Posts Tagged ‘सूर्य’
खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग-२)
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अंधश्रद्धा, अग्नि, आक्रमण, आर्य, आश्रम, इतिहास, ईश्वर, ऐतिहासिक, कैकेयी, चमत्कार, जनक, तथ्य, दक्षिण, दशरथ, दुर्वासा, देवता, धनुष, धर्म, परीक्षा, भगवान, भारत, राम, रामायण, रावण, रुद्र, लंका, वाल्मिकी, विजय, विष्णु, शिव, शुर्पणखा, श्रद्धा, सीता, सूर्य, हनुमान, हिन्दु on September 1, 2013| Leave a Comment »
खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग-२)
रामके बारेमें कई पुस्तक लिखे गये है. उत्तर राम चरित्र, रघुवंश, वाल्मिकी रामायण और तुलसी रामायण. कदम्ब रामायण, और कई है जो सब १२वीं सदीके बादमें लिखे गये. इनमें वाल्मिकी रामायण और तुलसी रामायण मुख्य है जिसकी पारायण (सह वाचन श्रवण) की जाती है. महाभारतमें भी रामकथा है.
इसमें विशेष रुपसे रामको विष्णुका अवतार माना गया है. जब एक व्यक्तिको भगवान मानके उनका जीवन लिखा जाता है तो चमत्कार सामेल करने ही पडते है.
अब हम इन चमत्कारोंको छोड कर रामका सच्चा स्वरुप कैसे समझे?
ऐसी कौनसी कौनसी घटनाएं है जिनको हम नकार नहीं सकते. ऐतिहासिकता के निरुपण के लिये घटनाओं का महत्व और घटनाका घटना किस आधार पर हो सकता है उसके उपर ज्यादा सोचना चाहिये. संवाद, मनुष्यके बारेमें किया वर्णन, स्थळोंका वर्णन, प्रसंगका वर्णन इन सब बातोंका संबंध कला-साहित्य और लेखककी खुदकी पसंदगी का है. ऐतिहासिक तथ्योंसे ज्यादा नहीं.
चलो हम घटनाएं क्या घटी, उसका क्या आधार, संदर्भ और तथ्य हो सकता है ये सब देखें और समझे.
वैवस्वतः वंश और राजाओंकी सूचि और दशरथका स्थान, दशरथ अयोध्याका राजा था.
दशरथको दो रानीयां थी कौशल्या, सुमित्रा
दशरथको कोई पुत्र नहीं था,
दशरथने एक और शादी की. यह तीसरी रानी कैकेयी थी जो गंधारके राजाकी पुत्री थी,
दशरथने पुत्रेष्टी यज्ञ किया,
तीनों रानीयोंने संतानको जन्म दिया,
कौशल्याने राम, कैकेयीने भरत, सुमित्राने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया
चारों पुत्र विश्वामित्रके आश्रममें पढने गये,
जनक राजाने अपनी पुत्री सीताके लिये स्वयंवर रचा,
जनक के पास एक धनुष्य था. स्वयंवर की शर्त यह थी कि, धनुष्के उपर बाणको ठीक तरहसे चढाना था,
स्वयंवरमें कई राजा आये थे.
राम सफल हुए.
रामका सीतासे लग्न हुआ.
दुसरे भाईओंका भी लग्न हुआ,
रामका युवराजपद समारोह घोषित होता है, भरत और शत्रुघ्न उपस्थित नहीं है
कैकेयी विरोध करती है,
राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिये जाते है,
भरत गांधारसे वापस आता है,
रामके पास जाता है, राम अयोध्या वापस नहीं जाते है,
भरत अयोध्या वापस जाता है,
राम सीता और लक्ष्मण पंचवटीमें समय पसार करते है,
शुर्पणखाका, राम और लक्ष्मण का प्रसंग,
शुर्पणखा ईजाग्रस्त,
रावणका आना और सीता और रावणका लंका जाना,
राम-लक्ष्मण और हनुमान-सुग्रीव का मिलन,
रामका वाली वध,
राम-लक्ष्मण और वानरसेना का लंका प्रयाण,
राम रावण युद्ध,
रावणकी पराजय,
रामका विभीषणका किया राज्याभिषेक,
सीताकी परीक्षा (?)
रामसेनाका अयोध्या जाना,
रामका राज्याभिषेक,
सीता सगर्भा,
रामका सीता त्याग,
सीताका वाल्मिकी आश्रममें पलना,
लवकुशका जन्म,
रामायण का लिखा जाना और जनतामें प्रचार प्रसार,
रामका राजसुय यज्ञ,
अश्वका वाल्मिकीके आश्रममें जाना,
सीताकी परीक्षा,
सीताका धरती प्रवेष,
रामके पास दुर्वासाका आना,
लक्ष्मणका देशत्याग,
रामकी मृत्यु (परलोक गमन)
चलो इन प्रसंगोमेंसे इतिहासका निस्कर्ष करें और रामकी और उनके वंशकी महानता समझें. (क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे,
टेग्झः
राम, दशरथ, कैकेयी, सीता, जनक, धनुष, शुर्पणखा, लंका, रावण, हनुमान, आर्य, आक्रमण, विजय, दक्षिण, रामायण, इतिहास, ऐतिहासिक, तथ्य, हिन्दु, भारत, अंधश्रद्धा, श्रद्धा, धर्म, चमत्कार, ईश्वर, भगवान, देवता, शिव, रुद्र, अग्नि, विष्णु, सूर्य, वाल्मिकी, आश्रम, परीक्षा, दुर्वासा
खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग-१)
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अंधश्रद्धा, अग्नि, आक्रमण, आर्य, आश्रम, इतिहास, ईश्वर, ऐतिहासिक, कैकेयी, चमत्कार, जनक, तथ्य, दक्षिण, दशरथ, दुर्वासा, देवता, धनुष, धर्म, परीक्षा, भगवान, भारत, राम, रामायण, रावण, रुद्र, लंका, वाल्मिकी, विजय, विष्णु, शिव, शुर्पणखा, श्रद्धा, सीता, सूर्य, हनुमान, हिन्दु on September 1, 2013| 3 Comments »
खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग-१)
एक ऐसे राम थे जो रघुवंशी दशरथ राजाके पुत्र थे और हाडमांसके बने हुए मात्र और मात्र मनुष्य थे. वैसे तो वे एक राजपुत्र और काबिल राजा जरुर थे, लेकिन उनकी अद्वितीय महानता और आदर्श के कारण उनको हमने भगवान बना दिया. और भगवान बना दिया तो वे एक वास्तविक और ऐतिहासिक पात्र नष्ट हो कर एक काल्पनिक पात्र बन गये. और इसके कारण राम की बात करना एक धर्मकी बात करना और सफ्रोन (भगवा ब्रीगेड)की बात करना बराबर हो गया है.
अगर आप रामको भगवान मानो तो इसमें रामका क्या अपराध है?
रामको भगवान मानने वाले चमत्कारमें भी मानते है. रामने कई चमत्कार किये जो कोइ भी मनुष्य देहधारी नहीं कर सकता, इसीलिये राम मनुष्य हो ही नहीं सकते, और इसीलिये राम भगवान ही होने चाहिये.हमने उनको भगवान मान लिया इसीलिये राम धर्मका ही विषय बन गये. राम, धर्मका विषय बन गये इसीलिये वे श्रद्धाका विषय बन गये. राम भारतकी भाषाओंमे वर्णित है इसीलिये वे भारतके है. और भारतमें हिन्दु धर्मको माना जाता था और माना जाता है इसीलिये राम हिन्दुओंके भगवान है. और हिन्दुओंके भगवान है इसीलिये हिन्दुओंकी श्रद्धाका विषय है. और हिन्दुओंकी श्रद्धाका विषय है और हिन्दुओंका भगवान है इसीलिये ये सब बातें काल्पनिक है. काल्पनिक बातोंमें विश्वास रखना अंधश्रद्धा है. समाजमें अंधश्रद्धाको बढावा नहीं देना चाहिये. जो लोग खुदको रेशनल मानते है, वे ऐसा सोचते है.
राम मंदीरके लिये आग्रहीयोंका विरोध करने वालोंकी यही सोच है.
बडे बडे विद्वान और बुद्धिमान लोग भी रामको काल्पनिक पुरुष मानते है.
इसका मूख्य कारण यह है कि प्राचीन और मध्यकालिन भारतीय पुस्तकोंमे चमत्कारकी कई सारी बाते हैं और ये सब कपोलकल्पित है. सब बकवास है ऐसी मान्यता अपनेको ज्ञानी और तटस्थ समझने वाले लोग रखते है.वैसे तो हर धर्मके पुस्तकमें चमत्कारकी बातें लिखी हुई है. लेकिन उन धर्मोंके सभी महापुरुष ऐतिहासिक है. क्यों कि ये सब २६०० वर्षके अंतर्गत हुए. और इनके कुछ न कुछ अवशेष मिल जाते हैं ऐसा माना गया है, इसलिये चमत्कारी बातें होते हुए भी वे सब ऐतिहासिक व्यक्ति है.
रामके प्राचीन अवशेष मिलते नहीं है. और जो भी मिलते है वे रामके संबंधित है ऐसा मानना अंधश्रद्धा है ऐसि मानसिकता स्थापित है. रामके प्राग्ऐतिहासिक अवशेष वैसे तो मिलते है, लेकिन उन अवशेषोंको रामके जमानेके या रामके संबंधित माने नहीं जाते हैं. इसके पीछे (आर्यन ईन्वेझन थीयेरी = आर्यजातिका भारत पर आक्रमण और फिर यहांके द्राविड और दस्युजातिकी पराजय और उनका पीछे दक्षिण दीशामें जाना) ऐसे अधितर्कका स्विकार है.
वैसे तो यह अधितर्क बिलकुल तर्कहीन और विरोधाभासोंसे भरपूर है, और अब तो यह अधितर्क निराधार और अस्विकृत माना भी जाता है तो भी जो मानसिकता बनी हुई है, वह अभी भी स्थापित है.क्या ऐतिहासिकता का आधार सिर्फ पूरातत्वके अवशेष ही हो सकते है? अगर उत्खनन किया नहीं है तो क्या मानोगे? अगर बाबरी ढांचाके नीचे उत्खनन नहीं हुआ होता और उसके नीचेसे जो विविध स्तर पर विभीन्न अवशेष मीले वह नहीं मिलते तो यही माना जाता कि नीचे कुछ अलग संस्कृति थी ही नहीं. मान लिजीये अगर उन स्तरोंसे भारतीय संस्कृति पर कुछ प्रकाश पडने वाला था, तो क्या होता?
मान लिजीये मोहें जो दडो का उत्खनन नहीं होता तो?
वास्तवमें हमें पुस्तकस्थ विवरणोंको महत्व देना ही पडेगा. उनकी अवगणना नहीं की जा सकती.हमारे पुराणोंको और महाकाव्योंको सिर्फ कपोल कल्पित न मानके, उनको भी इतिहासका एक हिस्सा मानना पडेगा. यह बात जरुर है कि उनमें कुछ चमत्कारिक बातें है, ईश्वर (रुद्र–शिव), भगवान (सूर्य–विष्णु–ब्रह्मा) और देवताओं (ईन्द्र, वायु, आदि)की बातें है. लेकिन ये सब तो इतिहासके पुरुषोंकी बातोंको ज्यादा रसप्रद बनानेके लिये संमिलित किया गया है.
जैसे कोई पुस्तकमें वार्तालापोंके शब्दप्रयोग, स्थलोंके वर्णनके शब्दप्रयोग, वस्त्रोंके वर्णनके शब्दप्रयोग आदि अक्षरसः वही शब्दोंका प्रयोग हुआ होगा ऐसा नहीं होता है. जैसे मैथिली शरण गुप्तने कोई संवाद लिखा है जिसमें सम्राट अशोक और उसकी पत्नी तिष्यरक्षिताके बीचमें कलिंगके युद्धको ले के संवाद जो वर्णित है, वह न भी हुआ हो या अक्षरसः वह न भी हो. लेकिन हम अशोककी और उसके कलिंगके युद्धकी ऐतिहासिकताको नकार नहीं सकते. अशोकके पिताका नाम बहुतेरे पुस्तकोंमें बिंबिसार लिखा हुआ है. तो हम बिंबिसारकी ऐतिहासिकताको नकार नहीं सकते.
महाकाव्योंको अगर छोड दें, तो भी सभी पुराणोंमें रामका उल्लेख है. उसके पिता दशरथका भी उल्लेख है. दशरथके पिताका भी उल्लेख है. उतना भी नहीं पूरे वंशके राजाओंका उल्लेख है. और सभी पुराणोंमें समानरुपसे ही है. ये सब पुराण एक साथ नहीं लिखे गये हैं.पुराण सतत लिखते ही गये थे. अलग अलग जगह और अलग अलग समय पर लिखाते गये थे. कमसे कम ईसा पूर्व चौथे शतकसे ईसा की सातवीं सदी तक अनेकानेक पुराणोंमे लिखना चलता रहा था.
विश्वमें कई ग्रंथोमें ऐसा लिखना चलता रहा है.
सबसे पुराना पुराण वायु पुराण है.
वायु पुराण सबसे ज्यादा पुराना क्युं है? वैसे तो वायुपुराण के छः पाठ मिलते है. सर्वप्रथम पाठकी संस्कृतभाषा पुरी पूर्वपाणीनीकाल की है. बादमें उसमें कई प्रक्षेप होते गये और अध्याय बडे भी होते गये और बढते भी गये.इस पुराणमें बुद्ध भगवानका उल्लेख नहीं है. विष्णुके दशावतारकी बात है. लेकिन रामका नाम वे दश अवतारोंकी सूचीमें नहीं है. रामका एक पराक्रमी राजाके रुपमें उल्लेख है. रामके पिता दशरथका भी उल्लेख है. दशरथको भी पराक्रमी राजाके रुपमें उल्लेख है. पुरे सूर्यवंशके राजाओंकी नामावली है.
रामके बारेमें क्या लिखा है?
रामके बारेमें संक्षिप्तमें लिखा है. बलवान राजा दशरथके पुत्र रामने लंकाके रावणको हराया.
वैसे तो कृष्ण भगवानका भी उल्लेख है. कृष्णको तो विष्णुके अवतार तो माना ही है.
कृष्ण के बारेमें एक अध्यायका हिस्सा है.
लेखकने, श्यामंतक मणी जो खो गया था और कृष्णके उपर इस बातको लेकर जो आरोप लगा था और कृष्णने इस आरोपको कैसे दूर किया था इस प्रसंगको वर्णित किया है.
एक पन्नेमें यह बताया है कि, वसुदेवके किन किन पुत्रोंको (पुत्रोंके नाम भी दिये है) कंसने मार डाले थे. और इसलिये कृष्ण के जन्मके पश्चात, वसुदेव इस कृष्णको अपने मित्र नंदके यहां छोड आते है. इसमें न कोई चमत्कार वर्णित है न कोई कारावासकी बात है, न कोई यमुनाके पूरकी कोई बात न और कोई लंबी बात है.
दुसरी विशेषता इसमें यह है कि, बलरामको विष्णुका अवतार बताया गया है.
तीसरी महत्वपूर्णबात यह है कि कई श्लोकोंमें ब्रह्मा विष्णु और रुद्र के बदले ब्रह्मा विष्णु और अग्नि ऐसा लिखा गया है. इसका प्रारंभ भी, महेश ईशान (रुद्र) की स्तूति से होता है.
वेदोमें अग्निका एक नाम ईशान भी है. महो देव (महः देवः अर्थात् महो देवो जैसे कि सो महो देवो मर्त्यां आविवेश) भी अग्निका नाम है. कहेनेआ तात्पर्य यह है कि अग्नि, रुद्र, और शिवकी एक रुपता वायुपुराणमें सिद्ध होती है.ऐसी कई बातें है जिससे वायु पुराणकी प्राचीनता सिद्ध होती है.(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे,
टेग्झः
राम, दशरथ, कैकेयी, सीता, जनक, धनुष, शुर्पणखा, लंका, रावण, हनुमान, आर्य, आक्रमण, विजय, दक्षिण, रामायण, इतिहास, ऐतिहासिक, तथ्य, हिन्दु, भारत, अंधश्रद्धा, श्रद्धा, धर्म, चमत्कार, ईश्वर, भगवान, देवता, शिव, रुद्र, अग्नि, विष्णु, सूर्य, वाल्मिकी, आश्रम, परीक्षा, दुर्वासा