विनोबा भावे और कोगींके संबंध
नहेरु और विनोबा भावे
कुछ मूर्धन्योंका कोंगी नेताओंके प्रति और कोंगी पक्षके प्रति भरोसा उठ गया नहीं है. ऐसा लगता है कि ये लोग शाश्वत ऐसा ही मानेंगे.
पक्षकी रचना ध्येय और सिद्धांतोके आधार पर होती है. तथापि इस बातकी कुछ मूर्धन्योंने स्विकृत की है कि, सिद्धांत के अनुसार कार्य करना अब आवश्यक नहीं है. जो जीता वह सिकंदर.
इस विरोधाभाष पर हमने इसी ब्लोग-साईट पर अनेक बार चर्चा की है. सर्वोच्च न्यायालयका निर्णय भी कितना हास्यास्पद था वह भी हमने देखा है. दुःखद बात यह है कि कुछ मूर्धन्य लोग भी, क्यूँ कि (विद्यमान कोंग्रेस पक्ष, जो वास्तवमें कोंगी पक्ष है) इस पक्षके उपर नहेरवंशवादीयोंका एकाधिकार है इसी लिये वही मूल कोंग्रेस पक्ष है. जब स्वतंत्रता मिली तब नहेरु पक्षके प्रमुख थे, और आज उनके वंशज पक्षके प्रमुख है, इसी लिये यह पक्ष मूल कोंग्रेस पक्ष है. ये मूर्धन्य ऐसा मानके, वंशवाद की स्विकृतिका थप्पा भी मारते है. इन मूर्धन्योंकी मानसिकता ऐसी क्यूँ है? यह बात संशोधनका विषय है.
महात्मा गांधीके दो पट्टाशिष्य
आम जनताका सामान्यतः मन्तव्य यह है कि महात्मा गांधीके दो पट्टशिष्य थे. एक था जवाहरलाल नहेरु और दुसरा था विनोबा भावे.
वास्तवमें यह एक विरोधाभाष है. कहाँ नहेरु के विचार और आचार, और कहाँ विनोबा भावे के विचार और आचार?
नहेरु एक दंभी, एकाधिकारवादी, पूर्वग्रहवादी और गांधीजीको सत्ता प्राप्त करनेका सोपान-मार्ग समज़ने वाले थे. वे गांधीको नौटंकीबाज़ मानते थे. नहेरुके विचार और आचारमें प्रचंड विरोधाभास था. गांधीजी इस सत्यसे अज्ञात नहीं थे. उन्होंने अपनी भाषामे “अब जवाहर मेरी भाषा बोलेगा…” बोलके नहेरुको अवगत कर दिया था कि नहेरुको अपने आचारमें परिवर्तन करना आवश्यक है. किन्तु नहेरुने माना नहीं. अन्तमें गांधीने कोंग्रेसका विलय करनेकी बात कही और उसको सेवासंघमें परिवर्तन करनेको कहा और उसके नियम भी बनाये.
महात्मा गांधीने विनोबा भावेको कोई सूचन किया नहीं. क्यों कि विनोबा भावेके विचार और आचारके बीच कोई विरोधाभाष नहीं था.
नहेरु और विनोबा इन दोनोंकी तुलना ही नहीं हो सकती. जैसे शेतान और जीसस की तुलना नहीं हो सकती.
नहेरु और विनोबा के आपसी संबंध
नहेरु और विनोबा के आपसी संबंध पर चर्चा करें, उसके पूर्व हमें विनोबा कैसे थे इस बातसे अवगत होना आवश्य्क है.
आम जनताकी मान्यता यह थी कि विनोबा भावे, महात्मा गांधीके अपूर्ण कार्य पूर्ण करेंगे.
महात्मा गांधीके अपूर्ण कार्य क्या थे?
(१) कश्मिरका विलय भारतमें करना,
(२) कश्मिरकी समस्याको युनोमें नहीं ले जाना,
(३) कोंग्रेसका विलय सेवा संघमें करना,
(४) विभाजित भारतको पुनः अखंड भारत बनाना
(५) भारतीय आम प्रजाका दारीद्र्य दूर करना,
(६) गौवंशकी हत्या रोकना,
(७) शराब बंदी करना,
(८) शासनमें पारदर्शिता लाना,
(९) शासनको जनताभिमुख करना,
(१०) अहिंसक समाज की स्थापना करना. ग्रामोद्योग आधारित उत्पादन, निसर्गोपचार, सादगी इसके अंग है.
