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Posts Tagged ‘राज्य’

कोरोना कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक सहयोगी

वैसे तो इस ब्लोग साईट पर इस विषय पर चर्चा हो गई है कि क्या हर युगमें वालीया लूटेरा, वाल्मिकी ऋषि बन सकता है?

वालीया लूटेरा

वालीया लुटेरा वैसे तो वाल्मिकी ऋषी बन सकता है, किन्तु ऐसी घटनाकी शक्यता के लिये भी किंचित पूर्वावस्थाकी भी पूर्वावस्था पर, अवलंबित है. हमारे रामायणके रचयिता वाल्मिकी ऋषिकी वार्तासे तो हम सर्व भारतीय अवगत है कि ये वाल्मिकी ऋषि अपनी पूर्वावस्थामें लूटेरा थे. फिर एक घटना घटी और उनको पश्चाताप हुआ. उन्होंने सुदीर्घ एकान्तवास में मनन किया और वे वाल्मिकी ऋषि बन गये.

प्रवर्तमान कोंगी (कोंग्रेस)

इस आधार पर कई सुज्ञ लोग मानते है कि भारतकी वर्तमान कोंग्रेस जिनको हम कोंग (आई), अर्थात्‌ कोंगी, अथवा इन्दिरा नहेरुगाँधी कोंग्रेस (आई,एन.सी.) अथवा इन्डीयन नहेरुवीयन कोंग्रेस के नामसे जानते है, यह कोंग्रेस पक्ष क्या , भारतीय जनता पक्ष (बीजेपी) का  एक विकल्प बन सकता है. कुछ सुज्ञ महाशय का विश्वास अभी भी तूटा नहीं है.

जिस कोंग्रेसने भारतके स्वातंत्र्य संग्रामकी आधारशीला रक्खी थी औस उसके उपर एक प्रचंड महालय बनाया था उसको हम “वाल्मिकी ऋषि” कहेंगे. इस वाल्मिकी ऋषिके पिता अंग्रेज थे.

“वसुधैव कुटूंबम्‌” विचारधाराको माननेवाले भारतवासीयोंको, इससे कोई विरोध नहीं है.

अयं निजः अयं परः इति वेत्ति, गणनां लघुचेतसां, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटूंबकम्‌.

अर्थात्‌

यह हमारा है, यह अन्य है, अर्थात्‌ यह हमारा नहीं है, ऐसी मनोवृत्ति रखनेवाला व्यक्ति संकुचित मानस वाला है. जो उदारमानस वाला है, उसके लिये तो समग्र पृथ्वि के लोग अपने ही कुटूंबके है.

इस भारतीय मानसिकताको महात्मा गांधीने समग्र विश्वके समक्ष सिद्ध कर दिया था. भारतमें ऐसे विशाल मन वाले महात्मा गांधी अकेले नहीं थे. कई लोग हुए थे.

हाँ जी, उस समय कोंग्रेस वाल्मिकी ऋषिके समान थी.

फिर क्या हुआ?

१९२८में मोतिलालजीने कहा कि मेरे बेटे जवाहरलालको कोंग्रेसका प्रेसीडेन्ट बनाओ. उस समय मोतिलाल नहेरु कोंग्रेसके प्रेसीडेन्ट थे. उनका अनुगामी उनका सुपुत्र बना.

महात्मा गांधीने सोचा कि ज्ञानीको एक संकेत ही पर्याप्त होना चाहिये. १९३२में गांधीजीने कोंग्रेसके प्राथमिक सदस्यता मात्रसे त्यागपत्र दे दिया. महात्मा गांधी कोंग्रेसके शिर्षनेताओंको यह संदेश देना चाहते थे कि हमारे पदके कारण हमारे विचारोंका प्रभाव सदस्यों पर एवं जनता पर पडना नहीं चाहिये. हमारे विचारसे यदि वे संतुष्ट है तभी ही उनको उस विचारको अपनाना चाहिये.

१९३६में भी जवाहरलाल  प्रेसीडेन्ट बने. और १९३७में भी वे कोंग्रेसके प्रेसीडेन्ट बने.

महात्मा गांधीको लगा कि,  कोंग्रेस वाल्मिकी ऋषिमेंसे वालिया लूटेरेमें परिवर्तित होनेकी संभावना अब अधिक हो गयी है.  महात्मा गांधीने संकेत दिया कि जनतंत्रकी परिभाषा क्या है और जनतंत्र कैसा होता है. उन्होंने ब्रीटन, फ्रान्स, जर्मनीके जनतंत्र प्रणालीको संपूर्णतः नकार दिया था. गांधीजीने कहा कि हमे हमारी संस्कृतिके अनुरुप हमारी जनताके अनुकुल शासन प्रणाली स्थापित करना होगा. हमारी शास्न प्रणाली का आधार संपूर्णतः नैतिक होना चाहिये. (हरिजन दिनांक २-१-१९३७). भारतकी शासन प्रणाली कैसी होनी चाहिये. महात्मा गांधीने एक उत्कृष्ट उदाहरण दिया था. वह था “राम राज्य”. “राम राज्य”में राजाका कर्तव्य  सामाजिक क्रांतिको पुरस्कृत करना नहीं था. सामाजिक क्रांति करना या उसमें सुधार लाना यह काम तो ऋषियोंका था. ऋषियोंके पास नैतिक शासन धुरा थी.

पढिये “कहाँ खो  गये हाडमांसके बने राम”.

किन्तु गांधीजीके इस विचारका कोई प्रभाव नहेरु और उनके प्रशंसक युथ पर पडा नहीं. वे तो तत्कालिन पाश्चात्य देशोंमे चल रहे, “समाजवाद”की विचारधारामें रममाण थे.

सत्तामें जब त्यागकी भावनाका अभाव होता है तब वह सत्ता, जनहितसे विमुख ही हो जाती है. १९४७ आते आते कोंग्रेसके नेताओमें सत्ता लालसाका आविर्भाव हो चूका था. शासन करना कोई अनिष्ट नहीं है. किन्तु सत्ता पानेके लिये अघटित हथकंडे अपनाना अनिष्ट है.

“सत्ता पाना” और “सत्तासे हठाना” इन दोनोंमें समान नियम ही लागु पडते है. वह है साधन शुद्धिका नियम.

साधन शुद्धिका अभाव सर्वथा अनिष्ट को ही आगे बढाता है. कई सारे लोग इस सत्यको समज़ नहीं सकते है वह विधिकी वक्रता है.

चाहे बीज १९२९/३०में पडे हो, और अंकुरित १९३५-३६में हो गया हो, कोंग्रेसका  वाल्मिकी ऋषि से वालीया-लूटेरा बननेका प्रारंभ १९४६से प्रदर्शित हो गया था. १९५०मे तो वालीया लुटेरा एक विशाल वटवृक्ष बन गया.

वर्तमानमें तो आप देख रहे ही है कि वालीया लुटेरारुप अनेक वटवृक्ष विकसित हो गये है. वे इतने एकदुसरेमें हिलमिल गये है कि उनका मुख्य मूल कहां है इस बातका किसीको पता ही नहीं चलता है. अतः क्यूँ कि, नहेरुकी औलादें वर्तमान कोंग्रेस नामके पक्षमें विद्यमान है उस कोंग्रेसको ही मूल कोंग्रीसकी धरोहर मानी जाय. ऐसी मान्यता रखके मूल कोंग्रेसका थप्पा हालकी कोंगी पर मार दिया जाता है. इससे सिर्फ सिद्ध यही होता है कि ये महानुभाव जनतंत्रमें भी वंशवादको मान्यता दे दे सहे हैं. क्या यह भी विधिकी वक्रता नहीं है? छोडो इन बातको.

क्या निम्न लिखित शक्य है?

गुलाम –> वाल्मिकी ऋषि –>वालीया-लुटेरा –>वाल्मिकी ऋषि (?)

यह संशोधनका विषय है कि हमारे कुछ सुज्ञ महानुभाव लोग आश लगाके बैढे कि यह वालीया लुटेरा फिरसे वाल्मिकी ऋषि बनेगा. जिन व्यक्तियोंने एक ब्रीटीश स्थापित संस्थाको “गुलाम”मेंसे  वाल्मिकी ऋषि बनाया था, वे सबके सब १९५०के पहेले ही चल बसे. जो गुणवान बच भी गये थे उनको तो कोंग्रेससे बाहर कर दिया. तत्‌ पश्चात्‌  तो वालीया-लुटेरे गेंगमें तो चोर, उचक्के, डाकू, असत्यभाषी, ठग, आततायी, देशद्रोही … ही बचे है? इस पक्षको सुधरनेकी एक धुंधलीसी किरण तक दिखायी नहीं देती है.

कोरोना कालः

यह एक महामारीवाली आपत्ति है. भारतवासीयोंका यह सौभाग्य है कि केन्द्रमें और अधिकतर राज्योमें  बीजेपी का शासन है. भारतवासीयोंका कमभाग्य भी है कि चार महानगरोंमें बीजेपीका शासन नहीं है. खास करके दिल्ली, मुंबई (महाराष्ट्र), कलकत्ता और चेन्नाई.

दिल्लीका केज्रीवालः

कई विदेश, कोरोनाके संक्रमणसे आहत थे और उन देशोंमें हमारे नागरिक फंसे हुए थे. उनको वापस लाना था. केन्द्र सरकारने उन नागरिकोंको भारत लानेकी व्यवस्था की. और पुर्वोपायकी प्रक्रियाके आधार पर उनको संगरोधनमें (क्वारन्टाईन) कुछ समय के लिये रक्खा.

जब केन्द्रको पता चला कि तबलीघीजमातका महा अधिवेशन दिल्लीमें हो गया है और उस अधिवेशनके सहस्रों लोग विदेशी थे और उनमेंसे कई कोरोना ग्रस्त होनेकी शक्यता थी. उनमेंसे कई इधर उधर हो गये थे. ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकारके लिये लॉकडाऊन घोषित करना अनिवार्य हो गया था. २३ मार्च को केन्द्र सरकारने २४ मार्चसे तीन सप्ताहका लॉकडाउन घोषित कर दिया. प्रधान मंत्रीने सभी श्रमजिवीयोंको कहा कि आप जहां हो, वहीं पर ही रहो.

लुट्येन गेंगके दिल्लीके हिरो थे केज्रीवाल. उन्होंने २४ मार्च की रातको ही श्रमजिवीयोंकों उदघोषित करके बताया कि आप लोगोंके लिये आपके राज्यमें परत जानेके लिये  बसें तयार है.

केज्रीवालने न तो कोई राज्य सरकारोंसे चर्चा की, न तो केन्द्र सरकारसे चर्चा की, न तो लेबर कमीश्नरसे कोई पूर्वानुमानके लिये चर्चा की कि, श्रमजीवीयोंकी क्या संख्या हो सकती है! बस ऐसे ही आधी रातको घोषणा कर दी  कुछ बसें रख दी है. आप लोग इन बसोंसे चले जाओ. केज्रीवालका यह आचार, प्रधान मंत्रीकी सूचनासे बिलकुल विपरित ही था और प्रधान मंत्रीकी सूचनाका निरपेक्ष उलंघन था. केज्रीवालको मुख्यमंत्री पदसे  निलंबित करके गिरफ्तार किया जा सकता है, कारावासमें भेजा सकता है और न्यायिक कार्यवाही हो सकती है. किन्तु प्रधान मंत्रीकी प्राथमिकता लोगोंके प्राण बचाना था.

वास्तवमें दो सप्ताहका समय देनेका प्रयोजन यही था कि सभी राज्य आगे क्या करना है उसका आयोजन कैसे करना है, यदि किसीको अपने राज्यमें जाना है तो उसके लिये योजना करना या और भी कोई प्रस्ताव है तो हर राज्य दे सकें.

ये सब बातें प्रधान मंत्रीने राज्योंके मुख्य मंत्रीयों पर छोडा था और प्रधान मंत्री हर सप्ताह मुख्य मंत्रीयोंके साथ ऑन-लाईन चर्चा कर रहे थे. यदि कोई मुख्य मंत्रीको कोई मार्गदर्शन चाहिये तो वह प्रधान मंत्रीसे सूचना भी ले सकता था.

श्रमजिवीयोंकी संख्याका पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है?

(१) घरेलु कामके श्रम जीवीः ये तो स्थानिक लोग ही होते है. वे अपने घरमें या अपनी झोंपडपट्टीमें रहेते है. उनको कहीं जाना होता नहीं है. ये लोग डोमेस्टीक सर्वन्ट कहे जाते है.

(२)  कुशल और अकुशल श्रमजीवीः ये श्रम जीवीमें जो कुशल है वे तो अपने कुटूंब के साथ ही रहेते है. जो अकुशल है उनमेंसे कुछ लोगोंको अपने राज्यमें जाना हो सकता है. ये दोनों प्रकारके श्रमजीवी अधिकतर मार्गके काम, संरचनाके काम, मूलभूत भूमिगत संरचनाके काम करते है. ये काम वे उनके छोटे बडे कोन्ट्राक्टरोंके साथ जूडे हुए होते है. कोन्ट्राक्टर ही उनको भूगतान करता है.

