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Posts Tagged ‘वंशवादी पक्ष’

सुओ मोटो? काहेका सुओ मोटो?

हम लुट्येन गेंगोमेंसे एक हैअंग है

सुओ मोटो?

यह तो लुट्येन गेंगोंको सहाय करनेके लिये ही आरक्षित है

हम ही तो लुट्येन गेंगका अभीन्न भाग है

आप समज़ते क्यूँ नहीं हो?

हम फर्जी सेक्युलर पक्ष बनाते है, हम सरकारी नौकरीके लिये मरते है, यदि  कोई आतंकवादी मर गया तो हम उसके मानव हक्कके लिये संयुक्त राष्ट्र संघ और मानव अधिकार सुरक्षा संघ तक पहूँच  जाते है,

हमारी (हम्प्टी डम्प्टी प्रकारकी) परिभाषा

भारतके कश्मिरमें यदि ९५ प्रतिशत जनसंख्या वालोंको हम अल्पसंख्यक मानते है,

वहाँकी प्रतिशत जनसंख्या वाले समुदायको हम बहुसंख्यक मानते है,

हमने इन प्रतिशतकी हजारों औरतोंके उपर दुष्कर्म कियाहमने, इनकी हजारोंकी खुले आम हत्या कीहमने लाखोंको बेघर कियाहमारे कानोमें जू तक नहीं रेंगती, बकवास है सुओ मोटो

किन्तु हाँ, यदि हमसे प्रमाणित इन ९५ प्रतिशत जनसंख्या वाले कश्मिरमेंकोई शासक पक्ष, जनतंत्रकी स्थापना करें तो हमारे हरेकके कर्णयुग्म, श्वानोंकी तरह, उंचे हो जाते है. इतना ही नहीं हम एकसुरमें सहगान करके, मौका मिले या मिले, आपके शासकको काट भी लेतें है.

हमारे पास क्या कया नहीं है?

हमारे पास सब कुछ है,

हमारे पास बडे बडे वकील है,

हमारे पास भूमाफिया है,

हमारे पास ड्रग माफिया है,

हमारे पास गुन्डोंका जाल है,

हमारे पास, केवल मरनेका ठान कर, इस दुनियामें आने वाले, जिनको हमने शांति प्रिय, आनंद प्रिय, भ्रातृभाव के गुणोंसे लिप्तआदि जैसे अनेक गुणोंसे प्रमाणित किया है, वे है. ये लोग नीले रंगको प्यार करने वाला जन समूह है,

हमारे पास, केवल ध्येय प्राप्तिके लिये, मार मिटाने (किसीको भी मारकर मिटाने) वाले लाल रंगका, प्यारा जन समूह है,

हमारे पास केवल सत्ता और संपत्तिको पानेके लिये, चाहे देश रसाताल क्यों होय जाय, ऐसा ठानने वाले, जिनका सारा अंग  विषमय है, ऐसे वंशवादी पक्ष भी है,

हम हर प्रकारसे कोमवादसे लिप्त होते हुए भी है, हम अपनोंसे प्रमाणित धर्मनिरपेक्ष और लीबरल  है,

अरे हमारा सांस्कृतिक क्षेत्र,  केवल भारत ही नहीं पाकिस्तान  और चीन ही नहीं, युएसए और यु.के. तक विस्तरित है. आप हमें देशद्रोही (लुट्येन गेंगवाले), प्रतिशोधवादी, पूर्वग्रह वाले और भ्रष्ट माना करो, किन्तु हम, स्वयं प्रमाणित जनतंत्र वादी, मानवता वादी, उदारमतवादी है.

अरे आपको मालुम नहींहमे कोई फर्क नहीं पडता, चाहे  कोई सर्वोच्च न्यायालयका निवृत्त मुख्य न्यायाधीश हमें लुट्येनगेंग वाले कहें.  हमें क्या? हमें कोई फर्क नहीं पडता.

आदित्यनाथ  योगीजी महाराज, आप हमें कोई भी नामसे बुलाओ, चाहे न्यायालय ही क्यों नहीं?

अरे योगीजी, क्या आप युपीके संस्कारमें परिवर्तित करना चाहते हो?

अबे बच्चु, हमसे पंगा मत लो. युपीका संस्कार तो जो १९५०से हमारे कोंगीयों द्वारा और उनके सांस्कृतिक साथीयोंके द्वारा सुसर्जित है. हम वही रखने वाले है.

हम परिवर्तनमें मानते नहीं. हमजैसे थे वादीहै. हम बुर्ज़वा लोग है. लेकिन हम आपको ही बुर्ज़वा कहेंगे और मीडीया वाले भी ऐसा ही कहेंगे,

सुओ मोटो  …  ?

 यदि आपने दुष्कर्म करनेवालोंकी छवी मुख्य स्थानों पर प्रदर्शित की तो हम आपको पूछेंगे ही, कि नियम कहां है? क्यों कि हम तो केवल नियमसे ही चलते है. नियम नहीं तो कुछ भी नहीं.

हमें तो नियम चाहिये. हमें अधिक सोचनेकी आदत नहीं. हम दिमाग चलानेमें मानते नही. वकीलको किस लिये रक्खा है? यदि हम दिमाग चलायेंगे तो वकिल क्या करेगा?

हम समाचार पत्र नहीं पढते है, हम टीवी चेनल नहीं देखते हैं, हम कानून भी नहीं पढते है. ऐसा आपको कभी कभी लगता होगा. अरे हम तो अपने आप अपना निर्णय भी नहीं लिखते. या तो हमारा स्टेनो लिखता है, या तो कोई और लिखता है जिसका हमारे पर प्रच्छन्न दबाव है.. अरे हम तो कभी कभी सुओ मोटो भी किसीकी प्रच्छन्न अनुज्ञासे लेते है.

काहेका सुओ मोटो … ?

पालघरमेंशस्त्रसे सुसज्ज दर्जनें पूलिस थींपूलिस अधिकारी थेएन.सी.पी. का नेता थाफिर भी एक अफवाह के फर्जी नाम पर दो हिन्दु संतोकी हत्या की. जी हाँ हम लुट्येन गेंगके सदस्य कुछ भी कर सकते है. और खास तौर पर जब हमारा शासन होता तब तो अवश्य ही करते हैं.

हमारे प्रिय समुदायके एक जुथ ने (जिनको हमलव धाय नेबरवाला जुथ कहेते हैं) हिन्दुके दो संतोंको मार डाला जिनमें एक संत वयोवृद्ध था,

तो क्या हुआ?

उसके ड्राईवरको भी तो मारा है. ऐसी निर्मम हत्या करना हमारे लिये आम बात है. ड्राईवरको भी तो मारा है. उसका तो आप लोग कुछ बोलते नहीं है. हिन्दुओंके संतोको माराहिन्दुओंके संतोंको माराऐसा ही आप लोग बोला करते है. आप लोगोंको ड्राईवरको जो मारा, उसका तो केवल उल्लेख करके चूप हो जाते है. आप हिन्दु लोग असहिष्णु ही नहीं, संकूचित मानसिकता वाले भी है.

अरे भाई, न्यायालय इसमें क्या करें !! हम तो लुट्येन गेंगके वकीलकी प्रज्ञा पर निर्भर है. वह यदि हमारे हिसाबसे जोरदार तर्क करे तो हमे तो उपरोक्त अभियुक्तोंको जमानत देनी ही पडेगी ?

अरे वाह! आप कैसी बातें करते है?

आप हमसे प्रश्न करते हैं कियदि हमने ये जिनके उपर हत्याका मामला दर्ज है उनको जमानत दे दी तो अर्णव गोस्वामीके सहायकोंको क्यूँ जमानत नहीं दी?

अरे भैया, अर्णव गोस्वामीने क्या गुस्ताखी की थी मालुम है आपको?

अर्णव गोस्वामीके सहायक तो महाराष्ट्रके मुख्य मंत्रीके करनाल स्थित फार्महाउस पर गये थे. और उस फार्महाउसके चौकीदारसे प्रश्न कर रहे थे कि यह फार्म हाउस किसका है?

मुख्य मंत्रीके उपर तो शासनकी धूरा है. जनतंत्रकी परिभाषा आपको ज्ञात है या नहीं? जनतंत्रमें जनताके प्रतिनिधिके विशेष अधिकार होते है. और मुख्यमंत्री तो ठहेरा सरकारका उच्च पदधारी.

क्या अर्णव गोस्वामीके कोई जनतंत्र प्रतिनिधि हो ऐसा मित्र नहीं है? प्रश्न पूछना है तो विधानसभामें पूछो. चौकीदारसे प्रश्न पूछनेकी क्या आवश्यकता है? तुम लोगोंको जनतंत्र क्या होता है वह मालुम ही नहींअरे भैया …, अब तो फर्म हाउस किसका था वह पता चल गया मुख्य मंत्रीके फार्महाउस पर जाके चौकीदारसे प्रश्न करने वाले को जमानत कैसे मिल सकती है … !! क्या वह जनताका अपमान नहीं होगा …? जनताके प्रतिनिधिका और विधान सभामें बहुमत होनेवाली सरकारके मुखीयाका अपमान करना जनताका ही अपमान हैहम जनताको अपमानित करनेवालोंको जमानत कैसे देख सकते … ? बोलो बोलो … !! चूप क्यूँ हो गये ? … बडे आये है हमें शिखाने वाले … !!

अर्णव गोस्वामीको हमने दश मीनटमें ही विधान सभा समक्ष उपस्थित होनेका आदेश दे दिया … !! देखा हमारा कमाल … !

सुओ मोटोकाहेका सुओ मोटो … ?

हम तो असंभव करनेका भी आदेश देते है. देख लिया …!! जो बात इन्दिरा गांधीके दिमागके बसकी बात नहीं थी वह भी हमने करके दिखायीऔर वह भी बिना आपात्काल घोषित किये … ?

सुओ मोटो … ? काहेका सुओ मोटो … !!

अरे भैया अभी तो तुमने  हमारा जनतंत्रका प्यार और नियमोंके प्रति हमारी प्रतिबद्धता देखा नहींहम तो हजार हजार एफ.आई.आर., अर्णवके हजार हजार सहयोगीयों पर दर्ज करेंगेउनके दायें, बायें, उपर, नीचे स्थित पडौशीयोंसे ले कर, फोन करनेवालोंसे लेकर, फोन रीसीव करनेवालों तक, सबकी पूछताछ करेंगेअर्णव और उसके सहायकोंको  त्राही माम्त्राही माम्‌  बुलवा देंगे

सुओ मोटो … ? काहेका सुओ मोटो … !!

हम आखिरमें सरकार है. हमारी जनताके प्रति, प्रतिबद्धता होती हैसमज़े समज़े … !!

कंगना रणौत?

कंगना रणौतका हमने क्या किया  ? देख लिया … !!

जब यह कंगना, मुंबईसे बाहर थी तब ही हमने उसको, २४ घंटेकी नोटीस देदी कि जवाब देदो

(वैसे तो उसने हमारी पहेलेकी नोटीसका जवाब दे ही दिया थालेकिन हमारी सरकार तो सरकार है. सरकारमें तो पूरी की पूरी फाईले गुम हो जाती है, तो एक पत्र को गुम कर देना क्या बडी बात है!)

वह कंगनाबाई हमें जवाब दें,और वह न्यायालयमें जा के स्टे ओर्डर लावे, उससे पहेले ही हमने, यंत्र सरंजाम ला के, उसका मकान तोड दिया. हमने कह दिया कि उसके मकानमें अवैध निर्माण कार्य हुआ था और हो रहा था.

क्या हम जूठ बोलते हैहमने जो कहा वही सच है. यह बात तो न्यायालयको भी मानना पडेगा. क्यों कि राजपत्रित अधिकारीसे भी हम यही बात बुलवायेंगे. संविधानमें ही लिखा है कि राजपत्रित अधिकारी जो बोले वह सत्य माना जायेगा.

दाउदके मकान क्यूँ नहीं तोडे ऐसा आप के मनमें है ?

अरे वह तो हमारे मातोश्री, पितोश्री जैसे आकोश्री है.

वोरा कमीशनका रीपोर्ट मांगने की गुंजाईश है आपमें? आप तो बडे नादान है.

हम इस कंगना रणौत, जो महाराणी लक्ष्मीबाई बननेका घमंड रखती है उसको तो हम खुले आम कहेते है कि,

तुम्हे सुरक्षा काहेकी? तुम्हारीतो टांग और कमर तोड देंगे यदि मुंबईमें पैर रक्खा तो

हम मराठी हैमुंम्बई महाराष्ट्रमें हैमुंबईका अपमानमहाराष्ट्रका अपमान हैमहाराष्ट्रका अपमान शिवाजी महाराजका अपमान है

(शिवाजी महाराज एक ही तो बचे है हमारे पासहमारी केवल शिवाजी महाराजसे ही बनती है.)

सुओ मोटो ? काहेका सुओ मोटो …!!

अरे आपने देखा नहीं कि हमारे पुलिस आयुक्तसे हमने क्या क्या बुलवाया?

सुओ मोटो ? काहेका सुओ मोटो …!!

जब आम आदमी पक्षने दिल्लीमें खुले आम अफवाह फैलाई कि यु.पी. – बिहारके श्रमजीवीयोंके जानेके लिये बसें तयार है सब वहाँ इकट्ठा हो जाओ

वैसे ही शरदके पक्षके नेताने बांद्रा पश्चिमकी मस्जिदके पास यु.पी. – बिहारके श्रमजीवीयोंके जानेके लिये रेल्वे ट्रेन तयार है ऐसी अफवाहें फैलाई,

और प्रयंका वाड्राने यु.पी. – बिहारके श्रमजीवीयोंके जानेके लिये १०० बसें तयार है ऐसी अफवाह फैलाई,

दिल्लीमें नीजामुद्दीन मर्कज़में विदेशी मुस्लिम धर्मगुरुओंने अधिवेशन बुलाया और खुले आम कहा कि कोरोना मुस्लिमोंका कुछ बिगाडने वाला नहीं है, वह तो खुदाकी देन है काफिरोंको मारनेकी

और इस प्रकार, भारत देशमें खुले आम हमने कोरोनाको फैलाया और देशके विकासशील अर्थतंत्रको पटरी परसे उतार दिया ……

सुओ मोटो ? काहेका सुओ मोटो …!!

शिरीष मोहनलाल दवे

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और ….

नरेन्द्र मोदीकी कार्यशैलीके बारेमें अफवाहोंका बाज़ार अत्याधिक गरम है. क्यों कि  अब मोदी विरोधियोंके लिये जूठ बोलना, अफवाहें फैलाना, बातका बतंगड करना और कुछ भी विवादास्पद घटना होती है तो मोदीका नाम उसमें डालना, बस यही बचा है.

लेकिन, ऐसा होते हुए भी …

हाँ साहिब, ऐसा होते हुए भी … पाकिस्तानके (१०० प्रतिशत शुद्ध) बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. बोलो. पाकिस्तान जो मोदीके बारेमें जानता है वह हमारे स्वयं प्रमाणित बुद्धिजीवी नहीं जानते.

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पाकिस्तानके १००% शुद्ध बुद्धि वाले हसन निस्सार साहिबने अपनी इच्छा प्रगट की है कि पाकिस्तानको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी. हमारे १०० प्रतिशत शुद्ध बुद्धिजीवी “मोदी चाहिये” इस बात बोलनेसे हिचकिचाते है.

बुद्धिजीवी

हमारे वंशवादी पक्षोंको ही नहीं किन्तु अधिकतर मूर्धन्यों, विश्लेषकों, कोलमीस्टोंको, चेनलोंको तो चाहिये अफज़ल गुरु. एक नहीं लेकिन अनेक. अनेक नहीं असंख्य. क्यों कि इनको तो भारतके हर घरसे चाहिये अफज़ल गुरु.

हाँजी, यह बात बिलकुल सही है. जब जे.एन.यु. के कुछ तथा कथित छात्रोंने (जिनका नेता २८ सालका होनेके बाद भी भारतके करदाताओंके पैसोंसे पलता है तो इसके छात्रत्व पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है ही)  भारतके टूकडे करनेका, हर एक घरसे एक अफज़ल पैदा करनेका,  भारतकी बर्बादीके नारे लगाते थे तब उनके समर्थनमें केज्री, रा.गा., दीग्गी, सिब्बल, चिदु, ममता, माया, अखिलेश, अनेकानेक कोलमीस्ट, टीवी चेनलके एंकर और अन्य बुद्धिजीवी उतर आये थे.  तो यह बात बिलकुल साफ हो जाती है कि उनकी मानसिकता अफज़ल के पक्ष में है या तो उनका स्वार्थ पूर्ण करनेमें यदि अफज़ल गुरुका नाम समर्थक बनता है तो इसमें उनको शर्म नहीं.

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जो लोग यु-ट्युब देखते हैं, उन्होने ने पाकिस्तानके हसन निस्सार को अवश्य सूना होगा. जिनलोंगोंने उनको नहीं सूना होगा वे आज “दिव्य भास्कर”में गुणवंतभाई शाहका लेख पढकर अवश्य हसन निस्सार को युट्युब सूनेंगे.

हमारा दुश्मन नंबर वन, यानी कि पाकिस्तान. वैसे ही पाकिस्तानका दुश्मन नंबर वन यानीकी भारत. तो पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको भी उनके लिये चाहिये नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. और देखो हमारे तथा कथित बुद्धिजीवी हमारे समाचार माध्यमोंमें विवाद खडा करते है कि नरेन्द्र मोदी आपखुद है, नरेन्द्र मोदी कोमवादी है, नरेन्द्र मोदी जूठ बोलता है, नरेन्द्र मोदीने कुछ किया नहीं ….

पाकिस्तानको जो दिखाई देता है वह इन कृतघ्न को दिखाई देता नहीं.

अब हम देखेंगे ममताका नाटक और उस पर समाचार माध्यमोंका यानी कि कोलमीस्ट्स, मूर्धन्य, विश्लेषक, एंकर, आदि महानुभावोंला प्रतिभाव.

घटनासे समस्या और समस्याकी घटना

ममता स्वयंको क्या समज़ती है?

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उनका खेल देखो कि वह किस हद तक जूठ बोल सकती है. पूरा कोंगी कल्चरको उसने आत्मसात्‍ कर लिया है.

यह वही ममता है. जिस जयप्रकाश नारायणने, भ्रष्टाचारके विरुद्ध इन्दिरा गांधीके सामने, आंदोलन छेडा था उस जयप्रकाश नारायणकी जीपके हुड पर यह ममता नृत्य करती थी. एक स्त्रीके नाते वह लाईम लाईटमें आ गयी. आज वही ममता कोंगीयोंका समर्थन ले रही है जब कि कोंगीके संस्कारमें कोई फर्क नहीं पडा है.

ऐसा कैसे हो गया? क्योंकि ममताने जूठ बोलना ही नहीं निरपेक्ष जूठ बोलना सीख लिया है. सिर्फ जूठ बोलना ही लगाना भी शिख लिया है. निराधार आरोप लगाना ही नहीं जो संविधान की प्रर्कियाओंका अनादर करना भी सीख लिया है. “ चोर कोटवालको दंडे”. अपनेको बचाने कि प्रक्रियामें यह ममता, मोदी पर सविधानका अनादर करनेका आरोप लगा रही है.

ऐसा होना स्वाभाविक था.

गुजरातीभाषामें एक मूँहावरा है कि यदि गाय गधोंके साथ रहे तो वह भोंकेगी तो नहीं, लेकिन लात मारना अवश्य शिख जायेगी. लेकिन यहां पर तो गैया लात मारना और भोंकना दोनों शिख गयी.

ममता गेंगका ओर्गेनाईझ्ड क्राईमका विवरणः

ममताके राजमें दो चीट-फंडके घोटाले हुए. कोंगीने अपने शासनके दरम्यान उसको सामने लाया. ममताने दिखावेके लिये जाँच बैठायी. कोंगी यह बात सर्वोच्च अदालतमें ले गयी. सर्वोच्च अदालतने आदेश दिया कि सीबीआई से जाँच हो. सीबीआईने जाँच शुरु की. जांचमें ऐसा पाया कि टीएमसी विधान सभाके सदस्य, मंत्री, एम. पी. और खूद पूलिसके उच्च अफसरोंकी घोटालेके और जाँचमें मीली भगत है. सीबीआईने पूलिससे उनकी जाँचके कागजात भी मांगे थे जिनमें कुछ काकजात,  पूलिसने गूम कर दिये. इस मामलेमें और अन्य कारणोंसे भी सीबीआई ने कलकत्ताके पूलिस आयुक्तकी पूछताछके लिये नोटीस भी भेजी और समय भी मांगा. पूलिस आयुक्त भी आरोपोंकी संशय-सूचिमें थे.

गुमशुदा पूलिस आयुक्तः

आश्चर्यकी बात तो यह है कि पूलिस आयुक्त खूद अदृष्य हो गया. सीबीआईको पुलिस आयुक्तको “गुमशुदा” घोषित करना पडा. तब तक ममताके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. हार कर सीबीआई, छूट्टीके दिन,  पूलिस आयुक्त के घर गई. तो पुलिस आयुक्तने सीबीआई के अफसरोंको गिरफ्तार कर दिया और वह भी बिना वॉरन्ट गिरफ्तार किया और उनको पूलिस स्टेशन ले गये. किस गुनाहके आधार पर सी.बी.आई.के अफसरोंको गिरफ्तार किया उसका ममताके के पास और उसकी पूलिसके पास उत्तर नही है. यदि गिरफ्तार किया है तो गुनाह का अस्तित्व तो होना ही चाहिये. एफ.आई.आर. भी फाईल करना चाहिये.

यह नाटकबाजी ममताकी पूलिसने की. और जब सभी टीवी चेनलोंमे ये पूलिसका नाटक चलने लगा तो ममताने भी अपना नाटक शुरु किया. वह मेट्रो पर धरने पर बैठ गयी. उसके साथ उसने अपनी गेंगको भी बुला लिया. सब धरने पर बैठ गये. पूलिस आयुक्त भी क्यों पीछे रहे? यह चीट फंड तो “ओर्गेनाईझ्ड क्राईम था”. तो ममताआकाको तो मदद करना ही पडेगा. तो वह पूलिस आयुक्त भी ममताके साथ उसकी बगलमें ही धरने पर बैठ किया.

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धरना काहेका है भाई?

ममता कौनसे संविधान प्रबोधित प्रावधान की रक्षाके लिये बैठी है?

ममता किसके सामने धरने पर बैठी है?

पूलिस कमिश्नर जो कायदेका रक्षक है वह  कैसे धरने पर बैठा है?

पूलिस आयुक्त ड्युटी पर है या नहीं?

कुछ टीवी चैनलवाले कहेते है कि वह सीवील-ड्रेसमें है, इसलिये ड्युटी पर नहीं?

अरे भाई, वह वर्दीमें नहीं है तो क्या वह छूट्टी पर है?

इन चैनलवालोंको यह भी पता नहीं कि वर्दीमें नहीं है इसका मतलब यह नहीं कि वह ड्युटी पर नहीं है. पूलिओस आयुक्त कोई सामान्य “नियत समयकी ड्युटी” वाला सीपाई नहीं है कि उसके लिये, यदि वह वर्दी न हो तो ड्युटी पर नहीं है ऐसा निस्कर्ष निकाला जाय.

सभी राजपत्रित अफसर (गेझेटेड अफसर) हमेशा २४/७ ड्युटी पर ही होते है ऐसे नियमसे वे बद्ध है. यदि पूलिस आयुक्त केज्युअल लीव पर है तो भी उसको ड्युटी पर ही माना जाता है. यदि वह अर्न्ड लीव (earned leave) पर है तभी ही उनको ड्युटी पर नहीं है ऐसा माना जाता है. लेकिन ऐसा कोई समाचार ही नहीं है, और किसी भी टीएमसीके नेतामें हिमत नहीं है कि वह इस बातका खुलासा करें.

ममता ने एक बडा मोर्चा खोल दिया है. सी.बी.आई. के सामने पूलिस. वैसे तो सर्वोच्च अदालतके आदेश पर ही सी.बी.आई. काम कर रही है तो भी.

इससे ममताके पूलिस अफसरों पर केस बनता है, ममता पर केस बनाता है चाहे ममता कितनी ही फीलसुफी (तत्त्व ज्ञानकी) बातें क्यूँ न कर ले.

कुछ लोग समज़ते है कि प्र्यंका (वाईदरा) खूबसुरत है इसलिये उसकी प्रसंशा होती है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. प्रशंसाके लिये तो बहाना चाहिये. हम यह बात भी समज़ लेंगे.

अब सर्वोच्च न्यायालयमें मामला पहूँचा है.

लेकिन सर्वोच्च अदालत क्या है?

सर्वोच्च अदालतके न्याय क्या अनिर्वचनीय है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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