Posted in Social Issues, tagged अकुशलता, अतिक्रमण, अशक्त, अहमदाबाद, आबंटन, आयोजन, उद्यान, एम-४, एम-५, एल-४, एल-५, कनिष्ठ वर्ग, कामचोरी, कुडा कचरा, कोंट्राक्टर, कोम्युनीटी हॉल, क्रीडांगण, गंदा, गुजरात हाउसींग बोर्ड, ग्राउन्ड फ्लोर, ग्राम, जी+२, जी+३, टाईप, टाउनशीप, नगर, निर्माण, परिभाषा, प्राचीन, पज़ेशन पत्र, फुटपाथ, बदसूरत, बाय-लॉज़, भारत, भुगतान, मध्यम वर्ग, मिलीभगत, मुख्य मार्ग, राष्ट्रीयकृत बैंक, रोड-फेसींग, वसाहत, विकलांग, विद्यालय, वृद्ध, शास्त्रीनगर, शोपींग सेन्टर, समाधान, सरकार, स्मार्ट सीटी, होमटेक वेतन, १९७६ on February 14, 2018|
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किसी भी नगरको/ग्रामको बदसूरत और गंदा कैसे किया जाय …. १
हाँ जी, नगर, ग्राममें आयोजित विस्तार, देहात, टाउनशीप, निवासीय या संकीर्ण मकान या मकानोंके समूह आदि सब कुछ आ जाता है. इसको कैसे बदसूरत और गंदा किया जा सकता है, उसकी हम चर्चा करेंगे.
अहमदाबाद स्थित शास्त्रीनगर कैसे बदसूरत और गंदा किया गया, हम इसका उदाहरण लेंगे.
कोई भी विस्तारमें यदि एक वसाहतका निर्माण करना है तो सर्व प्रथम उसका आयोजन करना पडता है. प्राचीन भारतमें यह परंपरा थी. प्राचीन भारतमें एक शास्त्र था (वैसे तो वह शास्त्र आज भी उपलब्ध है. लेकिन इसकी बात हम नहीं करेंगे. हम स्वतंत्र भारतकी बात करेंगे. १९४७के बादके समयकी चर्चा करेंगे.
अहमदाबादमें एक संस्था है. यह संस्था सरकार द्वारा नियंत्रित है. इसका नाम है गुजरात हाउसींग बोर्ड. इसने आयोजन पूर्वक अनेक वसाहतोंका निर्माण किया है.
शास्त्रीनगर वसाहतका आयोजन कब हुआ था वह हमें ज्ञात नहीं. लेकिन इसका निर्माण कार्य १९७१में आरंभ हुआ था.
आयोजनमें क्या होता है?
(१) जी+३ के मध्यम वर्ग (एम-४, ऍम-५) उच्च कनिष्ठ वर्ग (एल-४), कनिष्ठ वर्ग(एल-५) के बील्डींग ब्लोकोंका निर्माण करना.
(२) सुचारु चौडाई वाले पक्के मार्गका प्रावधान रखना, चलने वालोंके लिये और विकलांगोंकी और अशक्त लोगोंकी व्हीलचेरके लिये योग्य चौडाई वाली फुटपाथ बनाना
(३) र्शोपींग सेन्टरका प्रावधान रखना,
(४) बीजली – पानीका आयोजन करना,
(५) भूमिके विषयमें
(५.१) विद्यालयका प्रावधान रखना
(५.२) उद्यानके लिये प्रावधान रखना
(५.३) हवा और प्रकाश रहे इस प्रकार भूमिका उपयोग करना,
(५.४) कोम्युनीटी हॉलके लिये प्रावधान रखना,
(५.५) क्रीडांगणके लिये प्रावधान रखना,
(६) बाय-लॉज़ द्वारा वसाहतको नियंत्रित करना,
(७) सामान्य सुविधाएं यानीकी बीजली, पानी देना.
(८) कुडे कचरेके निकालके लिये योग्य तरीकोंसे प्रबंधन करना
आयोजनमें क्या कमीयाँ थीं?
(१) जी+३ के मकान तो बनवायें लेकिन प्लानरको मालुम नहीं था कि जनतामें विकलांग और वृद्ध लोग भी होते है. इस कारण उन्होंने यह समाधान निकाला कि जिसके कूटुंबमे वृद्ध होय उनको यदि आबंटनके बाद ग्राऊन्ड फ्लोरका आवास बचा है तो उनको चेन्ज ओफ निवास किया दिया जायेगा. आपको आश्चर्य होगा कि सरकार द्वारा निर्मित आवासोंका मूल्य तो कम होता है तो ग्राउन्ड फ्लोरका आवास बचेगा कैसे? शायद सरकारने सोचा होगा कि, आज जो युवा है वे यावदचंद्र दिवाकरौ युवा ही रहेंगे या तो युवा अवस्थामें ही ईश्वरके पास पहूँच जायेंगे.
हाँ जी, आपकी बात तो सही है. लेकिन यहां पर आवासकी किमत मार्केट रेटसे कमसे कम ४०% अधिक रक्खी थी. ग्राउन्ड फ्लोरके निवास और तीसरी मंजीलके निवासकी किमत भी समान रक्खी थी.
वैसे तो “लोन”की सुवाधा खुद हाउसींग बोर्डने रक्खी थी, इस लोनकी सुविधाके कारण लोअर ईन्कम ग्रुप वालोंने मासिक हप्ते ज्यादा होते हुए भी और लोनका भुगतान करनेकी मर्यादा सिर्फ दश सालकी होते हुए भी, अरजी पत्र भरा और मूल्यका २०% सरकारमें जमा किया.