इन श्रमजीवीयोंके कोंन्ट्राक्टरोंको हरेक कामका श्रम-आयुक्तसे अनुज्ञा पत्र लेना पडता है, और इसके लिये हर श्रमजीवीका आधारकर्ड, प्रवर्तमान पता, कायमी पता  और बीमा सुरक्षा कवच, कार्यका स्थल … आदि अनेक विवरण, आलेख, लिखित प्रमाण, देना पडता है. राज्य सरकार चाहे तो एक ही दिन में श्रमजीवीयोंका वर्गीकरण और गन्तव्य स्थानकी योजना बना सकती है. श्रम आयुक्त के पास सभी विवरण होता है. श्रम आयुक्त कोंट्राक्टरोंको सूचना दे सकता है कि श्रमजीवी अधीर न बने.

(३) तीसरे प्रकारके श्रमजीवी ऐसे होते है कि वे छोटे कामके कोंट्रक्टरोंके साथ काम करते है. इन कोंट्राक्टरोंको कामके लिये श्रमआयुक्तसे अनुज्ञापत्र लेनेकी आवश्यकता नहीं होती है. लेकिन हर कोंट्राक्टरको सरकारमें पंजीकरण करवाना पडता है. सरकार इन कोंट्राक्टरोंसे उनके श्रमजीवीयोंका आवश्यक विवरण ले सकता है.

ये सबकुछ ऑन-लाईन हो सकता है और अधिकसे अधिक एक ही सप्ताहमें कहाँ कहाँ कितने श्रमजीवीयोंको किन राज्योंमें कहाँ जाना है उसका डेटाबेज़ बन सकता है.

एक राज्य दुसरे राज्यसे ऑन-लाईन डेटाबेज़का आदानप्रदान करके अधिकसे अधिक उपरोक्त ७ दिन को मिलाके भी, केवल दश दिनमें प्रत्येक श्रमजीवीको उसके गन्तव्यस्थान पर कैसे पहोंचाना उसका आयोजन रेल्वे और राज्यके परिवहन विभाग कर सकते है. इस डीजीटल युगमें यह सब शक्य तो है ही किन्तु सरल भी है.

तो यह सब क्यूँ नहीं हुआ?

राज्यके मुख्यमंत्रीयोंमें और उनके सचिवोंमे आयोजन प्रज्ञाना अभाव है. मुख्य मंत्री और संलग्न सचिव हमेशा कोम्युनीकेशन-गेप रखना चाहते है ताकि वे आयोजनकी अपनी सुविचारित (जानबुज़ कर) रक्खी हुई त्रुटीयोंमें अपना बचाव  कर सकें.

अधिकतर उत्तरदायित्व तो सरकारी सचिवोंका ही है. वे हमेशा नियमावली क्लीष्ट बनानेमें चतूर होते है. और मंत्री तो सामान्यतः  अपने क्षेत्रके अपने जनप्रभावके आधार पर सामान्यतः मंत्री बना हुआ होता है.

सरकारी अधिकारीयोमें अधिकतम अधिकारी सक्षम नहीं होते है. अधिकतर तो चापलुसी और वरिष्ठ अधिकारीयोंके बंदोबस्त (वरिष्ठ अधिकारीयोंके नीजी काम) करनेके कारण उनके प्रिय पात्र रहेते है. सरकारी अधिकारीयों पर काम चलाना अति कठिन है. अधिकसे अधिक उनका स्थानांतरण (तबादला) किया जा सकता है. लेकिन जब कमसे कम ९९ प्रतिशत अधिकारी अक्षम होते है तो विकल्प यही बचता है कि चाहे वे अक्षम हो, उनकी प्रशंसा करते रहो और काम लेते रहो. सरकारी अधिकारीयोंको सुधारना लोहेके चने चबानेके समकक्ष कठिन है. प्रणाली को बदलनेमें १५ वर्ष तो लग ही जायेंगे.

कोंगी ने  केवल मुस्लिम मुल्लाओंको और मुस्लिम नेताओंको ही बिगाडके नहीं रक्खा है. उसने कर्मचारी-अधिकारीयोंको भी बिगाडके रक्खा है. कोंगीयोंका और उनके सांस्कृतिक साथीयोंका  एक अतिविस्तृत और शक्तिमान जालतंत्र है. जिनमें देश और देशके बाहरके सभी देशद्रोही और असामाजिक तत्त्व संमिलित है.

ईश्वरका आभार मानो कि हमारे पास नरेन्द्र मोदी जैसा कुशलनेता, अथाक प्रयत्नशील प्रधानमंत्री है. उनके साथी भी शुद्ध है. ऐसा नहीं होता तो यह कोंगी उनका हाल मोरारजी देसाई और बाजपाई जैसा करती. अडवाणीको २००४ और २००९ के चूनावमें ऐसे दो बार मौका मिला, किन्तु वे सानुकुल परिस्थितियां होने पर भी, सक्षम व्युहरचनाकार  और आर्षदृष्टा  नहीं होनेके कारण बीजेपीको बहुमत नहीं दिलवा सकें.

कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथी वाल्मिकी ऋषि तो क्या, एक आम आदमी भी बननेको तयार नहीं है. हाँ वे ऐसा प्रदर्शन अवश्य करेंगे कि वे निस्वार्थ देश प्रेमी है. अफवाएं फैलाना या/और जूठ बोलना उनकी वंशीय प्रकृति है. निम्न दर्शित लींक पर क्लीक करो और देख लो.

युपीके मुख्य मंत्री  श्रमजीवीयों की यातना पर कितने असंवेदनशील है और  कोंगीकी एक शिर्ष नेत्रीने श्रम जीवीयोंकी यातनाओंसे स्वयं कितनी  संवेदनशील और आहत है यह प्रदर्शित करने के लिये युपीके मुख्य मंत्रीको,  १००० बसें भेजनेका प्रस्ताव दे दिया. युपीके मुख्य मंत्रीने उसका सहर्ष स्विकार भी कर लिया और बोला के आप बसोंका रजीस्ट्रेशन नंबर, ड्राईवरोंका नाम और लायसन्स नंबर आदिकी सूचि भेज दो.

अब क्या हुआ?

वह शिर्षनेत्रीने सूचि भेज दी. जब योगीजीने पता किया तो उसमें स्कुटर, रीक्षा, छोटीकार, बडीकार, अवैध नंबर, प्रतिबंधित नंबर, फर्जी नंबर, अलभ्य नंबर … आदि निकले. ये सब राजस्थानसे थे.

