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Posts Tagged ‘शिक्षण’

RURBAN CLUSTER ALIAS A SMART COMPLEX. A CLUSTER WITH SELF RELIANCE

स्वावलंबी संकुल

रोटी, कपडा और मकान ये प्राथमिक आवश्यकताएं है. प्रत्येक पक्ष यह आश्वासन देता है कि उसने इनके बारेमें कई कदम उठाये हैं और उसके पास भविष्यकी भी योजनाएं हैं और उसका आयोजन भी है.

शासन द्वारा जो भूमि अधिग्रहण होता था और होता है ऐसा लगता है जो निम्न लिखित प्रकारका है.

       शासन द्वारा जो ग्राम आयोजन (टाउन प्लानींग), होता है, उसमें गरीबों (पछात वर्गों) के लिये आयोजित, भूमिखंडोंमेंसे कुछ भूमिखंड आरक्षित करना होता है और उसको निम्न मूल्यसे उन पछात वर्गोंमें आबंटित किया जाता है. 

       गरीबोंको आवासके लिये भूमिके खंड दिया जाता है. जैसे कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने गुजरातमें और देशमें चूनावके समय प्रण लिया था कि यदि उसका पक्ष सत्तामें आया तो १०० चोरस मीटरके भूमिके टूकडोंका आबंटन गरीबंको निम्नतम मूल्य पर करेगा.

       शासन, गरीबोंकी झोंपडपट्टी यदि अनधिकृत नहीं है तो उसी जगह पर उसको ईंदिराआवास योजना अंतर्गत उसको धन देता है. यदि झोंपड पटी अनअधिकृत है तो उसको अधिकृत किया जाता है और वहां ही आवास योजना बनाई जाती है और उपरोक्त पछात जनसमुदायके लिये सस्ते मूल्यवाले खंडीय आवास (रेसीडेन्सीयल अपार्टमेन्ट्स), दो या तीन स्तर वाले (दो या तीन स्टोरीड क्लस्टर बील्डींग ब्लॉक) बनाया जाता हैं. उसमें आवास निर्माण कर्ताको कुछ दुकानें बनानेकी अनुमति दी जाती ताकि वह निर्माण कर्ता संविदाकारको धनलाभ मिलें.

       शासनकी अनुमतिसे, जर्जरित आवासोंका और जर्जरित भवनोंका संनिर्माण (रीडेवलपमेन्ट) करते हैं. निर्माणकर्ता संविदाकारको, भूमि और निर्माण अनुपातमें (एफ एस आई में) कुछ शिथिलीकरण होता है ताकी संविदाकार निर्माण कर्ताको लाभ पहोंचा सकें.

ठग विद्याः

ये सर्व वास्तविक समस्याका निराकरण है ही नहीं. यह तो एक ठगविद्या है.

इस ठगविद्यामें प्रचूर मात्राका अनाचार और भ्रष्टाचार होता है उतना ही नहीं ये नवसंरचना की अनुमति आयोजनके लिये असुनियोजित और अयोग्य रीतिसे धनलाभके लिये सुनियोजित बने ऐसी क्षतिपूर्ण लेख बनने दिये जाते है. इसमें जनप्रतिनिधिगण, नगरपालिका आयुक्त से लेकर कर्मचारीगण, प्रतिलिप्याधिकारी (रजिस्ट्रार) और निर्माणकर्ता भी संमिलित होता है. इतना ही नहीं नगरपालिकाके नवसंरचना के नियम क्षतियुक्त होनेसे और इसके अतिरिक्त भी अन्य समस्याएं भी पैदा होती हैं. मुंबई महानगर पालिका इसका उत्कृष्ठ उदाहरण है.

 हम ऐसी समस्याओंकी चर्चा यहां पर नहीं करेंगे. हम केवल नवनिर्माण अर्थात स्वावलंबी संकुल की ही चर्चा करेंगे.

स्मार्ट सीटी और स्मार्ट ग्राम सर्वाधिक सुगमतासे, और लघुतम मूल्यसे कैसे निर्माण किया जा सकता है और यह कैसे हो सकता है उसकी चर्चा करेंगे.

आवासोंका वर्गीकरणः

       भिक्षुकः घर नहीं है, बेकार है, पैसे नहीं है, निराश्रित है, जिसके नागरिकत्वके बारेंमें जानकारी नही है, उसको सिर्फ सोनेकी और नित्यकर्मकी सुविधा मूफ्तमें दी जायेगी.

अस्थायी आवास

       निर्माण कर्ताको निर्माणके कार्यमें श्रम नियम के अनुसार श्रमजिवीयोंको अस्थायी रुपसे नियोजित करना पडता है. और इन श्रमजिवीयोंको आवास देना अनिवार्य ह्ता हैकिन्तु निर्माण कर्ता संविदाकार और श्रम आयुक्त कार्यालयकी संमिलित भ्रष्टाचार के कारण श्रमजिवीयोंको नियम अनुसार आवास और सुविधाएं मिलती नहीं है. शासनके लिये यह अनिवार्य बनना आवश्यक है कि इन श्रमजिवीयोंको इन नवसंरचना द्वारा निर्मित संकुलमें सुनिश्चित आवास दिया जाय.  निर्माण के लिये अनियतकालके लिये रख्खे गये इन श्रमजिवीयोंके लिये निवास जिसका भाट (किराया, रेन्ट), संविदकको (कोन्ट्राक्टरको) कार्यसूचनाके (वर्क ओर्डरके) अनुसारके समयके लिये देना पडेगा. सर्वथा एक मासका पूर्व ही देना पडेगा.

       स्थायी निवासः जिन्होने अपना जर्जरित स्वकीय या भाटीय, (रेन्टल, किरायेका), या अनधिकृत, निवास खाली किया हो, या जिनको स्वेच्छासे क्रयण (परचेझ) करना हो, उनको यहां पर कोष्ठ या कोष्ठसमूह, विक्रयमें, उनकी मूल्य देनेकी क्षमताके अनुसार दिया जायेगा. यदि वे इच्छे तो क्रयण (परचेझ) से आवासको क्रयण (परचेझ) करें, या वे चाहे तो क्रयण तो भाटीय रुपसे (किरायाके अनुसार) सुनिश्चित नियमोंके आधार पर आवास ग्रहण करेंगे.

       व्यवसायी कोष्ठ या कोष्ठ समूहः जिनको कलाकारीगीरीके उत्पादन एवं विक्रय,  गृह उद्योग और उन उत्पादनों कि विक्रय, सूचित यंत्र और उनकी अनुरक्षण (रीपेर एवं मेन्टेनन्स), वाणीज्य व्यवसाय, शासन सेवाएं, परामर्श, संस्था कार्यालय, शिक्षण संस्थाएं, अनुरक्षण सेवाएं आदिके के लिये स्थल चाहिये, तो उनको वर्गीकृत उपयोगके आधारपर सुनिश्चितरुपसे बनाये नियमो द्वारा पूर्वनियोजित और आरक्षित कोष्ठ और कोष्ठसमूह, दिया जायेगा.

       पशुपालन कोष्ठ और कोष्ठ समूहः जो लोग पशुपालन करना चाहते हैं वे आवास एवं पशु पालन के लिये पास पास वाले कोष्ठ में कर सकते है. जिनके लिये भूमिगत कोष्ठ या कोष्ठ समूह उपलब्ध कराया जायेगा.

       जिनके गृहउद्योगसे ध्वनि प्रदूषण होता हो उनको भी भूमिगत कोष्ठ या कोष्ठ समूह उपलब्ध कराया जायेगा. उनके लिये पासवाले कोष्ठ, कोष्ठ समूह निवासके लिये यदि शक्य है तो उपलब्ध कराया जायेगा.

कोष्ठ क्या होता है?

कोष्ठ, अनेक स्तरीय (मल्टीस्टोरीड) बहुलक्षी हेतुवाला एक प्रचंड संकुलका एकम होता है.

प्रकोष्ठ

कोष्ठ,  पांच मीटर लंबा और पांच मीटर चौडा खुल्ला खंड होता है. उसको दिवारें नहीं होती है. कोष्ठोंको भीन्न भीन्न प्रकारसे संमिलन करनेसे (समुच्चयसे) हम भीन्न भीन्न विस्तारके आवास और स्थल जैसे कि, निवास, अस्थायी लोगोंके आवास, कार्यालय, गृह उद्योग, शाळाएं, गौशाळा, वाहन पार्कींग, दुकान मॉल, सभा खंड आदि बना सकते हैं.

एक प्रकोष्ठ कैसा होता है, यह निम्न आकृतिमें प्रदर्शित किया है. पडौसी के साथ जो समान भित्ति (दिवार) है वह ही केवल भौतिक रुपसे दी जाती है. अन्य सभी भित्ति जैसे कि बाह्य और आंतरिक मार्ग के समान्तर भित्ति के स्थान पर  शक्तिशाली निष्कलंक इस्पातकी (पोलादकी) जाली जो स्तंभ निर्माणसे संलग्न है. यदि निवासी इच्छे तो स्वयंके कोष्ठके अंदर एक अधिक भित्ति बना सकता है. लेकिन इस जाली को निष्कासित नहीं कर सकता. यह भित्ति उसके स्वामित्वकी सीमा है.

ग्रामकी एक संकुलके स्वरुपमें नवसंरचना क्यों?

भूमि बना नहीं सकतें किन्तु सुचारु रुपसे भूमिका उपयोग करनेसे भूमि प्राप्त की जा सकती है.

भूमि कैसे प्राप्त करें?

सर्वप्रथम एक ऐसा भूखंड प्राप्त  किया जाय, जो सरलतासे उपलब्ध हो, ताकि किसीको स्थानांतरका कष्ट हो.

हमें ५०० मिटर लंबा और ५०० मिटर चौडा या संरचनाके अनुरुप एक भू खंड उपलब्ध करना पडेगा. यह भूखंड खुल्ला मैदान हो, असाध्य भूमि हो, असमतल भूमि हो या सुलभ हो और ग्राम या सुचित नवसंरचना से संबंधित जनसमुदायसे समिप हो.

इस भूमिखंडके उपर हम एक ग्राम संकुल बनायेंगे जिसमें 

एक ग्राम एक नगरका भौगोलिक विस्तार जो नवसंरचना के लिये सुचित है. १००० से लेकर ५००० और १०००० तककी जनसंख्या वाले भौगोलिक विस्तारके जनसमुदायको नवसंरचित संकुलमें स्थानांतरित कर सकते है. एक शहरका भौगोलिक विस्तार जिसकी जनसंख्या १००० से १०००० है उसको एक संकुलमें परिवरित कर सकते हैं.

उपरोक्त भौगोलिक विस्तारके एतत कालिन निवासीयोंको और व्यवसायीयोंको नवरचित प्रकोष्ठ प्रकोष्ठ समूह को आबंटित करनेके नियम बनाये जायेंगे.

शासन प्रत्येक कुटुम्ब और व्यवसायीको प्रकोष्ठ (खंड) या प्रकोष्ठसमूह देगा, जो जर्जरित या लघुस्तरीय मकान, या झोंपड पट्टी अनाधिकृत भूमिका उपयोग कर रहे है

संपूर्ण स्वावलंबन इस ईन्टरनेटके युगमें शक्य नहीं है. किन्तु ७५ से ८० प्रतिशत स्वावलंबन शक्य है.

कौनसी वस्तुएं उपभोग्य वस्तुओंका समावेश किया जा शकता है?

उत्पादनः सब्जी, अन्न (आंशिक), फल (आंशिक), खाद्य तेल, अखाद्य तेल, मध, पुष्प, वस्त्र, दूध, दूधका अन्य उत्पादन, गेस, उर्जा (आंशिक), पशु, खाद, लकडी, चर्म (आंशिक)… किन्तु अधिक स्वावलंबनता प्रयोजनेके लिये स्वावलंबन वर्तुल उसके आसपासके विस्तारको संमिलित करके भूमिजन्य उत्पादनोंकी दिशामें प्रगति कर शकते हैं. (अनुसंधान “मेरे स्वप्नका भारत” लेखक महात्मा गांधीका वाचन किया जाय).

शिक्षणः शिशुविहार, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, यंत्र (घरेलु, कृषि, वाहन, उर्जा) कौशल्य, हस्तकौशल्य, व्यायाम, योग, खेल, कला, उत्पादन, विक्री, संचालन, अनुरक्षण, स्वच्छता, कौशल्य, संचय, सुरक्षा,

उद्योग, व्यवसाय और सेवाः गृह उद्योग, कृषि, कृषि उद्योग, कृषि आधारित उद्योग, कलाकौशल्यसंचय, पशुपालन, अप्रणालिगत उर्जा उद्योग, अनुरक्षण, विक्री, सरकारी सेवाएं एवं सुरक्षा (न्याय, जनगणना, चूनाव, माहिति संचय और प्रदान, रेकर्ड अनुरक्षण और सुधार, शासन और अनुशासन, प्राथमिक आरोग्य, चिकित्सालय, ऋग्णालय, स्वच्छता, करसंचय, सुरक्षा), शिक्षा, वाहनव्यवहार, जलपुनचक्रण, वर्षा जल संचय, जल शुद्धिकरण, कूडा प्रबंधन, परामर्श,

ग्रामसंकुल संरचना और सुवीधाओंका प्रबंधन कैसे किया जायेगा?

     प्रेत्येक कुटुंबको एक प्रकोष्ठ या प्रकोष्ठ समूह उनकी क्षमताके आधार पर मिलेगा,

     हरेक निवासमेंसे आकाश दिखायी देगा, उसमें हवा और प्रकाश रहेगा,

     हरेक निवासमें पानीकी सुविधा होगी,

     हरेक निवासमें गोबरगेस उर्जा या प्राकृतिक गेस की सुविधा उपलब्ध होगी,

     हरेक निवासमें विद्युत होगी चाहे वह परंपरागत स्रोतसे हो या परंपरागत स्रोत से हो.

     हरेक निवासमें पौधे लगानेकी सुविधा होगी,

     हरेक निवासमें पानीकी निष्कासन व्यवस्था (ड्रेईन) होगी,

     हरेक निवास अनधिकृत विस्तरणसे मूक्त रहे और अनधिकृत जगह पर अतिक्रमण कर सके ऐसी उसकी रचना की जायेगी. कोई भी उपयोग कर्ता कूडा कचरा या गंदगी करे और कर सकें वैसी परिस्थिति और रचना की जायेगी.

     प्रकोष्ठ समूह यानी कि संकुलकी आकृति ऐसी रहेगी कि सभी उपयोग कर्ताओंको अन्योन्य सहायता और सामाजिक जीवनकी अनुभूति मिल सके.

१०    हरेक आंतरिक मार्ग (पेसेज, लोबी) पर सीसी टीवी केमेरा लगे होगे, जिससे नियमोंका भंग करनेवालोंका, जैसे कि आतंरिक मार्ग पर अतिक्रमण करना, कूडा फैंकना, लडना, मारना आदि दुष्कृत्योंपर दोषीको दंडित किया जा सके.

११    संकुलमें प्रवेश हमेशा विजाणुं अभिज्ञानपत्र (इलेक्ट्रोनिक आईडेन्टीटी कार्ड) या निर्देशिका अंगुलीके अभिज्ञानके आधार पर होगी. संकुलके आगंतुक प्रवासीको उसके अभिज्ञान पत्रके आधारपर प्रवेश मिलेगा. हरेक आवास, दुकान आतंरिक मार्ग आदिका यातायात सीसीटीवी केमेरासे चित्रांकित भी रहेगा और आगंतुक प्रवासीका आगमन और निष्कास सुरक्षा कक्षमें लेखांकित भी रहेगा.

१२    हरेक विक्रेताकी दुकान या व्यवसायीका उद्यमस्थलके उपर सुनिश्चित कदकी तख्ती रहेगी उसके उपर उस स्थानके स्वामी (ओनर)का नाम, पत्रव्यवहारका पता और उसकी संचार प्रौद्योगिकाका (वेब् साईटका) नाम लिखा रहेगा. संकुलके हर व्यवसायिक स्थानका, सेवाका, कार्यालयका, एक संचार प्रौद्योगिकाका (वेब् साईटका) होना अनिवार्य होगा. उस संचार प्रौद्योगिका (वेब् साईटका)में क्या क्या माहिति होना अनिवार्य है उसके नियम शासन बनायेगा. ताकि हर व्यवसाय और सेवाएं पारदर्शी रहे.

१३    संकुलके बाह्य स्थल पर जनसाधारण यातायातका स्थानक (बस स्टेन्ड) होगा, जहांसे संकुलके निवासी, समीपके बडे स्थानक पर जा सकेंगे.

१४    संकुलके उपर और संकुलके बाह्य स्थंभो पर, सौर उर्जाको ग्रहण करने के लिये सूर्यकोषकी सौर सरणीयां (सोलर पेनल) लगेंगी.

१५    संकुलमें वर्षाका पानी संचय करनेकी सुविधा रहेगी

१६    संकुलमें निष्कासित जल का जलपुनचक्रण करनेकी और कूडा(वेस्ट), गोबर (एनीमल डन्ग), प्राणीज अपव्यय आदिमेंसे खाद बनानेके संयंत्र होगे. पुनश्चक्रणका काम (रीसायकलींगका कामया तो शासन के अंतर्गत होगा या तो निजी संस्थाके अंतर्गत रहेगा. यदि निजी संस्था यह काम करेगी तो इसके उपर शासनका निरीक्षण रहेगा

१७    संकुलमें दो शासनाधिकारीके कार्यालय होगेः

एक कार्यालय संकुलसे संलग्न प्रत्येक आलेखोंखको लेखांकित रखना, जैसे कि, प्रकोष्ठोंका आबंटन, प्रकोष्ठोंका  हस्तांतरण, प्रकोष्ठोंका आदानप्रदान, उनके संलग्न अनुमति पत्र देना, निवासीयोंका विवरण, संकुल प्रवेशकी अनुमति, सुरक्षा, मतदाता सूची बनाना और उसको अद्यतन रखना, निवासीयोंकी सभा करना, सभाका संचालन करना, चूनावके समय पर हरेक प्रत्याशीको एक मंचपर लाके व्याख्यान करवाना, मत गणना करना, सुरक्षा नियमोंके पालनमें क्षति करने वालोंको, नाधिकारितासे स्थानका उपयोग रनेवालोंको … आदि अपराधीयोंको दंडित करना, कर (टेक्ष), और भाट(रेन्ट) के व्यतिक्रमीको (डीफॉल्टरको), दोषीयोंको निष्कासित करना और को भिक्षुक आवासमें भेज देना या तो निम्न स्तरीय आवास में स्थानांतर करवाना,  आदिके लिये उत्तरदायी होगा.

१८    द्वितीय अधिकारीका कार्यालयः करप्राप्ति (टेक्ष कलेक्सन), दंडप्राप्ति, भाट प्राप्ति [(रेन्ट कलेक्सन) [यदि शासनने भाट (रेन्ट) पर दिया है तो], संकुलका अनुरक्षण (मेन्टेनन्स), संकुलके यंत्रोपर अवलोकन और अनुरक्षण, स्वच्छता, आदि संमिलित होगा और इन सबके लिये उत्तरदेय होगा.

एक नवसंरचित संकुलका विवरणः कोष्ठ, संकुलका एकम है. इसके समुच्चयसे आवास, उद्योग, सेवा, आतंरिक यातायात पथ ( कोमन पेसेजआदि नते हैं.

 आवास एवं व्यवसाय ग्राम संकुल

यह संकुलका आकर भूखंडके आधारपर सुनिश्चित किया जा सकता है.

संरचनाके आकार

भीन्न भीन्न आकार वाले ये संरचना निर्माण का एक चौरस एक प्रकोष्ठ दर्शाता नहीं है. ये केवल आकार ही है और परिमाण के अनुरुप और प्रकोष्ठकी क्रमसंख्यासे भी अनुरुप नहीं है.जो भूखंड उपलब्ध है उसके अनुरुप संरचनाका आकार निश्चित किया जा सकता है.

संरचना निर्माण के घटक कौन कौन होते है?

संरचनाके घटक पूर्व निर्मित स्थंभ (कोलम, पीलर), और फलककी ईकाईयां है. ये सब वज्रचूर्ण (सीमेन्ट) और इस्पात सलाखाओंके सुभग संमिलित रचना करनेसे (आरसीसी वर्कसे) निर्मित होती है.

पूर्व निर्मित इकाईयां 

मुख्य ध्येय को ध्यानमें रखते हुए हम अनेक आकृतिके ग्राम संकुल बना सकते है. इस ग्राम संकुलोंसे यातायातकी समस्याका पर्याप्त सीमा तक समाधान हो जयेगा. झोंपड पट्टी, अतिक्रमण, घुसखोरी, अराजकता, चोरी, डकैती, आदिकी समस्यांएं नष्ट हो जायेगी. सुरक्षा क्षतिहीन हो जायेगी, जनगणना अद्यतन अवस्थामें रहेगी. मिल्कतके दुराचार और भ्रष्टाचार एवं उसके कारण कालाधनका निर्माण आदि समस्याएं नष्ट हो जायेगी. चूनाव प्रचार, उसमें होनेवाली धांधलीका निर्मूलन, मतगणना, आदि सब सरल बनेगा. चूनाव खर्च शून्यके बराबर किया जा सकता है. क्यों कि निर्वाचन अधिकारी व्याख्यान मंच उपलब्ध करायेगा.

यह स्मार्ट ग्राम की नवसंरचना की रुपरेखा है और महात्मा गांधीके स्वप्नके भारतके अनुरुप है. इसमें स्ववलंबन भी है और एवं आधुनिक भी है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – १

प्रथम तो हमें यह समझना चाहिये कि हिन्दु और मुस्लिम कौन है?

ALL THE MUGALS WERE NOT COMMUNAL

यदि हम १८५७ के स्वातंत्र्य संग्रामकी मानसिकतामें अवलोकन करे तो हिन्दु और मुस्लिम दोनों हिन्दुस्तानी है. जब भी कोई एक जन समुदाय एक स्थानसे दुसरे स्थान पर जाता है तो वह समुदाय वहांके रहेनेवालोंसे हिलमिल जानेकी कोशिस करता है. यदि जानेवाला समुदाय शासकके रुपमें जाता है तो वह अपनी आदतें मूलनिवासीयों पर लादें ये हमेशा अवश्यक नहीं है. इस बातके उपर हम चर्चा नहीं करेंगे. लेकिन संक्षिप्तमें इतना तो कह सकते है कि तथा कथित संघर्षके बाद भी इ.स. १७०० या उसके पहेले ही हिन्दु और मुस्लिम एक दुसरेसे मिल गये थे. इसका श्रेष्ठ उदाहरण यह है कि, बहादुरशाह जफर के नेतृत्वमें हिन्दु और मुसलमानोंने अंग्रेज सरकारसे विप्लव किया था. और यह भी तय था कि सभी राजा, बहादुर शाह जफरके सार्वभौमत्वके अंतर्गत राज करेंगे.

अब यह बहादुर शाह जफर कौन था?

यह बहादुर शाह जफर मुगलवंशका बादशाह था. उसके राज्य की सीमा लालकिले की दिवारें थीं. और उतनी ही उसके सार्वभौमत्वकी सीमा थी. यह होते हुए भी सभी हिन्दु और मुस्लिम राजाओंने बहादुरशाह जफर का सार्वभौमत्व स्विकार करके मुगल साम्राज्यकी पुनर्स्थापनाका निर्णय किया था. इससे यह तो सिद्ध होता है कि हिन्दुओंकी और मुस्लिमों की मानसिकता एक दुसरेके सामने विरोधकी नहीं थी.

शिवाजीको अधिकृतमान न मिला तो उन्होने दरबारका त्याग किया

आजकी तारिखमें हिन्दुओंके हिसाबसे माना जाता है कि मुस्लिम बादशाहोंने हिन्दु प्रजा पर अति भारी यातनाएं दी है और जिन हिन्दुओंने इस्लामको स्विकारा नहीं उनका अति मात्रामें वध किया था. इस बातमें कुछ अंश तक सच्चाई होगी लेकिन सच्चाई उतनी नहीं कि दोनो मिल न पायें. अगर ऐसा होता तो औरंगझेबके सैन्यमें हिन्दु सैनिक और सरदार न होते और शिवाजीके सैन्यमें मुस्लिम सैनिक और सरदार न होते. शिवाजी मुगल स्टाईल की पगडी न पहेनते, और औरंगझेब शिवाजीके पोते शाहुको उसकी जागीर वापस नहीं करता. मुस्लिम राजाओंने अगर अत्याचार किया है तो विशेषतः शासक होने के नाते किया हो ऐसा भी हो सकता है. जो अत्याचारी शासक होता है उसको या तो उसके अधिकारीयोंको तो अपना उल्लु सिधा करनेके लिये बहाना चाहिये.

अब एक बात याद करो. २०वीं सदीमें समाचार और प्रचार माध्यम ठीक ठीक विकसित हुए है. सत्य और असत्य दोनोंका प्रसारण हो सकता है. लेकिन असत्य बात ज्यादा समयके लिये स्थायी नहीं रहेगी. सत्य तो सामने आयेगा ही. तो भी विश्वसनीय बननेमें असत्यको काफि महेनत करनी पडती है. वैसा ही सत्यके बारेमें है.

इन्दिरा गांधीके उच्चारणोंको याद करो.
१९७५में इन्दिरा गांधीने अपनी कुर्सी बचानेके लिये प्रचूर मात्रामें गुन्हाहित काम किये और करवाये. समाचार प्रसार माध्यम भी डरके मारे कुछ भी बोलते नहीं थे. लेकिन जब इन्दिरा गांधीके शासनका पतन हुआ और शाह आयोग ने जब अपना जांचका काम शुरु किया तो अधिकारीयोंने बोला कि उन्होने जो कुछ भी किया वह उपरकी आज्ञाके अनुसार किया. इन्दिराने खुल्ले आम कहा कि उसने ऐसी कोई आज्ञा दी नहीं थी. उसने तो संविधानके अंतर्गत ही आचार करनेका बोला था. अब ये दोनों अर्ध सत्य हैं. इन्दिरा गांधी और अधिकारीयोंने एक दुसरेसे अलग अलग और कभी साथमें भी अपना उल्लु सीधा करने की कोशिस की थी, और उस हिसाबसे काम किया था.

अपना उल्लु सीधा करो

मुगल साम्राट का समय लोकशाहीका और संविधान वाला समय तो था नहीं. ज्यादातर अधिकारी अपना उल्लु सीधा करनेकी सोचते है. मुगलके समयमें समाचार प्रसारके माध्यम इतने त्वरित तो थे नहीं. अफवाहें और बढा चढा कर भी और दबाके भी फैलाई जा सकती है. सुबेदार अपना धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और अंगत स्वार्थ के लिये अपना उल्लु सिधा करते रहे होगे इस बातको नकारा नहीं जा सकता.

औरंगझेब एक नेक बादशाह था वह साम्राटकी संपत्तिको जनता की संपत्ति समजता था. और वह खुद टोपीयां और टोकरीयां बनाके बेचता था और उस पैसे से अपना गुजारा करता था. उसका पूर्वज शाहजहां एक उडाउ शासक था. औरंगझेबको अपने सुबेदारोंकी और अधिकारीयोंकी उडाऊगीरी पसंद न हो यह बात संभव है. सुबेदार और अधिकारी गण भी औरंगझेबसे खुश न हो यह भी संभव है. इस लिये औरंगझेबके नामसे घोषित अत्याचारमें औरंगझेब खुदका कितना हिस्सा था यह संशोधनका विषय है. मान लिजिये औरंगझेब धर्मान्ध था. लेकिन सभी मुघल या मुस्लिम राजा धर्मान्ध नहीं थे. शेरशाह, अकबर और दारा पूर्ण रुपसे सर्वधर्म समभाव रखते थे. अन्य एक बात भी है, कि धर्मभीरु राजा अकेला औरंगझेब ही था यह बात भी सही नहीं है. कई खलिफे हुए जो सादगीमें, सुजनतामें और मानवतामें मानते थे. कमसे कम औरंगझेबके नामके आधार पर हम आजकी तारिखमें इस्लामके विरुद्ध मानसिकता रक्खें वह योग्य नहीं है. शिवाजी के भाग जाने के बाद औरंगझेब धर्मान्ध हो गया. इ.स. १६६६ से १६९० तकके समयमें औरंगझेबने कई सारे प्रमुख मंदिर तोडे थे. खास करके काशी विश्वनाथका मंदिर, सोमनाथ मंदिर और केशव मंदिर उसने तुडवाया थे. दक्षिण भारतके मंदिर जो मजबुत पत्थरके थे और बंद थे वे औरंगझेबके सेनापति तोड नहीं पाये थे. उसके यह एक जघन्य अपराध था. ऐसा पाया गया है कि उसके एक सलाहकारने उसको ऐसी सलाह दी थी कि नास्तिकोंको मुसलमान करना ही चाहिये. दो रुपया प्रति माह से लेकर एक साथ १००० रुपया प्रलोभन इस्लाम कबुल करने पर दिया जाता था. लेकिन जो औरंगझेबके खिलाफ गये थे उनका कत्ल किया जाता था. इस वजहसे उसके साम्राज्यका पतन हुआ था. क्यों कि सेक्युलर मुस्लिम और हिन्दु उसके सामने पड गये थे. औरंगझेबने कुछ मंदिर बनवाये भी थे और हिन्दुओंके (परधर्मीयोंके) उपर हुए अन्यायोंवाली समस्याओंका समाधान न्याय पूर्वक किया था. कोई जगह नहीं भी किया होगा. लेकिन हिन्दुओंके प्रमुख मंदिरोंको तुडवानेके बाद उसके अच्छे काम भूलाये गये. मुस्लिम और हिन्दु दोनों राजाओंने मिलकर उसका साम्राज्यको तहस नहस कर दिया. सबसे ज्यादा महत्व पूर्ण यह बात है कि उस समयके सभी राजाएं मुगल साम्राज्यके प्रति आदर रखते थे. और ऐसा होने के कारण ही औरंगझेबके बाद मुगल साम्राटके सार्वभौमत्वको माननेके लिये तैयार हुए थे. हिन्दु और मुस्लिम दोनों हिन्दुस्तानी थे. अगर हम सेक्युलर है और संविधान भी धर्म और जातिके आधार पर भेद नहीं रखनेका आग्रह रखता है, तो क्यूं हम सब आजकी तारिखमें हिन्दुस्तानी नहीं बन सकते? यह प्रश्न हम सबको अपने आप से पूछना चाहिये.
चलो हम इसमें क्या समस्यायें है वह देखें.

प्रवर्तमान कोमवादी मानसिकता सबसे बडी समस्या है.

कोमवाद धर्मके कारण है ऐसा हम मानते है. अगर यह बात सही है तो हिन्दु, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, शिख, इसाई, यहुदियोंके बीचमें समान रुपसे टकराव होता. कमसे कम हिन्दु, मुस्लिम और इसाईयोंके बीच तो टकराव होता ही. किन्तु बीलकुल ऐसा नहीं है. पाकिस्तानमें शियां और सुन्नी के बिचमें टकराव है. शियां और सुन्नीमें टकराव कब होता है या तो कब हो सकता है? अगर शियां और सुन्नी भेदभाव की नीति अपनावे तो ऐसा हो सकता है.

कोई भेदभाव की नीति क्यों अपनायेगा?

अगर अवसर कम है और अवसरका लाभ उठाने वाले ज्यादा है तो मनुष्य खुदको जो व्यक्ति ज्यादा पसंद है उसको लाभ देनेका प्रायः सोचता है.

अवसर क्या होता है?

अवसर होता है उपयुक्त व्यक्तियोंके सामने सहाय, संवर्धन, व्यवसाय, संपत्ति, ज्ञान, सुविधा, धन, वेतन देना दिलानेका प्रमाण (जत्था) होता है. अगर अवसर ज्यादा है तो भेदभाव की समस्या उत्पन्न होती नहीं है. लेकिन अगर अवसर कम है, और उपयुक्त यक्ति ज्यादा है तो, देनेवाला या दिलानेवाला जो मनुष्य है, कोई न कोई आधार बनाकर भेदभाव के लिये प्रवृत्त होता है.
इस समस्याका समाधान है अवसर बढाना.

अवसर कैसे बढाये जा सकते है?

प्राकृतिक स्रोतोंका, ज्ञानके स्रोतोंका और उपभोग्य वस्तुओंका उत्पादन करने वाले स्रोतोंमें विकास करनेसे अवसर बढाये जा सकते है. अगर यह होता है तो भेदभावकी कम और नगण्य शक्यता रहती है.

अवसर रातोंरात पैदा नहीं किये जा सकते है यह एक सत्य है.

अवसर और व्यक्तिओंका असंतुलन दूर करनेके लिये अनियतकाल भी नहीं लगता, यह भी एक सत्य है.

जैसे हमारे देशमें एक ही वंशके शासकोंने ६० साल केन्द्रमें राज किया और नीति-नियम भी उन्होने ही बनाये थे, तो भी शासक की खुदकी तरफसे भेदभावकी नीति चालु रही. अगर नीति नियम सही है, उसका अमल सही है और मानवीय दृष्टि भी रक्खी गई है तो आरक्षण और विशेष अधिकार की १० सालसे ज्यादा समय के लिये आवश्यकता रहेती ही नहीं है.

जो देश गरीब है और जहां अवसर कम है, वहां हमेशा दो या ज्यादा युथों में टकराव रहेता है. युएस में और विकसित देशोंमें युथोंके बीच टकराव कम रहेता है. भारत, पाकिस्तान, बार्मा, श्री लंका, बांग्लादेश, तिबेट, चीन आदि देशोंमें युथोंके बीच टकराव ज्यादा रहेता है. सामाजिक सुरक्षाके प्रति शासकका रवैया भी इसमें काम करता है. यानी की, अगर एक युथ या व्यक्ति के उपर दुसरेकी अपेक्षा भेदभाव पूर्ण रवैया शासक ही बडी निष्ठुरतासे अपनाता है तो जो पीडित है उसको अपना मनोभाव प्रगट करनेका हक्क ही नहीं होता है तो कुछ कम ऐतिहासिक समयके अंतर्गत प्रत्यक्ष शांति दिखाई देती है लेकिन प्रच्छन्न अशांति है. कभी भी योग्य समय आने पर वहां विस्फोट होता है.

अगर शिक्षा-ज्ञान सही है, अवसरकी कमी नहीं तो युथोंकी भीन्नता वैविध्यपूर्ण सुंदरतामें बदल जाती है. और सब उसका आनंद लेते है.

भारतमें अवसर की कमी क्यों है?

भारतमें अवसर की कमीका कारण क्षतियुक्त शिक्षण और अ-शिक्षण के कारण उत्पन्न हुई मानसिकता है. और ईसने उत्पादन और वितरणके तरिके ऐसे लागु किया कि अवसर, व्यक्ति और संवाद असंतुलित हो जाय.

शिक्षणने क्या मानसिकता बनाई?

मेकोलेने एक ऐसी शिक्षण प्रणाली स्थापितकी जिसका सांस्कृतिक अभ्यासक्रम पूर्वनियोजित रुपसे भ्रष्ट था. मेक्स मुलरने अपने अंतिम समयमें स्विकार कर लिया था कि, भारतके लोगोंको कुछ भी शिखानेकी आवश्यक नहीं. उनकी ज्ञान प्रणाली श्रेष्ठ है और वह उनकी खुदकी है. उनकी संस्कृति हमसे कहीं ज्यादा विकसित है और वे कहीं बाहरके प्रदेशसे आये नहीं थे.

लेकिन मेकोलेको लगा कि अगर इन लोगों पर राज करना है तो इनकी मानसिकता भ्रष्ट करनी पडेगी. इस लिये ऐसे पूर्व सिद्धांत बनाओ कि इन लोगोंको लगे कि उनकी कक्षा हमसे निम्न कोटिकी है और हम उच्च कोटी के है. और ऐसा करनेमें ऐसे कुतर्क भी लगाओ की वे लोग खो जाय. उनको पहेले तो उनके खुदके सांस्कृतिक वैचारिक और तार्किक धरोहरसे अलग कर दो. फिर हमारी दी हुई शिक्षा वालोंको ज्यादा अवसर प्रदान करो और उनको सुविधाएं भी ज्यादा दो.

अंग्रेजोंने भारतको दो बातें सिखाई.

भारतमें कई जातियां है. आर्य, द्रविड, आदिवासी. आदिवासी यहां के मूल निवासी है. द्रविड कई हजारों साल पहेले आये. उन्होने देश पर कबजा कर लिया. और एक विकसित संस्कृति की स्थापना की. उसके बाद एक भ्रमण शील, आर्य नामकी जाति आयी. वह पूर्व युरोप या पश्चिम एशियासे निकली. एक शाखा ग्रीसमें गई. एक शाखा इरानमें गयी. उसमेंसे एक प्रशाखा इरानमें थोडा रुक कर भारत गई. उन्होने द्रविड संस्कृतिका ध्वंष किया. उनके नगरोंको तोड दिया. उनको दास बनाया. बादमें यह आर्य जाति भारतमें स्थिर हुई. और दोनों कुछ हद तक मिल गये. ग्रीक राजाएं भारत पर आक्रमण करते रहे. कुछ संस्कृतिका आदान प्रदान भी हुआ. बादमें शक हुण, गुज्जर, पहलव आये. वे मिलगये. अंतमें मुसलमान आये.

मुस्लिम जाति सबसे अलग थी

यह मुस्लिम जाति सबसे अलग थी. आचार विचार और रहन सहनमें भी भीन्न थी. यह भारतके लोगोंसे हर तरहसे भीन्न थी इसलिये वे अलग ही रही. ईन्होने कई अत्याचार किये.

फिर इन अंग्रेजोंने आदिवासीयोंको कहा कि अब हम आये हैं. आप इन लोगोंसे अलग है. आपका इस देश पर ज्यादा अधिकार है. हम भी आर्य है. लेकिन हम भारतीय आर्योंसे अलग है. हम सुसंस्कृत है. हम आपको गुलाम नहीं बनायेंगे. आप हमारा धर्म स्विकार करो. हम आपका उद्धार करेंगे.

दक्षिण भरतीयोंसे कहा. यह आर्य तो आपके परापूर्वके आदि दुश्मन है. उन्होने आपके धर्म को आपकी संस्कृतिको, आपकी कला को आपके नगरोंको ध्वस्त किया है. आप तो उच्चा संस्कृतिकी धरोहर वाले है. आपका सबकुछ अलग है. भाषा और लिपि भी अलग है. आप हमारी शिक्षा ग्रहण करो. और इन आर्योंकी हरबात न मानो. ये लोग तो धुमक्कड, असंस्कृत, तोडफोड करनेवाले और आतंकी थे.

मुसलमानोंसे यह कहा गया कि आप तो विश्व विजयी थे. आपने तो भारत पर १२०० साल शासन किया है. ये भारतके लोग तो गंवार थे. इनके पास तो कहेनेके लिये भी कुछ भी नहीं था. ये लोग तो अग्निसे डर कर अग्निकी पूजा करते है. सूर्य जो आगका गोला है उसकी पूजा करते है. हवा, पानी, नदी जैसे बेजान तत्वोकी पूजा करते है. शिश्न की और अ योनी की पूजा करते हैं. ये लोग पशुओंकी और गंदी चीजोंकी भी पूजा करते है. इनके भगवान भी देखो कितने विचीत्र है? वे अंदर अंदर लडते भी हैं और गंदी आदतों वाले भी है. उनके मंदिरोंके शिल्प देखो उसमें कितनी बिभत्सता है.

इनके पास क्या था? कुछ भी नहीं. आपने भारतमें, ताज महाल, लालकिल्ला, फत्तेहपुर सिक्री, कुतुबमिनार, मकबरा, और क्या क्या कुछ आपने नहीं बनाया!! भारतकी जो भी शोभा है वह आपकी बदैलत तो है. आपने ही तो व्यापारमें भारतका नाम रोशन किया है. लेकिन जब कालके प्रवाहमें आपका शासन चला गया तो इन लोगोंने अपने बहुमतके कारण आपका शोषण किया और आपको गरीब बना दिया. आपके हक्ककी और आपकी सुरक्षा करना हमारा धर्म है.

इस प्रकारका वैचारिक विसंवाद अंग्रेज शासकोंने १८५७के बाद घनिष्ठता पूर्वक चलाया. एक बौधिक रुपसे गुलामी वाला वर्ग उत्पन्न हुआ जो अपने पैर नीचेकी धरतीकी गरिमासे अनभिज्ञ था. और वह कुछ अलग सूननेके लिये तैयार नहीं था.

इस बौधिक वर्गके दो नेताओंके बीच सत्ताके लिये आरपार का युद्ध हुआ. एक था नहेरु और दुसरा था जिन्ना.

जब देशकी जनता गरीब होती है वह किसीभी बात पर झगडा करने के लिये तैयार हो जाती है. और जिनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता और पैसा है वह हमेशा दुसरोंकी अज्ञानताका लाभ लेकर देशको और मानव जातको चाहे कितना ही नुकशान क्युं न होजाय, दुसरोंको गुमराह करके मत बटोरके अपना उल्लु सीधा करती है.

लेकिन वास्तवमें ये हिन्दु और मुस्लिम कौन है और कैसे है? और क्यों बेवकुफ बनते रहते है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे (smdave1940@yahoo.com)
टेग्झः लघुमती, हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई, औरंगझेब, बहादुरशाह, सार्वभौमत्व, १८५७, शिवाजी, शासक, यातना, अत्याचार, वध, सरदार, सुबेदार, अधिकारी, मेक्स मुलर, मेकोले, आर्य, द्रविड, इस्लाम, जाति, प्रजा, सत्य, असत्य, इन्दिरा, अफवाह, सत्ता, शाह आयोग, कोमवाद, शियां सुन्नी, भेदभाव, अवसर, स्रोत, असंतुलन, मानसिकता, न्याय, शिक्षण, विकास

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