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थालीके छेदके नीचे क्या है?

थालीके छेदके नीचे क्या है?

जया भादुरीने कुछ इस मतलबका कहा कि, बोलीवुड देशकी सेवा करता है, ढेर सारा इन्कम टेक्ष भरता है. आज लोग उनको बदनाम कर रहे है. बोलीवुडने खानेकी थाली दी, तो उन्होंने उस थालीमें ही छेद किया.

क्या वास्तवमें जनता, समग्र  बोलीवुडके विरुद्ध है?

सर्व प्रथम हमें बोलीवुडके जो महानुभावों (सेलीब्रीटीज़)ने बोलीवुडके विषयके अतिरिक्त विषयोंमें अपना चंचूपात करना प्रारंभ किया और उनमें भी हिंदुओंकी प्रचीन सभ्यता और अर्वाचीन सहिष्णुताके विरुद्ध अपना मन्तव्य प्रदर्शित करना प्रारंभ किया तबसे आमजनता इन महानुभावोंके विषयमें उनका पुनर्मूल्यांकन करने लगी.

हिन्दी फिलमोंमें हिन्दु पात्रको पापाचारी दिखाना, मुस्लिम और ख्रीस्ती पात्रको सदाचारी और पुण्यात्मा दिखाना एक प्रणाली है..

इसका उत्कृष्ट उदाहरणपीकेफिलम था. इस फिल्ममे शिवजीके पात्रमें जो अभिनेता था उसका जब वह शिवजी के वस्त्रोंमे था तब ही उसका अपमान किया जाता है.

फिल्म भी नाट्य शास्त्रके नियमके अंतर्गत है

भारतीय संस्कृतिमें नाट्यशास्त्रके रचयिता भरत मुनि थे. नाटक के नियम भरत मुनिने बनाये है. नाट्यकारोंको उन नियमोंका पालन करना अनिवार्य है. उन नियमोंमेंसे एक नियम यह है कि जो अभिनेता ईश्वर/भगवानके पात्रका अभिनय करता है, और वह पात्र जब तक उस वेषमें होता है, तब तक उस पात्रकी गरिमा रखनी होती है. यदी उसके सामने राजा या सम्राट भी जाय, तो राजाको /सम्राटको भी उसका आदर करना पडता हैतात्पर्य यह है कि वह पात्र राजाको या सम्राटको नमस्कार नहीं करेगा किन्तु  राजा या सम्राट उसको नमस्कार करता है.

पीके फिलममें शिवजीके पात्रको अपमान जनक स्थिति में प्रदर्शित किया गया है.

यह एक घटना हुई.

हिन्दुओंकी कटु आलोचना करना आम बात है.

किन्तु  हिन्दु देवदेवीयोंको उपहासके पात्र बनाना बोलीवुडके महानुभावोंके लिये  शोभास्पद नहीं है. वास्तवमें ऐसा करना भारतीय संस्कृतिकी अवमानना है. जिस देशकी धरतीका का अन्न और पानीके कारण आप विद्यमान अवस्थामें है उस धरतीकी संस्कृतिका आदर करना आपका कर्तव्य बनता है.

परिस्थिति क्या है?

हिन्दु पर उसका हिन्दु होने के कारणसे ही अत्याचार किया जाय और वह चूप रहेने स्थान पर कोई यदि अत्याचारके विरुद्धमें भी बात करें तो उसका भी विरोध किया जाता है.

कश्मिरी हिन्दुओंकी हजारोंकी संख्यामें हत्याएं हुई, १००००+ कश्मिरी हिन्दु स्त्रीयोंके उपर  खुले रेप किया, कश्मिरके सभी ५०००००+ हिन्दुओंको घरसे निकाल दिया और यह भी खुले आम किया, और इसके अतिरिक्त इस आतंकवादीयोंके उपर कुछ भी कार्यवाही नहीं की गई. अनुपम खेर ने जब इस बातकी आलोचना की तो बोलीवुडके महानुभाव  नसरुद्दीन शाहने  कहा किअनुपम खेर तो मानो ऐसी बाते करता है कि मानो उसके उपर आतंकवादी हमला हुआ

नसरुद्दीन शाह जैसे महानुभाव तककी मानसिकता देखो. उसके हिसाबसे तो जिसके उपर अत्याचार हुआ है, उसको ही अत्याचार पर बोलनेका हक है. “मतलबकी जिस  हिन्दु पर अत्याचार हुआ वह ही उसके विरुद्ध बोलें. दुसरा हिन्दु मत बोलें.

यदि तू कश्मिरका है तो क्या हुआ? तेरे उपर तो आतंकवादीयोंने हमला नहीं किया . फिर तू काहेको बोलता है? बेशरम कहीं का !!”

एक हिन्दु मंदिरके उपर बनीबाबरी मस्जिदका ध्वंश हुआतो पुरी दुनिया हिन्दुओंके उपर तूट पडी,मुख्य मंत्रीको जाना पडा. कई सारे न्यायिक केस हो गये. किन्तु मुस्लिम लोग (पूरानी बाते छोडों) स्वातंत्र्यके पश्चात्कालमें भी  हिन्दुओंके कई मंदिर तोडते आये है और १९४७के बाद भी हिन्दुओंके मंदिर तूटते रहे है. बाबरी मस्जिदके ध्वंशके बाद तो काश्मिरमें और बंग्लादेशमें कई मंदीर तूटे जिसका कोई हिसाब नहीं.

हिन्दुओंको कुछ भी प्रतिशोध तो क्या शाब्दिक विरोध भी नहीं करना चाहिये. उनको तनिक भी शोर करना नहीं चाहिये. अरे भाई कुछ सहिष्णुता आप हिन्दुओंमें भी तो होना चाहिये !! आपको ज्ञात होना चाहिये कि हमारा भारत देश एक सेक्युलर देश है. तो आपका फर्ज़ बनता है कि हम लघुमति भारतमें सुरक्षित रहें. हमें हमारे धर्मका पालन करनेकी पूरी स्वतंत्रता है.

किन्तु हे लघुमति लोग, आपने कश्मिरके हिन्दुओंके उपर आतंक क्यों फैलाया?” हिन्दु बोला.

मुस्लिमने उत्तर दियाअरे अय, हिन्दु लोग !! आपको पता नहीं है कि हमने हमारे उपर थोपे जानेवाले राष्ट्रपतिके विरोधमें क्या क्या किया था. आपको हम मुस्लिमोंकी ईच्छाका कुछ खयाल ही नहीं है. तो हम प्रतिशोध तो करेगे ही . सियासत क्या होती है वह जरा समज़ा करो. मासुम बननेकी कोशिस मत करो. जब एक खास समूहके मानसका खयाल नहीं रक्खा जाता तो प्रतिक्रिया तो आयेगी ही.

किन्तु निर्दोषोंका खून करना और लाखों लोगोंको घरसे निकाल देनायह कोई प्रमाणभान है?” हिन्दु बोला.

अरे भैया हिन्दु !! जब लोग इकट्ठा हो जाते है तो क्या कोई तराजु लेकर बैठता है कि कितना प्रमाण हुआ और कितना नहीं !! क्या बच्चों जैसी बातें करते हो तुम हिन्दु लोग ..!!” मुस्लिम बोला

लेकिन तुमने पूरे मुंबईमें बोम्ब ब्लास्ट क्यों करवाये?” हिन्दु बोला.

अय हिन्दु, तुमने जो बाबरी मस्जिद तोडा उसका हमने बदला लिया.

लेकिन तुमने बोम्ब ब्लास्ट जैसे आतंकी हमले तो कई वर्षों तक किये उसका क्या?” मुस्लिम बोला

अय हिन्दु, तुम फिर बचकाना बात पर उतर आये. हम मुस्लिम लोग कोई ऐसे वैसे लोग नहीं है. हमारा हर व्यक्ति और हर जुथ अपना अपना बदला लेता है. और लगातार लेता रहेता है. इस लिये तो हमारे कोंगीके स्थानिक  मुस्लिम नेताने साबरमती एक्सप्रेसके कोचको आयोजन पूर्वक जला दिया था. क्यों कि उसमें रामसेवक बैठे थे. और वे अयोध्यासे रहे थे.

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इस प्रकार कोंगीयोंकी कृपासे मुस्लिमोंकी आदत बीगडी.

१९९९में बीजेपीने सरकार बनाई. उसने काम तो अच्छा किया लेकिन कोंगीने अपनी व्युह रचनासे २००४में फिरसे शासन पर कबजा किया.

२००४ से २०१४के शासनकालमें कोंगीने और उसके सांस्कृतिक साथीयोंने खुले आप पैसा बनाया. हिन्दुओंको आतंकवादी सिद्ध करने की भरपुर कोशिस किया. उसकी किताब भी छपवाई.

२०१४के चूनावमें फिरसे बीजेपी सत्ता पर गई

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हिन्दुमुस्लिम वैमनष्य के बीज अंकूरित हुए थे उतना ही नही एक वृक्ष तो कोंगीने उगा ही दिया था.

कोंगीने सोचा अपन के पैसे तो अपन के पैसे है. हमने अपने सांस्कृतिक  मित्रोंको भी पैसे बनाने की पुरी छूट दे दी थी.

लेकिन  बिना शासन पैसे बनाना दुष्कर है.

रा.गा. के सलाहकार तो निकम्मे सिद्ध हुए.  दाउद के दायें हाथ को बडा भाई बनाओ.

दाउदके दो हाथ दांया और बांया. वे दोनों भारतमें है. एक मार्केट सम्हालता है. दुसरा दंगे करवाता है. और भारतमें दाउदके सिपाई सपरे अलग.  

क्या क्या संवाद हो सकता है दाउदके दांये हाथ और एस सेना के बीच.

 “.भाऊ” , समय बदलत आहे म्हणून आता तुम्हाला आपली व्युहरचना बदलावी लागेल, तू बी.जे.पी. चा छोटा भाऊ आहे आणि नेहमी तेच राहणारमोठा भाऊ दीही बनूशकणार नाही , समजलं तूला.” दांया हथा 

[अब समय बदल गया है. अब  व्युह रचना बदलना पडेगा. तुम कब तक बीजेपीका  छोटा भाई ही रहेगा. बडाभाई बननेवाला नहीं. समज़ा समज़ा?].

 तर तात्या आता  मी काय करू ?” एस. सेना. भाउ      [बडेभाई, तो मैं अब क्या करुं?]

भाऊ तुम्ही अस करा पृथक पृथक बी.जे.पी.ची निंदा करा, अता ईलेकशन ची वेळ आली आहे म्हणून बी.जे.पी. सोबत गठ बंधन तोडू नका . सीट मिळविण्यासाठी लाहान लाहान स्टंट करून संतोष चा नाटक करू , तूला माझी वुयहरचना कळली का ?” दांया हाथनी वीचारल.

[भैया तुम ऐसा करो. अभी तो चूनाव दूर है. पर तुम छूटपूट बीजेपी की निंदा करते रहो. गठबंधन तोडना नहीं. ज्यादासे ज्यादा सीट मिले उसके लिये छोटी मोटी स्टंट करते करते असंतोषका नाटक करते रहेना]

 “त्याचा नंतर काय…?” एस. सेना भाउ    [“उसके बाद क्या?] 

इलेकशनचे  परिणाम काय येणार ?” बांया हाथनी विचारलं? [चूनावका परिणाम क्या आयेगा ?]

माला माहीत नाही.” एस. सेना भाउ                [मुज़े पता नहीं]

तुमचा पक्षाचा आणि आमच्या पक्षाचा संयुक्त सीट जळून बहुमता  मिळणारा आहे.”  दाउदका बांया हाथ            [तुम्हारा पक्ष और मेरा पक्ष दोनोंकी सीटें मिलाके हमे बहुमत मिलेगा]

जर बी जे.पी  ला स्वतंत्र बहुमत मिळाले तर…? ” एस. सेना      [ लेकिन यदि बीजेपीको बहुमत मिला तो?]

लक्शात ठेव तस घटणार नाही.” दायां हाथ बोला      [ऐसा होनेवाला नहीं है याद रख.] 

बर पण जर सीट बहुमता साठी कमी पडली तर…?” एस. सेना [ओके. यदि , बहुमतके लिये थोडी सीट कम पडी तो?] 

आपल्या कडे कोंगी आहेत , विसरू नको , त्यांच्या  सपोट॔ मिळणार आहे लक्षात ठेव.”  दाउद का दांया हाथ .     [हमारे पास कोंगी है . इस बातको भूल क्यों जाते हो?]

तात्या तुम्ही गाढवा सारखं का बोलतात , कोंगी  आपल्याला कशाला सपोटॆ करणारत्यांची सोन्या बघीतलं काय ? मी माकड बनुशकणार नाही.” एस. सेना      [बडे भैया, गधे जैसी बात क्यों करते हो. कोंगीकी सोनिया देखा है. मैं क्या बंदर हूँ?]

(मराठी भावानुवाद तोरल बहेनने किया है. आभार)

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संवाद ऐसा चलता रहा  ……. सरकार बन गई महाराष्ट्रमें …. दाउदके दायां हाथ, बायां हाथ और एस. सेना की अघाडी.

कैसे ?

फिर दाउदके दांया हाथ सेना एवं  एस.सेना के बीच क्या हो संवाद हो सकता है?

देखो एस. सेना भाउ, पैसा बडी चीज़ है. पैसेका प्रवाह हमारे तरफ हमेशा आते रहना आवश्यक है. मध्य प्रदेश गया ही समज़ो. राजस्थान एक दरीद्रतापूर्ण राज्य है. वहांसे कमाया हुआ वहां ही खर्च करना पडेगा. महाराष्ट्र भारतका आर्थिक राजधानी है. इसको प्राप्त करना ही पडेगा. तुमने गत पांच सालमें बीजेपीके शासनमें कितना पैसा बना पाये?  … बहूत कमऐसा कब तक चलेगा?  …………………… अब मेरी व्युह रचना देखो. चूनावके बाद, बीजेपीके समक्ष एक ऐसी शर्त रखना कि यदि बीजेपी उस शर्त को स्विकार ले तो, वह देश में बदनाम ही नहीं  “सत्ता लालचीसिद्ध हो जाय …  यदि बीजेपी उस शर्तको माने तो तुम्हे गठ बंधन तोड देनाऔर बोल देना कि बीजेपी  हमारी चूनावके पूर्व हुई हुए समज़ौतेमेंसे मुखर गया है. जूठ बोलनेमें तो तुम माहिर हो ही. कोई हमे जूठ बोलनेवाला कहे उसके पहेले हमें ही उसे जुठ बोलने वाला केह देना.

तुम्हे किसीसे भी डरनेकी जरुरत नहीं है.  दाउदका पुरे नेट वर्क के सदस्य हमारे साथ है. लेकिन हमें भी उसके नेटवर्कके सदस्योंको फायदा करवाना पडेगा.

वह तो हमें पता है, लेकिन उनको फायदा? इसका मतलब?

मतलब यह कि दाउदके ड्रगका कारोबारका नेट वर्कको और दाउदके पूलीस के साथका नेट वर्कको हमें छूना तक नहीं है. उतना ही नहीं, उसको सहाय  भी करना है. तुम ऐसा करो, गृह मत्रालय हमें दे दो. हम सब नीपटा लेंगेराष्ट्रवादी बननेकी कोशिस नहीं करना

ये सब तो हम जानते है. लेकिन … !!!

देखोकाला धन किसके पास होता है? हम नेताओंके पास होता है वह तो तुम जानते ही हो. बील्डरोंके पास होता है …  वह भी तुम जानते हो …. बोलीवुडके महानुभावोंके पार होता हैवह भी तुम जानते होसरकारी बडे अफसरोंके पास होता है जिनमें पूलिस तंत्र भी आता हैतो अब दाउद को अपना ड्रग्ज़का  माल इन लोगोंको भी तो बेचना है !!! दाउद जब बोलीवुडमें इन्वेस्ट करता है तो उसकोआयभी तो होना चाहिये !!!  तो इन महानुभावोंको ड्र्ग्ज़की आदत भी तो डालनी पडेगी !!! समज़े समज़े !!!

दाउदका शराबका नेटवर्क तो चलता ही है …! फिर ये ड्रग्ज़ क्यों …?

अबे बच्चुशराब तो पानसुपारी है. भोजन कहाँ? और शराबका धंधा तो टपोरी भी कर लेता है.

टपोरीयोंका ड्रग्ज़ के कारोबारमें काम नहीं. ड्रग्ज़का कारोबार ही अलग है. इसमें तो बडे लोगोंका काम है. इस धंधेमें पकडे जानेका डर ही नहीं. क्यों कि हम ऐसे वैसे को प्रवेश देते ही नहीं. नेतापोलीसबोलीवुड महानुभावमीडीया कर्मीसप्लायर पार्टीका नेटवर्क और अन्डरवर्ल्डका नेटवर्कये सभी सामेल है. कोई भी इधर उधर जाता हुआ नज़र आया तो, वह खुदाका प्यारा ही हो जायेगा. किसीको खुदाका प्यारा करना है तो उसके हजार तरीके है हमारे पास, चाहे वह कोई भी हो. अब तुम लोगोंको इसमें आना पडेगा. ये सब फार्म हाउस बनाये हैं वे किस लिये है?

लेकिन

लेकिन क्या बच्चु. अब तुम नेटवर्कमें आ ही गये हो. इस नेट वर्कमें एक ही रास्ता है. वह है अंदर जानेका रास्ता. बाहर जानेका रास्ता केवल खुदाके पास ही जाता है

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जनताका सोस्यल मीडीया, सुशांत मर्डर केसमें, क्यूँ इतना इन्टरेस्ट ले रहा है?

क्या जनता एक ही रातमें बोलीवुडके महानुभावोंके विरुद्ध हो गई?

जनता क्यूँ बोलीवुडकी थालीमें अनेक छेद करने लगी है?

जनता को तो मालुम है ही कि, बोलीवुडके अधिकतर महानुभाव लोग, लुट्येन गेंगके सदस्योंकी तरह भारतके हितोके विरुद्ध, भारतकी संस्कृतिके विरुद्ध, भारतके सच्चे इतिहासके विरुद्ध क्यूँ है! इतना ही नहीं वे भारतके दुश्मनोंकी सहायता क्यूँ करते है? इनके अतिरिक्त वे जूठका सहारा लेते है और विदेशमें भी बिकाउ मीडीया द्वारा भारतको और बीजेपी को बदनाम करते है.

तो अब बोलीवुडके साथ साथ विपक्षीय सेनाओंके नेताओंकी, भ्र्ष्ट मीडीया कर्मी और सरकारी अफसरोंकी भी सफाई होनेवाली है. ऐसी आशा भारतीय जनताको दिखाई दे रही है.

अधिकतम नेता महानुभाव लोग “जैसे थे वादी” होते है. कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथी पक्षोंमें अधिक “जैसे थे वादी” नेता है. यह बात तो स्वयं सिद्ध है, यदि ऐसा नहीं होता तो कोंगीयोंके ६५ वर्षके शासनके पश्चात्‌ भी  देश निरक्षर  और गरीब न रहेता.

आप, ओमानके सुलतान काबुसको ही देख लो. उसका देश एक मरुभूमि था. भूगर्भ ओईल तो कभीका निकला हुआ था. लेकिन उसके पिता जैसे थे वादी थे. सुल्तान काबुस, १९७0 में सत्ता पर आया. १९९० तक के समयके अंतर्गत उसने ओमानको समृद्धिके शिखर पर ले गया. क्यों कि वह कृतसंकल्प था. “जैसे थे वादी” लोग तो वहाँ पर भी थे. लेकिन उसने नियमका शासन लागु किया.

“जैसे थे वादी” में अधिकतर लोग नीतिमत्तामें मानते नहीं है. यदि सत्ता है तो उसको अपने लिये  संपत्ति उत्पन्न करनेका साधन मानते है. अपनेको और अपनेवालोंको नियमसे उपर मानते है. स्वयंने जो कहा वही नियम है. सत्ता है तो जूठ बोलो, अफवाहें फैलाओ. राजकारण खेलो, प्रपंच करो और विरोधियों के प्रति असहिष्णु, पूर्वग्रह और प्रतिशोधक बनो. समाचार माध्यम पर कब्जा कर लो. यदि सत्तामें न हो तो भी अपने सांस्कृत्क साथीयोंसे मिलकर जहाँ ऐसा हो सकता है  यह सबकुछ करो.

इस परिस्थितिका कारण?

जब किये हुए  परिश्रमकी अपेक्षा कहीं अधिक संपत्ति मिल जाती है तब व्यक्तिमें दोष आनेकी संभावना अधिक हो जाती है. “जैसे थे वादी” होना एक दोष ही है और जनतामें ऐसी मनोवृत्ति फैलानेका शस्त्र भी है.

“अरे भाई, ये मदिरा लेना, ड्रग्ज़ लेना, पार्टीयाँ करना हम मालेतुजार लोगोंका फैशन है. यह सब परापूर्वसे चला आता है. इसको कोई रोक नहीं पाया है. हम आनंद लेते है तो दुसरोंको क्यों कष्ट होना चाहिये? यदि पैसा चलता रहेगा मतलबकी पैसेकी प्रवाहिता (लीक्वीडीटी) रहेगी, तभी तो लोगोंको व्यवसाय मिलेगा! हम तो गरीबी कम करनेमें योगदान दे रहे है.”

 वास्तवमें यह एक वितंडावाद है. वास्तवमें ड्र्ग्ज़्का कारोबार केवल और केवल काले-धनसे ही होता है.

जहाँ तक भारतको संबंध है वहाँ तक, दाउद, ड्रग्ज़के कारोबार करनेवाले, ड्रग्ज़ लेनेकी आदतवाले  कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथीके अधिकतर नेतागण, बीजेपी-फोबीयासे पीडित मीडीया कर्मी,  दाउदके कन्ट्रोलवाले बोलीवुडके महानुभाव और अन्य मालेतुजार ग्राहक लोग, और उन तक पहोंचानेवाले  एजन्ट ये सब अवैध कारोबारके हिस्से है. इन सबके कारण  देश विरोधी प्रवृतियाँ होती है. क्यों कि आतंकवादीयोंको भी तो पैसा चाहिये. पैसे पेडके उपर नहीं उगते.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

होने वाला दुल्हा अपने मित्रके साथ कन्या के घर गया. दुल्हेके पिताने मित्रसे बोलके रक्खा था कि दुल्हेके बारेमें थोडा बढा चढाके ही बोलना.

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; कितनी पढाई की है ?

दुल्हेके मित्रने बोलाःपढाई ! अरे वडील, वह तो ग्रेज्युएट है. आई..एस. की परीक्षा देनेवाला है

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; “अब क्या कर रहे हैं?

दुल्हेके मित्रने बोलाःमेनेजर है, जनाब.

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; खेलनेका शौक तो होगा ही.

दुल्हेके मित्रने बोलाः केप्टन है क्रीकेट टीमके

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; पार्टी वार्टीका शौक तो होगा ही

दुल्हेके मित्रने बोलाः अरे साब, हमारा यार तो विदेशी शराब की बात तो छोडो, ड्रग्ज़के सिवा कोई हल्की पार्टी करता ही नहीं है. दाउदका करीबी दोस्त शमसद खानकी कंपनीका मेनेजर ही,  पार्टीका बंदोबस्त करता है. पोलिस कमीश्नरकी  खुदकी निगरानीमें सबकुछ होता है.

इतनेमें दुल्हेने खांसा.

होनेवाले श्वसुरने पूछा क्या जुकाम हुआ है?

पता नहीं कि दुल्हेके मित्रने “कोरोना हुआ है” कहा या नहीं.

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साहिब (जोकर), बीबी (बहनोईकी) और गुलाम(गण)

जोकर, हुकम (ट्रम्प) और गुलाम [साहिब, बीबी (बहनोईकी) और गुलाम]

गुजरातीमें एक कहावत है “भेंस भागोळे, छास छागोळे, अने घेर धमाधम”

एक किसानका संयुक्त कुटुंब था. भैंस खरीदनेका विचार हुआ. एक सदस्य खरीदनेके लिये शहरमें गया. घरमें जोर शोर से चर्चा होने लगी कि भैंसके संबंधित कार्योंका वितरण कैसे होगा. कौन उसका चारा लायेगा, कौन चारा  डालेगा, कौन गोबर उठाएगा, कौन दूध निकालेगा, कौन दही करेगा, कौन छास बनाएगा, कौन  छासका मंथन करेगा ….? छासके मंथन पर चिल्लाहट वाला शोर मच गया. यह शोरगुल सूनकर, सब पडौशी दौडके आगये. जब उन्होंने पूछा कि भैंस कहाँ है? तो पता चला कि भैस तो अभी आयी नहीं है. शायद गोंदरे (भागोळ) तक पहूँची होगी या नहीं पता नही. … लेकिन छास का मंथन कौन करेगा इस पर विवाद है.

यहां इस कोंगीके नहेरुवीयन कुटुंबकवादी पक्षका फरजंदरुपी, भैंस तो अमेरिकामें है, और उसको कोंगी पक्षका एक होद्दा दे दिया है, तो अब उसका असर चूनावमें क्या पडेगा उसका मंथन मीडिया वाले और कोंगी सदस्य जोर शोरसे करने लगे हैं.

कोंगीलोग तो शोर करेंगे ही. लेकिन कोंगीनेतागण चाहते है कि वर्तमान पत्रोंके मालिकोकों समज़ना चाहिये कि, उनका एजन्डा क्या है! उनका एजन्डा भी कोंगीके एजन्डेके अनुसार होना चाहिये. जब हम कोंगी लोग जिस व्यक्तिको प्रभावशाली मानते है उसको समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी प्रभावशाली मानना चाहिये और उसी लाईन पर प्रकाशन और चर्चा होनी चाहिये.

कोंगी नेतागण मीडीया वालोंको समज़ाता है कि;

“हमने क्या क्या तुम्हारे लिये (इन समाचार माध्यमोंके लिये) नहीं किया? हमने तुमको मालदार बनाये. उदाहरणके लिये आप वेस्टलेन्ड हेलीकोप्टरका समज़ौता ही देख लो हमने ४० करोड रुपयेका वितरण किया था. सिर्फ इसलिये कि ये समा्चार माध्यम इस के विरुद्ध न लिखे. हमने जब जब विदेशी कंपनीयोंसे व्यापारी व्यवहार किया तो तुम लोगोंको तुम्हारा हिस्सा दिया था और दिया है. तुम लोगोंको कृतज्ञता दिखाना ही चाहिये.

हमारी इस भैसको कैसे ख्याति दोगे?

मीडीया मूर्धन्य बोलेः “कौन भैस? क्या भैंस? क्यों भैंस? ये सब क्या मामला है?

कोंगीयोंने आगे चलाया; “ अरे वाह भूल गये क्या ?हम कोंगी लोग तो साक्षात्‌ माधव है.

“मतलब?

“मा”से मतलब है लक्ष्मी. “धव”से मतलब है पति. माधव मतलब, लक्ष्मी के पति. यानी कि विष्णु भगवान. हम अपार धनवाले है. हम धनहीन हो ही नहीं सकता. इस धनके कारण हम क्या क्या कर सकते हैं यह बात आपको मालुम ही है?

नहिं तो?

मूकं कुर्मः वाचालं पंगुं लंगयामः गिरिं

अस्मत्‍ कृपया भवति सर्वं, अस्मभ्यं तु नमस्कुरु

[(अनुसंधानः मूकं करोति वाचालं, पंगुं लंगयते गिरिं । यत्कृ‌पा तं अहम्‌ वन्दे परमानंदं माधवं ॥ )

उस लक्ष्मीपति जो अपनी कृपासे  “मुका” को वाचाल बना सकता है और लंगडेको पर्वत पार करनेके काबिल बना देता है उस लक्ष्मी पतिको मैं नमन करता हूँ.]   

लेकिन यदि लक्ष्मीपतियोंको, खुदको ऐसा बोलना है तो वे ऐसा ही बोलेंगे कि हम अपनी कृपासे मुकोंको वाचाल बना सकते है और लंगडोंको पर्वत पार करवा सकते है, इस लिये (हे तूच्छ समाचार माध्यमवाला, हम इससे उलटा भी कर सकते हैं), हमें तू नमन करता रह. तू हमारी मदद करेगा तो हम तुम्हारी मदद करेंगे. धर्मः रक्षति रक्षितां.

भैंसको छा देना है अखबारोंमें

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आर्टीस्टका सौजन्य

वाह क्या शींग? वाह क्या अंग है? वाह क्या केश है? वाह क्या पूंछ है…? वाह क्या चाल है? वाह क्या दौड है? वाह क्या आवाज़ है? इस भैंसने तो “भागवत” पूरा आत्मसात्‌ किया ही होगा…!!!

“हे मीडीया वाले … चलो इसकी प्रशंसा करो…

और मीडीया वालोंने प्रशंसाके फुल ही नहीं फुलोंके गुलदस्तोंको बिखराना चालु कर दिया. अरे यह भैंस तो अद्दल (असल, न ज्यादा, न कम, जैसे दर्पणका प्रतिबिंब) उसके दादी जैसी ही है.  जब दिखनेमें दादी जैसी है तो अवश्य उसकी दादीके समान होशियार, बुद्धिमान, चालाक, निडर …. न जाने क्या क्या गुण थे इसकी दादीमें …. सभी गुण इस भैंसमें होगा ही. याद करो इस भैंसके पिता भैंषाको, जिसको, हमने ही तो “मीस्टर क्लीन” नामके विशेषणसे नवाज़ा था. हालाँ कि वह अलग बात है कि बोफोर्सके सौदेमें उसने अपने  हाथ काले किये. वैसे तो दादीने भी स्वकेन्द्री होने कि वजहसे आपात्काल घोषित करके विरोधीयोंको और महात्मा गांधीके अंतेवासीयोंको भी  कारावासमें डाल दिया था. इसीकी वजह से इसकी दादी खुद १९७७के चूनावमें हार गयी थी वह बात अलग है. और यह बात भी अलग है कि वह हर क्षेत्रमें विफल रही थीं. और आतंकवादीयोंको पुरस्कृत करनेके कारण वह १९८४में भी हारने वाली थी. यह बात अलग है कि वह खुदके पैदा किये हुए भष्मासुरसे मर गई और दुसरी हारसे बच गई.  

गुजराती भाषामें “बंदर” को “वांदरो” कहा जाता है.

लेकिन गुजरात राज्यके “गुजरात”के प्रदेशमें “वादरो”का उच्चारण “वोंदरो” और “वोदरो” ऐसा करते है. काफि गुजराती लोग “आ” का उच्चारण “ऑ” करते है. पाणी को पॉणी, राम को रॉम …. जैसे बेंगाली लोग जल का उच्चार जॉल, “शितल जल” का उच्चार “शितॉल जॉल” करते है. 

सौराष्ट्र (काठीयावाड) प्रदेशमें “वांदरो” शब्दका उच्चारण “वांईदरो” किया जाता है.

अंग्रेज लोग भी मुंबईके “वांदरा” रेल्वेस्टेशनको “बांड्रा” कहेते थे. मराठी लोग उसको बेंन्द्रे कहेते थे या कहेते है.

तो अब यह “वाड्रा” आखिरमें क्या है?

वांईदरा?  या वांद्रा?  या वोंदरा?

याद करो …

पुर तो एक ही है, जोधपुर. बाकी सब पुरबैयां

महापुरुषोंमें “गांधी” तो एक ही है, वह है महात्मा गांधी, बाकी सब घान्डीयां

हांजी, ऐसा ही है. अंग्रेजोंके जमानेसे पहेले, गुजरातमें गांधी एक व्यापारी सरनेम था. लेकिन अंग्रेज लोग जब यहां स्थायी हुए उनका साम्राज्य सुनिश्चित हो गया तब “हम हिन्दुसे भीन्न है” ऐसा मनवाने के लिये पारसी और कुछ मुस्लिमोंने अपना सरनेम “गांधी”का “घान्डी” कर दिया. वे बोले, हम “गांधी” नहीं है. हम तो “घान्डी” है. हम अलग है. लेकिन महात्मा गांधीने जब नाम कमाया, और दक्षिण आफ्रिकासे वापस आये, तो कालक्रममें  नहेरुने सोचा कि उसका दामात “घांडी”में से वापस गांधी बन जाय तो वह फायदएमंद रहेगा. तो इन्दिरा बनी इन्दिरा घान्डीमेंसे इन्दिरा गांधी. और चूनावमें उसने अपना नाम लिखा इन्दिरा नहेरु-गांधी.

तो प्रियन्का बनी प्रियंका वाड्रा (या वांईदरा, या वांदरा या वादरा या वाद्रे)मेंसे बनी प्रियंका वांइन्दरा गांधी या प्रियंका गांधीवांइन्दरा.

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आर्टीस्टका सौजन्य

हे समाचार माध्यमके प्रबंधको, तंत्री मंडलके सदस्यों, कोलमीस्टों, मूर्धन्यों, विश्लेषकों … आपको इस प्रियंका वांईदराको यानी प्रियंका गांधी-वांईदराको राईमेंसे पर्वत बना देनेका है. और हमारी तो आदत है कि हमारा आदेश जो लोग नहीं मानते है उनको हम “उनकी नानी याद दिला देतें है”. हमारे कई नेताओने इसकी मिसाल दी ही है. याद करो राजिव गांधीने “नानी याद दिला देनेकी बात कही थी … हमारे मनीष तीवारीने कहा था कि “बाबा रामदेव भ्राष्टाचारसे ग्रस्त है हम उसके धंधेकी जाँच करवायेंगे” दिग्वीजय सिंघने कहा था “सरसे पाँव तक अन्ना हजारे भ्रष्ट है हम उसकी संस्था की जांच करवाएंगे, किरन बेदीने एरोप्लेनकी टीकटोंमें भ्रष्टाचार किया है हम उसको जेलमें भेजेंगे”, मल्लिकार्जुन खडगेने कहा “ हम सत्तामें आयेंगे तो हर सीबीआई अफसरोंकी फाईल खोलेंगे और उसकी  नानी याद दिला देंगे, यदि उन्होने वाड्राकी संपत्तिकी जाँच की तो … हाँजी हम तो हमारे सामने आता है उसको चूर चूर कर देतें हैं. वीपी सिंह, मोरारजी देसाई, और अनगीनत महात्मागांधीवादीयोंको भी हमने बक्षा नहीं है, तो तुम लोग किस वाडीकी मूली हो. तुम्हे तुम्हारी नानी याद दिला देना तो हमारे बांये हाथका खेल है. सूनते हो या नहीं?

“तो आका, हमें क्या करना है?

तुम्हे प्रियंका वादरा गांधीका प्रचार करना है, उसका जुलुस दिखाना है, उसके उपर पुष्पमाला पहेलाना है वह दिखाना है, पूरे देशमें जनतामें खुशीकी लहर फैल गई है वह दिखाना है, उसकी बडी बडी रेलीयां दिखाना है, उसकी हाजरजवाबी दिखाना है, उसकी अदाएं दिखाना है, उसका इस्माईल (स्माईल) देखाना है, उसका गुस्सा दिखाना है, उसके भीन्न भीन्न वस्त्रापरिधान दिखाना है, उसका केशकलाप दिखाना है, उसके वस्त्रोंकी, अदाओंकी, चाल की, दौडकी स्टाईल दिखाना है और उसकी दादीसे वह हर मामलेमें कितनी मिलती जुलती है यह हर समय दिखाना है. समज़े … न … समज़े?

“हाँ, लेकिन आका! भैंस (सोरी … क्षमा करें महाराज) प्रियंका तो अभी अमेरिकामें है. हम यह सब कैसे बता सकते हैं?

“अरे बेवकुफों … तुम्हारे पास २०१३-१४की वीडीयो क्लीप्स और तस्विरें होंगी ही न … उनको ही दिखा देना. बार बार दिखा देना … दिखाते ही रहेना … यही तो काम है तुम्हारा … क्या तुम्हें सब कुछ समज़ाना पडेगा? वह अमेरिकासे आये उसकी राह दिखोगे क्या? तब तक तुम आराम करोगे क्या? तुम्हे तो मामला गरम रखना है … जब प्रियंका अमेरिकासे वापस आवें तब नया वीडीयो … नयी सभाएं … नयी रेलीयां … नया लोक मिलन… नया स्वागत …  ऐसी वीडीयो तयार कर लेना और उनको दिखाना. तब तक तो पुराना माल ही दिखाओ. क्या समज़े?

“हाँ जी, आका … आप कहोगे वैसा ही होगा … हमने आपका नमक खाया है …

और वैसा ही हुआ… प्रियंका गांधी आयी है नयी रोशनी लायी है …. वाह क्या अदाएं है … अब मोदीकी खैर नहीं ….

प्रियंका वादरा अखबारोंमें … टीवी चैनलोंमें … चर्चाओंमे ..,. तंत्रीयोंके अग्रलेखोंमें … मूर्धन्योंके लेखोंमें … कोलमीस्टोंके लेखोमें … विश्लेषणोंमें छाने लगी है …

प्रियंका वादराको ट्रम्प कार्ड माना गया है. वैसे तो यह ट्रम्प कार्ड २०१३-१४में चला नहीं था … वैसे तो उसकी दादी भी कहाँ चली थीं? वह भी तो हारी थी. वह स्वयं ५५००० मतोंसे हार गयी थी. वह तो १९८४में फिरसे भी हारने वाली थी … लेकिन मर गयी तो हारनेसे  बच गयी.

प्रियंका वांईदरा ट्रम्प कार्ड है. ट्रम्प कार्डको उत्तरभारतके लोग “हुकम” यानी की “काली” या कालीका ईक्का  केहते है. प्रियंका ट्रम्प कार्ड है. कोंगीके प्रमुख जोकर है. कोंगीके बाकी लोग और मीडीया गुलाम है.

साहिब यानी कोंगी पक्ष प्रमुख (यानी जोकर), (वांईदराकी) बीबी और दर्जनें गुलाम कैसा खेल खेलते है वह देखो.

“आँखमारु जोकर” गोवामें पूर्व सुरक्षामंत्री (पनीकर)से मिलने उनके घर गया था. उसने बोला कि “ … मैं पनीकरसे कल मिला. पनीकरने बताया कि राफेल सौदामें जो चेन्ज पीएम ने किया वह उसको दिखाया नहीं गया था.” ताज़ा जन्मा हुआ बच्चा भी कहेगा कि, इसका अर्थ यही होता है कि “जब रा.गा. पनीकरको मिलने गया तो पनीकरने बताया कि राफैल सौदामें जो चेन्ज किया वह पीएमने तत्कालिन रक्षा मंत्रीको दिखाया नहीं था.”

Untitled

आर्टीस्टका सौजन्य

ऐसा कहेना रा.गा.के चरित्रमें और कोंगी संस्कारमें आता ही है. रा.गा.के सलाहकारोंने रा.गा.को सीखाया ही है कि तुम ऐसे विवाद खडा करता ही रहो कि जिससे बीजेपी के कोई न कोई नेताके लिये बयान देना आवश्यक हो जाय. फिर हम ऐसा कहेगें कि हमारा मतलब तो यही था लेकिन बीजेपी वाले गलत अर्थमें बातोंको लेते हैं, और बातोंका बतंगड बनाते हैं. उसमें हम क्या करें? और देखो … मीडीया मूर्धन्य तो हमारे सपोर्टर है. उनमेंसे कई हमारे तर्क का अनुमोदन भी करेंगे. कुछ मूर्धन्य जो अपनेको तटस्थता प्रेमी मानते है वे बभम्‌ बभम्‌ लिखेंगे और इस घटनाका सामान्यीकरण कर देंगे. मीडीयाका कोई भी माईका लाल, रा.गा.के उपरोक्त दो अनुक्रमित वाक्योंको प्रस्तूत करके रा.गा.का खेल बतायेगा नहीं. 

कोंगीकी यह पुरानी आदत है कि एक जूठ निश्चित करो और लगातार बोलते ही रहो. तो वह सच ही हो जायेगा. १९६६ से १९७४ तक कोंगी लोग मोरारजी देसाईके पुत्रके बारेमें ऐसा ही बोला करते थे. इन्दिराका तो शासन था तो भी उसने जांच करवाई नहीं और उसने अपने भक्तोंको जूठ बोलने की अनुमति दे रक्खी थी. क्यों कि इन्दिरा गांधीका एजन्डा था कि मोरारजी देसाईको कमजोर करना. यही हाल उसने बादमें वीपी सिंघका किया कि, “वीपी सिंहका सेंटकीट्समें अवैध एकाउन्ट है”. “मोरारजी देसाई और पीलु मोदी आई.ए.एस. के एजन्ट” है….

ऐसे जूठोंका तो कोंगीनेताओंने भरपूर सहारा लिया है और जब वे जूठे सिद्ध होते है तो उनको कोई लज्जा भी नहीं आती. सत्य तो एक बार ही सामने आता है. लेकिन मीडीयावाले जो सत्य सामने आता है, उसको,  जैसे उन्होंनें असत्यको बार बार चलाया था वैसा बार बार चलाते नहीं. इसलिये सत्य गीने चूने यक्तियोंके तक ही पहूँचता है और असत्यतो अनगिनत व्यक्तियों तक फैल गया होता है. इस प्रकार असत्य कायम रहेता है. 

“समाचार माध्यम वाले हमारे गुलाम है. हम उनके आका है. हम उनके अन्नदाता है. ये लोग अतार्किक भले ही हो लेकिन आम जनताको गुमराह करने के काबिल है.

ये मूर्धन्य लोग स्वयंकी और उनके जैसे अन्योंकी धारणाओ पर आधारित चर्चाएं करेंगे.

जैसे की स.पा. और बस.पा का युपीका गठन एक प्रबळ जातिवादी गठबंधन है. हाँ जी … ये मूर्धन्य लोगोंका वैसे तो नैतिक कर्तव्य है कि जातिवाद पर समाजको बांटने वालोंका विरोध करें. लेकिन ये महाज्ञानी लोग इसके उपर नैतिकता पर आधारित तर्क नहीं रखेंगे. जैसे उन्होंने स्विकार लिया है कि “वंशवाद” (वैसे तो वंशवाद एक निम्न स्तरीय मानसिकता है) के विरुद्ध हम जगरुकता लाएंगे नहीं.

हम तो ऐसी ही बातें करेंगे कि वंशवाद तो सभी राजकीय दलोंमे है. हम कहां प्रमाणभान रखनेमें मानते है? बस इस आधार पर हम सापेक्ष प्रमाण की सदंतर अवगणना करेंगे. उसको चर्चाका विषय ही नहीं बनायेंगे. हमें तो वंशवादको पुरस्कृत ही करना है. वैसे ही जातिवादको भी सहयोग देना है. तो हम जातिवादके विरुद्ध क्यूँ बोले? हम तो बोलेंगे कि, स.पा. और ब.स.पा. के गठबंधनका असर प्रचंड असर जनतामें है.  ऐसी ही बातें करेंगे. फिर हम हमारे जैसी सांस्कृतिक मानसिकता रखनेवालोंके विश्लेषणका आधार ले के, ऐसी भविष्यवाणी करेंगे कि बीजेपी युपीमें ५ से ७ सीट पर ही सीमट जाय तो आश्चर्य नहीं.

यदि हमारी भविष्यवाणी खरी न उतरी, तो हम थोडे कम अक्ल सिद्ध होंगे? हमने तो जिन महा-मूर्धन्योंकी भविष्यवाणीका आधार लिया था वे ही गलत सिद्ध होंगे. हम तो हमारा बट (बटक buttock) उठाके चल देंगे.

प्रियंका वांईदरा-घांडी खूबसुरत है और खास करके उसकी नासिका इन्दिरा नहेरु-घांडीसे मिलती जुलती है. तो क्यों न हम इस खुबसुरतीका और नासिकाका सहारा लें? हाँ जी … प्रियंका इन्दिरा का रोल अदा कर सकती है.

“लेकिन इन्दिरा जैसी अक्ल कहाँसे आयेगी?

“अरे भाई, हमें कहां उसको अक्लमान सिद्ध करना है. हमें तो हवा पैदा करना है. देखो … इन्दिरा गांधी जब प्रधान मंत्री बनी, यानी कि, उसको प्रधान मंत्री बनाया गया तो वह कैसे छूई-मूई सी और गूंगी-गुडीया सी रहेती थी. लेकिन बादमें पता चला न कि वह कैसी होंशियार निकली. तो यहां पर भी प्रियंका, इन्दिरासे भी बढकर होशियार निकलेगी ऐसा प्रचार करना है तुम्हे. समज़ा न समज़ा?

“अरे भाई, लेकिन इन्दिरा तो १९४८से अपने पिताजीके साथा लगी रहती थी और अपने पिताजीके सारे दावपेंच जानती थी. उसने केरालामें आंदोलन करके नाम्बुद्रीपादकी सरकारको गीराया था. इन्दिरा तो एक सिद्ध नाटकबाज़ थी. प्रारंभमें जो वह, संसदमें  छूई-मूई सी रहती थी वह भी तो उसकी व्युहरचनाका एक हिस्सा था. सियासतमें प्रियंकाका योगदान ही कहाँ है?

“अरे बंधु,, हमे कहाँ उसका योगदान सिद्ध करना है. तुम तो जानते हो कि, जनताका बडा हिस्सा और कोलमीस्टोंका भी बडा हिस्सा १९४८ – १९७०के अंतरालमें, या तो पैदा ही नहीं हुआ था, या तो वह पेराम्बुलेटर ले के चलता था.

“लेकिन इतिहास तो इतिहास है. मूर्धन्योंको तो इतिहासका ज्ञान तो, होना ही चाहिये न ?