इसके अतिरिक्त ये कोंगी नेत्रीने (प्रियंका वाईड्रा) ने कहा कि “हम ये बसें आपके लखनौमें लानेमें असमर्थ है. हमारी बसें दिल्लीमें कबसे लाईनमें खडी है.” ऐसा दिखानेके लिये बसोंकी लंबी लाईन की तस्विर भी भेजी. वह भी फर्जी. जो तस्विर थी, वह तो कुम्भके मेलेकी बसोंकी कतारकी तस्विर थी. युपीके मुख्य मंत्रीने बसें लखनौ को भेजनेकी तो बात ही नहीं की थी.

कमसे कम इस कोंगी नेत्रीको खुदको  हजम हो सके इतना जूठ तो बोलते. “केपीटल टीवी” निम्न दर्शित वीडीयो देखें.

https://www.youtube.com/results?search_query=%23%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F_%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी कैसा फरेब करते है उनका इन्डिया स्पिक्स का यह वीडीयो भी देखें

https://www.youtube.com/watch?v=oCRssuW7ywQ

आप इन सबको सत्य का सन्मान करनेके लिये और आसुरी शक्तियोंके नाश के लिये अवश्य अपने मित्रोंमें प्रसारित करें. यही तो हमारा आपद्‌ धर्म है.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

कोंगीके प्रमुखने कहा हमारा पक्ष श्रमजीवीयोंके रेलका किराया देगा.

इसके उपर स्मृति ईरानीजीने कहा कि

 श्रमजीवीयोंके लिये  रेलवे ट्रेन चलानेकी घोषणा करनेके समय ही यह सुनिश्चित हो गया था कि ८५ प्रतिशत किराया केन्द्र सरकार देगी और १५ प्रतिशत किराया राज्य सरकार रेल्वेको देगी. इसके बाद कोंगी कहेती है कि किराया हमारा पक्ष देगा, लेकिन किराया बचा ही कहाँ है? यह तो ऐसी बात हुई कि शोलेमें असरानी कहेता है कि आधे पोलीस लोग इधर जाओ, आधे उधर जाओ. जो बचे वे मेरे साथ रहो.

सोनिया गांधीकी बात भी ऐसी ही है. ८५ प्रतिशत किराया केन्द्र देगा, १५ प्रतिशत किराया राज्य देगा. जो बचा वह कोंगी देगा.

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

जाति आधारित राज्य रचनाकैसे की जा सकती है? उसकी प्रक्रिया कैसी होनी चाहिये?

हमने जब देशकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये देशका विभाजन किया तब हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने कुछ गलतीयां की थी. वे गलतीयां हमे जातिआधारित और धर्म आधारित राज्य रचना करनेमें दोहरानी नहीं चाहिये)

तो चलो हम आगे बढें

नहेरुवीयन तुम आगे बढो

एक बात सबको समज़नी है कि हमारी मीडीयाके अधिकतर संचालकगण और नहेरुवीयन कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेससे मतलब है नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, उसके विद्वान लेखकगण और उसके समर्थक मतदाता गण)  “जैसे थे वादीहै. और यह तथ्य सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है. यदि बीजेपी का कोई भी नेता या बीजेपीके समर्थक गुटका कोई भी नेता सिर्फ एक निवेदन कर दें किआरक्षणके प्रावधान पर पुनर्विचारणा आवश्यक है, और इसके उपर बीजेपीके नेतागण मौन रहे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसका चूनाव जीतनेका काम हो ही गया. लेकिन हम जानते है कि बीजेपीको भी चूनाव जीतना है, लिये वह आरक्षण के विरुद्ध नहीं बोलेगी.

तो अब कया किया जाय?

() नहेरुवीयन कोंग्रेसमें वैसे तो हर जातिके लोग है. उनसे उन जातिके नेताओंका पता लगाओ. उनको कैसे अपने पक्षमें लेना इस बातमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेस अनुभवी है. उनसे अपनी जातिके लिये आरक्षणका आंदोलन करवाओ. उस नेताको बोलो कि आंदोलनमें कमसे कम ५०००० से १००००० की संख्या तो होने ही चाहिये. जो जितनी जनसंख्या आंदोलनमें लायेगा उसको प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाबसे ५०० रुपये मिलेगा. मान लो कि एक लाख जनसंख्या हुई तो पांच करोड रुपये खर्च हुए.

(.) युपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्र, कर्नाटक, ओरीस्सा, तामिलनाडु, केराला, महाराष्ट्र, इन राज्योंमें ही आंदोलन करनेका है. हरेक के दो, तीन बडे नगरोंमें ही करनेका. एक समयके आंदोलनका पचास करोड रुपये हुए. दस बार आंदोलन करवाया तो पांच हजार करोड रुपये हुए. यह कोई ज्यादा पैसा नहीं हुआ. इससे दो गुना तो माल्याने बेंकका लोन लिया था जो आज तक भरा नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये तो यह बडी बात है ही नहीं.

() मीडीया वाले, नहेरुवीयन कोंग्रेसको खुश होकर सहयोग करेंगे क्यों कि, इसमें उनको भी तो लाभ है. भूतकालमें भी मीडीयाकर्मीयोंने खूब लाभ करवाया है. जातिवादसे भारतको कैसे कैसे लाभ किया उस पर आप चेनलोंमें चर्चा चालु करें. यदि कहीं भी मौत होती है या अत्याचार होता है तो वह व्यक्ति कौनसी जातिका है उसके उपर चर्चा करें. आपके पास तो असामाजिक तत्त्वोंकी कमी तो है ही नहीं. तत्वोंको बीजेपीमें, बजरंग दलमें, विश्वहिन्दु परिषदमें भर्ती कराओ. फिर उनको बोलो कि वे उन जातिके व्यक्तिओंको चूने जो आपके द्वारा बनाई हूई सूचीमें आरक्षणके लिये समाविष्ठ है और गरीब भी है. एक सप्ताहमें सात जिलेमें हररोज एक अत्याचार करवाओ. और हररोज चेनलमें इस अत्याचारके विरुद्ध चर्चा चलाओ. मीडीयावाले भी खुश रहेंगे क्यों कि उनको घर बैठे मसाला मिल जायेगा और चर्चा का मौका भी मिल जायेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण बीजेपीके शासनकी भर्त्सना करते रहेंगे. ये लोग दलित जातियोंके प्रति ही नहीं किन्तु हर गरीब जनताके प्रति बीजेपी कितनी संवेदन हीन है और नहेरुवीयन कोंग्रेस कितनी प्रतिबद्ध है यह बात लगातार बोलते रहेंगे. साथ साथ गरीबोंके हितके लिये राज्योंकी पूनर्र्चनाकी बात भी चलती रहेगी. नहेरुवीयन कोंग्रेस पैसे खर्च करनेमें सक्षम है, गुजरातके ४४ एमएलए को हवाई जहाजमें बैठाके हजार मील दूर रीसोर्टमें कैसा मजा करवाया यह बात तो हम जानते ही है.

() नहेरुवीयन कोंग्रेसको जनताको भरोसा दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चना में उनकी जातिका पूरा ध्यान रखा जायेगा. मुस्लिम जनताको और ख्रिस्ती जनताको भी अहेसास दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चनामें उनको लाभ ही लाभ होगा.

() नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रचार करेगी कि जाति आधारित राज्य रचनासे हरेक जातिका संस्कार, संस्कृति और विकासके द्वार खूल जायेंगे. इस काम के लिये नहेरुवीयन कोंग्रेस जनगणना करवायेगी ताकि हरेक जातिको और धर्मको विकसित होनेका अवसर मिले.

() जनगणना कैसे होगी?

(.) आपके लिये सर्व प्रथम क्या है. धर्म, जाति, भाषा या देश?

(.) जो लोग देश लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग धर्म लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग जाति लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) जो लोग भाषा लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) भाषामें तीन प्राथमिकता रहेगी. मातृभाषा, हिन्दी या तमील, अंग्रेजी.

(.) हर हिन्दु व्यक्ति अपना धर्म, जाति, उपजाति, उपउप जाति, उपउपउपजाति, गोत्र, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गुरु आदि के बारेमें सरकारको माहिति देगा.

(.) हर मुस्लिम व्यक्तिको लिखवाना पडेगा कि वह सिया, सुन्नी, अहेमदीया, सुफी, दिने इलाही, वहाबी, शरियती, या जो भी कुछ भी हो वह है.

(.) हर ख्रिस्ती व्यक्तिको मुस्लिमोंकी तरह अपनी माहिति देगा.

(.४९ अन्य धर्मवाले भी ऐसा ही करेंगे.

ये सब माहिति गुप्त रखी जायेगी.

()  इस प्रकारकी जनगणनाके बाद उनका वर्गीकरण किया जायेगा, हरेक वर्गका उपवर्गीकरण, उपवर्गका उपउपवर्गीकरण, उपउपवर्गीकरणका उपउपउप वर्गीकरण किया जायेगा.

() हर प्रकारके वर्गीकरणकी जनसंख्या निकाली जायेगी.

() मुख्य वर्गधर्मरहेगा. धर्मके आधार पर राज्य बनाया जायेगा.

() धर्मका एक दुसरेके साथ प्रमाणका कलन किया जायेगा. भारतकी कुलभूमिमें हर धर्मके हिस्सेमें कितनी भूमि आयेगी उसका कलन किया जायेगा.

यक्ष राज्य

(१०) जिन्होनेंसर्व प्रथम देशलिखा है उनके लिये सीमा वर्ती विस्तार रहेगा. इस प्रकार, राजस्थान, गुजरात, कोंकण, कर्नाटककेराला, तमीलनाडु, ओरीस्सा, पश्चिम बंगाल, पूरा उत्तरपूर्व, हिमालयसे संलग्न विस्तार, पूरा जम्मु और काश्मिर राज्य इन सब राज्योंको मिलाके सीमा रेखासे २५० किलोमीटर अंदर तक के विस्तारवाला यक्षराज्य बनेगा. यक्षराज्यसे मतलब है सीमाका राज्य.

(११) यक्षराज्यकी सुरक्षा रेखा पर सुरक्षा सेना के निवृत्त कर्मचारीयोंको बसाया जायेगा.

(१२) यक्ष राज्य पूरा केन्द्र शासित राज्य रहेगा.

हिन्दु राज्य

(१३) यक्ष राज्यके पीछेहिन्दु राज्य आयेगा. हिन्दु राज्यमें जातिके आधारपर जिल्ले बनेंगे. हर जिल्लेमें जातिके उपजाति के आधार पर तहेसील बनेंगे. हर तेहसीलमें गोत्रके आधार पर नगर और ग्राम बनेंगे. एक नगरमें या ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेंगे. एक गोत्र इसलिये कि, समान  गोत्रमें शादी नहीं हो सकता. एक गोत्रकी कन्या और वही गोत्रका दुल्हा एक दूसरेके बहेन और भाई बनते है. इस प्रकार कन्याओंको सुरक्षा प्रदान होगी. क्यों कि कोई अपनी बहेनको छेडता नहीं.

प्रकीर्ण धर्म राज्य

(१४) हिन्दु राज्यके पीछे जिन्होनेंप्रकिर्ण धर्म वाले मतलब कि यहुदी, अन्य बिनख्रिस्ती, बिनमुस्लिम धर्म वाले आयेंगे. जिनके धर्मके आधार पर जिल्ला और या तहेसील और या नगर/ग्राम बनेंगे.

ख्रिस्ती राज्य

(१५) प्रकीर्ण धर्म राज्यके पीछे ख्रिस्ती राज्य आयेगा. ख्रिस्ती धर्मके वर्गीकरणके हिसाबसे उनके जिल्ला, तेहसील और नगर/ग्राम रहेंगे.

मुस्लिम राज्य

(१५) ख्रिस्ती राज्यके पीछे मुस्लिम राज्य आयेगा. मुस्लिम धर्मके आंतरिक वर्गीकरण के हिसाब से उसके राज्यमें जिल्ला, तहेसील, नगर/ग्राम आदि बनेंगे.

भाषा प्रथमका क्या?

(१६) जिन्होनेभाषा प्रथमलिखाया है उनको केन्द्रसे यक्षराज्य और हिन्दु राज्यकी सीमासे लेकर भौगोलिक केन्द्र तक एक यथा योग्य चौडाईवाला विस्तार अंकित किया जायेगा उसमें भीन्न भीन्न भाषा प्राधान्यवाले का विस्तार आयेगा.

(१७) हरेक धर्मराज्यको आर्टीकल ३७०की सुविधा मिलेगी.

देशका धर्मजाति आधारित पूनर्र्चनाका सैधांतिक चित्र देखो. और भारतका प्रास्तावित चित्र भी देखो.

india राज्य

india

ध्रर्मजाति आधारित राज्यके लाभ

() धर्म, जाति और भाषाको लेकर आंतरिक युद्धकी शक्यताका निर्मूलन

() जाति आधारित आरक्षणकी समस्याका निर्मूलन

() आतंकवादका निर्मूलन आसान

() काश्मिरकी आतंरिक समस्याका निर्मूलन

() नये राज्योंकी मांग अशक्य

() मतबेंककी सियासत नष्ट,

धर्म और जाति आधारित राज्यों की समस्याएं क्या हो सकती है? और उनको कैसे हल किया जाय?

() जनताका स्थानांतरणः कोम्प्युटरकी मददसे प्रवर्तमान नगर और ग्राममें मकानका विस्तार और संख्यामें उपलब्धता और धर्मके आधार पर वर्गीकृत व्यक्तिओंकी उचितताके आधार पर आबंटन.  और उस आधारपर सरकार द्वारा आयोजन करके स्थानांतरण.

() एक नगर/ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेते है तो शादीकी समस्या कैसे हल की जाय? शादीईच्छुक लोगोंकी और वाग्दत्त/वाग्दत्ताओंकी आवन जावन बढेगी तो सरकारका टेक्ष टीकीटों द्वारा राजस्व बढेगा.

() एक धर्मके लोगोंका अन्य राज्यमें धार्मिक स्थल है. इससे राज्यका पर्यटन व्यवसाय बढेगा.

() सभी राज्य क्लोझ्ड सरकीटमें है, इसलिये क्लोझ्ड सरकीट मार्गव्यवहार बढेगा और देशकी तरक्की होगी. व्यवसायमें वृद्धि होगी

() एक ही जातिके लोग परस्पर झगडेंगे इस कारण जनताका एक ही उपउपउप ज्ञातिमें और विभाजन होगा, तो इससे नये नगर बनेंगे और विकास होगा. नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसे विभाजनोंका लाभ ले सकती है. इस लिये नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारको क्षति नहीं आयेगी.

() जिस व्यक्तिका राज्य पूनर्रचनाके बाद जन्म हुआ वह जब वयस्क हुआ तो वह अपनी पसंदका राज्य कर सकता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः नहेरुवीयन कोंग्रेस, मीडीयाकर्मी, लेखक, विद्वान, सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, धर्म, जाति, भाषा, उप, उप-उप, उप-उप-उप, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गोत्र, यक्ष, हिन्दु, राज्य, प्रकिर्ण, ख्रिस्ती, मुस्लिम, यहुदी

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नरेन्द्र मोदी जब प्रधान मंत्री बन जाय, तब भारतीय जनता उनसे क्या अपेक्षा रखती है? – 3

सूचना आयोग सुधारः (रेफोर्मस इन पब्लिक इन्फोर्मशन)

हालमें सूचना आयोगके चार स्तर है.

() मुख्य सूचना आयुक्त () सूचना आयुक्त () सूचना अधिकारी ()सहायक सूचना अधिकारी,

केन्द्र सरकार संचालित या उसकी अनुसूचित संस्थाएं और राज्य सरकार संचालित या उसकी अनुसूचित संस्थाएं जिनको सरकारसे लोक कोषमेंसे वेतन, दान, अनुदान मिलता हो या सरकारी कर, उपकर, शुल्क में मुक्ति, शिथिलीकरण, राहत, मिलती हो ऐसी संस्थाएं आती है. इन संस्थाओंका मुख्य अधिकारी सूचना अधिकारी होता है. और उसी संस्थाका एक नियुक्त अधिकारी सहायक सूचना अधिकारी होता है.

सहायक सूचना अधिकारी

सहायक सूचना अधिकारी, जनतासे सूचना अनुरोध प्राप्त करता है.

यह अधिकारी, अपनी संस्थाके समुचित अधिकारीसे एक मासकी अवधि अंतर्गत सूचना उपलब्ध करके अनुरोधकको देता है. सूचनाके नीचे वह अपेलेट प्राधिकारी का नाम और पता और अपीलकी समयावधि अनुसूचित करता है.

यदि सूचना अनुरोधकको इसमें कोई क्षति है ऐसा लगता है तो वह अपेलेट प्राधिकारी को अपील कर सकता है. इस प्रकार (), () और (), क्रमानुसार अपेलेट प्राधिकारी है.

प्राधिकारी () और (), संस्थाके खुदके अधिकारी होते है. और संस्था को ही वे जिम्मेवार होते है. उनका वेतन भी संस्था ही करती है. और ये अधिकारी संस्थाके हितमें (संस्थाके अधिकारीयोंकी क्षतियोंको छिपाने का) काम करते दिखाई देते हैं.

जनताका सूचना अनुरोधकके बारेमें अनुभव कैसा है?

सूचना आयुक्त अपनेको हमेशा, और सूचना अधिकारी अपनेको कभी कभी, जैसे वे खुद न्यायालय चला रहे हो.

सूचना अधिकारी और सूचना आयुक्त सुनवाई प्रक्रिया चलाते हैं. सूचना अनुरोध पत्र सरल होता है. और उसका उत्तर भी सरल होना चाहिये. किन्तु सूचना प्रदान करने वाली संस्था और समुचित अधिकारी हमेशा सूचना छिपानेकी कोशिस करता है. असंबद्ध सूचना देता है या तो टीक शके ऐसे आधरपर अनुरोधित सूचना नकार देता है या अनुरोधित सूचना सतर्कता अधिकारीके अन्वेषण के अंतर्गत है, ऐसा उत्तर दे के उसको टाल देता है. अगर आप सूचना अनुरोधक है और अगर आप मिली हुई सूचनासे  संतुष्ट नहीं है और अगर आपको सूचना आयुक्त के स्तर पर जाना पडा तो आपको एक साल लग सकता है.

सूचना अधिकारीयोंके पास स्वतंत्र कर्मचारी गण या कार्यालय नहीं है

सिर्फ सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त के पास ही अपना कर्मचारीगण और कार्यालय होता है. बाकी के सब सूचना अधिकारी, उनका कर्मचारी गण और कार्यालय अपने अपने अंतर्गत संस्थाओंका खुदका होता है.

जहां कहां भी अगर कोई अनियमितता, नियमका उल्लंघन, अनादर, कपट आदिका आचरण हुआ है ऐसी आपको शंका है और अगर आपने सूचना अधिकारके अधिनियम के अंतर्गत अनुरोध पत्र दिया तो समझ लो कि आपको सूचना आयुक्त तक जाना ही पडेगा. अगर आप पूर्ण समय के लिये इस कामके लिये प्रबद्ध है तभी आप अंत तक मुकद्दमाबजी करनी पडेगी.

सूचना आयोगका पूनर्गठन क्यों?

हालमें सहायक सूचना अधिकारी और सूचना अधिकारी, संस्थासे संलग्न होते है. वे संस्थाको समर्पित होते है और उसके उपर संस्थाके उच्च अधिकारी के लिखित अलिखित आदेशोंका पालन करना पडता है.

कामकी निविदा (टेन्डर नोटीस), निविदा दस्तावेज (टेन्डर डोक्युमेन्ट), मूल्यांकन (इवेल्युएशन), संविदा (कोन्ट्राक्ट), में कहीं कहीं क्षति रक्खी जाती है ता कि, निवेदक के साथ सौदाबाजी कि जा सके, या ईप्सित निवेदकको  अनुमोदन और स्विकृति दे सकें. याद करो युनीयन कार्बाईड के साथ कि गई संविदा. संविदा ही दूर्घटना के कारण पीडित लोंगोंको हुई हानि का प्रतिकर संपूर्ण क्षतियुक्त था. ऐसा संविदा दस्तावेज बनानेमें गैर कानुनी पैसे की हेराफेरी नकारी नहीं जा सकती. यह तो एक बडी घटना थी. लेकिन ऐसे कई काम होते है जिनमें संस्थाका उच्च अधिकारी अंतिम निर्णय लेता है. इसमें भी गैर कानुनी तरिकेसे पैसे की हेराफेरी होती है. और इस कारण जब सूचना अधिनियम के अंतर्गत आवेदन आता है तो संस्थागत अधिकारी हमेशा सच्चाईको छिपानेकी कोशिस करता है.

ऐसी ही परिस्थिति जनपरिवाद (पब्लीक कंप्लेइन्ट) पर कार्यवाही करनेमें होती है.

परिवाद (कंप्लेईन्ट) पत्रपर कार्यवाही करने वाला संस्थागत अधिकारी ही होता है. और वह अपने क्षतिकरने अधिकारी/कर्मचारीकी प्रतिरक्षा (डीफेन्ड) करनेका प्रयत्न करता है और समुचित कार्यवाही करता नहीं है. एक परिवाद आयोग की रचना आवश्यक है. यह परिवार आयोग संस्थाके सतर्कता अधिकारीसे उत्तर मांगेगा. और जिस प्रकार जन सूचना अभियोगके अंतरर्गत कार्यवाही होती है, वैसी ही कार्यवाही परिवादकके प्रार्थना पत्र पर होगी. जनपरिवादका काम लोकपाल / लोकायुक्त के कार्यक्षेत्रमें आता है.

परिवाद और सूचनाका संमिलन (मर्जर) क्यों

वास्तवमें देखा जाय तो हर एक माहिति/सूचना के अनुरोध आवेदन पत्र की पार्श्व भूमिमें एक प्रच्छन्न परिवाद होता है. लोकपाल और सूचना आयुक्त के अधिकारी, कर्मचारी (अधिकारी) को दंडित कर सकते है

इस प्रकार सूचना आयोगका नाम जन सूचना और जन परिवाद आयोग रहेगा या लोकपाल/लोकाअयुक्त रहेगा. इस आयोगका कुछभी नाम देदो. आवश्यकता के अनुसार अधिकारी संयूक्त कोई स्तर पर संमिलित या भिन्न भिन्न रहेंगें. हम अब इसको सूचना लोक योग कहेंगे.       

जन सूचना और जन परिवाद आयोग (सूचना परिवाद लोकायुक्त अयोग) एक संपूर्ण स्वतंत्र आयोग होना चाहिये.

सूचना लोकायुक्त अयोग अधिकारीसे लेकर मुख्य आयुक्त तक सभी अधिकारी गण, उनके कर्मचारी गण और उनके कार्यालय स्वतंत्र और अलग होना चाहिये.

सूचना लोकायुक्त अधिकार के अंतर्गत सभी अधिकारी गण और कर्मचारी गण को निरपेक्ष और अर्थपूर्ण बनानेके लिये प्रशिक्षण देना चाहिये.

सूचना अधिकारीका कार्यक्षेत्र और लोक आयोग का कार्यक्षेत्र हालमें विभाजित है. सूचना अधिकारीको संस्थासे अलग करके सूचना अधिकारका वह लोक आयोगका कार्य क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्रके आधारपर विभाजित होना चाहिये.

कोई भी संस्था जो सूचना अधिकार अधिनियम जो केन्द्र और राज्य सरकारके अंतर्गत क्षेत्रमें आती हैं, उसको अपना वेब साईट रखना पडेगा. उसमें सरकार द्वारा अपेक्षित विवरण रखना बाध्य रहेगा.  

सूचना अनुरोध और परिवाद आवेदन पत्र ग्रहण केन्द्रः

ग्राम सूचना अनुरोध परिवाद पत्र ग्रहण केन्द्रः (ग्राम पंचायतकी सीमा अंतर्गत स्थित केन्द्र) सहायक जन अधिकारीः

यह अधिकारी अपने भौगोलिक सीमाके अंतर्गत आनेवाले निवासीका (और अन्य क्षेत्रके निवासीका भी) सूचनाअनुरोध पत्र और परिवाद पत्र लेगा.

सरकारकी पारदर्शिकाके बारेमें जनताको उत्साहित करना आवश्यक है. इस प्रकारसे जनकोष (पब्लिक एकाऊन्ट)से प्रत्यक्ष या परोक्ष रीतिसे लाभान्वित संस्थाओं पर और सरकारी शासन पर सुचारु और व्यापक अनुश्रवण (मोनीटरींग) होना आवश्यक है.

जिस प्रकारसे मोबाईल के सीमकार्ड का वितरण के लिये ग्रहण केन्द्र निजी अभिकर्ताओंको (प्राईवेट एजन्सीयोंको) रखा जाता है उसी प्रकार सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र ग्रहण के लिये भी निजी अभिकर्ताओंको अनज्ञप्ति (लाईसेन्स) देना चाहिये.

अनुरोध व आवेदन पत्र

सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र विहित प्ररुप (प्रीस्क्राईब्ड फोर्मेट) में होंगे. यह विहित प्ररुप पत्र रू. /- की शुल्क पर इसी कार्यालय से मिलेगा. अगर चाहे तो सूचना अनुरोधक या परिवादक उसी विहित प्ररुपोंमें कद वाले पत्रमें लिखके या मुद्रित करके दे सकता है. सूचना अनुरोधकको अपने अभिज्ञान पत्र (आडेन्टीटी कार्ड) की अधिकृत प्रतिलिपि (सर्टीफाईड कोपी) और उसका क्रम और स्थायी (जहांका वह मतदाता है) पता देना पडेगा. यदि वह अपना अनुरोध पत्र गुप्त रखना चाहता है तो उसको यह शर्त लिखनी पडेगी.

सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र दोनोंका का विहित प्ररुप दो पृष्ठमें होगा. प्रथम पृष्ठ पर सूचना अनुरोधकका, समुचित संस्था का, और सहायक सूचना अधिकारी का विवरण होगा. द्वितीय पृष्ठपर अनुरोधित सूचनाका या परिवादका(कंप्लेईन्टका) विवरण होगा. दोनों पृष्ठपर हस्ताक्षर होगे. दूसरा पृष्ठ ही समुचित संस्थाको भेजा जायेगा.

प्रत्येक पत्र पर एक अनन्य क्रम संख्या लिखी जायेगी, जो दोनों पृष्ठोंको इस क्रम संख्यासे संमिलित होगी.   

सहायक अधिकारी इस पत्रको स्कॅन करके उसकी सोफ्ट प्रतिलिपि बनायेगा. और समुचित संस्थाके उच्च या अनुसूचित अधिकारी को प्रेषण पत्रके साथ ईमेल कर देगा. इसकी एक प्रतिलिपि आवेदकको मुद्रित करके और यदि उसका ईमेल पता है तो एक प्रतिलिपि उसको ईमेल करेगा.

आवेदक अपने पत्रके साथ  रू.१००/- फी, चेकसे या नकद से जमा करेगा. चेक से अगर फीस जमा कि है तो फीस जमा होने पर सहायक अधिकारी दूसरे ही कामके दिन पर उस आवेदन पत्र पर कार्यवाही करेगा.

पुरे भारतमें लोक सूचना आयुक्त के बेंक खाता इस प्रकार रहेंगे.

केन्द्र सरकार आयोग खाता

(राज्य का नाम) सरकार आयोग खाता.

यह राज्य और केन्द्रके आयोगोंकी बेंक खाता की सूचि हरेक अधिकारी के कार्यालयमें प्रमुख स्थान पर स्थायी प्रकारसे प्रदर्शित होगी.

सहायक अधिकारी, आवेदन पत्र को समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीको या सूचित अधिकारीको भेज देगा. आवेदन पत्र का रेकोर्ड रखेगा.

सूचना खर्च

संस्थासे सूचना प्रदान खर्चका मूल्य के विषय पर उत्तर मिलने पर, सहायक सूचना अधिकारी, सूचना अनुरोधकको १५ दिन के अंतर्गत खर्च रकम सूचना आयुक्त के खाता क्रम संख्यामें जमा करनेका निर्देश देगा. जब सूचना अनुरोधक सूचनाखर्च रकम जमा करेगा, तब सूचना अधिकारी संस्थाको सूचित करेगा. संस्था वह सूचना की सोफ्ट लिपि सहायक सूचना अधिकारीको भेजेगी. और सहायक सूचना अधिकारी उसको मूद्रित करके सूचना अनुरोधकको प्रेषित करेगा. यदि ईमेल पता है तो वह उसके उपर भी प्रेषित करेगा.

संस्था को जो परिवाद पत्र भेजा गया है उसका एक मासके अंदर उत्तर देगी. यदि परिवाद का किस्सा गंभीर अस्तव्यस्तताका या घोर असुविधाका है तो और इस प्रकार की प्रार्थना कि गई है तो सहायक अधिकारी इसको अपेलेट अधिकारीको प्रेषित करेगा और अपेलेट अधिकारी इसके उपर निर्णय करके उत्तरकी कालसीमा पर निर्णय करेगा और समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीको प्रेषित करेगा

अगर समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीने एक मासके अंतर्गत या सूचित काल सीमा के अंतर्गत उत्तर नहीं दिया या तो अधिक समयावधि मांगी तो यह बात वह आवेदकको सूचित करेगा. यह भी सूचित करेगा कि, अपेलेट प्राधिकारी कौन है और उसका पता क्या है.

यदि राज्य सरकारके अंतर्गत वह संस्था आती है तो प्रथम अपेलेट प्राधिकारी तेहसिल (या झॉन) विस्तारका सूचना परिवाद सहायक लोक आयुक्त होगा.

यदि केन्द्र सरकारके अंतर्गत वह संस्था आती है तो प्रथम अपेलेट प्राधिकारी जिला विस्तारका सहायक आयुक्त होगा.

बुथ समूह या वॉर्ड सूचना परिवाद सहायक अधिकारीः जहां ग्राम पंचायत नहीं होती है, किन्तु नगर पालिका या वॉर्ड होते है, वहां पर यह कार्यभार के आधार पर बुथ समूह विस्तार में यह अधिकारी होगा. वह ग्राम के सहायक अधिकारी के समान कार्य करेगा.

सूचना व परिवाद आयोग (राज्य)

तहेसिल या झॉनः  (राज्य) सूचना लोक सहायक लोक आयुक्त. यह अधिकारी राज्य सरकार के कार्यक्षेत्रमें आती समुचित संस्थासे संलग्न सूचना परिवाद के आवेदकोंके प्रथम अपेलेट प्राधिकारी है.

जिला विस्तारः  (राज्य) सूचना परिवाद लोक आयुक्तः लिये द्वितीय अपेलेट प्राधिकारी है.

राज्य विस्तारः (राज्य) सूचना परिवाद आयुक्त. यदि (राज्य) सहायक सूचना परिवाद लोकायुक्त  निर्णय पर आवेदक असंतुष्ट है तो वह राज्यके सूचना परिवाद आयुक्त के पास अंतिम अपील करेगा.

उसके बाद भी असंतूष्ट है तो उच्च न्यायलयमें जायेगा.

केन्द्रीय विस्तारः केन्द्रीय सूचना व परिवाद आयोगः

जिला विस्तारः (केन्द्र) सूचना परिवाद सहायक लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें प्रथम अपेलेट प्राधिकारी.

राज्य विस्तारः (केन्द्र) सूचना परिवाद लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें द्वितीय अपेलेट प्राधिकारी.

राष्ट्र विस्तारः (केन्द्र) सूचना परिवाद मुख्य लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें अन्तिम अपेलेट प्राधिकारी.

इनके निर्णयसे यदि आप असंतुष्ट है तो सर्वोच्च अदालतमें जाना होगा.

यह एक रुपरेखा मात्र है. इसको कानुनी भाषामें विधेयक प्रारुपमें शब्द बद्ध करना है और कार्य प्रणालीका विस्तारसे विवरण करना आवश्यक है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः सूचना, अनुरोध, सहायक अधिकारी, आयुक्त, आयोग, ग्राम, बुथ समूह, तेहसिल, वॉर्ड, झॉन, जिल्ला, राज्य, राष्ट्र, समयावधि, न्यायालय, उच्च सर्वोच्च, मुख्य,  कामकी निविदा, टेन्डर नोटीस,   संविदा, कोन्ट्राक्ट, जन परिवाद, पब्लीक कंप्लेइन्ट, प्रतिरक्षा, डीफेन्ड, संमिलन, मर्जर, पारदर्शिता, प्रतिलिपि, अपेलेट, प्राधिकारी

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