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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

नज़ारा ए शाहीन बाग

कोंगी लोग सोच रहे है कि अब हम मर सकते है. अब हमे अंतीम निर्णय लेना पडेगा. इसके सिवा हमारा उद्धार नहीं है. यदि हम ऐसे ही समय व्यतीत करते रहे … नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को गालियां देतें रहें तो ये सब प्रर्याप्त नहीं है.

यह तो हमने देख ही लिया कि, जो न्यायिक प्रक्रिया चल रही है उसमें हमारी लगातार हार हो रही है.  हमारे लिये कारावासके अतिरिक्त कोई स्थान नहीं. यदि हम सब नेतागण कारावासमें गये तो कोई हमारा ऐसा नेता नहीं बचा है जो हमारे पक्षको जीवित रख सकें और हमे कारावाससे बाहर निकाल सके. हमने पीछले ७० सालमें जो सेक्युलर, जनतंत्र और भारतीय इतिहास को तो छोडो, किन्तु जो नहेरु और नहेरुवीयनोंके विषयमें जूठ सिखाया है और पढाया है, उसका पर्दा फास हो सकता है.

अब हमारे पास तीन रास्ते है.

नवजोत सिध्धु, मणीशंकर अय्यर और शशि थरुर जैसे लोग यदि भारत में काममें न आये तो वे पाकिस्तानमें तो काममें आ ही सकते है. हमारे मुस्लिम लोगोंके कई रीस्तेदार पाकिस्तानमें है. इस लिये पाकिस्तानके उन रीस्तेदारों द्वारा हम भारतके मुस्लिमोंको उकसा सकते है. बोलीवुडके कई नामी लोग हमारे पक्षमें है और वे तो दाउदके पे रोल पर है. इस लिये ये लोग भी बीजेपीके विरुद्धमें वातावरण बनानेमें काममें आ सकते है. इस परिबल को हमें उपयोगमें लाना पडेगा. अभी तक तो हमने इनका छूटपूट उपयोग किया है लेकिन यह छूटपूट उपयोगसे कुछ होने वाला नहीं हैं.    

(१) मुस्लिम जनतासे हमें कुछ बडे काम करवाना है.

(२) जिन समाचार माध्यमोंने हमारा लुण खाया है उनसे हमे किमत वसुल करना है. यह काम इतना कठिन नहीं है क्यों कि हमारे पास उनकी ब्लेक बुक है. हमने इनको हवाई जहाजमें बहूत घुमाया है … विदेशोंकी सफरोंमे शोपींग करवाया है, फाईवस्टार होटलोंमें आरामसे मजा करवाया है, जो खाना है वो खाओ, जो पीना है वह पीओ, जहां घुमना हैं वहा घुमो … इनकी कल्पनामें न आवे ऐसा मजा हमने उनको करवाया है और इसी कारण वे भी तो नरेन्द्र मोदी से नाराज है तो वैसे भी हम उनका लाभ ले सकते है. और हम देख भी रहे है कि वे बीजेपीकी छोटी छोटी माईक्रोस्कोपिक तथा कथित गलतीयोंको हवा दे रहे है जैसे की पीएम और एच एम विरोधाभाषी कथन बोल रहे है, अर्थतंत्र रसाताल गया है, अभूत पूर्व बेकारी उत्पन्न हो गयी है, जीडीपी खाईमें गीर गया है, किसान आत्म हत्या कर रहा है, देश रेपीस्तान बन गया है …. और न जाने क्या क्या …?

(३) क्या मूर्धन्य लोगोंको हम असंजसमें डाल सकते हैं? जी हाँ. यदि मुसलमान लोग अपना जोर दिखाएंगे और हला गुल्ला करेंगे तो ये लोग अवश्य इस निष्कर्स पर पहोंचेंगे कि यह सब अभी ही क्यों हो रहा है …? पहेले तो ऐसा नहीं होता था …!! कुछ तो गडबड है …!! गुजरातीमें एक कहावत है “हलकुं लोहीं हवालदारनुं” मतलब की हवालदार ही जीम्मेवार है.

शशि थरुर और राजदीप सरदेसाई के वाणी विलासको तो हम समज़ सकते है कि उनका तो एक एजन्डा है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपीके बारेमें अफवाहें फैलाओ और एक ॠणात्मक हवा उत्पन्न करो तो जनता बीजेपीको हटाएगी. इन लोगोंसे जनता तटस्थता की अपेक्षा नहीं रखती.

अब देखो हमारे मूर्धन्य कटारीया लोग [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला यानी कोलमीस्ट)] क्या लिखते है?

प्रीतीश नंदीः

“घर छोडके विकास तो भाग गया है” “बीजेपी द्वारा हररोज मुश्केलियां उत्पन्न की जाती है”, यह मुश्केलियां हिंसक भी होती है”, “आखिरमें हमने इस सरकारको वोट क्यों दिया?” “हर महत्त्वकी बातको सरकार भूला देती है” “पागलपन, बेवकुफी भरी उत्तेजना सरकार फैला रही है”, “बीजेपीने चूनावमें बडे बडे वचन दिये थे”, “बीजेपीने चूनावमें युपीएके सामने कुछ सही और कुछ काल्पनिक कौभाण्ड  उजागर करके  सत्ता हांसिल की थी,” “प्रजाकी हालत “हिरन जैसी थी” … “नरेन्द्र मोदीके आक्रमक प्रचारमें जनता फंस गई थी”, “नरेन्द्र मोदीने इस फंसी हुई जनताका पूरा फायदा उठाया” और “मनमोहन जैसे सन्मानित और विद्वान व्यक्तिको  ऐसा दिखाय मानो वे दुष्ट और भ्रष्टाचारी …” “ कारोबारीयोंका संचालन कर रहे हो” “छात्रोंके नारोंकी ताकतको कम महत्त्व नहीं देना चाहिए.”

इस प्रीतीश नंदीकी अक्लका देवालीयापन देखो. वे पाकिस्तानके झीया उल हक्कके कालका एक कवि जो झीयाके विरुद्ध था, उसकी एक कविताका  उदाहरण देते है “हम देखेंगे …”. इसका नरेन्द्र मोदीके शासनके कोई संबंध नहीं. फिर भी यह कटारीया [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला कोलमीस्ट)] उसको उद्धृत करते है और मोदीको भय दिखाता है कि इस कविकी इस कवितासे लाखो लोग खडे हो जाते है.

यह कटारीयाजी इस काव्यका विवरण करते है. और कहेते है कि हे नरेन्द्र मोदी तुम्हारे सामने भी लाखो लोग खडे हो जायेंगे. फिर यह कटारीयाजी ढाकाके युवानोंका उदाहरण देते है. उनका भी लंबा चौडा विवरण देते है.

क्या बेतुकी बात करते है ये कटारीया नंदी. नंदी कटारीया का अंगुली निर्देश जे.एन.यु. के युवाओंके प्रति है. नंदी कटारीया, जे.एन.यु. के किनसूत्रोंको महत्त्व देना चाहते है? क्या ये सूत्र जो अर्बन नक्षल टूकडे टूकडे गेंग वाले थे?  क्या जे.एन.यु. अर्बन नक्षल वाले ही युवा है? बाकिके क्या युवा नहीं है? अरे भाई अर्बन नक्षल वाले तो ५% ही है. और वे भी युवा है या नहीं यह संशोधनका विषय है. ये कौनसी चक्कीका आटा खाते है कि उनको चालीस साल तक डॉक्टरेट की डीग्री नहीं मिल पाती? जरा इसका भी तो जीक्र करो, कटारीयाजी!!! 

नंदी कटारीयाजीका पूरा लेख ऐसे ही लुज़ टोकींगसे भरा हुआ है. तर्ककी बात तो अलग ही रही, लेकिन इनके लेखमें किसी भी प्रकारका मटीरीयल भी आपको मिलेगा नहीं.

यदि सही ढंगसे सोचा जाय तो प्रीतीश नंदीके इस लेखमें केवल और केवल वाणी विलास है. अंग्रेजीमें इनको “लुज़ टोकींग”कहा जाता है. कोंगी नेतागण लुज़ टॉकींग करे, इस बातको तो हम समज़ सकते है क्यों कि उनकी तो यह वंशीय आदत है.

शेखर गुप्ता (कटारीया)

शेखर गुप्ता क्या लिखते है?

मोदीने किसी प्रदर्शनकारीयोंके जुथको देखके ऐसा कहा कि “उनके पहेनावासे ही पता लग जाता है कि वे कौन है?”

यदि कोई मूँह ढकके सूत्र बाजी या तो पत्थर बाजी करता है तो;

एक निष्कर्ष तो यह है कि वह अपनी पहेचान छीपाना चाहता है, इससे यह भी फलित होता है कि वह व्यक्ति जो कर रहा है वह काम अच्छा नहीं है किन्तु बूरा काम कर रहा है.

दुसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि वह अपराधवाला काम कर रहा है. अपराध करनेवालेको सज़ा मिल सकती है. वह व्यक्ति सज़ासे बचनेके लिये मूँह छीपाता है.

तीसरा निष्कर्ष में पहनावा है.  पहनावेमें तो पायजामा और कूर्ता आम तौर पर होता ही है. यह तो आम जनता या कोई भी अपनेको आम दिखानेके लिये पहेनेगा ही.

लेकिन हमारे शे.गु.ने यह निष्कर्ष  निकाला की नरेन्द्र मोदीने मुस्लिमोंके प्रति अंगूली निर्देश किया है. इस लिये मोदी कोम वादी है और मोदी कोमवादको बढावा देता है. शे.गु. कटारीयाका ऐसा संदेश जाता है.

शे.गु.जी ऐसा तारतम्य निकालनेके लिये, अरुंधती रोय और माओवादी जुथके बीचके डीलका उदाहरण देते है. गांधीवाद और माओवाद का समन्वय किस खूबीसे अरुंधती रोय ने किया है कि शे.गु.जी आफ्रिन हो गये. शे.गु.जी कहेते है कि, क्यूं कि प्रदर्शनकारी पवित्र मस्जिदमेंसे आ रहे है, क्यूँ कि उनके हाथमें त्रीरंगा है, क्यूँ कि वे राष्ट्रगान गा रहे है, क्यूँ कि उनके पास महात्मा गांधीकी फोटो है, क्यूं कि उनके पास आंबेडकर की फोटो है … आदि आदि .. शे.गु. जी यह संदेश भी देना चाहते है कि ये बीजेपी सरकार लोग चाहे कितनी ही बहुमतिसे निर्वाचित सरकार क्यूँ न हो इन (मुस्लिमों)के प्रदर्शनकी उपेक्षा नहीं करना चाहिये.

वास्तवमें शे.गु.जीको धैर्य रखना चाहिये. रा.गा.की तरह, बिना धैर्य रक्खे, शिघ्र ही कुछ भी बोल देना, या तो बालीशता है या तो पूर्वनियोजित एजन्डा है. तीसरा कोई विकल्प शे.गु. कटारीयाके लिये हो ही नहीं सकता.

शे.गु.जी ने आगे चलकर भी वाणी विलास ही किया है.

चेतन भगतः

चेतन भगत भी एक कटारीया है. वे लिखते है कि

“उदार मानसिकतासे ही विकास शक्य है.”

“हम चोकिदार कम और भागीदार अधिक बनें, इससे देश शानदार बनेगा”

श्रीमान चे.भ. जी (चेतन भगत जी), भी एक बावाजी ही है क्या? बावाजी से मतलब है संत रजनीश मल, ओशो आसाराम. बावाजी है तो उदाहरण तो देना ही आवश्यक बनता है न!! वे अपने बाल्यावस्थाका उदाहरण देते है. वे फ्रीज़ और नौकरानीका और बील गेट्सका उदाहरण देते है. परोक्ष में “चे.भ.”जी मोदीजी की मानसिकता अन्यों के प्रति अविश्वासका भाव है. फिर उन्होंने कह दिया कि, नरेन्द्र मोदीने कुछ नियम ऐसे बनाये कि लोग भारतमें निवेश करने से डरते है. कौनसे नियम? इस पर चे.भ.जी मौन है. शायद उनको भी पता नहीं होगा.

चे.भ.जी अपनी कपोल कल्पित तारतम्य को स्वयं सिद्ध मानकर मोदीकी बुराई करते है.

“मुस्लिमोके विरुद्ध हिन्दुओंमें गुस्सा है. इसका कारण हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता है.

“अप्रवासीयोंपर हुए हमले भी हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता कारण भूत है,

“मुस्लिमोंको बहुत कुछ दे दिया है, अब वह वापस ले लेना चाहिये,

“मुस्लिमोंका बहुत तुष्टीकरण किया है अब उनको लूट लेना चाहिये

चे.भ.जी इस बातको समज़ना नहीं चाहते कि, किसी भी जनसमुदायमें कुछ लोग तो कट्टर विचारधारा वाले होते ही है. लेकिन किस समुदायमें इस कट्टरतावादी लोगोंका प्रमाण क्या है? इतनी विवेकशीलता तो मूर्धन्य कटारीयाओंमें होना आवश्यक है. लेकिन इन कटारीयाओंमे विवेक हीनता है. तुलनात्मक विश्लेषणके लिये ये कटारीया लोग अक्षम ही नहीं अशक्त है. वे समज़ते है “… वाह हमने क्या सुहाना शब्द प्रयोग किया है. फिलोसोफिकल वाक्य बोलो तो हमारी सत्यता अपने आप सिद्ध हो जाती है…”चे.भ.जी जैसे लोगोंको तुलनात्मक सत्य दिखायी ही नहीं देता है.

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंके शिर्ष नेताओंके उच्चारणोंको देख लो. “चोकिदार चोर है, नरेन्द्र मोदी नीच है, नरेन्द्र मोदीको डंडा मारो, नरेन्द्र मोदी फासीस्ट है, नरेन्द्र मोदी हीटलर है, नरेन्द्र मोदी खूनी है, बीजेपी वाले आर.एस.एस.वादी है, वे गोडसे है…” न जाने क्या क्या बोलते है. पक्षके प्रमुख और मंत्री रह चूके और सरकारी  पद पर रहेते हुए भी उन्होंने ऐसे उच्चारण किये है. लेकिन ये उपरोक्त मूर्धन्य कटारीया लोग इन उच्चारणों पर मौन धारण करते है. उनका जीक्र तक नहीं करतें.

आखिर ऐसा क्यूँ वे लोग ऐसा करते हैं?

यदि बीजेपीके या तो आर.एस.एस.के तृतीय कक्षाके लोग उपरोक्त उच्चारणोसे कम भी बोले तो ये लोग बडे बडे निष्कर्ष निकालते है. अपना कोरसगान (सहगान) चालु कर देते हैं.     

अपराध कब सिद्ध होता है?

“आप अपनी धारणाओंके आधार पर किसीको दोषी करार न ही दे सकते. न्यायिक प्रक्रियाके सिद्धांतोसे यह विपरित है. किसीको भी दोषी दिखानेके लिये आप अपनी मनमानी और धारणाओंका उपयोग नहीं कर सकते. किन्तु महान नंदीजी, शे.गु.जी, चे.भ. जी … आदि क्यूँ कि उनका एजन्डा कुछ और ही है, वे ऐसा कर सकते है. कोंगी लोग यही तो चाहते है.

इन कटारीया लोगोंको वास्तवमें पेटमें दुखता है क्या?

वास्तवमें कोंगी लोग और उनके सहयोगी लोग समज़ गये है कि,

नरेन्द्र मोदी, और भी समस्याएं हल कर सकता है. वैसे तो, जी.एस.टी. तो हमारा ही प्रस्ताव था, “विमुद्रीकरण करना” इस बातको तो हम भी सोच रहे थे, पाकिस्तानमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हो और वे पीडित होके भारतमें आवे तो, हमे उनको नागरिकता देनी है, यह बात भी हमारे नहेरु-लियाकत अली समज़ौताका हिस्सा था, १९७१के युद्धसे संबंधित जो शरणार्थी प्रताडित होकर भारतमें आये उनमें जो पाकिस्तानके अल्पसंख्यक थे उनको नागरिकता देना, और बांग्लादेशके आये बिहारी मुस्लिमोंको वापस भेजना यह तो हमारे पक्षके प्रधान मंत्रीयोंका शपथ था.  किन्तु हममें उतनी हिंमत और प्रज्ञा ही नहीं थी कि हम अपने शपथोंको पुरा करे. मोदीके विमुद्रीकरण और जी.एस.टी.के निर्णयोंको तो हमने विवादास्पद बनाके विरोध किया और जूठ लगातार फैलाते रहे. बीजेपी के हर कदमका हम विरोध करेंगे चाहे वह मुद्दे हमारे शासनसे संलग्न क्यूँ न हो?

कोंगी और उनके साथी लोगोंको अनुभूति हो गई है कि, “अब तो मोदीने उन समस्याओंको हाथ पे ले लिया है जो हमने दशकों और पीढीयों तक अनिर्णित रक्खी”.

कोंगीने उनके सांस्कृतक साथी पक्षके नेतागणको आत्मसात्‌ करवा दिया है कि “मोदी सब कुछ कर सकता है. अब तक हम उसको हलकेमें ले रहे थे. किन्तु मोदी आतंकी गतिविधियोंको अंकूशमें रख सकने के अतिरिक्त और सर्जीकल स्ट्राईकके अतिरिक्त, अनुछेद ३७० और ३५ऍ तकको खतम कर सकता है. वह जम्मु – कश्मिर राज्यश्रेणी भी बदल सकता है. हमे खुलकर ही मुस्लिम नेताओंको और मुस्लिमोंको अधिकसे अधिक बहेकाना पडेगा.”

कोंगीके सांस्कृतिक साथी कौन कौन है?

कोंगी पक्ष कैसा है?

कोंगी वंशवादी है, वंशवादको स्थायी रखने के लिये अवैध मार्गोंसे संपत्तिकी प्राप्त करना पडता है, शठता करनी पडती है,

सातत्यसे जूठ बोलना पडता है,

असामाजिक तत्त्वोंको हाथ पर रखना पडता,

दुश्मनके दुश्मनको मित्र बनाना पडता है,

जनताको मतिभ्रष्ट और पथ भ्रष्ट करना पडता. और कई समस्याओंको अनिर्णायक स्थितिमें रखना पडता है चाहे ये अनिर्णायकता देशके लिये और आम जनताकाके लिये कितनी भी हानिकारक क्यूँ न हो!!

अनीतिमत्ता वंशवादका एक आनुषंगिक उत्पादन है.

कोंगी जैसा सांस्कृतिक चरित्र और किनका है?

 ममताका TMC, शरदका NCP, लालुका RJD, बाल ठकरे का Siv Sena, मुल्लायमका SP, शेख अब्दुल्लाके फरजंद फारुक अब्दुल्लाका N.C. और सबसे नाता जोडने और तोडने वाले साम्यवादी. अब हम इन सभी पक्षोंके समूह को कोंगी ही कहेंगे. क्योंकि इन सभीका काम येन केन प्रकारेण, बिना साधन शुद्धिसे, बिना देशके हितकी परवाह किये नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को फिलहाल को बदनाम करो.

संवाद मत करो और तर्कयुक्त चर्चा मत करो केवल शोर मचाओ

संवाद करेंगे तो सामनेवाला तर्क करेगा. इस लिये संवाद मत करो, बार बार जूठ बोलो, असंबद्ध उदाहरण दो, सब नेता सहगान करो.

कहो… मोदी चोर है. अपने अनपढ श्रोताओंसे सूत्रोच्चार करवाओ मोदी चोर है. मोदीको चोरे सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी हीटलर है.  सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी खूनी है… सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

बीजेपी लोग गोडसे है. चाहे गोडसे आर.एस.एस. का सदस्य न भी हो तो भी. हमें क्या फर्क पडता है!!!  सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

विमूद्रीकरणमें मोदीने सेंकडो लोगोंको लाईनमें खडा करके मार दिया. बोलनेमें क्या हर्ज है? (वचनेषु किं दरिद्रता?). सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

जी.एस.टी. गब्बर सींग टेक्ष है. (चाहे वह हमारा ही प्रस्ताव क्यों न हो. किन्तु हममें उतना नैपूण्य कहाँ कि हम उसको लागु करें). यह सब चर्चा करना कहाँ आवश्यक है? सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

“भारतीय संविधान”को हमारे पक्षमें घसीटो, “मानव अधिकार और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” को भी हमारे पक्षमें घसीटो, रास्ता रोको, लगातार रास्ता रोको, आग लगाओ, फतवे निकालो, जनताको हो सके उतनी असुविधाओंमें डालो, कुछ भी करो और सब कुछ करो … मेसेज केवल यह देना है कि यह सब मोदीके कारण हो रहा है.

यदि इतना जूठ बोलते है तो “महात्मा गांधी”को भी हमारे पक्षमें घसीटो. गांधीजीका नाम लेके यह सब कुछ करो.

कोंगीयों द्वारा गांधीका एकबार और खून

कोंगीओंको, उनके सांस्कृतिक साथीयों और समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी छोडो, भारतमें विडंबना यह है कि अब मूर्धन्य कटारीया लोग भी ऐसा समज़ने लगे है कि अहिंसक विरोध और महात्मा गांधीके सिद्धांतों द्वारा विरोध ये दोनों समानार्थी है.

महात्मा गांधीके अनुसार विरोध कैसे किया जाता है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

https://www.treenetram.wordpress.com 

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