(११) भारतीय संस्कृतिके अनुरुप जनताको शिक्षित करना, मातृभाषामें शिक्षण देना, शिक्षाको स्वावलंबी करना (उत्पादन आधारित)
(१) से (४) बातका उल्लेख तो मनुबेन गांधीने अपनी गांधीकी अंतिम तीन मासकी डायरी “दिल्लीमें गांधी” पुस्तकमें किया ही है. सेवा संघकी स्थापना तो हो गई. नहेरु और उनके साथी सत्ताका त्याग करके “सेवा संघ”में गये नहीं. लेकिन सभी सर्वोदय कार्यकर उसमें गये.
विनोबा भावे पाकिस्तान नहीं गये.
विनोबा भावे कर्मशील तो थे. किन्तु प्रथम वे एक विचारशील व्यक्ति अधिक थे. उन्होंने गांधी विचारको आगे बढाया. उनका अंतिम लक्ष्य शासकहीन शासन था. अहिंसक समाजका अंतिम लक्ष्य यही होना आवश्यक है.
भूमिका आधिकारित्त्व (ओनरशीप ओफ लेन्ड)
भूमि पर किसका अधिकार होना चाहिये?
विनोबा भावे का कहेना था कि भूमि तो हमारी माता है. माताके उपर किसीका अधिकार नहीं हो सकता. “माता पर अधिकार” सोचना भी निंदनीय है.
नहेरुकी सरकारने तो “जो जोते उसकी ज़मीन” ऐसा नियम कर दिया और उसका अमल करना राज्योंके उपर छोड दिया.
युपी, बिहार, बेंगाल, एम.पी. जैसे राज्योमें तो खास फर्क पडा नहीं. ज़मीनदारी प्रथा में बडा फर्क नहीं पडा. ठाकुर और पंडित का दबदबा कायम रहा. वहाँ ज़मीनदारोंने अपने पोतों पोतीयों तक ज़मीन बांट दी. गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्योंमें जहाँ बडे बडे ज़मीनदार ही नहीं थे फिर भी वहाँ जोतने वालोंको अधिक फायदा हुआ.
भूदान
ऐसी शासकीय अराजकतामें विनोबा भावे को भूदानका विचार आया. विनोबा भावे तो अहिंसावादी थे. उन्होंने लोगोको कहा कि आपके उपर कोई दबाव नहीं है. आप हमें कुछ न कुछ भूमि दानमें देदो. इस कामके लिये विनोबा भावेने गांव गांव और पूरे देशमें पदयात्रा की. उन्होंने हर गांवमें गांव वालोंसे समिति बनायी और जिन किसानोंके पास ज़मीन नहीं थी उनको ज़मीन दिलायी. विनोबाके इस पुरुषार्थसे जो ज़मीन मिली वह नहेरुके सरकारी कानूनसे मिली ज़मीन से कहीं अधिक ही थी. जो व्यक्ति नीतिमान होता है उसके परिणाम हमेशा अधिक लाभदायी होते है.
एक बात गौरसे याद रक्खो. सरकारको तो भूदानमें मिली हुई ज़मीनको लाभकर्ताके नाम ही करना था. यानी कि कलम ही चलाना था. लेकिन यह काम सरकार दशकों तक न कर सकीं. महेसुल विभाग (रेवन्यु कलेक्टर) कितना नीतिहीन है उसका यह एक ज्वलंत उदाहरण है. विनोबा भावेने नहेरुका इस बात पर ध्यान आकर्षित किया था. लेकिन हम सब जानते है कि नहेरु केवल वाणीविलासमें ही अधिक व्यस्त रहेते थे और वे जब फंस जाते थे तब वे वितंडावाद पर उतर आते थे या तो गुस्सा कर बैठते थे.
हारकर विनोबा भावे ने कुछ इस मतलबका कहा कि “मेघ राजा तो पानी बरसाते बरसाते चले जाते है. उनके दिये हुए पानीसे खेती करना तो मनुष्यके दिमागका काम है. सरकारी कलम चलाना मेरा काम नहीं. मैंने तो मेरा काम कर दिया”
सहकारी खेतीः
नहेरु ने सहकारी खेतीका कानून बनाया. और सहकारी खेतीको कुछ रियायतें देनेका का प्रावधान भी रक्खा.
तब विनोबा भावेने क्या कहा?
यह सरकार या तो ठग है या तो यह सरकार बेवकुफ है. इन दोनोंमेंसे एकका तो उसको स्विकार करना ही पडेगा. मेरी पांच संताने थीं. मैंने कुछ मित्रोंको सामेल किया ताकि सरकारको ऐसा न लगे कि मैं फ्रोड करता हूँ. फिर हमने एक सहकारी खेत मंडली बनाई और सरकारी रियायतें ले ली.
क्या कोई इसको सहकारी खेती कहेगा? यह तो सरकारको बेवकुफ बनानेका धंधा ही हुआ. सहकारी खेतीमें तो पूरा गाँव होना चाहिये.
पाकिस्तानमें मार्शल लॉ
१९५४में पाकिस्तानके प्रमुख इस्कंदर मीर्ज़ा सर्वसत्ताधीश बन गये.फिर उन्होंने भारतको सूचन दिया कि चलो हम भारत-पाकिस्तानका फेडरल युनीयन बनावें.
नहेरुने इसको धुत्कार दिया. फेडरल युनीयनके बारेमें उन्होंने कहा कि क्या एक जनतंत्रवादी देश और एक लश्करी शासनवाले देशके साथ फेडरल युनीयन बन सकता है? नहेरु लगातार लश्करी-शासनकी निंदामें व्यस्त रहेने लगे.
तब विनोबा भावे ने क्या कहा?
जनतंत्रवादी देश और लश्करी शासनवाले देश भी मिलकर फेडरल युनीयन बना ही सकते है. दो देशोंका मिलना ही तो मित्रता है उसको आप कुछ भी नाम देदो. क्या भारतकी चीन और रुससे मित्रता नहीं है. वे कहाँ जनतांत्रिक देश है? भारत और पाकिस्तान मिलकर एक फेडरल युनीयन अवश्य बना सकते है.
नहेरुको विनोबा भावे का स्वभावका पता था. नहेरु तर्कबद्ध संवादमें मानते नहीं थे. क्यूँ कि वह उनके बसकी बात नहीं थी. लेकिन वे १०० प्रतिशत सियासती थे. समाचार माध्यम और उनका समाजवादी ग्रुप, उनका शस्त्र था. विनोबा भावे को सरकारी संत नामसे पहेचाने जाते थे. उनके क्रांतिकारी विचोरोंको प्रसिद्धि नहीं दी जाती थीं.
१९६२का भारत चीन युद्ध
चीनने भारतकी ९१००० चोरसमील भूमि आसानीसे जीत ली. वास्तवमें चीनका दावा ७१००० चोरस मील पर ही था. जब चीनके ध्यानमें यह बात आयी तो उसने अतिरिक्त २०००० चोरसमील भूमि खाली कर दी. युद्ध विराम भी चीनने ही घोषित किया था. कमालकी बात यह है कि जिस युद्धमें भारतने ९१००० चोरस मिल भूमि हारी, वह एक अघोषित युद्ध था.
विनोबा भावे सियासती नहीं थे. लेकिन वे खिलाडी अवश्य थे. उन्होंने चीनकी प्रशंसा की. “चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसने विजेता होते हुए भी युद्ध विराम किया. इतना ही नहीं चीन एकमात्र देश है जिसने जीती हुई भूमि अपने दुश्मनको बिना मांगे वापस कर दी.”
नहेरु तो “दुश्मनने हमें दगा दिया … दुश्मनने हमें पीठमें खंजर भोंका … “ ऐसा प्रलाप करनेमें व्यस्त थे.
विनोबा भावेका संदेश वास्तवमें नहेरुके लिये था कि ज्यादा बकवास मत करो. युद्ध विराम, तुमने तो नहीं किया है. तुम तो युद्ध कर सकते हो.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे