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Posts Tagged ‘विधेयक’

अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर

जब टीम अन्नाने केन्द्रीय मंत्री के समक्ष “जन लोकायुक्त” के विधेयकका प्रारुप (ड्राफ्ट) बनाके प्रस्तूत किया तो मंत्रीने कहा कि आप कौन है हमे यह कहेने वाले कि आप जनताका प्रतिनिधित्व करते है? हमारा उत्तरदायित्व आपसे नहीं है. जनताके वास्तविक प्रतिनिधि तो हम है. इसलिये हम ही लोकायुक्तका विधेयक बनायेंगे. जनताने हमे चूना है. जनताने आपको चूना नहीं है.

अनाधिकार चेष्टाः

प्रसार माध्यमोंकी परोक्ष धारणा और संदेश या प्रयास और नहेरुवीयन कोंग्रेसके आचारणसे  मानो कि, ऐसा ही लगता है यह कोंग्रेस चूनाव जितती ही आयी है इसलिये वह जनप्रतिनिधित्व करती है.

एक बात सही है कि टीम अन्ना संविधानके अंतर्गत चूना हुआ प्रतिनिधित्व नहीं रखती. लेकिन शासक के पास ऐसा मनमानी करनेका अधिकार नहीं है. खासकरके लोकायुक्त के प्रारुपसे संबंध है, टीम अन्ना और शासक (नहेरुवीयन कोंग्रेस) एक समान या तो एक कक्षा पर है या तो टीम अन्ना शासकसे उच्च स्तर पर है. क्युं कि, टीम अन्नाने तो अपना लोकायुक्त-विधेयकका प्रारुप जनताके समक्ष रख दिया था. नहेरुवीयन कोंग्रेसने चूनावके प्रचार के समय अपने विधेयकका प्रारुप कभी भी जनताके सामने रक्खा नहीं था. इसीलिये नहेरुवीयन कोंग्रेसके पास ऐसा कोई अधिकार बनता नहीं है कि वह लोकायुक्त या कोई भी विधेयकके प्रारुपके बारेमें यह सिद्ध कर सके कि उसके पास इस बात पर जनप्रतिनिधित्व है.

दूसरी बात यह है, कि नहेरुवीयन कोंग्रेस वैसे भी पूर्ण बहुमतमें नहीं है. और साथी पक्षोंके साथ मिल कर उसने चूनावके पूर्व ऐसा कोई विधेयकका प्रारुप बनाया नहीं था, न तो किसीने उसको जनतासे उसीके आधार पर मत मांगे थे. इसलिये नहेरुवीयन कोंग्रेस जो बहुमतकी बात करती है वह एक भ्रामक तर्क है. जब जनताके साथ विधेयकके बारेमें पारदर्शिता  ही नहीं है तो काहेका प्रतिनिधित्व हो सकता है?

भ्रष्ट प्रतिनिधित्वः

चूनावमें जो अभ्यर्थी (केन्डीडॅट) है उसके प्रचार के खर्चकी एक सीमा है. यह  सीमा बीसलाख रुपये है.

२० लाख रुपये, एक अत्यधिक रकम है. तो भी जो लोग जानते है वे कहते है कि इससे ज्यादा ही खर्च किया जाता है. अगर देशमें ६६ प्रतिशत लोग गरीबीकी रेखामें आते है तो चूनावमें २०लाख रुपयेका खर्च करने वाला व्यक्ति, जनप्रतिनिधि कैसे हो सकता है? अगर चूनावमें प्रचारके लिये २० लाख रुपयेकी जरुरत पडती है तो २० लाख रुपयेका खर्च करनेवाला अभ्यर्थी जनताके अभिप्रायको कैसे प्रतिबिंबित कर सकता है? इतना ही नहीं इस अभ्यर्थीके पास न तो कोई प्रक्रिया है न तो उसने कभी ऐसी प्रक्रिया स्थापित की होती है कि वह जन अभिप्रायको परिमाणित (क्वान्टीफाय) कर सके और अपना प्रतिनिधित्व सिद्ध कर सके.

इन सब भ्रष्ट प्रावधानोंके बावजुद, नहेरुवीयन कोंग्रेसने कभी लिखित चूनाव प्रावधानोंके अनुसार सुघडतासे  चूनाव जिता नहीं है.

१९५२ का चूनावः

उस समय प्रमुख राजकीय पक्ष जनसंघ, समाजवादी, किसान, रामराज्य, हिन्दुमहासभा और कोंग्रेस (जो उस समय नहेरुवीयन कोंग्रेस बन चुकी थी.) थे.

हर पक्षके लिये अलग अलग मतपेटी रखी जाती थी. बुथ अधिकारीसे एक मत पत्रक ले के बुथके कमरेमें जाके अपना मतपत्र अपने मान्य अभ्यर्थीकी (केन्डीडेटकी) मतपेटीमें डालनेका होता था.

यह एक अत्यंत क्षति युक्त प्रक्रिया थी.

१.      मतदारने अपना मतपत्रक मतकक्षमें रक्खी मतपेटीमें डाला या नहीं वह जाना नहीं जा सकता था. ग्राम्य विस्तारमें और गरीब विस्तारमें कोंग्रेसी लोग मतदारको समझा देते थे कि तुम बिना मतपत्र डाले ही मतकक्षसे बाहर आ जाओ. और हमे वह मतपत्र देदो. हम तुम्हें कुछ दे देंगे. इस प्रकार कोंग्रेसी लोग ऐसे मतपत्रक अपने विश्वासु मतदाताके द्वारा अपनी मत पेटीमें डलवा देते थे.

२.      कस्बे और शहेरी विस्तार जहां लोग कुछ समझदार थे वहां पर वह दुसरे पक्षके अभ्यर्थीकी मतपेटी गूम कर देते थे. मत पेटीयोंका हिसाब नहीं रक्खा जाता था. कई जगह पायखानोंमेंसे और कुडेमेंसे मत पत्रमिले थे.

३.      चूनाव और उसके परिणामकी घोषणा एक साथ नहीं होती थी. जहांपर कोंग्रेसकी जित ज्यादा संभव थी वहां प्रथम चूनाव करके उसके परिणामकी घोषणा कि जाती थी. ता कि, उसका असर दुसरी जगह पड सके.

४.      ऐसी व्यापक शिकायत थी कि, जिस अभ्यर्थी की हवा थी उसके विपरित अभ्यार्थी चूनाव जितते थे.

५.      ४५ प्रतिशत मतदान हुआ था और उसमें भी कोंग्रेसको ४५ प्रतिशतका भी ४५ प्रतिशत मतलब कि २० प्रतिशत मत मिले थे जिसमें फर्जी मत भी सामील थे जो जो अन्य पक्षोंके थे.

६.      कई सारे अपक्ष प्रत्यासी के कारण कोंग्रेसके विरुद्धके मत बिखर जाते थे. ब्रीटीश सरकारके समयमें किये गये स्थानिक सरकारमें कोंग्रेसको हमेशा ७५ प्रतिशतसे ज्यादा मत मिलते थे. यह ४५ प्रतिशत जिसमें ज्यादातर फर्जी मत भी संमिलित थे तो भी उस समय तकके यह मत सबसे कम मत थे.

७.      ऐसी परिस्थितिके कारण कोंग्रेसको ४८९ मेंसे ३६४ बैठक मिली थीं.

 

१९५७ का चूनावः

नहेरुको छोडकर कोंग्रेसके अन्य नेता गांधीवादके ज्यादा नजदीक थे. उन्होने अच्छा काम किया था. बडी बडी नहेर योजनायें बनी थी. इसके कारण ग्राम्यप्रजा कोंग्रेसके साथ रही. लेकिन शहरोमें वही बेईमानी चली जो १९५२में चली थी. भाषावार प्रांतरचनामें नहेरुने खुद भाषावादके भूतको जन्म दिया था. यह सर्वप्रथम “जनताको विभाजित करो और चूनाव जितो” का प्रयोग था. अपि तु नहेरु हमेशा जनसंघ और हिन्दुमहासभाके विरुद्ध प्रचार करते थे.

मतदान ५५ प्रतिशत हुआ था. और कोंग्रेसको ४८ प्रतिशत मतके साथ ३७१ बैठकें मिली थीं. कुल ४९४ बैठके थीं.

कोंग्रेसने केराला खोया था. मुंबई (गुजरात, महराष्ट्र, कर्नाटक संयुक्त होनेके कारण ) खोया नहीं था.

 १९६२का चूनावः

चीनके साथ युद्ध होना बाकी था. चीनकी घुसपैठके कारण नहेरु बदनाम होते रहेते थे. लेकिन मीडीया नहेरुका गुणगान करता था. ओल ईन्डीया रेडियो कोंग्रेसका ही था.

मुस्लिम लीगके साथ समझोता करके कोंग्रेसने मुस्लिमोंमें कोमवादके बीज बो दिये थे.

१९५८ -१९६० के अंतर्गत, कोंग्रेस ने भाषावार प्रांतरचना करके कई राज्योंको खुश भी किया था.

१९६२में दीव, दमण और गोवा उपर आक्रमण करके उसको जित लिया था.

कई बैठकों के उपर, कोंग्रेसने साम्यवादीयोंका सहारा लिया था.

उद्योग बढे थे. राज्योंकी सरकारोंने अच्छा काम किया था.

मतदान ५५ प्रतिशत हुआ था. कोंग्रेसको ४५ प्रतिशत मत मिले थे. ३६१ बैठकें मिली थीं. कुल बैठक ४९४ थीं.

अगर मीडीयाने चीनका मामला दबाया नहीं होता और नहेरुके विरोधीयोंको बदनाम किया नहीं होता तो चित्र अलग बन सकता था. मीडीया उस समय पढे लिखे लोगोंको भ्रमित करती थी. अनपढ लोग देहातोंमे काफि थे. उनको आतंर्‌ राष्ट्रीय बातोंसे कोई संबंध नहीं था. पंचायती राजने देहातोंके लोगोंको अपने अपने स्वकीय हितवाले राजकारणमें घसीट लिया था. देशकी निरक्षरताने कोंग्रेसको पर्याप्त लाभ किया था.

१९६२- १९६७ का समयः

कोंग्रेसके खिलाफ जनमत जागृत हो गया था. नहेरुकी बेवकुफ नीतियोंका भांडा फूट चूका था. नहेरुने जो चालाकीसे विरोधीयोंको निरस्त्र करनेके दाव खेले थे वे उजागर होने लगे थे. विदेशनीतिकी खास करके चीनके साथ पंचशील करार वाली विफल विदेश नीति जनताको मालुम हो गई थी. नहेरुको शायद मालुम था कि, अगर उनके बाद अपनी बेटीने देशकी लगाम हाथ न ली तो उनके द्वारा कि गई हिमालय जैसी बडी मूर्खता जनता जान ही जायेगी. और इसके कारण उनका नाम इतिहासमें काले अक्षरोंसे लिखा जायेगा. अपनी बेटी इन्दीराको देशकी धूरा सोंपने के लिये उन्होने सीन्डीकेट बनायी थी.

इस सीन्डीकेटने नहेरुको वादा किया था कि अगर हम दूबेंगे तो साथमें डूबेंगे और पार कर जायेंगे तो साथमें तैरके पार कर जायेंगे. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी एक प्रणाली है, कि जब भी गंभीर समस्या आती है तब आमजनताका ध्यान मूलभूत समस्यासे हटानेके लिये तत्वज्ञान की भाषाका उपयोग करके नौटंकी करना.

“संस्थाको मजबूत करो” यह नारा बनाया और मोरारजी देसाईको मंत्रीमंडलसे हटाया. मोरारजी देसाईको गवर्नन्स को सुधारने के लिये एक वहीवटी-सुधारणा पंच बनवाके उसका अध्यक्ष बना दिया. इसप्रकार मोरारजी देसाईको उन्होने कामराजप्लानके अंतरगत खतम कर दिया था. इसमें मीडीयाने पूरा साथ दिया था. चीनके साथ जो शर्मनाक पराजय हुई उसको मीडीयाने इस प्रकार भूला दिया. जैसे आज केजरीवालको मीडीया चमकाने लगी है और कोंग्रेसकी राज्योंमें हुई घोर पराजयोंको पार्श्व भूमिमें रखवा  दिया है.

दुसरा उन्होने यह किया कि समाजवादी पक्षको “समाजवाद”के नाम पर अपनेमें समा दिया.

तो भी जो चीनके साथके युद्धमें जो बदनामी हुई थी वह पूर्ण रुपसे नष्ट नहीं हुई. और नहेरुकी १९६४में वृद्धावस्था जल्द आजानेसे मृत्य हो गई. उस समय राष्ट्रपति बेवकुफ राष्ट्रपति नहीं थे इस लिये शिघ्रतासे ईन्दीरा गांधीका राज्याभिषेक नहीं हो पाया. लालबहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री करना पडा.

नहेरुवीयन प्रधान मंत्रीसे अ-नहेरुवीयन प्रधान मंत्री हमेशा अधिक दक्षतापूर्ण होता है यह बात शास्त्रीने सबसे पहेले सिद्ध की. लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि, पाकिस्तानको डर लगने लगा. और उसने अपने यहांसे हिन्दुओंको भगाने का काम चालु किया. जैसा भारतमें कोंग्रेसका चरित्र है, वैसा पाकिस्तानमें उसके शासकोंका चरित्र है. पश्चिम पाकिस्तानमें सिंधी, पंजाबी, बलुची, मुजाहिदों के बिच राजकीय आंतरविग्रह चलता था. तो वहांके सैनिक शासकोंने भारत पर हमला कर दिया. पाकिस्तानको शायद ऐसा खयाल था कि चीनके सामने भारत हार गया है तो हमारे साथ भी हार जायेगा. वास्तवमें यदि नहेरुने भारतकी चीनके साथ लगी सीमाको निरस्त्र नहीं रखी होती तो चीनके साथ भी युद्धमें भारत हारता नहीं,

पाकिस्तानके युद्धमें दोनों देशोंने एक दुसरेकी जमीन पर कब्जा किया था. लेकिन भारतने जो कब्जा किया था वह पाकिस्तानके लिये अधिक महत्वपूर्ण था. इसलिये ऐसा लगता था कि, भारतका हाथ उपर है. और अब पाकिस्तान को ऐसा सबक मिलेगा कि, वह कभी भी गुस्ताखी करनेका नाम लेगा नहीं. लेकिन रशिया और अमेरिकाने मिलके तास्कंदमें भारतके प्रधान मंत्रीपर ऐसा दबाव डाला कि, करार के अनुसार दोनोंकों अपनी अपनी भूमि वापस मिले. ऐसा माना जाता है कि, शास्त्रीजीका आकस्मिक निधन इसी वजहसे हुआ. और यह बात आज तक रहस्यमय है. शास्त्रीजीके दक्षता पूर्ण शासन और निधनसे कोंग्रेसका तश्कंदका लगा कलंक तो पार्श्वभूमिमें चला गया.

सीन्डीकेटने इन्दीरा गांधीको प्रधानमंत्री बना दिया. जैसे आज नरेन्द्र मोदीके हरेक वक्तव्योंकी बालकी खाल निकालते है ठीक उसी तरह प्रसारमाध्यमोंने भी सीन्डीकेटको समर्थन दिया और मोरारजी देसाईके वक्तव्योंकी बालकी खाल निकाली.

इन्दीरा गांधी एक सामान्य औरत थी, जैसा आज राहुल गांधी है.

१९६७ का चूनाव

गुजरातमें स्वतंत्रपक्ष उभर रहा था.  अन्य राज्योंमें भी स्थानिक या राष्ट्रीय पक्ष उभरने लगे थे. इसमें संयुक्त समाजवादी पक्ष, साम्यवादी पक्ष, जनसंघ मूख्य थे. कोंग्रेसकी नाव डूब रही थी. लेकिन विपक्ष संयुक्त न होने की वजहसे और कोंग्रेस अविभाजित थी और उसका संस्थागत प्रभूत्व ग्राम्यस्तर तक फैला हुआ था, इसलिये उसको केन्द्रमें सुक्ष्म तो सुक्ष्म, लेकिन बहुमत तो मिल ही गया.

इस चूनावमें ६१ प्रतिशत मतदान हुआ. कोंग्रेसको ४१ प्रतिशत मत मिले थे. और उसको ५२० मेंसे २८३ बैठकें मिलीं. विपक्षको विभाजित होने के कारण २३७ बैठकें मिली. कई राज्योंमें कोंग्रेसने शासानसे हाथ धोये.

सीन्डीकेटको भी पता चला कि, मोरारजी देसाई जैसे दक्षता पूर्ण व्यक्ति मंत्रीमंडळमें नहीं होनेकी वजहसे पक्षको घाटा तो हुआ ही है. अगर कमजोर प्रधान मंत्री रहेंगे तो भविष्यमें कोंग्रेस नामशेष हो सकती है. सिन्डीकेटने मोरारजी देसाईको, इन्दीरा गांधीकी नामरजी होते हुए भी, मंत्री मंडलमें सामिल करवाया.  

ऐसा माना जाता हैअ कि, अब ईन्दीरा गांधीने राजकीय मूल्योंको बदल देनेका प्रारंभ किया वह भी विदेशी सलाहकारोंके द्वारा.

क्रमशः

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः  १९५२, १९५७, १९६२, १९६७, चूनाव, मतदान, मतदाता, मतपत्र, मतपेटी, मतकक्ष, कोंग्रेस अविभाजित, जनसंघ, हिन्दुमहासभा, मुस्लिम लीग, साम्यवादी, भ्रष्ट, सीन्डीकेट, नहेरुवीयन, मोरारजी, पारदर्शिता, जनप्रतिनिधित्व, जन, लोकपाल, विधेयक, प्रारुप, अभ्यर्थी

 

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What is expected by the people of India from Narendra Modi – Part – 2

नरेन्द्र मोदी जब प्रधान मंत्री बन जाय, तब भारतीय जनता उनसे क्या अपेक्षा रखती है? – २

जनप्रतिनिधि के चयन, निर्वाचन, नियुक्ति और उसको पदच्यूत करनेवाली प्रक्रियामें संशोधनः

जनप्रतिनिधिके अधिकार, कर्तव्य और उसकी सीमा और परिसीमाके बारेमें हमें स्पष्ट हो जाना पडेगा.

जनप्रतिनिधि कौन है?

जनप्रतिनिधि क्या जनताका कर्मचारी है?

अगर हां, तो उसके उपर सरकारी कर्मचारीगण वाली (पब्लिक सर्वन्ट के लिये निर्धारित और सूचित) आचार संहिताको उपयोजित (एप्लीकेबल) करनी चाहिये. लेकिन भारतीय संविधानके अनुसार जनप्रतिनिधिके लिये अलग, अर्धदग्ध और अस्पष्ट, उपबंधन (प्रोवीझन) और प्रक्रिया है.

जनप्रतिनिधि, वास्तवमें जनताका प्रतिनिधि है जो अपने अपने क्षेत्रकी जनताकी समस्याओंका, विचारोंका, इच्छाओंका, आकांक्षाओंको विधान परिषद [विधि, विधान और उनकी प्रक्रियाओंके विषय पर विधेयकका प्रारुप (ड्राफ्ट) बनानेवाली और उसको स्विकृति देने वाली जनप्रतिनिधियों की सभा)में प्रतिबिंबित करता है. और कर्मचारीगण द्वारा जनहितमें कार्यान्वित करवाता है और उनके उपर अनुश्रवण (मोनीटरींग) करता है.

जनप्रतिनिधिका कार्यकाल ५ वर्ष है या तो विधान परिषद भंग हो जाने पर नष्ट हो जाता है.

क्या जनता, अपने जनप्रतिनिधिको उसके कार्यकालकी निश्चित अवधिके पूर्व उसको पदच्यूत कर सकती है?

उत्तर है; “ना” और “हां.”

“ना” इसलिये कि, भारतीय संविधानमें जनप्रतिनिधिको कार्यकालके पूर्व ही, पदच्यूत करनेकी कोई प्रक्रिया नहीं है.

“हां” अगर विधान परिषदका प्रमुख चाहे तो वैवेकिक शक्ति (डीस्क्रीशनरी पावर) से संविधानमें बोधित प्रक्रियाके अनुसार उसको पदच्यूत कर सकता है.

लेकिन इसमें तत्‍ क्षेत्रीय जनताके अभिप्राय और ईच्छाका प्रतिबिंबन अस्पष्ट है. जनता अपनी ईच्छासे अपने प्रतिनिधिको पदच्यूत नहीं कर सकती. यदि जनता अपने प्रतिनिधि पर कोई भी प्रकारके आंदोलन द्वारा मनोवैज्ञानिक प्रभाव लावे और उसको पदत्याग पत्र देना पडे वह परिस्थिति अलग है.

तो इसमें क्या करना चाहिये?

हम एक जन वसाहतका उदाहरण लेते है.

एक जन वसाहत है. इस वसाहतमें कई प्रकारके आवास है, बडे आवास है, छोटे आवास है, बहुमंजीला आवास है, झुग्गी झोंपडीयां भी है, कार्यालय है, उद्योग है, पैदल मार्ग है, वाहन मार्ग है आदि आदि … .

यहांके आवासीयोंने विचार किया कि, इस वसाहतमें कई सारे काम है. इनकी सफाईका काम, अनुरक्षणका काम, नव सर्जनका काम, काम करनेवालों पर अवलोकन और अनुश्रवणका काम आदि आदि…  इन सब कार्योंको कोई एक व्यक्ति करें  या करवायें ऐसा आयोजन करें.  हम किसीको इन कामोंको करनेका संविदा (कोन्ट्राक्ट) दे दें. यह व्यक्ति हमारे आदेशों और निर्देशोंके अनुसार काम करेगा और करवायेगा.

“फलां” पक्ष नामक एक अभिकर्ता

एक “फलां” पक्ष नामक एक अभिकर्ता (एजन्ट) आ गया. उसने प्रस्ताव दिया कि हम एक संविधान का प्रारुप आपको देंगे और आप जैसी कई वसाहत है. आप आपका प्रतिनिधि हमें दें. आपका यह प्रतिनिधि आपके विचारोंके अनुरुप, प्रारुपको स्विकृति देगा, या विकल्पका प्रस्ताव देगा, उसको हम संमिलित करेंगे और इन प्रतिनिधियों द्वारा जो अंतिम प्रारुप बनेगा वह संविधान बनेगा. इसमें मानवीय अधिकारोंका, शोषण हिनताका, न्याय, प्रतिनिधि के चूनाव आदि आदि सब कर्तव्योंका संमिलन होगा और इस संविधानके आधार पर कर्योंका निष्पादन (एक्झीक्युशन) और अनुश्रवण होगा. यह प्रतिनिधि आपसे कर द्वारा खर्च वसुल करेगा और थोडीसी मझदूरी / वेतन लेगा.

अब हुआ ऐसा कि ऐसा संविधान बन जाने पर और स्विकृत हो जाने पर वह एजन्टने  अपनी तरफसे जनप्रतिनिधिका नाम भी प्रस्तावित किया. जनताने उसको चूनाव द्वारा स्विकृत किया, किंतु यह जनप्रतिनिधि और उसका पक्ष कपट करने लगा और करवाने लगा. कर बढाने लगा, अपने सभ्योंकी मझदूरी, सुख सुविधाओंमें वृद्धि करने लगा. ऐसे विधेयक पसार करने लगा कि जनताकी दीनता बढे और संपत्तिवान ज्यादा संपत्तिवाले बने.

ऐसा कई वसाहतोंमें होने लगा. तो एक वसाहतने पारदर्शिताके लिये सूचनाका अधिकार संमिलित करवाया. प्रयोजन यह था कि जन प्रतिनिधि संविधानके अंतर्गत जो कुछ भी सुधार करे वह पारदर्शितासे करे.

पक्षने कहा ठीक है आप जो माहिती मांगेंगे वह हम देंगे. बात खतम.

ऐसी परिस्थितिमें भी जनप्रतिनिधि अपने वर्तनमें कोई सुधार नहीं लाता है.

जनप्रतिनिधि कहेता है पक्षने मेरे नाम का प्रस्ताव रक्खा था और आपने मुझे पांच वर्षके लिये स्विकृत कर ही लिया है. इसलिये मेरा उत्तरदायित्व पक्षके साथ है. संविधानके अनुसार मेरा कार्यकाल रहेगा.

जनताने कहा तू हमारा प्रतिनिधि है. पक्षने तो तुम्हे सिर्फ प्रस्तावित ही किया है. पक्षने तुम्हारा चयन किया है. हमने तुम्हारा निर्वाचन किया है.

जनप्रतिनिधि और पक्षने कहा, संविधानमें जो प्रावधान है उसके उपर आप जनता लोग नहीं जा सकते. संविधान के उपर कोई नहीं है.

जनता कहेती है संविधानके उपर जनता है. जनता है तो संविधान है.

पक्ष कहेता है, संविधानमें संशोधनके लिये अधिकृत हम ही है. तूम लोग कौन होते हो?

जनता कहेती है कि तो हमारे मूलभूत अधिकारोंका क्या? यदि हमने प्रतिनिधिको चूना है तो उसका प्रतिनिधित्व नष्ट करना हमारा मूलभूत अधिकारा है. यदि वह ढंगसे काम नहीं करता है तो हम उसको पदभ्रष्ट कर ही शकते है.

पक्ष कहेता है, संविधानमें कोई ऐसा प्रावधान और प्रक्रिया नहीं है. हमने आपके सामने हमारा चूनावका घोषणा पत्र रखा था. अगर हमारा व्यवहार ठीक नहीं है तो तुम लोग हमे आगामी चूनावमें निर्वाचित मत करो. तुम लोग हमारे मध्यावधि कार्यकालमें, विरोध प्रदर्शन करके, बहुमत तुम्हारे साथ है ऐसा सिद्ध नहीं कर सकते हो.

जनता कहेती हैः तुम्हारा चूनाव नीति-घोषणा एक कपट है. तुमने घोषणापत्रमें जो वचनबद्धता प्रकट की थी उसका तुमने पालन नहीं किया. जो घोषणा पत्रमें  नहीं था उसका तुम लोग विधेयक लाये. यह एक छलना और विश्वासघात है.

पक्ष कहेता हैः हमने विश्वासघात किया है, ऐसा सिद्ध कौन करेगा? हमने वादा किया था कि, हम लोकपाल विधेयक का प्रस्ताव लायेंगे और हम उस विधेयकको लाये.

जनता कहेती है तुम्हारा लोकपाल विधेयकका प्रारुप अर्थपूर्ण और परिणाम लक्षी नहीं है. यह एक कपट है. तुम्हे तुम्हारे चूनाव नीति-घोषणा पत्रमें ही लोकपाल विधेयकका प्रारुप (लोकपाल बीलका ड्राफ्ट), प्रकट करना चाहिये था. तुमने व्यवहारमें निरपेक्ष पारदर्शिता नहीं प्रदर्शित कि. तुमने अपने नीति-घोषणा पत्रमें यह कभी भी लिखा नहीं था कि, तुम लोग अपना वेतन / मझदुरीमें वृद्धि करोगे और सुख सुविधा बढाओगे, तो भी तुमने अपने खुदके लाभवाला सब कुछ किया. वास्तवमें तुम जो कोई भी विधेयक लाने वाले थे उन सबका प्रारुप हमारे सामने प्रकट स्वरुपमें रखना तुम्हारे लिये आवश्यक था. किंतु तुमने यह कुछ भी किया नहीं. पारदर्शिता रखना तुम्हारा कर्तव्य है. तुम अपने कर्तव्यसे च्यूत हुए हो इसलिये तुम निरर्हित (डीसक्वालीफाईड) बन जाते हो.

पक्ष और जनप्रतिनिधिः लेकिन इस का निर्णय तो न्यायालय ही कर सकता है.

न्यायालय क्या कर सकता है?

न्यायालय, सूचना अधिकार की आत्माको केन्द्रमें रखकर पारदर्शिताका निरपेक्ष पारदर्शिताके रुपमें   अर्थघटन कर शकता है. और जो विधेयका प्रारुप चूनावके नीतिघोषणापत्रमें नहीं है उन सबको शून्य, प्रभावहीन और अप्रवर्तनीय घोषित कर सकता है. और पक्षको शासनके लिये और राजकीय पक्ष के स्थान पर भी निरर्हित कर सकता है.

और कोई विकल्प?

यदि जन प्रतिनिधिके क्षेत्रके समग्र मतदातामेंसे २०% मतदाता, चूनाव अधिकारीको आवेदन दें कि इस जनप्रतिनिधिको वापस बुलालो तो चूनाव अधिकारीको उस जनप्रतिनिधिके प्रतिनिधित्वके बारेमें जनताके “हां”, “ना” या “निश्चित नहीं” का बटन दबाके मत लेना पडेगा. यदि ५०+% मत, जनप्रतिनिधिके विरुद्ध गये तो वह पदच्यूत हो जायेगा.

ऐसी प्रक्रियाकी अनुपस्थितिमें, जनप्रतिनिधिको पदच्यूत करनेके लिये ५०+% मतदाताओंको अधिकृत अधिकारी या न्यायाधीशके सामने या क्षेत्रके चूनाव अधिकारीके सामने शपथपत्र बनाना पडेगा कि वह अपने क्षेत्रके जनप्रतिनिधिमें विश्वास रखता नहीं है और वह उसकी पदच्युतिके पक्षमें है. और वह अपने जनप्रतिनिधिको पदच्युत करना चाहताहै. ऐसे सर्व शपथ पत्रकी संख्या ५०+% होती है तो जनप्रतिनिधि पदच्यूत हो जायेगा.

तो हमें क्या न्यायालयके अर्थघटनकी प्रतिक्षा करना है?

क्या हमें जनप्रतिनिधि के चयन, निर्वाचन, नियुक्ति और उसको पदच्यूत करनेवाली प्रक्रियामें संशोधन करना है?

Last supper

(Artist’s curtsy)

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः संविधान, जनप्रतिनिधि, चयन, चुनाव, पक्ष, अभिकर्ता, एजन्ट, विधेयक, प्रारुप, ड्राफ्ट, निष्पादन, एक्झीक्युशन, निरर्हित, डीसक्वालीफाईड, अर्थपूर्ण, निरपेक्ष, पारदर्शिता, कर्तव्य, अधिकार, कालावधि, विश्वासघात, पदच्यूत, नीति, घोषणा, पत्र, वैवेकिक शक्ति, डीस्क्रीशनरी पावर 

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What is expected by the people of India from Narendra Modi

नरेन्द्र मोदी जब प्रधान मंत्री बन जाय, तब भारतीय जनता उनसे क्या अपेक्षा रखती है?

चूनाव आयोग सुधारः (रीफोर्म्स)

कार्यक्षेत्र और भौगोलिक विस्तार

चूनाव आयोग, भूमि और आवास सहयोग विभाग, जनगणना आयोग, स्थावर संपत्ति पंजीकरण (रजीष्ट्रार ओफ को ओपरेटीव सोसाईटीझ, लेन्ड रेकोर्ड), इन सभी कार्यक्षेत्रोंको चूनाव आयोगमें संमिलित किया जायेगा.

इसका नाम रहेगा चूनाव और स्थावर संपत्ति सहयोग आयोग

कृषि सहकारी संस्थाएं और गृह निर्माण सहकारी संस्थाएं, हालमें तो सहयोग संस्था पंजीकर्ता (रजीस्ट्रार ओफ को ओपरेटीव्झ सोसाईटीझ) के कार्य क्षेत्रमें है. न्यायालयके उपर भी जो भार रहेता है इसमें इसके संलग्न किस्से ही ज्यादातर होते है.

चूनाव इन सहयोगी संस्थाओमें भी होते है. सहयोगी संस्था कृषि, और सहयोगी संस्था गृह निर्माणअनुरक्षणमें, कपट (फ्रॉड), अनीति, और अनियमितता ज्यादा ही रहती है. इन कपट, अनीति और अनियमितताका निर्मूलन करनेके लिये ये सहयोगी संस्थाओंका, उसके सदस्योंका पंजीकरण (रजीष्ट्रेशन ऑफ मेम्बरशीप), विकास और अनुरक्षण (मेन्टेनन्स), समिति (कमीटी) के सदस्योंका चूनाव, और सदस्यताका हस्तांतरण (ट्रन्सफर ऑफ मेम्बरशीप) आदि, चूनाव आयोग के कार्यक्षेत्रमें लाना आवश्यक है.

चूनावमें विस्तार की जनगणना और व्यक्तिकी अनन्यता (आईडेन्टीटी), नागरिकता (सीटीझनशीप), आदि अनिवार्य है. इस लिये जनगणना आयोग भी इसमें संमिलित (मर्ज्ड) होना चाहिये.

चूनाव और जन सहयोग के निम्न लिखित स्तर रहेंगे

राष्ट्रीयस्तर (राष्ट्र) (सर्वोच्च आयुक्त)

राज्य स्तर (राज्य विस्तार) (उच्च आयुक्त)

संसद सदस्य स्तर, (संसद बैठक विस्तार) (जिला आयुक्त)

विधान सदस्य, (स्टेट एसेम्ब्ली बैठक विस्तार) (उपायुक्त)

खंडीय स्तर (वॉर्ड) (सहायक आयुक्त)

बुथ या बुथ समूह (विस्तार से १० बुथ विस्तार या ५००० के आसपास मतदाता) (बुथ अधिकारी)

यह एक उच्च से निम्नस्तर तक बिलकुल स्वतंत्र आयोग रहेगा. इसके कार्यालय, जनसभाखंड और कर्मचारीगण स्थायी होगे.

.   हेतुः चूनाव प्रचारमें सुधार, चूनाव खर्च पर पाबंदीः जब तक चूनावी प्रचारमें सुधार नहीं होगा और चूनाव में पैसेका महत्त्व दूर नहीं होगा तब तक नीतिमत्ता वाले और सेवाभावी लोग चूनाव जित पायेंगे नहीं. इसलिये हरेक अभ्यर्थीका (केन्डीडेटका) चूनाव प्रचार खर्च शासन उठायेगा.

. चूनाव आयोग कार्यक्षेत्र सुधारः ५००० मतदाताओंके भौगोलिक विस्तारके आधार पर एक बुथ या बुथ समूह या एक ग्राम्य विस्तार या नगरका एक विभाग में एक राजपत्रित अधिकारी (gazetted officer)  होगा.

इस राजपत्रित अधिकारीके पदका नाम बुथ अधिकारी  रहेगाः

बुथ अधिकारीका अपने भौगोलिक विस्तारमे निम्न लिखित कर्तव्य और उत्तरदायित्व

पंजीकरणः

अपने विस्तारकी स्थावर (जमीन और मकान आदि) मिल्कतोंका पंजीकरण यह अधिकारी करेगा.

जनगणनाः

निवासीयोंकी नोंध यह अधिकारी करेगा. इस के कारण जनगणना का पंजीकरण अपने आप होता रहेगा. ,

सहकारी संस्था पंजीकरण और संचालनः

सहकारी गृह निर्माण और अनुरक्षण संगठन कृषि सहकारी संगठन के कारोबार पर अनुश्रवण (मोनीटरींग) और उसका पंजीकरण और नियमन का काम यह अधिकारी करेगा. हरेक सहकारी संस्थाका प्रमूख यह अधिकारी होगा.

यह अधिकारी उपरोक्त संगठनोंके पंजीकरण और संचालन की कार्यवाही करेगा. तद उपरांत यह अधिकारी, उपरोक्त सहकारी संगठनोके सदस्योंका पंजीकरण, सदस्यता का हस्तांतरण, संशोधन, संस्थाका अनुरक्षणसदस्यसभा सामान्य सभा बुलाना और उसका संचालन और कार्यवाहीका अभिलेखन (रेकोर्ड) रखनेका काम करेगा.

ज्यादातर अनियमितता, अनीति और कपट स्थावर संपत्ति और सहकारी संगठन द्वारा ही होते है. ये सब कपट और अनीति बंद हो जायेगी. क्यों कि किसीभी कपट, अनीति और अनियमितता का उत्तरदायित्व (रीस्पोन्सीबीलीटी) इस अधिकारी पर रहेगा.

चूनाव प्रचार निरीक्षण और सभा संचालनः

जनप्रतिनिधित्व के अभ्यर्थीयोंका चूनाव प्रचार सभाओंका संचालन यह अधिकारी करेगा.

यह अधिकारी अपने द्वारा अपने विस्तारमें स्थित, प्रबोधित (सजेस्टेड), सूचित या सुझाये गये स्थान या सभाखंड में आवेदित (एप्लाईड फोर), जनसभाका संचालन करेगा और वक्तव्योंका और प्रचार साहित्यका रेकोर्ड रखेगा.

यह अधिकारी प्रश्नोत्तरी और समान मंचपर (कोमन प्लेटफोर्म) विभिन्न जनप्रतिनिधित्व के अभ्यर्थीयोंकी या उनके द्वारा सूचित व्यक्तियोंकी चर्चासभाओंका संचालन करेगा.

यह अधिकारी सरकार द्वारा संचालित दूरदर्शन पर, और समान मंच पर, सामूहिक और व्यक्तिगत व्याख्यान कार्यक्रम पक्षके अभ्यर्थी और अपक्षीय अभ्यर्थीयों के साथ चर्चा करके कर्यक्रम की अनुसूचना (शीड्युल ओफ प्रोग्राम) जारी करेगा. यह अनुसूचना सरकार वेब साईट पर पर जारी करेगी. प्रचार की यह अनुसूचना सभाखंड और बुथ कार्यालयमें प्रदर्शित रक्खी जायेगी.

हर अभ्यर्थीके चूनाव क्षेत्रकी एक वेब साईट बनाई जायेगी और जन सूची, मतदाता सूची, सदस्यता, हस्तांतरण, समय समय के अभ्यार्थी, अभ्यार्थी परिचय, चूनाव घोषणा, चूनाव और अनुसुचित प्रचार, प्रचार अभियान माहिति, चूनाव परिणाम, ईत्यादि माहिति वेब साईट पर उपलब्ध रहेगी.

. विधेयकमें पारदर्शिता और जनस्विकृति

भारतीय संविधान अनुसार, राजकीय पक्ष और जनता के बीचमें सीधा संबंध नहीं है. निर्वाचित व्यक्ति को जनप्रतिनिधि कहा जाता है. वैसे तो राजकीय पक्षको कई रियायतें मिलती है. इस लिये उनका उत्तरदायित्व बनता है. लेकिन वास्तवमें ऐसा दिखाई देता नहीं है.

जनप्रतिनिधिके लिये कोई व्यक्ति आवेदन (प्रार्थनापत्र) दें उसके पहले उसकी लोकप्रियता सिद्ध करने लिये एक प्रारंभिक सर्वेक्षण जरुरी है. पक्ष वाले तो अपना व्यक्ति खुद तय करेंगे और इसमें जरुरत पडने पर क्षेत्रीय अधिकारीकी मदद ले सकते है.

जो व्यक्ति अपक्ष है वह कितना लोकप्रिय है यह सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्रीय अधिकारी बुथ अधिकारीयोंकी मददसे एक प्राथमिक सर्वेक्षण करवायेगा. और उनमें जो सर्व प्रथम पांच निर्वाचित बनेंगे वे ही अंतीम चूनावमें भाग ले सकते हैं.

. पक्षीय या अपक्षीय अभ्यार्थीका नीतिघोषणा (ईलेक्सन मेनीफेस्टो) पत्रः

जो विषय घोषणा पत्रमें संमिलित नहीं है उस विषय पर कोई जनप्रतिनिधि विधेयक (बील) ला सकता नहीं है. क्यों कि यह जनताके सामने पारदर्शिता नहीं है.

विधेयक का प्रारुप (ड्राफ्ट ओफ थे बील)

जो भी व्यक्ति या पक्ष या पक्षकी व्यक्ति जो जनप्रतिनिधित्व के लिये अभ्यार्थी है, वह अगर चूना गया तो अपने आगामी कार्यकालमें क्या क्या विधेयक लानेवाला है उसका प्रारुप क्षेत्रीय अधिकारी के पास उसको प्रस्तूत करना पडेगा. कोई भी अभ्यार्थीने या अगर उसके पक्षने ऐसा विधेयक का प्रारुप प्रस्तुत (सबमीट) करवाया नहीं है, तो ऐसा विधेयक वह सभामें (संसद, विधानसभा, परिषद, या कोई भी विधेयक पारित करनेका वाली अधिकृत सभा) प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है.

हालमें व्यवस्था ऐसी है कि जनप्रतिनिधि का पक्ष विधेयकका प्रारुप शासन ग्रहण करनेके पश्चात अपने कार्यकाल दरम्यान बनाती है और परिषद में प्रस्तुत करके पारित (पास) करवाती है. वास्तवमें जनताके साथ यह एक बेईमानी है. जनताकी आवाज इसमें प्रतिबिंबित होती नहीं है. इतना ही नहीं इस प्रक्रीयामें पारदर्शिता नहीं है.

आपात स्थितिमें विधेयक

अगर आपात स्थितिमें कोई विधेयक की जरुरत पडी तो, राष्ट्रीय चूनाव आयूक्त ऐसे विधेयकके प्रारुपको जनताके सामने प्रसिद्ध करेगा औरहां”, “नाऔरतटस्थ” (यस, नो, कान्ट से) में जनमत लेगा.

अति आपात स्थितिमें विधेयक

अगर अति आपातकालकी स्थिति है तो राष्ट्रपति इसके उपर अपना अभिप्राय देगा और अध्यादेश (ओर्डीनन्स) जारी करेगा. इसको मासमें जनताके सामने रखना पडेगा. अगर जनताने ५०+ प्रतिशतसे नामंजुर किया तो शासक पक्षको सत्ता त्याग करना पडेगा. अगर ऐसा नहीं है तो सरकार चालु रहेगी.

सरघस, बडे विज्ञापन पट्ट, और दिवारों पर लिखने पर पाबंदीः

पक्षका अभ्यार्थी और अपक्ष अभ्यार्थी सिर्फ अपना चूनाव घोषणापत्र (जिसमें विधेयक का प्रारुप संलग्न होगा), अपना अंगत और व्यावसायिक सेवा विवरण (प्रोफाईल), अपनी कार्यशैली (गवर्नन्स स्टाईल) अपने विचार सिद्धांत (स्कुल ऑफ थोट्स एन्ड प्रीन्सीपल्स),  और वक्तव्य (प्रवचन) का विवरण दे सकता है. इसका मुद्रण (प्रीन्टींग) खर्च चूनाव आयोग उठायेगा. सभा खर्च भी चूनाव आयोग उठायेगा.

गैर सरकारी दूरदर्शन चेनलों पर चूनाव प्रचारका खर्च अभ्यार्थी के खाते में जायेगा. जितना खर्च सरकार अपने सरकारी दूरदर्शन चेनलों पर करेगी उतना खर्च जनतप्रतिनिधित्वका आभ्यार्थी कर पायेगा.

अगर अभ्यर्थी चाहे तो अपने चूनाव प्रचारकी दृष्यश्राव्य (वीडीयो) कृति (क्लीप) सरकारी दूरदर्शन चेनल को प्रस्तूत कर सकता है. चूनाव आयोग, पक्ष के चूनाव पत्र पर सूचित प्रक्रिया में संमिलित कर देगा. जनता उसको अपनी अनुकुलतामें देख लेगी.

कृषि और आवास सह्योग विभाग

ठीक उसी प्रकार कृषि और आवास सह्योग आयोगको चूनाव आयोगमें संमिलित करके संशोधन करना है.   

कृषि और आवास सह्योगी संस्था के विषयमें भी, निविदा (पब्लिक नोटीस), संस्थाका कार्य क्षेत्र, संस्था परिचय, सदस्यताकी पात्रताका मापदंडसंस्था पंजीकरण, सदस्य सूची, सदस्यकी माहिति, विकास और अनुरक्षण की समिति के सदस्यों की के चूनाव प्रक्रीया अनुसूचना और पूरी प्रक्रीया, विकास और अनुरक्षण लेखा (एकाउन्ट) और लेखा परीक्षा (ऑडीट) विवरण, समिति सभा, सामान्य सभा, सभा घोषणा प्रक्रीया (एकोर्डीग टु स्टेच्युटरी प्रोवीझन्स फोर कोलींग फोर मीटींग), वक्तव्य नोंध, आदि सभी व्यवहार बुथ अधिकारी करेगा और सभी प्रक्रिया वेब साईट पर उपलब्ध रहेगी.

प्रकिर्णः

बुथ अधिकारी, व्यक्तिकी अनन्यताका प्रमाणपत्रः

इस क्षेत्रके निवासीकी छबी, कद, जन्म तीथी, आदि और गोपित प्रक्रीयासे रखा हुआ अंगुलीयां छाप, नेत्र छाप, हस्ताक्षर छाप आदि अनन्यताका पंजीकरण क्रमसंख्यावाला अनन्यताका प्रमाणपत्र कार्ड बनायेगा और देगा.

दस्तावेजों का नोटराईझेशन और पंजीकरण

बुथ अधिकारी, स्थानिक दस्तावेजोंका नोटराईझेशन और पंजीकरण करेगा,

बुथ अधिकारी, स्थानिक स्थावर संपत्तिका, सर्वेक्षण, मानचित्र, हस्तांतरण, बंधक विलेख, आदि निष्पादित और पंजीकरण करेगा.  

बुथ अधिकारी, स्थानिक व्यक्तिओंकी प्रतिज्ञा पत्र, और जिम्मेवारी पत्र, आदि दस्तावेज निष्पादित करेगा और पंजीकरण करेगा.

स्थान और कार्योंका पंजीकरण 

उत्पादनबिक्रीवहनसूचनाशिक्षणव्यापारीसेवाअभिकरण आदि संस्था, व्यक्ति, व्यक्ति समूह को अपना कार्यस्थल, स्थानांतरण, हस्तांतरण और कर्मचारीके विवरण का एक सूचित आवेदन पत्र प्रस्तूत करना पडेगा और उसका पंजीकरण करवाना पडेगा. बुथ अधिकारी एक आधारभूत वेब साईट रखेगी और एक मानचित्र के अंतर्गत सभी विवरण जनता देख पायेगी. बुथ अधिकारी इस वेब साईटको अद्यतन रखेगा. जो संस्था व्यक्ति और व्यक्ति समूह, जन लोक के साथ व्यवहार है, उनके बारेमें जनता के प्रति पारदर्शिता होनी चाहिये.   

यह एक रुपरेखा है और इसको नियमबद्ध भाषामें रखकर भारतीय संविधानमें सामेल करना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः चूनाव आयोग, संशोधन, सुधार, जन, मतदार, सर्वेक्षण, जनप्रतिनिधि, पंजीकरण, अनन्यता, प्रमाणपत्र, जनगणना, क्षेत्र, विधेयक, अभ्यर्थी, आवेदक, आवेदन, राजपत्रित, अधिकारी, बुथ, खंड, जिला, तहेसील, उच्च, सर्वोच्च, ग्राम, नगर, स्थावर,  संपत्ति, सदस्य, सदस्यता, हस्तांतरण, कृषि, मानचित्र, खर्च, लेखा, विवरण, बंधक विलेख, परीक्षा,

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