षा करना.  वॉट बेंक की नीतिको हवा आलिंगन करने वालेलोंका संस्कार रहा है कि, कोई भी बात अगर घुमा फिराके, लोगोंमें विभाजन करवा सकतें है तो कोई भी किमत पर ऐसी बातोंको बढावा देना.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी ऐसी विभाजन वादी और अंधापन वाली सेक्युलर नीतिके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ताको कायम कर पायी है और देशको बरबाद करती आयी है. ऐसी वोटबेंक वाली शैली अन्य पक्षोंने भी चालु कि है और उनको सफलता भी मिलती रही है. मायावती, मुलायम, लालु, ममता, इसके उदाहरण है. तो नितीश कुमार भी क्यों ऐसी नीति को क्यूं न अपनाएं?

भक्ष्यका क्षेत्र और फैलाओ

मुंबई (महाराष्ट्र)में और गुजरात पहेलेसे ही विकासके राह पर होनेके कारण मजदुरीके लिये उत्तर भारत और अन्य कई राज्योंसे लोग आते हैं. उनमें चोरी चपाटी करने वाले, आतंकवादी और घुसणखोर मुस्लिम भी आते हैं. इन्ही मुस्लिमोंकी सहायतासे कुछ मुस्लिम नेताओंने “आसाम”के दंगेको लेकर मुंबईमें सभा की, और साथमें आये हुए मुस्लिम आतंकीओने हिंसा की. इन मुस्लिम नेताओंने क्या भाषण दिया उसके बारेमें समाचार प्रसार माध्यम गण संपूर्ण मौन है. इस सभामें सामिल कई लोग शस्त्र लेके आये थे. इन लोगोंने हिंसक व्यवहार किया और पूलिस फोर्सको भी जख्मी किया. एक मुस्लिमने शहिद स्मारकको नुकशान किया.

नितीशकुमारकी नोन-गवर्नन्स

इस शख्सका फोटो भी अखबारमें आया था. नितीशकुमारकी बिहारकी लोकल इन्टेलीजन्स को मालुम होना चाहिये कि अपने राज्यमें असामाजिक तत्व कौन है और उनमेंसे मुंबई कौन कौन गये है. लेकिन नितीशकुमारकी इन्टेलीजन्स जानबुझकर या असफल गवर्नन्सके कारण मौन रही. तो मुंबई पूलीसने बिहार जाकर उस शख्सको पकडा.

अब देखो नितीशने क्या किया?

क्योंकि वह मुस्लिम था, नितीशकुमारकी वॉटबेंकका हिस्सा था. और उसका बचाव करने से मुस्लिम समुदाय के वोटमें वृद्धि कर सकने की शक्यताओ देखते हुए इस नितीश कुमारने मुंबई पूलीसकी तत्कालिन कार्यशैली का जमकर विरोध किया.

हिन्दीभाषी असामाजिक तत्व

गुजरात और महाराष्ट्रमें आके गुन्हा करके अपने राज्यमें भाग जाना यह बात सामान्य है. कइ बार इसमें परराज्यके जो अफसर गुजरात और मुंबई में उनके (अपनके) ऐसे लोगोंके प्रति भी सोफ्ट कोर्नर भी रखते है ऐसी शक्यता नकार नहीं सकते. आप अगर चोरी और डकैतीके किस्सोंको ध्यानसे देखेंगे तो आपको परप्रांतीय लोगोंकी प्रमाणसे अधिक ही ठीक ठीक ज्यादा ही संख्या देखाइ देगी. और जब भी कभी कोई आतंकवादी किस्सा बनता है या तो उनकी कोई योजना पकडी जाती है तो उसका उत्पत्तिस्थान कोंग्रेस शासित और उसके सहयोगी पक्ष वाला राज्य ही ज्यादातर होता है और मुस्लिम ही होता है. इस परिस्थिति पर सरकारको गौर करना चाहिये.

मूलभूत बात क्या है?

तात्विक और विचार और संवाद की बात यह है कि, अगर मुंबई पूलीसने एक मुस्लिम असामाजिक शख्सको बिहारमें जाके पकडा और उसको मुंबई ले आयी तो उसमें मुंबई पूलीससे और मुंबई (महाराष्ट्र सरकार) से झगडा करके झगडेकी भाषामें प्रतिभाव देने की और विरोध करने की नितीशकुमारको क्या अवश्यकता है?

आवश्यकतो यह सोचने की है कि, बिहार सरकारने, ऐसे आतंकी और गद्दार व्यक्तिको क्यों न पहेचान पाई? बिहारमें ऐसे कई लोंगोको क्यों पनाह दिया?

ऐसे लोगोंमेंसे एक को, अगर मुंबई पूलिस, अपने राज्यमें आके गुन्हा और हिंसा करने के कारण पहेचान पायी और उसके भाग जाने पर उसको पीछे पडके पकड लिया, तो उसमें बुरा क्या है?

नितीशको अपने गवर्नन्सके बारेमें आत्मखोज करनी चाहिये. और जो गद्दार, घुसणखोर और आतंकी बिहारमें बस रहे है उनको पकडके उनके उपर कार्यवाही करनी चाहिये क्यों कि बिहारकी अराजकता, देशकी अराजकता का एक हिस्सा है.

ऐसी सीमापारसे आयी हुई अराजकता तो क्या स्थानिक कर्मण्यहीनतासे विकसित अराजकता, दूसरे राज्यवाले अपने यहां घुसने नहीं देंगे, इस बातको नितीश को समझना चाहिये.

नितीशकुमार अपनी अक्षमता छिपाना चाहते है

अगर नितीशकुमार, सीमापारसे आये घुसणखोरोंकों रोकनेमें और पहेचाननेमें अक्षम है तो उन्हे केन्द्र सरकार पर आक्रमक वलण अखत्यार करना चाहिये और यह बात खुल्ले आम घोसित करनी चाहिये.

नितीशकुमारको प्रतिक्रिया और संस्कार का भेद समझना चाहिये

प्रतिक्रीया हमेशा असामाजिक, अयोग्य और अलग अलग मापदंडकी प्रणालीके सामने होती है.

भूमिपूत्रोंके साथ अन्याय और उसके जिवन-आधार पर अतिक्रमण होनेसे हमेशा प्रतिक्रिया होती ही है. अगर कोई बिहारी मुस्लिम घुसणपैठ हो या न हो और अगर वह दुसरे राज्यमें जाके शहिदोंका अपमान करे, और बिहार राज्यका शासक अगर उस असाजिक तत्वका परोक्ष या प्रत्यक्ष पक्ष ले तो पीडित राज्यके हर व्यक्तिका प्रतिक्रिया करनेका हक्क ही नहीं फर्ज भी बनता है. यह एक प्रतिकारकी प्रक्रीया है. राजनीतिके संस्कार के साथ इसको जोडना नहीं चाहिये.

बंबईमें रहेने वाले बिहारके लोग घुसणखोर है या नहीं यह एक लंबा विषय है. लेकिन कोई भी राज्य ऐसी बातको स्विकार नहीं करेगा कि, परप्रांतके लोग मुंबईमें आकर  मुंबईकी समस्या में वृद्धि करें. ऐसी स्थितिमें महाराष्ट्र तो क्या कोई भी राज्यके नेतागण और जनता प्रतिक्रिया दर्ज करेगी ही.

अगर बिहारमें परराज्यसे लोग आके बिहारकी समस्याओमें वृद्धि करेंगे तो क्या नितीश कुमार सहन कर पायेंगे?

नितीश कुमारको चाहिये कि वे ऐसी बातोंको ठंडे दिमागसे सोचकर अक्ल चलायें. नितीशकुमारको समक्झना चाहिये कि, वॉटबेंककी राजनीति तो गद्दारीका काम है, ऐसी राजनीतिको त्याग देनी चाहिये.

अगर एक राज्यके लोग दूसरे राज्यमें जाके दूसरे राज्य की समस्या बढायेंगे या असामाजिक प्रवृत्तियां करेंगे को उनको घुसणखोर ही माने जायेंगे. ऐसी सोच स्वाभाविक है. महाराष्ट्र कि जनता सुसंस्कृत है और महेमान नवाजीमें पीछे रहने वाली नहीं है. लेकिन अगर परप्रान्त के लोग समस्याएं और अराजकता फैलायेंगे तो महाराष्ट्र की जनता हि क्यों कोई भी प्रान्तकी जनता प्रतिक्रिया करेगी ही.

नितीशकुमार को अलग अलग मापदंड और संकुचितता छोड के देशके हितमें सोचना चाहिये.

यह घटना समाचार प्रसारण माध्यमोंकी मानसिकता पर संशोधन करनेका विषय भी है. सभी माध्यमोने राजठाकरेकी बातको तोडमरोड कर प्रसिद्ध करके आमजनतामें भेदभावकी बात को उकसाई, राज ठाकरेकी निंदा की,  और मूलभूत बात को दबा दी है. भारतीय मीडीया भारतके लिये अवनतिका एक कारण बन गया है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः बिहारी, मुस्लिम, आतंकवादी, मुंबइ पूलीस, प्रतिक्रिया, संस्कार, आत्मखोज, मीडीया, राजठाकरे, नितीश कुमार, घुसणखोर, चोरी

Read Full Post »

%d bloggers like this: