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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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खुशवंत सिंह जो शेरकी खालमें शृगाल था

khushvant

खुशवंत सिंह को कुछ लोग खुशामतसिंह भी कहते थे.

क्या खुशवंत सिंह शेर थे यानी कि निडर थे?

क्या ऐसा भी हो सकता है?

अगर दुधपाकमें सर्कराकी जगह नमक डले तो वह क्या दुधपाक माना जायेगा?

अगर महाराणा प्रतापका घोडा चेतक युद्धभूमिमें घुसनेसे इन्कार करे तो राणा प्रताप उसको प्यार करते?

अगर देशप्रेमकी बांगे पूकारने वाला कोई सरदार, दुश्मनके आगे घुटने टेक दें तो वह क्या वह सरदार कहेलायेगा?

क्या कोई वीर अपने देशके अपमानका बदला लेनेकी प्रतिज्ञा ले और उसका पालन भी करे तो वह क्या रघुवंशी कहेलायेगा?

अगर खुदको शूरवीर प्रस्तुत करनेवाला चोर आने पार दूम दबाके भाग जाय या चोरसे जिवंत पर्यंत दोस्ती करले तो क्या वह शूरवीर माना जायेगा?

इस बात पर यही कहेना पडेगा कि जो शेर कुत्तेसे डरकर भाग जाता है वह शेर नहीं कहेलाता.

बकरीकी तीन टांग

तो यह खुशवंत सिंह जिसको समाचार माध्यमोंके कई मूर्धन्योंने सदाकाळ और उसकी मृत्युके अवसर पर तो खास, एक निडर पत्रकार लेखक घोषित किया उसमें कितना तथ्य और कितनी वास्तविकता?

जिनको नहेरुका और उनकी लडकी इन्दीरा गांधीका शासन काल और कार्य शैलीका ज्ञान नहीं और उस समय खुशवंत सिंह कहां थे वह मालुम ही नहीं हो उसके लिये खुशवंत सिंहकी निडरताकी बातें बकरीके तीन टांग जैसी है. लेकिन उसका मतलब यह नहीं कि वे लोग अपनी अज्ञानता उनके विवेकशून्यता का कारण बता दें.

खुशवंत सिंहको निडर कहेना क्या मजाक है या वाणी विलास है?

नहेरुका समर्थन करना नहेरुकी रुस और चीन परस्तीवाली विदेश नीतिको समर्थन करनेके बराबर है. नहेरु अपनेको जन्म मात्र से हिन्दु समझते थे. कर्म और विचारसे नहीं. धार्मिक विचार धारा कैसी पसंद करनी है, यह अपनी अपनी पसंदगीका विषय है. लेकिन जब अगर कोई नेता राजकीय प्रवृत्तिमें है और जन विकासके लिये अपनी नीतियां बनाता है तब उसको अपनी नीतियोंके बारेमें आज और कलका ही नहीं परसोंका भी सोचना चाहिये. अगर नेता इस बारेमें सोचता नहीं है तो वह नेताके योग्य नहीं. उसके समर्थकों बारेमें भी हमें वैसा ही सोचना चाहिये.

नहेरुकी विदेशनीति देशके लिये विद्ध्वंशकारी थी. उसका व्यापक प्रभाव है

नहेरुका सर्वग्राही समर्थनमें उनकी परिपेक्षित विदेश नीति का समर्थन भी हो जाता है.  

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि सरदार पटेलने जो चेतावनी दी थी वह गलत थी उसका स्विकार करना.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि राजगोपालाचारी और जेबी क्रिपलानी, महावीर त्यागी आदि कई नेतागण संसदमें जो समाचार देते रहे थे उसको नहेरु गलत मानते रहेते थे और उनके सुझावोंकी अवमानना करते थे तो इस बातमें उन सभी महानुभावोंको गलत समझना और नहेरुको सत्यवादी समझना.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि जब सत्य सामने आया और चीनने भारत पर हमला करके भारतकी ९०००० (नब्बे हजार चोरस मील) भूमि पर कबजा जमा लिया), तो भी १९६७के चूनाव में नहेरुकी पूत्री इन्दीरा गांधीका समर्थन करना ऐसा ही सिद्ध होता है.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि, इन्दीरा गांधी नहेरुकी नीतियोंकी समर्थक थी. इस कारण इन्दिराका और उसके साथीयोंका समर्थन करना यह ही सिद्ध करता है कि भारतको नहेरुवीयनोंकी आत्मकेन्द्री और देशको बरबाद करनेवाली नीतियोंका अगर आप समर्थन करते है.

इस कारण से नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि तो शायद आपकी दिमागी खराबी है या तो आप भी आत्मख्यातिकी प्रच्छन्न ध्येय के सामने देश हितको गौण समझते है.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी (नहेरु, इन्दिरा आदिकी विदेश नीतियोंके कारण भारतके हजारों जवान बेमौत मारे गये और  देशकी आर्थिक विनीपात आपकी कोई गिनतीमें नहीं.

अगर ऐसा नहीं है तो आप कभी खुशवंत सिंह को निडर पत्रकार कभी नहीं मान्य रखते.

निडर कौन है?

निडर वह है जो यातनाओंसे डरता नहीं है. साथ ही साथ कमजोर आदमी भी वह निडर आदमीसे डरेगा नहीं. क्यों कि कमजोर आदमी भी निडरके पास सुरक्षित है.

निडरता वैसे तो एक सापेक्ष सदगुण है

जब नहेरुकी पुत्रीने अपनी सव्रक्षेत्रीय प्रशासनीय निस्फलताको छिपानेके लिये आपातकालकी घोषणा की, तो जिन मूर्धन्योंने इन्दीराके आपातकालका समर्थन किया उन डरपोक मूर्धन्योंमे खुशवंत सिंह भी थे.

जब कोई व्यक्ति आपातकालका समर्थन करता है तब उसके खुदके बारेमें कई और बातें भी सिद्ध हो जाती है.

अगर आप आपतकालका समर्थन करते है तो आप अपने आपमें यह भी सिद्ध मान लेते हो;

महात्मा गांधीके वैचारिक और निवासीय अंतेवासी जय प्रकाश नारायण पथभ्रष्ट थे और उनको जेलमें भेजना आवश्यक था.

देशकी समस्याओंका कारण इन्दिराका शासन नहीं था, लेकिन जो लोग इन्दिरा गांधीकी विफलताका विरोध कर रहे थे वह विरोध ही विफलताका कारण था.

लोकशाहीमें विरोधी सुर उठानेवाले और जन जागृतिके लिये मान्य प्रक्रियाका सहारा लेनेवाले देश द्रोही है.

यह भी कम है. आगे और भी देखो;

जिन लोगोंने आपातकालका विरोध किया नहीं था, लेकिन भूतकालमें इन्दिराका विरोध किया था और (और ही नहीं या भी लगा लो) या तो भविष्यमें विरोध कर सकते है, उनको भी जेलमें बंद कर दो. इसकाभी आप समर्थन करते है.

समाचार माध्यम पर शासकका पूर्ण निरपेक्ष अधिकार और शासकका अफवाहें फैलानेका अबाधित अधिकार और सुविधा इसका भी आप समर्थन करते है.

मतलब की आप (खुशवंत सिंघ), शासकको संपूर्ण समर्पित है. आपका शरीर एक शरीर नहीं एक रोबोट है, जिसका कोई जैविक अस्तित्व नहीं है. आप एक अस्तित्व हीन निःशरीरी है. यह बात आपने पहेले से ही सिद्ध कर दी है.

खुशवंत सिंह की दाढी और धर्म की चर्चा हम नहीं करेंगे.

स्वर्ण मंदिर पर हमले की बात भी कभी बादमें (२५वी जुन पर) करेंगे.

ईशावास्य उपनिषदमें लिखा हैः

असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता,

तांस्ते प्रेत्याभि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ()

जो लोग विवेकशील बुद्धिका अभाव रखकर अंधकारसे आवृत रहते है वे लोग आत्माको जानते नहीं और वे हमेशा अंधकारमें ही रहेंगे क्यों कि उन्होने अपनी आत्माको नष्ट किया है.

निडरता सापेक्ष है

आपतकालमें जो लोग निडर रहे उसके प्रमाणित निडरता क्या क्या थी? हम उनको इस प्रकार गुण (मार्क्स) देंगे;

१०० % गुण; ऐसे लोग, वैसे तो इन लोगोंका काम शासनका विरोध था ही नहीं, लेकिन क्यूं कि मानव अधिकार का हनन हुआ तो उन्होने खूल्ले आम विरोधका प्रारंभ किया.

उदाहरण; भूमिपूत्रके संपादक गण. नानुभाई मजमुदार, कान्तिभाई शाह

१०० % गुण; जो लोग वास्तवमें महात्मा गांधीकी परिभाषा के हिसाब से निडर थे उन्होने लोक जागृतिकी प्रवृत्ति खुल्लेआम चालु रखी और कारावासको भूगतनेके लिये हमेशा सज्ज रहे.

उदाहरण;ओपीनीअनके मालिक पदत्यागी आईसीएस अधिकारीगोरवाला

९९ % गुण; जेल जानेसे डरते नहीं थे लेकिन जनता सत्यसे विमुख रहे इसलिये भूगर्भ प्रवृत्तिद्वारा समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिये अपनी जिंदगीभरकी पूरी बचतको खर्च कर दिया.

उदाहरण; भोगीभाई गांधी  

७५% गुण; वे लोग जेल जानेसे डरते थे या तो व्यर्थ ही जेल जाना चाहते नहीं थे इस लिये भूगर्भ प्रवृत्ति जितनी हो सके उतनी करने वाले.

उदाहरण; नरेन्द्र मोदी और उसके कुछ साथी, सुब्रह्मनीयन स्वामी, जोर्ज फर्नाडीस, आदि कई लोग

५०% गुण; वे लोग जेल जानेसे डरते थे लेकिन शासनके विरोधी तो बने ही रहने चाहते थे लेकिन कुछ समयावधिके लिये निस्क्रीय हो गये.

उदाहरण; विनोबा भावे और सर्वोदयी मित्रगण

४०% गुण; वे लोग जो जेल जानेसे डरते थे लेकिन शासनके विरोधी तो बने ही रहने चाहते थे लेकिन निस्क्रीय हो गये.

उदाहरण; सुज्ञ जनता, सुज्ञ मूर्धन्यगण

३०% गुण; वे लोग जो सरकारी माध्यमोंके द्वारा किये गये प्रचारसे द्विधामें पड गये और मौन हो गयेः उदाहरण; आम जनता

२०% गुण; वे लोग जो समाचार पत्रमें शासन के बारेमें गतिविधियोंका विश्लेषण करते थे और अपनी कोलम चलाते थे, उन्होने अपनी कोलम चालु रखनेके लिये कोई और विषय पर चर्चा चलाने लगे. या तो असंबद्ध बातें लिखने लगे.

उदाहरण; ख्याति प्रिय स्वकेन्द्री अखबारी मूर्धन्य गण

००% गुण; वे लोग जो समझने लगे कि सियासतसे दूर ही रहो.

उदाहरण; आम जनता

अब सब ऋणात्मक गुण प्राप्त करने वाले आते हैः

(५० % गुण); वे लोग जो मानते थे कि इन्दिरा को पछतावा होता था और वह डर डर कर रहेती थी,

(६०% गुण); वे लोग जो कहते थे अरे उसने तो आपातकाल हटा लिया था. और बादमें उसने घर घर जाके अफसोस जताया था.

उदाहरण; अखबारी मूर्धन्य कान्ति भट्ट (जंगलमें मोर नाचाहा पस्तावा, विपूल झरना, स्वर्गसे नीकला हैपापी उसमे  गोता लगाके पूण्यशाली बनेगा)

(७० % गुण); वे लोग जो बोलते थे कि आपात काल घोषित करने कि इन्दिराकी तो ईच्छा नहीं थी और वह अस्वस्थ थी                         

(८० % गुण); वे लोग जो बोलते थे कि, क्या करती वह इन्दिरा? सब उसके पीछे पड गये थे. इसलिये उसने आपात काल घोषित किया

(९० % गुण); वे लोग जो बोलते थे “लोकशाहीने क्या किया. कुछ नही. अब इन्दिराको अपने तरिके से काम करने दो”.

(९५ % गुण); हम भारतीय, लोकशाहीके लायक ही नहीं है.

उदाहरण; शिवसेना,

(९९ % गुण); वे लोग जो बोलते थे अरे भाई हमारा तो नहेरुसे कौटूंबिक नाता है. हमें तो उसका अनुमोदन करना ही पडेगा.

उदाहरण; जिसनेसूतकी मालालिखके महात्मा गांधीको अंजली दिया था, उसने आपात कालमेंजूठकी मालालिखनी चाहिये थी और उसको इन्दिराको पहेनानी चाहिये थी. अमिताभ बच्चन के पिता 

(९९. % गुण); अरे भाई, इन्दिरा और मैं तो साथमें पढे थे,

उदाहरण; बच्चन कुटुंब

(१०० % गुण); जो लोग बोलते थे; वाह वाह इन्दिरा गांधी वाह वाह. इन्दिरा गांधी तूम आगे बढो हम तुम्हारे साथ है.

उदाहरण; साम्यवादी नेतागण, नहेरुवीयन कोंग्रेसके बंधवा, खुशवंत सिंघ, आदि.

खुशवंत सिंह पर कुछ मूर्धन्य इसलिये फिदा है कि खुशवंत सिंह चिकनी चुकनी बातें लिखते थे. क्या चिकनी और गुदगुदी कराने वाली बातें लिखनेसे आदमी निडर माना जाता है?

अरे भाई, खुशवंत सिंह की मौत हुई है. मौतका तो मलाजा रक्खो?

क्या वह कभी जिन्दा भी था? उपर पढो; “(तांस्ते प्रेत्याभि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः)”

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः खुशवंत सिंह, नहेरु, इन्दिरा, लोकशाही, आपातकाल, गुण, ऋणात्मक गुण, निडर  

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