Posts Tagged ‘राजिव गांधी’
दायें पप्पु, बांये पप्पु, आगे पप्पु, पीछे पप्पु बोले कितने पप्पु?
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, Social Issues, tagged अनुच्छेद ३६ए, अनुच्छेद ३७०, अनुबंध, आगे पप्पु, आतंकवादी प्रवृत्तियां, आदित्य ठाकरे, आदित्य ठाकरेका योगदान, इतिहास, इन्डो-पाक युद्ध, इन्दिरा गांधी, उद्धव ठाकरे, उद्धव ठाकरेका योगदान, एक करोड निर्वासित, एग्रीमेन्ट, कश्मिर, कोंगी उत्पादन, खर्चा वसुली, गांधीजी, चीन, जनतांत्रिक अधिकारोंसे वंचित, जवाहरलाल नहेरु, डीरेक्ट हिरो बना दो, तिबट, तृतीय कक्षामें उत्तिर्ण, दायें पप्पु, पंचशील, परामर्शदाता, पाकिस्तान अधिकृत काश्मिर, पीछे पप्पु, पेनल्टी, प्रियंका, बंग्लादेश मुक्तिवाहिनी, बायें पप्पु, बाला साहेब ठाकरे, बीजेपीका साफाल्य, बोलो कितने पप्पु, भयस्थान, मुख्य मंत्री, मोतीलाल नहेरु, राजिव गांधी, राहुल, विशिष्ठ योग्यता, शिवसेनाका साफल्य, शेख अब्दुल्ला, संकेत, संसदमें जूठ बोला, सप्टेंबर १९४९, सरदार पटेल, सिमला डील, सेनाने धर्म निभाया, सोनिया, १० लाख मुस्लिमोंकी कत्ल, १९५१, १९६२, १९७१, ३० लाख हिन्दुओंकी कत्ल on November 8, 2019| Leave a Comment »
मीडीया वंशवादको बढवा देता है
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, Social Issues, tagged अग्रता क्रम, अप्रच्छन्न, आचार्य क्रिपलानी, आर्थिक स्थिति, इन्दिरा गांधी, उद्धवकी संतान, काले कर्म, कोंग्रेसके अस्थायी प्रमुख, कोंग्रेसमें अनैतिकताका प्रवेश, कौशल्य और अनुभव, खानपान, गुन्डों और आतंकी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, चारित्र्यका पतन, चिंतन, चिंतनके विषय, जगजिवनराम, जवाहरलाल नहेरु, दुश्मन, देशहितकी अपेक्षा, नंगेको नहाना क्या और निचोडना क्या, निम्न स्तर, निर्बल और अस्थिर सरकार, पठन, पिताके गुण, प्रच्छन्न, प्रतिभा पाटिल, प्राकृतिक अभिधृति, प्राकृतिक घटनाएं, प्राकृतिक वातावरण, बाला साहेब ठाकरे, भारत तेरे टूकडे होंगे, ममता बेनर्जी, मायावती, मित्र और मित्र-मंडल, मीडीया, मुफ्ती मोहम्मद, मुलायम, मोतीलाल नहेरु, मोदीके विरोधी, मोररजी देसाई, राजकारणीय, राजकीय पदका वारिस, राजिव गांधी, राममनोहर लोहिया, राहुल, रोग, वंशवाद, वंशवादकी भर्त्सना, वंशवादीयोंकी व्युहरचना, व्यवसायको उच्चस्तर पर ले जाना, शरद पवार, शिक्षा, शेख अब्दुल्ला, संजय गांधी, सरकारी आवास, सोनिया, स्थावर जंगम, स्नानागारके उपकरण, १४ मालवाहक भरके गृहगृहस्थीका सामान, १९१९, १९२८, १९२९, १९३६, १९३७, १९४६, १९५४ on October 31, 2019| Leave a Comment »
मीडीया वंशवादको बढवा देता है
बीजेपीका शस्त्रः
राष्ट्रवादी होने के कारण बीजेपीका, विपक्षके विरुद्ध सबसे बडा आक्रमणकारी शस्त्र, वंशवादका विरोध था और होना भी आवश्यक है. वंशवादने भारतीय अर्थतंत्रको और नैतिकताको अधिकतम हानि की है.
वंशवाद क्या है?
हम केवल राजकारणीय वंशवादकी ही चर्चा करेंगे.
अधिकतर लोग वंशवादके प्रकारोंके भेदको अधिगत नहीं कर सकते.
पिताके गुण उसकी संतानोंमे अवतरित होते है. सभी गुण संतानमें अवतरित होनेकी शक्यता समान रुपसे नहीं होती है. वास्तवमें तो माता-पिताके डीएनएकी प्राकृतिक अभिधृति (टेन्डेन्सी) ही संतानमें अधिकतर अवतरित होती है. अधिकतर गुण तो संतान कैसे सामाजिक और प्राकृतिक वातावरणमें वयस्क हुआ उसके उपर निर्भर है. उनमें आर्थिक स्थिति, खानपान, शिक्षा, पठन, चिंतन, चिंतनके विषय, मित्र और मित्र-मंडल, दुश्मन, रोग, प्राकृतिक घटनाएं आदि अधिक प्रभावशाली होता है.
माता-पिताकी संपत्ति का वारस तो संतान बनती ही है, किन्तु, पढाई, आगंतुक विषयोंके प्रकारोंका चयन और उनके उपरके चिंतन और प्रमाण, नैतिकता और श्रेयके प्रमाण की प्रज्ञा आदिको तो संतानको स्वयं के अपने श्रम से विकसित करना पडता है.
स्थावर-जंगम संपत्ति तो संतानको प्राप्त हो जाती है. इसमें व्यवसाय भी संमिलित है, लेकिन व्यवसायको अधिक उच्चस्तर पर ले जानेका जो कौशल्य है उसके लिये तो संतानको स्वयं कष्ट उठाना पडता है.
“संतानको पिताके राजकीय पदका वारस बनाना” इस प्रणालीको पुरस्कृत करनेवालोंको हम वंशवादी कहेंगे और उनकी चर्चा करेंगे.
वंशवादकी प्रणालीको पुरस्कृत किसने किया?
नहेरुने वंशवादकी प्रणालीका प्रारंभ किया. वैसे तो मोतीलाल नहेरुने वंशवाद का आरंभ किया था. १९१९में मोतीलाल नहेरु कोंग्रेसके प्रमुख बने थे. किन्तु १९२०में जवाहरलाल नहेरु कोंग्रेसके प्रमुख बन नहीं पाये थे. तत् पश्चात्, १९२८में भी मोतीलाल नहेरु कोंग्रेस पक्षके प्रमुख बने थे. १९२९में जवाहरलाल नहेरु कोंग्रेसके अस्थायी प्रमुख बने थे. १९३६में पुनः अस्थायी प्रमुख बने और १९३७में बने. १९४६में महात्मा गांधीके सूचनसे फिरसे हंगामी प्रमुख बने. फिर १९५१से सातत्य रुपसे १९५४ तक जवाहरलाल नहेरु कोंग्रेसके प्रमुख बने रहे.
इसके अंतर्गत कालमें नहेरु (जवाहरलाल)ने कोंग्रेसके प्रमुखपदकी सत्ता पर्याप्तरुपसे अशक्त कर दी थी. नहेरुने अपनी दुहिता (इन्दिरा) को भी कोंग्रेस पक्ष की प्रमुख बना डाला था. इस अंतरालमें कोंग्रेसमें क्रमांक – एकका पद प्रधान मंत्रीका हो गया था.
प्रच्छन्न और अप्रच्छन्न गुणः
भारतके उपर चीनकी अतिसरल विजयके बाद शिघ्र ही नहेरुने सीन्डीकेटकी रचना कर दी थी. इससे १९६५में लाल बहादुर शास्त्रीजीकी मृत्युके बाद इन्दिराको (शोक कालके पश्चात्) नहेरुकी वारसाई (दहेजरुप) में प्रधान पद मिला.
कौशल्य और अनुभवमें इन्दिरा गांधी अग्रता क्रममें कहीं भी आती नहीं थी. फिर भी उसको प्रथम क्रमांक दे दिया. जो दुर्गुण नहेरुमें प्रच्छन्न रुपसे पडे हुए थे वे सभी दुर्गुण इन्दिरामें प्रकट रुपसे प्रदर्शित हुए. नहेरुकी पार्श्व भूमिकामें स्वातंत्र्यका आंदोलन का उनका योगदान था. इस कारणसे नहेरु प्रकट रुपसे स्वकेन्द्री नहीं बन पाये. किन्तु इन्दिरा गांधीके लिये तो “नंगेको नहाना क्या और निचोडना क्या”. वह तो कोई भी निम्न स्तर पर जा सकती थी. इन्दिराका स्वातंत्र्यके आंदोलनमें ऐसा कोई योगदान ही नहीं था कि उसको स्वकेन्द्रीय बननेमें कुछ भी लज्जास्पद लगें.
नहेरु और वंशवाद
नहेरुने कई काले कर्म किये थे इस लिये उनके काले कर्मोंको अधिक प्रसिद्धि न मिले या तो उनको गुह्य रख सकें, इस लिये नहेरुका अनुगामी नहेरुकी ही संतान हो यह अति आवश्यक था. इन्दिराकी वार्ता भी ऐसी ही है. संजय गांधी राजकारणमें था. संजय गांधीकी अकालमृत्यु हो गई.
वंशवादसे यदि पिताके/माताके सत्तापदकी प्राप्ति की जाती है तो सामाजिक चारित्र्यका पतन भी होता है और देशको हानि भी होती है.
इन्दिरा गांधीको नहेरुका सत्तापद मिलनेसे जो लोग इन्दिरासे कहीं अधिक वरिष्ठक्रमांकमें थे, उनकी सेवा देशको मिल नहीं सकी. जगजिवनराम, आचार्य क्रिपलानी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, मोररजी देसाई, राममनोहर लोहिया … आदि वैसे तो कभी न कभी कोंग्रेसमें ही थे. किन्तु उनका अनादर हुआ तो उनको पक्षसे भीन्न होना पडा. वंशवादके कारण, पक्षमें कुशल व्यक्तित्व वालोंकी अवहेलना होती ही रहेती है. इसके कारण पक्षके अंदरके प्रथम क्र्मांककी संतानको छोड कर अन्य किसीको, चाहे वह कितनाही कुशल और अनुभवी क्यूँ न हो, उसको सर्वोच्च पदकी कामना नहीं करना है. इसके कारण पक्षके अन्य नेता या तो पक्ष छोड देते है, या तो पक्षमें रहकर, अपनी सीमित लोकप्रियताका प्रभाव प्रदर्शित करते रहेते है और इसी मार्गसे धनप्राप्ति करते रहेते है. नैतिकताका पतन ऐसे ही जन्म लेता है.
कोंग्रेसमें अनैतिकताका प्रवेश कैसे हुआ?
नहेरुने “सेनाकी जीपोंके क्रयन (खरीदारीमें)” सुरक्षा मंत्रीको आदेश जाँचका आदेश न दिया. तो ऐसी प्रणाली ही स्थापित हो गई. इन्दिरा गांधीने सोचा की ऐसा तो होता ही रहेता है. तो इन्दिरा गांघीने सरकारी गीफ्टमें मिला मींककोट अपने पास रख लिया. तत् पश्चात् ऐसा आचार सर्वमान्य हो गया. नेतागण स्वयको मिला सरकारी आवास ही छोडते नहीं है. दो दो तीन तीन सरकारी आवास रख लेते है और किराये पर भी दे देते है. यदि सरकार खाली करवायें तो स्नानागारके उपकरण, टाईल्स, एसी, कारपेट, फर्नीचर … उठाके ले जाते हैं. फिर सरकारी कर्मचारीयोंमें भी यही गुण अवतरित होता है. वे लोग सरकारी वाहनका अपनी संतानोंके लिये, पत्नीके नीजी कामोंके लिये उपयोग किया करते है.
प्रतिभा पाटिल जो भारतकी राष्ट्रप्रमुख रही वह अपना कार्यकाल समाप्त होने पर १० टनके १४ मालवाहक भरके संपत्ति अपने साथ ले गयीं थीं. और शिवसेनाके सर्वोच्च नेता बाला साहेब ठाकरेने जो स्वयं अपनेको धर्मके रक्षक के रुपमें प्रस्तूत करते है उन्होंने अपने पक्षके जनप्रतिनिधियोंको आदेश दिया था कि राष्ट्रप्रमुख पदके चूनावमें प्रतिभा पाटिलको, प्रतिभा पाटील, मराठी होनेके कारण उनका अनुमोदन करें. नीतिमत्ता क्या भाषावाद और क्षेत्रवाद से अधिक है? नीतिमत्ताको कौन पूछताहै!!
शिवसेना भी वंशवादी है. बालासाहेब के बाद, उसके बेटे उद्धव ठाकरेको पक्षका प्रमुख बनाया. अब उद्धव ठाकरेने अपनी ही संतानको मुख्य मंत्री बनानेका संकल्प किया है. क्या शिवसेनामें कुशल नेताओंका अभाव है? यदि ६० वर्षकी शिवसेनाके पास वंशीय नेताकी संतानके अतिरिक्त प्रभावी और वरिष्ठ नेता ही नहीं है तो ऐसे पक्षको तो जीवित रहेनेका हक्क ही नहीं है.
एन.सी.पी. के शरद पवार भी वंशवादी है. ममता बेनर्जी भी वंशवादी है. मायावती, शेखाब्दुला, मुफ्ती मोहम्मद सईद, मुलायम सिंघ … ये सब वंशवादी है और इन सभीके पक्षोंके नेताओंने वर्जित स्रोतोंसे अधिकाधिक संपत्ति बनायी है. इन लोगोंकी अन्योन्य मैत्री भी अधिक है. इन लोगोंके पक्षोंका अन्योन्य विलय नहीं होता है. क्यों कि उनको लगता है कि भीन्न पक्ष बनाके रहकर हम सत्तामें प्रथम क्रमांक प्राप्त करें ऐसी शक्यता अधिक है. जब तक प्रथम क्रमांक का मौका नहीं मिलता, तब तक पैसा बनाते रहेंगे. यही हमारे लिये श्रेय है.
वंशवाद पर समाचार माध्यमोंका प्रतिभावः
वंशवादी पक्ष जब चूनावमें सफल होता है और सरकार बनानेमें जब वह प्रभावशाली भूमिका प्रस्तूत कर सकता है तब मोदी-विरोधी ग्रुपवाले समाचार माध्यम, वंशवादी पक्षके गुणगान करने लगते है. जो समाचार माध्यम मोदी-विरोधी नहीं है वे भी असमंजसकी स्थितिमें आ जाते है.
भारतीय जनता पार्टी वंशवादसे विरुद्ध है. उनका यह विचार उनके लिये एक शस्त्र है. जो लोग मोदीके विरुद्ध है, वे लोग बीजेपीके इस शस्त्र को निस्क्रीय करना चाहते है.
इन समाचार माध्यमोंको देशहितकी अपेक्षा, निर्बल और अस्थिर सरकार अधिक प्रिय है. ये लोग वंशवादकी भर्त्सना नहीं करते है. वे कभी उद्धवकी संतानकी कुशलता की चर्चा नहीं करेंगे. ये समाचार माध्यम, बीजेपीकी कष्टदायक स्थितिका अधिकाधिक विवरण देंगे. उस विवरणमें अतिशयोक्ति भी करेंगे. क्यों कि चमत्कृति और रसप्रदीय रम्यता तो उसमें ही है न!!
यदि पिता/माताकी संतानको सत्तापदका वारस बनानेवाली प्रणाली को नष्ट करना है तो सभी समाचार माध्यमोंको पुरस्कृत वारसकी और उसी पक्षके अन्यनेताओंकी बौद्धिक शक्ति और अनुभव शक्ति की तुलना करनेकी चर्चा करना चाहिये और वंशवादीसे पुरस्कृत संतानकी भर्त्सना करना चाहिये.
व्युहरचना कुछ भीन्न है
समाचार माध्यमोंका धर्म है कि वे या तो केवल समाचार ही प्रस्तूत करें या तो जनसाधारणको सुशिक्षित करें.
किन्तु हमारे देशके कई समाचार माध्यम के संचालक देश हितको त्यागकर, समाचारोंके द्वारा अपना उल्लु सीधा करने पर तुले हुए है. “भारत तेरे टूकडे होगे”, “कसाबको चीकन बीर्यानी खिलानेवाले”, “हिन्दुओंके मौतके जीम्मेवारों”, गुन्डों और आतंकीयोंको और उनके सहायकों … आदिके जनतांत्रिक अधिकार एवं उनके मानवाधिकारोंकी रक्षा यही उनका एजन्डा है. इनकी प्रज्ञामें भला देश हित कैसे घुस सकें?
सत्ता क्या चोरीका माल है?
