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अस्पतालोमें नवजात शिशुओंकी बदल जानेकी शक्यता कितनी है? – 2

श्रीमति नवनीत राणा को गिरफ्तार किया.

ध्वनिप्रदुषण और उद्धवः

आम बातचित ध्वनिका स्तर शून्य डेसीबल होता है. ऊंची आवाज़से बोलो तो ५ डेसीबल  हो जाता है. चार दिवालके अंदर १० डेसीबलके उपरकी आवाज़ स्वास्थ्यके लिये हानि कारक है. खुलेमें ७५ डेसीबल से कम होना चाहिये. ये १० – ७५ के लिये सरकारकी समयबद्ध और १५ दिनसे अधिक न हो ऐसी अनुमति लेनी पडती है. रात्रीके १० बजेसे सुबह ०६ बजेके अंतरालमें कोई लाउडस्पीकर ध्वनि की अनुमति है ही नहीं.

उत्तर प्रेदेशकी सरकारने ध्वनि प्रदुषण नियंत्रित करने पर कार्यवाही की. मंदिरसे भी लाउडस्पीकर हटवाये और मस्जिदसे भी लाउड स्पीकर हटवाये.

लेकिन (हिंदुओके हृदय सम्राट बाला ठाकरे)की संतान(उद्धव)की सरकारने न तो मस्जिद परसे लाउडस्पीकर हटवानेको सोचा न तो उन लाऊड स्पीकरोंकी आवाज़को नियंत्रित करने को सोचा. उद्धव ठकरे वैसे तो कहेंगे की मैंने तो सोचा था. मैंने उसके लिये कदम नहीं उठाये इसका मतलब यह नहीं कि मैं सोचता नहीं हूँ! मेरे साथी कौन है मालुम है? मेरे साथी शरद और रा.गा. है. समज़े न समज़े?

श्रीमति नवनीत राणाने क्या किया था?

सरकारकी इस निष्क्रियता के प्रति सरकारका ध्यानाकर्षित करनेके लिये श्रीमति नवनीत राणाने “मातोश्री” के सामने हनुमान चालिसाका पाठ करनेका एलान किया. हिंदुओंके हृदय सम्राट बाला ठाकरेके संतानकी सरकारको पता भी तो चलना चाहिये न!! “मातोश्री” निवासस्थान हिंदु-हृदयका प्रतिक था, है और रहेगा भी (!!).

हम ऐसा माननेवालोंमेंसे है. और आप हमको मना नहीं कर सकते, चाहे वह हम (नवनीत राणा) ही क्यों न हो?

मातोश्री के सामने हम हनुमान चालिसाका पाठ करके, आपकी सरकारकी एक और निष्क्रीयताके प्रति ध्यान्याकर्षण करते है. वह है ध्वनि प्रदुषणको रोकनेकी निष्क्रीयता है. आपकी यह निष्क्रीयता  पूर्वग्रहयुक्त कार्यशैलीके कारण है. हम इसके उपर आपका ध्यानाकर्षण करना चाहते है.

श्रीमति नवनीत राणाने लिखित रुपसे इस अघाडी सरकारको सूचित भी किया. सरकारको पूर्वरुपसे सूचित करना “महात्मागांधीवादी विरोध/आंदोलनकारी करनेकी प्रणालीका” एक अभीन्न अंग है.

इससे यह भी सूचित होता है कि, सरकारसे विरोध करनेवाला/वाली संवाद करनेके लिये तयार है. क्यों कि सूचित करनेमें संवाद निहित है.    

हनुमान रामायणका एक पात्र है. रामायण एक ऐतिहासिक ग्रंथ है. हनुमान एक ऐतिहासिक पात्र है. राम भी एक ऐतिहासिक पात्र है. भारतके लोग रामको सूर्य (विष्णुका) अवतार मानते है. सूर्य है जो पृथ्विका आधार है और पालक है. भारतके लोग सूर्य/विष्णुको भगवान मानते है. यह परंपरा जापानसे लेकर ईजिप्त तक प्रचलित थी. भारत और जापानमें आज भी प्रचलित है. हनुमान, रामके दूत और सहायक है. हनुमानको रुद्रका अवतार भी माना जाता है. इससे राम और हनुमानकी ऐतिहासिकता नष्ट नहीं हो जाती. इसको धर्मसे जोडो या न जोडो, ऐतिहासिक पात्रोंका गुणगान करना गुनाह नहीं हो सकता.

श्रीमति नवनीत राणा, संवादके लिये तयार थी. उद्धवजीने सोचा होगा कि यदि संवाद करेंगे तो “आजा फसा जा” जैसा हो सकता है. जब हमारे तो दोनों हाथमें लड्डु है तो डर काहेका!! दोनों लड्डु दाउदके दिये हुए है. यदि दाउदजी भारतमें अनुपस्थित होते हुए भी और बिना पदभार भी चाहे वह कर सकते है तो हम तो यहां विद्यमान है … हमारे पास सत्ता भी है … और लड्डु भी है.

तो उद्धवजीने श्रीमति नवनीत राणा पर देशद्रोहका आरोप लगाके, उनको अनुपनिहित (नोनबेलेबल) बंधक (एरेस्ट) बनाके कारावास में ठोक दिया. यदि हम विरांगना कंगना रणौतको दिनमें तारे दिखा सकते है, मीडीया दिग्गज अर्णव गोस्वामीको कारावासकी हवा खिला सकते है और पीटवा भी सकते है तो यह नवनीत राणा क्या चीज़ है!! हम तो उसको, भूमिके नीचे २०फीट गाड सकते है.

जिसका कोई नहीं होता उसका ईश्वर होता है.

ईश्वरने भारतके लिये कई बार यह सिध्द किया है.

भारतमें ईश्वरका पात्र कौन लेगा? न्यायालय!!

न्यायालयका काम क्या है?

न्याय करना!!

“न्याय करना” मतलब?

अन्याय दूर करना!!

श्रीमति नवनीत राणा पर अन्याय हुआ है?

हाँ जी.

कैसे अन्याय हुआ है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल महाशंकर दवे

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खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग-२)

रामके बारेमें कई पुस्तक लिखे गये है. उत्तर राम चरित्र, रघुवंश, वाल्मिकी रामायण और तुलसी रामायण. कदम्ब रामायण, और कई है जो सब १२वीं सदीके बादमें लिखे गये. इनमें वाल्मिकी रामायण और तुलसी रामायण मुख्य है जिसकी पारायण (सह वाचन श्रवण) की जाती है. महाभारतमें भी रामकथा है.

इसमें विशेष रुपसे रामको विष्णुका अवतार माना गया है. जब एक व्यक्तिको भगवान मानके उनका जीवन लिखा जाता है तो चमत्कार सामेल करने ही पडते है.

अब हम इन चमत्कारोंको छोड कर रामका सच्चा स्वरुप कैसे समझे?

ऐसी कौनसी कौनसी घटनाएं है जिनको हम नकार नहीं सकते. ऐतिहासिकता के निरुपण के लिये घटनाओं का महत्व और घटनाका घटना किस आधार पर हो सकता है उसके उपर ज्यादा सोचना चाहिये. संवाद, मनुष्यके बारेमें किया वर्णन, स्थळोंका वर्णन, प्रसंगका वर्णन इन सब बातोंका संबंध कला-साहित्य और लेखककी खुदकी पसंदगी का है. ऐतिहासिक तथ्योंसे ज्यादा नहीं.

चलो हम घटनाएं क्या घटी, उसका क्या आधार, संदर्भ और तथ्य हो सकता है ये सब देखें और समझे.   

वैवस्वतः वंश और राजाओंकी सूचि और दशरथका स्थान, दशरथ अयोध्याका राजा था.

दशरथको दो रानीयां थी कौशल्या, सुमित्रा

दशरथको कोई पुत्र नहीं था,

दशरथने एक और शादी की. यह तीसरी रानी कैकेयी थी जो गंधारके राजाकी पुत्री थी,

दशरथने पुत्रेष्टी यज्ञ किया,

तीनों रानीयोंने संतानको जन्म दिया,

कौशल्याने राम, कैकेयीने भरत, सुमित्राने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया  

चारों पुत्र विश्वामित्रके आश्रममें पढने गये,

जनक राजाने अपनी पुत्री सीताके लिये स्वयंवर रचा,

जनक के पास एक धनुष्य था. स्वयंवर की शर्त यह थी कि, धनुष्‌के उपर बाणको ठीक तरहसे चढाना था,

स्वयंवरमें कई राजा आये थे.

राम सफल हुए.

रामका सीतासे लग्न हुआ.

दुसरे भाईओंका भी लग्न हुआ,

रामका युवराजपद समारोह घोषित होता है, भरत और शत्रुघ्न उपस्थित नहीं है

कैकेयी विरोध करती है,

राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिये जाते है,

भरत गांधारसे वापस आता है,

रामके पास जाता है, राम अयोध्या वापस नहीं जाते है,

भरत अयोध्या वापस जाता है,

राम सीता और लक्ष्मण पंचवटीमें समय पसार करते है,

शुर्पणखाका, राम और लक्ष्मण का प्रसंग,

शुर्पणखा ईजाग्रस्त,

रावणका आना और सीता और रावणका लंका जाना,

राम-लक्ष्मण और हनुमान-सुग्रीव का मिलन,

रामका वाली वध,

राम-लक्ष्मण और वानरसेना का लंका प्रयाण,

राम रावण युद्ध,

रावणकी पराजय,

रामका विभीषणका किया राज्याभिषेक,

सीताकी परीक्षा (?)

रामसेनाका अयोध्या जाना,

रामका राज्याभिषेक,

सीता सगर्भा,

रामका सीता त्याग,

सीताका वाल्मिकी आश्रममें पलना,

लवकुशका जन्म,

रामायण का लिखा जाना और जनतामें प्रचार प्रसार,

रामका राजसुय यज्ञ,

अश्वका वाल्मिकीके आश्रममें जाना,

सीताकी परीक्षा,

सीताका धरती प्रवेष,

रामके पास दुर्वासाका आना,

लक्ष्मणका देशत्याग,

रामकी मृत्यु (परलोक गमन)

चलो इन प्रसंगोमेंसे इतिहासका निस्कर्ष करें और रामकी और उनके वंशकी महानता समझें. (क्रमशः)

 राम दरबार

शिरीष मोहनलाल दवे,

टेग्झः

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खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग-१)

एक ऐसे राम थे जो रघुवंशी दशरथ राजाके पुत्र थे और हाडमांसके बने हुए मात्र और मात्र मनुष्य थे. वैसे तो वे एक राजपुत्र और काबिल राजा जरुर थे, लेकिन उनकी अद्वितीय महानता और आदर्श के कारण उनको हमने भगवान बना दिया. और भगवान बना दिया तो वे एक वास्तविक और ऐतिहासिक पात्र नष्ट हो कर एक काल्पनिक पात्र बन गये. और इसके कारण राम की बात करना एक धर्मकी बात करना और सफ्रोन (भगवा ब्रीगेड)की बात करना बराबर हो गया है.

अगर आप रामको भगवान मानो तो इसमें रामका क्या अपराध है?

रामको भगवान मानने वाले चमत्कारमें भी मानते है. रामने कई चमत्कार किये जो कोइ भी मनुष्य देहधारी नहीं कर सकता, इसीलिये राम मनुष्य हो ही नहीं सकते, और इसीलिये राम भगवान ही होने चाहिये.हमने उनको भगवान मान लिया इसीलिये राम धर्मका ही विषय बन गये. राम, धर्मका विषय बन गये इसीलिये वे श्रद्धाका विषय बन गये. राम भारतकी भाषाओंमे वर्णित है इसीलिये वे भारतके है. और भारतमें हिन्दु धर्मको माना जाता था और माना जाता है इसीलिये राम हिन्दुओंके भगवान है. और हिन्दुओंके भगवान है इसीलिये हिन्दुओंकी श्रद्धाका विषय है. और हिन्दुओंकी श्रद्धाका विषय है और हिन्दुओंका भगवान है इसीलिये ये सब बातें काल्पनिक है. काल्पनिक बातोंमें विश्वास रखना अंधश्रद्धा है. समाजमें अंधश्रद्धाको बढावा नहीं देना चाहिये. जो लोग खुदको रेशनल मानते है, वे ऐसा सोचते है.

राम मंदीरके लिये आग्रहीयोंका विरोध करने वालोंकी यही सोच है.

बडे बडे विद्वान और बुद्धिमान लोग भी रामको काल्पनिक पुरुष मानते है.

इसका मूख्य कारण यह है कि प्राचीन और मध्यकालिन भारतीय पुस्तकोंमे चमत्कारकी कई सारी बाते हैं और ये सब कपोलकल्पित है. सब बकवास है ऐसी मान्यता अपनेको ज्ञानी और तटस्थ समझने वाले लोग रखते है.वैसे तो हर धर्मके पुस्तकमें चमत्कारकी बातें लिखी हुई है. लेकिन उन धर्मोंके सभी महापुरुष ऐतिहासिक है. क्यों कि ये सब २६०० वर्षके अंतर्गत हुए. और इनके कुछ कुछ अवशेष मिल जाते हैं ऐसा माना गया है, इसलिये चमत्कारी बातें होते हुए भी वे सब ऐतिहासिक व्यक्ति है.

रामके प्राचीन अवशेष मिलते नहीं है. और जो भी मिलते है वे रामके संबंधित है ऐसा मानना अंधश्रद्धा है ऐसि मानसिकता स्थापित है. रामके प्राग्ऐतिहासिक अवशेष वैसे तो मिलते है, लेकिन उन अवशेषोंको रामके जमानेके या रामके संबंधित माने नहीं जाते हैं. इसके पीछे (आर्यन ईन्वेझन थीयेरी = आर्यजातिका भारत पर आक्रमण और फिर यहांके द्राविड और दस्युजातिकी पराजय और उनका पीछे दक्षिण दीशामें जाना) से अधितर्कका स्विकार है.

वैसे तो यह अधितर्क बिलकुल तर्कहीन और विरोधाभासोंसे भरपूर है, और अब तो यह अधितर्क निराधार और अस्विकृत माना भी जाता है तो भी जो मानसिकता बनी हुई है, वह अभी भी स्थापित है.क्या ऐतिहासिकता का आधार सिर्फ पूरातत्वके अवशेष ही हो सकते है? अगर उत्खनन किया नहीं है तो क्या मानोगे? अगर बाबरी ढांचाके नीचे उत्खनन नहीं हुआ होता और उसके नीचेसे जो विविध स्तर पर विभीन्न अवशेष मीले वह नहीं मिलते तो यही माना जाता कि नीचे कुछ अलग संस्कृति थी ही नहीं. मान लिजीये अगर उन स्तरोंसे भारतीय संस्कृति पर कुछ प्रकाश पडने वाला था, तो क्या होता?

मान लिजीये मोहें जो दडो का उत्खनन नहीं होता तो?

वास्तवमें हमें पुस्तकस्थ विवरणोंको महत्व देना ही पडेगा. उनकी अवगणना नहीं की जा सकती.हमारे पुराणोंको और महाकाव्योंको सिर्फ कपोल कल्पित मानके, उनको भी तिहासका एक हिस्सा मानना पडेगा. यह बात जरुर है कि उनमें कुछ चमत्कारिक बातें है, ईश्वर (रुद्रशिव), भगवान (सूर्यविष्णुब्रह्मा) और देवताओं (ईन्द्र, वायु, आदि)की बातें है. लेकिन ये सब तो तिहासके पुरुषोंकी बातोंको ज्यादा रसप्रद बनानेके लिये संमिलित किया गया है.

जैसे कोई पुस्तकमें वार्तालापोंके शब्दप्रयोगस्थलोंके वर्णनके शब्दप्रयोग, वस्त्रोंके वर्णनके शब्दप्रयोग आदि अक्षरसः वही शब्दोंका प्रयोग हुआ होगा ऐसा नहीं होता है. जैसे मैथिली शरण गुप्तने कोई संवाद लिखा है जिसमें सम्राट अशोक और उसकी पत्नी तिष्यरक्षिताके बीचमें कलिंगके युद्धको ले के संवाद जो वर्णित है, वह भी हुआ हो या अक्षरसः वह भी हो. लेकिन हम अशोककी और उसके कलिंगके युद्धकी ऐतिहासिकताको  नकार नहीं सकते. अशोकके पिताका नाम बहुतेरे पुस्तकोंमें बिंबिसार लिखा हुआ है. तो हम बिंबिसारकी ऐतिहासिकताको नकार नहीं सकते.

महाकाव्योंको अगर छोड दें, तो भी सभी पुराणोंमें रामका उल्लेख है. उसके पिता दशरथका भी उल्लेख है. दशरथके पिताका भी उल्लेख है. उतना भी नहीं पूरे वंशके राजाओंका उल्लेख है. और सभी पुराणोंमें समानरुपसे ही है. ये सब पुराण एक साथ नहीं लिखे गये हैं.पुराण सतत लिखते ही गये थे. अलग अलग जगह और अलग अलग समय पर लिखाते गये थे. कमसे कम ईसा पूर्व चौथे शतकसे ईसा की सातवीं सदी तक अनेकानेक पुराणोंमे लिखना चलता रहा था.

विश्वमें कई ग्रंथोमें ऐसा लिखना चलता रहा है.

सबसे पुराना पुराण वायु पुराण है.

वायु पुराण सबसे ज्यादा पुराना क्युं हैवैसे तो वायुपुराण के छः पाठ मिलते है. सर्वप्रथम पाठकी संस्कृतभाषा पुरी पूर्वपाणीनीकाल की है. बादमें उसमें कई प्रक्षेप होते गये और अध्याय बडे भी होते गये और बढते भी गये.इस पुराणमें बुद्ध भगवानका उल्लेख नहीं है. विष्णुके दशावतारकी बात है. लेकिन रामका नाम वे दश अवतारोंकी सूचीमें नहीं है. रामका एक पराक्रमी राजाके रुपमें उल्लेख है. रामके पिता दशरथका भी उल्लेख है. दशरथको भी पराक्रमी राजाके रुपमें उल्लेख है. पुरे सूर्यवंशके राजाओंकी नामावली है.

रामके बारेमें क्या लिखा है?

रामके बारेमें संक्षिप्तमें लिखा है. बलवान राजा दशरथके पुत्र रामने लंकाके रावणको हराया.

वैसे तो कृष्ण भगवानका भी उल्लेख है. कृष्णको तो विष्णुके अवतार तो माना ही है.

कृष्ण के बारेमें एक अध्यायका हिस्सा है.

लेखकने, श्यामंतक मणी जो खो गया था और कृष्णके उपर इस बातको लेकर जो आरोप लगा था और कृष्णने इस आरोपको कैसे दूर किया था इस  प्रसंगको वर्णित किया है.

एक पन्नेमें यह बताया है कि, वसुदेवके किन किन पुत्रोंको (पुत्रोंके नाम भी दिये है) कंसने मार डाले थे. और इसलिये कृष्ण के जन्मके पश्चात, वसुदेव इस कृष्णको अपने मित्र नंदके यहां छोड आते है. इसमें कोई चमत्कार वर्णित है कोई कारावासकी बात है, न कोई यमुनाके पूरकी कोई बात न और कोई लंबी बात है.

दुसरी विशेषता इसमें यह है कि, बलरामको विष्णुका अवतार बताया गया है.

तीसरी महत्वपूर्णबात यह है कि कई श्लोकोंमें ब्रह्मा विष्णु और रुद्र के बदले ब्रह्मा विष्णु और अग्नि ऐसा लिखा गया है. इसका प्रारंभ भी, महेश ईशान (रुद्र) की स्तूति से होता है.

वेदोमें अग्निका एक नाम ईशान भी है. महो देव (महः देवः अर्थात्महो देवो जैसे कि सो महो देवो मर्त्यां आविवेश) भी अग्निका नाम है. कहेनेआ तात्पर्य यह है कि अग्नि, रुद्र, और शिवकी एक रुपता वायुपुराणमें सिद्ध होती है.ऐसी कई बातें है जिससे वायु पुराणकी प्राचीनता सिद्ध होती है.(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे,

टेग्झः

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