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“गद्दारोंको गोली मारो” गांधीजीने कहा था

यदि मुसलमान बेवफा होगा तो हकुमत गोली मारेगी

यह उच्चारण गांधीजीका है. गांधीजीने यह बात २५ नवेम्बर १९४७ बृहस्पति वार को न्यु दिल्ही बिरला हाउससे  कही थी.

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अनपढ सी कोंगीको, चाहिये कि वह गांधीजीको पढें. कोंगीके सांस्कृतिक साथी, लुटीयन गेंग, स्थानिक आतंकवादी, उनकी सहायक गेंगोंके स्वयं प्रमाणित मूर्धन्य लोगोंको भी गांधीजीको पढना चाहिये. इन लोगोंको “दिल्हीमें गांधीजी” पार्ट-१ और पार्ट-२ पुस्तकको तो कमसे कम पढना ही चाहिये ताकि वे गांधीजीका नाम लेना बंद करे. मनुबेन गांधीने, महात्मा गांधीकी दिन प्रतिदिन की दिनचर्या (रोजनीशी) और उच्चारणके रुपमें पुस्तकको लिखा है. मनुबेन गांधी, गांधीजीकी अंतेवासी थीं. उन्होंने इस पुस्तकको लिखा है. नवजीवन पब्लीकेशन है.

क्या गांधीजी कोमवादी थे?

लुटीयन गेंगोंके तर्क के अधार पर तो गांधीजी सरासर कोमवादी थे. उन्होने कहा कि मुसलमान यदि गद्दार हुआ तो हकुमत उसको गोली मारेगी. आप देखते है कि गांधीजीने केवल मुसलमानका उल्लेख किया है. उन्होंने ऐसा तो नहीं कहा कि सरकार को  हर गद्दारको गोली मारना है. महापुरुष लोग तो एक एक शब्द विचार कर कर के बोलते है. मानो कि उनको संविधान लिखना है. प्रत्येक शब्दकी किमत होती है.

अब प्रवर्तमान  महाजन लोग, जो सी.ए.ए.के विषय में ऐसा बोलते हैं कि “बीजेपी तो कोमवादी है. क्यों कि उसने तो सी.ए.ए.में पाकिस्तानकी सरकार द्वारा धर्मके आधार पर  प्रताडित हिन्दु, सिख, …. आदि के लिये ही सामुहिक प्रक्रियासे नागरिकता देनेका प्रावधान किया है. यह तो मुस्लिमों (पाकिस्तान स्थित)के उपर किया गया भारत सरकार का सरासर अन्याय है, चाहे इन्ही मुसलमानोंको नागरिकता देने के लिये अन्य प्रावधानीय व्यवस्था क्यूँ न हो.”

गांधीजीको तब नहीं तो अब ही सही

क्या गांधीजीको तब नहीं तो अब ही सही, चाहे गांधीजी यदि विद्यमान नहीं है, तो वे नहीं तो उनकी छवी ही सही, कोंगी महाजन गोली मारेंगे? जी हाँ. कोंगी और उनकी गेंगोंको आगे आना ही चाहिये यदि वे अपने तर्क पर कायम है.

आपको हँसी आयी होगी. अवश्य. क्यों कि गांधीजीकी छवीको गोली मारने के लिये ये कोंगी या तो उनके सांस्कृतिक साथीयोंमेसे कोई भी आगे नहीं आयेगा, चाहे उसने/उन्होंने  गांधीजीके सिद्धांतोकी कितनी ही अवहेलना करके गांधीजीके उपर मनोमन कितनी ही बार गोलियाँ क्यूँ न चलायी हो.

गांधीजी तो आर्ष दृष्टा थे. उनको ठीक तरह से मालुम था कि नहेरुकी कोंग्रेस सत्ताके लिये कुछ भी कर सकती है. किन्तु बेचारे गांधीके पास ऐसी आर्ष दृष्टि नहीं थी कि वे यह सोच सके के नहेरुकी कोंग्रेस सत्ताके लिये गद्दारी भी कर सकती है.

हर गद्दारको गोली मारो.

गोलीमारो

गोली मारनेकी क्रियाको हमें सेक्युलर करना पडेगा.

केवल मुस्लिम ही, गद्दार नहीं होते हैं. कई और भी गद्दार होते है.

गांधीजीके उपरोक्त कथन को सेक्युलराईज़ करना पडेगा.

हर गद्दारको गोली मारो,

उन सब गद्दारोंको गोली मारो, चाहे वह नहेरुकी कोंग्रेसका सदस्य हो, आम पक्ष का सदस्य हो, साम्यवादी विचारधारा वाला हो, स्थानिक आतंकवादी हो, आतंकवादीयोंका सहायक हो, मूर्धन्य हो, मीडीया कर्मी हो, कोलमीस्ट हो, सेना पर पत्थरबाजी करनार हो  … कोई भी व्यक्ति यदि गद्दार हो, उसको गोलीसे उडा दो. यही सच्चा महात्मा गांधीवाद है. महात्मा गांधीके सिद्धांतो के अनुसार देशकी सुरक्षा सर्व प्रथम है   

गांधीजी खुद वकिल थे.

जब भी वकिल कोई दस्तावेज तैयार करता है तो, जो भी शब्दका प्रयोग करता है उसकी परिभाषा भी लिखता है. यदि कोई शब्दकी परिभाषा नहीं लिखी तो उसका शब्दकोषका अर्थ ग्रहण करना पडता है. कुछ महाशयोंको इस बातका ज्ञान नहीं होता है और वे बोल उठते है कि क्या उनकी उस शब्दकी बनायी परिभाषा अंतीम है? जी हाँ. यदि वकिलने या और किसीने भी, कोई शब्द के प्रयोग करनेसे पहेले उसकी परिभाषा बता दी, तो वही परिभाषा न्यायालयको भी मान्य करना पडता है.  इसकी सीमा उस दस्तावेज तक सीमित है. एक बात अवश्य है कि वह परिभाषा हम्प्टी डम्प्टी की न हो. जैसे कि इन्दिरा गांधीने कहा हमारा ध्येय सबसे नम्र व्यवहार और आचारणमें उसने हजारोंको बिना कारण बताएं कारावासमें भेज दिया था. वैसे तो उसने व्याख्या भी नहीं की थी.

 उसी प्रकार गांधीजीने यदि, अपनी अहिंसाकी परिभाषा कर दी, तो गांधीजीके सामने वही परिभाषा चलेगी. यानी कि कमसे कम हिंसा, वह है अहिंसा.

कोरोना वायरसकी महामारी और सरकारके आदेश

भारत सरकारने तो आदेश घोषित कर दिया कि २१ दिनतक जहाँ भी हो उस स्थान पर ही रहो. उनके मालिकोंको कहा कि उनका वेतन मत काटो. यदि बाहर जाना है तो केवल राशन, दूध और शब्जी के लिये ही निकलो. यह आदेश संचारबंधीसे भी अधिक कठोर है.

भारतमें एक खास वर्ग है जिसमें कोंगी भी सामेल है, उसका ध्येय एक मात्र ही है, कि प्रवर्तमान बीजेपी सरकारको हर हालतमें बदनाम करो चाहे जूठ ही बोलना क्यूँ न पडे, चाहे गद्दारी ही क्यूँ न करनी पडे, चाहे देशमें करोडों लोग ही क्यूँ न मर जाय? यदि इस सरकारको हटाना है तो हमें इस सरकारके विरुद्ध व्यापक  आंदोलन करना पडेगा. हम सरकारसे हजार प्रश्न करते रहेंगे, हमारे वकिल लोग पी.आई.एल. के साथ न्यायालयमें जाते रहेंगे, हम अर्बन नक्षलनेता बनेंगे, मुस्लिम बिरादर हिंसा पर उतरेंगे और हम उनका वितंडावादसे बचाव करते रहेंगे.

लुटीयन गेंग सोचती है कि “पूरानी बातें जानने वाले मूर्धन्य और कोलमीस्ट्स या तो वे खुदाके प्यारे हो गये है, या उनको स्मृति दोष भी हो सकता है, या तो वे अपनी तटस्थता सिद्ध करनेकी धूनमें प्रमाणभान खो चूके है. उनको पथभ्रष्ट करना सरल ही है. जो इक्के दुक्के बचे उनको तो कौन पूछता ही है.  जब ख्यातनाम महानुभावोंका यह हाल है तो आम जनता क्या चीज़ है. आम जनता को तो असंमंजसमें डालना आसान है.”

बीजेपी सरकार द्वारा अनुच्छेद ३७० / ३५ए के हटानेसे इस लुटीयन गेंग के होश उड गये है. आतंकवाद पर सरकारने पर्याप्त अंकुश पा लिया है. अब इस लुटीयन गेंगके सदस्योंको आतंकीयोंसे पर्याप्त मदद नहीं मिलने वाली है. लेकिन पाकिस्तान के नेताओंने कई बार कहा है कि पाकिस्तानकी ताकत, पाकिस्तानके जो परमाणु बॉम्ब है, वह नहीं है, लेकिन भारतमें बसे मुस्लिम है. तो लुटीयन गेंगने सोचा अरे भाई, इस बेवकुफ पाकिस्तानी नेताओंको जो बात मालुम है वह हमारे दिमागमें क्यूँ नहीं आयीं?

हवाला निष्णात यह लुटीयन गेंग

हवाला निष्णात यह लुटीयन गेंगने अब सीना तान लिया है. अफवाहे फैलाओ, मुसलमानोंको डराओ. दिल्लीके चूनावमें  केज्रीवालने वही किया था. उसने मुस्लिमोंको घर घर जाके कहा कि आपका दुश्मन नरेन्द्र मोदी, संविधान बदलने वाला है. बीजेपीको हराना अनिवार्य है. केज्रीवालने मुस्लिम औरतों द्वारा, सी.ए.ए.के विरुद्ध शाहीन बाग करवाया. व्युहरचना करके आगजनी करवाया, हत्याएं करवायीं, लेकिन विदेशमें प्रचार ऐसा करवाया कि यह सब आगजनी हिन्दुओंने की.

केज्रीवालने कौनसी गद्दारी नहीं की एक संशोधनका विषय

केज्रीवालने कोरोनाको अधिक फैलाने के लिये रातको युपी-बिहारके श्रमिकोंको जगाया और कहा कि यह लोकडाउन तो लंबा होनेवाला है. तुम्हारे लिये युपी-बिहारकी सीमा तक जानेके लिये डीडी-बसें तयार है. तुम चले जाओ. केज्रीवालने कोरोना फैलाने का यह तरिका उपयोगमें लिया. सारे श्रमिकोंके लिये बसें तो पर्याप्त नहीं हो सकती. तो बडी मात्रामें बाकीके श्रमिक पैदल चल पडे.

लुटीयन गेंगोंको तो सुनहरा मौका मिल गया. कि देखो बेचारे क्षुधातुर, तृषातुर  गरीब श्रमिक  पैदल चल पडे है. बीजेपीको उनके दुःख दर्दका खयाल ही नहीं है.

इसी समय दरम्यान, योजना अनुसार विदेशसे  तबलीघी जमातवाले मुस्लिम धर्मके प्रचारक आये हुए थे. वे कोरोनाके आयोजनमें पड गये. उस समय दुनियामें कोरोना वायरस प्रसारित था. एक महा संमेलन चालु था. पुरा गेम प्लान बाहर आना बाकी है. दिल्ली और देशमें योजनाबद्ध रुपसे दंगा फैलाना और कोरोना वायरस देशमें दूर दूर तक इन मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा फैलाना यह उन गेंगोंका काम था.

कोरोनाके कारण तो शाहीनबाग प्रदर्शन तो रोक देना पडा था, लेकिन मुस्लिम नेताओंने, मुस्लिमोंको उकसाया कि कोरोना तो खुदाकी देन है और उसका काम बिन-मुस्लिमोंको खतम करना है. यह खुदाका आदेश है. इस लिये सामुहिक नमाज़ पढो, सामुहिक खाना खाओ, गले मिलो और सरकारके आदेशको मत मानो. सरकारसे बडा खुदा है. और कोरोना मुस्लिमोंका कुछ भी बिगाडने वाला नहीं है. कोरोना फैलाओ. कैसे कोरोना फैलाना उसकी कई वीडीयो क्लीप सोसीयल मीडीया पर उपलब्ध है.

सरकारने अपना राजधर्म निभाया. कितने मुस्लिम लोग कहाँसे आये थे, कितने धर्मगुरु किन किन देशोंसे आये थे. वे कहाँ कहाँ गये है. कौनसे टाईपके वीसा पर आये थे,  सब लोगोंको ट्रेस-आउट किया जा रहा है. सबका कोरोना संक्रमणका टेस्ट हो रहा है. कई  सारे मुस्लिम कोरोना संक्रमित पाये गये है. और भी कोरोना संक्रमित मिलने वाले है. कहा जाता है अधिकतर कोरोना संक्रमित होनेका कारण ये मुस्लिम लोग और उनके धर्मगुरु है. ये लोग अब क्वारेन्टाईन में रक्खे गये है. लेकिन फिर भी देखो. ये लोग सरकारके आदेशोंका पालन नही करते है. वे इकठ्ठे होते है, समूहमें नमाज़ पढते है, चिकित्सक स्टाफको सहयोग नहीं देते है, ये सब बातें तो छोडो, ये लोग जहाँ तहाँ थूंकते है, ये लोग चिकित्सक स्टाफके उपर भी थूंकते है, ये लोग परिचारिकाओंसे अभद्र चेष्टाएं करते है, ये लोग अभद्र शब्दप्रयोग करते है, इनमेंसे कई, नंगा बनकर घुमते है, …… इनसे अधिक अघटित व्यवहार कोई क्या कर सकता है? इनमें केवल विदेशी ही नहीं है. देशी मुस्लिम भी है.

सोसीयल मीडीया पर, इन लोगोंके वैचारिक स्तरका, मुस्लिमोंकी धर्मांधताकी मात्रा कहां तक पहोंच गयी है उनकी अगणित प्रमाणित वीडीयो क्लीप उपलब्ध  है.

लेकिन हमारी लुटीयन गेंगके लोग इन घटनाओं पर गद्दारी मौन धारण किये हुए है. इन लोगोंके हिसाबसे ये लोग नरेन्द्र मोदीके लोक-आउटके कारण निर्दोष फंसे हुए लोग है. ये तो विद्वान, मूर्धन्य

 त्यागी, अमन परस्त और शांतिके दूत है.

हम यह भी जानते है कि कश्मिमें आतंकवादीयोके साथ मूठभेडमें व्यस्त हमारे जवानों पर पत्थरबाजी करने वाले, दाढीवाले मुस्लिम लडके मासुम बच्चे थे. जिनको समज़ानेके लिये महात्मा गांधीके तथा-कथित और स्वयंप्रमाणित धरोहर वाला एक भी कोंगीका नेता या  कश्मिरी नेता आया नहीं था. और आये भी कैसे? जब ५०००००+ कश्मिरी हिन्दुओ पर कश्मिर के मुसलमानोने आतंकवादीयोंके साथ मिलकर आतंक फैलाया और हजारोंकी कत्ल करके उनको भगाया तब ये फारुख और ओमर कश्मिर छोडके भाग गये थे. यह है उनकी  असंवेदनशीलता की परिसीमा. वास्तवमें ये परिस्थित उनके ही  शासनकी ही प्रोडक्ट थी और है.

क्या इस्लाम ऐसा है?

तारिक फतह, हस्सन निसार,   आरिफ मोहम्मद खान, मुख्तार, अब्बास नक्वी, सइद शाह नवाज़ हुसैन, एम. जे. अकबर. …. आदिका  इस्लाम जो कहेते है कि कुरानका इस्लाम है,

लेकिन इस इस्लामको कौन मानता है?

कोई नहीं. क्यों कि कोई मुसलमान डोक्टरोंको और परिरिकाओंको बचाने नहीं आया, लेकिन ढेर सारे, पत्थर बाज आ गये और हमला किया. पुलिस पर भी और उनके वाहनों पर भी पत्थरबाजोंने  हमला कर उनको भगा दिया. क्यों कि वे लोग मुस्लिमोंकी जांच करने आये थे कि उनमें कोई कोरोनाग्रस्त है या नहीं. ऐसी घटनाएं कई जगह हुई.

धर्मकी पहेचान वास्तवमें तो उस धर्मकी आम जनता कैसे आचरण करती है और वह भी आपत्तिकालमें कैसा आचरण करती है वह ही है.

अभी भी नरेन्द्र मोदी ने अपनी आशा नहीं खोई है. उन्होंने तबलीघी जमातके मकानमें इन मुस्लिमोंको समज़ानेके लिये अजित दोवल को भेजा. क्या यह आवश्यक था? जरा भी नहीं. वास्तवमें यह मामला तो कानून और व्यवस्था का है. कानून के सामने सब समान है. इसमें कोई भी छूट, किसीको भी नहीं देना चाहिये. तभी ये मुस्लिम लोग सीधा चलेंगे.

कोंगीने मुस्लिमोंकी आदतें बिगाडी है और भारतकी खास करके हिन्दु जनता उसको भुगत रही है. यदि कोंगीनेताओंके और उनके सांस्कृतिक साथीयोंके विरुद्ध चल रहे  अपराधी मामले न्यायालयमें घोंघेकी (स्नेईल ) गति से ही चलते रहेंगे तो वे तो आश्वस्त है कि मरते दम तक उनको कुछ होनेवाला नहीं है. कोंगीओंने ७० सालके शासन दरम्यान व्यवस्था ही ऐसी बनायी है कि “पैसेसे समर्थ” यानी कि समरथको नहीं दोष गुंसाई. सत्ता चली जाय लेकिन संपत्ति रहे तो निरंकुश ही रहो. आपका बाल तक बांका होनेवाला नहीं है. आप अपना आतंकवादी और गुन्डागर्दीका नेटवर्क फैलाते रहो. मुसलमानोंकी तरह.

शिरीष मोहनलाल दवे

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“वीर सावरकर”का कोंगीने “सावरकर” कर दिया यह है उसका पागलपन.

“वीर सावरकर”का कोंगीने “सावरकर” कर दिया यह है उसका पागलपन.

Savarakar

जब हम “कोंगी” बोलते है तो जिनका अभी तक कोंगीके प्रति भ्रम निरसन नहीं हुआ है और अभी भी उसको स्वातंत्र्यके युद्धमें योगदान देनेवाली कोंग्रेस  ही समज़ते, उनके द्वारा प्रचलित “कोंग्रेस” समज़ना है. जो लोग सत्यकी अवहेलना नही कर सकते और लोकतंत्रकी आत्माके अनुसार शब्दकी परिभाषामे मानते है उनके लिये यह कोंग्रेस पक्ष,  “इन्दिरा नहेरु कोंग्रेस” [कोंग्रेस (आई) = कोंगी = (आई.एन.सी.)] पक्ष है.

कोंगीकी अंत्येष्ठी क्रिया सुनिश्चित है.

“पक्ष” हमेशा एक विचार होता है. पक्षके विचारके अनुरुप उसका व्यवहार होता है. यदि कोई पक्षके विचार और आचार में द्यावा-भूमिका  अंतर बन जाता है तब, मूल पक्षकी मृत्यु होती है. कोंग्रेसकी मृत्यु १९५०में हो गयी थी. इसकी चर्चा हमने की है इसलिये हम उसका पूनरावर्तन नहीं करेंगे.

पक्ष कैसा भी हो, जनतंत्रमें जय पराजय तो होती ही रहेती है. किन्तु यदि पक्षके उच्च नेतागण भी आत्ममंथन न करे, तो उसकी अंन्त्येष्ठी सुनिश्चित है.

परिवर्तनशीलता आवकार्य है.

परिवर्तनशीलता अनिवार्य है और आवकार्य भी है. किन्तु यह परिवर्तनशीलता सिद्धांतोमें नहीं, किन्तु आचारकी प्रणालीयोंमें यानी कि, जो ध्येय प्राप्त करना है वह शिघ्रातिशिघ्र कैसे प्राप्त किया जाय? उसके लिये जो उपकरण है उनको कैसे लागु किया जाय? इनकी दिशा, श्रेयके प्रति होनी चाहिये. परिवर्तनशीलता सिद्धांतोसे विरुद्धकी दिशामें नहीं होनी चाहिये.

कोंगीका नैतिक अधःपतनः

नहेरुकालः

नीतिमत्ता वैसे तो सापेक्ष होती है. नहेरुका नाम पक्षके प्रमुखके पद पर किसी भी  प्रांतीय समितिने प्रस्तूत नहीं किया था. किन्तु नहेरु यदि प्रमुखपद न मिले तो वे कोंग्रेसका विभाजन तक करनेके लिये तयार हो गये थे. ऐसा महात्मा गांधीका मानना था. इस कारणसे महात्मा गांधीने सरदार पटेलसे स्वतंत्रता मिलने तक,  कोंग्रेस तूटे नहीं इसका वचन ले लिया था क्योंकि पाकिस्तान बने तो बने किन्तु शेष भारत अखंड रहे वह अत्यंत आवश्यकता.

जनतंत्रमें जनसमूह द्वारा स्थापित पक्ष सर्वोपरि होता है क्यों कि वह एक विचारको प्रस्तूत करता है. जनतंत्रकी केन्द्रीय और विभागीय समितियाँ  पक्षके सदस्योंकी ईच्छाको प्रतिबिंबित करती है. जब नहेरुको ज्ञात हुआ कि किसीने उनके नामका प्रस्ताव नहीं रक्खा है तो उनका नैतिक धर्म था कि वे अपना नाम वापस करें. किन्तु नहेरुने ऐसा नहीं किया. वे अन्यमनस्क चहेरा बनाके गांधीजीके कमरेसे निकल गये.

यह नहेरुका नैतिकताका प्रथम स्खलन या जनतंत्रके मूल्य पर प्रहार  था. तत्‌ पश्चात तो हमे अनेक उदाहरण देखने को मिले. जो नहेरु हमेशा जनतंत्रकी दुहाई दिया करते थे उन्होंने अपने मित्र शेख अब्दुल्लाको खुश रखने के लिये अलोकतांत्रिक प्रणालीसे अनुच्छेद ३७० और ३५ए को संविधानमें सामेल किया था और इससे जो जम्मु-कश्मिर, वैसे तो भारत जैसे जनतांत्रिक राष्ट्रका हिस्सा था, किन्तु वह स्वयं  अजनतांत्रिक बन गया.

आगे देखो. १९५४में जब पाकिस्तानके राष्ट्रपति  इस्कंदर मिर्ज़ाने, भारत और पाकिस्तानका फेडरल युनीयन बनानेका प्रस्ताव रक्खा तो नहेरुने उस प्रस्तावको बिना चर्चा किये, तूच्छता पूर्वक नकार दिया. उन्होंने कहा कि, भारत तो एक जनतांत्रिक देश है. एक जनतांत्रिक देशका, एक सरमुखत्यारीवाले देशके साथ युनीयन नहीं बन सकता. और उसी नहेरुने अनुच्छेद ३७० और अनुच्छेद ३५ए जैसा प्रावधान संविधानमें असंविधानिक तरिकेसे घुसाए दिये थे.

जन तंत्र चलानेमें क्षति होना संभव है. लेकिन यदि कोई आपको सचेत करे और फिर भी उसको आप न माने तो उस क्षतिको क्षति नहीं माना जाता, किन्तु उसको अपराध माना जाता है.

नहेरुने तीबट पर चीनका प्रभूत्त्व माना वह एक अपराध था. वैसे तो नहेरुका यह आचार और अपराध विवादास्पद नहीं है क्योंकि उसके लिखित प्रमाण है.

चीनकी सेना भारतीय सीमामें अतिक्रमण किया करें और संसदमें नहेरु उसको नकारते रहे यह भी एक अपराध था. इतना ही नहीं सीमाकी सुरक्षाको सातत्यतासे अवहेलना करे, वह भी एक अपराध है. नहेरुके ऐसे तो कई अपराध है.

इन्दिरा कालः

इन्दिरा गांधीने तो प्रत्येक क्षेत्रमें अपराध ही अपराध किये है. इन अपराधों पर तो महाभारतसे भी बडी पुस्तकें लिखी जा सकती है. १९७१में भारतीयसेनाने जो अभूतपूर्व  विजय पायी थी उसको इन्दिराने सिमला करार के अंतर्गत घोर पराजयमें परिवर्तित कर दिया था. वह एक घोर अपराध था. इतना ही नहीं लेकिन जो पी.ओ.के. की भूमि, सेनाने  प्राप्त की थी उसको भी   पाकिस्तानको वापस कर दी थी, यह भारतीय संविधानके विरुद्ध था. इन्दिरा गांधीने १९७१में जब तक पाकिस्तानने भारतकी हवाई-पट्टीयों पर आक्रमण नहीं किया तब तक आक्रमणका कोई आदेश नहीं दिया था. भारतीय सेनाके पास, पाकिस्तानके उपर प्रत्याघाती आक्रमण करनेके अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं था. यह बात कई स्वयंप्रमाणित विद्वान लोग समज़ नहीं पाते है.

राजिव युगः

राजिव गांधीका पीएम-पदको स्विकारना ही उसका नैतिक अधःपतन था. उसकी अनैतिकताका एक और प्रमाण उसके शासनकालमें सिद्ध हो गया. बोफोर्स घोटालेमें स्वीस-शासन शिघ्रकार्यवाही न करें ऐसी चीठ्ठी लेके सुरक्षा मंत्रीको स्वीट्झर्लेन्ड भेजा था. यही उसकी अनीतिमत्ताको सिद्ध करती है.

सोनिया-राहुल युगः

इसके उपर चर्चाकी कोई आवश्यकता ही नहीं है. ये लोग अपने साथीयोंके साथ जमानत पर है. जिस पक्षके शिर्ष नेतागण ही जमानत पर हो उसका क्या कहेना?

कोंगीका पागलपनः

पागलपन के लक्षण क्या है?

प्रथम हमे समज़ना आवश्यक है कि पागलपन क्या है.

पागलपन को संस्कृतमें उन्माद कहेते है. उन्मादका अर्थ है अप्राकृतिक आचरण.

अप्राकृतिक आचारण. यानी कि छोटी बातको बडी समज़ना और गुस्सा करना, असंदर्भतासे ही शोर मचाना, कपडोंका खयाल न करना, अपनेको ही हानि करना, गुस्सेमें ही रहेना, हर बात पे गुस्सा करना …. ये सब उन्मादके लक्षण है.

कोंगी भी ऐसे ही उम्नादमें मस्त है.

अनुच्छेद ३७० और ३५ए को रद करने की मोदी सरकारकी क्रिया पर भी कोंगीयोंका प्रतिभाव कुछ पागल जैसा ही रहा है.    

यदि कश्मिरमें अशांति हो जाती तो भी कोंगीनेतागण अपना उन्माद दिखाते. कश्मिरमें अशांति नहीं है तो भी वे कश्मिरीयत और जनतंत्र पर कुठराघात है ऐसा बोलते रहेते है. अरे भाई १९४४से कश्मिरमें आये हिन्दुओंको मताधिकार न देना, उनको उनकी जातिके आधार पर पहेचानना और उसीके आधार पर उनकी योग्यताको नकारके उनसे व्यवसायसे वंचित रखना और वह भी तीन तीन पीढी तक ऐसा करना यह कौनसी मानवता है? कोंगी और उसके सहयोगी दल इस बिन्दुपर चूप ही रहेते है.

खूनकी नदियाँ बहेगी

जो नेता लोग कश्मिरमें अनुच्छेद ३७० और ३५ए को हटाने पर खूनकी नदियाँ बहानेकी बातें करते थे और पाकिस्तानसे मिलजानेकी धमकी देते थे, उनको तो सरकार हाउस एरेस्ट करेगी ही. ये कोंगी और उसके सांस्कृतिक सहयोगी लोग जनतंत्रकी बात करने के काबिल ही नहीं है. यही लोग थे जो कश्मिरके हिन्दुओंकी कत्लेआममें परोक्ष और प्रत्यक्ष रुपसे शरिक थे. उनको तो मोदीने कारावास नहीं भेजा, इस बात पर कोंगीयोंको और उनके सहयोगीयोंको मोदीका  शुक्रिया अदा करना चाहिये.

सरदार पटेल वैसे तो नहेरुसे अधिक कदावर नेता थे. उनका स्वातंत्र्यकी लडाईमें और देशको अखंडित बनानेमें अधिक योगदान था. नहेरुने सरदार पटेलके योगदानको महत्त्व दिया नहीं. नहेरुवंशके शासनकालमें नहेरुवीयन फरजंदोंके नाम पर हजारों भूमि-चिन्ह (लेन्डमार्क), योजनाएं, पुरस्कार, संरचनाएं बनाए गयें. लेकिन सरदार पटेल के नाम पर क्या है वह ढूंढने पर भी मिलता नहीं है.

अब मोदी सराकार सरदार पटेलको उनके योगदानका अधिमूल्यन कर रही है तो कोंगी लोग मोदीकी कटू आलोचना कर रहे है. कोंगीयोंको शर्मसे डूब मरना चाहिये.

महात्मा गांधी तो नहेरुके लिये एक मत बटोरनेका उपकरण था. कोंगीयोंके लिये जब मत बटोरनेका परिबल और गांधीवादका परिबल आमने सामने सामने आये तब उन्होंने मत बटोरनेवाले परिबलको ही आलिंगन दिया है. शराब बंदी, जनतंत्रकी सुरक्षा, नीतिमत्ता, राष्ट्रीय अस्मिताकी सुरक्षा, गौवधबंदी … आदिको नकारने वाली या उनको अप्रभावी करनेवाली कोंगी ही रही है.

कोंगी की अपेक्षा नरेन्द्र मोदी की सरकार, गांधी विचार को अमली बनानेमें अधिक कष्ट कर रही है. कोंगीको यह पसंद नहीं.

कोंगी कहेता है

गरीबोंके बेंक खाते खोलनेसे गरीबी नष्ट नहीं होनेवाली है,

संडास बनानेसे लोगोंके पेट नहीं भरता,

स्वच्छता लाने से मूल्यवृद्धि का दर कम नहीं होता,

हेलमेट पहननेसे भी अकस्मात तो होते ही है,

कोंगी सरकारके लिये तो खूलेमें संडास जाना समस्या ही नहीं थी,

कोंगी सरकारके लिये तो एक के बदले दूसरेके हाथमें सरकारी मदद पहूंच जाय वह समस्या ही नहीं थी,

कोंगी सरकारके लिये तो अस्वच्छता समस्या ही नहीं थी,

कोंगीके सरकारके लिये तो कश्मिरी हिन्दुओंका कत्लेआम, हिन्दु औरतों पर अत्याचार, हिन्दुओंका लाखोंकी संख्यामें बेघर होना, कश्मिरी हिन्दुओंको मताधिकार एवं मानव अधिकारसे से वंचित होना समस्या ही नहीं थी, दशकों से भी अधिक कश्मिरी हिन्दु निराश्रित रहे, ये कोंगी और उनके सहयोगी सरकारोंके लिये समस्या ही नहीं थी, अमरनाथ यात्रीयोंपर आतंकी हमला हो जाय यह कोंगी और उसकी सहयोगी सरकारोंके लिये समस्या नहीं थी, उनके हिसाबसे उनके शासनकालमें  तो कश्मिरमें शांति और खुशहाली थी,

आतंक वादमें हजारो लोग मरे, वह कोंगी सरकारोंके लिये समस्या नहीं थी,

करोडों बंग्लादेशी और पाकिस्तानी आतंकवादीयोंकी घुसपैठ, कोंगी सरकारोंके लिये समस्या नहीं थी,

कोंगी और उनके सहयोगीयोंके लिये भारतमें विभाजनवादी शक्तियां बलवत्तर बनें यही एजन्डा है. बीजेपीको कोमवादी कैसे घोषित करें, इस पर कोंगी अपना सर फोड रही है?

मध्य प्रदेशकी कोंगी सरकारने वीर सावरकरके नाममेंसे वीर हटा दिया.

वीर सावरकर आर एस एस वादी था. इस लिये वह गांधीजीकी हत्याके लिये जीम्मेवार था. वैसे तो वीर सावरकर उस आरोपसे बरी हो गये थे. और गोडसे तो आरएसएसका सदस्य भी नहीं था. न तो आर.एस.एस. का गांधीजीको मारनेका कोई एजन्डा था, न तो हिन्दुमहासभाका ऐसा कोई एजन्डा था. अंग्रेज सरकारने उसको कालापानीकी सज़ा दी थी. वीर सावरकरने कभी माफी नहीं मांगी. सावरकरने तो एक आवेदन पत्र दिया था कि वह माफी मांग सकता है यदि अंग्रेज सरकार अन्य स्वातंत्र्य सैनानीयोंको छोड दें और केवल अपने को ही कैदमें रक्खे. कालापानीकी सजा एक बेसुमार पीडादायक मौतके समान थी. कोंगीयोंको ऐसी मौत मिलना आवश्यक है.

वीर सावरकर महात्मा गांधीका हत्यारा है क्यों कि उसका आर.एस.एस.से संबंध था. या तो हिन्दुमहासभासे संबंध था. यदि यही कारण है तो कोंगी आतंकवादी है, क्यों कि गुजरातके दंगोंका मास्टर माईन्ड कोंग्रेससे संलग्न था. कोंगी नीतिमताहीन है क्यों कि उसके कई नेता जमानत पर है, कोगीके तो प्रत्येक नेता कहीं न कहीं दुराचारमे लिप्त है. क्या कोंगीको कालापानीकी सज़ा नहीं देना चाहिये. चाहे केस कभी भी चला लो.

आज अंग्रेजोंका न्यायालय भारत सरकारसे पूछता है कि यदि युके, ९००० करोड रुपयेका गफला करनेवाला माल्याका प्रत्यार्पण करें तो उसको कारावासमें कैसी सुविधाएं होगी? कोंगीयोंने दंभ की शिक्षा अंग्रेजोंसे ली है.

दो कौडीके राजिव गांधी और तीन कौडीकी इन्दिरा नहेरु-गांधीको, बे-जिज़क भारत रत्न देनेवाली कोंगीको वीर सावरकरको भारत रत्नका पुरष्कार मिले उसका विरोध है. यह भी एक विधिकी वक्रता है कि हमारे एक वार्धक्यसे पीडित मूर्धन्य का कोंगीको अनुमोदन है. यह एक दुर्भाग्य है.

वीर सावरकर एक श्रेष्ठ स्वातंत्र्य सेनानी थे. उनका त्याग और उनकी पीडा अकल्पनीय है. सावरकरकी महानताकी उपेक्षा सीयासती कारणोंके फर्जी आधार पर नहीं की जा सकती.

कोंगीके कई नेतागण पर न्यायालयमें मामला दर्ज है. उनको कठोरसे कठोर यानी कि, कालापानीकी १५ सालकी सज़ा करो फिर उनको पता चलेगा कि वे स्वयं कितने डरपोक है.

कोंगी लोग कितने निम्न कोटीके है कि वे सावरकरका त्याग और पीडा समज़ना ही नहीं चाहते. ऐसी उनकी मानसिकता दंडनीय बननी चाहिये है.  

हमारे उक्त मूर्धन्यने उसमें जातिवादी (वर्णवादी तथा कथित समीकरणोंका सियासती आधार लिया है)

“महाराष्ट्रमें सभी ब्राह्मण गांधीजी विरोधी थे और सभी मराठा (क्षत्रीय) कोंग्रेसी थे. पेश्वा ब्राह्मण थे और पेश्वाओंने मराठाओंसे शासन ले लिया था इसलिये मराठा, ब्राह्मणोंके विरोधी थे. अतः मराठी ब्राह्मण गांधीके भी विरोधी थे. विनोबा भावे और गोखले अपवाद थे. १९६०के बाद कोई भी ब्राह्मण महाराष्ट्रमें मुख्य मंत्री नहीं बन सका. साध्यम्‌ ईति सिद्धम्‌” मूर्धन्य उवाच

यदि यह सत्य है तो १९४७-१९६०के दशकमें ब्राह्मण मुख्य मंत्री कैसे बन पाये. वास्तवमें घाव तो उस समय ताज़ा था?

१८५७के संग्राममें हिन्दु और मुस्लिम दोनों सहयोग सहकारसे संमिलित हो कर बिना कटूता रखके अंग्रेजोंके सामने लड सकते थे. उसी प्रकार ब्राह्मण क्षत्रीयोंके बीच भी कडवाहट तो रह नहीं सकती. औरंगझेब के अनेक अत्याचार होते हुए भी शिवाजीकी सेनामें मुस्लिम सेनानी हो सकते थे तो मराठा और ब्राह्मणमें संघर्ष इतना जलद तो हो नहीं सकता.

“लेकिन हम वीर सावरकरको नीचा दिखाना चाह्ते है इसलिये हम इस ब्राह्मण क्षत्रीयके भेदको उजागर करना चाहते है”

स्वातंत्र्य सेनानीयोंके रास्ते भीन्न हो सकते थे. लेकिन कोंग्रेस और हिंसावादी सेनानीयोंमें एक अलिखित सहमति थी कि एक दुसरेके मार्गमें अवरोध उत्पन्न नहीं करना और कटूता नहीं रखना. यह बात उस समयके नेताओंको सुविदित थी. गांधीजी, भगतसिंघ, सावरकर, सुभाष, हेगडेवार, स्यामाप्रसाद मुखर्जी … आदि सबको अन्योन्य अत्यंत आदर था. अरे भाई हमारे अहमदाबादके महान गांधीवादी कृष्णवदन जोषी स्वयं भूगर्भवादी थे. हिंसा-अहिंसाके बीचमें कोई सुक्ष्म विभाजन रेखा नहीं थी. सारी जनता अपना योगदान देनेको उत्सुक थी.

हाँ जी, साम्यवादीयोंका कोई ठीकाना नहीं था. ये साम्यवादी लोग रुसके समर्थक रहे और अंग्रेजके विरोधी रहे. जैसे ही हीटलरने रुस पर हमला किया तो वे अंग्रेज  सरकारके समर्थक बन गये. यही तो साम्यवादीयोंकी पहेचान है. और यही पहेचान कोंगीयोंकी भी है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – ३

पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदीऔर …. –

पाकिस्तान के आतंकवादीयोंने स्थानिक लोगोंकी मददसे भारतकी सेना पर बोम्ब ब्लास्ट किया इससे अस्थायी रुपसे बीजेपी/मोदी विरोधीयोंने हिन्दुओंकी एवं बीजेपी समर्थकोंकी असहिष्णुताके बारेमें बोलना बंद किया है.

पहेले जिन शब्दोंके उच्चारणोंका ये अफज़ल प्रेमी गेंग अपना हक्क और अपने इस हक्कको  लोकशाहीका एक अभिन्न अंग मानते है, और उसकी दुहाई देते थे उन्ही लोगोंने उनके पुनः उच्चारण पर एक अल्पविराम लगा दिया है. वे लोग दिखाना यह चाहते है कि हम भी सिपाईयोंके कुटुंबीयोंके दर्दमें सामील है. क्या यह इन अफज़लप्रेमी गेंगका विचार परिवर्तन है?

जिन शब्दोंको पहेले अभिव्यक्तिकी आज़ादी माना जाता था वे शब्द कौनसे थे?

पाकिस्तान जिंदाबाद,

भारत तेरे टूकडे होंगे

कश्मिरको चाहिये आज़ादी,

छीनके लेंगे आज़ादी,

बंदूकसे लेंगे आज़ादी,

अफज़ल हम शर्मिंदा है, कि तेरे कातिल जिन्दा है,

कितने अफज़ल मारोगे… घर घरसे अफज़ल निकलेगा,

आज इन्ही लोगोंमें इन सबका पुनः उच्चारण करनेकी शौर्य नहीं है.

ऐसा क्यों है?

पाकिस्तानके, आई.एस.आई.के, पाकिस्तानी सेनाके और आतंकवादीयोंके चरित्रमें तो कोई बदलाव आया नहीं है. फिर भी ये लोग अपने विभाजनवादी उच्चारणोंकी पुनरुक्ति क्यों नहीं करते? पहेले तो वे कहेते थे कि उच्चारणोसे गद्दारी सिद्ध नहीं होती है. ये नारे तो जनतंत्रका अभिन्न हिस्सा है. मोदी/बीजेपी वाले तो संविधानका अनादर करते है और यह मोदी/बीजेपी जैसे जनतंत्रके विध्वंशक है और वे हमारी अभिव्यक्तिकी आज़ादी  छीन रहे है.

यदि कोई समज़े कि ये स्वयंप्रमाणित स्वतंत्रताके स्वयंप्रमाणित सेनानीयोंको मोदी/बीजेपीकी विचारधारा समज़में आ गयी है तो आप अनभिज्ञतामें न रहे. पाकिस्तान प्रेरित ये आतंकवादी आक्रमणसे जो पाकिस्तान विरोधी वातावरण बना है इस लिये इन विभाजनवादी गेंगोंमें फिलहाल हिमत नहीं कि वे पाकिस्तान का समर्थन करे. उन्होंने एक अल्प समयका विराम लिया है. अब तो यदि कोई इस हमलेको “पाकिस्तानकी भारतके उपर सर्जिकल स्ट्राईक कहे … इतना ही नहीं पाकिस्तान जिन्दाबाद कहे और भारत सरकार उसके उपर कारवाई करें तो भी ये लोग अभिव्यक्तिकी आज़ादी के समर्थनमें चूँ तक नहीं बोलेंगे. हाँ जी अब आप पाकिस्तान जिंदाबाद तक नहीं बोल सकते.

विभाजनवादी गेंगोंका मौन रहना और सरकारके उच्चारणोंका और कदमोंके विरुद्ध न बोलना और मौन द्वारा समर्थन प्रदर्शित करना ये सब हकिकत क्या है?

हम जानते ही है कि पुरस्कार वापसी, हिन्दुओंकी अन्य धर्मोंके प्रति असहिष्णुता, बीजेपी सरकार द्वारा जनतंत्रका हनन, नारे लगानेसे गद्दारी सिद्ध नहीं होती… आदि वाक्‌चातुर्य दिखाने वालोंका समर्थन, वंशवादी कोंगी नेताओंने, टीवी चेनलओंने, मूर्धन्योंने विवेचकोंने, विश्लेषकोंने, कोंगीके सांस्कृतिक सहयोगीओंने उनके पास चलकर जाके किया था.

क्या ये सब तो कोंगीयोंकी एक बडी गेम का हिस्सा था?

कोंगीयोंकी और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंकी गेम क्या है?

हम जानते हैं कि जूठ बोलना कोंगीयोंकी पूरानी आदत है. चाहे वह नहेरु हो, इन्दिरा घांडी हो, राजिव घांडी हो, सोनिया घांडी हो या रा.घा. (रा.गा.) हो. अमान्य तरिकोंसे पैसे कमाना यह भी इन्दिराने आत्मसात्‌ की हुई आदत है. इन सबसे सत्ता प्रप्त करना और सत्ता प्रप्तिके बाद भी यह सब चालु रखना यह उनका संस्कार है.

अब हुआ क्या, कि कौभान्डोंके कारण कोंगीकी सत्ता चली गई. और नरेन्द्र मोदीने अवैध तरिकोंसे प्राप्त संपत्तिके लिये जाँच बैठा दी. वैसे तो कई किस्से पहेलेसे ही न्यायालयमें चलते भी थे. इन जाँचोंमेंसे निष्कलंक बाहर आना अब तो मुश्किल हो गया है, क्यों कि अब तो उनके पास सत्ता रही नहीं.

तो अब क्या किया जाय?

सत्ताप्राप्त करना अनिवार्य है. हमारा मोटो सत्ताप्राप्त करना. क्यों कि हमे बचना है. और बचनेके बाद हमारी दुकान चालु करनी है.

सबने मिलकर एक महागठबंधन बनाया. क्योंकि अवैध संपत्ति प्राप्ति करनेमें तो उनके सांस्कृतिक साथी पक्ष और कई मीडीया कर्मी भी थे. अब इस मोदी/बीजेपी हटाओके “गेम प्लान”में सब संमिलित है.

चूनाव उपयुक्त माहोलसे (वातावरण बनानेसे) जिता जाता है. मोदी/बीजेपीके विरुद्ध माहोल बनाओ तो २०१९का चूनाव जिता जा सकता है.

जूठ तो हम बोलते ही रहे है, हमारा रा.घा. (रा.गा.) तो इतना जूठ बोलता है कि वह सुज्ञ जनोंमे अविश्वसनीय हो गया है. लेकिन हमें सुज्ञ जनोंसे तकलिफ नहीं है. उनमेंसे तो कई बिकाउ है और हमने अनेकोंको खरिद भी लिया है. मीडीया भी बिकाउ है, इस लिये इन दोंनोंकी मिलावटसे हम रा.घा. को महापुरुष सिद्ध कर सकते है. अभी अभी जो मध्यप्रदेश, और राजस्थान और छत्तिसगढ में जित हुई है उसको हम मीडीया मूर्धन्योंकी सहायतासे रा.घा.के नाम करवा सकते है. रा.घा.के लगातार किये जा रहे जी.एस.टी., विमुद्रीकरण और राफेल प्रहारोंको हम अपने मीडीया मूर्धन्यों के द्वारा जिन्दा रखेंगे. प्रियंका को भी हम समर भूमिमें उतारेंगे और उसके सौदर्यका और अदाओंका सहारा लेके उसको महामाया बनाएंगे.

कोंगीके सीमा पारके मित्रोंका क्या प्लान है?

मणीशंकर अय्यर ने पाकिस्तान जाके कहा था कि, “मोदी को तो आपको हटाना पडेगा” जब तक आप यह नहीं करोगे तब तक दोनों देशोंके पारस्परिक संबंध और वार्ता शक्य नहीं बनेगी.

इसका सूचितार्थ क्या है?

“हे पाकिस्तानी जनगण, आपके पास मूर्धन्य है, आपके पास आइ.एस.आइ. है, आपके पास सेना है, आपके पास कई आतंकवादी संगठन है. याद करो… आपने उन्नीसौ नब्बे के दशक में कश्मिरके हमारे सहयोगी पक्षके मंत्रीकी पूत्री तकका हरण कर सकनेका सामर्थ्य दिखाया था. तो हमने आपके कई आतंकवादी महानेताओंको रिहा किया था. हमारे शासनके बाद की सरकारने भी कुछ आतंकवादी नेताओंको रिहा किया था. आपके पास हरकत उल जिहाद, लश्करे तोइबा, जैश ए मोहमद, हिजबुल मुज़ाही दीन, हरकत उल मुज़ाहीन, अल बद्र, जे एन्ड के लीबरेशन फ्रन्ट जिसको फुलेफलने हमने ही तो आपको मौका दिया था. आपके समर्थक  

अब्दुल गनी लोन, सैयद अली गीलानी, मिरवाज़ ओमर फारुख, मोहमद अब्बास अन्सारी, यासीन मलिक आदि कई नेताओंको, हमने पालके रक्खा है और हमने उनको जनतंत्रका और संविधानका फर्जी बहाना बनाके श्रेष्ठ सुविधाएं दी है. तो ये सब कब काम आयेंगे? और देखो … आपके खातिर ही हमने तो इज़राएलसे राजद्वारी संबंध नहीं रक्खे थे. आपको तो हम, हर प्रकारकी मदद करते रहे हैं और कश्मिरकी समस्या अमर रहे इस कारणसे हमने आपकी हर बात मान ली है. मुफ्ति मोहमद, फारुख अब्दुल्ला और ओमर अब्दुल्ला आदि तो हमारे भी मित्र है.

“अरे भाई, आपकी सुविधा के लिये आपके लोगोंने जब कश्मिरमें हजारों हिन्दु स्त्रीयों पर बलात्कार किया, ३०००+ हिन्दुओंका कत्ल किया जब ५ लाख हिन्दुओंको कश्मिरसे १९८९-९०मे बेघर किया तो हमारी कानोंमें और हमारे पेईड आदेशोंके प्रभावके कारण हमारी मीडीयाकी कानोंमे जू तक रेंगने नहीं दी थी. क्या ये सब आप भूल जाओगे?

“अरे भाई, ये फारुख और ओमर को तो हमने मुख्य मंत्री भी बना दिया था. और हमने भरपूर कोशिस की थी कि फिरसे ये साले कश्मिरी हिन्दु, कश्मिरमें, फिरसे बस न पाये. ये भी क्या आप भूल गये? हमने आपको मोस्ट फेवर्ड राष्ट्रका दरज्जा दिया है, हमने आपके दाउदको भारतसे भागनेकी सुविधा दी थी. और भारतके बाहर रखकर भी भारतमें अपने संबंधीओ द्वारा अपना कारोबार (हवाला-वाला, तस्करी, हप्ता, बिल्डरोंकी समस्या आदि आदि) चला सके उसके लिये भरपूर सुविधाएं दी है उनको भी क्या आप भूल जाओगे? अरे भाई आपके अर्थतंत्रमें  तो दाउदका गणमान्य प्रभाव है. क्या आप इसको भी भूल जाओगे?

“अरे मेरे अय्यर आका, आपको क्या चाहिये वह बोलो न..!!” पाकिस्तान बोला

मणीशंकर अय्यर बोले; “ देखो, मुज़े तो कुछ नहीं चाहिये. लेकिन आपको पता होगा कि मुज़े भी किसीको जवाब देना है … !!

“हाँ हाँ मुसलमान ख्रीस्ती भाई भाई … यही न !! अरे बंधु, वैसे तो हम मुसलमान, ख्रीस्ती और दलित भाई भाई भाई वैसा प्रचार, आपके यहाँ स्थित हमारे नेताओंसे करवाते है, लेकिन हमसे वह जमता नहीं है, वैसे भी हिन्दुओंको जातिके आधार पर विभाजित करनेका काम तो आप कर ही रहे हो न? जरा और जोर लगाओ तो मुसलमान, ख्रीस्ती दलित, पटेल, जट, यादव सब भाई, भाई, भाई, भाई भाई हो जायेगा ही न?” पाकिस्तान बोला.

“सही कहा आपने” अय्यर आगे बोले; “हमारा काम तो हम कर ही रहे है. हम कुछ दंगे भी करवा रहे है, आपको तो मालुम है कि दंगे करवानेमें तो हमे महारथ हांसिल है, लेकिन यह साला मोदी, बीजेपी शासित राज्योंमें दंगे होने नहीं देता. हम हमारे महागठबंधनवाले राज्योंमें तो दंगे करवाते ही है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है. आप कुछ करो न…? कुछ बडे हमले करवाओ न…? हम आपको, जो भी भूमिगत सहाय चाहिये, वह देगें. हम ऐसे आतंकी हमले मोदी/बीजेपी/आरएसएस/वीएचपी ने करवाये वैसी व्युह रचना करवाएंगे. लेकिन यदि आप बोंम्बे ब्लास्ट जैसा, हमला करवायेंगे तो ठीक नहीं होगा. वह साला कसाब पकडा गया, तो इससे हमारा पुरा प्लान फेल हो गया. वह ब्लास्ट आपके नाम पर चढ गया. इसलिये आप हमेशा आत्मघाती आतंकीयोंको ही भेजें. हमने जैसे मालेगाँव बोम्ब ब्लास्ट, हिन्दुओंने करवाया था, ऐसा प्रचार सालों तक हमने किया था और २००९के चूनावमें हमने जित भी हांसिल कर ली थी. आपका आदमी जो पकडा गया था उसको हमने भगा भी दिया था. क्यों कि हमारी सरकार थी न, जनाब.

“तो अभी आप हमसे क्या चाहते है? “ पाकिस्तानने बोला

“आपके पास दो विकल्प है” कोंगीनेताने आगे बोला “आपके पास कई आतंकवादी संगठन है. आप उनको कहो कि वह मोदीकी गेम कर दें. हमने गत चूनावमें बिहारमें मोदीको मारनेका प्लान किया था. मोदीकी पटनाकी रेली में हमने मोदीकी गेमका प्लान बनाया था. लेकिन साला मोदी बच गया. अब आप ऐसा करो कि यदि मोदीकी गेमका फेल हो जाय तो भी दुसरे विकल्पसे हमें मदद मिलें. आप कुछ बडे आतंकवादी हमले करवा दो, कोई और जगह नही तो तो कश्मिरमें ही सही.

“इससे क्या फायदा” पाकिस्तान बोला.

“देखो बडे हमले से भारतमें बडा आक्रोष पैदा होगा. बदले कि भावना जाग उठेगी. समय ऐसा निश्चित करो कि, मोदीके लिये बदला लेनेका मौका ही न रहे. मोदी न तो युद्ध कर सकेगा न तो सर्जीकल स्ट्राईक कर सकेगा. यदि मोदीने सर्जीकल स्ट्राईक कर भी दी तो वह विफल हो जायेगा,  क्यों कि आप तो सुरक्षाके लिये तयार ही होगे. मोदीके फेल होनेसे हमे बहोत ही फायदा मिल जायेगा. कमसे कम एक मुद्दा तो हमारे पास आ जायेगा कि मोदी १००% फेल है. वैसे तो हम, मोदी हरेक क्षेत्रमें फेल है, ऐसी अफवाहें फैलाते ही रहेतें है. लेकिन इस हमले के बाद मोदीकी जो पराजय होगी, इस फेल्योरको तो मोदी समर्थक भी नकार नहीं सकेंगे. हमारी मीडीया-टीम तो तयार ही है.

“बात तो सोचने लायक है” पाकिस्तान बोला.

“अरे भाईजान अब सोचो मत. जल्दी करो. समय कम बचा है. चूनावकी घोषणाका एक मास ही बचा है. जैसे ही एक बडा ब्लास्ट होगा, हमारे कुछ मीडीया मूर्धन्य दो तीन दिन तो सरकारके समर्थनमें और आपके विरुद्ध निवेदन बाजी करेंगे. धीरे धीरे चर्चाको मोदी की विफलताकी ओर ले जायेंगे.

बडा ब्लास्ट करना है तो पूर्व तयारी रुप काम करना ही है.

जम्मु कश्मिर राज मार्ग पर एक आतंकी/आतंकी समर्थक गाडी ले के निकला. रास्तेमें तीन चेक पोस्ट आये. दो चेक पोस्ट वह तोडके निकल गया. लेकिन जब तीसरा चेकपोस्ट उसने तोडा और भागा तो तीसरे चेकपोस्टवाले सुरक्षा कर्मीने गोली छोडी और वह आदमी अल्लाहका प्यारा हो गया. फिर तो कोंगी गेंग वाले मीडीया मूर्धन्य और फारुख, ओमर और महेबुबा आदि तो अपना आक्रोष प्रदर्शित करनेके लिये तयार ही थे. उन्होंने “एक सीटीझन को मार दिया, एक निर्दोष मानवीकी हत्या की, एक बेकसुरको मार दिया, एक मासुम को मार दिया…” मीडीया मूर्धन्योंने इस घटनाकी भर्त्सना करनेमें पूरा साथ दिया और कोंगी शासनकी कृपासे बने हुए नियमों से उस जवान को कारावासमे भेज दिया.  फिर यह सब चेक पोस्ट हटवा लिया. इसका फायदा पुलवामा में ब्लास्ट करनेमें आतंकीयोंने लिया.

अब कोंगीयोंका क्या चाल है?

कोंगीके सहायक दलोंने दो दिन तक तो मगरके आंशुं बहाये. लेकिन उसके कुछ मीडीया मूर्धन्य और मीडीया मालिक अधीर है. गुजरात समाचारकी बात तो छोडो. उसने तो पहेले ही दिन मोदीका ५६” की छातीपर मुक्का मार दिया. यह अखबार हमारी कोमेंट के लिये योग्य स्तर पर नहीं है. वह तो टोईलेट पेपर है

लेकिन तीसरे दिन डीबीभाईने (“दिव्य भास्कर” अखबारने) मैदानमें आगये. उन्होंने मोदीको   प्रश्न किया “अब तो मुठ्ठी खोलो और बताओ कि बदला कब लोगे?

मतलब की किस प्रकारका बदला कब लोगे वह हमें (“हमें” से मतलब है जनता को) कब कहोगे?

डीबीभाईकी बालीशता या अपरिपक्वता?

“आ बैल मुझे मार”

सरकार अपने प्रतिकारात्मक कदम पहेलेसे दुश्मनको बता दें, वह क्या उचित है? कभी नहीं. यदि कोई बेवकुफ सरकारने ऐसा किया तो वह “आ बैल मुज़े मार” जैसा ही कदम बनेगा. क्या ऐसी आसान समज़ भी इस अखबारमें नहीं है? शायद सामान्य कक्षाकी जनता, इस बातको समज़ नहीं सकती, लेकिन यदि एक विशाल वाचक वर्ग वाला अखबार, मोदीके विरुद्ध माहोल बनाने के लिये ऐसी बेतुकी बाते करे वह अक्षम्य है. वास्तवमें अखबार का एजन्डा, आम कक्षाकी जनताको गुमराह करनेका है. ताकि जनता भी मोदी पर दबाव करे कि मोदी तुम अपना प्रतिकारात्म प्लान खुला करो.

डीबीभाई के मीडीया मूर्धन्य कोलमीस्ट भी डीबीभाई से कम नहीं.

शेखर गुप्ताने तो एक परोक्ष मुक्का मार ही दिया. “क्या मोदी ‘इस कलंक’ के साथ चूनाव लड सकता है.?” मतलब कि शे.गु. के हिसाब से यह ब्लास्ट, “मोदीके लिये कलंक है.” याद करो कोंगी के नेतृत्ववाली सरकारमें तो आये दिन आतंक वादी, देशके भीतरी भागोंमें घुस कर बोम्ब ब्लास्ट किया करते थे तो भी इन महानुभावोने कोंगी उपर लगे वास्तविक कलंकको अनदेखा किया था. और प्रमाणभान रक्खे बिना, बीजेपी के विरुद्ध प्रचारको कायम रक्खा था. कोंगी अनगीनत कौभान्डोसे आवरित होने पर भी कोंगी के नेतृत्व वाली सरकारको जितानेमें भरपुर सहयोग दिया था. आज मोदीने आतंकवाद को काश्मिरके कुछ इलाकों तक सीमित कर दिया है और जो हमला हुआ उसके लिये तो, महेबुबा मुफ्ति, ओमर अब्दुल्ला, फारुख और कोंगीके नेतागण उत्तरदेय है. उनके उपर ही कार्यवाही करना चाहिये. इस हकिकतका तो, शे.गु. जिक्र तक नहीं करता है. उनका दिमाग तो जनताको उलज़नमें डालनेका है.

ममताने तो अभी से बोल ही दिया कि बिना सबुत पाकिस्तान स्थित आतंकवादी नेताओं पर कार्यवाही करनेको कहेना सही नहीं है. ममता का माइन्ड-सेट कैस है इस बातको आपको देखना चाहिये. कोंगीके कार्यकालमें और उरी एटेकमें सबुत दिये तो उसपर कार्यवाही क्यों नहीं की? इस तथ्यका ममता जिक्र नहीं करेगी. क्यों कि वह चाहती है कि अधिकतर मुसलमान और नेता आतंकवादी हमलेसे खुश है और उनको मुज़े नाराज करना नही चाहिये. केज्रीवाल और ममता एक ही भाषा बोलते है क्यों कि मुसलमान उनकी वोट-बेंक है.

सुज्ञ मुसलमानोंको ऐसे कोमवादी पक्षोंको वोटदेना नहीं चाहिये.

कोंगी और उसके सांस्कृतिक अहयोगी थोडे ही दिनोंमें “पुलवामा” एपीसोड के बीजेपी पर आक्रमण करने लगेंगे. क्यों कि सब उनके आयोजनके हिसाबसे आगे बढ रहा है.

यदि पाकिस्तान मोदीको हटाने पर तुला हुआ है. तो “पाकिस्तानको एक मोदी चाहिये” उसका मतलब क्या?

वास्तवमें पाकिस्तानकी जनता उनकी भ्रष्ट सियासतसे, सेनासे और आतंकवादीयोंसे तंग आ गई है. पाकिस्तानकी जनताका स्वप्न है उन्हे मोदी जैसा इमानदार, त्यागी, ज्ञानी, काम करनेवाला और होशियार प्रधान मंत्री मिले.

और भारतकी जनताको स्वप्नमें भी खयाल नहीं था कि उसको इमानदार, त्यागी, ज्ञानी, काम करनेवाला और होशियार प्रधान मंत्री मिल सकता है. वास्तवमें ऐसा प्रधान मंत्री भारतकी जनता को मिला, तो भारतके तथा कथित मीडीया मूर्धन्य, भारतकी जनता कैसे मोदी-मूक्त बने उसके बारेमें कारवाईयां कर रही है. यह भी एक विधिकी वक्रता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और ….

नरेन्द्र मोदीकी कार्यशैलीके बारेमें अफवाहोंका बाज़ार अत्याधिक गरम है. क्यों कि  अब मोदी विरोधियोंके लिये जूठ बोलना, अफवाहें फैलाना, बातका बतंगड करना और कुछ भी विवादास्पद घटना होती है तो मोदीका नाम उसमें डालना, बस यही बचा है.

लेकिन, ऐसा होते हुए भी …

हाँ साहिब, ऐसा होते हुए भी … पाकिस्तानके (१०० प्रतिशत शुद्ध) बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. बोलो. पाकिस्तान जो मोदीके बारेमें जानता है वह हमारे स्वयं प्रमाणित बुद्धिजीवी नहीं जानते.

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पाकिस्तानके १००% शुद्ध बुद्धि वाले हसन निस्सार साहिबने अपनी इच्छा प्रगट की है कि पाकिस्तानको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी. हमारे १०० प्रतिशत शुद्ध बुद्धिजीवी “मोदी चाहिये” इस बात बोलनेसे हिचकिचाते है.

बुद्धिजीवी

हमारे वंशवादी पक्षोंको ही नहीं किन्तु अधिकतर मूर्धन्यों, विश्लेषकों, कोलमीस्टोंको, चेनलोंको तो चाहिये अफज़ल गुरु. एक नहीं लेकिन अनेक. अनेक नहीं असंख्य. क्यों कि इनको तो भारतके हर घरसे चाहिये अफज़ल गुरु.

हाँजी, यह बात बिलकुल सही है. जब जे.एन.यु. के कुछ तथा कथित छात्रोंने (जिनका नेता २८ सालका होनेके बाद भी भारतके करदाताओंके पैसोंसे पलता है तो इसके छात्रत्व पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है ही)  भारतके टूकडे करनेका, हर एक घरसे एक अफज़ल पैदा करनेका,  भारतकी बर्बादीके नारे लगाते थे तब उनके समर्थनमें केज्री, रा.गा., दीग्गी, सिब्बल, चिदु, ममता, माया, अखिलेश, अनेकानेक कोलमीस्ट, टीवी चेनलके एंकर और अन्य बुद्धिजीवी उतर आये थे.  तो यह बात बिलकुल साफ हो जाती है कि उनकी मानसिकता अफज़ल के पक्ष में है या तो उनका स्वार्थ पूर्ण करनेमें यदि अफज़ल गुरुका नाम समर्थक बनता है तो इसमें उनको शर्म नहीं.

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जो लोग यु-ट्युब देखते हैं, उन्होने ने पाकिस्तानके हसन निस्सार को अवश्य सूना होगा. जिनलोंगोंने उनको नहीं सूना होगा वे आज “दिव्य भास्कर”में गुणवंतभाई शाहका लेख पढकर अवश्य हसन निस्सार को युट्युब सूनेंगे.

हमारा दुश्मन नंबर वन, यानी कि पाकिस्तान. वैसे ही पाकिस्तानका दुश्मन नंबर वन यानीकी भारत. तो पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको भी उनके लिये चाहिये नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. और देखो हमारे तथा कथित बुद्धिजीवी हमारे समाचार माध्यमोंमें विवाद खडा करते है कि नरेन्द्र मोदी आपखुद है, नरेन्द्र मोदी कोमवादी है, नरेन्द्र मोदी जूठ बोलता है, नरेन्द्र मोदीने कुछ किया नहीं ….

पाकिस्तानको जो दिखाई देता है वह इन कृतघ्न को दिखाई देता नहीं.

अब हम देखेंगे ममताका नाटक और उस पर समाचार माध्यमोंका यानी कि कोलमीस्ट्स, मूर्धन्य, विश्लेषक, एंकर, आदि महानुभावोंला प्रतिभाव.

घटनासे समस्या और समस्याकी घटना

ममता स्वयंको क्या समज़ती है?

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उनका खेल देखो कि वह किस हद तक जूठ बोल सकती है. पूरा कोंगी कल्चरको उसने आत्मसात्‍ कर लिया है.

यह वही ममता है. जिस जयप्रकाश नारायणने, भ्रष्टाचारके विरुद्ध इन्दिरा गांधीके सामने, आंदोलन छेडा था उस जयप्रकाश नारायणकी जीपके हुड पर यह ममता नृत्य करती थी. एक स्त्रीके नाते वह लाईम लाईटमें आ गयी. आज वही ममता कोंगीयोंका समर्थन ले रही है जब कि कोंगीके संस्कारमें कोई फर्क नहीं पडा है.

ऐसा कैसे हो गया? क्योंकि ममताने जूठ बोलना ही नहीं निरपेक्ष जूठ बोलना सीख लिया है. सिर्फ जूठ बोलना ही लगाना भी शिख लिया है. निराधार आरोप लगाना ही नहीं जो संविधान की प्रर्कियाओंका अनादर करना भी सीख लिया है. “ चोर कोटवालको दंडे”. अपनेको बचाने कि प्रक्रियामें यह ममता, मोदी पर सविधानका अनादर करनेका आरोप लगा रही है.

ऐसा होना स्वाभाविक था.

गुजरातीभाषामें एक मूँहावरा है कि यदि गाय गधोंके साथ रहे तो वह भोंकेगी तो नहीं, लेकिन लात मारना अवश्य शिख जायेगी. लेकिन यहां पर तो गैया लात मारना और भोंकना दोनों शिख गयी.

ममता गेंगका ओर्गेनाईझ्ड क्राईमका विवरणः

ममताके राजमें दो चीट-फंडके घोटाले हुए. कोंगीने अपने शासनके दरम्यान उसको सामने लाया. ममताने दिखावेके लिये जाँच बैठायी. कोंगी यह बात सर्वोच्च अदालतमें ले गयी. सर्वोच्च अदालतने आदेश दिया कि सीबीआई से जाँच हो. सीबीआईने जाँच शुरु की. जांचमें ऐसा पाया कि टीएमसी विधान सभाके सदस्य, मंत्री, एम. पी. और खूद पूलिसके उच्च अफसरोंकी घोटालेके और जाँचमें मीली भगत है. सीबीआईने पूलिससे उनकी जाँचके कागजात भी मांगे थे जिनमें कुछ काकजात,  पूलिसने गूम कर दिये. इस मामलेमें और अन्य कारणोंसे भी सीबीआई ने कलकत्ताके पूलिस आयुक्तकी पूछताछके लिये नोटीस भी भेजी और समय भी मांगा. पूलिस आयुक्त भी आरोपोंकी संशय-सूचिमें थे.

गुमशुदा पूलिस आयुक्तः

आश्चर्यकी बात तो यह है कि पूलिस आयुक्त खूद अदृष्य हो गया. सीबीआईको पुलिस आयुक्तको “गुमशुदा” घोषित करना पडा. तब तक ममताके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. हार कर सीबीआई, छूट्टीके दिन,  पूलिस आयुक्त के घर गई. तो पुलिस आयुक्तने सीबीआई के अफसरोंको गिरफ्तार कर दिया और वह भी बिना वॉरन्ट गिरफ्तार किया और उनको पूलिस स्टेशन ले गये. किस गुनाहके आधार पर सी.बी.आई.के अफसरोंको गिरफ्तार किया उसका ममताके के पास और उसकी पूलिसके पास उत्तर नही है. यदि गिरफ्तार किया है तो गुनाह का अस्तित्व तो होना ही चाहिये. एफ.आई.आर. भी फाईल करना चाहिये.

यह नाटकबाजी ममताकी पूलिसने की. और जब सभी टीवी चेनलोंमे ये पूलिसका नाटक चलने लगा तो ममताने भी अपना नाटक शुरु किया. वह मेट्रो पर धरने पर बैठ गयी. उसके साथ उसने अपनी गेंगको भी बुला लिया. सब धरने पर बैठ गये. पूलिस आयुक्त भी क्यों पीछे रहे? यह चीट फंड तो “ओर्गेनाईझ्ड क्राईम था”. तो ममताआकाको तो मदद करना ही पडेगा. तो वह पूलिस आयुक्त भी ममताके साथ उसकी बगलमें ही धरने पर बैठ किया.

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धरना काहेका है भाई?

ममता कौनसे संविधान प्रबोधित प्रावधान की रक्षाके लिये बैठी है?

ममता किसके सामने धरने पर बैठी है?

पूलिस कमिश्नर जो कायदेका रक्षक है वह  कैसे धरने पर बैठा है?

पूलिस आयुक्त ड्युटी पर है या नहीं?

कुछ टीवी चैनलवाले कहेते है कि वह सीवील-ड्रेसमें है, इसलिये ड्युटी पर नहीं?

अरे भाई, वह वर्दीमें नहीं है तो क्या वह छूट्टी पर है?

इन चैनलवालोंको यह भी पता नहीं कि वर्दीमें नहीं है इसका मतलब यह नहीं कि वह ड्युटी पर नहीं है. पूलिओस आयुक्त कोई सामान्य “नियत समयकी ड्युटी” वाला सीपाई नहीं है कि उसके लिये, यदि वह वर्दी न हो तो ड्युटी पर नहीं है ऐसा निस्कर्ष निकाला जाय.

सभी राजपत्रित अफसर (गेझेटेड अफसर) हमेशा २४/७ ड्युटी पर ही होते है ऐसे नियमसे वे बद्ध है. यदि पूलिस आयुक्त केज्युअल लीव पर है तो भी उसको ड्युटी पर ही माना जाता है. यदि वह अर्न्ड लीव (earned leave) पर है तभी ही उनको ड्युटी पर नहीं है ऐसा माना जाता है. लेकिन ऐसा कोई समाचार ही नहीं है, और किसी भी टीएमसीके नेतामें हिमत नहीं है कि वह इस बातका खुलासा करें.

ममता ने एक बडा मोर्चा खोल दिया है. सी.बी.आई. के सामने पूलिस. वैसे तो सर्वोच्च अदालतके आदेश पर ही सी.बी.आई. काम कर रही है तो भी.

इससे ममताके पूलिस अफसरों पर केस बनता है, ममता पर केस बनाता है चाहे ममता कितनी ही फीलसुफी (तत्त्व ज्ञानकी) बातें क्यूँ न कर ले.

कुछ लोग समज़ते है कि प्र्यंका (वाईदरा) खूबसुरत है इसलिये उसकी प्रसंशा होती है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. प्रशंसाके लिये तो बहाना चाहिये. हम यह बात भी समज़ लेंगे.

अब सर्वोच्च न्यायालयमें मामला पहूँचा है.

लेकिन सर्वोच्च अदालत क्या है?

सर्वोच्च अदालतके न्याय क्या अनिर्वचनीय है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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