Rama has been lost who had walked on this earth in flesh and blood Part-7
खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग–७)
एक बात हमे फिरसे याद रख लेनी चाहिये कि व्यक्ति और समाज प्रणालीके अनुसार चलते है.
समाजमें व्यक्तिओंका व्यवहार प्रणालीयोंके आधार पर है
प्रणाली के अंतर्गत नीति नियमोंका पालन आता है. अलग अलग जुथोंका व्यक्तिओंका कारोबार भी प्रणालीके अंतर्गत आता है. कर्म कांड और पूजा अर्चना भी प्रणालीके अंतरर्गत आते है.
मानव समाज प्रणाली के आधार पर चलता है. प्रणालीके पालनसे मानव समाज उपर उठता है. समाज के उपर उठनेसे मतलब है समाजकी सुखाकारीमें और ज्ञानमें वृद्धि. समाजके ज्ञानमें वृद्धि होनेसे समाजको पता चलता है कि, समाजकी प्रणालीयों को कैसे बदला जाय, कैसे नयी प्रणालीयोंको लाया जाय और कैसे प्रणालीयों को सुव्यवस्थित किया जाय.
शासक का कर्तव्य है कि वह स्थापित प्रणालीयोंका पालन करें और और जनतासे पालन करवायें.
कुछ प्रणालीयां कोई समाजमें विकल्प वाली होती हैं.
जैसे कि एक स्त्रीसे ही शादी करना या एक से ज्यादा स्त्रीयोंसे शादी करना.
जीवन पर्यंत एक ही स्त्रीसे विवाहित जीवन बीताना या उसके न होने से या और कोई प्रयोजनसे दुसरी स्त्रीसे भी शादी करना.
ऐसे और कई विकल्प वाले बंधन होते है. इनमें जो विकल्प आदर्श माना गया हो उसको स्विकारना सत्पुरुषोंके लिये आवश्यक है.
शासक को भी ऐसी आदर्श प्रणालीयोंका पालन करना ईच्छनीय है.
शासकको हृदयसे प्रणालीयोंका पालन करना है.
शासक (राजा या कोई भी व्यक्ति या व्यक्ति समूह जिनके उपर शासन की जिम्मेवारी है) न तो कभी प्रणालीयों मे संशोधन कर सकता है न तो वह नयी प्रणालीयां सूचित कर सकता है. अगर वह ऐसा करता है तो वह जनताकी निंदाके पात्र बनता है और जनता चाहे तो उसको पदभ्रष्ट कर सकती है.
रामने क्या किया?
रामने एक आदर्श राजाका पात्र निभाया.
उन्होने एक मात्र सीता से ही शादी की, और एक पत्नीव्रत रखा,
वनवासके दरम्यान ब्रह्मचर्यका पालन किया,
रावणको हरानेके बाद, सीताकी पवित्रताकी परीक्षा ली,
(वैसे भी सीता पवित्र ही थी उसका एक कारण यह भी था कि वह अशोकवाटिकामें गर्भवती बनी नहीं थी. अगर रावणने उसके उसके साथ जातीय संबंध रखा होता तो वह गर्भवती भी बन सकती थी.)
रामने जनताकी निंदासे बोध लिया और सीताका त्याग किया. राम जनताके साथ बहस नहीं किया. रामने सीताका त्याग किया उस समय सीता सगर्भा थी. रामने सीताको वाल्मिकीके आश्रममें रखवाया, ताकि उसकी सुरक्षा भी हो और उसकी संतानकी भी सुरक्षा और संतानका अच्छी तरह लालन पालन हो सके.
रामने सीताका त्याग करने के बाद कोई दूसरी शादी नहीं की.
रामने यज्ञके क्रीया कांडमें पत्नी की जरुरत होने पर भी दूसरी शादी नहीं की, और पत्नी की जगह सीताकी ही मूर्तिका उपयोग किया.
इससे साफ प्रतित होता है कि, राम सिर्फ सीताको ही चाहते थे और सिर्फ सीताको ही पत्नी मानते थे.
रामने न तो ढिंढोरा पीटवाया कि सीता को एक बडा अन्याय हो रहा है,
रामने न तो ढिंढोरा पीटवाया कि खुदको एक बडा अन्याय हो रहा है,
रामने न तो अपने फायदे के लिये प्रणालीमें बदलाव लानेका ढिंढोरा पीटवाया,
रामने खुद अपने महलमें रहेते हुए भी एक वनवासी जैसा सादगीवाला जीवन जिया और एक शासक का धर्मका श्रेष्ठतासे पालन किया.
क्या रामने ये सब सत्तामें चालु रहने के लिये किया था?
नहीं जी.
रामको न तो सुविधा का मोह था न तो सत्ताका मोह था.