समस्या एम-५ और एम-४ के आबंटनमें आयी. क्यों कि उसका मूल्य ५५००० रुपये रक्खा था और मासिक हप्ता ₹ ६००+ रक्खा था. उस समय कनिष्ठ कक्षाके अधिकारीयोंका “होमटेक वेतन” भी बडी मुश्किलसे रु. ९००/- से अधिक नहीं था. इस कारणसे ९५% निवास खाली पडे रहे. उतना ही नहीं उसी विस्तारमें आपको उसी किमतमें डाउन पेमेंट पर स्वतंत्र बंगलो मिल सकता था. स्टेम्प ड्युटी भी १२.५ प्रतिशत थी. मतलब कि, आपको एम-४ और एम-५ टाईपका निवास करीब ६५०००/- रुपयेमें पडता था.
राष्ट्रीयकृत बेंकोंकी लोन प्रक्रिया भी इतनी लंबी थी कि सामान्य आदमीके बसकी बात नहीं थी.
सरकारी समाधानः
सरकारने ऐसा समाधान निकाला कि, यदि आवास निर्माण संस्था सरकारी निर्माण संस्था है तो ऐसी संस्था द्वारा दिये गये “आबंटन पत्र” प्रस्तूत करने पर ही लोनको मंजूर कर देनेका.
मासिक आयकी जो सीमा रक्खी थी वह रद कर दी,
कई सारे निवास सरकारके विभागोंने, अपने कर्मचारीयोंके सरकारी आवास के लिये खरीद लिये.
लोनके कार्य कालकी सीमा दश सालके बदले बीस साल कर दिया.
निर्माणका काम अधूरा था तो भी सबको पज़ेशन पत्र दे दिये क्यों कि कोंट्राक्टरको दंड वसुलीसे बचा शकें.
(२) शास्त्रीनगरका आयोजन तो उस समयके हिसाब से अच्छा था. समय चलते महानगर पालिकाने नगरके मार्गोंको आंशिक चौडाईमें पक्का भी कर दिया.
प्रारंभके वर्षोंमें वर्षा ऋतुमें बस पकडने के लिये आधा किलोमीटर चलके जाना पडता था. सरकारका चरित्र है कि कोई काम ढंगसे नहीं करनेका. पक्के मार्ग आंशिक रुपसे ही पक्के थे. इससे कीचडकी परेशानी बनती थी. दोनों तरफकी भूमिको तो कच्चा ही रक्खा रक्खा जाता था. फूटपाथ बनानेका संस्कार नगर पालिकाके अधिकारीयोंको नहीं था (न तो आज भी है).
(३) हाउसींगबोर्डने शोपींग सेन्टर तो अच्छा बनाया था. एम-४ टाऊप आवासोंके ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकानें बनी थीं.
(४) बीजली पानीका प्रबंध उस जमानेके अनुसार अच्छा था.
(५.१) स्कुलके लिये भूमि तो आरक्षित थी. लेकिन आज पर्यंत स्कुल क्युं नहीं बना यह संशोधनका (अन्वेषणका) विषय है.
(५.२) उद्यान नहीं बनवाया,
(५.३) कोम्युनीटी सेन्टर नहीं बनवाया
(५.४) क्रिडांगणका मतलब यही किया गया कि भूमिको खुल्ला छोड देना.
(६) शास्त्रीनगरके सुचारु रखरखावके लिये सरकारने बाय-लॉज़ तो अच्छे बनाये थे. लेकिन सरकारी कर्मचारी-अधिकारीगण तो आखिर नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कार प्रभावित सरकारी ही होते है. इन सरकारी अधिकारीयोंको काम करना और दिमाग चलाना पसंद नहीं होता है. “यह काम हमारा नहीं है” ऐसा तो आपने कई बार सूना होगा. यदि कोई काम उनका नही है तो जिस सरकारी विभागका वह काम हो उसको ज्ञात कर देनेका काम सरकारी कर्मचारी/अधिकारीके कार्यक्षेत्रमें है ऐसा इनको पढाया नहीं जाता है.
(६.१) हाउसींग बोर्डने शीघ्राति शीघ्र निवास स्थानोंका वहीवट पांच से सात ब्लॉकोंकी सोसाईटीयां बनाके इन सोसाईटींयोंको दे दिया.
(६.२) भारतके लोग अधिकतर स्वकेन्द्री है और आलसी होते है. स्वकेन्द्री होने के कारण जो लोग ग्राउन्ड फ्लोर पर रहेते थे उन्होने एपार्टमेन्टके आगेकी १० फीट भूमि पर कबजा कर लिया. सार्वजनिक जगह यदि सुप्राप्य है तो उसके उपर कबज़ा जमाना भरतीयोंका संस्कार है खास करके उत्तरभारतीयोंका जिनमें गुजराती लोग भी इस क्षेत्रमें आ जाते हैं. उनके उपर रहेने वालोंने विरोध किया तो झगडे होने लगे. सात ब्लॉकोंकी जगह हर ब्लॉक की एक सोसाईटी बन गई. एक ब्लोकके अंदर भी ग्राउन्ड फ्लोर और उपरके फ्लोर वाले झगडने लगे.
(६.३) ज्यों ज्यों अतिक्रमण बढता गया त्यों त्यों शास्त्रीनगरकी शोभा घटने लगी. शास्त्रीनगर एक कुरुप वसाहतके रुपमें तेज़ीसे आगे बढने लगा था.
(६.४) जब अतिक्रमणकी फरियादें बढ गयी तो सरकारने सबको छूट्टी देदी.
(६.५) अब शास्त्रीनगरका कोई भी निवासी दश फीट तक अपना रुम या गेलेरी आगे खींच सकता था. उसको सिर्फ एक हजार रुपये हाउसींग बॉर्डमें जमा करवाने पडते थे.
(६.६) एक हजार रुपया हाउसींग बॉर्डमें जमा करने के बाद, न तो कोई सोसाईटीके पारित विधेयककी नकल प्रस्तूत करना आवश्यक था, न तो कोई विधेयक जरुरी था, न तो कोई विज्ञापन देना आवश्यक था, न तो पडौशीका “नो ओब्जेक्सन” आवश्यक था, न कोई प्लान एप्रुव करवाना आवश्यक था, न तो किसीका कोई निरीक्षण होना आवश्यक माना गया. कुछ निवास्थान वालोंने तो तीनो दिशामें दश दश फीट अपना एपार्टमेन्ट बढा दिया.
(६.७) यदि शास्त्रीनगरके निवासी ऐसी छूटका लाभ ले, तो हाउसींग बोर्ड स्वयं क्यों पीछे रहे?
(६.८) हाउसींग बोर्डने शास्त्रीनगरकी चारो दिशामें, जी+२ के कई सारे मकान बना दिये. सभी मकानोंके ग्राउन्ड फ्लोर वालोंने ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकाने बना दी. हाउसींग बोर्डने भी ऐसा ही किया. अब ऐसा हुआ कि जो भी ग्राउन्ड फ्लोर वाले थे उनमेंसे अधिकतर लोगोंने अपना रोड-फेसींग रुमोंको दुकानमें परिवर्तित कर दिया.
(६.९) मुख्य मार्ग पर वाहनोंका यातायात बढ गया. फूटपाथकी तो बात ही छोड दो, मार्गपर चलनेका भी कठीन हो गया.
हाउसींग बोर्डके कर्मचारीयोंकी और अधिकारीयोंकी कामचोरी और अकुशलताके बावजुद १९७६ से १९७९ तक शास्त्रीनगर एक सुंदर और अहमदाबादकी श्रेष्ठ वसाहत था. लेकिन धीरे धीरे उसमें सरकारी कर्मचारी-अधिकारी, गुन्डे, व्यापारी और हॉकर्सकी मिलीभगतसे अतिक्रमण बढता गया.
(७) बीजली सप्लाय तो अहमदाबाद ईलेक्ट्रीसीटी कंपनीका था इससे उसमें कमी नहीं आयी. लेकिन जो पानीकी सप्लाय थी वह तो अतिक्रमण-रहित आयोजन के हिसाबसे था. इस कारण पानीकी कमी पडने लगी.
(८) कुडा कचरा को नीपटानेका प्रबंधन तो पहेलेसे ही नहीं था. क्यों कि नहेरुवीयन कोंग्रेस गंदकीको समस्या मानती नहीं है.
(९) कई सालोंसे शास्त्रीनगर प्रारंभिक अवस्थाकी तुलनामें दोज़ख बन गया है. कई लोग अन्यत्र चले गये है.
हाउसींग बॉर्डके लिये गीचताकी समस्या कोई समस्या ही नहीं थी. हाउसींग बोर्डने मुख्यमंत्री आवास योजनाके अंतर्गत अंकूरसे रन्नापार्कके रोड पर नारणपुरा-टेलीफोन एक्सचेन्जके सामनेवाली अपनी ज़मीनके उपर आठ दश नये अतिरिक्त दश मंजीला मकानकी योजना पूर्ण कर दी है. इसमें भी कई सारी दुकानें बनायी है. वाहनोंके पार्कींगके लिये कोई सुविधा भी नहीं रक्खी है. इश्तिहारमें पार्कींग की सुविधाका जिक्र था. लेकिन हाउसींग बोर्डके अधिकारी/कोंट्राक्टरोंकी तबियत गुदगुदायी तो पार्कींग भूल गये.
(१०) यह विस्तार पहेलेसे ही गीचतापूर्ण है. इस बातका खयाल किये बिना ही हमारे सरकारी अधिकारीयोंने इस विस्तारको और गंदा करने की सोच ली है और वे इसके लिये सक्रीय है.
इस समस्याका समाधान क्या है?
(१) हाउसींग बॉर्डमें और नगर निगममें जो भी सरकारी अधिकारी जीवित है उनका उत्तरदायीत्व माना जाय और उनके उपर कार्यवाही करके उनकी पेन्शनको रोका जाय. उनकी संपत्ति पर जाँच बैठायी जाय ताकि अन्य कर्मचारीयोंको लगे कि गैर कानूनी मार्गोंसे पैसे बनानानेके बारेमें कानून के हाथ लंबे है और कानूनसे कोई बच नहीं सकता. जो भी कमीश्नर अभी भी सेवामें है उनको निलंबित कर देना चाहिये और उनके उपर कार्यवाही करनी चाहिये.
(२) केवल कमीश्नर उपर ही कार्यवाही क्यों?
(२.१) कमीश्नर अकेला नहीं होता है. उसके पास आयोजन करने वाली, निर्माण पर निगरानी रखनेवाली, रखरखाव और अतिक्रमण करनेवाले पर कार्यवाही करने के लिये पूरी टीम होती है. यह बात सही है कि कमीश्नर ये सभी कार्य स्वयं नहीं कर सकता. किन्तु उसका कर्तव्य है कि वह अपनी टीमों के कर्मचारी/अफसरोंका उत्तरदाइत्व सुनिश्चिते करें.
यदि कोई जनप्रतिनिधिने उसके पर दबाव लाया है तो वह उसका नाम घोषित करे. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग करें और ऐसे जन प्रतिनिधियों को प्रकाशमें लावें. वैसे तो इन अधिकारीयोंका मंडल भी होता है. वे अपने हक्कोंके लिये लडते भी है. किन्तु उनको स्वयंके सेवा धर्मके लिये भी लडना चाहिये. जो नीतिमान आई.ए.एस अधिकारी है वह अवश्य लड सकता है. यदि उसको अपने तबादलेका भय है तो वह न्यायालयमें जा सकता है. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग न्यायालयके सामने रख सकता है.