ये लोग चाहते है कि शिवसेना के सबसे कनिष्ठ, अनुभवहीन और वरीष्ठता क्रममें कहीं भी न आनेवाले उद्धव ठाकरेके लडकेको सीधा ही मुख्यमंत्री बनाया जाय. यदि बीजेपी उसको उपमंत्री पद दे तो भी यह व्यवस्था उचित नहीं है. क्यों कि विपक्षको तो मौका मिलजायेगा कि देखो बीजेपी भी वंशवादमें मानती है और वंशवादमें माननेवाले पक्षका सहयोग ले रही है.
बीजेपी को भी सोचना चाहिये कि यह शिवसेना, एनसीपी और कोंगीकी चाल भी हो सकती है कि अब बीजेपी वंशवादके विरुद्ध न बोल सके. श्रेय तो यही होगा कि बीजेपी, शिवसेना को स्पष्ट शब्दोंमें कहे दे कि मंत्रीपद, योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर ही मिलेगा. यह कोई लूट का माल नहीं है कि ५०:५० के प्रमाणसे वितरण किया जाय.
शिवसेना अल्पमात्रामें भी विश्वसनीय नहीं है. इनके नेता, बीजेपीके उपर दबाव बनानेका एक भी अवसर छोडते नहीं है. और परोक्षरुपसे कोंगी आदि विपक्षको ही सहाय करते है.
याद करो ये वही शिवसेना है जिसके शिर्षनेता और स्थापक बालासाहेब ठाकरेने, जब बाबरी मस्जिद ध्वस्त हुई तो कहा था कि ये भूमि पर न तो मस्जिद बने न तो मंदिर बने. इस पर अब चिकीत्सालय बनना चाहिये.
यही शिवसेना के नेतागण यह कहेनेका अवसर चूकते नहीं कि बीजेपी मंदिर निर्माणमें विलंब कर रहा है.
ईन लोगोंसे सावधान,
शिरीष मोहनलाल दवे
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२
Posted in Social Issues, tagged अध्यादेश, अपकिर्ती, अलगतावादी मुस्लिम नेता, अल्पसंख्यक, असहिष्णुता, अहिंसक विरोध, आकाशकुसुमवत, आपात्काल, आमरणांत अनशन, ईन्दिर गांधी मनोरोगी, ईन्दिरा गांधी, ओमर, कतलखाना, केरल, गाय, गौ-मांस, चीनी सेना, धर्मनिरपेक्षता, ध्येयमहात्मा गांधी, नहेरु, नहेरुवीयन कोंग्रेस, निर्देशात्मक, पत्थरबाज़, पशुबिक्री, पाकिस्तान, फरजंद, फारुख, बछडा, बाबा साहेब आंबेडकर, भोजन, मंदिर, मदिरा-निषेध, मानवभ्रूणका भोजन-समारंभ, मुसलमान, मेरे स्वप्नका भारत, राजिव गांधी, राज्योंका कार्यक्षेत्र, विनोबा भावे, वीडीयो क्लीप, संविधानमें प्रावधान, समाचार माध्यम, सांस्कृतिक सहयोगी, सामाजिक माध्यम, साम्यवादी, साम्यवादीयोंकी गठबंधनवाली सरकार, सुरक्षाकर्मी, सोमनाथ, हिन्द-स्वराज, हिन्दुस्तान on June 3, 2017| Leave a Comment »
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२
असत्यवाणी नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंका धर्म है
यह कोई नई बात नहीं है. नहेरुने खुदने चीनी सेनाके भारतीय भूमिके अतिक्रमणको नकारा था. तत्पश्चात् भारतने ९२००० चोरसवार भूमि, चीनको भोजन-पात्र पर देदी थी. ईन्दिरा गांधी, राजिव गांधी आदिकी बातें हम २५ जूनको करेंगे. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेस अलगतावादी मुस्लिम नेताओंसे पीछे नहीं है.
नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने सांस्कृतिक फरजंदोंसे सिखती भी है.
यह कौनसी सिख है?
शिवसेना नहेरुवीयन कोंग्रेसका फरज़ंद है.
जैनोंके पर्युषणके पर्व पर मांसकी विक्री पर कुछ दिनोंके लिये रोक लगाई तो शिवसेनाके कार्यकर सडक पर उतर आये. और उन्होंने इस आदेशके विरोधमें मांसकी विक्री सडक पर की. (यदि वेश्यागमन पर शासन निषेध लाता तो क्या शिवसेनावाले सडक पर आके वेश्यागमन करते?)
गाय-बछडेका चूनाव चिन्हवाली नहेरुवीयन कोंग्रेसने शिवसेनासे क्या सिखा?
नहेरुवीयन कोंग्रेसको शिवसेनासे प्रेरणा मिली.
यह बात नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारके अनुरुप है. नहेरुवीयन कोंग्रेसने चिंतन किया. निष्कर्ष निकाला कि गौवध-बिक्री-नियमन वाला विषय उपर प्रतिकार करना यह मुस्लिमोंको और ख्रीस्तीयोंको आनंदित करनेका अतिसुंदर अवसर है.
केन्द्र सरकारने तो गौ-वंशकी यत्किंचित प्रजातियोंकी विक्रीके नियमोंको सुग्रथित किया और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यथेच्छ रक्खी क्षतियोंको दूर किया ताकि स्वस्थ और युवापशुओंकी हत्या न हो सके.
अद्यपर्यंत ऐसा होता था कि कतलखाने वाले, पशुबिक्रीके मेलोंमेंसे, बडी मात्रामें पशुओंका क्रयन करते थे. और स्वयंके निश्चित चिकित्सकोंका प्रमाणपत्र लेके हत्या कर देते थे.
आदित्यनाथने अवैध कतलखानोंको बंद करवाया तो नहेरुवीयन कोंग्रेसवालोंने और उनके सांस्कृतिक साथीयोंने कोलाहल मचा दिया और न्यायालयमें भी मामला ले गये कि शासक, कौन क्या खाये उसके उपर अपना नियंत्रण रखना चाहता है. अधिकतर समाचार माध्यमोंने भी अपना ऐसा ही सूर निकाला.
बीजेपीने गौ-वंशकी यत्किंचित प्रजातियोंकी विक्रीके नियमोंको सुग्रथित करनेवाला जो अध्यादेश जारी किया तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको लगा कि कोमवाद फैलानेका यह अत्याधिक सुंदर अवसर है.
केरलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसके कई सदस्य सडक पर आ गये. एक बछडा भी लाये. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने बछडेको सरे आम काटा भी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने बछडेके मांसको सडक पर ही एक चूल्हा बनाके अग्निपर पकाया भी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने इस मांसको बडे आनंदपूर्वक खाया भी.
अपने चरित्रके अनुरुप नहेरुवीयन कोंग्रेस केवल जूठ ही बोलती है और जूठके सिवा और कुछ नहीं बोलती. तो अन्य प्रदेशके नहेरुवीयन नेताओंने तो ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है और बीजेपी व्यर्थ ही नहेरुवीयन कोंग्रेसको बदनाम कर रही है ऐसे कथन पर ही अडे रहे. लेकिन जब यह घटनाकी वीडीयो क्लीप सामाजिक माध्यमों पर और समाचार माध्यमों पर चलने लगी तो उन्होंने बडी चतुराईसे शब्द प्रयोग किये कि “केरलमें जो घटना घटी उसकी हम निंदा करते है. ऐसी घटना घटित होना अच्छी बात नहीं है चाहे ऐसी घटना बीजेपीके कारण घटी हो या अन्योंके कारण. हमारे पक्षने ऐसे सदस्योंको निलंबित किया है.” नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण घटनाका विवरण करनेसे वे बचते रहे. एक नेताने कहा कि हमने सदस्योंको निलंबित किया है. अन्य एक नेताने कहा कि हमने निष्कासित किया है. क्या नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण अनपढ है? क्या वे सही शब्दप्रयोग नहीं कर सकते?
केरलकी सरकार भी तो साम्यवादीयोंकी गठबंधनवाली सरकार है. सरकारने कहा कि “हमने कुछ व्यक्तियोंपर धार्मिकभावना भडकानेवाला केस दर्ज किया है.
साम्यवादी पक्षके गठबंधनवाली सरकार भी नहेरुवीयन कोंग्रेससे कम नहीं है. वास्तवमें यह किस्सा केवल धार्मिक भावना भडकानेवाला नहीं है. केरलकी सरकारके आचार पर कई प्रश्नचिन्ह उठते है.
कौन व्यक्ति पशुकी हत्या कर सकता है?
क्या कोई भी व्यक्ति पशु की हत्या कर सकता है?
क्या कोई भी व्यक्ति कोई भी स्थान पर पशुकी हत्या कर सकता है?
क्या कोई भी व्यक्ति किसी भी अस्त्रसे पशुकी हत्या कर सकता है?
क्या कोई भी व्यक्ति कहीं भी चुल्हा जला सकता है?
क्या कोई भी व्यक्ति कहीं भी खाना पका सकता है?
वास्तवमें पशुओंको काटनेकी आचार संहिता है. यह आचार संहिता कतलखानोंके नियमोंके अंतर्गत निर्दिष्ट है.
नहेरुवीयन कोंग्रेस एक, ठग-संगठन है. जनतंत्रमें अहिंसक विरोध प्रदर्शित करना एक अधिकार है. किन्तु कानूनभंगका अधिकार नहीं है. सविनय कानूनभंग करना एक रीति है. किन्तु उसमें आपको शासनको एक प्रार्थनापत्र द्वारा अवगत कराना पडता है कि आप निश्चित दिवस पर, निश्चित समयपर, निश्चित व्यक्तिओं द्वारा, निश्चित नियमका, भंग करनेवाले है. नियमभंगका कारणका विवरण भी देना पडता है. और इन सबके पहेले शासनके अधिकृत व्यक्ति/व्यक्तियोंसे चर्चा करनी पडती है. उन विचारविमर्शके अंतर्गत आपने यह अनुभूति हुई कि शासनके पास कोई उत्तर नहीं है, तभी आप सविनय नियमभंग कर सकते है. जब नहेरुवीयन कोंग्रेसके शिर्षनेताओंको भी महात्मागांधीके सविनय कानूनभंगकी प्रक्रिया अवगत नहीं है तो इनके सिपोय-सपरोंको क्या खाक अवगत होगा? केरलकी घटना तो एक उदाहरण है. ऐसे तो अगणित उदाहरण आपको मिल जायेंगे.
नहेरुवीयन कोंग्रेस करनेवाली है मानवभ्रूणका भोजन-समारंभ
नहेरुवीयन कोंग्रेसको मानवभ्रुणके मांसके भोजन के लिये भी आगे आना चाहिये. साम्यवादी लोग, नहेरुवीयन कोंग्रेसको अवश्य सहयोग करेंगे, क्यों कि, चीनमें मानवभ्रुणका मांस खाया जाता है. साम्यवादी लोगोंका कर्तव्य है कि वे लोग चीन जैसे शक्तिशाली देशकी आचार संहिताका पालन करें वह भी मुख्यतः जिन पर भारतमें निषेध है. और नहेरुवीयन कोंग्रेस तो साम्यवादीयोंकी सांस्कृतिक सहयोगी है.
नहेरुवीयन कोंग्रेसके प्रेरणास्रोत
तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजा तो मुसलमानोंके प्रेरणास्रोत है. ऐसे मुसलमान कोई सामान्य कक्षाके नहीं है. आप यह प्रश्न मत उठाओ कि तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजाओंने तो हमारे मुसलमान भाईओंके पूर्वजोंका कत्ल किया था. किन्तु यह बात स्वाभाविक है जब आप मुसलमान बनते है तो आपके कोई भारतीय पूर्वज नहीं होते, या तो आप आसमानसे उतरे है या तो आप अरबी है या तो आप अपने पूर्वजोंकी संतान नहीं है. इसी लिये तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजा आपके प्रेरणास्रोत बनते है. यदि आप सीधे आसमानसे उतरे हैं तो यह तो एक चमत्कार है. किन्तु मोहम्मद साहब तो चमत्कारके विरुद्ध थे. तो आप समज़ लो कि आप कौन है. किन्तु इस विवादको छोड दो. ख्रीस्ती लोग भी मुसलमान है. क्यों कि मुसलमान भी ईसा को मसिहा मानते है. या तो मुसलमान, ख्रीस्ती है, या तो ख्रीस्ती, मुसलमान है. जैसे वैष्णव लोग और स्वामीनारयण लोग हिन्दु है.
नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथीयोंको मुसलमानोंका अपूर्ण कार्यको, पूर्ण करना है, इस लिये उनका कर्तव्य बनता है कि जो कार्य मुसलमानोंने भूतकालमें किया उसीको नहेरुवीयन कोंग्रेस आगे बढावे. मुसलमानोंने सोमनाथके मंदिरको बार बार तोडा है. हिन्दुओंने उसको बार बार बनाया है. तो अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका धर्म बनता है कि वे पूनर्स्थापित सोमनाथ मंदिरको भी ध्वस्त करें.
देशको तो तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमानोंने लूटा था. अंग्रेजोने भी लूटा था. नहेरुवीयन कोंग्रेस ६० वर्षों तक लूटती ही रही है, किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने अभीतक सोमनाथ मंदिर तोडा नहीं है. तो अब नहेरुवीयन कोंग्रेस वह भी तोडके बता दें कि वह अल्पसंख्यकोंके प्रति कितनी प्रतिबद्ध है.
शिरीष मोहनलाल दवे
-
Archives
- May 2023 (3)
- March 2023 (2)
- November 2022 (3)
- October 2022 (4)
- September 2022 (2)
- August 2022 (4)
- July 2022 (2)
- June 2022 (4)
- May 2022 (2)
- April 2022 (1)
- March 2022 (4)
- February 2022 (3)
- January 2022 (4)
- December 2021 (6)
- November 2021 (5)
- October 2021 (7)
- September 2021 (1)
- July 2021 (1)
- June 2021 (3)
- May 2021 (4)
- April 2021 (2)
- March 2021 (1)
- February 2021 (3)
- January 2021 (3)
- December 2020 (4)
- November 2020 (3)
- October 2020 (2)
- September 2020 (5)
- August 2020 (4)
- July 2020 (3)
- June 2020 (5)
- May 2020 (3)
- April 2020 (5)
- March 2020 (6)
- February 2020 (4)
- January 2020 (1)
- December 2019 (2)
- November 2019 (4)
- October 2019 (2)
- September 2019 (4)
- August 2019 (1)
- July 2019 (1)
- June 2019 (1)
- May 2019 (4)
- April 2019 (3)
- March 2019 (2)
- February 2019 (6)
- January 2019 (2)
- December 2018 (3)
- November 2018 (4)
- October 2018 (3)
- September 2018 (3)
- August 2018 (1)
- July 2018 (2)
- June 2018 (3)
- May 2018 (3)
- April 2018 (1)
- March 2018 (2)
- February 2018 (2)
- December 2017 (2)
- November 2017 (2)
- September 2017 (6)
- August 2017 (6)
- July 2017 (2)
- June 2017 (7)
- May 2017 (2)
- April 2017 (5)
- March 2017 (2)
- February 2017 (4)
- January 2017 (6)
- November 2016 (1)
- October 2016 (3)
- September 2016 (1)
- July 2016 (8)
- June 2016 (4)
- May 2016 (4)
- April 2016 (4)
- March 2016 (5)
- February 2016 (6)
- January 2016 (1)
- December 2015 (3)
- November 2015 (10)
- October 2015 (9)
- September 2015 (4)
- July 2015 (5)
- June 2015 (6)
- May 2015 (1)
- April 2015 (3)
- March 2015 (1)
- February 2015 (3)
- January 2015 (6)
- December 2014 (5)
- November 2014 (6)
- October 2014 (7)
- September 2014 (5)
- August 2014 (2)
- June 2014 (2)
- May 2014 (8)
- April 2014 (4)
- March 2014 (5)
- January 2014 (3)
- December 2013 (9)
- November 2013 (4)
- October 2013 (1)
- September 2013 (9)
- August 2013 (2)
- July 2013 (2)
- June 2013 (3)
- May 2013 (5)
- April 2013 (6)
- February 2013 (3)
- January 2013 (2)
- December 2012 (5)
- November 2012 (1)
- October 2012 (6)
- September 2012 (3)
- August 2012 (3)
- July 2012 (2)
- June 2012 (3)
- May 2012 (3)
- April 2012 (4)
- March 2012 (3)
- February 2012 (2)
- January 2012 (5)
- December 2011 (3)
- November 2011 (1)
- September 2011 (3)
- August 2011 (2)
- July 2011 (2)
- June 2011 (4)
- May 2011 (7)
- April 2011 (2)
- March 2011 (2)
- February 2011 (1)
- January 2011 (3)
- December 2010 (3)
- November 2010 (5)
- October 2010 (7)
- September 2010 (6)
- August 2010 (2)
- July 2010 (3)
- June 2010 (3)
- May 2010 (1)
- April 2010 (1)
- March 2010 (3)
- February 2010 (5)
-
Categories
- માનવીય સમસ્યાઓ (348)
- Social Issues (117)
- Uncategorized (107)
-
Pages