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दायें पप्पु, बांये पप्पु, आगे पप्पु, पीछे पप्पु बोले कितने पप्पु?

दायें पप्पु, बांये पप्पु, आगे पप्पु, पीछे पप्पु बोले कितने पप्पु?

पप्पु पप्पु और पप्पु

पप्पुयुगका पिता वैसे तो मोतीलाल नहेरु है, लेकिन उनको तो शायद मालुम ही नहीं होगा कि वे एक नये पप्पु-युगकी नींव रख रहे है.

पहेला पप्प कौन?

आदि पप्पु यानी कि रा.गा. (राहुल गांधी) ही है किन्तु पप्पु युगका निर्माण तो नहेरुने ही किया. नहेरु ही प्रथम पप्पु है. यानी कि पप्पु-वंश तो नहेरुसे ही प्रारंभ हुआ.

क्या नहेरु पप्पु थे?

सोच लो. यदि आपने किसीको अमुक काम करनेसे मना किया. और इतिहासका हवाला भी दिया. भयस्थान भी बताये. फिर भी यदि आप वो काम करते हो तो लोग आपको पप्पु नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.

(१) जी हाँ, नहेरुने ऐसा ही किया था. सप्टेंबर १९४९में तिबट पर चीन ने आक्रमण किया, तो नहेरुने सरदार पटेलके पटेलके संकेत और चेतावनी को नकारा और कहा कि चीनने उसको आश्वासन दिया है कि वह तिबटके साथ शांतिसे नीपटेगा. यह तो कहेता बी दिवाना और सूनता भी दिवाना जैसी बात थी.  और १९५१ आते आते चीनने तिबट पर कबजा कर दिया. इस अनादर पर भी नहेरुने दुर्लक्ष्य दिया. और चीनसे घनिष्ठ मैत्री संबंध (पंचशील) का  अनुबंध किया.

(२) तिबटको अब छोडो. पंचशीलके बाद भी चीनकी सेनाका अतिक्रमण प्रारंभ हो गया और जब वह बार बार होने लगा तो संसदमें प्रश्न भी उठे. नहेरुने संसदमें जूठ बोला. आचार्य क्रिपलानीने इसके उपर ठीक ठीक लिखा है.

(३) चीनकी घुस खोरीको अब छोडो. १९४७में नहेरुको गांधीजीने बताया कि शेख अब्दुल्ला पर सरदार पटेल विश्वास करते नहीं है. और लियाकत अली कश्मिरके राजाको स्वतंत्र रहेनेको समज़ा रहे है. काश्मिर न तो पाकिस्तानमें जा सकता है, न तो वह स्वतंत्र रह सकता है. काश्मिरको तो भारतके साथ ही रहेना चाहिये. लेकिन नहेरुने महात्मा गांधीकी बात न मानी और शेख अब्दुल्ला पर विश्वास किया.

(४) नहेरु इतने आपखुद थे कि राजाओंकी तरह उनके उपर कोई नियम या सिद्धांत चलता नहीं था. एक तरफ वे लोकशाहीका गुणगान करते थे और दुसरी तरफ उन्होंने शेख अब्दुलाको खुश करनेके लिये बिनलोकशाहीवादी अनुच्छेद ३७०/३५ए अ-जनतांत्रिक तरीकेसे संविधानमें सामेल किया. अस्थायी होते हुए भी जब तक वे जिन्दा रहे तब तक उसको छेडा नहीं, और १९४४से कश्मिरमें स्थायी हुए हिन्दुओंको ज्ञातिके आधार पर और मुस्लिम स्त्रीयोंको लिंगको आधार बनाके मानवीय और जनतांत्रिक अधिकारोंसे वंचित रक्खा.

इसको आप पप्पु नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

क्या इन्दिरा गांधी पप्पु थी?

१९७१की इन्डो-पाक युद्धमें भारतकी विजयका श्रेय इन्दिराको दिया जाता है. यह एक लंबी चर्चाका विषय है. किन्तु जरा ये परिस्थिति पर सोचो कि पाकिस्तान किस परिस्थितिमें युद्ध कर रहा था और बंग्लादेशकी मुक्ति-वाहिनी (जिसको भारतकी सहाय थी) किस परिस्थितिमें युद्ध कर रही थीं. भारतीय सेनाको यह युद्ध जीतना ही था उसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था. और सेनाने तो अपना धर्म श्रेष्ठता पूर्वक निभाया.

किन्तु इन्दिरा यदि पप्पु नहीं थी तो उसने अपना धर्म निभाया? नहीं जी. जरा भी नहीं. जो परिस्थिति उस समय पाकिस्तानकी थी और जो परिस्थिति भारतकी थी, यदि इन्दिरामें थोडी भी अक्ल होती तो वह कमसे कम पाकिस्तान अधिकृत कश्मिर तो वह ले ही सकती थी. यदि ऐसा किया होता तो भारतने जो अन्य जीती हुई पाकिस्तानकी भूमि, और पाकिस्तानी युद्धकैदीयोंको परत किया उसको क्षम्य मान सकते थे. पाकिस्तानके उपर पेनल्टी नहीं लगायी, खर्चा वसुल नहीं किया उसको भी लोग भूल जाते.

बंग्लादेशमें ३० लाख हिन्दुओंकी कत्ल किसने छूपाया?

बंग्लादेशके अंदर पाकिस्तानकी सेनाने  ४०लाख लोगोंकी हत्या की थी इनमें ३० लाख हिन्दु थे १० लाख मुस्लिम थे. इन्दिरा गांधी जब भूट्टोके साथ सिमलामें बैठी थी तब क्या उसको इस तथ्य ज्ञात नहीं था? वास्तवमें उसको सबकुछ मालुम था. तो भी उसने न तो बंग्लादेशके साथ कोई भारतके श्रेय में कोई अनुबंध (एग्रीमेन्ट) किया न तो पाकिस्तानके साथ कोई भारतीय हितमें कोई अनुबंध किया. इतना ही नहीं, एक करोड निर्वाश्रित जो भारतमें आ गये थे उनको वापस भेजनेके बारेमें प्रावधानवाला कोई भी अनुबंध किसीके साथ नहीं किया.

उस समय आतंकवाद भारतमें तो नहीं था. भारतके बाहर तो था ही. प्रधानमंत्री होनेके नाते और “भारतीय गुप्तचर सेवा” के आधार पर भारतके बाहर तो अति उग्रतावाली आतंकी गतिविधियां  अस्तित्वमें थीं ही. वे प्रवृत्तियां कहाँ कहाँ अपना विस्तार बढा सकती है वह भी प्रधानमंत्रीको अपने बुद्धिमान परामर्शदाताओंसे (एड्वाईज़रोंसे)   मिलती ही रहेती है. यह तो आम बात है. किन्तु इन्दिराने भारतके हितकी उपेक्षा करके भूट्टो की यह बात मान ली “यदि मैं पाकिस्तान अधिकृत काश्मिरकी समस्या आपके साथ हल कर दूं और तत्‌ पश्चात्‍ मेरी यदि हत्या हो जाय तो उस डील का क्या मतलब.” फिर इन्दिराने “इस मसलेको आपसमें वार्ता द्वारा ही हल करना” ऐसा अनुबंध मान लिया. इसका भी क्या लाभ हुआ. पाकिस्तानने आतंकीओ द्वारा और कई समस्याएं उत्पन्न की. सिमला अनुबंधन तो पप्पु ही मान्य कर सकता है.  

 राजिव गांधी ने पीएम पदका स्विकार करके, श्री लंकाके आंतरिक हस्तक्षेप करके और शाहबानो न्यायिक निर्णयको निरस्त्र किया यह बात ही उसका पप्पुत्त्व सिद्ध किया.

सोनिया, राहुल और प्रियंका का पप्पुत्त्व सिद्ध करनेकी आवश्यकता नहीं.

यह पप्पुत्त्वकी महामारी ममता, मुलायम, लालु, शरद पवार … आदि कोंगीके सहयोगी पक्षोमें ही नहीं लेकिन बीजेपीके सहयोगी शिवसेनामें भी फैली है.

शिवसेनाका पप्पुत्व तो शिवसेना अपने सहयोगी बीजेपी के विरुद्ध निवेदन करके सिद्ध करता ही रहेता है.

उद्धव ठाकरेका क्या योगदान है? भारतके हितमें उसमें क्या किया है? यह उद्धव ठाकरे अपने फरजंद आदित्यको आगे करता है. आदित्यका क्या योगदान है? उसका अनुभव क्या है? क्या किसीने कहा भी है कि वह आदित्य के कारण चूनाव जीता है? शिवसेना स्वयं अपने कुकर्मोंके कारण मरणासन्न है किन्तु वह भी कोंगीकी तरह पगला गया है. चूनावमें शिवसेनाकी सफलता  अधिकतम ४५ प्रतिशत है. जब की बीजेपीकी सफलता ६५ प्रतिशत है.

“५०:५०” का रहस्य क्या है?

५० % मंत्री पद बीजेपीके पास और ५०% मंत्री पद शिवसेनाके पास रहेगा यदि दोनोंको समान बैठक मिली. किन्तु शिवसेनाको तो बीजेपीसे आधी से भी कम बैठकें मिली. और फिर भी उसको चाहिये मुख्य मंत्रीपद. यह तो “कहेता भी दिवाना और सूनता भी दिवाना” जैसी बात हुई. गठ बंधनको जो घाटा हुआ उसमें शिवसेना जीम्मेवार है. उसका हक्क तो १/३ मंत्री पद पर भी नहीं बनता है.

शिवसेना के विरुद्ध क्या क्या मुद्दे जाते है.

शिवसेनाका साफल्य केवल ४० प्रतिशत है. मतलब वह तृतीय कक्षामें पास हुआ है.

बीजेपीका साफल्य ६५% है. मतलब विशिष्ठ योग्यताके समकक्ष है.

बीजेपी उसको ५० प्रतिशत मंत्रीपद देनेको तयार है. लेकिन शिवसेना को तो इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री पद भी चाहिये.

मतलब की तृतीय कक्षामें पास होनेवाला आचार्य बनना चाहता है.

इतना ही नहीं किन्तु शिवसेना अपने पक्षके वंशवादी प्रमुखकी संतान को आचार्य बनाना चाह्ता है.

पप्पुके आगे पप्पु, पप्पुके पीछे पप्पु बोले कितने   पप्पु?

पप्पुको डीरेक्ट हिरो बना दो

क्या किया जाय?

शिवसेना के आदित्य को मुख्य मंत्री के बनानेके लिये = शिवसेना+कोंगी+एनसीपी

शिवसैनी पप्पुको पप्पुकी कोंगीका और शरदकी कोंगीका सहयोग लेके मुख्य मंत्री और सरकार बनाने दो. शिवसैनी पप्पुको भी पता चल जायेगा कितनी बार वीस मिलानेसे एक सौ बनता है (गुजरातीमें मूँहावरा है “केटला वीसे सो थाय” तेनी खबर पडशे.)

शिरीष मोहनलाल दवे

https://www.treenetram.wordpress.com

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“दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” भारतीय जनता इससे सावधान रहें,

“दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” इससे सावधान रहे भारतीय जनता

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह पूरानी आदत है कि जनताको विभाजित करना और अपना उल्लु सीधा करना.

जिसने देशके वर्तमान पत्रोंके हिसाबसे गुजरातमें युपी-बिहार वालोंके विरुद्ध लींचीन्ग चालु किया वह कौन है?

alpesh instigated his men to attack

अल्पेश ठाकोर नामका एक व्यक्ति है जो वर्तमान पत्रोंने बनाया हुआ टायगर है. वह गुजरात (नहेरुवीयन) कोंग्रेसका प्रमुख भी है. वह गुजरात विधानसभाका सदस्य भी है.

उसने गुजरात विधान सभाके गत चूनाव पूर्व अपनी जातिके अंतर्गत एक आंदोलन चलाया था कि ठाकोर जातिको शराबकी लतसे मूक्त करें. यह तो एक दिखावा था. कोंग्रेसने उसको एक निमित्त बनाया था. किसी भी मानव समूह शराबसे मूक्त करना एक अच्छी बात है. लेकिन अभीतक किसीको पता नहीं कितने ठाकोर लोग शराब मूक्त (व्यसन मूक्त) बने. इस संगठनका इस लींचींगमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका पूरा लाभ लिया.

दो पेपर टायगर है गुजरात में

“नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”के नेताओंने पहेले पाटीदारोंमेंसे एकको पेपर टायगर बनाया था. उसने आंदोलन चलाया और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी मददसे करोडों रुपयेकी सरकारी और नीजी संपत्तिका नाश करवाया था. वर्तमान पत्रोंने (पेपरोंने) उनको टायगर बना दिया था.

नहेरुवीयन कोंग्रेसको गुजरातके अधिकतर वर्तमान पत्रोंने भरपूर समर्थन दिया है, और इन समाचार पत्रोंने पाटीदारोंके आंदोलनको फूंक फूंक कर जीवित रक्खनेकी कोशिस की है. वर्तमान पत्रोंको और उनके विश्लेषकोंने कभी भी आंदोलनके गुणदोषके बारेमें चर्चा नहीं की है. लेकिन आंदोलन कितना फैल गया है, कितना शक्तिशाली है, सरकार कैसे निस्फल रही है, इन बातोंको बढा चढा कर बताया है.

पाटीदार आंदोलनसे प्रेरित होकर नहेरुवीयन कोंग्रेसने अल्पेश ठकोरको आगे किया है. यह एक अति सामान्य कक्षाका व्यक्ति है. जिसका स्वयंका कुछ वजुद न हो और प्रवर्तमान फेशन के प्रवाहमें आके दाढी बढाकर अपनी आईडेन्टीटी (पहेचान) खो सकता है वह व्यक्तिको आप सामान्य कक्षाका या तो उससे भी निम्न कक्षाका नहीं मानोगे तो आप क्या मान मानोगे?

“दुष्कर्म” तो एक निमित्त है. ऐसा निमित्त तो आपको कहीं न कहींसे मिलने वाला ही है. यह पेपर टायगर खुल्लेआम हिन्दीभाषीयोंके विरुद्ध बोलने लगा है. और समाचार माध्यम उसको उछाल रहे है.

वैसे तो मुख्य मंत्रीने १२०० व्यक्तियोंको हिरासतमें लिया है. और इन सबको पता चल जायेगा कि कानून क्या कर सकता है. लेकिन यदि किसीको अति जिम्मेवार समज़ना है तो वे वर्तमान पत्र है. समाचार पत्रोंको तो लगता है कि उनके मूँहमें तो गुड और सक्कर किसीने रख दिया है. लेकिन अब नहेरुवीयन कोंग्रेसकी और उसके दंभी समाचार पत्रोंकी पोल खूल रही है और उनके कई लोग कारावासमें जाएंगे यह सुनिश्चित है इसलिये उनकी आवाज़के सूर अब बदलने लगे है लेकिन कानूनसे गुजरातमें तो कोई बच नहीं सकता. इसलिये ये सब नहेरुवीयन कोंग्रेसी डर गये हैं.

इस विषयमें हमें यह देखना आवश्यक बन जाता है कि आजकी कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस) आज के दुष्कर्मोंके उच्च (निम्न) स्तर तक कैसे पहोंची?

वैसे तो बीजेपीकी सरकार और नेतागण सतर्क और सक्रिय है. शासन भी सक्रिय है. जो लोग गुजरात छोडकर गये थे उनको वापस बुलारहे है और वे वापस भी आ रहे है. गुजरातकी जनता और खास करके बीजेपी के नेतागण उन सभीका गुलाबका पुष्प देके स्वागत कर रहे है. हिन्दी भाषीयोंने ऐसा प्रेम कभी भी महाराष्ट्रमें नहीं पाया.

नहेरुवीयन कोंग्रेसका गुजरातके संदर्भमें ऐतिहासिक विवरण देखा जा सकता है.

नहेरुने महात्मा गांधीको ब्लेकमेल करके तत्काल प्रधान मंत्री पद तो ग्रहण कर लिया, लेकिन उनको तो अपनेको प्रधानमंत्रीके पद पर शाश्वत भी बनाये रखना था. और इसमें तो गांधी मददमें आने वाले नहीं थे. इस बात तो नहेरुको अच्छी तरह ज्ञात थी.

गांधी तो मर गये.

नहेरुसे भी बडे कदके सरदार पटेल एक मात्र दुश्मन थे. लेकिन नहेरुके सद्‌भाग्यसे वे भी चल बसे. नहेरुका काम ५०% तो आसान हो गया. उन्होने कोंग्रेसके संगठनका पूरा लाभ लिया.

जनता को कैसे असमंजसमें डालना और अनिर्णायक बना देना यह एक शस्त्र है. इस शस्त्रका उपयोग अंग्रेज सरकार करती रहेती थी. लेकिन गांधीकी हत्याके बाद हिन्दु विरुद्ध मुस्लिमका शस्त्र इतना धारदार रहा नहीं.

“तू नहीं तो तेरा नाम सही” नहेरु बोले

लेकिन शस्त्रका जो काम था वह “जनताका विभाजन” करना था. तो ऐसे और शस्त्र भी तो उत्पन्न किये जा सकते है.

नहेरुने सोचा, ऐसे शस्त्रको कैसे बनाया जाय और कैसे इस शस्त्रका उपयोग किया जाय. कुछ तो उन्होंने ब्रीटीश शासकोंसे शिखा था और कुछ तो उन्होंने उस समयके रुसकी सरकारी “ओन लाईन” अनुस्नातकका अभ्यास करके शिखा था. यानी कि साम्यवादी लोग जब सत्तामें आ जाते है तो सत्ता बनाये रखने के लिये जनताको असमंजसमें रखना और विभाजित रखना आवश्यक मानते है.

१९५२मे नहेरुने काश्मिर और तिबटकी हिमालयन ब्लन्डरके बाद भी चीनपरस्त नीति अपनाई, और जनताका ध्यान हटाने के लिये भाषा पर आधारित राज्योंकी रचना की. लेकिन कोई काम सीधे तरिकेसे करे तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं.

नहेरुने प्रदेशवादको उकसायाः

“मुंबई यदि महाराष्ट्रको मिलेगा तो मुज़े खुशी होगी” नहेरुने बोला.

ऐसा बोलना नहेरुके लिये आवश्यक ही नहीं था. “भाषाके आधार पर कैसे राज्योंकी रचना करना” उसकी रुपरेखा “कोंग्रेस”में उपलब्ध थी. लेकिन नहेरुका एजन्डा भीन्न था. इस बातका इसी “ब्लोग-साईट”में अन्यत्र विवरण दिया हुआ है. नहेरुका हेतु था कि मराठी भाषी और गुजराती भाषी जनतामें वैमनष्य उत्पन्न हो जाय और वह बढता ही रहे. इस प्रकार नहेरुने मराठी जनताको संदेश दिया कि गुजराती लोग ही “मुंबई” महाराष्ट्रको न मिले ऐसा चाहते है.

याद रक्खो, गुजरातके कोई भी नेताने “‘मुंबई’ गुजरातको मिले” ऐसी बात तक नहीं की थी, न तो समाचार पत्रोमें ऐसी चर्चा थी.

लेकिन नहेरुने उपरोक्त निवेदन करके मराठी भाषीयोंको गुजरातीयोंके विरुद्ध उकसाया और पचासके दशकमें मुंबईमें गुजरातीयों पर हमले करवाये और कुछ गुजरातीयोंने मुंबईसे हिजरत की.

गुजरातीयोंका संस्कार और चरित्र कैसा रहा है?

एक बात याद रक्खोः उन्नीसवे शतकके अंतर्गत, गुजरातीयोंने ही मुंबईको विकसित किया था. मुंबईकी ९० प्रतिशत मिल्कत गुजरातीयोंने बनाई थी. ७० प्रतिशत उद्योगोंके मालिक गुजराती थे. और २० प्रतिशत गुजराती लोगोंका मुंबई मातृभूमि था. “गुजराती” शब्द से मतलब है कच्छी, सोरठी, हालारी, झालावाडी, गोहिलवाडी, काठियावाडी, पारसी, सूरती, चरोतरी, बनासकांठी, साबरकांठी, पन्चमाहाली, आबु, गुजरातसे लगने वाले मारवाडी, मेवाडी आदि प्रदेश.

गुजरातीयोंने कभी परप्रांतीयों पर भेद नहीं किया. गुजरातमें ४० प्रतिशत जनसंख्या पछात दलित थे. लेकिन गुजरातीयोंने कभी परप्रांतमें जाकर, गुजरातीयोंको बुलाके, नौकरी पर नहीं रक्खा. उन्होंने तो हमेशा वहांके स्थानिक जनोकों ही व्यवसाय दिया. चाहे वह ताता स्टील हो, या मेघालय शिलोंगका “मोदी कोटेज इन्डस्ट्री” हो. गुजरातकी मानसिकता अन्य राज्योंसे भीन्न रही है.

गुजरात और मुंबई रोजगारी का हब है.

पहेलेसे ही गुजरात, मुंबई और महाराष्ट्र, व्यवसायीयोंका व्यवसाय हब है. उन्नीसवीं शताब्दीसे प्रथम अर्ध शतकसे ही अहमदाबादमें कपडेकी मिलोंमें हिन्दी-भाषी लोग काम करते है.

१९६४-६५में जब मैं जबलपुरमें था तब मेरे हिन्दीभाषी सहाध्यायी लोग बता रहे थे कि हमारे लोग, पढकर गुजरात और महाराष्ट्रमें नौकरी करने चले जाते है. गुजरातमें सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे चतूर्थ श्रेणीके कर्मचारीयोंमें हिन्दीभाषी लोगोंका बहुमत रहेता था. सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे प्रथम और द्वितीय श्रेणीके कर्मचारीयोंमे आज भी हिन्दीभाषीयोंका बहुमत होता है, वैसे तो अधिकारीयोंके लिये गुजरात एक टेन्योर क्षेत्रमाना जाता है तो भी यह हाल है.

नरेन्द्र मोदी और गुजराती

गुजराती लोग शांति प्रिय और राष्ट्रवादी है. जब नरेन्द्र मोदी जैसे कदावर नेता गुजरातके मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने कभी क्षेत्रवादको बढावा देनेका काम नहीं किया. नरेन्द्र मोदी हमेशा कहेते रहेते थे कि गुजरातके विकासमें हिन्दीभाषी और दक्षिणभारतीयोंका महान योगदान रहा है. गुजरातकी जनता उनका ऋणी है.

२००२ के चूनावमें और उसके बादके चूनावोंमें भी, नरेन्द्र मोदी, यदि चाहते तो ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु की तरह क्षेत्रवाद-भाषावादको हवा देकर उसको उछाल के  गुजराती और बिन-गुजराती जनताको भीडवा सकते थे. लेकिन ऐसी बात गुजराती जनताके डीएनए में नहीं है. और नरेन्द्र मोदीने राष्ट्रवादको गुजरातमें बनाये रक्खा है.

याद रक्खो, जब नहेरु-इन्दिराके शासनके सूर्यका मध्यान्ह काल था तब भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की (१९७१के एक दो सालके समयको छोड) गुजरातमें दाल नहीं गलती थी. वह १९८० तक कमजोर थी और मोरारजी देसाईकी कोंग्रेस (संस्था) सक्षम थी. मतलब कि, राष्ट्रवाद गुजरातमें कभी मरा नहीं, न तो कभी राष्ट्रवाद गुजरातमें कमजोर बना.

१९८०से १९९५ तक गुजरातमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन रहा लेकिन उस समय भी राष्ट्रवाद कमज़ोर पडा नहीं क्यों कि गुजरातकी नहेरुवीयन कोंग्रेसके “आका” तो नोन-गुजराती थे इसलिये “आ बैल मुज़े मार” ऐसा कैसे करते?

भाषा और क्षेत्रवादके लिये गुजरातमें जगह नहीं है;

उद्धव -बाला साहेब थाकरे, राज ठाकरे, ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु–वाले क्षेत्रवाद के लिये गुजरातमें जगह नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें गुजरातमें दंगे, और संचार बंदी तो बहोत होती रही, लेकिन कभी क्षेत्र-भाषा वादके दंगे नहीं हुए.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह संस्कृति और संस्कार है कि जूठ बार बार बोलो और चाहे वह जूठ, जूठ ही सिद्ध भी हो जाय, अपना असर कायम रखता है.

(१) पहेले उन्होंने अखलाक का किस्सा उछाला, और ठेर ठेर हमें गौवध आंदोलनके और लींचींगके किस्से प्रकाशित होते हुए दिखने लगे,

(२) फिर हमें भारतके टूकडेवाली गेंग दिखाई देने लगी और उनके और अफज़ल प्रेमी गेंगके काश्मिरसे, दिल्ली, बनारस, कलकत्ता, और हैदराबाद तकके प्रदर्शन दिखनेको मिले,

(३) फिर सियासती खूनकी घटनाएं और मान लो कि वे सब खून हिन्दुओंने ही करवायें ऐसा मानके हुए विरोध प्रदर्शन के किस्से समाचार पत्रोंमे छाने लगे,

(४) फिर सियासती पटेलोंका आरक्षणके हिंसक प्रदर्शन और मराठाओंका आरक्षण आदि के प्रदर्शनोंकी घटनाएं आपको समाचार माध्यमोंमे प्रचूर मात्रामें देखने को मिलने लगी.

(५) फिर आपको कठुआ गेंग रेप की घटनाको, कायदा-व्यवस्थाके स्थान पर, सेना और कश्मिरके मुस्लिमोंकी टकराहट, के प्रदर्शन स्वरुप घटना थी, इस बातको उजागर करती हुए समाचार देखने को मिलने लगे.

(६) अब तो समाचार पत्रोंमे हररोज कोई न कोई पन्ने पर या पन्नों पर एक नाबालीग के गेंगरेप या दुष्कर्मकी घटना चाहे उसमें सच्चाई हो या न हो, देखनेको मिलती ही है. नाम तो नहीं लिखना है इसलिये बनावटी घटनाओं का भी प्रसारण किया जा सकता है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा माहोल बनाना चाहती है कि जनताको ऐसा लगता है कि बीजेपीके शासनमें गेंग रेप, दुष्कर्म की आदत उत्पन्न हुई. और नहेरुवीयन कोंग्रेसके ७० सालके जमानेमें तो भारत एक स्वर्ग था. न कोई बेकार था, न कोई गरीब था, न कोई अनपढ था, हर घर बिजली थी, हर कोई के पास पक्का मकान था और दो खड्डेवाला संडास था, पेट्रोल मूफ्तमें मिलता था और महंगाईका नामोनिशान नहीं था. सब आनंदमंगल था. कश्मिरमें हिन्दु सुरक्षित थे और आतंकवादका तो नामोनिशान नहीं था.

ये ठाकोर लोग कौन है?

ठाकोर (ठाकोर क्षत्रीय होते है. श्री कृष्ण को भी गुजरातमें “ठाकोरजी” कहे जाते है.) वैसे वे लोग एससी/ओसी में आते हैं और कहा जाता है कि वे लोग व्यसन के आदि होते हैं.

 “नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”की तबियत गुदगुदाई

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तबियत गुदगुदायी है कि, अब वह क्षेत्रवादका शस्त्र जो उन्होंने महाराष्ट्रमें गुजरातीयोंको मराठीयोंसे अलग करनेमें किया था उस शस्त्रको अजमाया जा सकता है.

शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, नहेरुवीयन कोंग्रेसके क्रमानुसार पूत्र और पौत्र है.

ये दोनों पार्टीयां तो खूल्ले आम क्षेत्रवादकी आग लगाती है. शिवसेना कैसे बीजेपीका समर्थन करती है वह एक संशोधनका विषय है, लेकिन यदि शरद पवारको प्रधान मंत्री बननेका अवसर आयेगा तो यह शिवसेना और एमएनएस, उसके पल्लेमें बैठ जायेंगे यह बात निश्चित है. जैसे कि उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसके प्रत्याषी प्रतिभा पाटिलको समर्थन किया था.

महाराष्ट्रमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेसने क्षेत्रवादको बहेकानेका काम प्रचूर मात्रामें किया है.

पाटीदारोंके आंदोलनके परिणाम स्वरुप, ज्ञातिवादके साथ साथ अन्य कोई शस्त्र है जिससे गुजरातमें कुछ और हिंसक आंदोलन करवा सकें?

गुजरात विरुद्ध हिन्दीभाषी

गुजरातमें हिन्दीभाषी श्रम जीवी काफी मात्रामें होते है. गुजरातके विकासमें उनका योगदान काफी है.

किसीका भी परप्रांतमें नौकरी करनेका शौक नहीं होता है. जब अपने राज्यमें नौकरीके अवसर नहीं होते है तब ही मनुष्य परप्रांतमें जाता है. मैंने १९६४-६५में भी ऐसे लोगो देखे है जो युपी बिहार के थे. उनके मूँहसे सूना था कि हमारे यहां लडका एमएससीमें डीवीझन लाता है तो भी कई सालों तक बेकार रहेता है. नौकरी मिलने पर उसका भाव बढता है. ये सब तो लंबी बाते हैं लेकिन हिन्दी भाषी राज्योंमे बेकारीके कारण उनके कई लोगोंको अन्य राज्योंमें जाना पडता है.

कौन पर प्रांती है? अरे भाई, यह तो वास्तवमें घर वापसी है.

सुराष्ट्र-गुजरातका असली नाम तो है आनर्त. जिसको गुरुजनराष्ट्र भी कहा जाता था जिसमेंसे अपभ्रंश होकर गुजरात हुआ है

प्राचीन इतिहास पर यदि एक दृष्टिपात्‌ करें तो भारतमें सरस्वती नदीकी महान अद्‍भूत सुसंस्कृत सभ्यता थी. उसका बडा हिस्सा गुजरातमें ही था. गुजरातका नाम “गुरुजनराष्ट्र था”.

अगत्स्य ऋषिका आश्रम साभ्रमती (साबरमती)के किनारे पर था,

वशिष्ठ ऋषि का आश्रम अर्बुद पर्वत पर था,

सांदिपनी ऋषिका आश्रम गिरनारमें था,

भृगुरुषिका आश्रम भरुचके पास नर्मदा तट पर था,

विश्वामित्र का आश्रम विश्वामित्री नदीके मुखके पास पावापुरीमें था,

अत्री ऋषिके पूत्र, आदिगुरु दत्तात्रेय गिरनारके थे.

चंद्र वंश और सूर्यवंशके महान राजाओंकी पूण्य भूमि सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्र ही था.

सरस्वती नदीका सुखना और जलवायु परिवर्तन

जब जलवायुमें परिवर्तन हुआ तो इस संस्कृतिकी,

एक शाखा पश्चिममें ईरानसे गुजरकर तूर्क और ग्रीस और जर्मनी गई,

एक शाखा समूद्रके किनारे किनारे अरबस्तान और मीश्र गई

एक शाखा काराकोरमसे तिबट और मोंगोलिया गई,

एक शाखा पूर्वमें गंगा जमना और ब्र्ह्म पूत्रके प्रदेशोंमे गई, जो वहांसे ब्रह्मदेश गई, और वहांसे थाईलेन्ड, फिलीपाईन्स, ईन्डोनेशिया, और चीन जापान गई,

एक शाखा दक्षिण भारतमें और श्रीलंका गई.

जब सुराष्ट्र (गुरुजन राष्ट्र)का जलवायु (वातावरण) सुधरने लगा तो गंगा जमनाके प्रदेशोंमें गये लोग जो अपनी मूल भूमिके साथ संपर्कमें थे वे एक या दुसरे कारणसे घरवापसी भी करने लगे.

राम पढाईके लिये विश्वामित्रके आश्रममें आये थे,

कृष्ण भी पढाईके लिये सांदिपनी ऋषिके आश्रममें आये थे. फिर जब जरासंघका दबाव बढने लगा तो श्री कृष्ण अपने यादवोंके साथ सुराष्ट्रमें समूद्र तट पर आ गये और पूरे भारतके समूद्र तट पर यादवोंका दबदबा रहा.

ईश्वीसन की नवमी शताब्दीमें ईरानसे पारसी लोग गुजरात वापस आये थे.

ईश्वीसनकी ग्यारहवी शताब्दीमें कई (कमसे कम दो हजार कुटूंबोंको) विद्वान और चारों वेदोंके ज्ञाता ब्राह्मणोंको मूळराज सोलंकी काशीसे लेकर आया था. वे आज औदिच्य ब्राह्मणके नामसे जाने जाते है.

इसके बाद भी जनप्रवाह उत्तर भारतसे आनर्त-सुराष्ट्र में आता ही रहा है.

“स्थानांतर” यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है.

सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्रमें सबका स्वागत है. आओ यहां आके आपकी मूल

भूमिका वंदन करो और भारत वर्षका नाम उज्वल करो.

नहेरुवीयन कोंग्रेस तेरा सर्वनाश हो,

बीजेपी तेरा जय जयकार हो.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

डीबीभाई(दिव्यभास्कर की गुजराती प्रकाशन)ने क्या किया?

जो हंगामा और मारपीट ठाकोरोंने गुजरातमें की, वे “जनता”के नाम पर चढा दी, और उनको नाम दिया “आक्रोश”.

आगे तंत्रीलेखमें लिखा है

“नीतीशकुमार हवे गुजरात विरुद्ध बिहार मोडलनी चर्चा तो शरु करी दीधी छे अने तेमनी चर्चाने उठावनारा नोबेलविजेता अर्थ शास्त्र अमर्त्यसेन पण चूप छे”

यह कैसी वाक्य रचना है? इस वाक्यका क्या अर्थ है? इसका क्या संदेश है? यदि कोई भाषाशास्त्री बता पाये तो एक लाख ले जावे. यह वाक्य रचना और उसका अर्थ जनताके पल्ले तो पडता नहीं है.

डीबीभाई खूद हिन्दीभाषी है. उनको भाषा शुद्धिसे और वाक्यार्थसे कोई मतलब नहीं है. आपको एक भी पेराग्राफ बिना क्षतिवाला मिलना असंभव है. शिर्ष रेखा कैसी भी बना लो. हमें तो बीजेपीके विरुद्ध केवल ऋणात्मक वातावरण तयार करना है.

“(नहेरुवीयन) कोंग्रेसके पैसे, हमारे काम कब आयेंगे? यही तो मौका है …!!!” वर्तमान पत्रकी सोच.

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We want Shivaji who does not spare trecherous

We want Shivaji who does not spare trecherous

विश्वासघात, बेईमानी और स्वकेन्द्रीयता नहेरुवीयनोंकी और नहेरुवीयन पक्षकी परंपरा है

अगर कोई नहेरुवीयन कोंग्रेस पर विश्वास करता है तो वह या तो गद्दार और स्वकेन्द्री है या तो वह बेवकुफ है. नहेरुवीयन कोंग्रेस के साथी पक्ष (भूत और वर्तमान दोनों) कोंग्रेसके समान ही है. वे भी उसी प्रकार विश्वसनीय नहीं है, चाहे वे नहेरुवीयन कोंग्रेसका विरोध करें या न करें, जनताको इनका विश्वास कभी भी करना नहीं चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेसका काम हमेशा जनताका विभाजन करनेका रहा है, चाहे देशका विनाश क्यों न हो जाय. नहेरुवीयन कोंग्रेसने एक भी वचनका पालन नहीं किया है.
कोंग्रेसने निम्नलिखित वचन या तो प्रतिज्ञाएं लि थी.