अगर वे चाहते तो १४ सालका वनवास स्विकारते ही नहीं. अपने पार्शदों द्वारा जनतासे आंदोलन करवाते और अयोध्यामें ही रुक जाते.
अगर ऐसा नहीं करते तो भी जब भरत वापस आता है और रामको विनति करता है कि, वे अयोध्या वापस आजाय और राजगद्दी का स्विकार कर लें, तब भी राम भरतकी बात मान सकते थे. लेकिन रामने दशरथके वचनका पालन किया. और अपने निर्णयमें भी अडग रहे.
रामने वचन निभाया.
रामने अपने पुरखोंका वचन निभाया. अपना वचन भी निभाया. अगर राम चाहते तो वालीका राज्य स्वहस्तगत कर सकते थे. अगर राम चाहते तो रावणकी लंकाका राज्य स्वहस्तगत कर सकते थे. उसके लिये कुछभी बहाना बना सकते थे. लेकिन रामने प्रणालीयां निभायी और एक आदर्श राजा बने रहे.
ईन्दीरा गांधीने क्या किया?
नहेरुने भारतकी संसदके सामने प्रतिज्ञा ली थी कि, वे और उसका पक्ष, चीनके साथ युद्धमें हारी हुई जमीन को वापस प्राप्त किये बीना आराम नहीं करेगा. नहेरुको तो वार्धक्यके कारण बुलावा आ गया. लेकिन ईन्दीरा गांधीने तो १६ साल तक शासन किया. परंतु इस प्रतिज्ञाका पालन तो क्या उसको याद तक नहीं किया.
ईन्दीराने खुद जनताको आश्वस्त किया था कि वह एक करोड बंगलादेशी घुसपैठोंको वापस भेज देगी. लेकिन उसने वोंटबेंककी राजनीतिके तहत उनको वापस नहीं भेजा.
पाकिस्तानने आखिरमें भारत पर हमला किया तब ही ईन्दीरा गांधीने जनताके और लश्करके दबावके कारण युद्धका आदेश दिया. भारतके जवानोंने पाकिस्तानको करारी हार दी.
याद करो, तब ईन्दीरागांधीने और उसके संरक्षण मंत्रीने एलान किया था कि अबकी बार पाकिस्तानके साथ पेकेज–डील किया जायगा और इसके अंतर्गत दंड, नुकशान वसुली, १९४७–१९५० अंतर्गत पाकिस्तानसे आये भारतीय निर्वासितों की संपत्तिकी किमत वसुली और उनकी समस्याओंका समाधान, पाकिस्तान स्थित हिन्दु अल्पसंख्यकोंकी सुरक्षा और उनके हितोंकी रक्षा, पाकिस्तानमें भारत विरुद्ध प्रचार अभियान पर कडी पाबंदी, पाकिस्तान की जेलों कैद भारतीय नागरिकोंकी मुक्ति, पाकिस्तानी घुसपैठीयोंकी वापसी, काश्मिरकी लाईन ओफ कन्ट्रोलको कायमी स्विकार और भारतके साथ युद्ध–नहीं का करार. ऐसा पेकेज डील पर हस्ताक्षर करने पर ही पाकिस्तानी युद्ध कैदीयों की मुक्ति और जमीन वापसी पर डील किया जायेगा.
लेकिन ईन्दीरा गांधीने इस पेकेज डील किया नहीं और वचन भंग किया. इतना ही नहीं जो कुछ भी जिता था वह सब बीना कोई शर्त वापस कर दिया.
नहेरु और ईन्दीराने गरीबी हटानेका वचन दिया था वह भी एक जूठ ही था.
ईंदीरा गांधीका चूनाव संविधान अंतर्गत स्थापित प्रणालीयोंसे विरुद्ध था. न्यायालयने ईन्दीरा गांधीका चूनाव रद किया और उसको संसद सदस्यता के लिये ६ सालके लिये योग्यता हीन घोषित किया.
प्रणालीयोंका अर्थघटन करनेका अंतिम अधिकार उच्चन्यायालय का है. यह भी संविधानसे स्थापित प्रणाली है.
अगर इन प्रणालीयोंको बदलना है तो शासक का यह अधिकार नहीं है. लेकिन ईन्दीरागांधीने अपनी सत्ता लालसा के कारण, इन प्रणालीयोंको बदला. वह शासनपर चालु रही. और उसने आपतकाल घोषित किया. जनताके अधिकारोंको स्थगित किया. विरोधीयोंको कारावासमें बंद किया. यह सब उसने अपनी सत्ता चालु रखने के लिये किया. ये सब प्रणालीयोंके विरुद्ध था.
प्रणाली बदलनेकी आदर्श प्रक्रिया क्या है?
