पी.के. ने पीके किया नशा? कथांक – १
कूर्म पुराण और महाभारतमें एक सुसंस्कृत श्लोक है.
(१) आत्मनः प्रतिकुलानी परेषां न समाचरेत.
इसका अर्थ है;
जो वस्तु, स्वयंके लिये (आप) प्रतिकुल (मानते) है, (उसको आप) दुसरोंके उपर मत (लागु) करो.
इसका अर्थ यह भी है, कि जो आचार आप स्वयंके हितमें नही मानते चाहे कोइ भी कारण हो, तो वह आचार आप अन्यको अपनाने के लिये नही कह सकते.
इसका निष्कर्सका गर्भित अर्थ भी है. यदि आपको अन्य या अन्योंको आचारके लिये कहेना है तो सर्व प्रथम आप स्वयं उसका पालन करो और योग्यता प्राप्त करो.
क्या पी.के. में यह योग्यता है?
पी.के.की योग्यता हम बादमें करेंगे.
सर्व प्रथम हम इस वार्तासे अवगत हो जाय कि, फिलममें क्या क्या उपदेश है. किस प्रकारसे उपदेश दिया है और सामाजिक परिस्थिति क्या है.
संस्कृतमें नीतिशतकमें एक बोध है.
(२) सत्यं ब्रुयात्, प्रियं ब्रुयात्, न ब्रुयात् सत्यं अप्रियं.
सच बोलना चाहिये, किन्तु सत्य ऐसे बोलना चाहिये वह प्रिय लगे. अप्रिय लगे ऐसे सत्य नहीं बोलना चाहिये.
यदि आप स्वयंको उपदेश देनेके लिये योग्य समझते है तो आपके पास उपदेश देनेकी कला होनी आवश्यक है. क्या यह कला पी.के. के पास थी?
पी. के. की ईश निंदा
(३) पूर्व पक्षका ज्ञानः
यदि एक विषय, आपने चर्चाके लिये उपयुक्त समझा, तो स्वयंको ज्ञात होना चाहिये कि चर्चा में दो पक्ष होते है.
एक पूर्व पक्ष होता है. दुसरा प्रतिपक्ष होता है.
पूर्वपक्ष का अगर आप खंडन करना चाहते है और उसके विरोधमें आप अपना प्रतिपक्ष रखना चाहते है, तो आपको क्या करना चाहिये?
पूर्वपक्ष पहेलेसे चला आता है इसलिये उसको पूर्वपक्ष समझा जाता है. और उसके विरुद्ध आपको अपना पक्ष को रखना है. तो आपका यह स्वयंका पक्ष प्रतिपक्ष है.
अगर आप बौद्धिक चर्चा करना चाहते है तो आपको पूर्वपक्षका संपूर्ण ज्ञान होना चाहिये तभी आप तर्क युक्त चर्चा करनेके लिये योग्य माने जायेंगे. अगर आपमें यह योग्यता नहीं है तो आप असंस्कृत और दुराचारी माने जायेंगे.
असंस्कृति और दुराचार समाजके स्वास्थ्य के लिये त्याज्य है.
(४) चर्चा का ध्येय और चर्चा के विषय का चयनः
सामान्यतः चर्चाका ध्येय, समाजको स्वस्थ और स्वास्थ्यपूर्ण रखनेका होता है. किसको आप स्वस्थ समाज कहेंगें? जिस समाजमें संघर्ष, असंवाद और विसंवाद न हो तदुपरांत संवादमें ज्ञान वृद्धि और आनंद हो उसको स्वस्थ समाज माना जायेगा. यदि समाजमें संघर्ष, वितंडावाद, अज्ञान और आनंद न हो तो वह समाज स्वस्थ समाज माना नहीं जायेगा.
आनंदमें यदि असमानता है तो वह वैयक्तिक और जुथ में संघर्षको जन्म देती है. उसका निवारण ज्ञान प्राप्ति है.
ज्ञान प्राप्ति संवादसे होती है.
संवाद भाषासे होता है.
किन्तु यदि भाषा में संवादके बदले विसंवाद हो तो ज्ञान प्राप्ति नहीं होती है.
ज्ञान प्राप्तिमें संवाद होना आवश्यक है. संवाद विचारोंका आदान-प्रदान है. और आदान प्रदान एक कक्षा पर आने से हो सकता है. विचारोंके आदान प्रदान के लिये उसके नियम होने चाहिये. इन नियम को तर्क कहेते है. कोई भी संवाद तर्कयुक्त तभी हो सकता है जब पूर्वपक्षका ज्ञान हो.