(३) लेकिन ये आई.ए.एस अधिकारीगण ऐसा नहीं करेंगे. क्यों कि उनकी जनप्रतिनिधियोंके साथ, अपने कर्मचारीयोंके साथ, कोन्ट्राक्टरोंके साथ और बील्डरोंके साथ मिलीभगत होती है. जिनके साथ ऐसा नहीं होता है वे लोग ही दंडित होते है.
(३.१) बेज़मेंटमें कानूनी हिसाबसे आप गोडाउन नहीं बना सकते. यह प्रावधान “फायर प्रीवेन्शन एक्ट के अंतर्गत है. ऐसे गोडाउनमें आग भी लगी है और नगरपालिकाके अग्निशामक दलने ऐसी आगोंका शमन ही किया है. लेकिन ऐसे गोडाऊन आग लगनेके बाद भी चालु रहे है. बेज़मेन्टमें कभी दुकाने नहीं हो सकती. क्यों कि दुकानमें भी सामान होता है. उसके उपर भी “फायर प्रीवेन्शन एक्ट लागु पड सकता है. लेकिन नगर पालिका के मुखीया (कमीश्नर)की तबीयत नहीं गुदगुदाती कि वे ऐसी दुकानों पर कार्यवाही करें.
(३.२) अनधिकृत निर्माण, कर्मचारी/अफसरोंकी लापरवाही, भ्रष्टता, न्यायालयके हुकमोंका अनादर, न्यायालयमें नगरपालिकाकी तरफसे केवीएट दाखिल करने की मनोवृत्तिका अभाव, न्यायालयके हूकमोंमें क्षतियां आदि विषयके समर्थनमें के कई मिसाले हैं कि जिनमें सरकारी (न्यायालय सहित) अधिकारीयोंकी जिम्मेवारी बन सकती है और वे दंडके काबिल होते है.
(३.३) अब यह दुराचार इतना व्यापक है कि न्यायालयमें केस दाखिल नहीं हो सकता. लेकिन विद्यमान सरकारी अफसरों (केवल कमीश्नरों) पर कार्यवाही हो सकती है. इन लोगोंको सर्व प्रथम निलंबित किया जाय, और आरामसे उनके उपर कार्यवाही चलती रहे.
(४) कमीश्नर फुलप्रुफ शासन प्रणाली बनवाने के काबिल है. यदि आप उनके लिये बनाये गये गोपनीय रीपोर्टकी फॉर्मेटके प्रावधानोंको पढें, तो उनकी जिम्मेवारी फिक्स हो सकती है. उनके लिये यह अनिवार्य है कि वे नीतिमान हो, उनकी नीतिमत्ता शंकासे बाहर हो, वे आर्षदृष्टा हो, वे स्थितप्रज्ञ हो, कार्यकुशल हो, कठिन समयमें अपनी कुशलता दिखानेके काबिल हो, सहयोग करने वाले हो, उनके पास कुशल संवादशीलता हो, आदि …
(५) एफ.एस.आई. कम कर देना चाहिये.
(५.१) आज अहमदाबदमें एफ.एस.आई १.८ है. भावनगरके महाराजाके कार्यकालमें भावनगरमें एफ.एस.आई. ०.३ के करीब था. मतलब की आपके पास ३०० चोरस मीटरका प्लॉट है तो आप १०० चोरस मीटरमें ही मकानका निर्माण कर सकते है. उस समय भावनगर एक अति सुंदर नगर था. हर तरफ हरियाली थी. आप जैसे ही “वरतेज” में प्रवेश करते थे वैसे ही आपको थंडी हवाका अहेसास होता था.
(५.२) नहेरुवीयन कोंग्रेसने एफ.एस.आई. बढा दिया. १९७८के बाद भावनगरका विनीपात हो गया. आज वह भी न सुधर सकनेवाला नगर हो गया है. भारतके हर नगरका ऐसा ही हाल है.
(६) ऐतिहासिक धरोहरवाले मकानोंको छोडके, अन्य विस्तारोंका री-डेवलपमेन्ट (नवसंरचना) कराया जाय. इस प्रकारकी नव संरचनाके के नीतिनियम और प्रक्रिया इसी ब्लोग-साईट पर अन्यत्र विस्तारसे विवरण दिया है.
(७) आई.ए.एस. अधिकारीयों की नियुक्ति बंद कर देना चाहिये. क्यों कि इनमें ९९.९ अधिकारी अकुशल और भ्रष्ट है. इनकी नियुक्तिमें गोलमाल होती है. कैसी गोलमाल होती है उसके बारेमें प्रत्यक्ष और परोक्ष अनेक सबूत है. हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे.
(८) कमीश्नरोंकी नियुक्ति ५ सालके कोन्ट्राक्ट पर होनी चाहिये. उनकी नियुक्तिके पूर्व और कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात उनकी संपत्तिकी जांच होनी चाहिये.
(९) स्मार्ट सीटीकी परिभाषा निम्न कक्षाकी है. यह परिभाषा व्यापक होना चाहिये. “यदि गुन्हा किया तो १०० प्रतिशत पकडा गया और दंड होगा ही” ऐसा सीस्टम होना चाहिये. और यह बात असंभव नहीं है.
“नगर रचना कैसी होनी चाहिये” इसके बारेमें यदि किसीको शिख लेनी है तो वह “गोदरेज गार्डन सीटी, जगतपुर, अहमदाबाद-३८२४७०”की मुलाकात लें.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
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Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अनुरक्षण, अभिज्ञान पत्र, आबंटन, आवास, इकाईयां, उच्च माध्यमिक, कार्यालय, कौशल्य, खाद, गृह उद्योग, ग्राम, घटक स्तंभ, जल संचय, डंड, डीफॉल्टर, दुकान, नबसंरचना, निर्माण, पुनश्चक्रण, पूर्वनिर्मित, प्राथमिक, फलक, बहुस्तरीय, भाट, भौगोलिक विस्तार, माध्यमिक, रेन्ट, वज्रचूर्ण, विद्यालय, वेब साईट, व्यतिक्रमी, व्यवसाय, शासक, शिक्षण, श्रम नियम, संकुल, संचार प्रौद्योगिका, संयंत्र, संविदक, संस्था, सीसी टीवी केमेरा, सुरक्षा, सेवा, सोर उर्जा, सोलर पेनल, सौर सारणी, स्वावलंबन on September 23, 2015|
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RURBAN CLUSTER ALIAS A SMART COMPLEX. A CLUSTER WITH SELF RELIANCE
स्वावलंबी संकुल
रोटी, कपडा और मकान ये प्राथमिक आवश्यकताएं है. प्रत्येक पक्ष यह आश्वासन देता है कि उसने इनके बारेमें कई कदम उठाये हैं और उसके पास भविष्यकी भी योजनाएं हैं और उसका आयोजन भी है.
शासन द्वारा जो भूमि अधिग्रहण होता था और होता है ऐसा लगता है जो निम्न लिखित प्रकारका है.
१ शासन द्वारा जो ग्राम आयोजन (टाउन प्लानींग), होता है, उसमें गरीबों (पछात वर्गों) के लिये आयोजित, भूमिखंडोंमेंसे कुछ भूमिखंड आरक्षित करना होता है और उसको निम्न मूल्यसे उन पछात वर्गोंमें आबंटित किया जाता है.
२ गरीबोंको आवासके लिये भूमिके खंड दिया जाता है. जैसे कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने गुजरातमें और देशमें चूनावके समय प्रण लिया था कि यदि उसका पक्ष सत्तामें आया तो १०० चोरस मीटरके भूमिके टूकडोंका आबंटन गरीबंको निम्नतम मूल्य पर करेगा.
३ शासन, गरीबोंकी झोंपडपट्टी यदि अनधिकृत नहीं है तो उसी जगह पर उसको ईंदिरा–आवास योजना अंतर्गत उसको धन देता है. यदि झोंपड पटी अनअधिकृत है तो उसको अधिकृत किया जाता है और वहां ही आवास योजना बनाई जाती है और उपरोक्त पछात जनसमुदायके लिये सस्ते मूल्यवाले खंडीय आवास (रेसीडेन्सीयल अपार्टमेन्ट्स), दो या तीन स्तर वाले (दो या तीन स्टोरीड क्लस्टर बील्डींग ब्लॉक) बनाया जाता हैं. उसमें आवास निर्माण कर्ताको कुछ दुकानें बनानेकी अनुमति दी जाती ताकि वह निर्माण कर्ता संविदाकारको धनलाभ मिलें.
४ शासनकी अनुमतिसे, जर्जरित आवासोंका और जर्जरित भवनोंका संनिर्माण (रीडेवलपमेन्ट) करते हैं. निर्माणकर्ता संविदाकारको, भूमि और निर्माण अनुपातमें (एफ एस आई में) कुछ शिथिलीकरण होता है ताकी संविदाकार निर्माण कर्ताको लाभ पहोंचा सकें.
ठग विद्याः
ये सर्व वास्तविक समस्याका निराकरण है ही नहीं. यह तो एक ठगविद्या है.
इस ठगविद्यामें प्रचूर मात्राका अनाचार और भ्रष्टाचार होता है उतना ही नहीं ये नवसंरचना की अनुमति आयोजनके लिये असुनियोजित और अयोग्य रीतिसे धनलाभके लिये सुनियोजित बने ऐसी क्षतिपूर्ण लेख बनने दिये जाते है. इसमें जनप्रतिनिधिगण, नगरपालिका आयुक्त से लेकर कर्मचारीगण, प्रतिलिप्याधिकारी (रजिस्ट्रार) और निर्माणकर्ता भी संमिलित होता है. इतना ही नहीं नगरपालिकाके नवसंरचना के नियम क्षतियुक्त होनेसे और इसके अतिरिक्त भी अन्य समस्याएं भी पैदा होती हैं. मुंबई महानगर पालिका इसका उत्कृष्ठ उदाहरण है.
हम ऐसी समस्याओंकी चर्चा यहां पर नहीं करेंगे. हम केवल नवनिर्माण अर्थात स्वावलंबी संकुल की ही चर्चा करेंगे.
स्मार्ट सीटी और स्मार्ट ग्राम सर्वाधिक सुगमतासे, और लघुतम मूल्यसे कैसे निर्माण किया जा सकता है और यह कैसे हो सकता है उसकी चर्चा करेंगे.
आवासोंका वर्गीकरणः
१ भिक्षुकः घर नहीं है, बेकार है, पैसे नहीं है, निराश्रित है, जिसके नागरिकत्वके बारेंमें जानकारी नही है, उसको सिर्फ सोनेकी और नित्यकर्मकी सुविधा मूफ्तमें दी जायेगी.

२ निर्माण कर्ताको निर्माणके कार्यमें श्रम नियम के अनुसार श्रमजिवीयोंको अस्थायी रुपसे नियोजित करना पडता है. और इन श्रमजिवीयोंको आवास देना अनिवार्य ह्ता है. किन्तु निर्माण कर्ता संविदाकार और श्रम आयुक्त कार्यालयकी संमिलित भ्रष्टाचार के कारण श्रमजिवीयोंको नियम अनुसार आवास और सुविधाएं मिलती नहीं है. शासनके लिये यह अनिवार्य बनना आवश्यक है कि इन श्रमजिवीयोंको इन नवसंरचना द्वारा निर्मित संकुलमें सुनिश्चित आवास दिया जाय. निर्माण के लिये अनियतकालके लिये रख्खे गये इन श्रमजिवीयोंके लिये निवास जिसका भाट (किराया, रेन्ट), संविदकको (कोन्ट्राक्टरको) कार्य–सूचनाके (वर्क ओर्डरके) अनुसारके समयके लिये देना पडेगा. सर्वथा एक मासका पूर्व ही देना पडेगा.
३ स्थायी निवासः जिन्होने अपना जर्जरित स्वकीय या भाटीय, (रेन्टल, किरायेका), या अनधिकृत, निवास खाली किया हो, या जिनको स्वेच्छासे क्रयण (परचेझ) करना हो, उनको यहां पर कोष्ठ या कोष्ठ–समूह, विक्रयमें, उनकी मूल्य देनेकी क्षमताके अनुसार दिया जायेगा. यदि वे इच्छे तो क्रयण (परचेझ) से आवासको क्रयण (परचेझ) करें, या वे चाहे तो क्रयण तो भाटीय रुपसे (किरायाके अनुसार) सुनिश्चित नियमोंके आधार पर आवास ग्रहण करेंगे.
४ व्यवसायी कोष्ठ या कोष्ठ समूहः जिनको कलाकारीगीरीके उत्पादन एवं विक्रय, गृह उद्योग और उन उत्पादनों कि विक्रय, सूचित यंत्र और उनकी अनुरक्षण (रीपेर एवं मेन्टेनन्स), वाणीज्य व्यवसाय, शासन सेवाएं, परामर्श, संस्था कार्यालय, शिक्षण संस्थाएं, अनुरक्षण सेवाएं आदिके के लिये स्थल चाहिये, तो उनको वर्गीकृत उपयोगके आधारपर सुनिश्चितरुपसे बनाये नियमो द्वारा पूर्वनियोजित और आरक्षित कोष्ठ और कोष्ठसमूह, दिया जायेगा.
५ पशुपालन कोष्ठ और कोष्ठ समूहः जो लोग पशुपालन करना चाहते हैं वे आवास एवं पशु पालन के लिये पास पास वाले कोष्ठ में कर सकते है. जिनके लिये भूमिगत कोष्ठ या कोष्ठ समूह उपलब्ध कराया जायेगा.
६ जिनके गृहउद्योगसे ध्वनि प्रदूषण होता हो उनको भी भूमिगत कोष्ठ या कोष्ठ समूह उपलब्ध कराया जायेगा. उनके लिये पासवाले कोष्ठ, कोष्ठ समूह निवासके लिये यदि शक्य है तो उपलब्ध कराया जायेगा.
कोष्ठ क्या होता है?
कोष्ठ, अनेक स्तरीय (मल्टीस्टोरीड) बहुलक्षी हेतुवाला एक प्रचंड संकुलका एकम होता है.

कोष्ठ, पांच मीटर लंबा और पांच मीटर चौडा खुल्ला खंड होता है. उसको दिवारें नहीं होती है. कोष्ठोंको भीन्न भीन्न प्रकारसे संमिलन करनेसे (समुच्चयसे) हम भीन्न भीन्न विस्तारके आवास और स्थल जैसे कि, निवास, अस्थायी लोगोंके आवास, कार्यालय, गृह उद्योग, शाळाएं, गौशाळा, वाहन पार्कींग, दुकान मॉल, सभा खंड आदि बना सकते हैं.
एक प्रकोष्ठ कैसा होता है, यह निम्न आकृतिमें प्रदर्शित किया है. पडौसी के साथ जो समान भित्ति (दिवार) है वह ही केवल भौतिक रुपसे दी जाती है. अन्य सभी भित्ति जैसे कि बाह्य और आंतरिक मार्ग के समान्तर भित्ति के स्थान पर शक्तिशाली निष्कलंक इस्पातकी (पोलादकी) जाली जो स्तंभ निर्माणसे संलग्न है. यदि निवासी इच्छे तो स्वयंके कोष्ठके अंदर एक अधिक भित्ति बना सकता है. लेकिन इस जाली को निष्कासित नहीं कर सकता. यह भित्ति उसके स्वामित्वकी सीमा है.
ग्रामकी एक संकुलके स्वरुपमें नवसंरचना क्यों?
भूमि बना नहीं सकतें किन्तु सुचारु रुपसे भूमिका उपयोग करनेसे भूमि प्राप्त की जा सकती है.
भूमि कैसे प्राप्त करें?
सर्वप्रथम एक ऐसा भूखंड प्राप्त किया जाय, जो सरलतासे उपलब्ध हो, ताकि किसीको स्थानांतरका कष्ट न हो.
हमें ५०० मिटर लंबा और ५०० मिटर चौडा या संरचनाके अनुरुप एक भू खंड उपलब्ध करना पडेगा. यह भूखंड खुल्ला मैदान हो, असाध्य भूमि हो, असमतल भूमि हो या सुलभ हो और ग्राम या सुचित नवसंरचना से संबंधित जनसमुदायसे समिप हो.
इस भूमिखंडके उपर हम एक ग्राम संकुल बनायेंगे जिसमें
एक ग्राम एक नगरका भौगोलिक विस्तार जो नवसंरचना के लिये सुचित है. १००० से लेकर ५००० और १०००० तककी जनसंख्या वाले भौगोलिक विस्तारके जनसमुदायको नवसंरचित संकुलमें स्थानांतरित कर सकते है. एक शहरका भौगोलिक विस्तार जिसकी जनसंख्या १००० से १०००० है उसको एक संकुलमें परिवरित कर सकते हैं.
उपरोक्त भौगोलिक विस्तारके एतत कालिन निवासीयोंको और व्यवसायीयोंको नवरचित प्रकोष्ठ प्रकोष्ठ समूह को आबंटित करनेके नियम बनाये जायेंगे.
शासन प्रत्येक कुटुम्ब और व्यवसायीको प्रकोष्ठ (खंड) या प्रकोष्ठ–समूह देगा, जो जर्जरित या लघुस्तरीय मकान, या झोंपड पट्टी अनाधिकृत भूमिका उपयोग कर रहे है.
संपूर्ण स्वावलंबन इस ईन्टरनेटके युगमें शक्य नहीं है. किन्तु ७५ से ८० प्रतिशत स्वावलंबन शक्य है.
कौनसी वस्तुएं उपभोग्य वस्तुओंका समावेश किया जा शकता है?
उत्पादनः सब्जी, अन्न (आंशिक), फल (आंशिक), खाद्य तेल, अखाद्य तेल, मध, पुष्प, वस्त्र, दूध, दूधका अन्य उत्पादन, गेस, उर्जा (आंशिक), पशु, खाद, लकडी, चर्म (आंशिक)… किन्तु अधिक स्वावलंबनता प्रयोजनेके लिये स्वावलंबन वर्तुल उसके आसपासके विस्तारको संमिलित करके भूमिजन्य उत्पादनोंकी दिशामें प्रगति कर शकते हैं. (अनुसंधान “मेरे स्वप्नका भारत” लेखक महात्मा गांधीका वाचन किया जाय).
शिक्षणः शिशुविहार, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, यंत्र (घरेलु, कृषि, वाहन, उर्जा) कौशल्य, हस्तकौशल्य, व्यायाम, योग, खेल, कला, उत्पादन, विक्री, संचालन, अनुरक्षण, स्वच्छता, कौशल्य, संचय, सुरक्षा,
उद्योग, व्यवसाय और सेवाः गृह उद्योग, कृषि, कृषि उद्योग, कृषि आधारित उद्योग, कलाकौशल्य, संचय, पशुपालन, अप्रणालिगत उर्जा उद्योग, अनुरक्षण, विक्री, सरकारी सेवाएं एवं सुरक्षा (न्याय, जनगणना, चूनाव, माहिति संचय और प्रदान, रेकर्ड अनुरक्षण और सुधार, शासन और अनुशासन, प्राथमिक आरोग्य, चिकित्सालय, ऋग्णालय, स्वच्छता, करसंचय, सुरक्षा), शिक्षा, वाहनव्यवहार, जल–पुनचक्रण, वर्षा जल संचय, जल शुद्धिकरण, कूडा प्रबंधन, परामर्श,
ग्राम–संकुल संरचना और सुवीधाओंका प्रबंधन कैसे किया जायेगा?
१ प्रेत्येक कुटुंबको एक प्रकोष्ठ या प्रकोष्ठ समूह उनकी क्षमताके आधार पर मिलेगा,
२ हरेक निवासमेंसे आकाश दिखायी देगा, उसमें हवा और प्रकाश रहेगा,
३ हरेक निवासमें पानीकी सुविधा होगी,
४ हरेक निवासमें गोबरगेस उर्जा या प्राकृतिक गेस की सुविधा उपलब्ध होगी,
५ हरेक निवासमें विद्युत होगी चाहे वह परंपरागत स्रोतसे हो या अ–परंपरागत स्रोत से हो.
६ हरेक निवासमें पौधे लगानेकी सुविधा होगी,
७ हरेक निवासमें पानीकी निष्कासन व्यवस्था (ड्रेईन) होगी,
८ हरेक निवास अनधिकृत विस्तरणसे मूक्त रहे और अनधिकृत जगह पर अतिक्रमण न कर सके ऐसी उसकी रचना की जायेगी. कोई भी उपयोग कर्ता कूडा कचरा या गंदगी न करे और न कर सकें वैसी परिस्थिति और रचना की जायेगी.
९ प्रकोष्ठ समूह यानी कि संकुलकी आकृति ऐसी रहेगी कि सभी उपयोग कर्ताओंको अन्योन्य सहायता और सामाजिक जीवनकी अनुभूति मिल सके.
१० हरेक आंतरिक मार्ग (पेसेज, लोबी) पर सीसी टीवी केमेरा लगे होगे, जिससे नियमोंका भंग करनेवालोंका, जैसे कि आतंरिक मार्ग पर अतिक्रमण करना, कूडा फैंकना, लडना, मारना आदि दुष्कृत्योंपर दोषीको दंडित किया जा सके.
११ संकुलमें प्रवेश हमेशा विजाणुं अभिज्ञानपत्र (इलेक्ट्रोनिक आईडेन्टीटी कार्ड) या निर्देशिका अंगुलीके अभिज्ञानके आधार पर होगी. संकुलके आगंतुक प्रवासीको उसके अभिज्ञान पत्रके आधारपर प्रवेश मिलेगा. हरेक आवास, दुकान आतंरिक मार्ग आदिका यातायात सीसीटीवी केमेरासे चित्रांकित भी रहेगा और आगंतुक प्रवासीका आगमन और निष्कास सुरक्षा कक्षमें लेखांकित भी रहेगा.
१२ हरेक विक्रेताकी दुकान या व्यवसायीका उद्यमस्थलके उपर सुनिश्चित कदकी तख्ती रहेगी उसके उपर उस स्थानके स्वामी (ओनर)का नाम, पत्रव्यवहारका पता और उसकी संचार प्रौद्योगिकाका (वेब् साईटका) नाम लिखा रहेगा. संकुलके हर व्यवसायिक स्थानका, सेवाका, कार्यालयका, एक संचार प्रौद्योगिकाका (वेब् साईटका) होना अनिवार्य होगा. उस संचार प्रौद्योगिका (वेब् साईटका)में क्या क्या माहिति होना अनिवार्य है उसके नियम शासन बनायेगा. ताकि हर व्यवसाय और सेवाएं पारदर्शी रहे.
१३ संकुलके बाह्य स्थल पर जनसाधारण यातायातका स्थानक (बस स्टेन्ड) होगा, जहांसे संकुलके निवासी, समीपके बडे स्थानक पर जा सकेंगे.
१४ संकुलके उपर और संकुलके बाह्य स्थंभो पर, सौर उर्जाको ग्रहण करने के लिये सूर्यकोषकी सौर सरणीयां (सोलर पेनल) लगेंगी.
१५ संकुलमें वर्षाका पानी संचय करनेकी सुविधा रहेगी
१६ संकुलमें निष्कासित जल का जल–पुनचक्रण करनेकी और कूडा(वेस्ट), गोबर (एनीमल डन्ग), प्राणीज अपव्यय आदिमेंसे खाद बनानेके संयंत्र होगे. पुनश्चक्रणका काम (रीसायकलींगका काम) या तो शासन के अंतर्गत होगा या तो निजी संस्थाके अंतर्गत रहेगा. यदि निजी संस्था यह काम करेगी तो इसके उपर शासनका निरीक्षण रहेगा.
१७ संकुलमें दो शासनाधिकारीके कार्यालय होगेः
एक कार्यालय संकुलसे संलग्न प्रत्येक आलेखोंखको लेखांकित रखना, जैसे कि, प्रकोष्ठोंका आबंटन, प्रकोष्ठोंका हस्तांतरण, प्रकोष्ठोंका आदानप्रदान, उनके संलग्न अनुमति पत्र देना, निवासीयोंका विवरण, संकुल प्रवेशकी अनुमति, सुरक्षा, मतदाता सूची बनाना और उसको अद्यतन रखना, निवासीयोंकी सभा करना, सभाका संचालन करना, चूनावके समय पर हरेक प्रत्याशीको एक मंचपर लाके व्याख्यान करवाना, मत गणना करना, सुरक्षा नियमोंके पालनमें क्षति करने वालोंको, अनाधिकारितासे स्थानका उपयोग करनेवालोंको … आदि अपराधीयोंको दंडित करना, कर (टेक्ष), और भाट(रेन्ट) के व्यतिक्रमीको (डीफॉल्टरको), दोषीयोंको निष्कासित करना और उनको भिक्षुक आवासमें भेज देना या तो निम्न स्तरीय आवास में स्थानांतर करवाना, आदिके लिये उत्तरदायी होगा.
१८ द्वितीय अधिकारीका कार्यालयः करप्राप्ति (टेक्ष कलेक्सन), दंडप्राप्ति, भाट प्राप्ति [(रेन्ट कलेक्सन) [यदि शासनने भाट (रेन्ट) पर दिया है तो], संकुलका अनुरक्षण (मेन्टेनन्स), संकुलके यंत्रोपर अवलोकन और अनुरक्षण, स्वच्छता, आदि संमिलित होगा और इन सबके लिये उत्तरदेय होगा.
एक नवसंरचित संकुलका विवरणः कोष्ठ, संकुलका एकम है. इसके समुच्चयसे आवास, उद्योग, सेवा, आतंरिक यातायात पथ ( कोमन पेसेज) आदि बनते हैं.

यह संकुलका आकर भूखंडके आधारपर सुनिश्चित किया जा सकता है.

भीन्न भीन्न आकार वाले ये संरचना निर्माण का एक चौरस एक प्रकोष्ठ दर्शाता नहीं है. ये केवल आकार ही है और परिमाण के अनुरुप और प्रकोष्ठकी क्रमसंख्यासे भी अनुरुप नहीं है.जो भूखंड उपलब्ध है उसके अनुरुप संरचनाका आकार निश्चित किया जा सकता है.
संरचना निर्माण के घटक कौन कौन होते है?
संरचनाके घटक पूर्व निर्मित स्थंभ (कोलम, पीलर), और फलककी ईकाईयां है. ये सब वज्रचूर्ण (सीमेन्ट) और इस्पात सलाखाओंके सुभग संमिलित रचना करनेसे (आरसीसी वर्कसे) निर्मित होती है.
मुख्य ध्येय को ध्यानमें रखते हुए हम अनेक आकृतिके ग्राम संकुल बना सकते है. इस ग्राम संकुलोंसे यातायातकी समस्याका पर्याप्त सीमा तक समाधान हो जयेगा. झोंपड पट्टी, अतिक्रमण, घुसखोरी, अराजकता, चोरी, डकैती, आदिकी समस्यांएं नष्ट हो जायेगी. सुरक्षा क्षतिहीन हो जायेगी, जनगणना अद्यतन अवस्थामें रहेगी. मिल्कतके दुराचार और भ्रष्टाचार एवं उसके कारण कालाधनका निर्माण आदि समस्याएं नष्ट हो जायेगी. चूनाव प्रचार, उसमें होनेवाली धांधलीका निर्मूलन, मतगणना, आदि सब सरल बनेगा. चूनाव खर्च शून्यके बराबर किया जा सकता है. क्यों कि निर्वाचन अधिकारी व्याख्यान मंच उपलब्ध करायेगा.
यह स्मार्ट ग्राम की नवसंरचना की रुपरेखा है और महात्मा गांधीके स्वप्नके भारतके अनुरुप है. इसमें स्ववलंबन भी है और एवं आधुनिक भी है.
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः ग्राम, भौगोलिक विस्तार, स्वावलंबन, नबसंरचना, निर्माण, संविदक, श्रम नियम, आवास, बहुस्तरीय, निर्माण, फलक, पूर्वनिर्मित, इकाईयां, घटक स्तंभ, वज्रचूर्ण, डंड, संकुल, व्यवसाय, सेवा, शासक, कार्यालय, संस्था, गृह उद्योग, कौशल्य, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, शिक्षण, विद्यालय, दुकान, सुरक्षा, अनुरक्षण, अभिज्ञान पत्र, सीसी टीवी केमेरा, संचार प्रौद्योगिका, वेब साईट, सोर उर्जा, सौर सारणी, सोलर पेनल, जल संचय, पुनश्चक्रण, खाद, संयंत्र, आबंटन, भाट, रेन्ट, व्यतिक्रमी, डीफॉल्टर,
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