प्रजातंत्रमें प्रणालीयोंमे संशोधन प्रजाकी तरफसे ही आना चाहिये. उसका मुसद्दा भी प्रजा ही तयार करेगी.
रामने तो सीताको वापस लाने के लिये या तो उसको शुद्ध साबित करने के लिये कुछ भी किया नहीं. न तो उन्होने कुछ करवाया. न तो रामने अपने विरोधीयोंको जेल भेजा.
तो हुआ क्या?
सीता जो वाल्मिकीके आश्रममें थी. वाल्मिकीने सीतासे सारी बाते सूनी और वाल्मिकीको लगा की सीताके साथ न्याय नहीं हुआ है. इसलिये उन्होने एक महाकाव्य लिखा. और इस कथाका लव और कुशके द्वारा जनतामें प्रचार करवाया और जनतामें जागृति लायी गई. और जनताने राम पर दबाव बनाया.
लेकिन जिस आधार पर यानी कि, जिस तर्क पर प्रणालीका आधार था, वह तर्कको कैसे रद कर सकते है? नयी कौनसी प्रणाली स्थापित की जाय की जिससे सीताकी शुद्धता सिद्ध की जाय.
जैसे राम शुद्ध थे उसी आधार पर सीता भी शुद्ध थी. वाल्मिकी और उनका पूरा आश्रम साक्षी था. और यह प्रक्रियाको वशिष्ठने मान्य किया.
इस पूरी प्रक्रियामें आप देख सकते हैं कि रामका कोई दबाव नहीं है. रामका कोई आग्रह नहीं है. इसको कहेते हैं आदर्श शासक.
रामका आदर्श अभूत पूर्व और अनुपमेय है.
पत्नीके साथ अन्याय?
रामने सीताका त्याग किया तो क्या यह बात सीताके लिये अन्याय पूर्ण नहीं थी?
सीता तो रामकी पत्नी भी थी. सीताके पत्नी होनेका अधिकारका हनन हुआ था उसका क्या?
इस बातके लिये कौन दोषित है?
राम ही तो है?
रामने पतिधर्म क्यों नहीं निभाया?
रामको राजगद्दी छोड देनी चाहिये थी. रामने राजगद्दीका स्विकार किया और अपने पतिधर्मका पालन नहीं क्या उसका क्या?
रामका राज धर्म और रामका पतिधर्म
रामकी प्राथमिकता राजधर्मका पालन करनेमें थी. राम, दशरथराजाके ज्येष्ठपुत्र बने तबसे ही रामके लिये प्राथमिक धर्म निश्चित हो गया था कि, उनको राजधर्मका पालन करना है. यह एक राजाके ज्येष्ठपुत्रके लिये प्रणालीगत प्राथमिकता थी.
सीता रामकी पत्नी ही नहीं पर प्रणाली के अनुसार रानी भी थी. अगर रानी होनेके कारण उसको राज्यकी सुविधाओंके उपभोगका अधिकार मिलता है तो उसका भी धर्म बनता है कि, राजा अगर प्रणालीयोंके पालन करनेमें रानीका त्याग करें तो रानी भी राजाकी बातको मान्य करें. राजा और रानी प्रणालीयोंके पालनके मामलेमें पलायनवादका आचरण न करें.
सीता भी हाडमांसकी बनी हुई थी
रामायणकी कथा, हाडमांससे बने हुए मानवीय समाजकी एक ऐतिहासिक महाकथा है. सीता भी हाडमांसकी बनी हुई थी. उसने अपने हाडमांसके नातेसे सोचा की यह क्या बात हुई जो शुद्धताकी बात इतनी लंबी चली! यदि ऐसा ही चलते रहेगा तो मुझे क्या बार बार शुद्धताका प्रमाण पत्र लेते रह्ना पडेगा?
सीता कोई खीणमें पडकर आत्महत्या कर लेती है.
जनक राजाको यह सीता खेतकी धरती परसे प्राप्त हुई थी. वह सीता धरतीमें समा गयी. कविने उसको काव्यात्मक शैलीमें लिखा की अन्याय के कारण भूकंप हुआ और धरतीमाता सिंहासन लेके आयी और अपनी पुत्रीको ले के चली गई.
रामने अपनी महानता दिखायी. सीताने भी अपनी महानता दिखाई.
क्या रामके लिये यह एक आखरी अग्निपरीक्षा थी. नहीं जी. और भी कई पडाव आये जिसमें रामके सामने सिद्धांतोकी रक्षाके लिये चूनौतियां आयीं.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः सीता, राम, शासक, राजा, रानी, वचन, शुद्धता, जनता, प्रणाली, परिवर्तन, ईन्दीरा, आपातकाल, अधिकार, योग्यता, अर्थघटन, अयोग्यता, पाबंदी, सत्ता, लालसा, प्राथमिकता, राजधर्म