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“दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” भारतीय जनता इससे सावधान रहें,

“दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” इससे सावधान रहे भारतीय जनता

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह पूरानी आदत है कि जनताको विभाजित करना और अपना उल्लु सीधा करना.

जिसने देशके वर्तमान पत्रोंके हिसाबसे गुजरातमें युपी-बिहार वालोंके विरुद्ध लींचीन्ग चालु किया वह कौन है?

alpesh instigated his men to attack

अल्पेश ठाकोर नामका एक व्यक्ति है जो वर्तमान पत्रोंने बनाया हुआ टायगर है. वह गुजरात (नहेरुवीयन) कोंग्रेसका प्रमुख भी है. वह गुजरात विधानसभाका सदस्य भी है.

उसने गुजरात विधान सभाके गत चूनाव पूर्व अपनी जातिके अंतर्गत एक आंदोलन चलाया था कि ठाकोर जातिको शराबकी लतसे मूक्त करें. यह तो एक दिखावा था. कोंग्रेसने उसको एक निमित्त बनाया था. किसी भी मानव समूह शराबसे मूक्त करना एक अच्छी बात है. लेकिन अभीतक किसीको पता नहीं कितने ठाकोर लोग शराब मूक्त (व्यसन मूक्त) बने. इस संगठनका इस लींचींगमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका पूरा लाभ लिया.

दो पेपर टायगर है गुजरात में

“नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”के नेताओंने पहेले पाटीदारोंमेंसे एकको पेपर टायगर बनाया था. उसने आंदोलन चलाया और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी मददसे करोडों रुपयेकी सरकारी और नीजी संपत्तिका नाश करवाया था. वर्तमान पत्रोंने (पेपरोंने) उनको टायगर बना दिया था.

नहेरुवीयन कोंग्रेसको गुजरातके अधिकतर वर्तमान पत्रोंने भरपूर समर्थन दिया है, और इन समाचार पत्रोंने पाटीदारोंके आंदोलनको फूंक फूंक कर जीवित रक्खनेकी कोशिस की है. वर्तमान पत्रोंको और उनके विश्लेषकोंने कभी भी आंदोलनके गुणदोषके बारेमें चर्चा नहीं की है. लेकिन आंदोलन कितना फैल गया है, कितना शक्तिशाली है, सरकार कैसे निस्फल रही है, इन बातोंको बढा चढा कर बताया है.

पाटीदार आंदोलनसे प्रेरित होकर नहेरुवीयन कोंग्रेसने अल्पेश ठकोरको आगे किया है. यह एक अति सामान्य कक्षाका व्यक्ति है. जिसका स्वयंका कुछ वजुद न हो और प्रवर्तमान फेशन के प्रवाहमें आके दाढी बढाकर अपनी आईडेन्टीटी (पहेचान) खो सकता है वह व्यक्तिको आप सामान्य कक्षाका या तो उससे भी निम्न कक्षाका नहीं मानोगे तो आप क्या मान मानोगे?

“दुष्कर्म” तो एक निमित्त है. ऐसा निमित्त तो आपको कहीं न कहींसे मिलने वाला ही है. यह पेपर टायगर खुल्लेआम हिन्दीभाषीयोंके विरुद्ध बोलने लगा है. और समाचार माध्यम उसको उछाल रहे है.

वैसे तो मुख्य मंत्रीने १२०० व्यक्तियोंको हिरासतमें लिया है. और इन सबको पता चल जायेगा कि कानून क्या कर सकता है. लेकिन यदि किसीको अति जिम्मेवार समज़ना है तो वे वर्तमान पत्र है. समाचार पत्रोंको तो लगता है कि उनके मूँहमें तो गुड और सक्कर किसीने रख दिया है. लेकिन अब नहेरुवीयन कोंग्रेसकी और उसके दंभी समाचार पत्रोंकी पोल खूल रही है और उनके कई लोग कारावासमें जाएंगे यह सुनिश्चित है इसलिये उनकी आवाज़के सूर अब बदलने लगे है लेकिन कानूनसे गुजरातमें तो कोई बच नहीं सकता. इसलिये ये सब नहेरुवीयन कोंग्रेसी डर गये हैं.

इस विषयमें हमें यह देखना आवश्यक बन जाता है कि आजकी कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस) आज के दुष्कर्मोंके उच्च (निम्न) स्तर तक कैसे पहोंची?

वैसे तो बीजेपीकी सरकार और नेतागण सतर्क और सक्रिय है. शासन भी सक्रिय है. जो लोग गुजरात छोडकर गये थे उनको वापस बुलारहे है और वे वापस भी आ रहे है. गुजरातकी जनता और खास करके बीजेपी के नेतागण उन सभीका गुलाबका पुष्प देके स्वागत कर रहे है. हिन्दी भाषीयोंने ऐसा प्रेम कभी भी महाराष्ट्रमें नहीं पाया.

नहेरुवीयन कोंग्रेसका गुजरातके संदर्भमें ऐतिहासिक विवरण देखा जा सकता है.

नहेरुने महात्मा गांधीको ब्लेकमेल करके तत्काल प्रधान मंत्री पद तो ग्रहण कर लिया, लेकिन उनको तो अपनेको प्रधानमंत्रीके पद पर शाश्वत भी बनाये रखना था. और इसमें तो गांधी मददमें आने वाले नहीं थे. इस बात तो नहेरुको अच्छी तरह ज्ञात थी.

गांधी तो मर गये.

नहेरुसे भी बडे कदके सरदार पटेल एक मात्र दुश्मन थे. लेकिन नहेरुके सद्‌भाग्यसे वे भी चल बसे. नहेरुका काम ५०% तो आसान हो गया. उन्होने कोंग्रेसके संगठनका पूरा लाभ लिया.

जनता को कैसे असमंजसमें डालना और अनिर्णायक बना देना यह एक शस्त्र है. इस शस्त्रका उपयोग अंग्रेज सरकार करती रहेती थी. लेकिन गांधीकी हत्याके बाद हिन्दु विरुद्ध मुस्लिमका शस्त्र इतना धारदार रहा नहीं.

“तू नहीं तो तेरा नाम सही” नहेरु बोले

लेकिन शस्त्रका जो काम था वह “जनताका विभाजन” करना था. तो ऐसे और शस्त्र भी तो उत्पन्न किये जा सकते है.

नहेरुने सोचा, ऐसे शस्त्रको कैसे बनाया जाय और कैसे इस शस्त्रका उपयोग किया जाय. कुछ तो उन्होंने ब्रीटीश शासकोंसे शिखा था और कुछ तो उन्होंने उस समयके रुसकी सरकारी “ओन लाईन” अनुस्नातकका अभ्यास करके शिखा था. यानी कि साम्यवादी लोग जब सत्तामें आ जाते है तो सत्ता बनाये रखने के लिये जनताको असमंजसमें रखना और विभाजित रखना आवश्यक मानते है.

१९५२मे नहेरुने काश्मिर और तिबटकी हिमालयन ब्लन्डरके बाद भी चीनपरस्त नीति अपनाई, और जनताका ध्यान हटाने के लिये भाषा पर आधारित राज्योंकी रचना की. लेकिन कोई काम सीधे तरिकेसे करे तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं.

नहेरुने प्रदेशवादको उकसायाः

“मुंबई यदि महाराष्ट्रको मिलेगा तो मुज़े खुशी होगी” नहेरुने बोला.

ऐसा बोलना नहेरुके लिये आवश्यक ही नहीं था. “भाषाके आधार पर कैसे राज्योंकी रचना करना” उसकी रुपरेखा “कोंग्रेस”में उपलब्ध थी. लेकिन नहेरुका एजन्डा भीन्न था. इस बातका इसी “ब्लोग-साईट”में अन्यत्र विवरण दिया हुआ है. नहेरुका हेतु था कि मराठी भाषी और गुजराती भाषी जनतामें वैमनष्य उत्पन्न हो जाय और वह बढता ही रहे. इस प्रकार नहेरुने मराठी जनताको संदेश दिया कि गुजराती लोग ही “मुंबई” महाराष्ट्रको न मिले ऐसा चाहते है.

याद रक्खो, गुजरातके कोई भी नेताने “‘मुंबई’ गुजरातको मिले” ऐसी बात तक नहीं की थी, न तो समाचार पत्रोमें ऐसी चर्चा थी.

लेकिन नहेरुने उपरोक्त निवेदन करके मराठी भाषीयोंको गुजरातीयोंके विरुद्ध उकसाया और पचासके दशकमें मुंबईमें गुजरातीयों पर हमले करवाये और कुछ गुजरातीयोंने मुंबईसे हिजरत की.

गुजरातीयोंका संस्कार और चरित्र कैसा रहा है?

एक बात याद रक्खोः उन्नीसवे शतकके अंतर्गत, गुजरातीयोंने ही मुंबईको विकसित किया था. मुंबईकी ९० प्रतिशत मिल्कत गुजरातीयोंने बनाई थी. ७० प्रतिशत उद्योगोंके मालिक गुजराती थे. और २० प्रतिशत गुजराती लोगोंका मुंबई मातृभूमि था. “गुजराती” शब्द से मतलब है कच्छी, सोरठी, हालारी, झालावाडी, गोहिलवाडी, काठियावाडी, पारसी, सूरती, चरोतरी, बनासकांठी, साबरकांठी, पन्चमाहाली, आबु, गुजरातसे लगने वाले मारवाडी, मेवाडी आदि प्रदेश.

गुजरातीयोंने कभी परप्रांतीयों पर भेद नहीं किया. गुजरातमें ४० प्रतिशत जनसंख्या पछात दलित थे. लेकिन गुजरातीयोंने कभी परप्रांतमें जाकर, गुजरातीयोंको बुलाके, नौकरी पर नहीं रक्खा. उन्होंने तो हमेशा वहांके स्थानिक जनोकों ही व्यवसाय दिया. चाहे वह ताता स्टील हो, या मेघालय शिलोंगका “मोदी कोटेज इन्डस्ट्री” हो. गुजरातकी मानसिकता अन्य राज्योंसे भीन्न रही है.

गुजरात और मुंबई रोजगारी का हब है.

पहेलेसे ही गुजरात, मुंबई और महाराष्ट्र, व्यवसायीयोंका व्यवसाय हब है. उन्नीसवीं शताब्दीसे प्रथम अर्ध शतकसे ही अहमदाबादमें कपडेकी मिलोंमें हिन्दी-भाषी लोग काम करते है.

१९६४-६५में जब मैं जबलपुरमें था तब मेरे हिन्दीभाषी सहाध्यायी लोग बता रहे थे कि हमारे लोग, पढकर गुजरात और महाराष्ट्रमें नौकरी करने चले जाते है. गुजरातमें सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे चतूर्थ श्रेणीके कर्मचारीयोंमें हिन्दीभाषी लोगोंका बहुमत रहेता था. सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे प्रथम और द्वितीय श्रेणीके कर्मचारीयोंमे आज भी हिन्दीभाषीयोंका बहुमत होता है, वैसे तो अधिकारीयोंके लिये गुजरात एक टेन्योर क्षेत्रमाना जाता है तो भी यह हाल है.

नरेन्द्र मोदी और गुजराती

गुजराती लोग शांति प्रिय और राष्ट्रवादी है. जब नरेन्द्र मोदी जैसे कदावर नेता गुजरातके मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने कभी क्षेत्रवादको बढावा देनेका काम नहीं किया. नरेन्द्र मोदी हमेशा कहेते रहेते थे कि गुजरातके विकासमें हिन्दीभाषी और दक्षिणभारतीयोंका महान योगदान रहा है. गुजरातकी जनता उनका ऋणी है.

२००२ के चूनावमें और उसके बादके चूनावोंमें भी, नरेन्द्र मोदी, यदि चाहते तो ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु की तरह क्षेत्रवाद-भाषावादको हवा देकर उसको उछाल के  गुजराती और बिन-गुजराती जनताको भीडवा सकते थे. लेकिन ऐसी बात गुजराती जनताके डीएनए में नहीं है. और नरेन्द्र मोदीने राष्ट्रवादको गुजरातमें बनाये रक्खा है.

याद रक्खो, जब नहेरु-इन्दिराके शासनके सूर्यका मध्यान्ह काल था तब भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की (१९७१के एक दो सालके समयको छोड) गुजरातमें दाल नहीं गलती थी. वह १९८० तक कमजोर थी और मोरारजी देसाईकी कोंग्रेस (संस्था) सक्षम थी. मतलब कि, राष्ट्रवाद गुजरातमें कभी मरा नहीं, न तो कभी राष्ट्रवाद गुजरातमें कमजोर बना.

१९८०से १९९५ तक गुजरातमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन रहा लेकिन उस समय भी राष्ट्रवाद कमज़ोर पडा नहीं क्यों कि गुजरातकी नहेरुवीयन कोंग्रेसके “आका” तो नोन-गुजराती थे इसलिये “आ बैल मुज़े मार” ऐसा कैसे करते?

भाषा और क्षेत्रवादके लिये गुजरातमें जगह नहीं है;

उद्धव -बाला साहेब थाकरे, राज ठाकरे, ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु–वाले क्षेत्रवाद के लिये गुजरातमें जगह नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें गुजरातमें दंगे, और संचार बंदी तो बहोत होती रही, लेकिन कभी क्षेत्र-भाषा वादके दंगे नहीं हुए.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह संस्कृति और संस्कार है कि जूठ बार बार बोलो और चाहे वह जूठ, जूठ ही सिद्ध भी हो जाय, अपना असर कायम रखता है.

(१) पहेले उन्होंने अखलाक का किस्सा उछाला, और ठेर ठेर हमें गौवध आंदोलनके और लींचींगके किस्से प्रकाशित होते हुए दिखने लगे,

(२) फिर हमें भारतके टूकडेवाली गेंग दिखाई देने लगी और उनके और अफज़ल प्रेमी गेंगके काश्मिरसे, दिल्ली, बनारस, कलकत्ता, और हैदराबाद तकके प्रदर्शन दिखनेको मिले,

(३) फिर सियासती खूनकी घटनाएं और मान लो कि वे सब खून हिन्दुओंने ही करवायें ऐसा मानके हुए विरोध प्रदर्शन के किस्से समाचार पत्रोंमे छाने लगे,

(४) फिर सियासती पटेलोंका आरक्षणके हिंसक प्रदर्शन और मराठाओंका आरक्षण आदि के प्रदर्शनोंकी घटनाएं आपको समाचार माध्यमोंमे प्रचूर मात्रामें देखने को मिलने लगी.

(५) फिर आपको कठुआ गेंग रेप की घटनाको, कायदा-व्यवस्थाके स्थान पर, सेना और कश्मिरके मुस्लिमोंकी टकराहट, के प्रदर्शन स्वरुप घटना थी, इस बातको उजागर करती हुए समाचार देखने को मिलने लगे.

(६) अब तो समाचार पत्रोंमे हररोज कोई न कोई पन्ने पर या पन्नों पर एक नाबालीग के गेंगरेप या दुष्कर्मकी घटना चाहे उसमें सच्चाई हो या न हो, देखनेको मिलती ही है. नाम तो नहीं लिखना है इसलिये बनावटी घटनाओं का भी प्रसारण किया जा सकता है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा माहोल बनाना चाहती है कि जनताको ऐसा लगता है कि बीजेपीके शासनमें गेंग रेप, दुष्कर्म की आदत उत्पन्न हुई. और नहेरुवीयन कोंग्रेसके ७० सालके जमानेमें तो भारत एक स्वर्ग था. न कोई बेकार था, न कोई गरीब था, न कोई अनपढ था, हर घर बिजली थी, हर कोई के पास पक्का मकान था और दो खड्डेवाला संडास था, पेट्रोल मूफ्तमें मिलता था और महंगाईका नामोनिशान नहीं था. सब आनंदमंगल था. कश्मिरमें हिन्दु सुरक्षित थे और आतंकवादका तो नामोनिशान नहीं था.

ये ठाकोर लोग कौन है?

ठाकोर (ठाकोर क्षत्रीय होते है. श्री कृष्ण को भी गुजरातमें “ठाकोरजी” कहे जाते है.) वैसे वे लोग एससी/ओसी में आते हैं और कहा जाता है कि वे लोग व्यसन के आदि होते हैं.

 “नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”की तबियत गुदगुदाई

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तबियत गुदगुदायी है कि, अब वह क्षेत्रवादका शस्त्र जो उन्होंने महाराष्ट्रमें गुजरातीयोंको मराठीयोंसे अलग करनेमें किया था उस शस्त्रको अजमाया जा सकता है.

शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, नहेरुवीयन कोंग्रेसके क्रमानुसार पूत्र और पौत्र है.

ये दोनों पार्टीयां तो खूल्ले आम क्षेत्रवादकी आग लगाती है. शिवसेना कैसे बीजेपीका समर्थन करती है वह एक संशोधनका विषय है, लेकिन यदि शरद पवारको प्रधान मंत्री बननेका अवसर आयेगा तो यह शिवसेना और एमएनएस, उसके पल्लेमें बैठ जायेंगे यह बात निश्चित है. जैसे कि उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसके प्रत्याषी प्रतिभा पाटिलको समर्थन किया था.

महाराष्ट्रमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेसने क्षेत्रवादको बहेकानेका काम प्रचूर मात्रामें किया है.

पाटीदारोंके आंदोलनके परिणाम स्वरुप, ज्ञातिवादके साथ साथ अन्य कोई शस्त्र है जिससे गुजरातमें कुछ और हिंसक आंदोलन करवा सकें?

गुजरात विरुद्ध हिन्दीभाषी

गुजरातमें हिन्दीभाषी श्रम जीवी काफी मात्रामें होते है. गुजरातके विकासमें उनका योगदान काफी है.

किसीका भी परप्रांतमें नौकरी करनेका शौक नहीं होता है. जब अपने राज्यमें नौकरीके अवसर नहीं होते है तब ही मनुष्य परप्रांतमें जाता है. मैंने १९६४-६५में भी ऐसे लोगो देखे है जो युपी बिहार के थे. उनके मूँहसे सूना था कि हमारे यहां लडका एमएससीमें डीवीझन लाता है तो भी कई सालों तक बेकार रहेता है. नौकरी मिलने पर उसका भाव बढता है. ये सब तो लंबी बाते हैं लेकिन हिन्दी भाषी राज्योंमे बेकारीके कारण उनके कई लोगोंको अन्य राज्योंमें जाना पडता है.

कौन पर प्रांती है? अरे भाई, यह तो वास्तवमें घर वापसी है.

सुराष्ट्र-गुजरातका असली नाम तो है आनर्त. जिसको गुरुजनराष्ट्र भी कहा जाता था जिसमेंसे अपभ्रंश होकर गुजरात हुआ है

प्राचीन इतिहास पर यदि एक दृष्टिपात्‌ करें तो भारतमें सरस्वती नदीकी महान अद्‍भूत सुसंस्कृत सभ्यता थी. उसका बडा हिस्सा गुजरातमें ही था. गुजरातका नाम “गुरुजनराष्ट्र था”.

अगत्स्य ऋषिका आश्रम साभ्रमती (साबरमती)के किनारे पर था,

वशिष्ठ ऋषि का आश्रम अर्बुद पर्वत पर था,

सांदिपनी ऋषिका आश्रम गिरनारमें था,

भृगुरुषिका आश्रम भरुचके पास नर्मदा तट पर था,

विश्वामित्र का आश्रम विश्वामित्री नदीके मुखके पास पावापुरीमें था,

अत्री ऋषिके पूत्र, आदिगुरु दत्तात्रेय गिरनारके थे.

चंद्र वंश और सूर्यवंशके महान राजाओंकी पूण्य भूमि सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्र ही था.

सरस्वती नदीका सुखना और जलवायु परिवर्तन

जब जलवायुमें परिवर्तन हुआ तो इस संस्कृतिकी,

एक शाखा पश्चिममें ईरानसे गुजरकर तूर्क और ग्रीस और जर्मनी गई,

एक शाखा समूद्रके किनारे किनारे अरबस्तान और मीश्र गई

एक शाखा काराकोरमसे तिबट और मोंगोलिया गई,

एक शाखा पूर्वमें गंगा जमना और ब्र्ह्म पूत्रके प्रदेशोंमे गई, जो वहांसे ब्रह्मदेश गई, और वहांसे थाईलेन्ड, फिलीपाईन्स, ईन्डोनेशिया, और चीन जापान गई,

एक शाखा दक्षिण भारतमें और श्रीलंका गई.

जब सुराष्ट्र (गुरुजन राष्ट्र)का जलवायु (वातावरण) सुधरने लगा तो गंगा जमनाके प्रदेशोंमें गये लोग जो अपनी मूल भूमिके साथ संपर्कमें थे वे एक या दुसरे कारणसे घरवापसी भी करने लगे.

राम पढाईके लिये विश्वामित्रके आश्रममें आये थे,

कृष्ण भी पढाईके लिये सांदिपनी ऋषिके आश्रममें आये थे. फिर जब जरासंघका दबाव बढने लगा तो श्री कृष्ण अपने यादवोंके साथ सुराष्ट्रमें समूद्र तट पर आ गये और पूरे भारतके समूद्र तट पर यादवोंका दबदबा रहा.

ईश्वीसन की नवमी शताब्दीमें ईरानसे पारसी लोग गुजरात वापस आये थे.

ईश्वीसनकी ग्यारहवी शताब्दीमें कई (कमसे कम दो हजार कुटूंबोंको) विद्वान और चारों वेदोंके ज्ञाता ब्राह्मणोंको मूळराज सोलंकी काशीसे लेकर आया था. वे आज औदिच्य ब्राह्मणके नामसे जाने जाते है.

इसके बाद भी जनप्रवाह उत्तर भारतसे आनर्त-सुराष्ट्र में आता ही रहा है.

“स्थानांतर” यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है.

सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्रमें सबका स्वागत है. आओ यहां आके आपकी मूल

भूमिका वंदन करो और भारत वर्षका नाम उज्वल करो.

नहेरुवीयन कोंग्रेस तेरा सर्वनाश हो,

बीजेपी तेरा जय जयकार हो.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

डीबीभाई(दिव्यभास्कर की गुजराती प्रकाशन)ने क्या किया?

जो हंगामा और मारपीट ठाकोरोंने गुजरातमें की, वे “जनता”के नाम पर चढा दी, और उनको नाम दिया “आक्रोश”.

आगे तंत्रीलेखमें लिखा है

“नीतीशकुमार हवे गुजरात विरुद्ध बिहार मोडलनी चर्चा तो शरु करी दीधी छे अने तेमनी चर्चाने उठावनारा नोबेलविजेता अर्थ शास्त्र अमर्त्यसेन पण चूप छे”

यह कैसी वाक्य रचना है? इस वाक्यका क्या अर्थ है? इसका क्या संदेश है? यदि कोई भाषाशास्त्री बता पाये तो एक लाख ले जावे. यह वाक्य रचना और उसका अर्थ जनताके पल्ले तो पडता नहीं है.

डीबीभाई खूद हिन्दीभाषी है. उनको भाषा शुद्धिसे और वाक्यार्थसे कोई मतलब नहीं है. आपको एक भी पेराग्राफ बिना क्षतिवाला मिलना असंभव है. शिर्ष रेखा कैसी भी बना लो. हमें तो बीजेपीके विरुद्ध केवल ऋणात्मक वातावरण तयार करना है.

“(नहेरुवीयन) कोंग्रेसके पैसे, हमारे काम कब आयेंगे? यही तो मौका है …!!!” वर्तमान पत्रकी सोच.

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भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

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