“नही रे, ऐसी कोई आवश्यकता नहीं. जनताका बडा हिस्सा कैसा है वह ही ध्यानमें रखना है. हमारे मूर्धन्य कोलमीस्टोंका टार्जेट आम जनता ही होना चाहिये. इतिहास जानने वाले तो अब अल्प ही बचे होगे. अरे वो बात छोडो. उस समयकी ही बात करो. राजिव गांधीको, तत्कालिन प्रेसीडेन्ट साहबने, बिना किसी बंधारणीय आधार, सरकार बनानेका न्योता दिया ही था न. और राजिव गांधीने भी बिना किसी हिचकसे वह न्योता स्विकार कर ही लिया था न? वैसे तो राजिवके लिये तो ऐसा आमंत्रण स्विकारना ही अनैतिक था न? तब हमने क्या किया था?  हमने तो “मीस्टर क्लीन आया” … “मीस्टर क्लीन आया” … ऐसा करके उसका स्वागत ही किया था न. और बादमें जब बोफोर्स का घोटाला हुआ तो हमने थोडी कोई जीम्मेवारी ली थी? ये सब आप क्यों नहीं समज़ रहे? हमे हमारे एजन्डा पर ही डटे रहेना है. हमें यह कहेना है कि प्रियंका होशियार है … प्रियंका होंशियार है … प्रियंकाके आनेसे बीजेपी हतःप्रभः हो गयी है. प्रियंकाने तो एस.पी. और बी.एस.पी. वालोंको भी अहेसास करवा दिया है कि उन्होंने गठबंधनमें जल्दबाजी की है. … और … दुसरा … जो बीजेपीके लोग, प्रियंकाके बाह्य स्वरुपका जिक्र करते हैं और हमारे आशास्वरुप प्रचारको निरस्र करनेका प्रयास कर रहे है … उनको “ नारी जातिका अपमान” कर रहे … है ऐसा प्रचार करना होगा. हमे यही ढूंढना होगा कि प्रियंकाके विरुद्ध होने वाले हरेक प्रचारमें हमें नारी जातिका अपमान ढूंढना होगा. समज़े … न समज़े?

कटाक्ष, चूटकले, ह्युमर किसीकी कोई शक्यता ही नहीं रखना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

जाति आधारित राज्य रचनाकैसे की जा सकती है? उसकी प्रक्रिया कैसी होनी चाहिये?

हमने जब देशकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये देशका विभाजन किया तब हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने कुछ गलतीयां की थी. वे गलतीयां हमे जातिआधारित और धर्म आधारित राज्य रचना करनेमें दोहरानी नहीं चाहिये)

तो चलो हम आगे बढें

नहेरुवीयन तुम आगे बढो

एक बात सबको समज़नी है कि हमारी मीडीयाके अधिकतर संचालकगण और नहेरुवीयन कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेससे मतलब है नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, उसके विद्वान लेखकगण और उसके समर्थक मतदाता गण)  “जैसे थे वादीहै. और यह तथ्य सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है. यदि बीजेपी का कोई भी नेता या बीजेपीके समर्थक गुटका कोई भी नेता सिर्फ एक निवेदन कर दें किआरक्षणके प्रावधान पर पुनर्विचारणा आवश्यक है, और इसके उपर बीजेपीके नेतागण मौन रहे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसका चूनाव जीतनेका काम हो ही गया. लेकिन हम जानते है कि बीजेपीको भी चूनाव जीतना है, लिये वह आरक्षण के विरुद्ध नहीं बोलेगी.

तो अब कया किया जाय?

() नहेरुवीयन कोंग्रेसमें वैसे तो हर जातिके लोग है. उनसे उन जातिके नेताओंका पता लगाओ. उनको कैसे अपने पक्षमें लेना इस बातमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेस अनुभवी है. उनसे अपनी जातिके लिये आरक्षणका आंदोलन करवाओ. उस नेताको बोलो कि आंदोलनमें कमसे कम ५०००० से १००००० की संख्या तो होने ही चाहिये. जो जितनी जनसंख्या आंदोलनमें लायेगा उसको प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाबसे ५०० रुपये मिलेगा. मान लो कि एक लाख जनसंख्या हुई तो पांच करोड रुपये खर्च हुए.

(.) युपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्र, कर्नाटक, ओरीस्सा, तामिलनाडु, केराला, महाराष्ट्र, इन राज्योंमें ही आंदोलन करनेका है. हरेक के दो, तीन बडे नगरोंमें ही करनेका. एक समयके आंदोलनका पचास करोड रुपये हुए. दस बार आंदोलन करवाया तो पांच हजार करोड रुपये हुए. यह कोई ज्यादा पैसा नहीं हुआ. इससे दो गुना तो माल्याने बेंकका लोन लिया था जो आज तक भरा नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये तो यह बडी बात है ही नहीं.

() मीडीया वाले, नहेरुवीयन कोंग्रेसको खुश होकर सहयोग करेंगे क्यों कि, इसमें उनको भी तो लाभ है. भूतकालमें भी मीडीयाकर्मीयोंने खूब लाभ करवाया है. जातिवादसे भारतको कैसे कैसे लाभ किया उस पर आप चेनलोंमें चर्चा चालु करें. यदि कहीं भी मौत होती है या अत्याचार होता है तो वह व्यक्ति कौनसी जातिका है उसके उपर चर्चा करें. आपके पास तो असामाजिक तत्त्वोंकी कमी तो है ही नहीं. तत्वोंको बीजेपीमें, बजरंग दलमें, विश्वहिन्दु परिषदमें भर्ती कराओ. फिर उनको बोलो कि वे उन जातिके व्यक्तिओंको चूने जो आपके द्वारा बनाई हूई सूचीमें आरक्षणके लिये समाविष्ठ है और गरीब भी है. एक सप्ताहमें सात जिलेमें हररोज एक अत्याचार करवाओ. और हररोज चेनलमें इस अत्याचारके विरुद्ध चर्चा चलाओ. मीडीयावाले भी खुश रहेंगे क्यों कि उनको घर बैठे मसाला मिल जायेगा और चर्चा का मौका भी मिल जायेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण बीजेपीके शासनकी भर्त्सना करते रहेंगे. ये लोग दलित जातियोंके प्रति ही नहीं किन्तु हर गरीब जनताके प्रति बीजेपी कितनी संवेदन हीन है और नहेरुवीयन कोंग्रेस कितनी प्रतिबद्ध है यह बात लगातार बोलते रहेंगे. साथ साथ गरीबोंके हितके लिये राज्योंकी पूनर्र्चनाकी बात भी चलती रहेगी. नहेरुवीयन कोंग्रेस पैसे खर्च करनेमें सक्षम है, गुजरातके ४४ एमएलए को हवाई जहाजमें बैठाके हजार मील दूर रीसोर्टमें कैसा मजा करवाया यह बात तो हम जानते ही है.

() नहेरुवीयन कोंग्रेसको जनताको भरोसा दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चना में उनकी जातिका पूरा ध्यान रखा जायेगा. मुस्लिम जनताको और ख्रिस्ती जनताको भी अहेसास दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चनामें उनको लाभ ही लाभ होगा.

() नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रचार करेगी कि जाति आधारित राज्य रचनासे हरेक जातिका संस्कार, संस्कृति और विकासके द्वार खूल जायेंगे. इस काम के लिये नहेरुवीयन कोंग्रेस जनगणना करवायेगी ताकि हरेक जातिको और धर्मको विकसित होनेका अवसर मिले.

() जनगणना कैसे होगी?

(.) आपके लिये सर्व प्रथम क्या है. धर्म, जाति, भाषा या देश?

(.) जो लोग देश लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग धर्म लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग जाति लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) जो लोग भाषा लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) भाषामें तीन प्राथमिकता रहेगी. मातृभाषा, हिन्दी या तमील, अंग्रेजी.

(.) हर हिन्दु व्यक्ति अपना धर्म, जाति, उपजाति, उपउप जाति, उपउपउपजाति, गोत्र, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गुरु आदि के बारेमें सरकारको माहिति देगा.

(.) हर मुस्लिम व्यक्तिको लिखवाना पडेगा कि वह सिया, सुन्नी, अहेमदीया, सुफी, दिने इलाही, वहाबी, शरियती, या जो भी कुछ भी हो वह है.

(.) हर ख्रिस्ती व्यक्तिको मुस्लिमोंकी तरह अपनी माहिति देगा.

(.४९ अन्य धर्मवाले भी ऐसा ही करेंगे.

ये सब माहिति गुप्त रखी जायेगी.

()  इस प्रकारकी जनगणनाके बाद उनका वर्गीकरण किया जायेगा, हरेक वर्गका उपवर्गीकरण, उपवर्गका उपउपवर्गीकरण, उपउपवर्गीकरणका उपउपउप वर्गीकरण किया जायेगा.

() हर प्रकारके वर्गीकरणकी जनसंख्या निकाली जायेगी.

() मुख्य वर्गधर्मरहेगा. धर्मके आधार पर राज्य बनाया जायेगा.

() धर्मका एक दुसरेके साथ प्रमाणका कलन किया जायेगा. भारतकी कुलभूमिमें हर धर्मके हिस्सेमें कितनी भूमि आयेगी उसका कलन किया जायेगा.

यक्ष राज्य

(१०) जिन्होनेंसर्व प्रथम देशलिखा है उनके लिये सीमा वर्ती विस्तार रहेगा. इस प्रकार, राजस्थान, गुजरात, कोंकण, कर्नाटककेराला, तमीलनाडु, ओरीस्सा, पश्चिम बंगाल, पूरा उत्तरपूर्व, हिमालयसे संलग्न विस्तार, पूरा जम्मु और काश्मिर राज्य इन सब राज्योंको मिलाके सीमा रेखासे २५० किलोमीटर अंदर तक के विस्तारवाला यक्षराज्य बनेगा. यक्षराज्यसे मतलब है सीमाका राज्य.

(११) यक्षराज्यकी सुरक्षा रेखा पर सुरक्षा सेना के निवृत्त कर्मचारीयोंको बसाया जायेगा.

(१२) यक्ष राज्य पूरा केन्द्र शासित राज्य रहेगा.

हिन्दु राज्य

(१३) यक्ष राज्यके पीछेहिन्दु राज्य आयेगा. हिन्दु राज्यमें जातिके आधारपर जिल्ले बनेंगे. हर जिल्लेमें जातिके उपजाति के आधार पर तहेसील बनेंगे. हर तेहसीलमें गोत्रके आधार पर नगर और ग्राम बनेंगे. एक नगरमें या ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेंगे. एक गोत्र इसलिये कि, समान  गोत्रमें शादी नहीं हो सकता. एक गोत्रकी कन्या और वही गोत्रका दुल्हा एक दूसरेके बहेन और भाई बनते है. इस प्रकार कन्याओंको सुरक्षा प्रदान होगी. क्यों कि कोई अपनी बहेनको छेडता नहीं.

प्रकीर्ण धर्म राज्य

(१४) हिन्दु राज्यके पीछे जिन्होनेंप्रकिर्ण धर्म वाले मतलब कि यहुदी, अन्य बिनख्रिस्ती, बिनमुस्लिम धर्म वाले आयेंगे. जिनके धर्मके आधार पर जिल्ला और या तहेसील और या नगर/ग्राम बनेंगे.

ख्रिस्ती राज्य

(१५) प्रकीर्ण धर्म राज्यके पीछे ख्रिस्ती राज्य आयेगा. ख्रिस्ती धर्मके वर्गीकरणके हिसाबसे उनके जिल्ला, तेहसील और नगर/ग्राम रहेंगे.

मुस्लिम राज्य

(१५) ख्रिस्ती राज्यके पीछे मुस्लिम राज्य आयेगा. मुस्लिम धर्मके आंतरिक वर्गीकरण के हिसाब से उसके राज्यमें जिल्ला, तहेसील, नगर/ग्राम आदि बनेंगे.

भाषा प्रथमका क्या?

(१६) जिन्होनेभाषा प्रथमलिखाया है उनको केन्द्रसे यक्षराज्य और हिन्दु राज्यकी सीमासे लेकर भौगोलिक केन्द्र तक एक यथा योग्य चौडाईवाला विस्तार अंकित किया जायेगा उसमें भीन्न भीन्न भाषा प्राधान्यवाले का विस्तार आयेगा.

(१७) हरेक धर्मराज्यको आर्टीकल ३७०की सुविधा मिलेगी.

देशका धर्मजाति आधारित पूनर्र्चनाका सैधांतिक चित्र देखो. और भारतका प्रास्तावित चित्र भी देखो.

india राज्य

india

ध्रर्मजाति आधारित राज्यके लाभ

() धर्म, जाति और भाषाको लेकर आंतरिक युद्धकी शक्यताका निर्मूलन

() जाति आधारित आरक्षणकी समस्याका निर्मूलन

() आतंकवादका निर्मूलन आसान

() काश्मिरकी आतंरिक समस्याका निर्मूलन

() नये राज्योंकी मांग अशक्य

() मतबेंककी सियासत नष्ट,

धर्म और जाति आधारित राज्यों की समस्याएं क्या हो सकती है? और उनको कैसे हल किया जाय?

() जनताका स्थानांतरणः कोम्प्युटरकी मददसे प्रवर्तमान नगर और ग्राममें मकानका विस्तार और संख्यामें उपलब्धता और धर्मके आधार पर वर्गीकृत व्यक्तिओंकी उचितताके आधार पर आबंटन.  और उस आधारपर सरकार द्वारा आयोजन करके स्थानांतरण.

() एक नगर/ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेते है तो शादीकी समस्या कैसे हल की जाय? शादीईच्छुक लोगोंकी और वाग्दत्त/वाग्दत्ताओंकी आवन जावन बढेगी तो सरकारका टेक्ष टीकीटों द्वारा राजस्व बढेगा.

() एक धर्मके लोगोंका अन्य राज्यमें धार्मिक स्थल है. इससे राज्यका पर्यटन व्यवसाय बढेगा.

() सभी राज्य क्लोझ्ड सरकीटमें है, इसलिये क्लोझ्ड सरकीट मार्गव्यवहार बढेगा और देशकी तरक्की होगी. व्यवसायमें वृद्धि होगी

() एक ही जातिके लोग परस्पर झगडेंगे इस कारण जनताका एक ही उपउपउप ज्ञातिमें और विभाजन होगा, तो इससे नये नगर बनेंगे और विकास होगा. नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसे विभाजनोंका लाभ ले सकती है. इस लिये नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारको क्षति नहीं आयेगी.

() जिस व्यक्तिका राज्य पूनर्रचनाके बाद जन्म हुआ वह जब वयस्क हुआ तो वह अपनी पसंदका राज्य कर सकता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः नहेरुवीयन कोंग्रेस, मीडीयाकर्मी, लेखक, विद्वान, सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, धर्म, जाति, भाषा, उप, उप-उप, उप-उप-उप, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गोत्र, यक्ष, हिन्दु, राज्य, प्रकिर्ण, ख्रिस्ती, मुस्लिम, यहुदी

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बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

याद करो पाकिस्तानी शासकोंकी संस्कृति “भारतकी पराजय ही हमारी विजय है”

जब हम क्रिकेटकी बात करते हैं तो पाकिस्तानके जनमानसमें यह बात सहज है कि चाहे पाकिस्तान विश्वकपकी अंतिम स्पर्धामें पराजित हो जाय, या पाकिस्तान सुपरसीक्समेंकी अंतिम स्पर्धामें भी हार जाय, तो भी हमें हमारी इन पराजयोंसे दुःख नहीं किन्तु भारत और पाकिस्तानकी जब स्पर्धा हो तो भारतकी पराजय अवश्य होनी चाहिये. भारतकी पराजयसे हमें सर्वोत्तम सुखकी अनुभूति होती है.

TRAITOR

ऐसी ही मानसिकता भारतमें भी यत्‌किंचित मुसलमानोंकी है. “यत्‌ किंचित” शब्द ही योग्य है. क्यों कि मुसलमानोंको भी अब अनुभूति होने लगी है है कि उनका श्रेय भारतमें ही है. तो भी भारतमें ओवैसी जैसे मुसलमान मिल जायेंगे  जो कहेंगे कि “यदि पाकिस्तान भारत पर आक्र्मण करें, तो भारत इस गलतफहमीमें न रहे कि भारतके मुसलमान भारतके पक्षमें लडेंगे. भारतके मुसलमान पाकिस्तानी सैन्यकी ही मदद करेंगे.” ओवैसीका और कुछ मुल्लाओंका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहासका ज्ञान कमज़ोर है, क्यूं कि भारतका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहास ओवैसीकी मान्यताको पुष्टि नहीं करता. जब हम ओवैसी को याद करें तो हमें तारेक फतह को भी याद कर लेना चाहिये.

 उपरोक्त मानसिकताके पोषणदाता नहेरुवीयन्स और नहेरुवीयन कोंग्रेस है. ऐसी मानसिकता  केवल मुसलमानोंकी ही है, ऐसा भी नहीं है. अन्य क्षेत्रोमें यत्‌किंचित भीन्न भीन्न नेतागणकी भी है.

ऐसी मानसिकता रखनेवालोंमें सबसे आगे साम्यवादी पक्ष है.

साम्यवादी पक्ष स्वयंको समाजवादी मानता है. समाजवादमें केन्द्रमें मानवसमाज होता है. और तत्‌ पश्चात मनुष्य स्वयं होता है. इतना ही नहीं साम्यवादके शासनमें पारदर्शिता नहीं होती है. साम्यवादी शासनमें नेतागण अपने लिये कई बातें गोपनीय रखते हैं इन बातोंको वे राष्ट्रीय हितके लिये गोपनीय है ऐसा घोषित करते है. इन गोपनीयताको मनगढंत और मनमानीय ढंगसे गुप्त रखते हैं.

दुसरी खास बात यह है कि ये साम्यवादी लोग साधन शुद्धिमें मानते नहीं है. तात्पर्य यह है कि ये लोग दोहरे या अनेक भीन्न भीन्न मापदंड रखते हैं और वे अपनी अनुकुलताके आधार पर मापदंडका चयन करते है. उनका पक्ष अहिंसामें मानता नहीं है, किन्तु दुसरोंकी तथा कथित या कथाकथित हिंसाकी  निंदा वे बडे उत्साह और आवेशमें आकर करते हैं. उनका स्वयंका पक्ष वाणी-स्वातंत्र्यमें मानता नहीं है, किन्तु यदि वे शासनमें नहीं होते हैं तो वे  कथित वाणी स्वातंत्र्यकी सुरक्षाकी बातें करते है और उसके लिये आंदोलन  करते हैं. यदि उनके पक्षका शासन हो तो वे विपक्षके वाणी स्वातंत्र्य और आंदोलनोंको पूर्णतः हिंसासे दबा देतें हैं.

जब साम्यवादी पक्षका शासन होता है, तब ये साम्यवादी लोग, अपना शासन अफवाहों पर चलाते है. साम्यवादी शासित राज्योंमें उनके निम्नस्तरके नेतागण तक भ्रष्टाचार करते हैं. साम्यवादीयोंकी अंतर्गत बातें राष्ट्रीय गोपनीयताकी सीमामें आती है. किन्तु यही लोग जब विपक्षमें होते है तो पारदर्शिताके लिये बुलंद आवाज़ करते है.

साम्यवादका वास्तविक स्वरुप क्या है?

वास्त्वमें साम्यवाद, “अंतिमस्तरका पूंजीवाद और निरंकुश तानाशाहीका अर्वाचीन मिश्रण है.” इसका अर्थ यह है कि शासकके पास उत्पादन, वितरण और शासनका नियंत्रण होता है. यह बात साफ है कि एक ही व्यक्ति सभी कार्यवाही पर निरीक्षण नहीं कर सकता. इसके लिये पक्षके सारे नेता गण अपने अपने क्षेत्रमें मनमानी चलाते है और भ्रष्टाचार भी करते हैं. भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी अंतिम स्तर तक पहूंच जाती है. किन्तु साम्यवादीयोंको इसकी चिंता नहीं होती है. क्यों कि वे पारदर्शितामें मानते नहीं है, इस लिये साम्यवादके शासनमें सभी दुष्ट बातें गुप्त रहती है.

हमने देखा है कि पश्चिम बंगालमें २५ साल नहेरुवीयन कोंग्रेसका और तत्‌पश्चात्‌ ३३ साल साम्यवादीयोंका शासन रहा. इनमें नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रच्छन्न साम्यवादी सरकार थी और ज्योतिर्‍ बसु और बुद्धदेव बसु तो स्वयं सिद्ध नामसे भी साम्यवादी थे. १९४७में भी पश्चिम बंगाल राज्य एक बिमारु राज्य था और आज भी वह बिमारु राज्य है. १९४७में भी पश्चिम बंगालमें, रीक्षा आदमी अपने हाथसे खिंचता था और आज २०१७में भी रीक्षा आदमी खिंचता है.

आप पूछेंगे कि जिस देशमें साम्यवादी शासन विपक्षमें है तो वहां साम्यवादी पक्ष क्या कभी  शासक पक्ष बन सकता है?

हां जी. और ना जी.

साम्यवादी पक्ष की विचार प्रणालीयोंका हमें विश्लेषण करना चाहिये.

जब कहीं साम्यवादी पक्षका शासन नहीं होता है तो वे क्या करते हैं?

साम्यवादीयोंका प्रथम कदम है कि देशमें असंतोष और अराजकता फैलाना

असंतोष कैसे फैलाया जा सकता है?

समाजका विभाजन करके उनके विभाजित अंशोंमें जो बेवकूफ है उनमें इस मानसिकताका सींचन करो कि आपके साथ अन्याय हो रहा है.

भारतीय समाजको कैसे विभाजित किया जा सकता है?

भारतीय समाजको ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र, हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई, घुसपैठी, शिख, दलित, भाषावादी, पहाडी, सीमावर्ती, ग्राम्य, नगरवासी, गरीब, मध्यम वर्गी, धनिक, उद्योगपति, श्रमजिवी, कारीगर, पक्षवादी, अनपढ, कटार लेखक (वर्तमान पत्रोंके कोलमीस्ट), युवा, स्त्री, आर्य, अनार्य, काले गोरे,  आदिमें विभाजित किया जा सकता है.  इन लोगोंमें जो बेवकुफ और नासमज़ है उनको उकसाया जाता है.

कैसे फसाया जाता है?

यादव, जाट, ठाकुर, नीनामा, दलित आदि लोगोंने जो आंदोलन चलाये वे तो सबने देखा ही है.

वैश्योंमें जैनोंको कहा गया कि तुम हिन्दुओंसे भीन्न हो. तुम अल्पसंख्यकमें आ जाओ.

मुस्लिमोंको कहा कि ये घुसपैठी लोग तो तुम्हारे धर्मवाले है, उनका इस देशमें आनेसे तुम्हारी ताकत बढेगी.

पहाडी, वनवासी, सीमावर्ती क्षेत्रवासी, दलित आदि लोगोंको कहा कि तुम तो इस देशमे मूलनिवासी हो, इन आर्यप्रजाने तुह्मारा हजारों साल शोषण किया है. हम दयावान है, तुम ईसाई बन जाओ और एक ताकतके रुपमें उभरो. वॉटबेंक तुम्हारी ताकत है. तुम इस बातको समज़ो.

“दुश्मनका दुश्मन मित्र”

चाणक्यने उपरोक्त बात देशके हितको ध्यानमें रखके कही थी. किन्तु प्रच्छन्न और अप्रच्छन साम्यवादी लोगोंने यह बात स्वयंके और पक्षके स्वार्थके लिये अमल किया और यह उनकी आदत है.

ऐसी कई बातें आपको मिलेगी जो देशकी जनताको विभाजित करनेमें काम आ सकतीं हैं.

युवा वर्गको बेकारीके नाम पर और उनकी तथा कथित परतंत्रिता पर बहेकाया जा सकता है. उनको सुनहरे राजकीय भविष्यके सपने दिखाकर बहेकाया जा सकता है.

जो कटार लेखक विचारशील और तर्कशील नहीं है, लेकिन जिनमें बिना परिश्रम किये ख्याति प्राप्त करनी है, उनको पूर्वग्रह युक्त बनाया जाता है. उन लोगोंमें खास दिशामें लिखनेकी आदत डाली जाती है और वे नासमज़ बन कर उसी दिशामें लिखने की आदतवाले बन जाते है.

जैसे कि, 

डीबी (दिव्य भास्कर)

डीबी (दिव्य भास्कर)में ऐसे कई कटार लेखक है जो हर हालतमें बीजेपीके विरुद्ध ही लिखनेकी आदत बना बैठे हैं. उनके “तंत्री लेख”के निम्न दर्शित अवतरणसे आपको ज्ञात हो जायेगा कि यह महाशय कितनी हद तक पतित है.

आपने “कन्हैया”का नाम तो सुना ही होगा, जो समाचार माध्यमों द्वारा पेपरका शेर (पेपर टायगर) बना दिया गया था.  कन्हैयाके जुथने (जो साम्यवादीयोंकी मिथ्या विचारधारासे  बना है) भारतके विरुद्ध विष उगलने वाले नारे लगाये थे.

उमर खालिद और कई उनके साथी गण “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा, आदि कई सारे सूत्रोच्चार किये थे. कन्हैया उसके पास ही खडा था. न तो उसके मूंहपर नाराजगी थी, न तो उसने सूत्रोच्चार करने वालोंको रोका था, न तो उसने इन सूत्रोच्चारोंसे विपरित सूत्रोच्चार किये, न तो इसने इन देश द्रोहीयोंका विवरण पूलिसको या युनीवर्सीटी के संचालकोंको दिया, न तो इसने बादमें भी ऐसे सूत्रोच्चार करनेवालोंके विरुद्ध कोई उच्चारण किया. इसका मतलब स्पष्ट है कि उसने इन सूत्रोंको समर्थन ही किया.

अब हमारे डीबीभाईने “१ मार्च २०१७” के समाचार पत्र पेज ८, में क्या लिखा है?

तंत्री लेखका शिर्षक है “राष्ट्रप्रेम और गुन्डागर्दी के बीचकी मोटी सीमा रेखा”

विवरणका संदेश केवल  एबीवीपी की गुन्डागर्दीका विषय है.

संदेश ऐसा दिया है कि “सूचित विश्वविद्यालयमें बौधिकतावादी साम्यवादीयोंका अड्डा है और बौद्धिकता जिंदा है. ये लोग जागृत है…

दुसरा संदेश यह है कि “गुजरात यदि शांत है तो यह लक्षण अच्छा नहीं है.” इन महाशयको ज्ञात नहीं कि नवनिर्माणका अभूतपूर्व, न भूतो न भविष्यति, आंदोलन गुजरातमें ही हुआ था और वह कोई स्वार्थ के लिये नहीं किन्तु भ्रष्टाचार हटानेके लिये हुआ था. इतना ही नहीं वह संपूर्ण अहिंसक था और जयप्रकाश नारायण जैसे महात्मा गांधीवादीने इस आंदोलनसे प्रेरणा ली थी. डी.बी. महाशय दयाके पात्र है.

डी.बी. भाई आगे चलकर लिखते है कि “जागृत विद्यार्थीयोंके आंदोलन एनडीए के शासनमें  बढ गये हैं. डीबीभाईने  गुरमहेरका नामका ज़िक्र किया है. क्योंकि एबीवीपीके विरोधियोंको बौद्धिकतावादी सिद्ध करनेके लिये यह तरिका आसान है.

यदि गुरमहेरने कहा कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं मारा लेकिन युद्धने मारा है” तो इसमें बौद्धिकता कहांसे आयी? यदि इसमें “डी.बी.”भाईको बौद्धिकता दिखाई देती है तो उनके स्वयंकी बौद्धिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता ही है. भारतीय बल्लेबाज युवराजने गुरमहेरकी इस बातका सही मजाक उडाया है, कि “शतक मैंने नहीं मारा… शतक तो मेरे बल्लेने मारा है”.

पाकिस्तान

एक देश आक्रमणखोर है, वही देश आतंकवादी भी है, उसी देशने भारत पर चार दफा आक्रमण भी किया होता है, उसी देशका आतंक तो जारी ही है. इसके अतिरिक्त भारतीय शासन और भारतके शासक पक्षोंने मंत्रणाओंके लिये कई बार पहेल की है और करते रहते हैं इतना ही नहीं यदि बीजेपीकी बात करें, तो बीजेपीने भारत पाकिस्तानके बीच अच्छा माहोल बनानेका कई बार प्रयत्न किया, तो भी भारत देशमें जो लोग कहेते रहेते है कि “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ और पाकिस्तानको समर्थन देनेका संदेश देना और कहेना कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं लेकिन युद्धने मारा है” इस बातमें कोई बौद्धिकता नहीं है. जब आपने “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ इन सूत्रोंका विरोध न किया हो और भारत विरोधी सूत्रोंकी घटनाके बारेमें प्रश्न चिन्ह खडा किया हो, तो समज़ लो कि आप अविश्वसनीय है. गुरमहेरका कर्तव्य था कि वह ऐसे सूत्र पुकारने वालोंके विरोधमें खुलकर सामने आतीं.

वास्तवमें ट्रोल भी ऐसे दोहरे मापदंडों रखने वाले होते है. कन्हैया, उमर खालिद, गुरमहेर आदि सब ट्रोल है. ऐसे बुद्धिहीन लोगोंको ट्रोल बनाना आसान है. समाचर पत्र वाचकगण बढानेके लिये और टीवी चेनलके प्रेक्षकगण बढानेके लिये और अपना एजंडा चलाने के लिये उनके तंत्री के साथ कई कटारीया (कटार लेखक), और एंकर संचालक स्वयं ट्रोल बननेको तयार होते हैं.

डी.बी.भाईने आगे लिखा है “गत वर्षमें देश विरोधी सूत्रोच्चार विवाद के करनेवालोंकी पहेचान नहीं हो सकी है.” डी.बी. भाईके हिसाबसे सूत्रोच्चार हुए थे या नहीं … यह एक विवादास्पद घटना है.

हम सब जानते है कि उमर खालिदकी और उसके साथीयोंकी जो विडीयोक्लीप झी-न्युज़ पर दिखाई गयी थी वह फर्जी नहीं थी. तो भी “डी.बी.भाई” इन सूत्रोच्चारोंको और उनके करनेवालोंको विवादास्पद मानते है. डि.बी.भाईकी अबौद्धिकता और उनके पूर्वग्रहका यह प्रदर्शन है. “डी.बी.भाइ” आगे यह भी लिखते है कि, “उमर खालिद और कन्हैयाको अनुकुलता पूर्वक (एबीवीपी या बीजेपी समर्थकोंने) देशद्रोहीका लेबल लगा दिया. “

डी.बी.भाईका यह तंत्री लेख, पूर्वग्रहकी परिसीमा और गद्दारीकी पहेचान नहीं है तो क्या है?

ये लोग जिनके उपर देशकी जनताको केवल “सीधा समाचार” देनेका फर्ज है वे प्रत्यक्ष सत्य को (देश विरोधी सूत्रोच्चार बोलनेवालोंकी क्लीपको) अनदेखा करके वाणीविलास करते हैं और अपनी पीठ थपथपाते है. महात्मा गांधी यदि जिंदा होते तो आत्महत्या कर लेते, क्यों कि ऐसे समाचार पत्रोंके कटारीया लेखकोंद्वारा जनताको गुमराह करनेका सडयंत्र जो चलता है.

ये लोग ऐसा क्यों करते हैं?

इन्होंने देश दो हिस्सेमें विभाजित हो गया है. नरेन्द्रमोदीके नेतृत्वको माननेवाला बीजेपी और बीजेपी-विरोधी. जो भी देशके विरोधीयोंकी टिका करते है उनको ये अप्रच्छन्नतासे प्रच्छन्न लोग, “मोदी भक्त, बीजेपीवादी, एबीवीपीवादी, असहिष्णु, कोमवादी …” ऐसे लेबल लगा देते है और स्वयंको बुद्धिवादी मानते है.

बीजेपीका मूल्यहीन तरिकोंसे विरोध क्यों?

नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने अस्तित्वको खोज रही है. पैसे तो उसने ६० सालके शासनमें बना लिया. लेकिन भ्रष्टाचारके कारण सत्तासे हाथ धोना पडा. भ्रष्टनेतागणसे और वंशवादसे बाहर निकलनेकी उसकी औकात नहीं है.

समाजवादी पक्ष, बीएसपी, एनसीपी, टीएमसी, जेडीयु, एडीएमके, डीएमके, ये सभी पक्ष एक क्षेत्रीय पक्ष और वंशवादी पक्ष बन गये है. उनका सहारा अब केवल साम्यवादी पक्ष बन गया है. उनको अपना अस्तित्व रखना है. हर हालतमें उनको बीजेपीको हराना है चाहे देशमें कुछ भी हो जाय. नहेरुवंशीय शासनके कारण ये सभी पक्षोंकी मानसिकता सत्तालक्षी और स्वकेन्द्री बन गयी है. उनके पास कुछ छूटपूट राज्योंका शासन और  सिर्फ पैसे ही बचे हैं. पैसोंसे वे कटारीया लेखकोंकी ख्याति-भूखको उकसा सकते है, पैसोंसे वे अफवाहें फैला सकते है, सत्यको भी विवादास्पद बना सकते हैं, असत्यको सत्य स्थापित कर सकते हैं.

“वेमुला” दलित नहीं था तो भी उसको दलित घोषित कर दिया और दलितके नाम पर बहूत देर तक इस मुद्देको उछाला और बीजेपीको जो बदनाम करना था वह काम कर दिया.

देश विरोधी नारोंको जो फर्जी नहीं थे और विवादास्पद भी नहीं थे उनको फर्जी बताया और विवादास्पद सिद्धकरनेकी कोशिस की जो आज भी डी.बी. भाई जैसे कनिष्ठ समाचार माध्यम द्वारा चल रही है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने ६०साल तक हरेक क्षेत्रमें देशको पायमाल किया गया है. नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक अनुयायीओंको, यह बात समज़में नहीं आती कि कोई एक पक्षका एक नेता, दिनमें अठारह घंटा काम करके, ढाई सालमें ठीक नहीं कर सकता. मूर्धन्य लोग यह बात भी समज़ नहीं सकते कि नरेन्द्र मोदी और बीजेपीका कोई उनसे अच्छा विकल्प भी नहीं है. लेकिन ये मानसिक रोगसे पीडित विपक्ष और उसके सहयोगी देशके हितको समज़ने के लिये तयार नहीं है. वे चाहते हैं कि देशमें अराजका फैल जाय और परिणाम स्वरुप हमें मौका मिल जाय कि देखो बीजेपीने कैसी अराजकता फैला दी है.

साम्यवादी लोग देशप्रेम और धर्ममें (रीलीजीयनमें) मानते नहीं है. उनके लिये सैद्धांतिक रीतसे ये दोनों अफीम है. लेकिन ये लोग फिर भी आज़ादी, सहनशीलता, वाणीस्वातंत्र्यकी बात करते है और साथ साथमें देशको तोडनेकी और हिंसाको बढावा देनेकी बातें करते हैं, पत्थरबाजी भी करते हैं या करवाते हैं, मूंह छीपाके देश विरोधी सूत्रोच्चार करते है और जब गिरफ्तार होते है तो जामीन (बेल्स) पर भी जाने लिये तयार होते जाते है. और इन्ही लोगोंको डीबीभाई जैसे समाचार पत्र बुद्धिवादी कहेते हैं. परस्परकी सहायताके लिये साम्यवादी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सांस्कृतिक साथी, कट्टरवादी मुस्लिम, पादरीयोंकी जमात एकजुट होके काम करती है.

इनलोगों द्वारा अपना उल्लु सिधा करने के लिये ट्रोल पैदा किये जाते है. यदि कोई ट्रोल नेता बनने के योग्य हो गया तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस, साम्यवादी और उनके सांस्कृतिक पक्षमे शोभायमान हो जाता है. गुजरातके नवनिर्माणके आंदोलनमें ऐसे कई ट्रोल घुस गये थे, जो आज या तो नहेरुवीयन कोंग्रेसमें शोभायमान है या तो उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका सांस्कृतिक पक्ष बना लिया है.

ऐसे कई स्वकेन्द्री ट्रोल जिनमें कि, लालु, नीतीश, मुल्लायम, ममता, अजित सींघ, केज्रीवाल आज शोभायमान है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः

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गोब्बेल्स अन्यत्र ही नहीं भारतमें भी जिवित है.

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रामायण में ऐसा उल्लेख है कि रावणने राम के मृत्युकी अफवाह फैलायी थी. किन्तु सभी रामकाथाओंमें ऐसा उलेख नहीं है. रावणने अफवाह फैलायी थी ऐसी भी एक अफवाह मानी जाती है. सर्वप्रथम विश्वसनीयन अफवाहका उल्लेख महाभारतके युद्धके समय मिलता है, जब भीमसेन एक अफवाह फैलाता है किअश्वस्थामा मर गया”. यह बात अश्वस्थामाके पिता द्रोणके पास जाती है. किन्तु द्रोणके मंतव्यके अनुसार, भीमसेन विश्वसनीय नहीं है. द्रोण इस घटनाकी सत्यताके विषय पर सत्यवादी युधिष्ठिरसे प्रूच्छा करते है. युधिष्ठिर उच्चरते हैनरः वा कुंजरः वा (नरो वा कुंजरो वा)”. लेकिन नरः शब्द उंचे स्वरमें बोलते है और कुंजरः (हाथी) धीरेसे बोलते है जो द्रोणके लिये श्रव्य सीमा से बाहर था. तो इस प्रकार पांण्डव पक्ष, अफवाह फैलाके द्रोण जैसे महारथी को मार देता है.

अर्वाचिन युगमें गोब्बेल्स नाम अफवाहें फैलानेवालोंमे अति प्रख्यात है. ऐसा कहा जाता है कि, उसने अफवाहें फैलाके शत्रुसेनाके सेनापतियोंको असमंजसमें डाल दिया था.

अफवाह की परिभाषा क्या है?

अफवाहको संस्कृतभाषामें जनश्रुति कहेते है. जनश्रुति का अर्थ है एक ऐसी घटना जिसके घटनेकी सत्यताका कोई प्रमाण नहीं होता है. इसके अतिरिक्त इस घटनाको सत्यके रुपमें पुरष्कृत किया जाता है या तो उसका अनुमोदन किया जाता है. और इस अनुमोदनमें भी किया गया तर्क शुद्ध नहीं होता है. एक अफवाहकी सत्यताको सिद्ध करने के लिये दुसरी अफवाह फैलायी जाती है. और ऐसी अफवाहोंकी कभी एक लंबी शृंखला बनायी जाती है कभी उसकी माला भी बनायी जाती है.

अफवाह उत्पन्न करो और प्रसार करो

कई बार अफवाह फैलाने वाला दोषित नहीं होता है. वह मंदबुद्धि अवश्य होता है. जिन्होंने अफवाहका जनन किया है वे लोग, ऐसे मंदबुद्धि लोगोंका एक प्रसारण उपकरण (टुल्स), के रुपमें उपयोग करते है. ऐसा भी होता है कि ऐसे प्रसारमाध्यमव्यक्ति अपने स्वार्थके कारण या अहंकारके कारण अफवाह को सत्य मान लेता है और प्रसारके लिये सहायभूत हो जाता है.

अफवाहें फैलानेमें पाश्चात्य संस्कृतियां का कोई उत्तर नहीं.

वास्तवमें तो स्वर्ग, नर्क, सेतान, देवदूत, क्रोधित होनेवाला ईश्वर, प्रसन्न होनेवाला ईश्वर, कुछ लोगोंकोये तो अपनवाले हैऔर दुसरोंकोंपरायेकहेने वाला ईश्वर, यही धर्म श्रेष्ठ है, इसी धर्मका पालन करनेसे ईश्वरकी प्राप्ति हो सकती है, इस धर्मको स्विकारोगे तो तुम्हारा पाप यह देवदूत ले लेगा, ये सभी कथाएं और मान्यताएं भी अफवाह ही तो है.

कामदेव, विष्णु भगवानका पुत्र था. “कामका यदि प्रतिकात्मक अर्थ करें तो नरमादामें परस्पर समागमकी वृत्ति को काम कहा जाता है.

भारतीय संस्कृतिमें तत्वज्ञानको प्रतिकात्मक करके, काव्य के रुपमें उसको लोकभोग्य बनानेकी एक प्रणाली है.  इस तरहसे जन समुदायको तत्वज्ञान अवगत करानेकी परंपरा बनायी है.

काम भी एक देव है. देवसे प्रयोजित है शक्ति या बल.

कामातुर जिवकी कामेच्छा कब मर जाती है?

जब कामातुर व्यक्तिको अग्निकी ज्वालाका स्पर्ष हो जाता है, तब उसकी कामेच्छा मर जाती है. लेकिन काम मरता नहीं है. इस प्राकृतिक घटनाको प्रतिकात्मक रुपमें इस प्रकार अवतरण किया कि रुद्रने (अग्निने) कामको भष्म कर दिया. किन्तु देव तो कभी मर नहीं ता. अब क्या किया जाय? तो तत्पश्चात्इश्वरने उसको सजिवोंमे स्थापित कर दिया. बोध है कि कामदेव सजिवमें विद्यमान है.

जनश्रुतियानीकी अफवाह भी जनसमुदायोंमे जिवित है. हांजी, प्रमाण कितना है वह चर्चा का विषय है.

इतिहासमें जनश्रुति (अफवाहें रुमर);

पाश्चात्य इतिहासकारोंने भारतके पूरे पौराणिक साहित्यको अफवाह घोषित कर दिया. पुराणोमें देवोंकी और ईश्वरकी जो प्रतिकात्मक या मनोरंजनकी कथायें थी उनकी प्रतिकात्मकताको इन पाश्चात्य इतिहासकारोंने समझा नही या तो समझनेकी उनकी ईच्छा नहीं थी क्योंकि उनका ध्येय अन्य था. उनको उनकी ध्येयसूची (एजन्डा)के अनुसार, कुछ अन्य ही सिद्ध करनेका था. उस ध्येय सूचि के अनुसार उन्होंने इन सब प्रतिकात्मक ईश्वरीय कथाओंको मिथ्या घोषित कर दिया. और  उनको आधार बनाके भारतमें भारतवासीयोंके लिखे इस इतिहासको अफवाह घोषित कर दिया.

भारत पर आर्योंका आक्रमणः

पराजित देशकी जनताको सांस्कृतिक पराजय देना उनकी ध्येयसूची थी. अत्र तत्र से कुछ प्रकिर्ण वार्ताएं उद्धृत करके उसमें कालगणना. भाषाकी प्रणाली, जन सामान्यकी तत्कालिन प्रणालीयां, प्रक्षेपनकी शक्यताआदि को उपेक्षित कर दिया.   

आर्य, अनार्य, वनवासी, आदि जातियोंमें भारतकी जनताको विभाजित करके भारतीय संस्कृतिको भारतीय लोगोंके लिये गौरवहीन कर दिया. ऐसी तो कई बातें हैं जो हम जानते ही है.

ऐसा करना उनके लिये नाविन्य नहीं था. ऐसी ही अफवाहें फैलाके उन्होने अमेरिकाकी माया संस्कृतिको और इजिप्तकी महान संस्कृतिको नष्ट कर दिया था. पश्चिम एशियाकी संस्कृतियां भी अपवाद नहीं रही है.

आप कहोगे कि इन सब बातोंका आज क्या संदर्भ है?

संदर्भ अवश्य है. भारतीय संस्कृतिकी प्रत्येक प्रणालीयोंमें इसका संदर्भ है और उसका प्रास्तूत्य भी है.

अफवाहें फैलाके दुश्मनोंमें विभाजन करना, दुश्मनोंकी सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट करना, दुश्मनोंकी प्रणालीयोंको निम्नस्तरीय सिद्ध करना और उसका आनंद लेना ये सब उनके संस्कार है. आज भी आपको यह दृष्टिगोचर होता है.

भारतमें इन अफवाहोंके कारण क्या हुआ?

भारतकी जनतामें विभाजन हुआ. उत्तर, दक्षिण, पूर्वोत्तर, हिन्दु, मुस्लिम, ख्रीस्ती, भाषा, आर्य, अनार्य, ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र, वनवासी, पर्वतवासी, अंग्रेजीके ज्ञाता, अंग्रेजीके अज्ञाता  आदि आदिइनमें सबसे भयंकर भेद धर्म, जाति और ज्ञाति.

मुस्लिमोंमें यह अफवाह फैलायी कि वे तो भारतके शासक थे. उन्होने भारतके उपर ०० साल शासन किया है. उन्होंने ही भारतीयोंको सुसंस्कृत किया है. भारतकी अफलातुन इमारतें आपने ही तो बनायी. भारतके पास तो कुछ नहीं था. भारत तो हमेशा दुश्मनों से २५०० सालोंसे हारता ही आया है. सिकंदरसे लेके बाबर तक भारत हारते ही आया है.

ख्रीस्ती और मुसलमानोंने भारतके निम्न वर्णको यह बताया कि आपके उपर उच्च वर्णके लोगोंने अमानवीय अत्याचार किया है. दक्षिण भारतकी ब्राह्मण जनताको भी ऐसा ही बताया गया. इन कोई भी बातोंमे सत्यका अभाव था.

सबल लोग, निर्बल लोगोंका शोषण करे ऐसी प्रणाली पूरे विश्वमें चली है और आज भी चलती है. केवल सबल और निर्बलके नाम बदल जाते है. भारतमें शोषण, अन्य देशोंके प्रमाणसे अति अल्प था. जो ज्ञातियां थी वे व्यवसाय के आधार पर थी. और पूरा भारतीय समाज सहयोगसे चलता था.

धार्मिक अफवाहेः

धर्मकी परिभाषा जो पाश्च्यात देशोंने बानायी है, वह भारतके सनातन धर्म को लागु नहीं पड सकती. किन्तु यह समझनेकी पाश्चात्य देशोंकी वृत्ति नहीं है या तो उनकी समझसे बाहर है.

