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There is a difference between alliance against INC and against BJP

एक गठबंधन नहेरुवीयन कोंग्रेसके विरुद्ध  और एक गठबंधन बीजेपीके विरुद्ध -२

जो गठबंधन १९७०में हुआ और उस समय जो सियासती परिस्थितियां थी वह १९७२के बाद बदलने लगी थीं.

भारत पाकिस्तान संबंधः

१९७०में एक ऐसी परिस्थिति बनानेमें इन्दिरा गांधी सफल हुई थी, कि उसने जो भी किया वह देशके हितके लिये किया. उसके पिताजी देशके लिये बहुत कुछ करना चाहते थे लेकिन कोंग्रेसके (वयोवृद्ध नेतागण) उसको करने नहीं देते थे. और अब वह स्वयं, नहेरुका अधूरा काम पूरा करना चाहती है. विद्वानोने, विवेचकोंने, मूर्धन्योंने और बेशक समाचार माध्यमोंने यह बात, जैसे कि उनको आत्मसात्‌ हो गयी हो, ऐसे मान ली थी, और जनताको मनवा ली थी.

पूर्व पाकिस्तानमें बंग्लाभाषी कई सालोंसे आंदोलन कर रहे थे. पश्चिम पाकिस्तानी सेना हिन्दुओं पर और बंग्लाभाषी मुसलमानों पर आतंक फैला रही थी. उसके पहेले हिन्दीभाषीयोंसे बंगलाभाषी जनता नाराज थी. हिन्दीभाषी पूर्वपाकिस्तानवासीयोंकी और हिन्दुओंकी हिजरत लगातार चालु थी. वह संख्या एक करोडके उपर पहूंच चुकी थी. इन लोगोंको वापस भेजनाका वादा इन्दिरा गांधी कर रही थी.

भारतमें भी इन्दिरा गांधी पर सेनाका और खास करके जनताका दबाव बढ रहा था.  पाकिस्तानने सोचा कि यह एक अच्छा मौका है कि भारत पर आक्रमण करें. यह लंबी कहानी है.  १९७१में पाकिस्तानने भारत पर आक्रमण किया. भारतीय सेना तो तैयार ही थी. भारतकी सेनाके पास यह युद्ध जीतनेके सिवा कोई चारा ही नहीं था. और भारतने यह युद्ध प्रशंसनीय तरीकेसे जीत लिया. लेकिन इन्दिरा गांधीने सिमला समज़ौता अंतर्गत पराजयमें परिवर्तित कर दिया. या तो इन्दिरा गांधी बेवकुफ थी या ठग थी.

SIMLA

इस युद्धसे पहेले तो विधानसभाओंके चूनावको विलंबित करनेकी बातें इन्दिरा गांधी कर रही थी. लेकिन इस युद्धकी जीतके बात इन्दिरा गांधीने राज्योंकी विधान सभाओंका चूनाव भी कर डाला.

१९७2में राज्यों के विधान सभाके चूनाव भी इन्दिरा गांधीने जीत लिये. उसकी हिंमत बढ गयी थी. अब तो उसकी आदत बन गयी थी कि वह राज्योंमे अपनी स्वयंकी पसंदका नेता चूनें. इस प्रकार मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात … आदि सब राज्योंमें इन्दिराकी पसंदका नेता चूना गया यानी कि इन्दिराकी पसंदके मूख्य मंत्री बने.

गुजरातमें क्या हुआ?

वैसे तो १९७१ के लोकसभाके चूनावके बाद, देशके अन्य पक्षोंमें खास करके कोंग्रेस (ओ) में अफरातफरी मच गयी थी. बहुतेरे कोंग्रेस(ओ)के कोंग्रेसी चूहोंकी तरह इन्दिरा कोंग्रेसकी तरफ भाग रहे थे. कोंग्र्स(ओ)मेंसे बहुतसारे सभ्य इन्दिरा कोंग्रेसमें भाग गये थे. स्वतंत्र पक्ष तूट गया था.  हितेन्द्र देसाई की सरकार तूट चूकी थी. इन्दिरा गांधीने अपनी पसंदका मुख्य मंत्री घनश्याम भाई ओझा को मुख्य मंत्री बनाया. १९७२में गुजरात विधान सभाका चूनाव हुआ. इस चूनावमें मोरारजी देसाईका गढ तूट गया था. विधान सभामें इन्दिरा कोंग्रेसको विधान सभाकी कुल १६८ सीटोमेंसे १४० सीटें मिलीं.

युद्ध सेना जीतती है, सरकार तो सिर्फ युद्ध करनेका   या तो न करनेका निर्णय करती है. सेनाने युद्ध जीत लिया. इस जीतका लाभ भी इन्दिरा गांधीने १९७२के विधान सभा चूनावमें ले लिया. लेकिन युद्ध जीतना और चूनाव जीतना एक बात है. सरकार चलाना अलग बात है.

इन्दिरा गांधी पक्षमें सर्वोच्च थी क्यों कि उसको जनताका सपोर्ट था. पक्षमें वह मनचाहे निर्णय कर सकती थी. लेकिन सरकार चलाना अलग बात है. सरकार कायदेसे चलती है. सरकार चलानेमें अनेक परिबल होते है. इन परिबलोंको समज़नेमें कुशाग्र बुद्धि चाहिये, पूर्वानुमान करने की क्षमता चाहिये. आर्षदृष्टि चाहिये. विवेकशीलता चाहिये. इन सब क्षमताओंका इन्दिरा गांधीमें अभाव था.

गुजरातमें विधानसभा चूनावके बाद इन्दिराने अपने स्वयंके पसंद व्यक्तिको  (घनश्याम भाई ओझाको) मुख्य मंत्रीपद के लिये स्विकारने का आदेश दिया. गुजरातके चिमनभाई पटेलने इसका विरोध किया. इन्दिराने एक पर्यवेक्षक भेजा जिससे वह घनश्याम भाई ओझाकी स्विकृति करवा सके. लेकिन वह असफल रहा. गुजरातमें इन्दिरा गांधी की मरजी नहीं चली.

१९७३में परिस्थिति बदलने लगी. केन्द्र सरकारके पास बहुमत अवश्य था. लेकिन कार्यकुशता और दक्षता नहीं थी. युवा कोंग्रेसके लोग मनमानी कर रहे थे. देशमें हर जगह अराजकताकी अनुभूति होती थी. विरोध पक्षके कई सक्षम नेता थे लेकिन वे हार गये थे. अराजकता और शासन के अभावोंके परिणाम स्वरुप महंगाई बढने लगी थी. घटीया चीज़े मिलने लगी. वस्तुएं राशनमेंसे अदृष्य होने लगी. सीमेंट, लोहा, तो पहेले भी परमीटसे मिलते था अब तो गुड, लकडीका कोयला, दूध, शक्कर, चावल भी अदृष्य होने लागा.

१६८मेंसे १४० सीट जीतने वाली इन्दिरा कोंग्रेसका हारनेका श्री गणेश १९७२के एक उपचूनावसे ही हो गया. इन्दिरा कोंग्रेस १४० सीटें ले तो गई लेकिन उसमें जनता खुश नहीं थी.  लोकसभाकी सीट जो इन्दुलाल याज्ञिक (अपक्ष= इन्दिरा कोंग्रेस)   की मृत्यु से खाली पडी.

उस सीट पर पुरुषोत्तम गणेश मावलंकर, इन्दिरा कोंग्रेसके प्रत्यासीके उपर २००००+मतके मार्जिनसे जित गये. सभी पक्षोंका उनको समर्थन था.

Mavalankar

पुरुषोत्तम मावलंकर अहमदाबादके अध्यापक, पोलीटीकल विवेचक, बहुश्रुत विद्वान थे. वैसे तो वे भारतकी प्रथम लोकसभाके अध्यक्ष गणेशमावलंकरके पुत्र थे, लेकिन उनका खुदका व्यक्तित्व था.

गुजरातमें नवनिर्माण का आंदोलन

गुजरातमें नवनिर्माण का आंदोलन शुरु हुआ. लोगोंको भी लगा कि उसने गलत पक्षको जिताया है.  लेकिन इसका सामना करने के लिये इन्दिरा कोंग्रेसने जातिवाद को बढाने की कोशिस शुरु की. शहरमें उसका खास प्रभाव न पडा. गांवके प्रभावशील होनेका प्रारंभ हुआ. लेकिन आखिरमें १६८मेंसे १४० सीट लाने वाली इन्दिरा कोंग्रेसकी सरकार गीर गयी. चिमनभाई पटेलको इस्तिफा देना पडा. इन्दिराने फिर भी विधान सभाको विसर्जित नहीं किया. जनताको विसर्जनके सिवा कुछ और नहीं पसंद था. राष्ट्रपति शासन लदा. चूनावके लिये मोरारजी देसाईको आमरणांत उपवास पर बैठना पडा. परिणाम स्वरुप १९७५में चूनाव घोषित करना पडा. इन सभी प्रक्रियामें इन्दिराकी विलंब करने की नीति सामने आती थी.

अब सारे देशके नेताओंको लगा कि इन्दिरा हर बात पर विलंब कर रही है. तो विपक्षको एक होना ही पडेगा.

गुजरातमें विधानसभा चूनावमें  जनता फ्रंटका निर्माण हुआ. इसमें जनसंघ, कोंग्रेस(ओ), संयुक्त समाजवादी पार्टी, अन्य छोटे पक्ष और कुछ अपक्ष थे. चिमनभाई पटेलको इन्दिरा कोंग्रेसने बरखास्त किया था. उन्होंने अपना किमलोप (किसान, मज़दुर, लोक पक्ष) नामका नया पक्ष बनाया था.

चूनावमें १८२ सीटमेंसे

जनता मोरचाको   = ६९

जिनमें

कोंग्रेस (ओ) = ५६

जन संघ = १८

राष्ट्रीय मज़दुर पक्ष = १

भारतीय लोक दल =२

समाजवादी पक्ष = २

किसान मजदुर लोक पक्ष = १२

अपक्ष = १८

और

इन्दिरा कोंग्रेसको = ७५

अपक्षोंके उपर विश्वास नहीं कर सकते थे. इस लिये स्थाई सरकार बनानेके लिये जनता मोरचाने, किसान मजदुर लोक पक्षका सहारा लिया. और बाबुभाई जशभाई पटेल जो एक कदावर नेता थे उनकी सरकार बनी. हितेन्द्र देसाई ने चूनाव लडा नहीं था. और चिमनभाई पटेल चूनाव हार गये थे.

यह चूनाव एक गठबंधनका विजय था.

वैसे तो गुजरातकी तुलना अन्य राज्योंसे नहीं हो सकती, लेकिन जो देशमें होनेवाला है उसका प्रारंभ गुजरातसे होता है.

गुजरातमें इन्दिरा गांधीके कोंग्रेसकी हारके कारण देश भरमें जयप्रकाशनारायण की नेतागीरीमें आंदोलन शुरु हुआ. वैसे भी जब नवनिर्माणका आंदोलन चलता था तो सर्वोदयके कई नेता आते जाते रहेते थे.

सर्व सेवा संघमें अघोषित विभाजन

सर्वोदय मंडल दो भागमें विभक्त हो गया था. एक भाग मानता था कि जयप्रकाश नारायण जो संघर्ष कर रहे है उनको सक्रिय साथ देना चाहिये. दुसरा भाग मानता था कि, इससे सर्वोदय को कोई फायदा नहीं होने वाला है. यदि फायदा होना है तो राजकीय पक्षोंको ही होने वाला है. इसलिये हमें किसी पक्षको फायदा पहोंचे ऐसे संघर्षमें भाग लेना नहीं चाहिये.

लेकिन शांतिसेना तो जयप्रकाश नारायणको ही मानती थी. शांतिसेनाके सदस्योंकी संख्या बहुत बढ गयी थी. और वह सक्रिय भी रही.

कुछ समयके बाद इन्दिराके सामने उसके चूनावको रद करनेका जो केस चल रहा था उसका निर्णय आया. इन्दिरा गांधी को दोषी करार दिया और उसको ६ सालके लिये चूनाव के लिये अयोग्य घोषित किया.

मनका विचार आचरणमें आया

DEMOCRACY WAS ATTACKED

emergency

जो बात नहेरुके मनमें विरोधीयोंको कैसे बेरहेमीसे नीपटना चाहिये, जो गुह्य रुपसे निहित थी लेकिन खुल कर कही जा सकती नहीं थीं. क्यों कि स्वातंत्र्यके अहिंसक संग्राममें नहेरु, पेट भर जनतंत्रकी वकालत कर रहे थे. उनके लिये अब कोयला खाना मुश्किल था.

इन्दिरा गांधी अपने पिताके साथ ही हर हमेश रहेती थी इसलिये उनको तो अपने पिताजीकी ये मानसिकता अवगत ही थी.

वैसे भी नहेरु और गांधीके बीचमें ऐसे कोई एक दुसरेके प्रति मानसिक आदर नहीं था.  यह बात नहेरुने केनेडाके एक राजनयिक (डीप्लोमेट)को, जो बादमें केनेडाके प्रधान मंत्री बने, उनके साथ भारतमें एक मुलाकात में उजागर की थी. नहेरुने गांधीजीको ढोंगी और दंभी और नाटकबाज बताया था. इस बात सुनकर वह राज नयिक चकित और आहत हो गया था. इसके बारेमें इस ब्लोग साईट पर ही विवरण दिया है. गांधीजीने भी नहेरुके बारे में कहा था कि जवाहरको तो मैं समज़ सकता हूँ, लेकिन उनके समाजवादको नहीं समज़ सकता. वे खुदभी समज़ते है मैं मान नहीं सकता.

इन्दिराको सब बातें मालुम थीं.

गांधीजीने यह भी कहा था कि “अब जवाहर मेरा काम करेगा और मेरी भाषा बोलेगा.” इसका अर्थ यही था कि नहेरुको सत्ता प्राप्तिसे विमुख रहेना चाहिये और बिना सत्ता ही जन जागृतिका काम करना चाहिये. गांधीजीने इसलिये कोंग्रेसका विलय करने का भी आदेश दिया था.

यदि जवाहर स्वयं, गांधीजीका काम करते, तो उनको यह बात कहेने कि आवश्यकता न पडती. गांधीजीने कभी विनोबा भावेके बारेमें तो ऐसा नहीं किया कि “अब विनोबा मेरी भाषा बोलेंगे और मेरा काम करेंगे”. क्यों कि ऐसा कहनेकी उनको आवश्यकता ही नहीं थी. विनोबा भावे तो गांधीजीका काम करते ही थे.

यह सब बातोंसे इन्दिरा गांधी अज्ञात तो हो ही नही सकती. इस लिये नहेरुके मनमें जो राक्षस गुस्सेसे उबल रहा था, वह राक्षस इन्दिराके अंदर विरासतमें आया था. चूं कि इन्दिरा गांधीका, स्वातंत्र्य संग्राममें कोई योगदान नहीं था, इस लिये उसको अनियंत्रित सरमुखत्यार बनने की बात त्याज्य नहीं थी. “गुजरातीमें एक मूँहावरा है कि नंगेको नाहना क्या और निचोडना क्या?”

जनतंत्रकी रक्षा

PM rules out pre emergency days

कुछ फर्जी या स्वयं द्वारा प्रमाणित विद्वान लोग बोलते है कि भारतमें जो जनतंत्र है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस के कारण विद्यमान है. वास्तवमें जनतंत्रके अस्तित्व लिये नहेरुवीयन कोंग्रेसको श्रेय देना एक जूठको प्रचारित करना है. नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो जनतंत्रको आहत करने की भरपूर कोशिस की है.

वास्तवमें यदि जनतंत्रको जीवित रखनेका श्रेय किसीको भी जाता है तो भारतकी जनताको ही जाता है. दुसरा श्रेय यदि किसीको जाता है तो गांधीजीके सब अंतेवासी और कोंग्रेस(ओ)के कुछ नेताओंको जाता है और उस समयके कुछ विपक्षीनेताओंको जाता है जो इन्दिरा गांधीके विरोध करनेमें दृढ रहे.

नहेरुवीयन फरजंदकी सरमुखत्यारी और दीशाहीनता

i order poverty to quit india

आपातकालमें क्या हुआ वह सबको ज्ञात है. लाखों लोगोंको बिना कारण बाताये कारावासमें अनिश्चित कालके लिये रखना, समाचार पर अंधकार पट, सरकार द्वारा अफवाहें फैलाना, न्यायालयके निर्णयों पर भी निषेध, भय फैलाना…. अदि जो भी सरकारके मनमें आया वह करना. यह आपात्कालकी परिभाषा थी.

Judiciary afraid

जो भारतके नागरिक विदेशमें थे वे भी विरोध करनेसे डर रहे थे. क्यों कि उनको डर था कि कहीं उनका पासपोर्ट रद न हो जाय. क्यों कि सरकारके कोई भी आचार, सिर्फ मनमानीसे चलता था. इसमें अपना उल्लु सिधा करनेवालोंको भी नकार नहीं सकते.

लेकिन सरकार कैसी भी हो, जब वह अकुशल हो तो वह अपना माना हुए ध्येय क्षमतासे नहीं प्राप्त कर सकती. गुजरातमें “जनता समाचार” और “जनता छापुं” ये दो भूगर्भ पत्रिकाएं चलती थीं. गुजरातमें बाबुभाई पटेलकी सरकार थी तब तक ये दोनों चले. इन्दिरा गांधीने कुछ विधान सभ्योंको भयभित करके पक्षपलटा करवाया और सरकारको गिराया. और ये भूगर्भ पत्रिका वालोंको कारावासमें भेज दिया.

जनता तो डरी हई थी. प्रारंभमें तो कुछ मूर्धन्यों द्वारा आपातकालका अनुमोदन हुआ या तो करवाया. लेकिन बादमें सच सामने आने लगा. आपात्काल, अपने बोज़से ही समास्याएं उलज़ाने की अक्षमताके कारण थकने लगा.

इन्दिरा आपात्काल के समय में डरी हुई रहेती थी. घरमें जरा भी आहटसे वह चौंक जाती थीं ऐसे समाचार भूगर्भ पत्रिकाओंमे आते रहे थे.  इन्दिरा गांधी, वास्तवमें सही विश्वसनीय परिस्थित क्या थी यह जाननेमें वह असमर्थन बनी थी.

साम्यवादी लोग, इस आपात्कालको क्रांतिका एक शस्त्र बनाने के लिये उत्सुक थे. लेकिन क्रांति क्या होती है और साम्यवादीयोंकी सलाह कहां तक माननी चाहिये, उनकी बातों पर इन्दिराको विश्वास नहीं था. उनके कई संपर्क उद्योगपतियोंसे थे. इन्दिरा गांधी स्वयं अपने बेटे संजयसे कार बनवाना चाहती थी. उसके सिद्धांत में कोई मनमेल नहीं था. वह दीशाहीन थी और उसके भक्त भी दीशा हीन थे.

एक और साहस

परिस्थिति हाथसे चली जाय, उसके पहेले वह फिरसे प्रधान मंत्री बनना चाहती थी ताकि वह आरामसे सोच सकें.   ऐसा चूनावी साहस उसने १९७१में लिया था और उसको विजय मिली थी. उसने आपात्काल चालु रखके ही चूनावकी घोषणा की.

कुछ लोग समज़ते है कि, इन्दिरा गांधीने आपात्काल हटा लिया था और फिर चूनाव घोषित किया था. यह बात वास्तवमें जूठ है.

जब वह खूद हार गयी तो उसने सेना प्रमुखको सत्ता हाथमें ले लेनेका प्रस्ताव दिया था. लेकिन सेनाने उसको नकार दिया था. तब इन्दिरा गांधीने आपात्कालको उठा लिया और यह निवेदन दिया कि, मैंने तो जरुरी था इसलिये आपात्काल घोषित किया था. अब यदि आपको लगे कि मैं सत्य बोलती थीं तो आप फिरसे आपात्काल लगा सकते हैं.

वास्तवमें उसको आपात्काल चालु रखके ही सत्ताका हस्तांतरण करना चाहिये था. यदि आने वाली सरकारको आपात्काल आवश्यक न लगे तो वह आपात्कालको उठा सकती थी. यह भी तो एक वैचारिक विकल्प था. लेकिन इन्दिरा गांधी ऐसा साहस लेना चाहती नहीं थीं. क्यों कि उसको डर था कि विपक्ष आपात्कालका आधार लेके उनको ही गिरफ्तार करके कारावास में भेज दें तो?

जो लोग कारावासमें थे वे सब एक हो गये. और इस प्रकार विपक्षका एक संगठन बना.

विपक्षके कोई भी नेताके नाम पर कोई कालीमा नहीं थी. सबके सब सिर्फ जनतंत्र पर विश्वास करने वाले थे. उनकी कार्यरीति (परफोर्मन्स)में कोई कमी नहीं थी. न तो उन्होने पैसे बनाये थे न तो उन्होंने कोई असामाजीक काम किया था, न तो कोई विवाद था उनकी प्रतिष्ठा पर.

मोरारजी देसाई, ज्योर्ज फर्नान्डीस, मधु दन्डवते, पीलु मोदी, मीनु मसाणी, दांडेकर, मधु लिमये,  राजनारायण, बहुगुणा, अजीत सिंह … ये सब इन्दिरा विरोधी थे. जब कोम्युनीस्टोंने देखा कि इन्दिरा कोंग्रेसका सहयोग करनेसे उनको अब कोई लाभ नहीं तो वे भी जनता मोरचाका समर्थन करने लगे.

आपात्कालसे डरी हुई  शिवसेना भी सियासती लाभ लेनेके लिये जनता मोरचाको सहयोग देनेके लिये आगे आयी. आंबेडकरका दलित पक्ष भी जनता मोरचाके समर्थनमें आगे आया. जगजीवन राम भी इन्दिराको छोड कर जनता मोरचामें सामिल हो गये.

हाँ जी. यह संगठनका नाम जनता मोरचा था. उसके सभी प्रत्याषी जनता दलके चूनाव चिन्ह पर चूनाव लडे थे.

जनता फ्रंटको भारी बहुमत मिला.

janata from ministry

प्रधान मंत्री बननेके लिये थोडा विवाद अवश्य हुआ.

जय प्रकाश नारायणकी मध्यस्थतामें सभी निर्णय लिये गये और उनके निर्णयको सभीने मान्य भी रखा. सबसे वरिष्ठ, उज्ज्वल और निडर कार्यरीतिके प्रदर्शन वाले मोरारजी देसाईको प्रधान मंत्री बनाया गया. वह भी सर्वसंमतिसे बनाया गया. जयप्रकाश नारायणने इन सबकी शपथ विधि भी राजघाट संपन्न करवाई.

इस प्रधान मंडलमें कोई कमी नहीं थी. मन भी साफ था ऐसा लगता था.

गठबंधनवाली सभी पार्टीयोंका जनता पार्टीमें विलय हुआ.

जनता पार्टीने क्या किया?

(१) सर्व प्रथम इस गठबंधनवाली सरकारने फिरसे कोई सरमुखत्यारी मानसिकता वाला प्रधान मंत्री आपात्काल देश के उपर लाद न सके उसका प्रावधान किया.

(२) उत्पादनकी इकाईयों उपरके अनिच्छनीय प्रतिबंध रद किया. जिसका परिणाम १९८०से बाद मिला.

(३) नोटबंदी लागु की जिसमें ₹ १००० ₹ ५००० और ₹ १०००० नोंटे रद की गयी.

(४) आपात्कालके समयमें जो अतिरेक हुआ था, उसके उपर जाँच कमीटी बैठायी.

१९७७के चूनाव परिणामके पश्चात यशवंतराव चवाणने इन्दिरा कोंग्रेससे अलग हो कर अपना नया पक्ष एन.सी.पी. बनाया.

जगजीवन राम तो चूनावसे पहेले ही जनता पार्टीमें आ गये थे.

अब गठबंधनका जो एक पार्टीके रुपमें था तो भी उसका क्या हुआ?

चौधरी चरण सिंहमें धैर्यका अभाव था. उनको शिघ्र ही प्रधान मंत्री बनना था.

उनकी व्युह रचना मोरारजी देसाई जान गये, और उन्होंने चौधरीको रुखसद दे दी. उस समय यदि जनसंघके नेता बाजपाई बीचमें न आते तो चरण सिंहके साथ अधिक संख्या बल न होने से उनके साथ २० से २५ ही सदस्य जाते.

मोरारजीने बाजपाई की बात मानली. यह उनकी गलती साबित हुई. क्यों कि चरण सिंह तो सुधरे नहीं थे. और वे कृतघ्न ही बने.

इन्दिराने इसका लाभ लिया. यशवंत राव चवाणने उसका साथ दिया. थोडे समयके अंदर चरण सिंहने अपने होद्देके कारण कुछ ज्यादा संख्या बल बनाया. और तीनोंने मिलकर मोरारजी देसाईकी सरकारको गीरा दी.

मोरारजी देसाईने प्रधान मंत्रीके पदसे त्याग पत्र दे दिया. लेकिन संसदके नेता पदसे त्याग पत्र नहीं दिया. यदि उन्होने त्याग पत्र दिया होता तो शायद सरकार बच जाती. लेकिन जगजीवन राम प्रधान मंत्री बननेको तयार हो गये. चरण सिंह और जगजीवन राममें बनती नहीं थी. इस लिये उन्होने नहेरुने जैसा जीन्ना के बारेमें कहा था उसके समकक्ष बोल दिया कि, मैं उस चमार को तो कभी भी प्रधानमंत्री बनने नहीं दुंगा.

जब ये नेता नहेरुवीयन कोंग्रेसमें थे तो उनके प्रधान मंत्री बननेकी शक्यताओंको नहेरुवीयनोंने निरस्त्र कर दिया था. वे सब इसी कारणसे नहेरुवीयन कोंग्रेससे अलग हुए थे या तो अलग कर दिया था.

उपरोक्त संगठन वरीष्ठ नेताओंका प्रधान मंत्री बननेकी इच्छाका भी एक परिमाण था. प्रधान मंत्री बननेकी इच्छा रखना बुरी बात नहीं. लेकिन अयोग्य तरीकोंसे प्रधान मंत्री बनना ठीक बात नहीं है.

प्रवर्तमान गठबंधनका प्रयास

अभी तक इन सभी नेताओं की संतान नहेरुवीयन कोंग्रेसको शोभायमान कर रही थीं. उनको महेसुस हो गया कि अब प्रधान मंत्री बनने के बजाय यदि प्रधान पद भी मिल जाय तो भी चलेगा.

इसलिये चरण सिंघ, जगजीवन राम, वीपी सींघ, बहुगुणा, गुजराल, एन.टी. रामाराव,  … आदि की संतान नहेरुवीयन कोंग्रेसको सपोर्ट देनेको तत्पर है. लेकिन जब नहेरुवीयन कोंग्रेस भी डूब गयी और उनका संख्या बल कम हो गया तो इनकी संतानोंमें फिरसे उनके अग्रजोंकी तरह वह सुसुप्त इच्छाएं जागृत हुई है.

यदि २०१९में ये सरकार चले भी तो उनका कारण देशको लूटनेमें सहयोग की वजहसे चलेगी. जैसे मनमोहन सिंघकी सरकार १० साल चली थी क्यों कि मनमोहन सिंघने सबको अपने अपने मंत्रालयमें जो चाहे वह करने की छूट दे रक्खी थी. शीला दिक्षित, ए. राजा, चिदंबरम आदि अनेक के कारनामे इसकी मिसाल है. इन लोगोंको यथेच्छ मनमानी करने की छूट दे दी थी. जब न्यायालय स्वयं विवादसे परे न हो तो इन लोगोंको कौन सज़ा दे सकता है?

आप देख लो सोनिया, माया, मुल्लायम, लालु, शरद पवार, जया, शशिकला, फारुख, ममता आदि सभी नेता पर एक या दुसरे कौभान्ड के आरोप है. कुछ लोग तो सजा काट रहे है, कुछ लोग बेल पर है और बाकी नेता न्यायालयमें सुनवाई पर है.

किसी भी मुंबई वालेको पूछोगे तो वह शिवसेना को नीतिमत्ताका प्रमाण पत्र देगा नहीं. महाराष्ट्रके मुख्यमंत्रीने उनके पर काट लिया है इस लिये वह भी अब ये नया गठबंधनमें सामिल होने जा रहा है.

गठ बंधनका  कोई भी नेता, नरेन्द्र मोदी के पैंगडेमें पैर रखनेके काबिल नहीं है.

अब जो विद्वान और मोदी-फोबियासे पीडित है वे और सर्वोदय वादी या गांधीवादी बचे है वे न तो गांधीवादी है न तो सर्वोदयवादी है. वे सब खत-पतवार (वीड) है. वे लोग सिर्फ अपने नामकी ख्याति के लिये मिथ्या आलाप कर रहे हैं.  

२०१९का चूनाव, भारतमें विवेचकोंकी, विद्वानोंकी और  मूर्धन्योंकी विवेक शक्तिकी एक परीक्षा स्वरुप है. १९७७में तो जयप्रकाश और मोरारजी देसाई जैसे गांधी वादी विद्यमान थे. इससे शर्मके मारे ये लोग जनतंत्रकी रक्षाके लिये बाहर आये. किन्तु अब ये लोग अपना कौनसा फरेबी रोल अदा करते हैं वह इतिहास देखेगा.

शिरीष मोहनलाल दवे

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एक गठबंधन नहेरुवीयन कोंग्रेसके विरुद्ध  और एक गठबंधन बीजेपीके विरुद्ध

केन्द्रीय स्तर पर गठ बंधन सर्व प्रथम १९७१में हुआ.

१९६७के  पहेले मोरारजी देसाई के पास कोई पद नहीं था. लाल बहादुर शास्त्रीके अवसानके बाद लोकसभाके नेताका चूनाव हूआ. मोरारजी देसाईकेे पास  कोई मंत्रालय नहीं था.  उन्होने प्रधानमंत्रीके प्रत्याषी के लिये आवेदन दिया और वे १६९ मत ले आये. इससे केन्द्रीय कारोबारी चकित हो गयी. केन्द्रीय कारोबारी तो उनको अधिकसे अधिक ६९ मत मिलेंगे ऐसा मानती थी. उस समय कोंग्रेस संसदमें एक विराट पक्ष था. १९६७के चूनावमें कोंग्रेस संसदमें काफि कमजोर हो गई थी. मोरारजी देसाई एक सशक्त नेता थे. तो उनको मंत्री बनाना जरुरी था.

१९६७ के चूनावके बाद  विपक्ष का गठबंधनका विचार सर्व प्रथम डॉ. राममनोहर लोहियाको आया था. उन्होनें कहा कि (नहेरुवीयन) कोंग्रेस तब तक राज करकर सकती है जब तक विपक्ष चाहे. इसका अर्थ यह था कि विपक्ष यदि चाहे तो एक जूट होकर कोंग्रेसको हरा सकता है. क्यों कि, कोंग्रेसको ४२% के अंदर मत मिले थे. और जो गठबंधन कर सके ऐसे पक्ष और वैसे ही कुछ अपक्ष मिल जाय तो (साम्यवादी पक्षोंको छोड कर भी) विपक्षको ४२% से अधिक मत मिल सकते है. विपक्ष एकजूट न होनेके कारण कोंग्रेसको बहुमत मिलता है. १९६७के चूनावमें विरोध पक्ष विभक्त होने के कारण और ४२%से कम प्रतिशत मत मिलने पर भी  कोंग्रेस बहुमत सीटें २८३   प्राप्त कर ली थी. वैसे ये संख्या  बहुमतसे थोडी ही अधिक थी. विपक्षको २३७ सीटें मिली थी जिसमें जिसमेंसे साम्यवादीयोंकी ४२ सीटें को यदि छोड दें तो १९५ सीटें बनती थी.

जब १९६९में नहेरुवीयन कोंग्रेसका विभाजन हुआ तो कोंग्रेस (ओ) की ६५ सीटें विपक्षमें आ गई. और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सीटें २८३-६५=२१८ हो गई.  लेकिन इन्दिरा गांधीने साम्यवादी पक्षोंका, कुछ पीएसपी के संसद सदस्योंका, अकालीदल, डीएमके, रिपब्लीकन, अपक्ष आदि पक्काषोंके सदस्योंका सहारा लेके बहुमत जारी रक्खा. लेकिन यह गठबंधन अधिक चलनेवाला नहीं था. इसलिये १९७१में चूनाव घोषित किया. लेकिन ये दो वर्षके अंतरर्गत कोंग्रेस(ओ)मेंसे आधे लोग इन्दिराके गुटमें आगये थे.

ग्रान्ड एलायन्स

१९७१के चूनावमें विपक्षका गठबंधन हुआ, जिसको अखबार वालोंने ग्रान्ड एलायन्स नाम दिया. इसमें कोंग्रेस (ओ), जनसंघ, स्वतंत्र पक्ष, पीएसपी, संयुक्त समाजवादी पक्ष समाविष्ट थे. ये लोग छोटे छोटे कई पक्षोंको गठबंधनमें सामील होनेको मना नहीं सकें.

इस चूनावमें सबसे महत्त्वकी भूमिका अखबारवालोंने निभायी. जो लगातार बेंकोका राष्ट्रीय करण, महाराजाओंके प्रीवीपर्सकी नाबुदीको और पक्षमें सीन्डीकेटके वर्चस्वको इन्दिरा गांधीने कैसे नष्ट किया और अपने प्रत्याषीको राष्ट्रप्रमुखके चूनावमें कैसे सिफत पूर्वक हराया  … इन सब बातोंकोआवश्यकतासे कहीं अधिक ही प्रसिद्धि दे रहे थे. वैसे तो कोंग्रेसके प्रत्याषीके विरुद्ध प्रचार करनेमें इन्दिराके ईशारे पर कई सारी बिभत्स बातों वाले पेम्फ्लेट बांटे गये थे, उसका विवरण हम अभी नहीं करेंगे.  थोडा जातिवाद भी था. 

इनबातोंको छोड देवें और १९७१के गठबंधन की बात करें तो मीडीया प्रचारके कारण इन्दिरा कोंग्रेसकी जीत हुई.

इन सबको मिलाके इन्दिरा गांधीकी कोंग्रेसको ४४ % मत मिले.

गठबंधनको २४% मत मिले.  और गठबंधनके सभी पक्षोंकी सीटें कम हो गई. बडा लाभ इन्दिरा कोंग्रेसको हुआ और कुछ फायदा छोटे छोटे पक्षोंको हुआ.

इन्दिरा कोंग्रेसको  ३५२ सीटें मिलीं

गठबंधनको ५१ सीटें मिलीं

साम्यवादीयोंको ४८   सीटें मिलीं

(साम्यवादीयोंने जहां पर खुदका प्रत्याशी नहीं था वहा पर इन्दिरा कोंग्रेसका समर्थन किया था)

छोटे छोटे प्रादेशिक पक्ष और अपक्षोंको ६७  सीटें मिलीं.

विपक्षकी हारका कारण क्या था?

(१) क्या विपक्ष लोकप्रिय नहीं था?

विपक्ष अतिलोकप्रिय था. उनके प्रवचनको लोग आदर पूर्वक सूनते थे.

(२) क्या विपक्षमें उच्च कोटीके नेता नहीं थे?

विपक्षके नेता अत्यंत उच्च कोटीके थे. स्वातंत्र्य संग्राम में उनका बडा योगदान रहा था. उनकी अपेक्षामें इन्दिरा गांधीका योगदान, न के बराबर था. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, कामराज, कमलापती त्रीपाठी, मोरारजी देसाई, मनुभाई शाह, अतुल्य घोष, पटनायक, एच.एम.पटेल, सादोबा पाटिल, मधु दन्डवते, जोर्ज फर्नन्डीस, मधु लिमये, दांडॅकर आदि कई बडे नाम वाले विपक्षी नेता थे.

(३) क्या विपक्ष स्वकेद्री था?

कोई भी विपक्षी नेता किसी भी प्रकारसे स्वकेन्द्री नहीं थे.

(४) क्या विपक्ष सत्ताका लालची था?

मोरारजी देसाईको और सीन्डीकेटके नेताओं पर इन्दिरा कोंग्रेसवाले ऐसा आरोप लगाते थे. लेकिन उन्होंने कभी गैरकानूनी तरीके अपनाये नहीं थे. संयुक्त कोंग्रेसके समयमें केन्द्रस्थ कारोबारी बहुमतसे निर्णय लेती थीं. यह प्रणाली कोंग्रेसके संविधान और जनतंत्रके अनुरुप थी.

अन्य नेताओंके बारेमें यदि कुछ कहें तो सत्ता तो उनको  कभी मिली ही नहीं थी. और उनका ऐसा कोई व्यवहार नहीं था कि उनके उपर ऐसा अरोप लग सके.

(५) क्या विपक्ष वंशवादी था?

स्वातंत्र्य संग्रामके नेतागण इस समय विद्यमान थे. इसलिये ऐसा कोई प्रश्न ही नहीं उठता था.

(६) क्या विपक्षने गैर कानूनी तरीके अपनाये थे?

विपक्ष संपूर्ण रीतसे कानूनका आदर करता था. वास्तवमें ऐसे आरोप तो इन्दिराके उपर और उसकी कोंग्रेसके नेता पर लग रहे थे.

(७) क्या विपक्षके नेताओंकी भूतकालकी कार्यवाही कलंकित थी?

विपक्षके नेताओंका भूतकाल उज्वल था. और सब लोगोंने एक या दुसरे समयमें गांधीजीके साथ काम किया था और अन्य विपक्षी नेता आई.सी.एस. अफसर रह चूके थे.

(८) क्या विपक्षके नेताओंका समाजके प्रति कोई योगदान नहीं था?

आम जनताके हितमें और देशके हितमें वे सब संसदमें सक्रीय रहेते थे. जो लोग अविभक्त कोंग्रेसमें थे उनका अपने विभागके प्रति अच्छा योगदान रहा था. यदि खराब और विवादास्पद रहा हो तो वह नहेरुका खुदके मंत्रालयका कार्य और उनके मित्र वी.के. मेननके संरक्षण मंत्रालयका काम कमजोर रहा था जिनकी विदेश नीति और संरक्षण नीतिके कारण  आज भी भारतको भूगतना पड रहा है.

तो फिर इन्दिरा गांधी जीती कैसे?

(१) जब अविभक्त कोंग्रेसका विभाजन हुआ तो जो कोंग्रेसके जो संगठन कार्यालय थे उनके अधिकतर कर्मचारी और अन्य नेता इन्दिरा गांधीके समर्थनमें रहे.

इसमें अपवाद था   गुजरात. क्यों कि गुजरातमें मोरारजी देसाई का संगठन सक्षम रहा था. अन्य सब जगह जो क्षेत्रीय नेतागण थे वे कोंग्रेसके नामपर ही चूनाव जीतते थे.

(२) देशके युवा वर्गने  कभी ऐसा उच्चस्तरीय सियासती विखवाद देखा ही नहीं था.

(३) इन्दिरा गांधीका कहेना था कि मेरे पिता तो देशके लिये बहूत कुछ करना चाहते थे लेकिन ये बुढे लोग उनको करने नहीं देते थे. वैसे तो किसी समाचार माध्यमने या तो विवेचकोंने इसका विवरण इन्दिरा गांधीसे पूछने योग्य समज़ा नहीं. और समाचार माध्यम भी संरक्षणकी क्षतियोंको भी कोंग्रेस(ओ)की क्षति मानता था और मनवाता था क्यों कि केन्द्रीय  मंत्रीमंडलका निर्णय सामुहिक होता है.

(४) अविभक्त कोंग्रेसको जो आर्थिक दान मिलता था वह प्रान्तीय (राज्यका) सर्वोच्च नेता द्वारा संचित होता था और उसका वहीवट भी प्रान्तका सर्वोच्च नेता ही करता था. लेकिन इन्दिरा गांधीने उस दान और वहीवटको अपने हाथमें ले लिया.

(५) बेंकोंका जो राष्ट्रीयकरण हुआ तो इससे इन्दिरा कोंग्रेसके स्थानिक और कनिष्ठ नेताओंकी सिफारिस पर निम्नस्तरके लोगोंको ऋण मिलना चालु हो गया, और उसमें भी स्थानिक कनिष्ठ नेता अपना कमीशन रखके करजदारको कहेता था कि यह कर्ज परत करना आवश्यक नहीं है. और इस प्रकार शासक पक्षका बेंकोंके वहीवटमें हस्तक्षेप बढ गया और बढता ही गया. और यह बात एक प्रणाली बन गया. जो अभी अभी जनता बेंकोके  एन.पी.ए.के विषयमें जो कौभाण्ड के किस्से से अवगत हो रही है, उनके बीज और उनकी जडें १९६८में शुरु होई. फर्जी नामवाला सीलसीला भी चालु हो गया था.

(६) नहेरुने आम जनताको शिक्षित बनानेमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली थी. इसलिये आम जनता, ईन्दिरा-प्रवाहमें आ जाती थी.  

(७) इन्दिरा गांधी सत्ता पर थी और उस समय सरकारी अफसर गवर्नमेंटको कमीटेड रहेते थे क्यों कि नेताओमें और खास करके उच्च स्तरके नेताओमें भ्रष्टाचार व्यापक रुपसे नहीं था.   

(८) इस इन्दिरा-प्रवाहको  प्रवाह किसने बनाया?  राष्ट्रप्रमुखके चूनावमें अविभक्त कोंग्रेसके सूचित प्रत्याषी संजीव रेड्डीके विरुद्ध इन्दिराके सूचित प्रत्याषी वीवी गिरीके विजयकी भारतके विद्वानोंने और विवेचकोंने, प्रशंसा की थी इस कारणसे जनताको इन्दिरा गांधी सही लगी. कुछ लोग अन्यमनस्क भी हो गये.

परिणाम स्वरुप क्या हुआ? विधिकी वक्रता

सबकुछ मिलाके इन्दिरा गांधीके पक्षकी विजय हुई.

सीन्डीकेटकी हार हुई. कोंग्रेस (ओ) की सिर्फ मोरारजी देसाईके गुजरातमें जित हुई वह भी सीमित जीत हुई. अन्य पक्ष भी सिकुडकर रह गये.

अपने पक्षके प्रत्याषीको मत न दे के, अन्य पक्षके प्रत्याषीको मत देना दिलवाना, अपने स्वार्थको ही देखना, पक्षांतर करना “आया राम गया राम”, पैसोंकी हेराफेरी करना, हवामें बात करना, जूठे आरोप लगाना, अफवाहें फैलाना, कुछ भी बोल देना और अंतमें “जो जीता वह सिकंदर” … ऐसी अनीतियोंको  विद्वानोंने और विवेचकोंने स्विकृति दी और प्रमाणित भी कर दी. यह एक विधिकी वक्रता थी.

बीना कोई सबूत अपने पिताके सहयोगीयों पर बे बुनियाद आरोप लगाना, पूर्व पाकिस्तानसे आये हिन्दीभाषी मुस्लिमोंको वापस भेजनेकी समस्याको निलंबित करना, राजकीय मूल्योंकी अवमानना करना, भ्रष्टाचारको निम्नस्तरके लोगों तक प्रसारित करना, व्हाईट कोलर मज़दुर संगठनोंको सीमासे बाहर का महत्व देना, कर्मचारीयोंमे अनुशासन को खत्म करना … यह सब परिबळोंका विकास होना शुरु हो गया था. इन्दिराको, नहेरुके साथ रहेनेसे एक  कोट भेंट मिला था. उस मींक कॉटको सरकारमें जमा करवाने के बदले इन्दिरा गांधीने अपने कब्जेमें रख लिया था, यह बात आचार संहिताके विरुद्ध थी,  लेकिन ये सब इन्दिरा गांधीके ऋणात्म कार्यों को (अल्पदृष्टा) विद्वानोंने और समाचार माध्यमोंने अनदेखा किया.

इन्दिरा गांधीका एक ही सूत्र था कि गरीबी हटाओ.

क्रमशः

शिरीष मोहनलाल दवे

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

जाति आधारित राज्य रचनाकैसे की जा सकती है? उसकी प्रक्रिया कैसी होनी चाहिये?

हमने जब देशकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये देशका विभाजन किया तब हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने कुछ गलतीयां की थी. वे गलतीयां हमे जातिआधारित और धर्म आधारित राज्य रचना करनेमें दोहरानी नहीं चाहिये)

तो चलो हम आगे बढें

नहेरुवीयन तुम आगे बढो

एक बात सबको समज़नी है कि हमारी मीडीयाके अधिकतर संचालकगण और नहेरुवीयन कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेससे मतलब है नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, उसके विद्वान लेखकगण और उसके समर्थक मतदाता गण)  “जैसे थे वादीहै. और यह तथ्य सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है. यदि बीजेपी का कोई भी नेता या बीजेपीके समर्थक गुटका कोई भी नेता सिर्फ एक निवेदन कर दें किआरक्षणके प्रावधान पर पुनर्विचारणा आवश्यक है, और इसके उपर बीजेपीके नेतागण मौन रहे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसका चूनाव जीतनेका काम हो ही गया. लेकिन हम जानते है कि बीजेपीको भी चूनाव जीतना है, लिये वह आरक्षण के विरुद्ध नहीं बोलेगी.

तो अब कया किया जाय?

() नहेरुवीयन कोंग्रेसमें वैसे तो हर जातिके लोग है. उनसे उन जातिके नेताओंका पता लगाओ. उनको कैसे अपने पक्षमें लेना इस बातमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेस अनुभवी है. उनसे अपनी जातिके लिये आरक्षणका आंदोलन करवाओ. उस नेताको बोलो कि आंदोलनमें कमसे कम ५०००० से १००००० की संख्या तो होने ही चाहिये. जो जितनी जनसंख्या आंदोलनमें लायेगा उसको प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाबसे ५०० रुपये मिलेगा. मान लो कि एक लाख जनसंख्या हुई तो पांच करोड रुपये खर्च हुए.

(.) युपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्र, कर्नाटक, ओरीस्सा, तामिलनाडु, केराला, महाराष्ट्र, इन राज्योंमें ही आंदोलन करनेका है. हरेक के दो, तीन बडे नगरोंमें ही करनेका. एक समयके आंदोलनका पचास करोड रुपये हुए. दस बार आंदोलन करवाया तो पांच हजार करोड रुपये हुए. यह कोई ज्यादा पैसा नहीं हुआ. इससे दो गुना तो माल्याने बेंकका लोन लिया था जो आज तक भरा नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये तो यह बडी बात है ही नहीं.

() मीडीया वाले, नहेरुवीयन कोंग्रेसको खुश होकर सहयोग करेंगे क्यों कि, इसमें उनको भी तो लाभ है. भूतकालमें भी मीडीयाकर्मीयोंने खूब लाभ करवाया है. जातिवादसे भारतको कैसे कैसे लाभ किया उस पर आप चेनलोंमें चर्चा चालु करें. यदि कहीं भी मौत होती है या अत्याचार होता है तो वह व्यक्ति कौनसी जातिका है उसके उपर चर्चा करें. आपके पास तो असामाजिक तत्त्वोंकी कमी तो है ही नहीं. तत्वोंको बीजेपीमें, बजरंग दलमें, विश्वहिन्दु परिषदमें भर्ती कराओ. फिर उनको बोलो कि वे उन जातिके व्यक्तिओंको चूने जो आपके द्वारा बनाई हूई सूचीमें आरक्षणके लिये समाविष्ठ है और गरीब भी है. एक सप्ताहमें सात जिलेमें हररोज एक अत्याचार करवाओ. और हररोज चेनलमें इस अत्याचारके विरुद्ध चर्चा चलाओ. मीडीयावाले भी खुश रहेंगे क्यों कि उनको घर बैठे मसाला मिल जायेगा और चर्चा का मौका भी मिल जायेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण बीजेपीके शासनकी भर्त्सना करते रहेंगे. ये लोग दलित जातियोंके प्रति ही नहीं किन्तु हर गरीब जनताके प्रति बीजेपी कितनी संवेदन हीन है और नहेरुवीयन कोंग्रेस कितनी प्रतिबद्ध है यह बात लगातार बोलते रहेंगे. साथ साथ गरीबोंके हितके लिये राज्योंकी पूनर्र्चनाकी बात भी चलती रहेगी. नहेरुवीयन कोंग्रेस पैसे खर्च करनेमें सक्षम है, गुजरातके ४४ एमएलए को हवाई जहाजमें बैठाके हजार मील दूर रीसोर्टमें कैसा मजा करवाया यह बात तो हम जानते ही है.

() नहेरुवीयन कोंग्रेसको जनताको भरोसा दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चना में उनकी जातिका पूरा ध्यान रखा जायेगा. मुस्लिम जनताको और ख्रिस्ती जनताको भी अहेसास दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चनामें उनको लाभ ही लाभ होगा.

() नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रचार करेगी कि जाति आधारित राज्य रचनासे हरेक जातिका संस्कार, संस्कृति और विकासके द्वार खूल जायेंगे. इस काम के लिये नहेरुवीयन कोंग्रेस जनगणना करवायेगी ताकि हरेक जातिको और धर्मको विकसित होनेका अवसर मिले.

() जनगणना कैसे होगी?

(.) आपके लिये सर्व प्रथम क्या है. धर्म, जाति, भाषा या देश?

(.) जो लोग देश लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग धर्म लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग जाति लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) जो लोग भाषा लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) भाषामें तीन प्राथमिकता रहेगी. मातृभाषा, हिन्दी या तमील, अंग्रेजी.

(.) हर हिन्दु व्यक्ति अपना धर्म, जाति, उपजाति, उपउप जाति, उपउपउपजाति, गोत्र, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गुरु आदि के बारेमें सरकारको माहिति देगा.

(.) हर मुस्लिम व्यक्तिको लिखवाना पडेगा कि वह सिया, सुन्नी, अहेमदीया, सुफी, दिने इलाही, वहाबी, शरियती, या जो भी कुछ भी हो वह है.

(.) हर ख्रिस्ती व्यक्तिको मुस्लिमोंकी तरह अपनी माहिति देगा.

(.४९ अन्य धर्मवाले भी ऐसा ही करेंगे.

ये सब माहिति गुप्त रखी जायेगी.

()  इस प्रकारकी जनगणनाके बाद उनका वर्गीकरण किया जायेगा, हरेक वर्गका उपवर्गीकरण, उपवर्गका उपउपवर्गीकरण, उपउपवर्गीकरणका उपउपउप वर्गीकरण किया जायेगा.

() हर प्रकारके वर्गीकरणकी जनसंख्या निकाली जायेगी.

() मुख्य वर्गधर्मरहेगा. धर्मके आधार पर राज्य बनाया जायेगा.

() धर्मका एक दुसरेके साथ प्रमाणका कलन किया जायेगा. भारतकी कुलभूमिमें हर धर्मके हिस्सेमें कितनी भूमि आयेगी उसका कलन किया जायेगा.

यक्ष राज्य

(१०) जिन्होनेंसर्व प्रथम देशलिखा है उनके लिये सीमा वर्ती विस्तार रहेगा. इस प्रकार, राजस्थान, गुजरात, कोंकण, कर्नाटककेराला, तमीलनाडु, ओरीस्सा, पश्चिम बंगाल, पूरा उत्तरपूर्व, हिमालयसे संलग्न विस्तार, पूरा जम्मु और काश्मिर राज्य इन सब राज्योंको मिलाके सीमा रेखासे २५० किलोमीटर अंदर तक के विस्तारवाला यक्षराज्य बनेगा. यक्षराज्यसे मतलब है सीमाका राज्य.

(११) यक्षराज्यकी सुरक्षा रेखा पर सुरक्षा सेना के निवृत्त कर्मचारीयोंको बसाया जायेगा.

(१२) यक्ष राज्य पूरा केन्द्र शासित राज्य रहेगा.

हिन्दु राज्य

(१३) यक्ष राज्यके पीछेहिन्दु राज्य आयेगा. हिन्दु राज्यमें जातिके आधारपर जिल्ले बनेंगे. हर जिल्लेमें जातिके उपजाति के आधार पर तहेसील बनेंगे. हर तेहसीलमें गोत्रके आधार पर नगर और ग्राम बनेंगे. एक नगरमें या ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेंगे. एक गोत्र इसलिये कि, समान  गोत्रमें शादी नहीं हो सकता. एक गोत्रकी कन्या और वही गोत्रका दुल्हा एक दूसरेके बहेन और भाई बनते है. इस प्रकार कन्याओंको सुरक्षा प्रदान होगी. क्यों कि कोई अपनी बहेनको छेडता नहीं.

प्रकीर्ण धर्म राज्य

(१४) हिन्दु राज्यके पीछे जिन्होनेंप्रकिर्ण धर्म वाले मतलब कि यहुदी, अन्य बिनख्रिस्ती, बिनमुस्लिम धर्म वाले आयेंगे. जिनके धर्मके आधार पर जिल्ला और या तहेसील और या नगर/ग्राम बनेंगे.

ख्रिस्ती राज्य

(१५) प्रकीर्ण धर्म राज्यके पीछे ख्रिस्ती राज्य आयेगा. ख्रिस्ती धर्मके वर्गीकरणके हिसाबसे उनके जिल्ला, तेहसील और नगर/ग्राम रहेंगे.

मुस्लिम राज्य

(१५) ख्रिस्ती राज्यके पीछे मुस्लिम राज्य आयेगा. मुस्लिम धर्मके आंतरिक वर्गीकरण के हिसाब से उसके राज्यमें जिल्ला, तहेसील, नगर/ग्राम आदि बनेंगे.

भाषा प्रथमका क्या?

(१६) जिन्होनेभाषा प्रथमलिखाया है उनको केन्द्रसे यक्षराज्य और हिन्दु राज्यकी सीमासे लेकर भौगोलिक केन्द्र तक एक यथा योग्य चौडाईवाला विस्तार अंकित किया जायेगा उसमें भीन्न भीन्न भाषा प्राधान्यवाले का विस्तार आयेगा.

(१७) हरेक धर्मराज्यको आर्टीकल ३७०की सुविधा मिलेगी.

देशका धर्मजाति आधारित पूनर्र्चनाका सैधांतिक चित्र देखो. और भारतका प्रास्तावित चित्र भी देखो.

india राज्य

india

ध्रर्मजाति आधारित राज्यके लाभ

() धर्म, जाति और भाषाको लेकर आंतरिक युद्धकी शक्यताका निर्मूलन

() जाति आधारित आरक्षणकी समस्याका निर्मूलन

() आतंकवादका निर्मूलन आसान

() काश्मिरकी आतंरिक समस्याका निर्मूलन

() नये राज्योंकी मांग अशक्य

() मतबेंककी सियासत नष्ट,

धर्म और जाति आधारित राज्यों की समस्याएं क्या हो सकती है? और उनको कैसे हल किया जाय?

() जनताका स्थानांतरणः कोम्प्युटरकी मददसे प्रवर्तमान नगर और ग्राममें मकानका विस्तार और संख्यामें उपलब्धता और धर्मके आधार पर वर्गीकृत व्यक्तिओंकी उचितताके आधार पर आबंटन.  और उस आधारपर सरकार द्वारा आयोजन करके स्थानांतरण.

() एक नगर/ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेते है तो शादीकी समस्या कैसे हल की जाय? शादीईच्छुक लोगोंकी और वाग्दत्त/वाग्दत्ताओंकी आवन जावन बढेगी तो सरकारका टेक्ष टीकीटों द्वारा राजस्व बढेगा.

() एक धर्मके लोगोंका अन्य राज्यमें धार्मिक स्थल है. इससे राज्यका पर्यटन व्यवसाय बढेगा.

() सभी राज्य क्लोझ्ड सरकीटमें है, इसलिये क्लोझ्ड सरकीट मार्गव्यवहार बढेगा और देशकी तरक्की होगी. व्यवसायमें वृद्धि होगी

() एक ही जातिके लोग परस्पर झगडेंगे इस कारण जनताका एक ही उपउपउप ज्ञातिमें और विभाजन होगा, तो इससे नये नगर बनेंगे और विकास होगा. नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसे विभाजनोंका लाभ ले सकती है. इस लिये नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारको क्षति नहीं आयेगी.

() जिस व्यक्तिका राज्य पूनर्रचनाके बाद जन्म हुआ वह जब वयस्क हुआ तो वह अपनी पसंदका राज्य कर सकता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः नहेरुवीयन कोंग्रेस, मीडीयाकर्मी, लेखक, विद्वान, सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, धर्म, जाति, भाषा, उप, उप-उप, उप-उप-उप, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गोत्र, यक्ष, हिन्दु, राज्य, प्रकिर्ण, ख्रिस्ती, मुस्लिम, यहुदी

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