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हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः – २

कोई भी मनुष्य आम कोटिका हो सकता है, युग पुरुषसे ले कर वर्तमान शिर्ष नेता की संतान या तो खुद नेता भी आम कोटिका हो सकता है.

“आम कोटिका मनुष्य” की पहेचान क्या है?

clueless

(कार्टुनीस्टका धन्यवाद)

जो व्यक्ति आम विचार प्रवाहमें बह जाता है, या,

जो व्यक्ति पूर्वग्रह का त्याग नहीं कर सकता,

जो व्यक्ति विवेकशीलतासे सोच नहीं सकता,

जिस व्यक्तिमें प्रमाण सुनिश्चित करके तुलना करनेकी क्षमता नही,

जिस व्यक्तिमें संदर्भ समज़नेकी क्षमता नहीं,

जिस व्यक्तिमें सामाजिक बुराईयोंसे (अनीतिमत्तासे) लडनेकी क्षमता नहीं,

जिस व्यक्तिमें अनीतिमत्ताको समज़नेकी क्षमता नहीं.

इन सभी गुणोंको, यदि एक ही वाक्यमें कहेना है तो, जिसमें समाजके लिये सापेक्षमें क्या श्रेय है वह समज़ने की क्षमता नहीं वह आम कोटिका व्यक्ति है. जो व्यक्ति स्वयं अपनेको आम कोटिका समज़े वह आम कोटिसे थोडा उपर है. क्यों कि वह व्यक्ति जिस विषयमें उसका ज्ञान नहीं, उसमें वह चंचूपात नहीं करता है.

हमारे कई मूर्धन्य आम कोटिके है.

प्रवर्तन मान समयमें देशके मूर्धन्य तीन प्रकारमें विभाजित है.

(१) मोदीके पक्षमें

(२) मोदीके विरुद्ध

(३) तटस्थ.

मोदीके पक्षमें है वे लोग, यदि हम कहें कि वे देश हितमें सोच रहे है, तो वह प्रवर्तमान स्थितिमें, सही है. लेकिन बादमें इनमेंसे कई लोगोंको बदलना पडेगा. इनमें मुस्लिम-फोबिया पीडित लोग और महात्मा गांधी-फोबिया पीडित लोग आते है. इसकी चर्चा हम करेंगे नहीं. लेकिन इन लोगोंका लाभ कोंगी प्रचूर मात्रामें लेती है.

मोदी का प्रतिभाव

कोंगीनेतागण स्वकेन्द्री और भ्रष्ट है. यह बात स्वयं सिद्ध है. यदि किसीको शंका है तो अवश्य इस लेखका प्रतिभाव दें.

कोंगीको आप स्वातंत्र्यका आंदोलन चलानेवाली कोंग्रेस नहीं कह सकते. क्यों कि वह कोग्रेस साधन शुद्धिमें मानती थी. और १९४८के पश्चात्य कालकी कोंग्रेस (कोंगी) साधन शुद्धिमें तनिक भी मानती नहीं है. कोंगीके नेताओंकी कार्यसूचिके ऐतिहसिक दस्तावेज यही बोलते है.

आतंकवादके साथ कोंगीयोंका मेलमिलाप या तो सोफ्ट कोर्नर, कोंगीयोंका कोमवाद और जातिवादको उत्तेजन, मोदीके प्रति कोंगीयोंकी निम्न स्तरकी सोच, कोंगीयोंका मीथ्या वाणीविलास … ये सब दृष्यमान है. कुछ मुस्लिम नेताओंकी सोच जैसे हिन्दुके विरुद्ध है उसी प्रकार इन कोंगीयोंकी सोच भी खूले आम विकृत है.

कोंगीयोंको की तो हम अवगणना कर सकते है. क्यों कि यह कोई नयी बात नहीं है. लेकिन मूर्धन्य लोग जो अपनेको तटस्थ मानते है वे भी प्रमाणकी तुलना किये बिना केवल एक दिशामें ही लिखते है.

साध्वी प्रज्ञा के उपर कोंगी सरकारने जो असीम अत्याचार करवाया वे हर नापदंडसे और निरपेक्षतासे घृणास्पद है. उसको पढके हर सद्‌व्यक्ति का खून उबल सकता है. साध्वी प्रज्ञाके उपर किये गये अत्याचार किससे प्रेरित थे. इस बात पर एक विशेष जाँच टीमका गठन करना चाहिये. और संबंधित हर पूलिसका, अफसरका और सियासती नेताओंकी पूछताछ होनी चाहिये.

यदि ऐसा नहीं होगा तो इन्दिरा गांधीकी तरह हर कोंगी और उसके हर सांस्कृतिक पक्षका नेता सोचेगा कि हमें तो किसीको भी कुछ भी करने की छूट है, जैसे इन्दिरा गांधीने १९७५-१९७६में किया था.

हमारे मूर्धन्योंको देखो. एक भी माईका लाल निकला नहीं जिसने इस मुद्दे पर चर्चा की हो. हाँ, इससे विपरीत ऐसे कटारीया (कोलमीस्ट) अवश्य निकले जिसने साध्वी प्रज्ञाकी बुराई की. ऐसे कटारीया लेखक साध्वी प्रज्ञाकी शालिन भाषासे भी उसकी सांस्कृतिक उच्चताकी अनुभूति नही कर पाये.  और देखो कटारिया लेखककी विकृतिकी कल्पना शीलता देखो कि उसने तो अपनी कल्पनाका उपयोग करके “साध्वी प्रज्ञाने एन्टी टेररीस्ट स्क्वार्ड के हेड हेमंत करकरे जब वे कसाबको गोली मार रहे थे तो साध्वी प्रज्ञाने हेमंत करकरेको श्राप दिया कि उस मासुम आतंकवादीको क्यों मारा? अब तुम भी मरोगे.”  और हेमंत करकरे मारे गये.

sadvi pragya tortured

यह क्या मजाक है? कल्पना कटारीया की, कल्पना चढाई साध्वी प्रज्ञाके नाम. प्रज्ञा – कसाब बहेन भाई, कौन कब कहाँ मरा और किसने मारा … इसके बारेमें कटारियाका घोर अज्ञान और घालमेल. एक साध्वी प्रज्ञाके उपर पोलिस कस्टडीमें घोर अत्याचार हुआ. लंबे अरसे तक अत्याचार होता रहा, अत्याचारकी जांच के बदले, अत्याचारको “मस्जिदमें गीयो तो कौन” करके एक मजाकवाला लेख लिख दिया ये कटारिया भाईने.

जिस साध्वी प्रज्ञाको न्यायालय द्वारा क्लीन चीट मीली है,लेकिन इस बातसे तो उनके उपर हुए अत्याचार का मामला और अधिक गंभीर बनता है.  साध्वी प्रज्ञाने कभी कसाब को मारनेके कारण करकरे तो श्राप दिया ऐसा कभी सुना पढा नहीं. साध्वी प्रज्ञाने स्वयंके उपर करकरेके कहेनेसे हुई यातना से करकरे को श्राप दिया ऐसा सूना है. कसाबको तो न्यायालयमें केस चला और उसको फांसीकी सज़ा हुई. कसाबकी फांसीके जल्लाद करकरे नहीं थे. करकरे तो कसाबसे पहेले ही आतंकवादीयोंके साथ मुठभेडमें मर गये थे. कसाब को मृत्युदंड २१ नवेम्बर २०१२ हुआ. और करकरे मुठभेडमें मरा २६ नवेम्बर २००८.

हिन्दु आतंकवद एक फरेब

साध्वी प्रज्ञाके कथनोंको पतला करनेके लिये कटारीयाभाईने उसको एक मजाकका विषय बना दिया. यह है हमारे मूर्धन्योंकी मानसिकता. ऐसी भद्दी मजाक तो कोंगीप्रेमी ही कर सकते है. किन्तु इससे क्या कोंगीका पल्ला भारी होता है?

अरुण शौरी लो या शेखर गुप्ता लो या प्रीतीश नंदी लो या अपनके स्वयं प्रमाणित शशि थरुर लो. या तो गीता पढाओ या तो इनको डॉ. आईनस्टाईन एन्ड युनीवर्स पढाओ या तो उनको कहो कि आपका पृथ्वीपरका करतव्य पूरा हुआ है और आप अब मौन धारण करो.

एक तरफ मोदी है, जिसने कभी संपत्ति संचयका सोचा नहीं, जिसने अपने संबंधीयोंको भी दूर रक्खा, वह अपने परिश्रमसे आगे आया और वह देशके हितके अतिरिक्त कुछ सोचता नहीं,

दुसरी तरफ है (१) कोंगीके नहेरुवीयनसे प्रारंभ करके, यानी कि सोनिया, राहुल,  चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, मोतीलाल वोरा, साम पित्रोडा जैसे नेतागण जो बैल पर है, (२) मुलायम, अखिलेश, मायावती जिनके उपर अवैध तरीकोंसे संपत्ति प्राप्तिके केस चल रहे है, (३) ममता और उसके साथीयोंके उपर शारदा ग्रुप चीट फंडके कौभान्डके केस चल रहे है, और ममताका नक्षलवादीयोंके साथकी सांठगांठके बारेमें कभी भी खुलासा हो सकता है, (४) लालु प्रसाद कारावासके शलाखेकी गीनती कर रहे है और उसके कुटुंबीजन अवैध संपतिके केस चल रहे है.

उपरोक्त लोगोंने जे.एन.यु. के विभाजन वादी टूकडे टूकडे गेंगका और अर्बन नक्षलीयोंका खुलकर समर्थन किया है जिसमें कश्मिरके विभाजनवादी तत्त्व भी संमिलित है. ये योग आतंकवादीयोंके मानव अधिकारका समर्थन करनेमें कूदकर आगे रहेते है, लेकिन हिन्दुओंकी कत्लेआम और विस्थापित होने पर मौन है. देश की सुरक्षा पर भी मौन है.

यह भेद क्रीस्टल क्लीयर है. इसमें कोई विवादकी शक्यता नहीं. तो भी हमारे मूर्धन्य कटारीयाओंकी कानोंमे जू तक नहीं रेंगती. दशको बीत जाते है लेकिन उनके मूँहसे कभी “उफ़” तक नहीं निकलता. और जब कोई बीजेपी/मोदी फोबिया पीडित नेता जैसा कि राहुल, पित्रोडा, प्रयंका, सोनिया, मणी अय्यर, आझम, दीग्विजय, चिदंबरं, शशि, माया, ममता आदि कोई कोमवादी या जातिवादी टीप्पणी करता है और बीजेपीके कोई नेता उसका उत्तर देता है तो वे सामान्यीकरण करके एन्टी-बीजेपी गेंगकी कोमवादी जातिवादी टीप्पणीको अति डाईल्युट कर देते है. “इस चूनावमें नेताओंका स्तर निम्न स्तर पर पहूँच गया है ऐसा लिखके अपनी पीठ थपथपाते है कि स्वयं कैसे तटस्थ है.

मूर्धन्योंकी ऐसी तटस्थता व्यंढ है और ऐसे मूर्धन्य भी व्यंढ है जो अपनी विवेकशीलतासे जो वास्तविकता क्रीस्टल क्लीयर है तो भी, उसको उजागर न कर सके. इतनी सीमा तक स्वार्थी तो कमसे कम मूर्धन्योंको नहीं बनना चाहिये.     

इसके अतिरिक्त कोम्युनीस्ट पार्टी और कट्टरवादी मुस्लिम पक्ष है जिनकी एलफेल बोलनेकी हिमत कोंगीयोंने बढायी है. इनकी चर्चा हम नहीं करेंगे.

“जैसे थे” वाली परिस्थिति मूर्धन्योंको क्यूँ चाहिये? 

क्यूँ कि हमें पीला पत्रकारित्व चाहिये, हमें मासुम/मायुस चहेरेवाले लचीले शासकके शासनमें हस्तक्षेप करना है. हमें हमारे हिसाबसे मंत्रीमंडलमें हमारा कुछ प्रभाव चाहिये, हम एजन्टका काम भी कर सकें, हमे सुरक्षा सौदोमें भी हिस्सा चाहिये ताकि हमारा चेनल/वर्तमानपत्र रुपी मुखकमल बंद रहे. अरे भाई, हमे पढने वाले लाखों है, तो हमारा भी तो महत्त्व होना ही चाहिये न?

स्वय‌म्‌ प्रमाणित महात्मा गांधीवादीयोंका और गांधी-संस्था-गत क्षेत्रमें महात्मा गांधीके विचारोंका प्रचार करने वाले अधिकतर महानुभावोंका क्या हाल है?

इनमेंसे अधिकतर महानुभाव लोग आर.एस.एस. फोबियासे पीडीत होनेके कारण, एक पूर्वग्रहसे भी पीडित है. आर.एस.एस.में तो आपको नरेन्द्र मोदी और उनके साथी और कई सारे लोग मिल जायेंगे जो महात्मा गांधीके प्रति आदरका भाव रखते है और उनका बहुमान करते है. महात्मा गांधी के विचारोंका प्रसार करनेका जो काम कोंगीने नहीं किया, वह काम बीजेपीकी सरकारोंने गुजरात और देशभरमें किया है. इस विषय पर महात्मा गांधीवादी महानुभावोने नरेन्द्र मोदीका अभिवादन या प्रशंसा नहीं किया. लेकिन ये पूर्वग्रहसे पीडित महानुभावोंने ऐसे प्रश्न उठाये वैसे प्रश्न कोंगी शासन कालमें कभी नही उठाये गये. जैसे कि “मोदीको अपने कामका प्रचार करनेकी क्या आवश्यकता है? वह प्रचार करता है वही अनावश्यक है. काम तो अपने आप बोलेगा ही. मोदी स्वयं अपने कामोंकी बाते करता है यही तो उसका कमीनापन है.” “ मोदीने अंबाणीसे प्रचूर मात्रामें पैसे लिये. ऐसे पैसोंसे वह जीतता है.” कोंगीयोंकी तरह ये लोग भी प्रमाण देना आवश्यक नहीं समज़ते.

मा, माटी और मानुष

हमारे कथित गांधीवादी (दिव्यभास्कर के गुजराती प्रकाशन के दिनांक १६-०५-२०१९) मूर्धन्यको ममताके “मा माटी” में भावनात्मक मानस दृष्टिगोचर होता है, चाहे ममता पश्चिम बंगालमें प्रचारके लिये आये अन्य भाषीयोंको, “बाहरी” घोषित करके देशकी जनताको विभाजित करे.

पूरी भारतकी जनता एक ही है और उसमें विभाजनको अनुमोदन देना और बढावा देना “अ-गांधीवाद” है. गांधीजी जब चंपारणमें गये थे, तब तो किसीने भी उनको बहारी नहीं कहा था. और अब ये कथित गांधीवादी, “बाहरी”वाली मानसिकता का गुणगान कर रहे है.

यदि नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें ऐसा किया होता तो?

तब तो ये गांधीवादी उनके उपर तूट पडते.

अब आप देखो और तुलना करो… नरेन्द्र मोदीने कभी “अपन” और “बाहरी’ वाला मुद्दा बनाया नहीं. तो भी ये लोग २००१से, मोदी प्रांतवादको उजागर करता है ऐसा कहेते रहेते है. वास्तवमें मोदी तो परप्रांतियोंका गुजरातके विकासमें दिये हुये योगदानकी सराहना करते रहेते है. लेकिन इन तथा-कथित गांधीवादीयोंका मानस ही विकृत हो गया है. इन लोंगोंको पश्चिम बंगालकी टी.एम.सी. द्वारा प्रेरित आपखुदी, सांविधानिक प्रावधानोंकी उपेक्षा, और हिंसा नहीं दिखाई देती. तब तो वे शाहमृगकी तरह अपना शिर, भूमिगत कर देते हैं. उपरोक्त गांधीवादी महानुभाव लोगोंने विवेक दृष्टि खो दी है. ईश्वर उनको माफ नहीं करेगा, चाहे उनको ज्ञात हो या नहीं. उपरोक्त गांधीवादीयोंके लिये इस सीमा तक कहेना इस कालखंडकी विडंबना है. तथाकथित महात्मा गांधीवादीयोंके वैचारिक विनीपातसे, हमारे जैसे अपूर्ण गांधीवादी शर्मींदा है. १९६४-१९७७में तो इन्दिरा नहेरु कोंग्रेस (आई.एन.सी.)की गेंगसे देशकी जनताको सुरक्षा देने के लिये जयप्रकाश नारायण, मैदानमें आ गये थे, किन्तु प्रवर्तमान समयमें, ये जूठसे लिप्त और भ्रष्टाचारसे प्लवित कोंगी, और उसके सांस्कृतिक साथीयोंकी अनेकानेक गेंगसे बचाने के लिये कोई गांधीवादी बचा नहीं है और जो है वे अक्षम है. यह युद्ध जनता और बीजेपीको ही लडना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

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