भारतके अंग्रेजीज्ञाताओंकी मानसिकता पराधिन है. इतिहास, धरोहर, प्रणालीयां, तत्वज्ञान, वैश्विक भावना, आदिको एक सुत्रमें गुंथन करके भारतीय विद्वानोंने भारतकी संस्कृतिमें सामाजिक लयता स्थापित की है. लयता और सहयोग शाश्वत रहे इस कारण उन्होंने स्थितिस्थापकता भी रक्खी है.

किन्तु तथ्योंको समझना और आत्मसात्करना पाश्चात्य विद्वानोंके मस्तिष्कसे बाहर की बात है. इस लिये उन्होंने ऐसी अफवाहें फैलायी कि, हिन्दु देवदेवीयां तो बिभत्स है. उनके उपासना मंत्र और पुस्तकें भी बिभत्स है. वे लोग जननेन्द्रीयकी पूजा करते है. उनके देव लडते भी रहेते है और मूर्ख भी होते है. भला, देव कभी ऐसे हो सकते हैं? पाश्चात्य भाषी इस प्रकार हिन्दु धर्मकी निंदा करके खुश होते हैं.

वेदोंमे और कुछ मान्य उपनिषदोंमे नीहित तत्वज्ञानका अर्क जो गीतामें है उनको आत्मसात तो क्या किन्तु समझनेकी इन लोगोंमें क्षमता नहीं है.

शास्त्र क्या है? इतिहास क्या है? समाज क्या है? कार्य क्या है? इश्वर क्या है? आत्मा क्या है? शरीर सुरक्षा क्या है? आदि में प्रमाणभूत क्या है, इन बातोंको समझनेकी भी इन विद्वानोंमे क्षमता नहीं है. तो ये लोग इनके तथ्योंको आत्मसात्तो करेंगे ही कैसे?  

राजकीय अफवाहेः

दुसरों पर अधिकार जमाना यह पाश्चात्य संस्कृतिकी देन है.

भारतमें गुरु परंपरा रही है. गुरु उपदेश और सूचना देता है. हरेक राजाके गुरु होते थे. राजाका काम सिर्फ गुरुनिर्देशित और सामाजिक मान्यता प्राप्त प्रणालियोंके आधार पर शासन करना था. भारतका जनतंत्र एक निरपेक्ष जनतंत्र था. गणतंत्र राज्य थे. राजाशाही भी थी. तद्यपि जनताकी बात सूनाई देती थी. यह बात केवल महात्मा गांधी ही आत्मसात कर सके थे.

भारतकी यथा कथित जनतंत्रको अधिगत करनेकी नहेरुमें क्षमता नहीं थी. नहेरुको भारतीय संस्कृति और संस्कारसे कोई लेना देना नहीं था. उन्होंनें तो कहा भी था किमैं (केवल) जन्मसे (ही) हिन्दु हूं. मैं कर्मसे मुस्लिम हूं और धर्मसे ख्रीस्ती हूं. नहेरुको महात्मा गांधी ढोंगी लगते थे. किन्तु यह मान्यता  उन्होंने गांधीजीके मरनेके सात वर्षके पश्चात्‍, केनेडाके एक राजद्वारी व्यक्तिके सामने प्रदर्शित की थी.

नहेरुकी अपनी प्राथमिकता थी, हिन्दुओंकी निंदा. नहेरुने हिन्दुओंकी निंदा करनेकी बात, आचारमें तभी लाया, जब वे एक विजयी प्रधान मंत्री बन गये.

हिन्दु महासभा को नष्ट करनेमें नहेरुका भारी योगदान था.

वंदे मातरम्और राष्ट्रध्वजमें चरखाका चिन्ह को हटानेमें उनका भारी योगदान था. गौ रक्षा और संस्कृतभाषाकी अवहेलना करना, मद्य निषेध करना, समाजको अहिंसाकी दिशामें ले जाना, अंग्रेजीको अनियत कालके लिये राष्ट्रभाषा स्थापित करके रखना, समाजवादी (साम्यवादी) समाज रचना आदि सब आचारोंमे नहेरुका सिक्का चला. उन्होंने तथा कथित समाजवाद, हिन्दी चीनी भाई भाई, स्व कथित और स्व परिभाषित धर्म निरपेक्षताकी अफवाहें फैलायी. इन सभी अफवाहोंको अंग्रेजी ज्ञाताजुथोंने स्वकीय स्वार्थके कारण अनुमोदन भी किया.

जनतंत्र पर जो प्रहार नहेरु नहीं कर पाये, वे सब प्रहार इन्दिरा गांधीने किया.

इन्दिरा गांधी, अफवाहें फैलानेमें प्रथम क्रम पर आज भी है.

इन्दिरा गांधीने जितनी अफवाहें फेलायी थी उसका रेकॉर्ड कोई तोड नहीं सकता. क्यों कि अब भारतमें आपात्काल घोषित करना संविधानके प्रावधानोंके अनुसार असंभव है.

सुनो, ऑल इन्डिया रेडियो क्या बोलता था?

एक वयोवृद्ध नेता, सेनाको और कर्मचारीयोंको विद्रोहके लिये उद्युत कर रहा है. (संदर्भः जय प्रकाश नारायणने कहा था कि सभी सरकारी कर्मचारी संविधानके नियमोंसे बद्ध है. इसलिये उनको हमेशा उन नियमोंके अनुसार कार्य करना है. यदि उनका उच्च अधिकारी या मंत्री नियमहीन आज्ञा दें तो उनको वह आदेश लेखित रुपमें मांगना आवश्यक है.) किन्तु उपरोक्त समाचार  ‘एक वयोवृद्ध नेता, सेनाको और कर्मचारीयोंको विद्रोहके लिये उद्युत कर रहा हैसातत्य पूर्वक चलता रहा.

उसी प्रकारआपातकाल अनुशासन हैका अफवाहयुक्त अर्थघटन यह किया गया कि, “आपातकाल एक आवश्यक और निर्दोष कदम है और विनोबा भावे इस कदमसे सहमत है.”

विनोबा भावेने खुदने इस अयोग्य कदमके विषय पर स्पष्टता की थी, “यदि वास्तवमें देशके उपर कठोर आपत्ति है तो यह, एक शासककी समस्या नहीं है, यह तो पुरे देशवासीयोंकी समस्या है. इस लिये देशको कैसे चलाया जाय इस बात पर सिर्फ (सत्ताहीन) आचार्योंकी सूचना अनुसार शासन होना चाहिये. क्योंकि आचार्योंका शासन ही अनुशासन है. “आचार्योंका अनुशासन होता है. सत्ताधारीयोंका शासन होता है.”

विनोबा भावे का स्पष्टीकरण दबा दिया गया. सत्यको दबा देना भी तो अफवाहका हिस्सा है.

एक वयोवृद्ध नेता (मोरारजी देसाई) के लिये प्रतिदिन २० कीलोग्राम फल का खर्च होता है.” यह भी एक अफवाह इन्दिरा गांधीने फैलायी थी. मोरारजी देसाईने कहा कि यदि मैं प्रतिदिन २० कीलोग्राम फल खाउं तो मैं मर ही जाउं.

ऐसी तो सहस्रों अफवायें फैलायी जाती थी. अफवाहोंके अतिरिक्त कुछ चलता ही नहीं था.

समाचार माध्यमों द्वारा प्रसारित अफवाहें

आज दंभी धर्मनिरपेक्षताके पुरस्कर्ताओंने समाचार पत्रों और विजाणुंमाध्यमों द्वारा अफवाहें फैलानेका ठेका नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंके पक्षमें ले लिया है.

मोदीफोबीयासे पीडित नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथीयोंके द्वारा कथित उच्चारणोंसे नरेन्द्र मोदी कौनसा जानवर है या वह कौनसा दैत्य है, या वह कौनसा आततायी है, इन बातों को छोड दो. यह तो गाली प्रदान है. ऐसे संस्कारवालोंने (नहेरुवीयनोंने) इन लोगोंका नाम बडा किया है.

किन्तु भूमि अधिग्रहण विधेयक, आतंकवाद विरोधी विधेयक, उद्योग नीति, परिकल्पनाएं, विशेष विनिधान परिक्षेत्र (स्पेश्यल इन्वेस्टमेंट झोन), आदि विकास निर्धारित योजनाओं के विषय पर अनेक अफवाहें ये लोग फैलाते हैं. इसके विषय पर एक पुस्तक लिखा जा सकता है.

उदाहरण के तौर पर, भूमिअधिग्रहणमें वनकी भूमि नहीं है तो भी वनवासीयोंको अपने अधिकार से वंचित किया है, ऐसी अफवाह फैलायी जाती है. कृषकोंको अपनी भूमिसे वंचित करनेका यह एक सडयंत्र है. यह भी एक अफवाह है. क्यों कि उसको चार गुना प्रतिकर मिलता है जिससे वह पहेलेसे भी ज्यादा भूमि कहींसे भी क्रय कर सकते है.

आतंकवाद विरुद्ध हिन्दु और भारत समाज सुरक्षाः

कश्मिरके हिन्दुओंने तो कुछ भी नहीं किया था.

तो भी, १९८९९० में कश्मिरी हिन्दुओंको खुल्ले आम, अखबारोंमें, दिवारों पर, मस्जिदके लाउड स्पीकरों द्वारा धमकियां दी गयी कि, “इस्लाम कबुल करो या तो कश्मिर छोड दो. यदि ऐसा नहीं करना है तो मौतके लिये तयार रहो.” फिर ३००० से भी अधिक हिन्दुओंकी कत्ल कर दी. और उनके उपर हर प्रकारका आतंक फैलाया. लाख हिन्दुओंको अपना घर छोडना पडा. उनको अपने प्रदेशके बाहर, तंबूओंमे आश्रय लेना पडा. उनका जिवन तहस नहस हो गया है.

ऐसे आतंकके विरुद्ध दंभी धर्मनिरपेक्ष जमात मौन रही, नहेरुवीयन कोंग्रेसनेतागण मौन रहा, कश्मिरी नेतागण मौन रहा, समाचार माध्यम मौन रहा, मानव अधिकार सुरक्षा संस्थाएं मौन रहीं, समाचार पत्र मौन रहें, दूरदर्शन चेनलें मौन रहीं, सर्वोदयवादी मौन रहेंये केवल मौन ही नहीं निरपेक्ष रीतिसे निष्क्रीय भी रहे. जिनको मानवोंके अधिकारकी सुरक्षाके लिये करप्रणाली द्वारा दिये जननिधिमेंसे वेतन मिलता है वे भी मौन और निष्क्रीय रहे. यह तो ठंडे कलेजेसे चलता नरसंहार ही था और यह एक सातत्यपूर्वक चलता आतंक ही है जब तक इन आतंकवादग्रस्त हिन्दुओंको सम्मानपूर्वक पुनर्वासित नहीं किया जाता.  

एक नहेरुवीयन कोंग्रेस पदस्थ नेताने आयोजन पूर्वक २००२ में गोधरा रेल्वे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेसका डीब्बा जलाकर ५९ स्त्री, पुरुष बच्चोंको जिन्दा जला दिया. ऐसा शर्मनाक आतंक, गुजरातमें प्रथम हुआ.

गुजरात भारतका एक भाग है. वह कोई संतोंका मुल्क नहीं है, तो वह भारत में, संतोंका एक टापु बन सकता है. यदि कोई ऐसी अपेक्षा रक्खे तो वह मूर्ख ही है.

५९ हिन्दुओंको जिन्दा जलाया तो हिन्दुओंकी प्रतिक्रिया हुई. दंगे भडक उठे. तीन दिन दंगे चले. शासनने दिनमें नियंत्रण पा लिया. जो निर्वासित हो गये थे उनका पुनर्वसन भी कर दिया. इनमें हिन्दु भी थे और मुसलमान भी थे. मुसलमान अधिक थे. से मासमें, स्थिति पूर्ववत्कर दी गयी.

तो भी गुजरातके शासन और शासककी भरपुर निंदा कर दी गयी और वह आज भी चालु है.

मुस्लिमोंने जो सहन किया उसके उपर जांच आयोग बैठे,

विशेष जांच आयोग बैठे,

सेंकडोंको जेलमें बंद किया,

न्यायालयोंमें केस चले.

सजाएं दी गयी.

इसके अतिरिक्त इसके उपर पुस्तकें लिखी गयीं,

पुस्तकोंके विमोचन समारंभ हुए,

घटनाके विषय को ले के हिन्दुओंके विरुद्ध चलचित्र बने,

अनेक चलचित्रोंमें इन दंगोंका हिन्दुओंके विरुद्ध और शासनके विरुद्ध प्रसार हुआ. इसके वार्षिक दिन मनाये जाने लगें.

२००२ के दंगोमें क्या हुआ था?

२००० से कम हुई मौत/हत्या जिनमें पुलीस गोलीबारीसे हुई मौत भी निहित है.

इसमें हिन्दु अधिक थे. ११४००० लोगोंको तंबुमें जाना पडा जिनमें / से ज्यादा हिन्दु भी थे

से महीनेमें सब लोगोंका पुनर्वसन कर दिया गया.

 

इनके सामने तुलना करो कश्मिरका हत्याकांड १९८९९०

हिन्दुओंने कुछ भी नहीं किया था.

३०००+ मौत हुई केवल हिन्दुओंकी.

५०००००७००००० निर्वासित हुए. सिर्फ हिन्दुओंको निर्वासित किया गया था.

शून्य पोलीस गोलीबारी

शून्य मुस्लिम मौत

शून्य पुलीस या अन्य रीपोर्ट

शून्य न्यायालय केस

शून्य गिरफ्तारी

शून्य दंड विधान

शून्य सरकारी नियंत्रण

शून्य पुस्तक

शून्य चलचित्र

शून्य दूरदर्शन प्रदर्शन

शून्य उल्लेख अन्यत्र माध्यम

शून्य सरकारी कार्यवायी

शून्य मानवाधिकारी संस्थाओंकी कार्यवाही

यदि हिन्दुओंका यही हाल है और फिर भी उनके बारेमें कहा जाता है कि, मुस्लिम आतंकवादकी तुलनामें हिन्दु आतंकवाद से देशको अधिक भय है ऐसा जब नहेरुवीयन कोंग्रेसका अग्रतम नेता एक विदेशीको कहेता है तो इसको अफवाह नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

अघटित को घटित बताना, संदर्भहीन घटनाको अधिक प्रभावशाली दिखाना, असत्य अर्थघटन करना, प्रमाणभान नहीं रखना, संदर्भयुक्त घटनाओंको गोपित रखना, निष्क्रीय रहना, अपना कर्तव्य नहीं निभानाये सब बातें अफवाहोंके समकक्ष है. इनके विरुद्ध दंडका प्रावधान होना आवश्यक है.

और कौन अफवाहें फैलाते हैं?

लोगोंमें भी भीन्न भीन्न फोबिया होता है.

मोदी और बीजेपी या आएसएस फोबीया केवल दंभी धर्मनिरपेक्ष पंडितोमें होता है ऐसा नहीं है, यह फोबीया सामान्य मुस्लिमोंमें और पाश्चात्य संस्कृति से अभिभूत व्यक्तिओमें भी होता है. ऐसा ही फोबीया महात्मा गांधी के लिये भी कुछ लोगोंका होता है. कुछ लोगोंको मुस्लिम फोबिया होता है. कुछ लोगोंको क्रिश्चीयन लोगोंसे फोबीया होता है. कुछ लोगोंको श्वेत लोगोंकी संस्कृतिसे या  श्वेत लोगोंसे फोबिया होता है. वे भी अपनी आत्मतूष्टिके लिये अफवाहें फैलाते है.  ये सब लोग केवल तारतम्य वाले कथनों द्वारा अपना अभिप्राय व्यक्त करके उसके उपर स्थिर रहते हैं.

शिरीष मोहनलाल दवे

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पी.के. ने पीके किया नशा? कथांक – २

विश्वमें एक हिन्दु धर्म ऐसा है कि जिसमें विज्ञान जैसा खुलापन है. यह खुलापन हजारों सालसे है.

हिन्दु धर्ममें वेद प्रमाण है. किन्तु वेदोंको समझना कठिन है. इसलिये उपनिषद है. उपनिषद विशेषज्ञोंके लिये है. इस लिये कृष्ण भगवानने वेदोंके आधारपर उपनिषदोंका दोहन किया और उस दूधका दहीं बनाके तक्रका मंथन करके गीताके स्वरुपमें मक्खन बनाके आम जनताको प्रस्तूत किया. अगर गीतामें वेदोंके साथ कोई विरोधाभाष है तो वेद प्रमाण है. किन्तु वेदप्रमाण और प्रत्यक्ष प्रमाणमें यदि कोई विरोधाभाष है तो जो प्रत्यक्ष है वह प्रमाण है. ऐसा आदि शंकराचार्यने कहा है.

यह हिन्दुओंका खुलापन है. जब ज्ञातिप्रथा अत्यंत जड थी तब भी उसके विरुद्धमें विद्रोह उठाने वाले लोग थे. हिन्दु लोग अपनी प्रणालीयोंमें यदा कदा क्षति पाते है तो वे उन क्षतियोंको सुधारने के लिये सक्षम भी है. उसमें अन्य धर्मीयोंको चंचूपात करनेकी जरुरत नहीं है. अन्य धर्मी स्वयंकी क्षतियों पर आत्मखोज करें वह हि उनके लिये योग्य है.

पी. के. का उद्देश क्या था?
वास्तवमें पी. के. का उद्देश अंधश्रद्धा निर्मूलन है ही नहीं.
हिन्दु धर्ममें एक खुलापन होनेसे वह चर्चाके लिये एक आसान लक्ष्य बनता है. उसके विरोधियोंके लिये यह एक आनंदका विषय बनता है.
हिन्दु धर्म एक भीन्न प्रकारका धर्म है.

अन्य धर्मोंने अपने धर्मोंके आधार पर, धर्मकी जो परिभाषा की है, उस व्याख्या के अनुरुप हिन्दु धर्म नहीं है.

इस लिये अन्य धर्मी लोग हतःप्रभः है.
ये विधर्मी जहां कहीं भी गये उन्होने सौ वर्ष के अंतर्गत उन देशोंके ९५ से १०० प्रतिशतको अपने धर्ममें परिवर्तित कर दिये. किन्तु भारतवर्ष जहां विधर्मी जातियोंनें २०० से ८०० साल तक शासन किया तो भी ८० प्रतिशत भारतवासी हिन्दु धर्मी ही रहे. हिन्दुंओंकी तथा कथित क्षतियों को भरपूर हवा देने पर भी वे हिन्दु ही रहे. यह बात इन लोगोंके लिये आघातजनक है. ये लोग आत्म खोज करने के स्थान पर, बिना सोचे समझे, और बिना हिन्दु धर्मकी गहनताका अभ्यास किये, हिन्दुओंके आचार पर आक्रमण करना पसंद करते है.
सामान्य जनतामें धर्म, ज्ञान के उपर चलता नहीं है किन्तु श्रद्धाके आधार पर चलता है. इन अन्य धर्मीयोंकी व्युह रचना यह है कि अगर सामान्य जनताको हिन्दु धर्मके ज्ञानीयोंसे अलग की जाय तो फिर संख्या के आधार पर इन ज्ञानी लोगोंसे तो निपटा जा सकता है.

मुस्लिमोंने ६०० वर्षतक हिन्दु राजाओंसे संघर्ष किया. ऐसा करते करते वे खुद आधे हिन्दु बन गये. जो मुस्लिम राजा आधे हिन्दु नहीं बने और धर्मांध भी थे उन्होने गरीबोंको और आशितोंको मुस्लिम बनानेके प्रयास किये. कुछ लोगों पर जबरदस्ती भी की, हत्याएं भी की, थोडे सफल भी रहे. किन्तु जितना वे अन्य देशोमें सफल हुए उतना यहां नहीं हो पाये.
इस बातका मुस्लिमोंको अफसोस भी नहीं था. क्यों कि ६०० वर्षके अंतरालमें खुदका राज बचाने की नौबत उनको आगयीं थीं. जब औरंगझेब मृत्युशैया पर था तब मुगल साम्राज्य तहस नहस हो गया था.
अंग्रेजोंने कूट नीति चलायी. भारतीयोंको गलत और विभाजनवादी इतिहास पढाया. अंग्रेजी भाषाको भारतीयों पर ठोक दी. अंग्रेजी भाषाके जाननेवालोंको नौकरीयोंकी सुविधाएं दी. उनका मान बढाया. पाश्चात्य शिक्षाको ही स्विकृति दी. हिन्दुधर्म के पुरस्कर्ताओंको धर्मांध ठहेराया. हिन्दुओंके लिखे पुस्तकोंको सर्वांश नकार दिया.
इतना करने के बावजुद भी, हिन्दुओंके सामने इन लोगोंकी पराजय हर मोड पर निश्चित थी. उन्होने ऐसे हाथोंमें स्वतंत्र भारतका सुकान दिया कि जो संस्कारमें उनकी योजना आगे चलायें.

वह था नहेरु.

उसने विभाजन वादी प्रक्रियाएं चालु रक्खी. और पाश्चात्य पंडितोंने लिखा हुआ इतिहास भी चालु रक्खा. हिन्दुओंको अपमानित करना चालु रक्खा. मुसलमानोमें यह भावना रक्खी की वे हिन्दुओंसे भीन्न है.

मुसलमान समझने लगे कि उनका इतिहास अधुरा है. ख्रिस्ती भी ऐसा समझने लगे कि उनका इतिहास भी भारतमें अधुरा है. क्यों कि दोनों भारत को ९५-१०० प्रतिशत अ-हिन्दु कर नहीं पाये.

मुसलमानोंका इतिहास क्या है?
जहां भी उनका शासन हुआ वहां उन्होने १०० प्रतिशत जनताका धर्म परिवर्तन किया और सबको मुस्लिम बना दिया. यहां तक कि ईजिप्त, सुमेरु बेबीलोनकी सुसंस्कृत संस्कृतियोंका पतन किया. उनके धर्मस्थानोंको तोड दिया. उन धर्मस्थानोंके उपर अपने धर्मस्थान बनाये. वहांकी जनताका जबरदस्तीसे धर्म परिवर्तन किया. मुस्लिम शासकोंने हर जगह ऐसा ही किया था. भारतमें भी उन्होने हजारों देवस्थानोंको नष्ट किया. नालंदा, तक्षशीला, वलभीपुर जैसे विश्वविद्यालयोंको भी पूरी तरह नष्ट किया था. किन्तु भारतमें कई राजाओंने उनको पराजित किया इस लिये वे अपने ध्येयमें १०० प्रतिशत सफल नहीं रहे.

ख्रिस्ती शासकोंने क्या किया?
उन्होनें वही किया जो मुस्लिमोंने आतंकवादी बनके अन्यत्र किया था. उसके उपरांत ख्रिस्ती शासकोंने वहांके आदिवासीयोंका करोडोंकी संख्यामें कत्ल किया. उनकी भाषा भी नष्ट की. आज अमेरिकाके बचे हुए आदिवासी सब ख्रिस्ती है. उनकी मूल भाषा भी विलुप्त हो गयी है. माया-संस्कृतिका और उस धर्मको माननेवालोंका एक आदमी आपको कहीं भी मिलेगा नहीं. केवल इतिहासके पन्नों पर माया संस्कृति और उसकी भाषा आपको मिलेगी.

THEY ARE ENDED UP

किसी भी संस्कृतिको अगर नष्ट करना है तो उसकी भाषा, प्रणालीयां और धर्मस्थानोंको नष्ट करदो तो वह अपने आप नष्ट हो जायेगी.

भारतमें अब तक नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन था. इन्होने हिन्दु धर्मको धर्म निरपेक्षताके नाम पर कई सारे आघात किये. जो विधर्मी शासकोंने भारत पर शतकों वर्ष तक शासन किया था उनके धर्मको माननेवालोंको रीयायतें दी. वे लोग हिन्दुओंका धर्म परिवर्तन कर सके, उसके लिये भी सुविधायें दी. उनके लिये अलग नागरिक नियम बनायें. बहारसे पैसे लाके ये विधर्मी लोग भारतीय जंगलवासीयोंको, पर्वतवासीयोंको और समूद्रके किनारेके वासीयोंको हिन्दुमेंसे परधर्मी कर सके उसके लिये सुविधायें दी.
अगर कोई विधर्मी, हिन्दु धर्मके विरुद्ध बोलें, तो सरकारका रवैया रहा कि, भारत तो, एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है इसलिये सरकार उसमें दखल नहीं करेगी. वाणीस्वातंत्र्य और अपने धर्मका प्रचार करना विधर्मीयोंका अधिकार माना गया. लेकिन कोइ हिन्दु अगर ऐसा कुछ करें तो उसको धर्मांध कहेना, उसकी हर बातको भगवाकरण मानना, और उसकी निंदा करना एक फेशन मनवायी गयी. भगवाकरण शब्दको गाली के रुपमें प्रस्तूत किया ग्या. आदि आदि
हिन्दुओंको नष्ट करनेका अब यही एक उपाय बचा है कि, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको असंजसमें डालो, अपमानित करो, उनकी यातनाओंकोके प्रति दूर्लक्ष्य दो, विभाजित करो.

जो मूर्धन्य है उनमेंसे अधिकतरोंको तो भ्रष्ट करना आसान है. बाकि जो हिन्दु बचें, उनके विरुद्धमें विवाद खडा करके बदनाम किया जायेगा तो वे तो वैसे ही आम जनताकी नजरोंमेंसे गीर जायेंगे. नरेन्द्र मोदीको क्या किया गया? उसके इतिहास के संदर्भमें दिये गये उदाहरणोंको तोडमोड के प्रदर्शित किया गया, और उनको खुब उछाला. उसकी अंग्रेजी भाषाके उपर बेवजह ही मजाक उडाया. वह अगर किसी बात पर प्राथमिकता दें तो उसके उपर विवाद खडा किया जाता है.

एक बार अगर हिन्दु जनसंख्या ६० प्रतिशत हो जाय तो फिर उनको नष्ट करना आसान है.

सत्तालोलुप विधर्मीयों जिनमें कुछ प्रच्छन्न विधर्मी भी है, उनके लिये यह तो बायें हाथ का खेल है. क्यों कि विधर्मी ख्रिस्ती और मुस्लिम संस्कारमें तो एक समान ही है. दोनों समझते है कि उनका ही धर्म ईश्वरको मंजुर है. और विधर्मीयोंको किसीभी साधनसे नष्ट करना ईश्वरको मंजुर है.

फिलहाल विधर्मीयोंने भारतके कई राज्योंमें अपने बहुमत वाले टापु बना दिये है. ये लोग उनमें बसे हिन्दुओंके उपर आतंक करके उनका धर्म परिवर्तन कर देते हैं. अगर उन्होने धर्म परिवर्तन नहीं किया तो उनको घर छोडके भाग जाने पर मजबुर कर देते हैं. केराला, तामिलनाडु, पश्चिम बंगालके कई कस्बोंका यही हाल है. उत्तरपूर्वी राज्यों पर तो इन्होंनें कबजा जमा ही लिया है.

भारतका सामान्य जन विधर्मीयोंके इस प्रकारके आचारोंसे अज्ञात है. क्यों?

क्यों कि,

समाचार माध्यमों पर इन विधर्मीयोंका कब्जा है.

विधर्मी संचालित समाचार माध्यम अपने धर्मकी आतंकवादकी घटनाओंको प्रसारित करते नहीं है.
कश्मिरके हिन्दुओंके उपर किये गये आतंकको किस चेनलने प्रमाणके आधार पर प्रसारित किया था या किया है? एक भी नही.
विधर्मीयोंका आतंकवाद आज भी चालु है.
लेकिन कौनसी चेनल हिन्दुओंके मानव अधिकारकी रक्षाके लिये जागृत है? प्रमाण भान रखना और विधर्मीयोंके मानव अधिकारको मान्यता देना, इन बातोंमें ये मुस्लिम और ख्रिस्ती लोग मानते ही नहीं है.
एक बात सही है कि सामान्य ख्रिस्ती लोग, हिन्दुओंके विरुद्ध वाचाल नहीं है. वे अलग वसाहत नहीं बनाते है और हमारी ही कोलोनीमें हमारी पडोसमें ही रहेते है और हमसे तदृप होके रहेते है. लेकिन उनके जो मूर्धन्य और धर्मगुरु होते है वे सक्रीय होते है. वे लोग अपनी सामान्य जनताको यही कहेते है कि आप लोग, सिर्फ हम कहें उनको ही, चूनावमें वॉट दो. बाकीका काम हम कर देंगे.

मुस्लिमोंको सही रस्ते पर लाना शायद शक्य हो सकता है. किन्तु ख्रिस्तीयोंको सही मार्ग पर लाना कठिन है. क्यों कि उनको तो समझाया गया है कि आपका उद्धार तो हमने ही किया है. इन भारतवासीयोंने तो आपको हाजारों सालों तक यातनाएं ही दी है. क्यों कि वे हिन्दु है.

आप जरुर कहेंगे कि, पी. के. जिन हिन्दुओंने देखी है उनमेंसे कई हिन्दुओंने उसकी प्रशंसा की है. उसका क्या?

यदि आप प्रशंसा करनेवालोंका वर्गीकाण करेंगे तो उसमें दो प्रकारके लोग है. एक सामान्य कक्षाके लोग, जिनमें कुछ लोगोंका एक स्वभाव होता है कि किसी भी बात को “एक साक्षीभाव”के रुपमें देखें.
जब ऐसा होता है और जब उनको हिन्दु धर्मका शास्त्रीय ज्ञान नहीं होता है तो ये सामान्य लोग, दुसरोंकी व्युह रचनाएं नहीं समझ सकते और व्युहरचना करने वालोंका हेतु भी समझ नहीं सकते. अगर उनमें प्रमाणिक प्रज्ञा और प्राथमिकताती प्रज्ञा होती तो वे व्युह रचना बनानेवालों की व्युह रचना समझ सकते.

आप कहेंगे कि, कुछ मूर्धन्योंने भी तो, पी. के. की प्रशंसा की है, जैसे कि एल के अडवाणी. उसका क्या?
आपकी बात सही है. लेकिन आपको ज्ञात होना चाहिये कि दंभी धर्मनिरेक्षता करनेवालोंने एक ऐसी हवा प्रसारित की है कि, अडवाणी एक सोफ्ट और धर्मनिरपेक्ष नेता है. भारतको एक सोफ्ट नेता पसंद है. जैसे कि अटलजी भी एक सोफ्ट नेता था इसलिये वे भारतीय जनतामें स्विकार्य बने…. आदि… आदि..
वास्तवमें यह “सोफ्ट” वाला मामला एक सियासती व्युहरचना है. भारतीय जनताको एक विकल्प चाहिये था. भारतीय जनता नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथीयोंके उनके सीमाहीन भ्रष्टाचार, ठग विद्या, दंभ और कोमवादसे त्रस्त हो गई थी. जब जब भारतीय जनताको विकल्प मिला है, उसने नहेरुवीयन कोंग्रेसको पराजित किया है.

यह बात भी समझ लो कि, नाम बडा हो जानेसे व्यक्ति बडा नहीं हो जाता.

कई बडे व्यक्तिओंमें एक निम्न कक्षाका व्यक्ति होता है.

small people Big name

लालु, माया, मुलायम, जया, करुणा, ममता, नितीश, अडवाणी, केशु, संकरसिंह वाघेला, फारुख, ओमर, मुफ्ती मोहमद, रसिकलाल, जिवराज, हितेन्द्र, ईन्दिरा, राजीव, सोनीया, राहुल …. अगर आप लिखोगे तो एक किताब बन जायेगी.

उपरोक्त लोग दुसरोंके कन्धे पर बैठके बडे नामवाले बने है.

वास्तवमें ये सब निम्न कक्षाके है, और इनलोगोंको नेता मानने वाले तो अति निम्न कक्षाके है.
उसी तरह कई छोटे लोगोंके शरीरमें, एक महान व्यक्ति बैठा हुआ होता है. जैसे नरेन्द्र मोदी, बाबा रामदेव, जोर्ज फर्नाडीस, बाबुभाई जसभाई पटेल, सरदार पटेल, महात्मा गांधी, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती … इन नेताओंकी भी एक सूची बन सकती है जो सामान्य होते हुए भी महान बने.
ऐसे भी कई लोग होते है जो महान होते हुए भी, शक्यताके सिद्धांतके अनुसार महान बन नहीं पाये.

आप कहोगे कि पी. के. में कोई व्युह रचना अगर है भी, तो वह कौन कौन सी व्युह रचना हो सकती है? और ऐसी मान्यताका आधार क्या है?

फिल्म उद्योग काले धनको सफेद करनेका एक सडयंत्र है यह बात सबको ज्ञात है.
पी. के. ने सीनेमा टीकीट का मूल्य बढा दिया था. जो सीनेमाघर खाली थे या “हाउसफुल” नहीं थे उनको भी “फाउसफुल” घोषित किये गये थे.
मान लिजिये अगर एक सीनेमा घरकी बैठकें १००० है. और टीकीटका मूल्य १४० रुपया है. और अगर वास्तवमें २०० टीकीट की ही बीक्री हुई किन्तु हाउसफुल घोषित किया गया तो कितना काला धन सफेद हुआ?
१४० में ४० रुपया सरकारी कर है.
(१) सीनेमा घरके मालिकके पास २०००० रुपये आये.
(२) किन्तु सरकारके हिसाबसे उसके पास १००००० आया.
(३) सरकार सीनेमाघरके मालिक की आवक ८००० मानेगी. उसके उपर ३० प्रतिशत आयकर लगायेगी. यह २४०० रुपये हुए. वास्तविक नफा १६०० था. और वास्तवमें उसको ४८० रुपया आयकर ही भरना था. तो भी उसने २४०० रुपया आयकर भरा. १९२० रुपया अधिक आयकर भरा.
(४) निर्माताने क्या किया? उसने ९२००० का ८ प्रतिशत यानी ७३६० नफा दिखाया, जो वास्तवमें १४७२ था. उसने ५८८८ रुपया ज्यादा दिखाया. मान लो की उसने सीनेमाघरके मालिकने जो १९२० ज्याद कर भरा था उसकी पूर्ती की या न की तो भी उसकी आयका नफा करीब ४००० रुपया हुआ. जो वास्तवमें ८०० रुपया था. ३२०० रुपया नफा ज्यादा दिखाया.
(५) यह तो एक शॉ की बात हुई और नफेकी ही बात हुई. खर्च तो इससे १२ गुना ज्यादा है. वह भी तो काले धनमेंसे खर्च किया था.
युपी और बिहार की जनताने टेक्ष फ्री किया. तो उनको भी हिस्सा मिला होगा जो दानके स्वरुपमें या उनके काले धनमें जायेगा.

यह काला धन सिर्फ काला ही नहीं है. वह लाल भी है. लाल धनसे मतलब है, असामाजीक तत्वोंकी कमाई, जो सुपारी, आउटओफ कॉर्ट प्रोपर्टी सेटलमेन्ट, ड्रग्झ, हवाला आदि सब है. नहेरुवीयन कोंग्रेसने पैदा की हुई दाउद गेंगका बडा नेटवर्क है.

ईन गद्दरोंसे दूर रहो.

शिरीष मोहनलाल दवे
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पी.के. ने पीके किया नशा? कथांक – १

कूर्म पुराण और महाभारतमें एक सुसंस्कृत श्लोक है.

(१) आत्मनः प्रतिकुलानी परेषां न समाचरेत.
इसका अर्थ है;

जो वस्तु, स्वयंके लिये (आप) प्रतिकुल (मानते) है, (उसको आप) दुसरोंके उपर मत (लागु) करो.
इसका अर्थ यह भी है, कि जो आचार आप स्वयंके हितमें नही मानते चाहे कोइ भी कारण हो, तो वह आचार आप अन्यको अपनाने के लिये नही कह सकते.
इसका निष्कर्सका गर्भित अर्थ भी है. यदि आपको अन्य या अन्योंको आचारके लिये कहेना है तो सर्व प्रथम आप स्वयं उसका पालन करो और योग्यता प्राप्त करो.

क्या पी.के. में यह योग्यता है?

पी.के.की योग्यता हम बादमें करेंगे.
सर्व प्रथम हम इस वार्तासे अवगत हो जाय कि, फिलममें क्या क्या उपदेश है. किस प्रकारसे उपदेश दिया है और सामाजिक परिस्थिति क्या है.

संस्कृतमें नीतिशतकमें एक बोध है.
(२) सत्यं ब्रुयात्, प्रियं ब्रुयात्, न ब्रुयात् सत्यं अप्रियं.
सच बोलना चाहिये, किन्तु सत्य ऐसे बोलना चाहिये वह प्रिय लगे. अप्रिय लगे ऐसे सत्य नहीं बोलना चाहिये.
यदि आप स्वयंको उपदेश देनेके लिये योग्य समझते है तो आपके पास उपदेश देनेकी कला होनी आवश्यक है. क्या यह कला पी.के. के पास थी?

पी. के. की ईश निंदा

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(३) पूर्व पक्षका ज्ञानः
यदि एक विषय, आपने चर्चाके लिये उपयुक्त समझा, तो स्वयंको ज्ञात होना चाहिये कि चर्चा में दो पक्ष होते है.
एक पूर्व पक्ष होता है. दुसरा प्रतिपक्ष होता है.
पूर्वपक्ष का अगर आप खंडन करना चाहते है और उसके विरोधमें आप अपना प्रतिपक्ष रखना चाहते है, तो आपको क्या करना चाहिये?
पूर्वपक्ष पहेलेसे चला आता है इसलिये उसको पूर्वपक्ष समझा जाता है. और उसके विरुद्ध आपको अपना पक्ष को रखना है. तो आपका यह स्वयंका पक्ष प्रतिपक्ष है.
अगर आप बौद्धिक चर्चा करना चाहते है तो आपको पूर्वपक्षका संपूर्ण ज्ञान होना चाहिये तभी आप तर्क युक्त चर्चा करनेके लिये योग्य माने जायेंगे. अगर आपमें यह योग्यता नहीं है तो आप असंस्कृत और दुराचारी माने जायेंगे.
असंस्कृति और दुराचार समाजके स्वास्थ्य के लिये त्याज्य है.

(४) चर्चा का ध्येय और चर्चा के विषय का चयनः
सामान्यतः चर्चाका ध्येय, समाजको स्वस्थ और स्वास्थ्यपूर्ण रखनेका होता है. किसको आप स्वस्थ समाज कहेंगें? जिस समाजमें संघर्ष, असंवाद और विसंवाद न हो तदुपरांत संवादमें ज्ञान वृद्धि और आनंद हो उसको स्वस्थ समाज माना जायेगा. यदि समाजमें संघर्ष, वितंडावाद, अज्ञान और आनंद न हो तो वह समाज स्वस्थ समाज माना नहीं जायेगा.
आनंदमें यदि असमानता है तो वह वैयक्तिक और जुथ में संघर्षको जन्म देती है. उसका निवारण ज्ञान प्राप्ति है.
ज्ञान प्राप्ति संवादसे होती है.
संवाद भाषासे होता है.
किन्तु यदि भाषा में संवादके बदले विसंवाद हो तो ज्ञान प्राप्ति नहीं होती है.
ज्ञान प्राप्तिमें संवाद होना आवश्यक है. संवाद विचारोंका आदान-प्रदान है. और आदान प्रदान एक कक्षा पर आने से हो सकता है. विचारोंके आदान प्रदान के लिये उसके नियम होने चाहिये. इन नियम को तर्क कहेते है. कोई भी संवाद तर्कयुक्त तभी हो सकता है जब पूर्वपक्षका ज्ञान हो.

पी. के. स्वयंमें क्या योग्यता है?
स्वयंमें विषयके चयन की योग्यता है?
स्वयंमें विषय की चर्चा करनेकी योग्यता है? स्वयं को स्वयंके पक्षका ज्ञान है?
स्वयंमें पूर्वपक्षका ज्ञान है?
स्वयंके विचारोंका प्रदान तर्कपूर्ण है?

पी. के. अन्यको जो बोध देना चाहता है उस बोधका वह क्या स्वयं पालन करता है?
अंधश्रद्धा निर्मूलन यदि किसीका ध्येय है तो प्रथम समझना आवश्यक है कि अंधश्रद्धा क्या है.
अंधश्रद्धा क्या है?
अंध श्रद्धा यह है कि, कोई एक प्रणाली, जो परापूर्वसे चली आती है या कोई प्रणाली अचारमें लायी गई हो और उस प्रणालीकी उपयोगिता सही न हो और तर्कशुद्ध न हो.
क्या प्रणालीयां और उसकी तर्कशुद्धता की अनिवार्यता सिर्फ धर्म को ही लागु करने की होती है?
क्या अंधश्रद्धा धर्मसे ही संबंधित है?
क्या अंधश्रद्धा समाजके अन्य क्षेत्रों पर लागु नहीं होती है?
अंधश्रद्धा हर क्षेत्रमें अत्र तत्र सर्वत्र होती है.
अंद्धश्रद्धा समाजके प्रत्येक क्षेत्रमें होती है.
अगर अंधश्रद्धा हरेक क्षेत्रमें होती है तो प्राथमिकता कहा होनी चाहिये?

जो प्रणालीयां समाजको अधिकतम क्षति पहोंचाती हो वहां पर उस प्राणालीयों पर हमारा लक्ष्य होना होना चाहिये. इसलिये चयन उनका होना चाहिये.

पी. के. ने कौनसी प्रणालीयों को पकडा?
पी. के. ने धार्मिक प्रणालीयोंको पकडा.
पी. के. ने धार्मिक प्रणालीयोंको क्यूं पकडा?
पी. के. समझता है कि वह सभी धर्मोंकी, धार्मिक प्रणालीयोंके विषयोंके बारेमें निष्णात है. हां जी, अगर उपदेशक निष्णात नहीं होगा तो वह योग्य कैसे माना जायेगा?

पी. के. समझता है कि वह भारतीय समाजमें रहेता है, इसलिये वह भारतमें प्रचलित धार्मिक, क्षतिपूर्ण और नुकशानकारक प्रणालीयोंकी अंद्धश्रद्धा (तर्कहीनता) पर आक्रमण करेगा.
अगर ऐसा है तो वह किस धर्मकी अंधश्रद्धाको प्राथमिकता देगा?
वही धर्म को प्राथमिकता देगा जिसने समाजको ज्यादा नुकशान किया है और करता है.

कौनसे कौनसे धर्म है? ख्रीस्ती, इस्लाम और हिन्दु.

हे पी. के. !! आपका कौनसा धर्म है?
मेरा धर्म इस्लाम है.
आपके धर्ममें कौनसी अंधश्रद्धा है जिसको आप सामाजिक बुराईयोंके संदर्भ, प्रमाणभानके आधार पर प्राथमिकता देंगे?
पी. के. समझता है कि मुस्लिमोंकी अंधश्रद्धा वह शराब बंधी है, और वह भी प्रार्थना स्थलपर शराब बंधी है.
अब देखो पी. के. क्या करता है? वह मस्जिदके अंदर तो शराब ले नहीं जाता है. इस्लामके अनुसार शराब पीना मना है. लेकिन उसकी सजा खुदा देगा. शराबसे नुकशान होता है. अपने कुटूंबीजनोंको भी नुकशान होता है. शराब पीनेवालेको तो आनंद मिलता है. लेकिन पीने वालेके आनंदसे जो धनकी कमी होती है उससे उसके कुटुंबीजनोंको पोषणयुक्त आहार नहीं मिलता और जिंदगीकी सुचारु सुवाधाओंमें कमी होती है या/और अभाव रहेता है. शराब कोई आवश्यक चिज नहीं है. शराबके सेवनके आनंदसे शराबको पीनेवालेको तो नुकशान होता ही है. शराब पीना इस्लाम धर्मने मना है. किन्तु क्या इस्लामकी प्राथमिकता शराबबंधी है?

इस्लाममें क्या कहा है? इस्लामने तो यह ही कहा है कि, इस्लामके उसुलोंका प्रचार करो और जिनको मुसलमान बनना है उन सबको मुसलमान बनाओ. जब तक अन्य धर्मी तुमको अपने घरमेंसे निकाल न दें उसका कत्ल मत करो. उसका अदब करो.
क्या मुसलमानोंने यह प्रणाली निभाई है?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. इसका अर्थ यह है कि भारतमें सब लोगोंको अपना अपना धर्म और प्रणालीया मनानेकी स्वतंत्रता है. इस स्वतंत्रताका आनंद लेनेके साथ साथ दुसरोंको नुकशान न हो जाय इस बातका ध्यान रखना है.

इस बातको ध्यानमें रखते है तो मुसलमान अगर शराब पीये या न पीये उससे अन्य धर्मीयोंको नुकशान नहीं होता है. अगर कोई मस्जिदमें जाता है तो वह वहां ईश्वरकी इबादतके बदले वह शराबी नशेमें होनेके कारण दुसरोंको नुकशान कर सकता है. इसलिये पूर्वानुमानके आधार पर इस्लामने शराब बंदी की है. यह बात तार्किक है. किन्तु यदि इसमें किसीको अंधश्रद्धा दिखाई देती है यह बात ही एक जूठ है.

तो पी. के. ने ऐसे जूठको क्यों प्राथमिकता दी?
प्राथमिकता क्या होनी चाहिये थी?
यदि अंधश्रद्धाको भारत तक ही सीमित रखना है तो, मुसलमानोंने किये दंगे और कत्लोंको प्राथमिकता देनी चाहिये थी. आतंकीयों और स्थानिक मुसलमानोंने मिलकर हिन्दुओंकी धर्मके नाम पर कत्लें की, हिन्दुओंको यातनाएं दी और दे भी रहे है वह भी तो अंधश्रद्धा है.

मुस्लिमोंकी अंधश्रद्धा क्या है?
इस्लामको अपनानेसे ही ईश्वर आपपर खुश होता है. अगर आपने इस्लाम कबुल किया तो ही वह आपकी प्रार्थना कबुल करेगा और आपके उपर कृपा करेगा.
ईश्वर निराकार है इस लिये उसकी कोई भी आकारमें प्रतिकृति बनाना ईश्वरका अपमान है. अगर कोई ईश्वरकी प्रतिकृति बनाके उसकी पूजा करगा तो उसके लिये ईश्वरने नर्ककी सजा निश्चित की है.
इस बातको छोड दो.

अन्य धर्मीयों की कत्ल करना तो अंधश्र्द्धा ही है.

१९९०में कश्मिरमें ३०००+ हिन्दुओंकी मुसलमानोंने कत्ल की. मुसलमानोंने अखबारोंमें इश्तिहार देके, दिवारों पर पोस्टरें चिपकाके, लाउड स्पीकरकी गाडीयां दौडाके, और मस्जीदोंसे घोषणाए की कि, अगर कश्मिरमें रहेना है तो इस्लाम कबुल करो, या तो इस मुल्कको छोड कर भाग जाओ, नहीं तो कत्लके लिये तयार रहो. इस एलान के बाद मुसलमानोंने ३००० से भी ज्यादा हिन्दुओंकी चून चून कर हत्या की. पांचसे सात लाख हिन्दुओंको अपना घर छोडने पर विवश किया. इस प्रकर मुसलमानोंने हिन्दुओंको अपने प्रदेशसे खदेड दिया.
आज तक कोई मुसलमानने हिन्दुओंको न्याय देनेकी परवाह नहीं की. इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ मुसलमानोंकी अंधश्रद्धा ही तो है. लाखोंकी संख्यामें अन्यधमीयोंको २५ सालों तक यातनाग्रस्त स्थितिमें चालु रखना आतंकवाद ही तो है. यह तो सतत चालु रहेनेवाला आतंकवाद है. इससे बडी अंधश्रद्धा क्या हो सकती है?

किन्तु पी. के. ने इस आतंकवादको छूआ तक नहीं. क्यों छूआ तक नहीं?
क्यों कि वह स्वयंके धर्मीयोंसे भयभित है. जो भयभित है वह ज्यादा ही अंधश्रद्धायुक्त होता है. पी. के. खुद डरता है. उसके पास इतनी विद्वत्ता और निडरता नहीं है कि वह सच बोल सके.
कश्मिरके हिन्दुओंको लगातार दी जाने वाली यातनाओंको अनदेखी करना विश्वकी सबसे बडी ठगाई और दंभ है. इस बातको नकारना आतंकवादको मदद करना ही है. उसकी सजा सिर्फ और सिर्फ मौत ही हो सकती है.

तो फिर पी. के. ने किसको निशाना बनाया?

पी. के. ने बुत परस्तीको निशाना बनाया.
लेकिन क्या उसने पूर्व पक्ष को रक्खा? नहीं. उसने पूर्वपक्षको जनताके सामने रक्खा तक नहीं.
क्यों?
क्यों कि, वह अज्ञानी है. अद्वैतवादको समझना उसके दिमागके बाहरका विषय है. अद्वैतवाद क्या है? अद्वैतवाद यह है कि ईश्वर, सर्वज्ञ, सर्वयापी और सर्वस्व है. विश्वमें जो कुछ भी स्थावर जंगम और अदृष्ट है वे सब ईश्वरमें ही है. उसने ब्रह्माण्डको बनाया और आकर्षणका नियम बनाया फिर उसी नियमसे उसको चलाने लगा. उसने मनुष्यको बुद्धि दी और विचार करने की क्षमता दी ताकि वह तर्क कर सके. अगर वह तर्क करेगा तो वह तरक्की करेगा. नहीं तो ज्योंका त्यों रहेगा, या उसका पतन भी होगा और नष्ट भी होगा. ईश्वरने तो कर्मफलका प्रावधान किया और समाजको सामाजिक नियमो बनानेकी प्रेरणा भी रक्खी. जो समाज समझदार था वह प्रणालियोंमें उपयुक्त परिवर्तन करते गया और शाश्वतता की और चलता गया.
हिन्दु समाज क्या कहेता है?
सत्यं, शिवं और सुंदरं
सत्य है उसको सुंदरतासे प्रस्तूत करो तो वह कल्याणकारी बनेगा.
कल्याणकारीसे आनंद मिलता है वह स्थायी है.
आनंद स्थायी तब होता है जब भावना वैश्विक हो. न तो अपने स्वयं तक, न तो अपने कुटुंब तक, न तो अपने समाज तक, न तो अपनी जाति तक, मर्यादित हो, पर वह आनंद विश्व तक विस्तरित हो.
विश्वमेंसे जो कुछ भी तुम्हे मिलता है उसमेंसे विश्वको भी दो (स्वाहा).
यज्ञकी भावना यह है.
शिव तो तत् सत् है. ब्रह्माण्ड स्वरुप अग्निको उन्होने उत्पन्न किया. जो दृश्यमान अग्नि है वह यज्ञ है. अग्नि यज्ञ स्वरुप है. अग्निने आपको जिवन दिया. आप अग्निको भी तुष्ट करें और शांत भी करें. हिन्दुओंके लिये ईश्वरी शक्तियां अपने जिवन प्रणालीका एक भाग है. शिव लिंग एक ज्योति है. उसको जो स्वाहा करेंगे वह धरतीके अन्य जीवोंको मिलेगा. जीनेका और उपभोग करनेका उनका भी हक्क है.
तुम्हे ये सब अपनी शक्तिके अनुसार करना है. तुम अगर शक्तिमान नहीं हो तो मनमें ऐसी भावना रखो. ईश्वर तुम्हारी भावनाओंको पहेचानता है. संदर्भः “शिवमानसपूजा”

यदी पी. के. ने “अद्वैत” पढा होता तो वह शिव को मजाकके रुपमें प्रस्तूत न करता.

मनुष्य एक ऐसी जाति है कि इस जातिमें हरेक के भीन्न भीन्न स्वभाव होते है. यह स्वाभाव आनुवंशी, ज्ञान, विचार और कर्मके आधार पर होते है. इसलिये उनके आनंद पानेके मार्ग भी भीन्न भीन्न होते है. ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्मयोग और भक्तियोग इस प्रकार चार योग माने गये है. अपने शरीरस्थ रासायणोंके अनुसार आप अपना मार्ग पसंद करें. हिन्दुओंके लिये ईश्वरकी उपासना एक प्रकृति उपासनाका काव्य है. काव्य एक कला है जिनके द्वारा तत्त्वज्ञान विस्मृतिमें नही चला जाता है. मूर्त्ति भी ईश्वरका काव्य है.

तो क्या पी. के.ने विषयके चयनमें सही प्राथमिकता रक्खी है?
नहीं. पी. के. को प्राथमिकताका चयन करने की या तो क्षमता ही नहीं थी या तो उसका ध्येय ही अंधश्रद्धाका निर्मूलन करना नहीं था. उसका ध्येय कुछ भीन्न ही था.

प्राथमिकता की प्रज्ञाः
अगर आपके घरमें चार चूहे और एक भेडिया घुस गये है तो किसको निकालनेकी प्राथमिकता आप देंगे?
चूहे चार है. भेडिया एक है. चार संख्या, संख्या एकसे ज्यादा है. तो भी जो ज्यादा नुकशानकारक है वह भेडिया है. इसलिये यहां पर प्रमाणभान स्वरुप संख्या नहीं है. किन्तु नुकशानका प्रमाणभान रखना है.
एक अरब हिन्दु है. २० करोड मुस्लिम है. लेकिन दंगे मुस्लिमोंने ज्यादा किया. अत्याचार भी मुस्लिमोंने ज्यादा किया. इसलिये समाजको होने वाले नुकशानके प्रमाणभानके अधारपर मुस्लिम अंधश्रद्धाको हिन्दुओंकी तथा कथित अंधश्रद्धाके विषयोंकी अपेक्षा ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिये.
किन्तु पी. के. ने ऐसा नहीं किया.

प्रमाणभानकी प्रज्ञाः
शिवलिंग पर दूध चढाना दूधका व्यय है. वह दूध गरीबोंके बच्चोंके मूंहमें जाना चाहिये.

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दूधका व्यय है या नहीं? अगर व्यय है तो भी कितना व्यह है? किसका व्यय है? किसका पैसा है? किसकी कमाई है? क्या ईश्वरके उपर दूध चढाना अनिवार्य बनाया गया है? ऐसा कोई आदेश भी है?
दूधके पैसे तो पी. के.के या औरोंके है ही नहीं. दूधके पैसे तो दूध डालनेवालेके अधिकृत पैसे है. उसको कोई “लेन्ड ओफ लॉ” या और किसीकी सत्तका भी आदेश नहीं है, कि वह दूध डाले. किसी “लॉ ऑफ ध लेन्ड”ने उसे विवश भी नहीं किया है, कि वह दूध डाले. अगर वह दूध न डाले को उसको कोई दंड देनेवाला भी नहीं है. दूधका प्रमाण भी निश्चित नहीं है. वह अपनी ईच्छाके अनुसार दूध डाल सकता है या न भी डाले. वह अपनी मान्यताके अनुसार समझता है कि उसने कोई व्यय नहीं किया. क्यों कि विश्वने उसको दिया है वह उसमेंसे थोडा विश्वको वापस देता है. जो गाय है उससे वह आभारवश है और उसको भी वह सब देवोंका निवास समझता है और वह गायके प्रति आभारवश है (थेन्क फुल है. थेंकलेस नहीं है) वह गायको माता समझता है.
वह यह समझता है कि दूध चढाना कोई पाप नहीं है. खुदके पैसे है. अपने पैसे का कैसे उपयोग करना वह उसकी पसंद है. खुदकी पसंदका निर्णयकरना उसका अधिकार है.

आप कहोगे, वह जो कुछ भी हो, दूधका तो व्यय हुआ ही न? उसका क्या?
वह हिन्दु कहेता है; अगर आप गायको, भैंषको खाते है तो क्या आनेवाले दूधका घाटा नहीं हुआ?
वह आगे कहता है कि हम तो दूधसे अपनी भावना ईश्वरके प्रति प्रकट करते है. और इससे धरतीके जिवजंतुओंकी पुष्टि करते हैं ताकि धरतीकी फलद्रुपता बढे. हम गायका या ऐसे पशुका बली तो नहीं चढाते है ताकि विश्वमें दूधका स्थायी घाटा हो जाय.

वह आगे कहेता है, कि हमारा पावभर दूध ही क्यों आपकी नजरमें आता है?
हम जो टेक्ष भरते है, उनमेंसे एक बडा हिस्सा गवर्नर और राष्ट्रप्रमुखके और उसकी सुविधाओंके और मकानके रखरखावमें जाता है. टेक्ष द्वारा पैसा देना तो हमारे लिये अनिवार्य है और उसके लिये हम विवश भी है. हमारे पैसे का यह व्यय ही तो है. इसका प्रमाण भी तो बहुत बडा है. यह भी तो एक अंधश्रद्धा मात्र है. आपकी प्राथमिकता तो इस व्यय के विषय पर होनी चाहिये. क्यों आपकी प्रमाणभानकी प्रज्ञा इस बातको नहीं देख सकती?

आप खुद करोडों रुपये कमाते हो. आपको खानेके लिये कितना चाहिये? आपको कितना बडा मकान चाहिये? आप दाल चावल रोटी खाके आनंद पूर्वक जिन्दा रह सकते है, और बाकीके पैसोंसे हजारों कीलो दूध गरीबोंको बांट सकते है. लेकिन आप ऐसा नहीं करते है, क्यों कि दूसरे आप जैसे कई लोग ऐसा नहीं करते हैं. आप उन्हीकी प्रणालीको अनुसरते है. तो यह आपकी भी तो अंधश्रद्धा है. आपकी अंधश्रद्धा तो हमसे भी बडी है. आपकी प्राथमिकतामें वह क्यों नही आयी? अगर आप स्वयंकी कमाईको कैसे खर्च करें उसमें अपनी मुनसफ्फी चलाते हैं तो हमारे लिये क्यों अलग मापदंड?
ऐसी तो कई बातें लिखी जा सकती है.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः पी. के. , योग्यता, नीति शतक, सत्य, प्रिय, उपदेश, पूर्वपक्ष, प्रतिपक्ष, खंडन, बौद्धिक चर्चा, तर्क, शुद्ध, संस्कृति, संस्कृत, दुराचारी, शराब बंधी, विषय चयन, प्राथमिकता, संवाद, विसंवाद, वितंडावाद, ध्येय, हेतु, संघर्ष, ज्ञान, अंधश्रद्धा, प्रणाली, आतंक, धर्म, मुस्लिम, इस्लाम, ख्रिस्ती, धर्म निरपेक्ष, मस्जिद, धर्मस्थान, धर्मगुरु, दंगा, कत्ल, ईश्वर निराकार, प्रतिकृति, काव्य, कश्मिर, ओमर, फारुख, अद्वैतवाद, कर्मफल, सत्यं, शिवं, सुंदरं, कल्याणकारी, वैश्विक, प्रमाणभान, प्रज्ञा, लॉ ऑफ ध लेन्ड

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क्या आप भारतके होतैषी है? और फिर भी क्या आप इनमेंसे कोई एक  वर्गमें भी आते हैं?

अगर हां, तो सावधान !

हम वार्ता करेंगे इन वर्गोंकी जो भारतकी संस्कृति और भारतका भविष्य उज्वल बनाने के लिये भयावह है, विघ्नरुप है और बाधक भी है.

ये लोग कौन कौन है?

(१) ये लोग, अपनेको स्वयं प्रमाणित मूर्धन्य मानते है और अति-वाचाल है,

(२) ये लोग भारतके इतिहाससे या तो अर्धदग्ध है, या तो इन लोगोंने क्षतियुक्त इतिहास, ज्यों का त्यों पढ लिया है, और उसका स्विकार करके अपनी मान्यता बना ली है. वे लोग अपनी इस मान्यताके उपर अटल है,

(३) ये लोग अपनी मान्यताओंको नकारने वाले साहित्यका वाचन करना उचित मानते नहीं है, इस लिये आप उनको शिक्षित नहीं कर सकते.

(४) ये लोग बीजेपी या/और नरेन्द्रके विरोधी हो सकते है,

(५) ये लोग देश द्रोही हो सकते है,

(६) ये लोग “जैसे थे” वादी हो सकते है,

(७) ये लोग नकात्मक मानसिकता वाले हो सकते है,

(८) ये लोग मूर्ख और मूढ हो सकते है,

(९) ये लोग नहेरुवंशके चाहक या/और उनकी विचार/आचार धाराके चाहक हो सकते है,

(१०) ये लोग महात्मा गांधीके विरोधी, या/और उनकी विचारधारा के विरोधी हो सकते है,

(११) ये लोग गोडसेके चाहक या/और उसकी आचार धाराके चाहक हो सकते है,

(१२) ये लोग अहिंसा और हिंसा कहां योग्य है और कहां योग्य नहीं है इस बातको अवगत करनेकी वैचारिक शक्ति नहीं रखते है,

(१३) ये लोग भारतके हितमें क्या है और कैसी व्युह रचना बनानी आवश्यक है, इन बातोंको अवगत करनेमें असमर्थ है  या/और,  जिन लोंगोंने नरेन्द्र मोदीका और भारतीय हितोंका पतन करनेकी ठान ली है उनकी व्युहरचनाको अवगत करनेकी उनमें क्षमता नहीं है,

(१४) ये लोग जिन्होनें अपना उल्लु सीधा करनेके लिये भारतकी जनताको और/या भारतको और विभाजित करनेका अटल निश्चय किया है,

(१५) ये लोग जो अपना उल्लु सीधा करनेके लिये, नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके विषयमें आधार हीन, या/और विवादास्पद वार्ताएं बनाते हैं, उछालते हैं और हवा देते हैं,

(१६) ये लोग जो, या तो अपने धर्मके विषयमें अंध है, या परधर्मके बारेमें या/और परधर्मीयोंके विषयमें सतत धिक्कारकी मानसिकता या/और आचार रखते है,  

(१७) ये लोग स्वयंको धर्मनिरपेक्षके रुपमें प्रस्तूत करते हैं, किंतु उनके रोम रोममें, नरेन्द्र मोदी या/और, बीजेपी या/और सनातन धर्म या/और भारतीय प्राचीन धरोहर के प्रति अस्विकृतिकी मानसिकता या/और घृणा है,

(१८) ये लोग एक विवादास्पद तारतम्य की सत्यताको सिद्ध करनेके लिये दुसरे विवादास्पद तारतम्यका आधार लेते है और अपने निर्णय को तर्कयुक्त मानते है और मनवाते है,

(१९) ये लोग पाश्चात्य साहित्य, इतिहास लेखन, दृष्टिकोण, प्रणालियां या/और व्यक्तियोंसे अभिभूत है.

इन सबकी वजह यह है कि, इन लोगोंमें प्रमाणभानकी और प्राथमिकताकी प्रज्ञा नहीं है, इस लिये ये लोग आपसे एक निश्चित विचार बिन्दु पर चर्चा नहीं करपायेंगे और करेंगे भी नहीं. वे दुसरा विचार बिंदु पकड लेंगे,

अगर आप इनमेंसे कोई भी एक वर्गमें आते है और तत्‌ पश्चात्‌  भी स्वयंको भारतके हितमें आचार रखने वाले मानते हैं, तो आप अवश्य आत्ममंथन करें. यदि आप आत्ममंथन नहीं करेंगे तो भारतके हितैषीयोंको आपसे सावध रहेना पडेगा.

(१) ये लोग, अपनेको स्वयं प्रमाणित मूर्धन्य मानते है और अति-वाचाल है;

भारत ही नहीं किन्तुं दुनियाका मध्यमवर्ग सोसीयल मीडीयासे संबंधित है. समाचार माध्यममें भी कई लोग ऐसे है, जो अपनेको मूर्धन्य मानते है और इस प्रकारसे अपने अभिप्राय प्रकट करते रहेते हैं.

समाचारपत्र और विजाणुमाध्यम का प्राथमिककर्तव्य है कि वे जनताकी अपेक्षाएं और मान्यताओंको प्रतिबिंबित करें और उनके उपर सुज्ञ व्यक्तियोंकी तात्विक चर्चा करवायें.

जो व्यक्ति चर्चा चलाता है उसका कार्यक्षेत्र संसदमें जो कार्यक्षेत्र संसदके अध्यक्षका होता है, उसको निभाना है, किन्तु वह ऐसा करनेके स्थानपर अपनेविचारसे विरोधी विचार रखने वाले पक्षके वक्ताके प्रति भेदभावपूर्ण वर्तन करता है. कई बार वह चर्चाको, उस चर्चा बिन्दुसे दूर ले जाता है. चर्चाको निरर्थक कर देता है. बोलीवुडके हिरोकी तरह वह खुदको ग्लोरीफाय करता है. अर्णव गोस्वामी, पंकज पचौरी, करण थापर, राजदिप सरदेसाई, राहुल कनवाल, विनोद दुआ, पून्यप्रसून बाजपाई, आशुतोष, निधि कुलपति, बरखा दत्त, नलिनी सिंग, आदि कई सारे हैं. जिनकी एक सुनिश्चित एवं पूर्वनिश्चित दिशा होती है.  चर्चाद्वारा वे उसई दिशामें हवा बनानेका प्रयास करते हैं. अधिकतर विजाणु संचार प्रणालीयां ख्रिस्ती और मुस्लिम संस्थाओंने हस्तगत की है, इस लिये उनकी दिशा और सूचन पूर्वनिश्चित होता है.

प्रभु चावला, डॉ. मनीषकुमार, संतोष भारतीय, सुरेश चव्हाण जैसे सुचारु रुपसे चर्चा चलाने वाले चर्चा संचालक अति अल्प संख्यामें हैं.

कुछ कटारलेखक (कॉलमीस्ट) होते हैं जो मनमानीसे समाचारपत्रमें वे अपनी अपनी कॉलम चलाते है. वे सब बंदरके व्यापारी होते है.

सोसीयल मीडीयामें कई मध्यम वर्गके, मेरे जैसे लोग भी होते है. जो अपने वेबसाईट ब्लॉग चलाते है और अपनी प्रतिक्रिया देते रहते हैं.

इनमें हर प्रकारके लोग होते हैं. कुछ लोग अ-हिन्दु होते हुए  भी हिन्दु नाम रखकर, हिन्दुओंको असंमंजसमें डालनेका काम करते है. अल्पसंख्यक होने पर भी नरेन्द्र मोदी और बीजेपीको समर्थन करनेवाले बहुत ही कम लोग आपको सोसीयल मीडीयामें मिलेंगे.

(२) ये लोग भारतके इतिहाससे या तो अर्धदग्ध है, या तो इन लोगोंने क्षतियुक्त इतिहास ज्यों का त्यों पढ लिया है और उसका स्विकार करके अपनी मान्यता बना ली है और अपनी इस मान्यताके उपर अटल है;

aryan invasion

अंग्रेज सरकार के हेतु और कार्यशैलीसे ज्ञात होते हुए भी,  अज्ञानी की तरह मनोभाव रखना इन लोगोंका लक्षण है.

यह बात दस्तावेंजों द्वारा सिद्ध हो गई है कि अंग्रेज सरकारका ध्येय भारतीय जनताको विभाजित करके उनको निर्बल बनाना और निर्‍विर्य बनाना था. भारतके प्राचीन ग्रंथोंको आधारहीन घोषित करना. उनको सिर्फ मनगढंत मनवाना, और अ-भारतीयोंने जो लिखा हो या तो खुदने जो तीकडमबाजी चलाके कहा हो उसको आधारभूत मनवाना और उनको ही शिक्षामें संमिलित करना, अंग्रेजोंकी कार्यशैली रही है.

उन्होने पौराणिक इतिहासको नकार दिया. उन्होने “आर्य” को एक प्रजाति घोषित कर दिया. उन्होंने आर्योंकों आक्रमणकारी और ज्यादा सुग्रथित व्यवस्थावाले बताया. भारतमें इन आर्योंका आगमन हुआ, आर्योंको, उनके घोडेके कारण विजय मीली. उन्होने भारतवासी प्रजाको हराया. उन्होने उनके नगर नष्ट किये. उन्होने पर्वतवासी, जंगलवासी आदिवासीयों पर भी आक्रमण किया. सबको दास बनाया.

इस प्रकार भारतको आदिवासी, द्रविड और आर्य जातिमें विभाजित कर दिया. आज करुणानिधि, जयललिता, मायावती, उत्तरपूर्वके वनवासी नेतागण आदि सभी लोगोंकी मानसिकता जो हमें दिखाई देती है, यह बात इस विभाजनवादी मान्यताका दुष्‌परीणाम है.

अंग्रेज सरकारने दुषित, कलुषित और अनर्थकारी इतिहास पढाके, भारतवासीयोंमें अपने ही देशमें अपने ही देशकी उत्तमोत्तम धरोहरसे वंचित रहेनेकी मानसिकता  पैदा की है. इन दुषित मान्यतांके मूल इतने गहन है कि अब अधिकतर विद्वान उसके उपर पुनः विचार करना भी नहीं चाह्ते, चाहे इस इतिहासमें कितना ही विरोधाभास क्यूं न हो.

इन विषयों पर चर्चा करना आवश्यक नहीं है. क्यों कि कई सुज्ञ लोगोंने जिन्होनें भारतीय वेद, उपनिषद और पुराण और आचारोंद्वारा लिखित ग्रंथोंका अध्ययन किया है उन्होनें इस विभाजनवादी मान्यतामें रहे विरोधाभासोंको प्रदर्शित करके अनेक प्रश्न उठाये है. इन प्रश्नोंका तार्किक उत्तर देना उनके लिये अशक्य है. इस विभाजनवादी मान्यताको दयानंद सरस्वती, सायणाचार्य, सातवळेकर और अनेक आधुनिक पंडितोंने ध्वस्त किया है. इसके बारेमें ईन्टरनेट पर प्रचूरमात्रामें साहित्य उपलब्ध है.  

विभाजनवादी अंग्रेज सरकारने भारतीयोंको कैसे ठगा?

जो लोग अपनेको आदिवासी मानते हैं वे समझते है कि भारतमें स्थायी होनेवाले आर्योंने हमपर सतत अन्याय किया है. हमारा शोषण किया है. ये जो नये आर्य (अंग्रेज ख्रिस्ती) आये है वे अच्छे हैं. ख्रिस्ती बनाके उन्होने हमारा उद्धार किया है.

उदाहरण के आधार पर, आप, मेघालयकी आदिवासी “खासी” प्रजा को ही लेलो. पहेले उनकी भाषा सुग्रथित लिपि देवनागरी लिपि की पुत्री, बंगाली लिपिमें लिखी जाती थी. लेकिन जब वहां ख्रिस्तीधर्मका प्रभाव बढा और उनको एक अलग राज्यकी कक्षा मिली, तो उन्होने रोमन लिपि अक्षर लिपि है, जो उच्चारोंके बारेमें अति अक्षम है उस “रोमन” लिपिको अपनी लिपि बना ली.

आदिवासी जनताके मनमें ऐसी ग्रंथी उत्पन्न कर दी है कि उनको भारतीय साहित्य, कला, स्थापत्य और संस्कृति पर जरा भी गौरव और मान  ही न रहे. वे इनको पराया  मानते है.   

मुस्लिम लोग तो अपनेको भारतीय संस्कृतिको अपना अंग मानते ही नहीं है. उनकी तो मान्यता है कि, भारतके आर्य तो एक विचरित जातिके थे. उन्होने भारतकी मूल सुसंस्कृत जनताकी संस्कृतिको ध्वस्त किया. इन भारतीयोंको हमने ही सुसंस्कृत किया है.

भारतीय गुलामी

भारतीय जनता हमेशा युद्धमें हारती ही रही है, कुछ लोग इस गुलामीका अंतराल २३०० से १२०० सालका मानते है.

अलक्षेन्द्रने भारत के एक सीमान्त राजा पर्वतराजको हराया, तो बस समझ लो पूरे भारतकी गुलामी प्रारंभ हो गई. या तो कोई मुस्लिम राजाने १२०० साल पहेले सिंधके राजाको हराया तो १२००से पूरा भारत गुलाम हो गया. बस साध्यं इति सिद्धं. 

वास्तवमें क्या था?  वास्तवमें मुस्लिम राजाओंको ६०० साल तक भारतके अधिकतर राजाओंको हराने के लिये परिश्रम करना पडा था.

विजयनगरका साम्राज्य एक मान्यताके अनुसार मोगल साम्राज्यसे भी बडा था. मुगलसाम्राज्यका जो स्वर्णयुग और मध्यान्हकाल था उस अकबर के समयमें भी, अकबरको राणा प्रतापको हराना पडा था. और बादमें राणाप्रतापने अपना युद्ध जारी रखके चित्तोर को छोडकर अपनी धरती वापस ले ली थी. औरंगझेबके समयमें भी शिवाजी जैसे विद्रोही थे जिन्होने औरंगझेबकी सत्ता को नष्टभ्रष्ट कर दिया था.

एक बात और है. क्या मुगलका समय भारतीयोंके लिये गुलामीका समय था?

शेरशाह के समयसे ज्यादातर मुस्लिम राजाओंने भारतको अपना ही देश समझा है. भारतीय संस्कृतिका आदर किया है. उन्होने ज्यादातर एक भारतीय राजाके संस्कारका ही आचारण किया है. दुराचारी तो कोई न कोई राजा होता है चाहे वह हिन्दु हो या मुस्लिम हो.

किन्तु अंग्रेज सरकारने यह पढाया कि मुस्लिम धर्मवाले राजा मुस्लिम होनेके कारण हिन्दुओंकी कत्लेआम किया करते थे. अगर ऐसा ही होता तो अकबर और औरंगझेबके सैन्यमें हिन्दु सैनिक नहीं होते और शिवाजीके सैन्यमें मुस्लिम सैनिक नहीं होते. इतना ही नहीं, बहादुर शाह जफर जिसका राज्य सिर्फ लालकिलेकी दिवालों तक सीमित था, तो भी  उसके नेतृत्वमें विप्लव करना और उसको भारतका साम्राट बनाना ऐसा १८५७में निश्चित हुआ था. यदि मुस्लिम राजा हिन्दुस्तानी बन गये नहीं होते तो ऐसा नहीं होता. इस बातसे समझ लो कि मुगल साम्राज्य विदेशी नहीं था. जैसे शक, पहलव, गुज्जर, हुन जैसी जातियां भारतके साथा हिलमिल गई, वैसे ही मुस्लिम जनता भी भारतसे हिलमील गई थीं. अंग्रेजोने अत्याचारी मुस्लिम राजओंका इतिहास बढाचढाके पढाया है.

कोई देश गुलाम कब माना जायेगा?

कोई देश तभी गुलाम माना जायेगा जब उसकी धरोहर नष्ट कर दी जाती है. राजा बदलनेसे देश गुलाम नहीं हो जाता. मुस्लिम राजाओंने और मुस्लिम जनताने भी भारतकी कई प्राणालीयोंका स्विकार किया है. अगर आप पंजाबी मुस्लिम (पाकिस्तान सहितके),  और पंजाबी हिन्दु के लग्नमें जाओगे तो पाओगे कि दोंनोमें एकसी पगडी पहेनते है. स्त्रीयां एक ही प्रकारके लग्नगीतें गातीं हैं. ऐसा ही गुजरातमें हिन्दु और मुस्लिमोंका है. हां जी, लग्नविधि भीन्न होती है. वह तो भीन्न भीन्न प्रदेशके हिन्दुओंमे भी लग्न विधिमें भीन्नता होती है.

भारतके मुस्लिम कौन है? अधिकतर तो हिन्दु पूर्वजोंकी संतान ही है. भारत पर मुस्लिम युगका शासन रहा है तो कुछ राजाओंने जबरदस्ती की ही होगी. उन्होने लालच भी दिया  होगा. कुछ लोगोंने राजाका प्रियपात्र बननेके लिये भी धर्म परिवर्तन किया होगा. सम्राट अशोकने ज्यादातर भारतीयोंको बौद्ध बना दिये थे. किन्तु भारतीय तत्वज्ञान और प्रणालीयां इतनी सुग्रथित और लयबद्ध है कि, सनातन धर्मने अपना वर्चस्व पुनः प्राप्त कर लिया. आदि शंकराचार्यने बौद्धधर्मको नष्टप्राय कर दिया.

क्या मुस्लिमोंने हिन्दुओं पर बेसुमार जुल्म किये थे?

अपना उल्लु सीधा करने के लिये कई लोग अफवाहें फैलाते हैं और शासक सम्राट को मालुम तक नहीं होता है. ऐसी संभावना संचार प्रणाली कमजोर होती है वहां तो होता ही है. कभी शासक, इसका लाभ भी लेता है.

१९७५में जब नहेरुवीयन महाराणीने आपातकाल लगाया तो कई सारे नहेरुवीयन नेताओंने और कार्यकरोंने अपना उल्लु सीधा किया था. वैसे तो संचारप्रणाली इतनी कमजोर नहीं थी किन्तु इस नहेरुवीयन फरजंदने सेन्सरशीप लगाके जनतामें वैचारिक आदानप्रदानको निर्बल कर दिया था. जब इन्दीरा हारी तो उसने घोषित किया कि उसने तो कोई अत्याचारके आदेश नहीं दिये थे.

औरंगझेब एक सच्चा मुसलमान था. वह अपनी रोटी अपने पसीने के पैसे से खाता था. राजकोषके धनको वह खुदका धन मानता नहीं था. वह सादगीसे रहता था. शाहजहांके समयसे चालु मनोवृत्तिवाले  अधिकारीओंको औरंगझेबकी नीति पसंद न पडे यह स्वाभाविक है. वे अपना उल्लु सीधा करनेके लिये और औरंगझेबका स्नेह पानेके लिये या तो अपनी शासन शक्ति बढानेके लिये औरंगबके नामका उपयोग करते भी हो. औरंगझेबको कई बातें पसंद भी हो. उसने उच्च ज्ञातिके हिन्दुको मुस्लिम धर्म स्विकृत करने के  लिये (वन टाईम लम्पसम मूल्य) १००० रुपये, और गरीब के लिये हर दिनके ४ रुपये निश्चित किये थे. अगर सिर्फ अत्याचार ही करने के होते तो ऐसा लालच देना जरुरी नहीं था. अवगत करो, कि उस समयमें रु. १०००/- और प्रतिदिन रु.४/- कोई कम मूल्य नहीं था. उन हिन्दुओंको प्रणाम करो कि वे विभाजित होते हुए भी हिन्दुधर्मके पक्षमें रहे.

हां जी, मुस्लिमोने भारतके कई मंदिर तोडे. मंदिर तोडनेका और जहां मंदिर तूटा है, वहां ही अपना धर्मस्थान बनाना यह बात ईसाई और मुस्लिम शासक और धर्मगुरुओंकी नीति और संस्कार रहा है. ऐसा व्यवहार इन दोंनोंने ईजिप्त, पश्चिम एसिया, ओस्ट्रेलीया, अफ्रिका और अमेरिकामें किया ही है. यहां तक कि ईसाईयोंने और कुछ हद तक मुस्लिमोंने भी, पराजितोंकी स्थानिक भाषाको भी नष्ट कर दिया है.

किन्तु भारतमें ये लोग ऐसा नहीं कर पाये. क्यों कि भारतीय तत्वज्ञान, भारतीय भाषाएं और भारतीय प्रणालियां,  भारतीय जिवनके साथ ईतनी सुग्रथित है कि उनको नष्ट करने के लिये ये लोग भारतमें अक्षम सिद्ध हुए.

ऐसा क्यों हुआ? कौटिल्यने कहा था कि एक सरमुखत्यार राजासे एक गणतंत्रका नेता १०० गुना शक्तिशाली है. कारण यह है कि सरमुखत्यार की शक्ति उसका सैन्य है. गणतंत्रके नेताकी शक्ति उसका सैन्य ही नहीं किन्तु साथ साथ जनता भी है. गणतंत्रमें चर्चा और विचारोंका आदानप्रदान क्षेत्र व्यापक रुपसे होता है. और जो निर्णय होता है वह सुग्रथित और उत्कृष्ट होता है. भारतीय सनातन तत्वज्ञान कर्मधर्म, प्रणालियां आदि सहस्रोंसालोंके आचारोंके अनुभवओंसे सुग्रथित है और अपनी एकात्मताकी रक्षा करते हुए परिवर्तन शील भी रहा है. धर्मके बारेमें चर्चा करना और वैश्विक भावना रखकर तर्कबद्ध निर्णय करना, अन्य धर्माचार्योंके मस्तिष्ककी सीमाका क्षेत्र है ही नहीं.

ऐसे कई कारण है कि जिनकी वजहसे सनातन धर्म सनातन बना. हम उनकी चर्चा नहीं करेंगे.

किन्तु हमें किससे क्यूं सावधान रहेना है?

(३) ये लोग अपनी मान्यताओंको नकारने वाले साहित्यका वाचन करना उचित मानते नहीं है, इस लिये आप उनको शिक्षित नहीं कर सकते.

हमें नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंसे सावधान रहेना है, क्योंकि वे कुत्सित इतिहासके आधारपर भारतको विभाजित करने वाले ठग है.

इन नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने महात्मा गांधीवादी जयप्रकाश नारायण तक को, छोडा नहीं था, उनको हम कैसे क्षमा दे सकते है?

इन नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने गांधीजीके सिद्धांतोंका और तथा कथित समाजवाद का नाम मात्र लेकर, अशुद्ध आचारद्वारा सत्ता प्राप्तिका ध्येय  रक्खा है. देशके उपर ६० सालके निरंकुश शासन करने के पश्चात भी, प्राकृतिक संशाधन प्रचूर मात्रामें होने के पश्चात भी, उत्कृष्ट संस्कृति होनेके पश्चात भी, गरीबोंका और समाजका उद्धार किया नहीं है. केवल और केवल खुदकी संपत्तिमें वृद्धि की है. देशको रसाताल किया है. इन लोगोंका तो कभी भी विश्वास करना नहीं चाहिये. ये लोग सदाचारी बन जायेंगे ऐसा मानना देशद्रोह के समकक्ष ही मानना अति आवश्यक है.

यदि आप, अंग्रेजी शासकोंने जो कुत्सित और विभाजनवादी इतिहास पढाया उसको अगर विश्वसनीय मानते है, और उनसे अतिरिक्त इतिहासक सत्यको मानना नकारते है तो, निश्चित ही समझलो, कि भारतका विकास एक कल्पना ही रह जायेगा.

चौथा कौनसा वर्ग है जिनसे हमें सावध रहेना है?

(४) ये लोग बीजेपी या/और नरेन्द्रके विरोधी हो सकते है,

(क्रमशः)

चमत्कृतिः

एक ऐसी बात है कि, औरंगझेबने काशीमें इतने ब्राह्मणोंकी हत्या की, कि, उनके उपवित (जनेउ) का वजन ही, ४० मण था.

चलो देखें उसका कलनः

एक उपवितका वजन = ग्राम

४० मण उपवित (जनेउ).

एक मण = ४० किलोग्राम = ४०००० ग्राम,

४० मण = ४० x ४०००० = १६००००० ग्राम.

एक जनेउ = ग्राम = ब्राह्मण

१६०००००/ = ३२०००० ब्राह्मणोंकी हत्या. क्या बनारसमें तीन लाख ब्राह्मण की हत्या हुई थी?

अगर आधे ब्राह्मणोंको मार दिया, तो बचे लितने. ३२००००. दुसरे किसीकोभी नहीं मारे तो मान लो कि ५० % ब्राह्मण थे और बाकी अन्य थे तो काशीकी जनसंख्या हुई १२६००००/-

इनता बडा नगर उस जमानेमें दुनियामें कहीं नहीं था. आग्रा सबसे बडा नगर था और उसकी जनसंख्या ५००००० पांच लाख थी.

अगर ३० हजार मनुष्योंकी हत्या होती है तो भी निरंकुश महामारी फैल सकती है.

  

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः इतिहास, अंग्रेज, संस्कृति, संस्कार, सुग्रथित, लयबद्ध, तर्कबद्ध, धरोहर, विभाजनवादी, भाषा, धर्म, सनातन, मुस्लिम, ईसाई, राजा शासक, गणतंत्र, कौटिल्य, गुलामी

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हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – ३

A POEM OF PHILOSOPHY

इस लेखको हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – २ के अनुसंधानमें पढें.

हिन्दु और मुस्लिम जनताके बीचमें जो समस्याएं है वह कैसे दूर की जाय?

इन दोनोंको कैसे जोडा जाय?

सर्व प्रथम हम हिन्दुओंकी मुस्लिमोंकी वजहसे जो समस्याएं है उनकी बात करेंगे.

पहेले तो हिन्दुओंको यह निश्चित करना पडेगा कि उनको हिन्दुके होनेके आधार पर क्या चाहिये?

हिन्दु दृष्टि और प्रणाली

हिन्दुस्तानकी संस्कृतिमें जीवन, एक प्रणाली है. वह समय समय पर आतंरिक विचार विनीमयसे बदलती रही है. हिन्दु मानते है कि हमारी प्रणाली, किसी अन्य धर्म-प्रणालीको, जहां तक मानवीय हक्कोंका सवाल है, नुकशान करती नहीं है. हमें हमारी कोई प्रणाली बदलनी है तो वह हम खुद बदलेंको, दुसरे धर्मवालोंको, उसमें चोंच डालनेकी और हमें बदनाम करनेकी जरुरत नहीं है.

हिन्दु क्या मानते है?

हम मानते हैं कि हमारा धर्म ऐसा है जो रीलीजीयन की परिभाषामें आता नहीं है, उसको रीलीजीयनकी परिभाषामें ले कर हमारे धर्मकी प्रत्यक्ष या परोक्ष रुणात्मक टीका करनेकी दूसरोंको जरुरत नहीं है. हमारा मानना है कि हमने धर्मको दो हिस्सेमें बांटा है.

I AM THE COSMOS

एक हैः ईश्वर, आत्मा और जगतको समझना और तर्कसे प्रतिपादन करना. हमने यह काम काव्यात्मक रीतसे किया है. और इन काव्योंको साहित्यमें अवतरित किया है. अन्य धर्म वालोंको समझना चाहिये कि वे संस्कृतभाषाका अध्ययन किये बिना और वेदोंमें रही गुढताको समझे बिना, हमारे तत्वज्ञानमें चोंच न डाले.

दुसरा हैः  हमारी जीवन शैलीः हमने जगतको एक सजीव समझा है. हमारा सामाजिक व्यवहार प्राकृतिक तत्वोंका आदर, संतुलन और आनंदका संमिश्रण है. हम मानते हैं कि जिन तत्वोंके उपर हमारा जीवन निर्भर है उनका हम आदर करें और उनकी कृतज्ञता (अभार) व्यक्त करते रहें ताकि हमारा मन कृतघ्न (डीसग्रेसफुल, नमकहराम) न बने.

उदाहरणः हमारे समाजमें गायका दूध पिया जाता है. बैलसे खेती करते हैं. घोडे से सवारी की जाती है, हिंसक पशु जंगल की रक्षा करता है, वनस्पतिसे खाद्य पदार्थ लेते हैं आदि आदि.. इन सबको हम पूज्य मानते हैं क्यों कि इन सब पर हमारा जीवन निर्भर है. हम इनकी पूजा करेंगे हम उनकी रक्षा करेंगे. मानव समाजका अस्तित्व भयमें आजाय तो अलग बात है.

इसी प्रकार, जिनको निर्जीव समझे जाते है उनको भी हम पूज्य मानेंगे और ऐसे सभीके प्रति हम, कृतज्ञता व्यक्त करनेके हेतु, उत्सव मानायेंगे और आनंद करेंगे. ये आदर्शके प्रति हमारी गति है. हम इसमें आगे जायेंगे किन्तु पीछे नहीं जायेंगे. आपको हमारे उत्सव मनाना हो तो मनाओ और न मनाना हो तो मत मनाओ.

इतिहासिक मान्यताएंः

हम समझते हैं कि हमारी संस्कृतिका और भाषाका उद्भव और विकास यहां भारत वर्षमें ही हुआ. हम समझते हैं कि हम बाहरकी संस्कृति लेकर भारतमें आये नहीं. हम बाहर जरुर गये. हमारे पास इसका आधारभूत तर्क है. अगर इतिहासमें इन बातोंका समावेश करें तो उसमें कोई अयोग्य बात नहीं है. हमारी इन बातोंको हमारी धर्मांतता या कोमवादके साथ जोडना आवश्यक नहीं. हमने दुसरोंसे क्या अपनाया, दुसरोंने हमसे क्या अपनाया ये सब बातें हम हमारे इतिहासमें हमारा तर्क संमिलित करेंगे. हमारी इन बातोंको, धर्मांतता या कोमवादके साथ जोडना अतार्किक है. हम दुसरोंकी मान्यता और तर्क भी इतिहासमें संमिलित करेंगे.

यह हमारी परंपरा है और हम भारतमें उनको कोई भी किमत पर क्षति होने नहीं देंगे. इस परंपरा वाले हम, हमारे देशमें ८० प्रतिशत है. हम किसीके ऐसे कोई कदम उठाने नहीं देंगे और मान्य करने नहीं देंगे जो इनमें क्षति करे.
१९५१में हम हिन्दु जनसंख्यामें ८० प्रतिशत के बारबर थे. इस ८० प्रतिशतसे मतलब है कि हम विधर्मियोंको विदेशोंसे, हमारे देशमें कोई भी हालतमें इस सीमासे उपर घुसने नहीं देंगे कि हम ८० प्रतिशत से कम हो जाय. मुस्लिम अपने धर्मके आधार पर चार पत्नीयां कर नहीं पायेंगे. कुटुंब नियोजन एक समान रुपसे लागु किया जायेगा.

समान आचार संहिताः

नागरिक आचार संहिता और आपराधिक संहिता समान रहेगी. धर्म और जातिके आधार पर कोई राज्य, जिला, नगर, तेहसिल, ग्राम, संकुल आदि की रचना या नव रचना करने दी जायेगी नहीं.

प्रादेशिक वैशिष्ठ्यः

भूमि पुत्रोंको ८० प्रतिशत तक हर क्षेत्रमें प्राथमिकता रहेगी. इसमें अगर कभी अ-पूर्त्ति रही तो यह अ-पूर्त्ति आगे बढायी जायेगी. भूमिपुत्रोंमें धार्मिक भेद नहीं रक्खा जायेगा.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंके बारेमें यह न माने कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दु परिषद, बजरंग दल मुस्लिम विरोधी संस्थाएं है. मुस्लिम जनता यह भी न माने कि, बीजेपी का संचालन यह संस्थाएं करती है. क्योंकि नागरिक और आपराधिक आचार संहिता समान है.

हिन्दु जनता, मुस्लिम जनतासे यह भी चाहती है कि, वे भी पारसी और यहुदीयों की तरह हिंदुओंसे मिलजुल कर रहें. हिन्दुओंका ऐतिहासिक सत्य है कि वे अन्य धर्मोंके प्रति सहनशील, आदरभाव और उनकी रक्षाका भाव रखते है, फिर मुस्लिम जनता पारसी, यहुदी आदि के जैसी मनोवृत्ति क्यों नहीं रख सकती?

भारतकी मुस्लिम जनता हिन्दुओंसे क्या अपेक्षा रखती है?

मेरे मन्तव्यसे उनको अमन, शांति और सुरक्षा चाहिये. इसके अतिरिक्त कुछ हो तो वे बतायें.

शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः

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