१९४७ देशमें घी दूधकी नदीयां बहायेंगे (नहेरु). व्यंढ

१९५० देशकी अखंडित ता का रक्षण करेंग.(जब सरदार पटेलने नहेरुको चिनी भयसे चेतावनी दी तब नहेरुने वचन दिया था) व्यंढ

१९६० चीनसे कोई भय नहीं है. हम तैयार है. (नहेरु ने पार्लामेन्टको विश्वास दिलाया)व्यंढ

१९६३ नहेरुकी विदेश नीतिकी चीनके साथ युद्धमें भारतकी शर्मनाक पराजयके बाद नहेरुने और उसके पक्षने भारतीय संसदके सामने प्रण लिया कि, वे चीनद्वारा छीनी हुई भारतीय भूमिको वापस लेनेके लिये बिना चैनसे बैठेंगे नहीं (नहेरु १९६३)व्यंढ

१९६९ गरीबी हटायेंगे (ईन्दीरा)और स्मग्लींगमें पूरबहार हुई. गुन्डागर्दी का शासन चालु हुआ. व्यंढ

१९७१ अगर पाकसे युद्ध होगा तो जिता हुआ मुल्क वापस नहीं देंगे, पाक घुसपैठोंको (जो एक करोड से ज्यादा थे) वापस करेंगे, जुर्माना वसुल करेंगे, खर्च वसुल करेंगे … (ईन्दीरा और जगजिवनराम)

आजतक ३०० से ज्यादा भारतीय  जवान, पाकमें बंधक है जो उसने रिहा नहीं किया.

ईन्दीराने पाकिस्तानके नब्बे हजार सैनिक-बंधकोंको  तूरंत रिहा कर दिया था. (व्यंढ)

१९७२ एक भी घुसपैठ को वापस नहीं किया.  ईन्दीराने सब बंधक पाक सैनिकोंको (९०,०००) बेशर्त रीहा किया, जिता हुआ सभी मुल्क वापस किया, कुछ भी पेनल्टी या खर्च वसुल नहीं किया. (ईन्दीरा ने सिमला करारके अंतर्गत भारतीय सैन्यकी विजयको खतरनाक पराजयमें परिवर्तित की) कौभान्डोंकी परंपरा शुरु हुई. (व्यंढ)

१९७५ ईलाहाबाद उच्चन्यायालयके सामने ईन्दीराने १४ दफा जुठ बोला. ईलाहाबाद उच्चन्यायालयने ईन्दीरागांधीका चूनाव रद किया और ईन्दीरा को अयोग्य घोषित किया.

१९७५ ईन्दीराने सभी क्षेत्रोंमें विफलताके कारण ईमर्जेसी लादी और लोकशाहीका खून किया. जब ईमर्जेन्सी फेलहुई तो चूनाव देना पडा. इमर्जेन्सी अंतर्गत दीये हुए सभी घोषणाएं जूठ थी.
१९७९ चरणसिंह चौधरीको साथ सहकार देनेका विश्वास दीया, और मोरारजी देसाईकी विशुद्ध सकरकारको गिराई. फिर चरण सिंहका विश्वासघात कीया.

१९८० काम करती सरकारका वादा दिया और भीन्दराणवालेको संत की उपाधी दी. पंजाबमें अराजकता फैली, कई कौभान्ड हुए, नक्षलवाद और गुन्डागर्दी फुलीफाली.

१९८४ भारतको २१वीं सदीमें ले जानेका वादा किया (राजीव गांधी) आज भी ६० करोड जनता की रोजाना आय २० रुपयेसे कम है. कौभान्ड चालु रहे. फोडरस्केम, लोटरी, बोफ्फोर, आतंकवाद, मुस्लिम आतंकवाद.
१९९० कश्मिरी हिन्दुओंपर अत्याचार कत्ल और निस्काषित.

१९९१ काश्मिरी हिन्दुओंको पूनःस्थापित करेंगे, गरीबी हटायेंगे (नरसिंह राव)  व्यंढ.  हर्शद महेताका कौभान्ड हुआ. दाउदको फ्री पेसेज दीया

२००४ गरीबी हटायेंगे (सोनीया) व्यंढ प्रतिज्ञा. आतंकवाद नक्षलवाद और माओवादी आतंक पूरबहारमें. नक्षलवाद और माओवादी आतंक

२००९ गरीबी हटायेंगे (सोनीया) व्यंढ प्रतिज्ञा. आतंकवाद नक्षलवाद और माओवादी आतंक पूरबहारमें.  अगणित कौभान्ड और चारसौ लाख करोड की रकमसे ज्यादा पैसा नहेरुवीयन कोंग्रेसीयों और उनके साथीयोंके नाम विदेशी बेंको के अवैध खातोंमें जमा. अराजकता और नींभरता की कोई सीमा नहीं.

जो अपना सच्चा नाम तक नहीं बता सकते वे लोगोंकी विश्वसनीयता रसाताल होती है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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