पी. के. स्वयंमें क्या योग्यता है?
स्वयंमें विषयके चयन की योग्यता है?
स्वयंमें विषय की चर्चा करनेकी योग्यता है? स्वयं को स्वयंके पक्षका ज्ञान है?
स्वयंमें पूर्वपक्षका ज्ञान है?
स्वयंके विचारोंका प्रदान तर्कपूर्ण है?
पी. के. अन्यको जो बोध देना चाहता है उस बोधका वह क्या स्वयं पालन करता है?
अंधश्रद्धा निर्मूलन यदि किसीका ध्येय है तो प्रथम समझना आवश्यक है कि अंधश्रद्धा क्या है.
अंधश्रद्धा क्या है?
अंध श्रद्धा यह है कि, कोई एक प्रणाली, जो परापूर्वसे चली आती है या कोई प्रणाली अचारमें लायी गई हो और उस प्रणालीकी उपयोगिता सही न हो और तर्कशुद्ध न हो.
क्या प्रणालीयां और उसकी तर्कशुद्धता की अनिवार्यता सिर्फ धर्म को ही लागु करने की होती है?
क्या अंधश्रद्धा धर्मसे ही संबंधित है?
क्या अंधश्रद्धा समाजके अन्य क्षेत्रों पर लागु नहीं होती है?
अंधश्रद्धा हर क्षेत्रमें अत्र तत्र सर्वत्र होती है.
अंद्धश्रद्धा समाजके प्रत्येक क्षेत्रमें होती है.
अगर अंधश्रद्धा हरेक क्षेत्रमें होती है तो प्राथमिकता कहा होनी चाहिये?
जो प्रणालीयां समाजको अधिकतम क्षति पहोंचाती हो वहां पर उस प्राणालीयों पर हमारा लक्ष्य होना होना चाहिये. इसलिये चयन उनका होना चाहिये.
पी. के. ने कौनसी प्रणालीयों को पकडा?
पी. के. ने धार्मिक प्रणालीयोंको पकडा.
पी. के. ने धार्मिक प्रणालीयोंको क्यूं पकडा?
पी. के. समझता है कि वह सभी धर्मोंकी, धार्मिक प्रणालीयोंके विषयोंके बारेमें निष्णात है. हां जी, अगर उपदेशक निष्णात नहीं होगा तो वह योग्य कैसे माना जायेगा?
पी. के. समझता है कि वह भारतीय समाजमें रहेता है, इसलिये वह भारतमें प्रचलित धार्मिक, क्षतिपूर्ण और नुकशानकारक प्रणालीयोंकी अंद्धश्रद्धा (तर्कहीनता) पर आक्रमण करेगा.
अगर ऐसा है तो वह किस धर्मकी अंधश्रद्धाको प्राथमिकता देगा?
वही धर्म को प्राथमिकता देगा जिसने समाजको ज्यादा नुकशान किया है और करता है.
कौनसे कौनसे धर्म है? ख्रीस्ती, इस्लाम और हिन्दु.
हे पी. के. !! आपका कौनसा धर्म है?
मेरा धर्म इस्लाम है.
आपके धर्ममें कौनसी अंधश्रद्धा है जिसको आप सामाजिक बुराईयोंके संदर्भ, प्रमाणभानके आधार पर प्राथमिकता देंगे?
पी. के. समझता है कि मुस्लिमोंकी अंधश्रद्धा वह शराब बंधी है, और वह भी प्रार्थना स्थलपर शराब बंधी है.
अब देखो पी. के. क्या करता है? वह मस्जिदके अंदर तो शराब ले नहीं जाता है. इस्लामके अनुसार शराब पीना मना है. लेकिन उसकी सजा खुदा देगा. शराबसे नुकशान होता है. अपने कुटूंबीजनोंको भी नुकशान होता है. शराब पीनेवालेको तो आनंद मिलता है. लेकिन पीने वालेके आनंदसे जो धनकी कमी होती है उससे उसके कुटुंबीजनोंको पोषणयुक्त आहार नहीं मिलता और जिंदगीकी सुचारु सुवाधाओंमें कमी होती है या/और अभाव रहेता है. शराब कोई आवश्यक चिज नहीं है. शराबके सेवनके आनंदसे शराबको पीनेवालेको तो नुकशान होता ही है. शराब पीना इस्लाम धर्मने मना है. किन्तु क्या इस्लामकी प्राथमिकता शराबबंधी है?
इस्लाममें क्या कहा है? इस्लामने तो यह ही कहा है कि, इस्लामके उसुलोंका प्रचार करो और जिनको मुसलमान बनना है उन सबको मुसलमान बनाओ. जब तक अन्य धर्मी तुमको अपने घरमेंसे निकाल न दें उसका कत्ल मत करो. उसका अदब करो.
क्या मुसलमानोंने यह प्रणाली निभाई है?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. इसका अर्थ यह है कि भारतमें सब लोगोंको अपना अपना धर्म और प्रणालीया मनानेकी स्वतंत्रता है. इस स्वतंत्रताका आनंद लेनेके साथ साथ दुसरोंको नुकशान न हो जाय इस बातका ध्यान रखना है.
इस बातको ध्यानमें रखते है तो मुसलमान अगर शराब पीये या न पीये उससे अन्य धर्मीयोंको नुकशान नहीं होता है. अगर कोई मस्जिदमें जाता है तो वह वहां ईश्वरकी इबादतके बदले वह शराबी नशेमें होनेके कारण दुसरोंको नुकशान कर सकता है. इसलिये पूर्वानुमानके आधार पर इस्लामने शराब बंदी की है. यह बात तार्किक है. किन्तु यदि इसमें किसीको अंधश्रद्धा दिखाई देती है यह बात ही एक जूठ है.
तो पी. के. ने ऐसे जूठको क्यों प्राथमिकता दी?
प्राथमिकता क्या होनी चाहिये थी?
यदि अंधश्रद्धाको भारत तक ही सीमित रखना है तो, मुसलमानोंने किये दंगे और कत्लोंको प्राथमिकता देनी चाहिये थी. आतंकीयों और स्थानिक मुसलमानोंने मिलकर हिन्दुओंकी धर्मके नाम पर कत्लें की, हिन्दुओंको यातनाएं दी और दे भी रहे है वह भी तो अंधश्रद्धा है.
मुस्लिमोंकी अंधश्रद्धा क्या है?
इस्लामको अपनानेसे ही ईश्वर आपपर खुश होता है. अगर आपने इस्लाम कबुल किया तो ही वह आपकी प्रार्थना कबुल करेगा और आपके उपर कृपा करेगा.
ईश्वर निराकार है इस लिये उसकी कोई भी आकारमें प्रतिकृति बनाना ईश्वरका अपमान है. अगर कोई ईश्वरकी प्रतिकृति बनाके उसकी पूजा करगा तो उसके लिये ईश्वरने नर्ककी सजा निश्चित की है.
इस बातको छोड दो.
अन्य धर्मीयों की कत्ल करना तो अंधश्र्द्धा ही है.
१९९०में कश्मिरमें ३०००+ हिन्दुओंकी मुसलमानोंने कत्ल की. मुसलमानोंने अखबारोंमें इश्तिहार देके, दिवारों पर पोस्टरें चिपकाके, लाउड स्पीकरकी गाडीयां दौडाके, और मस्जीदोंसे घोषणाए की कि, अगर कश्मिरमें रहेना है तो इस्लाम कबुल करो, या तो इस मुल्कको छोड कर भाग जाओ, नहीं तो कत्लके लिये तयार रहो. इस एलान के बाद मुसलमानोंने ३००० से भी ज्यादा हिन्दुओंकी चून चून कर हत्या की. पांचसे सात लाख हिन्दुओंको अपना घर छोडने पर विवश किया. इस प्रकर मुसलमानोंने हिन्दुओंको अपने प्रदेशसे खदेड दिया.
आज तक कोई मुसलमानने हिन्दुओंको न्याय देनेकी परवाह नहीं की. इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ मुसलमानोंकी अंधश्रद्धा ही तो है. लाखोंकी संख्यामें अन्यधमीयोंको २५ सालों तक यातनाग्रस्त स्थितिमें चालु रखना आतंकवाद ही तो है. यह तो सतत चालु रहेनेवाला आतंकवाद है. इससे बडी अंधश्रद्धा क्या हो सकती है?
किन्तु पी. के. ने इस आतंकवादको छूआ तक नहीं. क्यों छूआ तक नहीं?
क्यों कि वह स्वयंके धर्मीयोंसे भयभित है. जो भयभित है वह ज्यादा ही अंधश्रद्धायुक्त होता है. पी. के. खुद डरता है. उसके पास इतनी विद्वत्ता और निडरता नहीं है कि वह सच बोल सके.
कश्मिरके हिन्दुओंको लगातार दी जाने वाली यातनाओंको अनदेखी करना विश्वकी सबसे बडी ठगाई और दंभ है. इस बातको नकारना आतंकवादको मदद करना ही है. उसकी सजा सिर्फ और सिर्फ मौत ही हो सकती है.
तो फिर पी. के. ने किसको निशाना बनाया?
पी. के. ने बुत परस्तीको निशाना बनाया.
लेकिन क्या उसने पूर्व पक्ष को रक्खा? नहीं. उसने पूर्वपक्षको जनताके सामने रक्खा तक नहीं.
क्यों?
क्यों कि, वह अज्ञानी है. अद्वैतवादको समझना उसके दिमागके बाहरका विषय है. अद्वैतवाद क्या है? अद्वैतवाद यह है कि ईश्वर, सर्वज्ञ, सर्वयापी और सर्वस्व है. विश्वमें जो कुछ भी स्थावर जंगम और अदृष्ट है वे सब ईश्वरमें ही है. उसने ब्रह्माण्डको बनाया और आकर्षणका नियम बनाया फिर उसी नियमसे उसको चलाने लगा. उसने मनुष्यको बुद्धि दी और विचार करने की क्षमता दी ताकि वह तर्क कर सके. अगर वह तर्क करेगा तो वह तरक्की करेगा. नहीं तो ज्योंका त्यों रहेगा, या उसका पतन भी होगा और नष्ट भी होगा. ईश्वरने तो कर्मफलका प्रावधान किया और समाजको सामाजिक नियमो बनानेकी प्रेरणा भी रक्खी. जो समाज समझदार था वह प्रणालियोंमें उपयुक्त परिवर्तन करते गया और शाश्वतता की और चलता गया.
हिन्दु समाज क्या कहेता है?
सत्यं, शिवं और सुंदरं
सत्य है उसको सुंदरतासे प्रस्तूत करो तो वह कल्याणकारी बनेगा.
कल्याणकारीसे आनंद मिलता है वह स्थायी है.
आनंद स्थायी तब होता है जब भावना वैश्विक हो. न तो अपने स्वयं तक, न तो अपने कुटुंब तक, न तो अपने समाज तक, न तो अपनी जाति तक, मर्यादित हो, पर वह आनंद विश्व तक विस्तरित हो.
विश्वमेंसे जो कुछ भी तुम्हे मिलता है उसमेंसे विश्वको भी दो (स्वाहा).
यज्ञकी भावना यह है.
शिव तो तत् सत् है. ब्रह्माण्ड स्वरुप अग्निको उन्होने उत्पन्न किया. जो दृश्यमान अग्नि है वह यज्ञ है. अग्नि यज्ञ स्वरुप है. अग्निने आपको जिवन दिया. आप अग्निको भी तुष्ट करें और शांत भी करें. हिन्दुओंके लिये ईश्वरी शक्तियां अपने जिवन प्रणालीका एक भाग है. शिव लिंग एक ज्योति है. उसको जो स्वाहा करेंगे वह धरतीके अन्य जीवोंको मिलेगा. जीनेका और उपभोग करनेका उनका भी हक्क है.
तुम्हे ये सब अपनी शक्तिके अनुसार करना है. तुम अगर शक्तिमान नहीं हो तो मनमें ऐसी भावना रखो. ईश्वर तुम्हारी भावनाओंको पहेचानता है. संदर्भः “शिवमानसपूजा”
यदी पी. के. ने “अद्वैत” पढा होता तो वह शिव को मजाकके रुपमें प्रस्तूत न करता.
मनुष्य एक ऐसी जाति है कि इस जातिमें हरेक के भीन्न भीन्न स्वभाव होते है. यह स्वाभाव आनुवंशी, ज्ञान, विचार और कर्मके आधार पर होते है. इसलिये उनके आनंद पानेके मार्ग भी भीन्न भीन्न होते है. ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्मयोग और भक्तियोग इस प्रकार चार योग माने गये है. अपने शरीरस्थ रासायणोंके अनुसार आप अपना मार्ग पसंद करें. हिन्दुओंके लिये ईश्वरकी उपासना एक प्रकृति उपासनाका काव्य है. काव्य एक कला है जिनके द्वारा तत्त्वज्ञान विस्मृतिमें नही चला जाता है. मूर्त्ति भी ईश्वरका काव्य है.
तो क्या पी. के.ने विषयके चयनमें सही प्राथमिकता रक्खी है?
नहीं. पी. के. को प्राथमिकताका चयन करने की या तो क्षमता ही नहीं थी या तो उसका ध्येय ही अंधश्रद्धाका निर्मूलन करना नहीं था. उसका ध्येय कुछ भीन्न ही था.