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बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या क्या है?

बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या क्या है?

“प्रशस्ति पत्रोंकी वापसी, इसमें हम नहीं, मैं शर्मींदा हूँ, भारतके मुस्लिम सुरक्षित नहीं, अखलाक, पत्रकारकी हत्याएं, दलितों पर अत्याचार, व्यर्थ विमुद्रीकरणके कारण कई मृत्यु और आम आदमीको परेशानी, जीएसटी एक गब्बरसींग टेक्ष, राफेल डील, उद्योगकर्ताओंको खेरात, सुशील मोदी, माल्या आदिको अति अधिक ॠण देकर देशसे भगा देना, सरकारी बेंकोका एनपीएन उत्पन्न करना, मी टू, काश्मिरमें अशांति पैदा करना आदि ये सब मोदी सरकार द्वारा बनी समस्याएं हैं.” ऐसा सिद्ध कैसे किया जाय? यह बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या है.

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(मुझे मितु मितु करके मत बुलाओ. मुझे  मिताली कहो)

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ऐसी कई बातोंको नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षने अपने पालतु कटार लेखकों द्वारा, एंकरों द्वारा, महानुभावो द्वारा हवा देके मोदी सरकारके विरुद्ध हवा बनानेका भरपूर प्रयत्न किया है ताकि जनताको यह संदेश मिले कि, नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष, जब शासनमें था तब तो देश खुशहाल था और देशमें शांति ही शांति थी.

सत्य क्या था?

किन्तु हम सब जानते हैं कि नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके शासन वास्तवमें कैसा था. विकासको तो रोकके ही रक्खा था और वही योजनाएं होती थीं और वे भी अति देरीसे, जिनमें नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके सर्वोच्च नेताओंके साथ अंडर टेबल डील हो सकता था. इन बातोंके तो कई उदाहरण है.

“विकास पागल है” नहेरु-इन्दिरा गांधी वंशी कोंग्रेसका सूत्र !!

बीजेपीके सत्तामें आनेके बाद, आम जनताको तो अब पता है कि विकास क्या है. लेकिन नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेताओंने विकासको पागल बताके विकासके विरुद्ध बोलना आरंभ कर दिया था.

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेताओंको पता चल गया है कि विकासके विरुद्ध प्रचार करने से उनकी दाल गलने वाली नहीं है. इसलिये उन्होंने अपने पालतु समाचार माध्यमके तथा कथित विद्वानोंसे “गठ बंधन” जो नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेतागण, उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंके साथ करनेवाले हैं उसका गुणगान करना प्रारंभ कर दिया है. भूतकाल में “गठ बंधनवाली” सरकारोंने अच्छा काम किया था इस बातको मनवाने के लिये उनके शौर्यगीत सूनाना चालु कर दिया है.

“शेखर गुप्ता” एक तथा कथित मूर्धन्य कोलमीस्ट है. सोनेमें सुहागा यह है कि वे “ध प्रीन्ट” के मुख्य तंत्री भी है. लगता है उनको नरसिंह रावका [ जो नहेरुवीयन-{इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके एक अनहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)}  प्रधान मंत्री थे ]  कार्यकाल पसंद होगा. उस समय मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे. इस लिये नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष पुरस्कृत युपीएकी अर्थ नीति पसंद हो सकती है. शेखर गुप्ताजीने एक पुस्तक “ईन्डिया रीडीफाईन्स इट्स रोल” लिखा है. वैसे तो कई लोग तत्कालिन वित्त मंत्री को (मनमोहनको) उस समयकी अर्थनीतिके कारण श्रेय देते हैं. वैसे तो नरसिंह रावके वित्तसलाहकार सुब्रह्मनीयम थे और विश्वबंधु गुप्ता जो तत्कालिन आयकर विभागके महान आयुक्त थे उन्होने मनमोहन सिंहके अभिगम और उनकी मान्यताओंके विरुद्ध स्वानुभवके विषय पर काफि कुछ लिखा है. इन बातोंकी चर्चा हम नहीं करेंगे. हम इस समय हमारे उपरोक्त कटारीया भाई (शेखर गुप्ताजी) जो नरेन्द्र मोदीकी अर्थनीतिकी उपलब्धियोंको निरर्थक बताने पर तूट पडे है, और नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी यानी कि “गठबंधन वाली” सरकारोंने कैसा अच्छा काम किया था वह सिद्ध करनेके लिये अपना दिमाग तोड रहे हैं, उनकी बाते करेंगे.

नरेन्द्र मोदी हमेशा पूर्ण बहुमत वाली सरकारको लानेका जनताको अनुरोध करते है. वे यह भी कहेते है कि पूर्ण बहुमत होनेके कारण उनकी सरकारकी उपलब्धियां अभूतपूर्व है. गठबंधनकी सरकारें अस्थिर होती हैं और उनकी उपलब्धियाँ पारस्परिक विरोधाभासोंके कारण देशके विकास पर ऋणात्मक असर पडता है.

कटारीयाजी का साध्यः “गठबंधनवाली सरकार श्रेय है” उससे डरना नहीं.

अब हमारे कटारीया भाईका एजन्डा है कि नरेन्द्र मोदीके इस तर्कका खंडन कैसे किया जाय?

किसी भी सत्यका खंडन करना हो तो सर्व प्रथम तो जो सत्य है उसको छोडकर, दुसरे विषय पर विवरण तयार कर देना चाहिये. तत्‍ पश्चात्‍, जो सत्य है उस सत्यको उलज़ा दो. यानी कि जिस समस्याको सुलज़ानेका बीडा जिस व्यक्तिको दिया था उसको पार्श्व भूमिमें रख दो और उसके स्थान पर पूर्व निश्चित और आप जिस व्यक्तिको या समूहको रखना चाह्ते हो उस/उन को रख दो. फिर श्रेय   उस/उन को दे दो.

सियासतमें ऐसा तो बार बार होता है.

जैसे कि दूरसंचार प्रणालीको सुधारनेका बुनियादी ढांचा (ईन्फ्रास्ट्रक्चर)का काम तो बहुगुणाने किया था. लेकिन बहुगुणा उसका श्रेय स्वयं ले रहे थे तो इन्दिरा गांधीने उनको हटा दिया और पक्षसे भी निकाल दिया. ऐसा ही हाल इन्दिराने वीपी सिंगका किया था जब वे अर्थमंत्री थे.

किन्तु नरसिंह रावने ऐसा नहीं किया. नरसिंह रावने अर्थतंत्रके सुधारका श्रेय मनमोहन सिंहको लेने दिया. वैसे तो उसका श्रेय अर्थ-तंत्र-सलाहकार टीम जिसमें नेता सुब्रह्मनीयम स्वामी थे, उनको भी जाता है. नीतियाँ एक अति असरकारक परिबल है और प्रक्रियायें भी एक और परिबल है. प्रक्रियाको सुधारने की महद्‍ जिम्मेवारी वित्त मंत्रीकी होती है. मनमोहनके वित्तमंत्रीकालके जमानेमें “शरद महेता”वाला कौभान्ड हुआ. क्यों कि मन मोहन सिंहने बेंको कि कागजी लेनदेनकी गलतीयों पर ध्यान नहीं दिया था. फिर उन्होंने आश्वासन दिया कि “अबसे (भविष्यमें) ऐसा नही होगा.” यदि मनमोहन सिंह चालाक होते तो, उनको जो प्रधानमंत्री का प्रमोशन मिला, तब जो सत्यम्‍ स्कॅम हुआ वह न होता.

“नहेरुवीयन प्रणाली”

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी सियासतमें गलतीयोंको दुसरोंके नाम पर चढा देना और उपलब्धीयोंको नहेरुवंशके फरजंद पर चढा देना आम बात है. जैसे कि चीनके साथके युद्धमें भारतकी हारका कुंभ सिर्फ वि.के. मेनन पर फोड देना, और पाकिस्तान के उपर भारतकी १९७१की विजयका श्रेय तत्कालिन सुरक्षा मंत्री जगजिवन रामको न देना और सिर्फ इन्दिरा गांधीको दे देना, ये सब नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षका संस्कार है.

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी ऐसी प्रणालीयोंपर तालियाँ पाडने वाले मूर्धन्य भारतमें पहेले भी विद्यमान थे और आज भी विद्यमान है.

अब गठबंधन वाली सरकारोंकी उपलब्धीयां पुरस्कृत करने के लिये हमारे कटारीया भाई, भारतवर्षकी प्रथम संयुक्त “राष्ट्रीय सरकार” १९४७-५२का उल्लेख करते हैं.

याद करो मूल कोंग्रेसी सदस्यका संस्कार

कोंग्रेसके शिर्ष और सर्वोच्च नेता यानी कि “नहेरु”की प्रच्छन्न मानसिकताको छोड दें, और कोंग्रेसके तत्कालिन सामान्य सदस्यकी बात करें तो मुज़े निम्न लिखित प्रसंग याद आता है.

१९४२में महात्मा गांधीने “भारत छोडो” आंदोलन छेडा था और जनताको कहा था कि हर व्यक्ति स्वयंका नेता है. आप कानून भंग करोगे. खूल्लेआम कानून भंग करोगे और यदि आप गिरफ्तार हुए तो आपको सहर्ष गिरफ्तारी स्विकारोगे और कारावासका भी स्विकार करोगे.

एक महिला थी. उसने अपने महिला साथीयोंके साथ प्रदर्शन किया. उस महिलाको पूलीसने गिरफ्तार किया. उस महिलाने कुछ गहने पहने थे. उसने पास खडे एक कोंग्रेसीको अपने गहने दे दिया और कहा कि मेरे घरका पता यह है, आप इन गहेनोंको मेरे घर पर पहूँचा देना, और कह देना कि मैं कारावास जा रही हूँ. उस कोंग्रेसीने कहा कि “बहनजी आप तो मुज़े पहेचानते तक नहीं है. आपने मुज़पर विश्वास कैसे कर दिया कि मैं इन गहनोंको आपके घर तक पहूँचा दूंगा?”

उस महिलाने उत्तर दिया कि आप कोंग्रेसी है इस बात ही मेरे लिये पर्याप्त है कि आप विश्वसनीय और नीतिमान है.”

आज क्या ऐसी स्थिति है कि “विश्वसनीयताके लिये कोंग्रेसी होना पर्याप्त है?”

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके ६५ सालके शासनके बाद नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेतागण, अपनी विश्वसनीयताका, जनतामें कायम रख सके हैं क्या?

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके आम सदस्यकी बात छोडो, नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके शिर्षनेता भी विश्वसनीय नहीं रहे है. इसका क्या हमारे कटारीयाजीको मिसाल देना पडेगा?

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके सर्वोच्च नेतागण स्वयं “बेल (जमानत)” पर है. स्वयंके लिये जमानत लेना, यह बात ही मूल कोंग्रेसके मूलभूत सिद्धांतोसे विपरित है. किस मूँह से कोई नीतिमत्ताके इस विनिपातसे पराङगमुख बन सकता है. और वह भी एक मूर्धन्य राजकीय विश्लेषक श्रीमान शेखर गुप्ताजी.

“राष्ट्रीय सरकार” कोई चूनावी गठबंधन था ही नही.

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राष्ट्रीय सरकार के समय पर बना गठबंधन कोई गठबंधन नहीं था. वह कोई सत्ता पाने के लिये या तो किसी अन्य गठबंधनके विरुद्धवाला गठबंधन नहीं था. महात्मा गांधी चाहते थे कि भारतका तत्कालिन शासन और संविधान सभीको साथ लेके चले.

राष्ट्रीय सरकारको गठबंधनवाली सरकार का नाम देना “तर्कहीन” ही नहीं किन्तु “हास्यास्पद” भी है. यदि कोई विद्वान ऐसी तुलना और विश्लेषण करे तो उसकी निष्पक्षता पर कई प्रश्न चिन्ह उठते हैं. जो गठबंधन ही नहीं था उसको गठबंधन बताके उनकी उपलब्धीयोंको “सियासती गठबंधन भी ऐसी उपलब्धीयोंके लिये सक्षम है” ऐसा बताना, यह बात तो जनताको गुमराह करनेके बराबर है.  

वैसे तो हर गठबंधन यदि वह सियासती गठबंधन है तो वह एक पूर्ण बहुमत वाले पक्षकी सरकारसे श्रेय नही हो सकता, चाहे उसका आधार सियासती हो या न हो.

सियासती “अस्थिरता” नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी देन है. १९६९ और १९७९की अस्थिर सरकारोमें नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षका बडा योगदान था. इनका जिक्र हमारे कटारीया भाईने नहीं किया है.

१९६७ तक नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी आंतरिक संगठन शक्ति कायम थी. नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी शिर्ष नेता इन्दिरा गांधीने इस आंतरिक संगठनका विभाजन किया. १९७१की इन्दिरा-विजय नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी संगठन शक्ति पर आधारित नहीं था. वह विजय इन्दिरा-वेव्ज़ के कारण था. नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षका संगठन तो निर्बल ही बन गया था. १९८४की नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी विजय भी “सहानुभूति-वेव्‍ज़के” कारण था. और इसके बाद तो बहुपक्षीय-संगठनवाला अस्थिरताका युग शुरु हुआ इस बातको तो कटारीयाजी स्वयं कबुल करते है.

वी.पी. सिंघवाले बहुपक्षीय-संगठन सरकारकी उपलब्धीयां थी ऐसा कटारीयाजी प्रदर्शित करते है. वास्तवमें मोरारजी देसाईकी सरकारकी उपलब्धीयां कई गुना अधिक थी. इस बातको यदि हम छोड भी दें तो वीपी सिंघ स्वयं नरेन्द्र मोदीकी तरह नीतिमत्तामें मानते थे. तो भी, उनके उपर भी नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेताओंने कीचड उछाला था. जैसे कि वीपी सिंघका विदेशमें (सेन्टकीट्समें) एकाउन्ट था.

जब भी नीतिमत्ता की बात आती है तब बहु पक्षीय गठबंधन कमज़ोर पड जाता है.

इसका कारण यह है कि वंशवादी पक्षका आधार एक वंशवादी नेता होता है. उस पक्षके सदस्य, सियासतमें सिर्फ और सिर्फ पैसे बनानेके लिये आते है. इन सदस्योंको सर्वोच्च पद प्राप्त करनेकी ख्वाहिश होती ही नहीं है. क्या वाड्राको प्रधान मंत्री बननेकी ख्वाहिश है? क्या पप्पु यादवको मुख्य मंत्री बनना है? क्या अभीषेक मनु सिंघ्वी या रणदीप सुरजेवालाको प्रधान मंत्री बनना है? नहीं भाई हमें सर्वोच्च पद नहीं चाहिये. हमें हो सके तो मंत्री बना दो और यदि मंत्री भी न बना सको तो सिर्फ हमे हमारा असामाजिक यानी कि गैरकानूनी काम करने दो और कायदा हमे स्पर्ष न करे उसका आप ध्यान रक्खो. हमें सिर्फ यही चाहिये.

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अल्पमत सरकार आवकार्य नहीं है

नरसिंह राव की सरकार अल्प मत सरकार थी. और उसने ५ साल शासन किया. एक दो अल्पमत सरकारका उदाहरण लेके हम ऐसा वैश्विक धारणा/निष्कर्ष बनाके भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि अल्पमत सरकार हर हालतमें आवकार्य है.  जब पक्षीय संगठनका मूलभूत प्रयोजन सामनेवाले को हराना हो और पैसा बनानेके लिये सत्ता प्राप्त करना हो,  तो आपको आठ सालमें तीन चूनाव के लिये तयार रहेना पडता है.

विवादास्पद उपलब्धीयां

कटारीया भाई ऐसा दिखाते है, कि चाहे कुछ भी हो १९९७में पी. चिदम्बरमने राष्ट्रीय विनिवेश पंचकी रचना की और पब्लिक उपक्रमोंका लीस्टींग और प्राईवेटाईझेशनका दरवाज़ा खोला.

कटारीयाजी प्रदर्शित करते है कि भाई हम तो तटस्थ है. मोदीकी विरुद्धमें है. उसका मतलब यह नहीं कि हम बाजपाईजीके भी विरोधी है. बाजपाईजीमें तो दम था. (मतलब? नरेन्द्र मोदीमें वह दम नहीं), क्योंकि बाजपाईने चतुर्भूज हाई वे योजना बनाई. दो बडे एरपोर्टका प्राईवेटाईझेशन किया. ११ पब्लिक सेक्टरकी कंपनीयां जो प्रोफिट करती थी और २४ आई.टी.डी.सी. हॉटेल्स बेच दी. और सर्वशक्तिमान नरेन्द्र मोदी एक भी कंपनी बेच नहीं पाये. कटारीया साहबका संदेश यह है कि पब्लिक सेक्टरकी कंपनीयां बेचना सरकार शक्तिमान होनेका गुण है. “साध्यम इति सिद्धम्‌.”

अरे भाई साहब, खोटमें चलनेवाली सरकारकी कंपनीयोंको नफा करनेवाली बनाना ही सरकारी शक्तिका गुण है जो नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें करके दिखाया है. हर गांवमें हर खेतमें बीजली पहूँचाना और वह भी २४/७ घंटे, यह भी तो उपलब्धी है नरेन्द्र मोदीजीकी. हर घरमें गेस पहूँचाना यह भी तो एक महान उपलब्धी है.

भारतीय रीज़र्व्ड सोनेको देशके बाहर ले जानेकी हिमत दिखाना और वह भी भूगतानके लिये, इस घटनाको कटारीयाजी, अपना दिमाग तोड परिश्रमसे, तत्‌कालिन प्रधान मंत्री चन्द्रशेखरकी   उपलब्धीमें गीनती करवाते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति किसने उत्पन्न की थी और इसके लिये कौनसी सरकार जीम्मेवार थी उस विषय पर हमारे कटारीया भाई मौन है.

कटारीयाजी मानते है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सिर्फ १९८९-९०में कमजोर थी. शायद कटारीयाजी १९८९से लेकर २०१४ तक कश्मिरमें हिन्दुओंकी कत्लेआम और आतंकवादीयोंका और नक्षलीयोंका देशके महानगरोंमें घुस कर और देशके भीतरी इलाकोंमें दूर दूर तक घूस घूस कर अपनी बोम्बब्लास्ट वाली प्रवृत्तियां विस्तारना, इन सब बातोंको राष्ट्रीय सुरक्षासे जोडनेमें नहीं मानते है. नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष,  राफेल का डील नहीं कर पाना उसका कारण ही तो २०१२में पैसा न होना ऐसा एन्टोनी खूद संसदमें बताते है. इस परिस्थितिको यदि दिवालियापन नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?  

कटारीयाजी क्या समज़ते है?

कटारीयाजी समज़ते है कि, १९८९-९०की अराजकता और शासकीय निस्फलता पर जोर देना नहीं चाहते. क्यों कि यह बात, कटारीयाजीके एजन्डाके विरुद्ध है.  कटारीयाजी “आतंकवाद” शब्द का उपयोग करना ही नही चाहते है. वे यह कहेते है कि १९९१-१९९६ तक कश्मिर  सबसे बुरी स्थितिमें था. लेकिन परिस्थिति काबुमें थी.

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कमालकी बात है. यदि परिस्थिति काबुमें थी तो ५०००००+ हिन्दुओंको पुनर्थापित क्यों नहीं किया?

यदि परिस्थिति काबुमें थी तो कितनोकों गिरफ्तार कीया? परिस्थिति काबुमें थी तो  कितने केस कोर्टमें दर्ज किये? परिस्थिति काबुमें थी तो किन किन मंत्रीयोंको जिम्मेवार बनाया और उनके उपर कितने केस दाखिल किया? परिथिति काबु में थी तो कोई एस.आई.टी.का गठन किया या नहीं?

कटारीयाजी इन सब कमजोरीयोंको और निस्फलताओंको, नजर अंदाज करवाने लिए, इन सब विषयोंको कश्मिर और केन्द्रस्थ शासकोंकी क्रीमीनल निस्फलतासे नहीं जोडते है.

यह बात समज़नी चाहिये कि खालिस्तानवादीयोंका आतंकवाद खतम करनेका श्रेय सिर्फ केपीएसगील को जाता है (शायद अजित डोभाल भी सामिल हो), और खालिस्तानी नेताओंको बडाभाई बनानेका श्रेय इन्दिरा गांधीको जाता है. लेकिन कटारीया भाई, नहेरुवंशवादको शायद जनतंत्रके लिये घातक नहीं मानते. वे इस बातको समज़नेके लिये तयार नहीं कि, यदि जे.एल. नहेरु अपने कार्यकालमें, अपने फरजंद, इन्दिरा गांधीको, अपना अनुगामी प्रधानमंत्री बनानेका प्रबंध करके नहीं जाते, तो आज कोंग्रेस पर “नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष” होने की गाली नहीं लगती, नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष भ्रष्टाचारसे तरबर न होती, और वह कमजोर भी न पड जाती.

कटारीयाजी कुछ विवादास्पद विषयो पर, अपने हिसाबसे तत्कालिन सरकारोंके निर्णयोंको अच्छा निर्णय, बुरा निर्णय, या कमजोरीवाला निर्णय ऐसा तारतम्य निकालते है. और उपसंहार में कहेते हैं कि सुरक्षित बहुमतवाली सरकार नेताओंको बेदरकार और दंभी बनाती है.

इस तारतम्यमें कटारीयाजी, जे.एल. नहेरुका, समावेश करते नहीं है लेकिन इन्दिरा से लेकर, राजिव गांधी होकर,  नरेन्द्र मोदीका समावेश अवश्य करते है.

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नरेन्द्र मोदी समय बद्धता में मानते है

वास्तवमें देखें तो, नरेन्द्र मोदीके वचन, नहेरु के वचन जैसे “अनिश्चित कालिन नहीं है”. याद करो कि जय प्रकाश नारायण, नहेरुकी असमयबद्ध ध्येयोंके कारण ही उनके मंत्री मंडलसे दूर रहे थे. जय प्रकाश नारायणने नहेरुको कहा था कि “आप हरेक ध्येय प्राप्तिके लिये समय बद्ध योजना बनाओ तो मैं आपके मंत्री मंडलमें आउंगा.” लेकिन जे एल नहेरु तो बेदरकार और दंभी थे. उन्होने जयप्रकाशकी बात मानी नहीं. नहेरु समय बद्धतामें नहीं मानते थे. “ तत्वज्ञानीय लुज़ टॉकींग” नहेरुको प्रिय था.

“समय बद्ध ध्येय” नरेन्द्र मोदीका गुण

यदि आज जय प्रकाश नारायण होते तो वे नरेन्द्र मोदीको सहकार करते. नरेन्द्र मोदीजी हमेशा समय बद्धतासे ही चलते है और उन्होने पक्षके ध्येयोंको समयबद्ध प्रोग्राममें रक्खा है. लेकिन कटारीया भाई इनका जिक्र नहीं करेंगे. उनको पसंद है “नहेरुकी देशमें बहेनेवाली घी दूधकी नदिया” और इन्दिराके “गरीबी हटाओके नारे”

उनको ०२-१०-२०१९ तक स्वच्छभारत, २०२२ तक किसानकी आय दुगुनी, २०१९ तक घर घर संडास, २०२२ तक हरेकके पास अपना घर, २०२२ तक बुलेट ट्रेन …. आदि समय बद्ध ध्येय पसंद नहीं इसलिये उनका जिक्र नहीं.   

एक दुसरे विद्वान है जो अरुण शौरी है. वे भी नरेन्द्र मोदीके कटु टीकाकार है.

कुछ लोग जीएसटी और विमुद्रीकरण की कटु टिका करते है लेकिन एक भी माईकापूत नहीं निकला कि उसने बताया हो कि जो काला धन देशमें घुम रहा है उसको सरकारी रेकोर्ड पर कैसे लाया जाय, बेनामी कंपनीयोंको रेकोर्ड पर लाके कैसे कार्यवाही की जाय, फर्जी करन्सीको कैसे निरस्त्र किया जाय, आयकर रीटर्न भरने वालोंकी सख्यां कैसे बढाई जाय, टेक्स कलेक्शनमें कैसे वृद्धि की जाय….?

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नरेन्द्र मोदीने तो यह सब करके दिखाया है जो नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष ६५ सालमें नहीं कर सका.

शिरीष मोहनलाल दवे

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भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

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जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) भाग

दाद्रीकी घटानाको उछालके यह महाठग महाधूर्त महागठबंधन काफी सफल रहा.

सफल होनेका श्रेय, समाचार माध्यम, नहेरुवीयन कोंग्रेस, महा गठबंधन और कुछ दंभी धर्मनिरपेक्ष गेंग, ये चारों चंडाल चौकडीने मिलके जो महाठग बंधन करके जो रणनीति बनायी थी उसको जाता है.

महागठबंधन और महागठबंधनमें क्या भेद है?

महागठबंधन नहेरुवीयन कोंग्रेस, आरजेडी और जेडीयु इन तीनोंने मिलकर एक चूनावी और सत्तामें भागीदारी करने के लिये एक गठबंधन बनाया है वह है. महाठग गठबंधन एक ऐसा गठबंधन है जिनका एक मात्र हेतु बीजेपीको चूनावमें हराना है. और अपने धंधे चालु रखना है. उनके अनेक धंधेमें सत्ताकी प्रत्यक्ष और परोक्ष भागबटाइ, अयोग्य रीतीयोंसे पैसे कमाना और देशकी आम जनताको गुमराह करके गरीबी कायम रखना ताकि आम जनता विभाजित और गरीब ही रहे

महाठगगठबंधनकी पूर्व निश्चित प्रपंचकारी और विघातक योजना

बीजेपीने विकासके मुद्दे पर ही अपना एजन्डा बनाया था. किन्तु यदि परपक्ष, यानी उपरोक्त महाठगोंका गठबंधन, कोमवादका मुद्दा उठावे तो उसको कैसे निपटा जाय, उसके लिये बीजेपी संपूर्ण रीतसे सज्ज  नहीं था. महाठगगठबंधन, दाद्रीकी घटनाको, मीडीया और दंभी धर्मनिरपेक्ष गेंग के सहारे कोमवाद पर ले गया.

जब भी चूनाव आता है और जब हवा नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विरुद्धमें होती है तो कोमी भावना भडकाना नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें और उसके सांस्कृतिक पक्षके शासनमें एक आम बात है.

आरएस एस, वीएचपी और कुछ बीजेपी नेता भी बेवकुफ बनकर, समाचार माध्यमोंकी हवामें आके उसको हिन्दुमान्यताके परिपेक्ष्यमें आक्रमक बनके प्रत्याघात देने गतें हैं. वास्तवमें बीजेपीको गौवध वाले कोमवादी उस मुद्देको तर्क और अप्रस्तूतताके आधार पर लेजाके उसका खंडन करनेका था. बीजेपी नेतागण उपरोक्त महाठग बंधनी पूर्व निश्चित चाल नहीं समझ पाये. बीजेपी नेतागण को समझना चाहिये कि नहेरुवीयन कोंग्रेस चूनावकी रणनीति बनानेमें उस्ताद है. इसी कारण वह महाभ्रष्ट होनेके बावजूद, भारत जैसी महान और प्राचीन धरोहरवाले देश पर ६० वर्ष जैसे सुदीर्घ समयका शासन कर पाई.

शत्रु को कभी निर्बल समझना नहीं चाहिये.

आरएसएस और वीएचपीमें बेवकूफोंकी कमी नहीं है. ये लोग कई बार सोसीयल मीडीयामें वैसे भी फालतु, असंबद्ध और आधारहीन वार्ताएं लिखा करते हैं, जिससे बीजेपीकी भी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाते है.

जनताके कई पढे लिखे लोग यह नहीं समझ सकते की आरएसएस और वीएचपी के लोग सिर्फ मतदाता है. यह बात सही कि, वे बीजेपीके निश्चित मतदाता है. हर सुनिश्चित मतदाता अपने मनपसंद पक्षका प्रचार करता है ऐसा नहीं है. इसका अर्थ यह नहीं कि हर सुनिश्चित मान्यतावाला मतदाता अपने पक्षका प्रचार करे ही नहीं. क्यों कि किसी मतदाताको आप प्रचार करनेमेंसे रोक नहीं सकते. यदि वह अपने पक्षका प्रचार करे या तो परपक्षके उठाये गये प्रश्नोंका उत्तर दें तो यह मानना नहीं चाहिये कि उसका अभिप्राय वह पक्षकी विचारधारा है. यदि महाठग गठबंधन आरएसएस या वीएचपी के उच्चारणोंको बीजेपीकी विचारधारा मानता है तो

कोमवादी और आतंकवादी मुस्लिम जो कुछ भी बोले वह युपीएकी विचारधारा है 

जैसे अधिकतर मुसलमान और कुछ अन्य जुथ नहेरुवीयन कोंग्रेस या तो उसके सांस्क्रुतिक पक्षके सुनिश्चित मतदाता है. वे कई बातें अनापसनाप बोलते हैं और कुतर्क भी करते हैं. उनकी बातें भी तो  नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्क्रुतिक साथीयोंकी विचारधारा है समज़नी चाहिये. समाचार माध्यमको ऐसा ही समज़ना चाहिये. वे दोहरा मापदंड क्यों चलाते है? अकबरुद्दीन ओवैसी, फारुख, ओमर, गीलानी, आजमखान, लालु, पप्पु, अरुन्धती, तित्सा, मेधा, आदि आदि जो भी कोमवादको बढावा देनेवाले उच्चारण करते है वे सब नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक साथी है वे जो कुछभी बोले वह नहेरुवीयन कोंग्रेसकी ही विचार धारा है.

विडंबना और कुतर्क तो यह है कि, नहेरुवीयन कोंग्रेस तो उसके प्रवक्ताओंके भी कई उच्चारणोंको उनकी निजी मान्यता है ऐसा बताती है. यहां तक कि यदि नहेरुवीयन कोंग्रेसका उप प्रमुख, नहेरुवीयन कोंग्रेसके मंत्री मंडलने पारित प्रस्ताव विधेयक को फाडके फैंक तो भी वह इस घटनाका उल्लेख पक्षके  उपप्रमुखका नीजी अभिप्राय बताता है. बादमें उसी प्रस्तावमें संशोधन करता है. वैसा ही इस नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोमवादी नेताओंके विरोधी प्रतिभावोंके चलते शाहबानो की न्यायिक घटनाके विषय पर संविधानमें संशोधन किया था. तात्पर्य यह है कि ऐसे सुनिश्चित मतदाता जुथोंके मंतव्य, वास्तविक रुपसे नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विचारधारा होती ही है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंका स्थान आजिवन कारावासमें या फांसीका फंदा ही है. आरएसएस या वीएचपी के लोग तो बीजेपीके शासनके सहयोगी भी नहीं है. दोनोंकी प्राथमिकताए और मान्यताएं भीन्न भीन्न है. तो इनके भी बयान बीजेपीका सरकारी बयान नहीं माने जा सकते.

बिहारमें दंभी धर्मनिरपेक्षोंका विभाजनवादी नग्न नृत्य

बीजेपी एक राष्ट्रीय पक्ष है. अमित शाह, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, आदि सब भारतके नागरिक है.

महाठगगठबंधनके नेताओं की विभाजनवादी  मानसिकताका अधमाधम प्रदर्शन देखो.

बिहारमेंसे बाहरीको भगाओ

अमित शाह, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, आदि को नीतीशकुमार और उसके साथी बाहरी मानते है. ऐसे बाहरी लोगोंको बिहारमें प्रचारके लिये नहीं आना चाहिये. बिहारमें केवल बिहारी नेताओंको ही चूनाव प्रचारके लिये आना चाहिये.

इसी मानसिकतासे नीतीशकुमार अपनी चूनाव प्रचार सभामें जनताको कहेते थे कि आपको चूनाव प्रचारमें कौन चाहिये, बिहारी या बाहरी?

तात्पर्य यह है कि, बिहारमें चूनाव प्रचारका अधिकार केवल बिहारीयोंका ही है. बाहरी लोगोंका कोई अधिकार मान्य करना नहीं चाहिये. महाठगगठबंधनके किसी नेताने नीतीशकी ये विभाजन वादी मानसिकताका विरोध नहीं किया. इतना ही महाठगगठबंधनके लोगोंने तालीयां बजायी. समाचार माध्यमके विश्लेषकोंने भी इसका विभाजनवादी भयस्थानको उजागर नहीं किया क्यों कि वे हर हालतमें बीजेपीको परास्त करना चाहते थे. महाठगगठबंधनके नेताओंका यह चरित्र है कि देशकी जनता विभाजित हो जाय और देश कभी आबाद बने और वे सत्तामें बने रहें और मालदार बनें.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका ध्येय रहा है कि, देशकी जनता विभाजित होती ही रहे और खुदका हित बना रहे.

बाहरी और बिहारीसे क्या निष्कर्ष निकलता है?

महागठबंधन बिहारकी जनताको यह संदेश देना चाह्ता है कि बिहारमें हमे चूनाव प्रचारमें भी बाहरी लोग नहीं चाहिये. यदि चूनाव प्रचारमें भी बाहरी और बिहारीका भेद करना है तो व्यवसाय और नौकरीमें तो रहेगा ही. जो लोग केवल चूनाव प्रचारके लिये आते है वे तो बिहारीयोंको कोई नुकशान नहीं करते. वे लोग तो उनको भूका मारते है तो उनकी नौकरीकी तकमें कमी करते हैं, नतो उनकी व्यवसायकी तकोंमें कमी करते है तो उनके आवासकी तकोंमे कमी करते हैं, तो भी महाठगगठबंधन बाहरी लोगोंके प्रति एक तिरस्कारकी भावना बिहारी जनतामें स्थापित करनेका भरपूर प्रचार करता है.

बिहारीबाहरी द्वंद्वका क्या असर पड सकता है. यदि बिहारमें बाहरी आवकार्य नहीं है तो जो बिहारके लोग बाहर और वह भी खास करके मुंबई, गुजरात आदि राज्योंमे जाके वहांके लोगोंकी नौकरीकी तकोंमें कमी करते हैं, वहांके लोगोंकी व्यवसायी तकोंमें कमी करते हैं और वहां जाके झोंपडपट्टी बनाके असामाजिक तत्वोंको बढावा देते हैं वहां पर महाठगगठबंधनका यही संदेश जाता है कि बिहारी लोग आपके केवल चूनाव प्रचार करनेके लिये आने वाले चाहे वह देशका प्रधान मंत्री क्यों हो, उसको बहारी समज़ते है और अस्विकार्य बनते है. महाराष्ट्रके नीतिन गडकरी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नरेन्द्र मोदी बाहरी है ऐसा थापा, बिहारकी जनता मारती है, तो बिहारके लोग भी गुजरात, महाराष्ट्र, मुंबई आदिमें बाहरी ही है. ये बिहारके बाहरी लोगोंको नौकरी और व्यवसाय आदिके लिये अस्विकार्य बनाओ. महाठगगठबंधनके नेताओंने यही संदेश दिया है, इस लिये यदि महाराष्ट्र, गुजरात और युपीके लोग बिहारीयोंको बाह्य समज़के उसको नौकरी, व्यवसाय, सेवा आदिके लिये अस्विकार्य करें तो इस आचारकी भर्त्सना करना अब तो बिहारीयोंका हक्क है नतो महाठगगठबंधनके लोगोंका हक्क है.

महाठगगठबंधनने अपने स्वार्थ लिये देशकी जनताको एक विनाशकारी संदेश दिया है, उसके लिये उसमें संमिलित तत्वोंके उपर न्यायिक कार्यवाही होनी चाहिये. उनकी संस्थाकी या और उनके स्थान होद्देकी जो भी बंधारणीय मान्यता हो उसको तत्काल निलंबित करना चाहिये और न्यायिक कार्यवाहीके फलस्वरुप मान्यता रद होनी चाहिये.

यदि ऐसा नहीं होगा तो एक विनाशक प्रणाली स्थापित होगी जो देशकी एकता पर वज्राघात करेगी.

शिरीष मोहनलाल दवे.

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हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – १

प्रथम तो हमें यह समझना चाहिये कि हिन्दु और मुस्लिम कौन है?

ALL THE MUGALS WERE NOT COMMUNAL

यदि हम १८५७ के स्वातंत्र्य संग्रामकी मानसिकतामें अवलोकन करे तो हिन्दु और मुस्लिम दोनों हिन्दुस्तानी है. जब भी कोई एक जन समुदाय एक स्थानसे दुसरे स्थान पर जाता है तो वह समुदाय वहांके रहेनेवालोंसे हिलमिल जानेकी कोशिस करता है. यदि जानेवाला समुदाय शासकके रुपमें जाता है तो वह अपनी आदतें मूलनिवासीयों पर लादें ये हमेशा अवश्यक नहीं है. इस बातके उपर हम चर्चा नहीं करेंगे. लेकिन संक्षिप्तमें इतना तो कह सकते है कि तथा कथित संघर्षके बाद भी इ.स. १७०० या उसके पहेले ही हिन्दु और मुस्लिम एक दुसरेसे मिल गये थे. इसका श्रेष्ठ उदाहरण यह है कि, बहादुरशाह जफर के नेतृत्वमें हिन्दु और मुसलमानोंने अंग्रेज सरकारसे विप्लव किया था. और यह भी तय था कि सभी राजा, बहादुर शाह जफरके सार्वभौमत्वके अंतर्गत राज करेंगे.

अब यह बहादुर शाह जफर कौन था?

यह बहादुर शाह जफर मुगलवंशका बादशाह था. उसके राज्य की सीमा लालकिले की दिवारें थीं. और उतनी ही उसके सार्वभौमत्वकी सीमा थी. यह होते हुए भी सभी हिन्दु और मुस्लिम राजाओंने बहादुरशाह जफर का सार्वभौमत्व स्विकार करके मुगल साम्राज्यकी पुनर्स्थापनाका निर्णय किया था. इससे यह तो सिद्ध होता है कि हिन्दुओंकी और मुस्लिमों की मानसिकता एक दुसरेके सामने विरोधकी नहीं थी.

शिवाजीको अधिकृतमान न मिला तो उन्होने दरबारका त्याग किया

आजकी तारिखमें हिन्दुओंके हिसाबसे माना जाता है कि मुस्लिम बादशाहोंने हिन्दु प्रजा पर अति भारी यातनाएं दी है और जिन हिन्दुओंने इस्लामको स्विकारा नहीं उनका अति मात्रामें वध किया था. इस बातमें कुछ अंश तक सच्चाई होगी लेकिन सच्चाई उतनी नहीं कि दोनो मिल न पायें. अगर ऐसा होता तो औरंगझेबके सैन्यमें हिन्दु सैनिक और सरदार न होते और शिवाजीके सैन्यमें मुस्लिम सैनिक और सरदार न होते. शिवाजी मुगल स्टाईल की पगडी न पहेनते, और औरंगझेब शिवाजीके पोते शाहुको उसकी जागीर वापस नहीं करता. मुस्लिम राजाओंने अगर अत्याचार किया है तो विशेषतः शासक होने के नाते किया हो ऐसा भी हो सकता है. जो अत्याचारी शासक होता है उसको या तो उसके अधिकारीयोंको तो अपना उल्लु सिधा करनेके लिये बहाना चाहिये.

अब एक बात याद करो. २०वीं सदीमें समाचार और प्रचार माध्यम ठीक ठीक विकसित हुए है. सत्य और असत्य दोनोंका प्रसारण हो सकता है. लेकिन असत्य बात ज्यादा समयके लिये स्थायी नहीं रहेगी. सत्य तो सामने आयेगा ही. तो भी विश्वसनीय बननेमें असत्यको काफि महेनत करनी पडती है. वैसा ही सत्यके बारेमें है.

इन्दिरा गांधीके उच्चारणोंको याद करो.
१९७५में इन्दिरा गांधीने अपनी कुर्सी बचानेके लिये प्रचूर मात्रामें गुन्हाहित काम किये और करवाये. समाचार प्रसार माध्यम भी डरके मारे कुछ भी बोलते नहीं थे. लेकिन जब इन्दिरा गांधीके शासनका पतन हुआ और शाह आयोग ने जब अपना जांचका काम शुरु किया तो अधिकारीयोंने बोला कि उन्होने जो कुछ भी किया वह उपरकी आज्ञाके अनुसार किया. इन्दिराने खुल्ले आम कहा कि उसने ऐसी कोई आज्ञा दी नहीं थी. उसने तो संविधानके अंतर्गत ही आचार करनेका बोला था. अब ये दोनों अर्ध सत्य हैं. इन्दिरा गांधी और अधिकारीयोंने एक दुसरेसे अलग अलग और कभी साथमें भी अपना उल्लु सीधा करने की कोशिस की थी, और उस हिसाबसे काम किया था.

अपना उल्लु सीधा करो

मुगल साम्राट का समय लोकशाहीका और संविधान वाला समय तो था नहीं. ज्यादातर अधिकारी अपना उल्लु सीधा करनेकी सोचते है. मुगलके समयमें समाचार प्रसारके माध्यम इतने त्वरित तो थे नहीं. अफवाहें और बढा चढा कर भी और दबाके भी फैलाई जा सकती है. सुबेदार अपना धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और अंगत स्वार्थ के लिये अपना उल्लु सिधा करते रहे होगे इस बातको नकारा नहीं जा सकता.

औरंगझेब एक नेक बादशाह था वह साम्राटकी संपत्तिको जनता की संपत्ति समजता था. और वह खुद टोपीयां और टोकरीयां बनाके बेचता था और उस पैसे से अपना गुजारा करता था. उसका पूर्वज शाहजहां एक उडाउ शासक था. औरंगझेबको अपने सुबेदारोंकी और अधिकारीयोंकी उडाऊगीरी पसंद न हो यह बात संभव है. सुबेदार और अधिकारी गण भी औरंगझेबसे खुश न हो यह भी संभव है. इस लिये औरंगझेबके नामसे घोषित अत्याचारमें औरंगझेब खुदका कितना हिस्सा था यह संशोधनका विषय है. मान लिजिये औरंगझेब धर्मान्ध था. लेकिन सभी मुघल या मुस्लिम राजा धर्मान्ध नहीं थे. शेरशाह, अकबर और दारा पूर्ण रुपसे सर्वधर्म समभाव रखते थे. अन्य एक बात भी है, कि धर्मभीरु राजा अकेला औरंगझेब ही था यह बात भी सही नहीं है. कई खलिफे हुए जो सादगीमें, सुजनतामें और मानवतामें मानते थे. कमसे कम औरंगझेबके नामके आधार पर हम आजकी तारिखमें इस्लामके विरुद्ध मानसिकता रक्खें वह योग्य नहीं है. शिवाजी के भाग जाने के बाद औरंगझेब धर्मान्ध हो गया. इ.स. १६६६ से १६९० तकके समयमें औरंगझेबने कई सारे प्रमुख मंदिर तोडे थे. खास करके काशी विश्वनाथका मंदिर, सोमनाथ मंदिर और केशव मंदिर उसने तुडवाया थे. दक्षिण भारतके मंदिर जो मजबुत पत्थरके थे और बंद थे वे औरंगझेबके सेनापति तोड नहीं पाये थे. उसके यह एक जघन्य अपराध था. ऐसा पाया गया है कि उसके एक सलाहकारने उसको ऐसी सलाह दी थी कि नास्तिकोंको मुसलमान करना ही चाहिये. दो रुपया प्रति माह से लेकर एक साथ १००० रुपया प्रलोभन इस्लाम कबुल करने पर दिया जाता था. लेकिन जो औरंगझेबके खिलाफ गये थे उनका कत्ल किया जाता था. इस वजहसे उसके साम्राज्यका पतन हुआ था. क्यों कि सेक्युलर मुस्लिम और हिन्दु उसके सामने पड गये थे. औरंगझेबने कुछ मंदिर बनवाये भी थे और हिन्दुओंके (परधर्मीयोंके) उपर हुए अन्यायोंवाली समस्याओंका समाधान न्याय पूर्वक किया था. कोई जगह नहीं भी किया होगा. लेकिन हिन्दुओंके प्रमुख मंदिरोंको तुडवानेके बाद उसके अच्छे काम भूलाये गये. मुस्लिम और हिन्दु दोनों राजाओंने मिलकर उसका साम्राज्यको तहस नहस कर दिया. सबसे ज्यादा महत्व पूर्ण यह बात है कि उस समयके सभी राजाएं मुगल साम्राज्यके प्रति आदर रखते थे. और ऐसा होने के कारण ही औरंगझेबके बाद मुगल साम्राटके सार्वभौमत्वको माननेके लिये तैयार हुए थे. हिन्दु और मुस्लिम दोनों हिन्दुस्तानी थे. अगर हम सेक्युलर है और संविधान भी धर्म और जातिके आधार पर भेद नहीं रखनेका आग्रह रखता है, तो क्यूं हम सब आजकी तारिखमें हिन्दुस्तानी नहीं बन सकते? यह प्रश्न हम सबको अपने आप से पूछना चाहिये.
चलो हम इसमें क्या समस्यायें है वह देखें.

प्रवर्तमान कोमवादी मानसिकता सबसे बडी समस्या है.

कोमवाद धर्मके कारण है ऐसा हम मानते है. अगर यह बात सही है तो हिन्दु, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, शिख, इसाई, यहुदियोंके बीचमें समान रुपसे टकराव होता. कमसे कम हिन्दु, मुस्लिम और इसाईयोंके बीच तो टकराव होता ही. किन्तु बीलकुल ऐसा नहीं है. पाकिस्तानमें शियां और सुन्नी के बिचमें टकराव है. शियां और सुन्नीमें टकराव कब होता है या तो कब हो सकता है? अगर शियां और सुन्नी भेदभाव की नीति अपनावे तो ऐसा हो सकता है.

कोई भेदभाव की नीति क्यों अपनायेगा?

अगर अवसर कम है और अवसरका लाभ उठाने वाले ज्यादा है तो मनुष्य खुदको जो व्यक्ति ज्यादा पसंद है उसको लाभ देनेका प्रायः सोचता है.

अवसर क्या होता है?

अवसर होता है उपयुक्त व्यक्तियोंके सामने सहाय, संवर्धन, व्यवसाय, संपत्ति, ज्ञान, सुविधा, धन, वेतन देना दिलानेका प्रमाण (जत्था) होता है. अगर अवसर ज्यादा है तो भेदभाव की समस्या उत्पन्न होती नहीं है. लेकिन अगर अवसर कम है, और उपयुक्त यक्ति ज्यादा है तो, देनेवाला या दिलानेवाला जो मनुष्य है, कोई न कोई आधार बनाकर भेदभाव के लिये प्रवृत्त होता है.
इस समस्याका समाधान है अवसर बढाना.

अवसर कैसे बढाये जा सकते है?

प्राकृतिक स्रोतोंका, ज्ञानके स्रोतोंका और उपभोग्य वस्तुओंका उत्पादन करने वाले स्रोतोंमें विकास करनेसे अवसर बढाये जा सकते है. अगर यह होता है तो भेदभावकी कम और नगण्य शक्यता रहती है.

अवसर रातोंरात पैदा नहीं किये जा सकते है यह एक सत्य है.

अवसर और व्यक्तिओंका असंतुलन दूर करनेके लिये अनियतकाल भी नहीं लगता, यह भी एक सत्य है.

जैसे हमारे देशमें एक ही वंशके शासकोंने ६० साल केन्द्रमें राज किया और नीति-नियम भी उन्होने ही बनाये थे, तो भी शासक की खुदकी तरफसे भेदभावकी नीति चालु रही. अगर नीति नियम सही है, उसका अमल सही है और मानवीय दृष्टि भी रक्खी गई है तो आरक्षण और विशेष अधिकार की १० सालसे ज्यादा समय के लिये आवश्यकता रहेती ही नहीं है.

जो देश गरीब है और जहां अवसर कम है, वहां हमेशा दो या ज्यादा युथों में टकराव रहेता है. युएस में और विकसित देशोंमें युथोंके बीच टकराव कम रहेता है. भारत, पाकिस्तान, बार्मा, श्री लंका, बांग्लादेश, तिबेट, चीन आदि देशोंमें युथोंके बीच टकराव ज्यादा रहेता है. सामाजिक सुरक्षाके प्रति शासकका रवैया भी इसमें काम करता है. यानी की, अगर एक युथ या व्यक्ति के उपर दुसरेकी अपेक्षा भेदभाव पूर्ण रवैया शासक ही बडी निष्ठुरतासे अपनाता है तो जो पीडित है उसको अपना मनोभाव प्रगट करनेका हक्क ही नहीं होता है तो कुछ कम ऐतिहासिक समयके अंतर्गत प्रत्यक्ष शांति दिखाई देती है लेकिन प्रच्छन्न अशांति है. कभी भी योग्य समय आने पर वहां विस्फोट होता है.

अगर शिक्षा-ज्ञान सही है, अवसरकी कमी नहीं तो युथोंकी भीन्नता वैविध्यपूर्ण सुंदरतामें बदल जाती है. और सब उसका आनंद लेते है.

भारतमें अवसर की कमी क्यों है?

भारतमें अवसर की कमीका कारण क्षतियुक्त शिक्षण और अ-शिक्षण के कारण उत्पन्न हुई मानसिकता है. और ईसने उत्पादन और वितरणके तरिके ऐसे लागु किया कि अवसर, व्यक्ति और संवाद असंतुलित हो जाय.

शिक्षणने क्या मानसिकता बनाई?

मेकोलेने एक ऐसी शिक्षण प्रणाली स्थापितकी जिसका सांस्कृतिक अभ्यासक्रम पूर्वनियोजित रुपसे भ्रष्ट था. मेक्स मुलरने अपने अंतिम समयमें स्विकार कर लिया था कि, भारतके लोगोंको कुछ भी शिखानेकी आवश्यक नहीं. उनकी ज्ञान प्रणाली श्रेष्ठ है और वह उनकी खुदकी है. उनकी संस्कृति हमसे कहीं ज्यादा विकसित है और वे कहीं बाहरके प्रदेशसे आये नहीं थे.

लेकिन मेकोलेको लगा कि अगर इन लोगों पर राज करना है तो इनकी मानसिकता भ्रष्ट करनी पडेगी. इस लिये ऐसे पूर्व सिद्धांत बनाओ कि इन लोगोंको लगे कि उनकी कक्षा हमसे निम्न कोटिकी है और हम उच्च कोटी के है. और ऐसा करनेमें ऐसे कुतर्क भी लगाओ की वे लोग खो जाय. उनको पहेले तो उनके खुदके सांस्कृतिक वैचारिक और तार्किक धरोहरसे अलग कर दो. फिर हमारी दी हुई शिक्षा वालोंको ज्यादा अवसर प्रदान करो और उनको सुविधाएं भी ज्यादा दो.

अंग्रेजोंने भारतको दो बातें सिखाई.

भारतमें कई जातियां है. आर्य, द्रविड, आदिवासी. आदिवासी यहां के मूल निवासी है. द्रविड कई हजारों साल पहेले आये. उन्होने देश पर कबजा कर लिया. और एक विकसित संस्कृति की स्थापना की. उसके बाद एक भ्रमण शील, आर्य नामकी जाति आयी. वह पूर्व युरोप या पश्चिम एशियासे निकली. एक शाखा ग्रीसमें गई. एक शाखा इरानमें गयी. उसमेंसे एक प्रशाखा इरानमें थोडा रुक कर भारत गई. उन्होने द्रविड संस्कृतिका ध्वंष किया. उनके नगरोंको तोड दिया. उनको दास बनाया. बादमें यह आर्य जाति भारतमें स्थिर हुई. और दोनों कुछ हद तक मिल गये. ग्रीक राजाएं भारत पर आक्रमण करते रहे. कुछ संस्कृतिका आदान प्रदान भी हुआ. बादमें शक हुण, गुज्जर, पहलव आये. वे मिलगये. अंतमें मुसलमान आये.

मुस्लिम जाति सबसे अलग थी

यह मुस्लिम जाति सबसे अलग थी. आचार विचार और रहन सहनमें भी भीन्न थी. यह भारतके लोगोंसे हर तरहसे भीन्न थी इसलिये वे अलग ही रही. ईन्होने कई अत्याचार किये.

फिर इन अंग्रेजोंने आदिवासीयोंको कहा कि अब हम आये हैं. आप इन लोगोंसे अलग है. आपका इस देश पर ज्यादा अधिकार है. हम भी आर्य है. लेकिन हम भारतीय आर्योंसे अलग है. हम सुसंस्कृत है. हम आपको गुलाम नहीं बनायेंगे. आप हमारा धर्म स्विकार करो. हम आपका उद्धार करेंगे.

दक्षिण भरतीयोंसे कहा. यह आर्य तो आपके परापूर्वके आदि दुश्मन है. उन्होने आपके धर्म को आपकी संस्कृतिको, आपकी कला को आपके नगरोंको ध्वस्त किया है. आप तो उच्चा संस्कृतिकी धरोहर वाले है. आपका सबकुछ अलग है. भाषा और लिपि भी अलग है. आप हमारी शिक्षा ग्रहण करो. और इन आर्योंकी हरबात न मानो. ये लोग तो धुमक्कड, असंस्कृत, तोडफोड करनेवाले और आतंकी थे.

मुसलमानोंसे यह कहा गया कि आप तो विश्व विजयी थे. आपने तो भारत पर १२०० साल शासन किया है. ये भारतके लोग तो गंवार थे. इनके पास तो कहेनेके लिये भी कुछ भी नहीं था. ये लोग तो अग्निसे डर कर अग्निकी पूजा करते है. सूर्य जो आगका गोला है उसकी पूजा करते है. हवा, पानी, नदी जैसे बेजान तत्वोकी पूजा करते है. शिश्न की और अ योनी की पूजा करते हैं. ये लोग पशुओंकी और गंदी चीजोंकी भी पूजा करते है. इनके भगवान भी देखो कितने विचीत्र है? वे अंदर अंदर लडते भी हैं और गंदी आदतों वाले भी है. उनके मंदिरोंके शिल्प देखो उसमें कितनी बिभत्सता है.

इनके पास क्या था? कुछ भी नहीं. आपने भारतमें, ताज महाल, लालकिल्ला, फत्तेहपुर सिक्री, कुतुबमिनार, मकबरा, और क्या क्या कुछ आपने नहीं बनाया!! भारतकी जो भी शोभा है वह आपकी बदैलत तो है. आपने ही तो व्यापारमें भारतका नाम रोशन किया है. लेकिन जब कालके प्रवाहमें आपका शासन चला गया तो इन लोगोंने अपने बहुमतके कारण आपका शोषण किया और आपको गरीब बना दिया. आपके हक्ककी और आपकी सुरक्षा करना हमारा धर्म है.

इस प्रकारका वैचारिक विसंवाद अंग्रेज शासकोंने १८५७के बाद घनिष्ठता पूर्वक चलाया. एक बौधिक रुपसे गुलामी वाला वर्ग उत्पन्न हुआ जो अपने पैर नीचेकी धरतीकी गरिमासे अनभिज्ञ था. और वह कुछ अलग सूननेके लिये तैयार नहीं था.

इस बौधिक वर्गके दो नेताओंके बीच सत्ताके लिये आरपार का युद्ध हुआ. एक था नहेरु और दुसरा था जिन्ना.

जब देशकी जनता गरीब होती है वह किसीभी बात पर झगडा करने के लिये तैयार हो जाती है. और जिनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता और पैसा है वह हमेशा दुसरोंकी अज्ञानताका लाभ लेकर देशको और मानव जातको चाहे कितना ही नुकशान क्युं न होजाय, दुसरोंको गुमराह करके मत बटोरके अपना उल्लु सीधा करती है.

लेकिन वास्तवमें ये हिन्दु और मुस्लिम कौन है और कैसे है? और क्यों बेवकुफ बनते रहते है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे (smdave1940@yahoo.com)
टेग्झः लघुमती, हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई, औरंगझेब, बहादुरशाह, सार्वभौमत्व, १८५७, शिवाजी, शासक, यातना, अत्याचार, वध, सरदार, सुबेदार, अधिकारी, मेक्स मुलर, मेकोले, आर्य, द्रविड, इस्लाम, जाति, प्रजा, सत्य, असत्य, इन्दिरा, अफवाह, सत्ता, शाह आयोग, कोमवाद, शियां सुन्नी, भेदभाव, अवसर, स्रोत, असंतुलन, मानसिकता, न्याय, शिक्षण, विकास

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-५
(इस लेखको “अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-४” के अनुसंधानमें पढें)

नहेरुवीयन कोंग्रेसने २००४का चूनाव कैसे जिता?

अटल बिहारी बाजपाइने अच्छा शासन किया था. उन्होने चार महामार्ग भी अच्छे बनाये थे जो विकसित देशोंकी तुलनामें आ सकते थे. बीजेपीका गठबंधन एनडीए कहा जाता था. उसमें छोटे मोटे कई पक्ष थे. एनडीएके मुख्य पक्ष जेडीयु, बीएसपी (मायावती), टीएमसी (ममता), डीएमके (करुणानिधि), एडीएमके (जयललिता जिसने समर्थन वापस ले लिया था), टीडीपी, शिवसेना आदि थे.
मायावती, ममता और डीएम न्युसंस वेल्यु रखते थे. बिहार, युपी और आन्ध्रमें स्थानिक गठबंधन पक्षका एन्टीइन्कंबन्सी फेक्टर बीजेपीको नडा. इससे एनडीए को घाटा हुआ और बीजेपीको भी घाटा हुआ. राजस्थानमें और गुजरातमें भी थोडा घाटा हुआ.

लेकिन घाटा किन कारणोंसे कैसे हुआ?

देशके सामने सबसे बडी समस्याएं क्या है?

बेकारीः यानी कि आर्थिक कठीनायीयोंसे जीवन दुखमय

विकासका अभावः भूमिगत संरचनाका (ईन्फ्रास्ट्रक्चरका) अभाव, और इससे उत्पादन और वितरणमें कठिनायीयां,

शिक्षा और प्रशिक्षाका अभावः इससे समस्याको समझनेमें, उसका निवारण करके उत्पादन करनेमें कौशल्यका अभाव,

अभाव तो हमेशा सापेक्ष होता है लेकिन समाजकी व्यवस्थाके अनुसार वह कमसे कम होना चाहिये.

बाजपाई सरकारने बिजली, पानी और मार्गकी कई योजनायें बनायी और लागु की, लेकिन पूर्ण न हो पायी. वैसे तो हर रोज औसत १४ किलोमीटरका पक्का मार्ग बनता था जो कोंग्रेसकी सरकारमें एक किलोमिटर भी बनता नहीं था.

बिजलीकी योजना बनानेमें और पावर हाउस बननेमें समय लग जाता है.
भारत विकसित देशोंसे १०० सालसे भी अधिक पीछे है.

स्थानिक नेतागण और सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट होनेसे हमेशा अपनी टांग अडाते है यह बात विकासकी प्रक्रियाको मंद कर देते है. तो भी बाजपाईके समयमें ठीक ठीक काम हुआ लेकिन ग्रामीण विस्तार तक हवा चल नहीं पायी.

जब ऐसा होता है तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ग्रामीण जनताको और शहेरकी गरीब जनताको विभाजित करनेमें अनुभवी और कुशल रही है. गुजरातमें ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस ज्यादा सफल नहीं हुई, लेकिन इसका प्रभाव जरुर पडा. अन्य राज्योंमें वह जरुर सफल रही.

समाचार माध्यमोंकी बेवकुफी या ठग-विद्या

समाचार माध्यमोंका भी अपना प्रभाव रहेता है, भारतके समाचार माध्यमके कोलमीस्ट, विश्लेषण करनेमें प्रमाणभानका ख्याल न रखकर अपनी (विवादास्पद) तटस्थता प्रदर्शित करनेका मोह ज्यादा रखते है. भारतमें समाचार माध्यमोंका ध्येय जनताको प्रशिक्षित करनेका नहीं है. भारतके समाचार माध्यम हकिकतके नाम पर जातिवादी और धार्मिक भेदभाव के बारेमें किये गये उच्चारणोंको ज्यादा ही प्रदर्शित करतें है. “नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें पटेल नेताओंको अन्याय किया है…. गुजरातमें ब्राह्मण अब मंत्रीपद पर आने ही नहीं देंगे…. मुस्लिमोंको टिकट ही नहीं दी है…” आदि..

समाचार माध्यमों को चाहिये कि वे जातिवाद और धर्मवादकी भ्रर्स्तना करें. लेकिन ऐसा न करके इन लोंगोंका चरित्र ऐसा रहता है कि मानो, मंत्रीपद और टिकट देना एक खेरात है.

२००९ का चूनाव नहेरुवीयन कोंग्रेसने कैसे जिता?

२००९का चूनाव बीजेपीको जितनेके लिये एक अच्छा मौका था.

२००८में सीमापारके और भारतस्थ देशविरोधी आतंकीयोंने कई शहेरोंमें बोम्ब ब्लास्ट किये, और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सतर्क और सुरक्षा संस्थायें विफल रही थीं, यह सबसे बडा मुद्दा था.

लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेसने रणनीति क्या बनायी?

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने उसका सामान्यीकरण कर दिया. वह कैसे? वह ऐसे …

“बोंम्ब ब्लास्ट तो बीजेपी शासित राज्योंमें भी हुआ है,

“संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था, तब केन्द्रमें बीजेपीका ही तो शासन था,

“बीजेपीके मंत्री विमान अपहरण के किस्सेमें यात्रीयोंको मुक्त करनेके लिये खुद बंधक आतंकीयोंको लेकर कंदहार गये थे और आतंकीयोंको, विमान अपहरणकर्ताओंको सोंप दिया था.

इन सबको मिलाके जनताको यह बताया गया कि, आतंकवाद एक अलग ही बात है और इसके उपर सियासत नहीं होनी चाहिये.

दूसरी ओर, फिलमी हिरो-हिरोईन और अखबारी मूर्धन्यों और महानुभाव जो प्रच्छन रुपसे नहेरुवीयन कोंग्रेसके तरफदार थे वे लोग सडकपर आ गये. उन्होने प्रदर्शन किये कि पूरा शासक वर्ग निकम्मा है और हमारी सुरक्षा व्यवस्था मात्र, असफल रही है चाहे शासकपक्ष कोई भी हो.

वास्तवमें यह सब बातें आमजनताको असमंजसमें डालनेके लिये थी.

हिमालयन ब्लन्डर्स या हिमालयन्स स्केन्डल्स

नहेरुवीयन कोंग्रेसके विरुद्धमें क्या था जिसको दबा दिया गया?

नहेरुवीयन कोंग्रेस कश्मिरमें सत्ताकी हिस्सेदार थी तो भी ३००० हिन्दुओंका खुल्लेआम कत्ल कर दिया जाता था. ऐसा करनेसे पहेले सीमापारके और स्थानिक आतंकीयोंने खुल्लेआम दिवारोंपर पोस्टर चिपकाये थे, अखबारोंमें लगातार सूचना दी गई और खुल्ले आम लाऊड-स्पीकरोंसे घोषणा करवाने लगी कि हिंदु लोग या तो इस्लाम कबुल करे या तो जान बचाने के लिये कश्मिर छोड कर भाग जावे. कश्मिर सिर्फ मुस्लिमोंका है. न तो स्थानिक सरकारने उस समय कुछ किया न तो केन्द्रस्थ सरकारने कुछ किया. क्यों कि केन्द्रस्थ सरकार दंभी धर्मनिरपेक्षता वाली थी. नरसिंहरावकी कोंग्रेस सरकार जो केन्द्रमें आयी थीं उस सरकारने भी कुछ किया नहीं था. इस कारणसे आतंकवादका अतिरेक हो गया और मुंबईमें सीरीयल बोंब ब्लास्ट हुए. नहेरुवीयन कोंग्रेसने कहा कि यह तो बाबरी मस्जिद ध्वंशके कारण हुआ. लेकिन वह और समाचार माध्यम इस बात पर मौन रहे कि कश्मिरी हिन्दुओंको क्युं मार दिया गया और उनको क्युं अपने घरसे और राज्यसे खदेडा गया? वास्तवमें बाबरी ध्वंश तो एक बहाना था. आतंकवादी हमले तो लगातार चालु ही रहे थे.

खुदके स्वार्थके लिये देशकी सुरक्षाका बलिदान और आतंकीयोंसे सहयोग.

कश्मिरके मंत्रीकी लडकी महेबुबाका अपहरण आतंकवादीयोंने किया था. यह एक बडी सुरक्षाकी विफलता थी जिसमें राज्यकी सरकार और केन्द्रकी नहेरुवीयन कोंग्रेसी सरकार भी उत्तरदायी थी. इस लडकीके पिता जो शासक पक्ष के भी थे और मंत्री भी थे. उनको चाहिये था कि वे अपनी लडकीका बलिदान दे. लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया और उन्होने पांच बडे आतंकवादी नेताओंको मुक्त किया. उनको पकडनेकी कोई योजना भी बनाई नहीं. यह एक बडा गुन्हा था. क्योंकि खुदके स्वार्थके लिये उन्होने देशकी सुरक्षाके साथ समझौता किया. बीजेपीकी सरकारने जो आतंकीयोंकी मुक्ति की थी वे आतंकी तो अन्य देशके और उनको मुक्त भी दुश्मन देशमें किया था, और अपहृत विमानयात्रीयोंको छूडानेके लिये किया था. उनका कोई निजी स्वार्थ नहीं था.

लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षने जो मुक्ति की थी वह तो अपने ही देशमें की थी. मुक्ति देनेसे पहेले नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षकी सरकार आतंकीयोंके शरीरमें विजाणु उपकरण डालके उसका स्थान निश्चित करके सभी आतंकवादीयोंको पकड सकती थी.

कोंगी और उसके साथी पक्षने की हुई आतंकीयोंकी मुक्ति तो बीजेपी की विफलतासे हजारगुना विफल थी उतना ही नहीं लेकिन आतंकीयोंसे मिली जुली सिद्ध होती है.
इन सभी बातोंको उजारगर करनेमें समाचार माध्यमके पंडित या तो कमअक्ल सिद्ध होते है या तो ठग सिद्ध होते है. समाचार माध्यम का प्रतिभाव दंभी और बिकाउ इस लिये लगता है कि उन्होने बीजेपीके नेताओंके बयानोंको ज्यादा प्रसिद्धि नहीं दी.

भारतीय संसद – कार्गील पर हमला और बीजेपी

कश्मिर – हिमालय पर हमला और नहेरुवीयन कोंग्रेस

बाजपाई सरकारको सुरक्षा और सतर्कता विभाग जो मिला था वह नहेरुवीयन कोंग्रेस की देन थी. बीजेपी सरकार इस मामलेमें बिलकुल नयी थी. बीजेपीकी इमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता था.

कार्गील बर्फीला प्रदेश है. वहां पर जो बंकर है उनको शर्दीके समयमें हमेशा खाली किया जाता था. दोनों देशों की यह एक स्थापित प्रणाली थी. भारतीय सुरक्षा दलोंने १९९९में भी ऐसा किया. पाक सैन्यने पहेले आके भारतीय बंकरोंके उपर कब्जा कर लिया. बाजपायी सरकारने युद्ध करके वह कब्जा वापस लिया.

अब देखो नहेरुवीयन कोंग्रेसने अबतक क्या किया था?

१९४८में भारतीय सैन्यने पूरे कश्मिर पर कब्जा किया था, नहेरुवीयन कोंग्रेसने १/३ कश्मिर, पाकिस्तानको वापस किया.

१९६२ चिनके साथके युद्धमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने, भारतका ७१००० चोरसमिल प्रदेश गंवाया. संसदके सामने उस प्रदेशको वापस लेनेकी कसम खानेके बावजुद भी आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेसने उस प्रदेशको वापस लेनेका सोचा तक नहीं है.

१९६५ नहेरुवीयन कोंग्रेसने छाडबेट (कच्छ) का प्रदेश पाकिस्तानको दे दिया. १९७१में पाकिस्तानके साथके युद्धमें हमारे सैन्यने पाकिस्तानके कबजे वाले कश्मिरका जो हिस्सा जिता था और उसके उपर भारतके संविधानके हिसाबसे भारतका हक्क था, वह हिस्सा, इन्दिरा गांधीने सिमला समझौते अंतर्गत पाकिस्तानको वापस दे दिया.

बंग्लादेशी घुसपैठोंने उत्तरपूर्व भारतमें कई भूमिखंडोपर कब्जा कर लिया है.
आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने शासनकालमें खोये हुए भूमिखंडोंको वापस लानेमें सर्वथा विफल रही है. वह सोचती भी नहीं है कि इनको वापस कैसे लें.
बीजेपी ही एक ऐसा शासक रही कि उसने अपने शासनकालमें जो भूमिखंड गंवाये वे वापस भी लिये.

संसदको उडानेका आतंकी हमला बीजेपी की सरकारने विफल बनाया.
इस फर्कको समझनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस तो समझनेको तयार न ही होगी, वह उसके संस्कारसे अनुरुप है, लेकिन समाचार माध्यम क्यों विफल रहा या तो बुद्धु साबित हुआ है? तो ऐसे समाचार माध्यमोंसे हम जनता प्रशिक्षणकरणकी अपेक्षा कैसे रख सकते है?

आज भी कई अखबारी मूर्धन्य है जो तटस्थताकी आडमें आम जनताको असमंजसमें डालते है. ऐसे वातावरणमें जनता निस्क्रीय बन जाती है.

२०१४के चूनावमें नहेरुवीयन कोंग्रेस का रवैया कैसा रहेगा?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

देशको बचाओ
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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-४
(इसको अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-३ के अनुसंधानमें पढें)

आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध

इन्दिरा गांधीने करवाया आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध हो गया.
निजी सीयासतीय स्वार्थके लिये असामाजिक तत्वोंको बढावा देनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस और खासकरके इन्दिरा गांधीका अति विशेष योगदान रहा. १९६९में जब कोंग्रेसका विभाजन हुआ तो इन्दिरा गांधीने घोषित किया कि सबके लिये उसकी कोंग्रेसके द्वार खूले है. विनोबा भावेने इन्दिराकी इस घोषणाकी मजाक उडाके कहा था कि अगर संख्या ही बनानी है तो बंदरोंको भी कोंग्रेसमें सामेल करो.

मूर्धन्योंका बौद्धिक प्रमादः
१९८०के चूनावमें समाचार माध्यमोंकी इन्दिरा परस्त नीति और सुज्ञ मूर्धन्योंके बौद्धिक प्रमादके कारण इन्दिरा कोंग्रेसको भारी बहुमत मिला. इस बहुमतसे अगर इन्दिरा गांधी चाहती तो देशमें चूनाव और सरकारी कामकाजमें भ्रष्टाचारको रोकने लिये बंधारणीय सुधार बहुत आसानीसे कर सकती थीं. वैसे तो ऐसा मोका तो नहेरुके पास भी था. किन्तु इन दोंनोंने ऐसा नहीं किया, और उसके बदले अपनेको और अपने पक्षको मजबुत करनेके ही कदम उठाये.

खुदके पक्षकी राजकीय सत्ता बढानेके लिये, भींदरानवालेको बढावा देना एक कदम था. असमको तोडके उसके ६ छोटेछोटे राज्य बनाना भी एक दूसरा कदम था. इसके कारण अलगाववादी शक्तियोंको बढावा मिला. सीमापारसे भी इन अलगाववादी शक्तियोंको मदद मिलने लगी. खालिस्तानके आतंकवादको, पाकिस्तानसे बौद्धिक, अस्त्र-शस्त्र और प्रशिक्षण मिलता था. इससे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जो अमेरिकाके इशारे पर अफघानिस्तानमें व्यस्त थे, उनको खालिस्तानके आतंकवादके आधार पर भारतमें भी अपना नेटवर्क स्थापित करनेमें आसान रहा. १९७३का सिमला करार एक व्यर्थ और व्यंढ करार सिद्ध हो गया था. इन्दिरा गांधीने या तो भूट्टोसे सिमलामें अंडरटेबल डील किया था या तो इन्दिरा गांधी महामूर्ख और अज्ञानी थी.

रानीके मरने पर शाहजादेका राज्याभिषेकः
१९८४ में अराजकता स्पष्ट रुपसे दिखाई देने लगी थी. पंजाबका जिवन अस्तव्यस्त हो गया था. इन्दिराका खून हो गया. उसके बाद भी खालिस्तानी आतंकवाद बढ गया. इन्दिरा गांधीने झैल सींग को राष्ट्रप्रमुख बनाया था. झैल सिंह, इन्दिरा गांधी चाहे तो झाडू लगानेको भी तैयार था. तो इन्दिराकी मौतके बाद बिना मंत्रीमंडल या लोकसभासे प्रस्ताव पास किये इन्दिराके पूत्रका प्रधान मंत्रिपदका शपथ करवाना क्या चीज है? इसलिये तो नहेरुवीयन संतानको शाहजादे कहे जाते है.
चूनाव जितनेके लिये एक कार्यपद्धति नहेरुवीयन कोंग्रेसमें एक स्वभावगत हो गई थी. वह थी
१ ज्यादातर जनताको गरीब ही रक्खो,
२ जितना हो सके उतने बुद्धिजिवीयोंको खरीद लो,
३ जो भ्रष्ट है उनको अपने साथ मिला दो और उनको भ्रष्टाचार करने दो और जब जरुर पडे तो उनको उनके भ्रष्टाचार पर ब्लेकमेल करके काबुमें रक्खो,
४ न्यायिक प्रक्रियाओंको विलंबित करो ताकि जिन साथीयोंको बचाना है उनको बचा शको,
५ जब निस्फलताएं उजागर हो जाये तब चर्चाको ऐसे मोडपर ले जाओ कि सामान्य जन द्विधामें या असमंजतामें पड जाय और नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकी कमियां और दुराचार अधिकतर मात्रामें अप्रभावकारक हो जाय,
६ अन्य पक्षोंके तथाकथित कमीयांको बारबार प्रसिद्ध करो और चर्चा उसीकी दिशामें चलाओ कि जनता प्रामाणिकतासे निर्णय ही कर न पाये और उस कारणसे वह ऐसा सोचने लगे कि “सभी पक्ष भ्रष्ट और एक समान ही है”
७ जनता को धर्म, जाति, ज्ञाति और भाषाके आधार पर विभाजित करो और जहां जाओ वहांकी प्रभावशाली जातिके पक्षमें बोलो.

१९८९का चूनावः

राजिव गांधीने एक और नारा दिया कि देशको २१वीं सदीमें ले जाना है. भारतकी देहातोंकी जनता १८ वीं सदीमें जीती थी. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने ही प्रगति रोकके रक्खी थी.
नहेरुवीयन कोंग्रेसने राजिव गांधीके नया नाराके आधार पर और इन्दिरा गांधीके मृतदेहको बार बार दूरदर्शन पर दिखाकर और इन्दिरा गांधीकी तथा कथित शहादतके आधार पर १९८४का चूनाव जित लिया था.
लेकिन राजिवगांधीकी वहीवटी निस्फलताके कारण और दिर्घ दृष्टिके अभावके कारण खालिस्तानी आतंकवाद बलवत्तर हो गया था. कश्मिरमें सीमा पारका आतंकवाद भी जोर पकडने लगा था. राजिव गांधी बोफोर्स रिश्वत केसमें फंस गये थे. इन कारणोंसे लोकसभाका जनादेश खंडित मिला.
वीपी सिंघने एक मिलीजुली सरकार बनायी. वीपी सिंघ काबिल थे लेकिन चंद्रशेखरको भी प्रधानमंत्री बनना था. एक फायदा यह हुआ कि दोनोंने मिलकर खालिस्तानी आतंकवाद खतम किया. लेकिन पाकिस्तानने काश्मिरमें आतंकवाद पैदा कर दिया था. पूर्वोत्तर राज्योंमें भी हर जगह अलगतावाद बढ गया था.
एक और चूनाव आ पडा क्योंकि फिर एक बार गैर कोंगी मिली जुली सरकार टीक नहीं पायी.

ATAL AND NARSINHA RAO
१९९१में फिरसे संसदका चूनाव हुआ. जनादेश खंडित था. लेकिन कोंग्रेसका चहेरा बदला हुआ था. नरसिंह राव नहेरुवीयन वंशके नहीं थे न तो वे नहेरुवीयनोंकी पद्धतियोंसे उनका तालमेल था. उन्होने देखा कि नहेरुवियनोनें विकास को रोकके रक्खा था. इसलिये उन्होने उदारीकरण और निजीकरणकी नीतियां अपनाई.
इन्दिरा गांधीकी नीतियां इससे बिलकुल उलटी थी. गरीबोंको और आम जनताको आसानीसे ऋण मिले इस कारण इन्दिराने बडी बेंकोका राष्ट्रीय करण किया था. जिसके कारण निम्न स्तरमें खास करके कोंग्रेसमें निम्नस्तरतक भ्रष्टाचार फैल गया था.
नरसिंह रावने बिना राष्ट्रीय करण किये, निजी बेंकोको बढावा दिया. निजी बेंकोने अपना धंधा बढा दिया. वैसे भी सरकारी बेंको के वहीवटसे जनता संतुष्ट नहीं थी. अब उनको निजी बेंकोसे स्पर्धा करनेका समय आ गया था. नरसिंह रावके सलाहकार सुब्रह्मनीयन स्वामी थे. आर्थिक मामलोंमे जो सुधार हुए वे सुब्रह्मनीअन स्वामीके सुझावोंके कारण था. लेकिन चूंकि मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे इस लिये उनको सुज्ञलोगोंमें व्यापक मानपान मिला.
चूंकि, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी निम्न स्तरीय नेतागीरीका सरकारी तौरपर छूटपुट ऋणमें खुदका लागा खतम हो गया था, वे लोग नरसिंह रावको हटाना चाहते थे. नरसिंहराव नहेरुवीयनोंकी बातोंको ज्यादा महत्व देते नहीं थे. इस लिये नहेरुवीयन के प्रति बंधवाजुथ कमजोर हो रहा था. चूं कि नहेरुवीयनोंके पास पक्षकी जमा राशी रहती थी उन्होनें एक एक करके अवांच्छिंत नेताओंको दूर किया. नरसिंहराव को लालुभाई पाठकके केसमें बदनाम कर दिया. सिताराम केसरीको भौतिक रुपसे उठाके फैंक दिया. सोनिया गांधीको पक्ष प्रमुख बना दिया. लेकिन इन सब हल्लागुलामें कोंगी बहुत बदनाम हो गई.

१९९६ का चूनावः

कोंग बदनाम हो गई थी लेकिन उसका संगठन ध्वस्त नहीं हुआ था. जनता दल का एलायन्स एक बडे दलके रुपमें उभरा. बीजेपी मजबुत हुआ था लेकिन बीजेपी को कोमवादी पक्ष कहेनेका सीलसिला चालु था. कई प्रधान मंत्री बने. और सरकारें तोडी गई.

१९९८ का चूनावः

फिरसे खंडित जनमत वाली संसद बनी. बीजेपी की सरकार बनी और सब अन्य पक्षोंने मिलकर उसको तोड दिया.

१९९९ का चूनावः

बीजेपीके जुथको बहुमत मिला और एक अच्छी सरकार बनी जिसने कई सारे विकासके काम किये.

राष्ट्रीय मार्ग आंतर्राष्ट्रीय कक्षाके बने. हिमालयमें जलश्रोतोंसे विद्युत पावर हाउस बने. उसकी और कई योजनायें बनी. गुजरातमें पवन उर्जाकी कई वीन्ड-मीलें बनी, बंदरोंका विकास किया गया. बीजेपी के नेतागण अत्यधिक आत्मविश्वासमें रहे.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने और अन्य पक्षोंने एक शिख लेली की अगर चूनावमें बैठकोंके बारेमें समाझौता नहीं करेंगे और बीजेपीको कोमवादका नारा लगाके खतम करनेकी व्यूह रचना नहीं अपनायेंगे तो हम खतम हो जायेंगे.

कोंगीने और उसके अन्य साथी पक्षोंने इस व्युहरचनाको अपनायाः

मुस्लिमोंको बीजेपीसे भडकाओ.

बीजेपीके हरेक कदमको कोमवादका नाम दो.

बीजेपी अगर राम मंदिरकी बात न करे तो आप इसके उपर बीजेपीको प्रश्न करो कि वह क्यों राममंदिर को भूल गई? क्या उसके लिये यह एक चूनावी मुद्दा ही था? अगर वह राम मंदिरके बारेमें कुछ बोले, तो कहो कि बीजेपी कोमवादी है.

अगर बीजेपी हिन्दुत्वकी या सांस्कृतिक विरासतकी कोई भी बात करें तो कहो कि, वह देशमें भगवाकरण करता है.

बीजेपीके तथा कथिक भ्रष्टाचारको शतशत बार दोहराओ.

देहातोंमें जाके उनको महेसुस कराओ कि विकास तो सिर्फ शहेरोंका हुआ है और वह भी आपकी कमाईसे हुआ है. आपके हित को तो नजर अंदाज ही किया है.

बीजेपी की चूनावी टिकटोंके बारेमें ज्ञातिवादी और धार्मिक भेदभावकी अफवाहें फैलावो.

जातिवादी आंदोलनोंको बढावा दो.

कोमी दंगे करवाओ और मुस्लिमोंको महेसुस करवाओ कि वे बीजेपीके राजमें सुरक्षित नहीं है.

बीजेपी शासित राज्योंमे हुए दंगोंको हजार बार दोहराओ और कोंगके शासनके दंगोंके बारेमें वितंडावाद फैलाओ.

२००४ का चूनाव कोंग्रेसने कैसे जिता?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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