Feeds:
Posts
Comments

Posts Tagged ‘सूत्रोच्चार’

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

Read Full Post »

हम कैसे वितंडावादीको परिलक्षित (आइडेन्टीफाय) करें?

हम कैसे वितंडावादीको परिलक्षित (आइडेन्टीफाय) करें?

वितंडावाद क्या है?

यदि कोई, चर्चाके विषय पर असंबद्ध, प्रमाणहीन और स्वयंसिद्ध विधिसे चर्चा प्रस्तूत करें, इसको वितंडावाद कहा जाता है. वितंडावादका प्रयोजन वैसे तो पूर्वग्रह भी हो सकता है. किन्तु क्वचित ऐसा भी होता है कि, स्वयंमें कोई पूर्वग्रह है या नहीं वह लेखक स्वयंको ज्ञात होता नहीं है.

यदि लेखकको ज्ञात होता है कि, अपना पक्ष सही नहीं है तत्‌ पश्चात्‌ भी वह वितंडावाद करता है तो उसका प्रयोजन वह किसी सांस्कृतिक समूहके ध्येय पर वह काम कर रहा है. लेखक उस समूहका सदस्य हो सकता है. कोई एक समूहका सदस्य होनेके कारणसे वह उस समूहके ध्येय के अनुसार लिखता है. तात्पर्य यह है कि लेखक जो विवरण उसके ध्येयके अनुरुप नहीं है उसको प्रकट नहीं करता है और जो ध्येयको अनुरुप है उसको किसी भी प्रकार प्रकट किया करता है.

वितंडावादी को कैसे परिलक्षित (पहेचाने) करे?

कोमन मेन

जैसे कि, कोई एक समय “जे.एन.यु.” में देशविरोधी सूत्रोच्चार किया गया. इस घटनाका विवरण किन किन वैचारिक जूथोंने कैसे किया था? याद करो.

सर्व प्रथम सूत्रोच्चारोंसे अवगत हो

“भारत तेरे टूकडे होगे, इन्शाल्ला इन्शाल्ला

“कश्मिरको चाहिये आज़ादी … आज़ादी …  छीनके लेंगे आज़ादी … आज़ादी … लडके लेंगे आज़ादी … आज़ादी…

“अफज़ल हम शर्मींदा है … तेरे कातिल जिन्दा है …

“कितने अफज़ल मारोगे हर घरसे अफज़ल निकलेगा …

इन सूत्रोंसे संदेश क्या मिलता है?

संदेश तो यह है कि इन लोगोंको “भारतको तोडना है”,

सूत्रोच्चार करनेवाले देशहितके विरोधी है,

सूत्रोच्चार करनेवाले देशविरोधी वातावरण बनानेका प्रयत्न कर रहे है,

सूत्रोच्चार करनेवाले जनतंत्रमें मानते नहीं है,

सूत्रोच्चार करनेवाले संविधानमें मानते नहीं है,

सूत्रोच्चार करनेवाले अहिंसामें मानते नहीं है, पर्याप्त जनाधार न होनेके कारण इन्होंने हिंसा नहीं की किन्तु हिंसाके लिये प्रचार अवश्य किया.

हिंसाका साक्ष्य नहीं

कुछ मूर्धन्य लोग, इस घटनामें  प्रत्यक्ष हिंसाका साक्ष्य (एवीडन्स) नहीं होने से,  इन सूत्रोंच्चार करनेवालोंको अहिंसक मानते है और ऐसी ही एक प्रणाली स्थापित करना चाहते हैं,

चूकि इसमें प्रत्यक्ष हिंसाका साक्ष्य नहीं है इसको लोकतंत्रके अधिकारके रुपमें देखते है,

यह विद्यार्थीगण, जे.एन.यु.में शिक्षा प्राप्त करनेके लिये आते है और इन सूत्रोच्चारोंको शिक्षाके एक  परिमाणके रुपमें समज़ते है और स्थापित करना चाहते हैं. यानी कि ऐसा करना शिक्षाका एक भाग है.

इस घटनाके संबंधित बिन्दु (टोपिक) क्या है?

ये सभी सूत्र घटनाकी चर्चाके  बिन्दु ही तो हैं. इनके उपर चर्चा हो सकती है.

प्राथमिकता किन किन बिन्दुओंको दी जाय?

(१) सूत्रोंको  प्राथमिकता देना आवश्यक है,

(२) सूत्रोंका पूर्वनियोजित रीतिसे समूह द्वारा उच्चारण करवाना इनमें विद्यार्थीयोंका ध्येय तो निहित है, तो इन विद्यार्थीओं पर कार्यवाही किस प्रमाण-प्रज्ञाने होना आवश्यक है, तो इनके उपर चर्चा की जाय.

(३) इन विद्यार्थीयोंकी पार्श्वभूमि क्या है उसका भी अन्वेषण होना आवश्यक है इसके उपर चर्चा होना आवश्य्क है,

(४) इन विद्यार्थीयोंने क्या और कैसे आयोजन किया था उसके उपर अन्वेषण होना आवश्यक है इसके उपर भी चर्चा हो सकती है,

(५) यह घटना देशके लिये श्रेय है या नहीं इसके उपर चर्चा हो सकती है,

(६) इन विद्यार्थीयों पर कार्यवाही करके कितना दंड देना आवश्यक है इसके उपर चर्चा हो सकती है,

(७) इन विद्यार्थीयोंके बाह्य सहयोगी कौन कौन है और उनका कार्यक्षेत्र क्या है उसके उपर अन्वेषण होना आवश्यक है इसके उपर चर्चा आवश्यक है.

किन्तु यदि आप बीजेपी शासनके विरोधी है तो आप क्या करोगे?

तो आप सूत्रोंका उल्लेख ही विवरणमें करोगे नहीं.

कुछ समाचार माध्यमके विश्लेषकोंने “सूत्रों”का उल्लेख ही उचित नहीं माना, यानी कि “सूत्रों”के अर्थका कोई महत्त्व ही नहीं है. इन महानुभावोंने “सूत्रों”को उपेक्षित ही किया.

उनका कहेना है  शासनके विरुद्ध अहिंसक विद्रोह करना संविधानिक अधिकार है … सूत्रोंसे देशको हानि नहीं होती … कई राजकीय पक्षोंके नेता और समाचार माध्यमोंके संवादक इन विद्यार्थी नेताओंका साक्षात्कार करनेके लिये तत्पर बने और उनका साक्षात्कार भी किया. राहुल गांधी जैसे मूर्ख नेताओंने तो इन नेताओंको कह भी दिया कि “ … तूम आगे बढो … हम तुम्हारे साथ है …”

मूर्धन्योंके, नेताओंके और समाचार माध्यमोंके इस प्रकारके प्रचारसे क्या होता है?

ऐसी घटनाओंका पुनरावर्तन होता है. 

अन्य कोमवादी मानसिकता रखनेवाली शिक्षा-संस्थाओंके विद्यार्थीओंने जे.एन.यु. के विद्यार्थीयोंके समर्थनमें प्रदर्शन किये. इनसे जे.एन.यु. के विद्यार्थीयोंके मनोबलमें असीम वृद्धि हुई.

बीजेपी शासनने जे.एन.यु. के नियमोंमें कुछ संशोधन किया.

क्यों संशोधन किया?

“अरे भाई, हम तो दोघलापन दिखानेवाले है ही नहीं. जो अन्य सरकार संचालित संस्थाएं है उसमें जो शिक्षण फीस और अन्य शुल्क शिक्षार्थीयोंसे लिये जाते है उसके साथ जे.एन.यु. के फीस और शुल्क तुलनात्मक होना आवश्यक है. यह आवश्यक नहीं है कि यदि कोई न्यायालयमें जाके न्याय मांगे और न्यायालय आदेश करें तभी हम फीस और शुल्कमें तुलनात्मकतासे परिवर्तन करें. सरकारी अन्य संस्थाएं, जे.एन.यु.से, प्रतिविद्यार्थी दशगुना खर्च करती है. यह सरकार पक्षपात्‌ नहीं कर सकती. पक्षपात्‌ करना भारतीय संविधानके विरुद्ध है.

“लेकिन जे.एन.यु. एक विशिष्ठ संस्था है …

“देशमें कई संस्थाएं विशिष्ठ है … वीजेटीआई, खरगपुरकी आई.टी.आइ. रुडकी आई.टी.आई. …

जी हाँ … सरकारने जेएनयुमें फीस और शुल्कमें वृद्धि की. अब इस वृद्धिका विवरण हम करेंगे नहीं. क्यों कि ये सब विवरण “ऑन-लाईन” पर उपलब्ध है.

किन्तु अब आप देखो मूर्धन्योंका वितंडावाद.

किस मूर्धन्यकी हम बात करेंगें?

प्रीतीश नंदीकी बात हम करेंगे.

डीबीभाईने [(दिव्य भास्कर दैनिक दिनांक २०-११-२०१९) गुजराती प्रकाशन ] प्रीतीशका लेख

यह प्रीतीशभाई, “जे.एन.यु. घटना”की सद्य घटित घटना जिसमें  फीस-शुल्क वृद्धिके अतिरिक्त कुछ विशेष भी संमिलित है उन बातोंको पतला-दुर्बल करनेके लिये नक्षलवादके जन्म तक पहूँच जाते है. और विवरणका प्रारंभ वहाँसे करते है.

“विद्यार्थी तो पहेलेसे ही विद्रोही होता है,

 “मैं जब महाविद्यालयमें था …. मुज़े पता चला कि कुछ अदृष्य हुए विद्यार्थी क्या कर रहे थे !!! अरे वे तो किसान और भूमिहीनोंकी लडाई लडनेके लिये देहातोंमें गये थे. वे तो संघर्ष करते थे. और कुछ तो उसमें शहिद भी हो गये. … अरे ये विद्रोही विद्यार्थीयोंमें कई लोग तो धनवान माता-पिताकी संतान थे … ये विद्यार्थी लोग सुविधाजनक जिंदगीसे उब चूके थे …” वगैरा वगैरा … तत्त्वज्ञान और त्याग … की बातें हमारे प्रीतीशभाईने लिख डाली. क्यों कि उनको जे.एन.यु. के विद्यार्थीयोंकी असाधारणता और उत्कृष्टता सिद्ध करनेके लिये ऐसी एक भूमिका बनानी है. चाहे उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुपसे भी सीधा या टेढा-मेढा संबंध भी न हो, तो भी.

जैसे कि

“हालके नोबेल पुरस्कारके विजेता के पिता भी हमारे महाविद्यालयमें हमारे अध्यापक थे.”

भला ! यह भी कोई तर्क है?

फिर हमारे प्रीतीशभाई, इन कुछ विद्यार्थीयोंकी तथा कथित “जीवनकी सार्थकताकी शोधकी तालाशामें थे” इस बातका जीक्र करते है.

“उस समयकी कविताएं, नाट्यगृहके नाटक, मूवीज़, शानदार वार्ताएं … आदि, उनकी निरस जीवनको पडकार दे रही थीं. … ये लोग तो समाजको एक कदम आगे ले गये थे … लेकिन समाजको बदलनेका उनके स्वप्नको किसीने भी सहयोग नहीं दिया … कोंग्रेस ने भी … (हंसना मना है)

फिर हमारे प्रीतीशभाई फ्रांस, जर्मनी, युरोपके देशों की बाते करते है. उन देशोंके तथा कथित हिरोका नाम लेते है. चाल्स द गॉल के विरुद्ध युवानोंने अभियान चलाया इस बातका भी उल्लेख करते है.

शायद प्रीतीशभाई पचास या साठके दशककी बातें कर रहे है.

“विद्यार्थी तो विद्यार्थी है, उसको तो पढाईमें ध्यान देना चाहिये”. इस बातको प्रीतीशभाई नकारते है. और उसी तर्क का आवर्तन करते है कि सूत्रोच्चार करने के लिये विद्यार्थीयोंको “टूकडे टूकडे गेंग” और “देश द्रोही” के आरोपी बनाये जाता है. प्रीतीशभाई यह भी लिखते है कि “विद्यार्थी विरोध नहीं करेगा तो कौन विरोध करेगा?” प्रीतीशभाई इस के समर्थनमें लिखते है कि अमेरिकाके  विद्यार्थीयोंने विएटनाम युद्धका विरोध किया था, ब्रीटनके विद्यार्थीयोंने  ब्रेक्ज़िटका विरोध किया था तो किसीने भी उनको “देशद्रोह”का लेबल नहीं लगाया था, तो यदि “जे.एन.यु. घटना” पर जे.एन.यु.के विद्यार्थीयों पर देशद्रोहका आरोप क्यों?

प्रीतीशभाईने  “वादोंका” भी जीक्र भी करते है.

१०० प्रतिशत लेख इन असंबंध विवरणोंसे भरा है.

क्या हमारे मूर्धन्य लोग सीधी बात नहीं कर सकते?

लोकशाहीमें सूत्रों को पूकारे जाते हैं किन्तु उसकी एक प्रक्रिया होती है. केवल सूत्र पूकारना एक गंदी सियासत है. आओ चर्चा करें…

आपके विश्वविद्यालयमें ही आपसे भीन्न विचारधारा रखनेवालोंसे  चर्चा सभा आयोजित करो. वियेतनाम युद्ध या चाल्स द गॉल या ब्रेक्ज़िट और अफज़लको फांसी   आदि ये तुलनात्मक विषय नहीं है. कमसे कम भारतके मूर्धन्यों की प्रज्ञानेमें यह भ्रम नहीं होना चाहिये.

प्रीतीश भाई कहेते है कि;

“ जे.एन.यु. के विद्यार्थीयोंका अनुरोध (डीमान्ड) न तो विश्वविद्यालय की फीसमें वृद्धि के विरोधमें है, न तो शुक्ल वृद्धिके विरोधमें है, न तो नियमोंमें किये गये परिवर्तनके विरोधमें है, न तो उपाहार गृह ११ बजे तक ही खूला रहेगा उसके विरोधमें है … वास्तवमें उनका विरोध वे उस जगतका विरोध कर रहे है जिसमें वे है, जिस दुनिया उनकी सरलता, निरापराधताकी परीक्षा ले रही है…..

इन विद्यार्थीयोंको (जिनके नेताविद्यार्थीगण २६ वर्षसे ४१ वर्षके है) उनको नियमबद्ध करना और भयभित करना बंद करो …. क्यों कि ऐसा करनेसे हमारे ये विद्यार्थी, वाहियात कायदाओंको मानने वाले हमारे जैसे स्वप्नहीन और बिनादिमागवाले बन जायेंगे … आदि आदि आदि “.

भाई मेरे प्रीतीश, क्या तत्त्वज्ञान चलाया है आपने, जिसमें कोई सुनिर्देशित मुद्दा ही नहीं है. प्रीतीशभाई का लेख एक ऐसे असंबंद्ध अनिश्चित बातोंसे पूर्ण होता है.

पढनेके पश्चात्‌ हमे लगता है कि हम कोई मूर्धन्यका लेख पढ रहे है या  कोई स्वयं प्रमाणित, स्वयंप्रमाणित सर्वतत्त्वज्ञ संत रजनीश मल जैसे बाबाका लेख?

लोकशाहीमें विरोध आवश्यक है. चर्चा आवश्यक है.  यह बात तो नरेन्द्र मोदी भी कहेते है. किन्तु विरोध करने की भी रीत होती है.

महात्मा गांधीको पढो.

कमसे कम उनका “मेरा स्वप्नका भारत” पढो और विरोध कैसे किया जाना चाहिये उनके उपर भी उन्होंने स्पष्ट रुपसे लिखा है. यदि आप शास्त्र पढनेमें मानते नहीं है और आप जिसको आपका हक्क समज़ते है और वही हक्क दुसरोंका नहीं होना चाहिये ऐसा ही मानते है तो सरकार अपनी दंड संहितासे आपको दंडित करेगा.

किन्तु दुःखकी बात यह है कि भारतके मूर्धन्य भी पूर्वग्रह से पीडित है और वे स्वयं वितंडावाद में ग्रस्त है.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

अविज्ञातप्रबंधस्य वचः वाचस्पतिः इव I

व्रजति अफलतां एव नयत्युह इव अहितम्‌ II

बृहस्पतिकी वाणी जैसी उक्ति भी यदि संदर्भहीन हो तो, वह भी अन्याय करने वाले मनुष्यकी तरह निरर्थक है.

Read Full Post »

TV Anchor, Parliament Speaker and Nehruvian Congress

शंकास्पद या खराब, अकुशल और घटिया, प्रपंची और दुराचारी = टीवी चेनलका एंकर, संसदका अध्यक्ष और नहेरुवीयन कोंग्र्स

 टीवी चेनलका एंकरः

anchor

टीवी एंकरका काम है कि कोई एक विषय उपरकी  चर्चा के लिये, चर्चाके विषय पर निष्णातोंमें कोई एक या अधिक व्यक्तिको आमंत्रित करना, तथा यदि विषय सियासती है तो सियासती पक्षोंके संबंधित प्रतिनिधिको  अपने सियासती पक्षकी नीतियोंसे अनुसार अपना पक्ष प्रस्तुत करें  और इस प्रकार चर्चा सुचारु रुप से चले.

चर्चाके अंतमें जनताको यदि कुछ निष्कर्ष  निकालना हो तो निकाल सके.

मान लिजिये विषय हैराहुल गांधीका नरेन्द्र मोदीसे गले लगना

इसमें चर्चाके मुद्दे क्या हो सकते हैं?

() क्या राहुल गांधीका नरेन्द्र मोदीसे गले मिलना एक नाटक था.

हाँ या ना

(.) यदि नाटक था तो यह नाटक कितना उचित था?

(.) यदि नाटक नहीं था तो राहुल गांधीका गले मिलनेका हेतु क्या हो सकता है?

(2) क्या राहुल गांधीका गले मिलना अपने पक्षकी परंपराके अनुसार था?

यदि एंकरको चर्चा सुचारु रुपसे चलानी है तोः

() एंकरको चर्चाके नियम सभी वक्ताओंको समज़ा देना चाहिये, जैसे कि प्रारंभमें वक्ताको अपना पक्ष रखनेके लिये मीनट मिलेगी. बादमें प्र्त्युतर के लिये दो मीनट मिलेगी और उपसंहारके लिये ३० सेकंड मीलेगा. अवरोध पैदा करने के लिये एक पूर्व सूचनाका एक पेनल्टी पोईन्ट और माईक पुनरावरोध (बंद करने के लिये)के कारण दो पेनल्टी पोईन्ट मिलेंगे.  

() यदि नियमका भंग किया तो क्या किया जायेगा वह भी वक्ताओंको बता देना चाहिये,

() एंकरको एक एक पोईन्ट पर सुनिश्चित समय देना चाहिये.

() “सुचारु रुप सेसभी व्यक्तियोंको पहेले तो मुद्दा स्पष्ट करवाना चाहिये.

() यह स्पष्टता कर देनेके बाद एंकरको योग्य और समान समय देना चाहिये

() जो व्यक्ति बोलता है वह यदि मुद्देको बाजु पर रख कर अन्य मुद्दे पर बोलने लगे  एक बार उसके ध्यान पर लाना चाहिये कि वह मुद्देसे हट रहा है.

()  वक्ताको सूचित करने पर भी यदि वक्ता बोलता रहेता है, तो उसको आगे बोलने देना चाहिये, लेकिन उसके बोलनेके बाद एंकरको जनताको बताना चाहिये कि उस वक्ताने मुद्देकी बात नहीं की. उसने मुद्देसे हटके बात की है.

() यदि कोई वक्ता अन्य कोई वक्ता बोलता है तब उसके साथ बोलने लगता है, या तो उसके बोलनेमें अवरोध पैदा करता है तो उस अवरोधक वक्ता (व्यक्ति) को चेतावनी (पूर्व सूचना वॉर्नींग) देना चाहिये,

() यदि पूर्वसूचनाके बाद भी वह अवरोध चालु रखता है तो उसका माईक बंद कर देना चाहिये.

() सभी वक्ताओंको कितनी पूर्व सूचना दी गई थी और किसने पूर्व सूचनाके बावजूद अवरोध चालु रखा था तो उसके पेनल्टी पोइन्ट कितने हुए यह बात एंकरको दर्शकोंको अंतमें बताना चाहिये.

अभी तो क्या होता है, कभी कभी एंकर अपनी मनमानी करके कभी वक्ता को अवरोध करने पर  रोकता है या तो नहीं रोकता है. कभी एंकर खुद चिल्लने लगता है. क्या एंकर अवरोध करने वाले वक्ता का माईक बंद नहीं कर सकता? यह काम  उपलब्ध संचालित तकनिकी से हो सकता है, यदि एंकर बिना गतिरोध चर्चा चलाना चाह्ता है तो.

संसदका अध्यक्षः

sheaker

संसदके अध्यक्षका भी उपरोक्त ही उत्तरदायित्व बनता है. उसके अतिरिक्त उसके पास तो विशेष अधिकार भी है कि वह सदस्यको दंडित भी कर सकता है.

संसदमें सामान्यतः माना जाता है कि सदस्योंको अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तूत करनेका अधिकार है.

सदस्यको अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करनेका सुयोग्य तरिका होना आवश्यक है.

सदस्य जब अपना क्रम आवे तो वह बोल सकता है. किन्तु यदि;

सदस्य अपना स्थान पर खडा होके सूत्रोच्चार करे, या और, अन्य वक्ताकी प्रस्तूति पर अवरोध करे, या और, अपना स्थान   छोडके अध्यक्षके पास जाय, या और, अध्यक्षके सामने  प्रदर्शन करें तो इससे संसदकी कार्यवाही में गति रोध पैदा होता है.

ऐसा होने पर अध्यक्षको चाहिये कि वह एक बार, उस अवरोधक सदस्यको पूर्वसूचना दें और यदि सदस्य माने तो उसको,

बीचमें बोलने के लिये एक दिनके लिये निलंबित करें,

अपना स्थान छोडने के लिये दो दिनके लिये निलंबित करें

सूत्रोच्चार करने के लिये तीन दिनके लिये निलंबित करें

अध्यक्षके पास जाने के लिये एक सप्ताह के लिये निलंबित करें

यदि एक ही सत्रमें वह अपनी हरकतें तीन बार करता है तो उसको पूरे सत्रके लिये निलंबित करें

यदि मत देने की आवश्यकता पडी तो उसको सिर्फ मत देने की अनुमति मिल सकेगी.

जितने दिन सदस्यको निलंबित किया है उन दिनोंका भत्ता एवं वेतन काट दिया जायेगा.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेता कहेते हैं कि संसद चलाना सत्तारुढ पार्टीका कर्तव्य है तो  

अध्यक्षका कर्तव्य है कि वह इस प्रकार अपना कर्तव्य अदा करें

संसदके बाहर प्रदर्शन करनाः

कहीं भी प्रदर्शन करना हो तो उसकी एक कार्यवाही है.

आप एक प्रार्थना पत्र में मुद्देका विवरण करो, प्रदर्शन का कारण बताओ, क्या आपने यथा योग्य अंतिम अधिकार क्षेत्रकी व्यक्तिसे वार्तालाप लिया? वार्तालापमें आप किस कारणसे संतुष्ट नहीं है? वार्तालाप अभी चालु है? यदि हाँ तो किस कारणसे प्रदर्शन करना है? क्या आपके उपर हो रहा अन्याय न्यायालयके क्षेत्रमें नहीं आता है? यदि इन सबका उत्तर हकारात्म नहीं है तो प्रदर्शनकी अनुमति नहीं दी जायेगी और सरकारी (जनहितकी कार्यवाहीमें) अवरोध करने कारण आपकी गिरफ्तारी होगी और न्यायिक कार्यवाही होगी.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथी पक्षः

lok sabha noise

रा.गा.ने पहेले ही कहा था कि हम हर हालतमें संसदको चलने ही नहीं देंगे.

नहेरुवीयन कोंगी लोग ऐसा कहेते है कि जब वे शासनमें थे और बीजेपी जब विपक्षमें था तो वह भी ऐसा ही करता था. लेकिन यदि विपक्ष ऐसा करता था तो वह बोलने देने पर करता था. यदि ऐसा नहीं था तो नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंको चाहिये कि वे उसकी चर्चा टीवी चेनलोंके द्वारा समाचार पत्रोंद्वारा  अपना पक्ष, प्रसंगोका संदर्भ देके जनताके सामने रखें.

चालु सत्रमें आपने देखा होगा कि जब प्रधान मंत्री प्रश्नोंका उतार दे रहे थे तब उनको रोकने के लिये नहेरुवीयन कोंगी नेताएं सातत्य पूर्वक अवरोध कर रहे थे. प्रधान मंत्रीका भाषण ज्यादातर सूत्रोचारसे ही अवरुद्ध रहा था. यह संसदकी, नहेरुवीयन कोंगीयों द्वारा लगातार हो रही अवमानना है.

नरेन्द्र मोदीको गले मिलना एक नाटक था

नरेन्द्र मोदीको गले मिलना एक नाटक था क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह परंपरा नहीं है. यदि नरेन्द्र मोदीके परिपेक्ष्यमें नहेरुवीयन कोंग्रेसकी बात की जाय, तो, नरेन्द्र मोदी के बारेमें उनके नेताओंके बयान क्या थे वह रेकर्ड पर है. उतना ही नहीं नरेन्द्र मोदी, जब गुजरातके मुख्य मंत्री थे तब गुजरातकी सुरक्षा अधिकारीयोंने, उनके मिलेइनपुटके आधार पर कडी सुरक्षाकी मांग की थी. उसके उपर केन्द्रीय गृह विभाग चपट्ट बैठ गया था और सुरक्षा प्रदान नहीं किया था. केन्द्रके पासभी इनपुट थे, तो भी उसने कुछ नहीं किया था. जब नरेन्द्र मोदी अपने अधिकारिक सुरक्षा वर्तुलसे बाहर आये तो बिहारमें ४५ मीनटके लिये बिलकुल सुरक्षा हीन थे.

इसके अलावा नहेरुवीयन कोंग्रेस, अपने विरोधीयोंपर कैसा अत्याचार करती है उसका इतिहास गवाह है. आपातकालमें मीडीया पर सेन्सरशीप लगाना, जयप्रकाश नारायणको मरणासन्न करना, हजारोंको कारावासमें धकेलना वह भी बिना गुनाह, विरोधीयोंके बारेमें गलत अफवाहें फैलाना जैसे कि, मोरारजी देसाई, वीपी सींग, नरसिंह राव, देव गौडा, अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, किरण बेदी ….    

और अंतमें रा.गाने आँख मारके उसके साथीयोंको संदेश दिया कि मैंने कैसा इन लोगोंको बेवकुफ बनाया.

इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण घटिया प्रपंची और दुराचारी सिद्ध होते है.

शिरीष मोहनलाल दवे

Read Full Post »

%d bloggers like this: