Posts Tagged ‘हिन्दु’
जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अमित शाह, आतंकवाद, आरजेडी, आर्षदृष्टा, इन्दिरा, एवोर्ड वापसी, कत्लेआम, कश्मिर, कुशल, खालिस्तान, गठबंधन, जंगल राज, जय प्रकाश नारायण, जवान, जेडीयु, ठगबंधन, दाद्री, नरेन्द्र मोदी, नहेरु, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरुवीयन कोंग्रेसका साथी पक्ष, नींभर, नीतिवान, नीतीश, परस्त, परिणाम, प्रक्रिया, प्राथमिकता भारतका हित, बहुमत, बिहार चूनाव, बीजेपी, भारतीय संविधान, भीन्दरानवाले, महानुभाव, लालु, वंशवादी, शहीदी, शिख, श्रेय, संवेदनहीन, सत्ता, सत्यका आधार, सियासत, स्वकेन्दी, हिन्दु, हिन्दुओंको चेतावनी on November 11, 2015| 5 Comments »
जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1
क्या यह सत्य और श्रेयकी जित है?
नहीं. यह सत्यकी जित नहीं है.
सत्य और श्रेय है वह जनताके बहुमतसे सिद्ध नहीं होता है.
हम जिन चूनावी प्रक्रियाओंके आधार पर जनताका अभिप्राय प्राप्त कर रहे है वह हमेशा सत्य को पुरस्कृत नहीं करता.
बहुमत, सत्यका आधार नहीं बन सकता. बिहारकी जनताने जिस गठबंधनको जित दिलाई, इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि सत्य, उस गठबंधनके पक्षमें था जो जिता था.
सत्य किसके पक्षमें था?
सत्य बीजेपीके पक्षमें था.
सत्य किसको कहेते हैं?
यहां पर सत्यका अर्थ है,
(१) ऐसा कोनसा पक्ष है कि जिसके पास भारतकी समस्याओंकी अधिक जानकारी है?
(२) ऐसा कौनसा पक्ष है जो इस समस्याओंका समाधान सुचारु रुपसे कर सकता है?
(३) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास आर्षदृष्टि है?
(४) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचि है और उसके उपर प्रतिबद्ध है?
(५) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचिकी प्रणाली भी सुनिश्चित है?
(५) ऐस कौनसा पक्ष है जो अधिक नीतिवान है?
(६) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास व्यापक संगठन है?
(७) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके लिये “प्राथमिकता भारतका हित” है?
श्रेय पक्ष बीजेपी ही है
ऐसा पक्ष केवल और केवल बीजेपी ही है जिसके नेता नरेन्द्र मोदी है. इसके उपर यदि किसीको संदेह हो तो इसकी चर्चा हो सकती है. इससे यदि कोई श्रेयतर नेता है तो बताओ.
नीतिओंकी स्पष्टता, आर्षदृष्टि और नीतिमत्ता इनका अभाव, वह जेडीयु है.
हम आरजेडी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, एस पी, एनसीपी, आदिकी बातें नहीं करेंगे. इन सबके काले करतूत इतिहासके पन्नोंपर पर विद्यमान है. वे सभी पक्ष, एक दुसरेके अवलंबनके लिये विवश है. ये सभी राजकीय समीकरणों के आधार पर बनाई गई चूनावी गेमके से जिन्दा है. आवश्यकता होने पर एक होते है और आवश्यकता यदि न हो तो एक दुसरेके दुश्मन बनते हैं.
बीजेपी भी ऐसे गठबंधनके लिये विवश बनता है. जैसे कि बीजेपी, शिवसेना, एमएनएस, एल जे पी, डी.एम.के. या ए.डी.एम. के साथ गठबंधन करती है. किन्तु बीजेपीने कभी भ्रष्टाचार के साथ समझौता नहीं किया.
यह बात सही है कि, कोई विस्तारमें अपने अस्तित्वको बनानेके लिये बीजेपीने ऐसे प्रादेशिक संकुचित मानसिकता वाले पक्षोंसे समझौता किया है. यदि प्रमाणभान की प्रज्ञासे देखा जाय तो बीजेपी की मात्रा अन्य पक्षोंकी तरह असीम नहीं है.
जेडीयुने आरजेडी और नहेरुवीयन कोंग्रेससे गठबंधन किया. ये दोनों पक्ष एक समय उसके सैधांतिक आधार पर दुश्मन नंबर एक थे.
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो एक स्वकेन्द्री, वंशवादी और देशकी जनताको विभाजित करने वाला सरमुखत्यार शाहीमें मानने वाला पक्ष है. इसके पास स्वकेन्द्रीय सत्ता प्राप्त करनेके अतिरिक्त, कोई अन्य कार्य सूचि नहीं है. इसने ही उच्च न्यायालयकी अवमानना करके जनतंत्रको नष्ट भ्रष्ट करदिया था. महात्मा गांधीके निकटके साथीयों तकको इसने बिना कोई अपराध और बिना कोई न्यायिक प्रक्रिया, कारवासमें अनियतकाल के लिये बंद किया था और मरणासन्न किया था. ये सब बातें एततकालिन इतिहासके पन्नों पर विद्यमान है. तो भी जेडीयुने इस कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. इससे जेडीयुकी मानसिकताका दर्श्न होता है. आरजेडी नेता भी १९७७में जनता पक्षके सदस्य थे और उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसको नष्ट करनेका प्रण लिया था. जब जनता पक्ष तूट गया और जनता दल भी तूटा, तो लालु यादवने अपने लिये एक वंशवादी पक्ष बना लिया. इसने केवल सत्ताके लिये ही नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. लालु यादव अपने कौभांडोके कारण कारावाससे बचने के लिये ये सब करते रहे. उनके शासनको “जंगल राज”का प्रमाणपत्र नीतीशकुमार स्वयंने दिया था.
ये तीनोंने मिलके बिहार पर कमसेकम ४० वर्ष राज किया है. तो भी ये पक्ष बिहारका विकास नहीं करपाये. ये सब बिहारको पछात राज्यकी कक्षा की मान्यता मिले ऐसी वार्ताएं करते रहे. तदुपरांत समाजकी विभीन्न जातियोंके लिये शिक्षा और नौकरीमें आरक्षण मिलता ही रहे ऐसी प्रतिक्रिया भी प्रदर्शित करते रहे.
इन तीनों पक्षकी अपेक्षा बीजेपीका व्यवहार व्यवस्थित रहा है. इसलिये बीजेपी की विजय चूनावमें होना अपेक्षित था और श्रेय भी था.
किन्तु बीजेपी और उसके साथी पक्ष बिहार चूनावमें पराजित हुए
बीजेपी एक ऐसा पक्ष है जो भारतकी ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व रखता है. उसका स्वदेशीमें विश्वास है. स्वदेशी उत्पादनमें मानता है और स्वदेशी भाषाओं उपर गर्व रखता है. विदेशीओं द्वारा लिखित आधारहीन भारतीय इतिहासमें वह विश्वास नहीं रखता है. तद उपरांत वह परशुराम, राम, कृष्ण आदि पौराणिक या महाकाव्यके पात्रोंको ऐतिहासिक मानता है.
बीजेपी और खास करके नरेन्द्र मोदी मानते है कि सभी समस्याओंका मूल, शिक्षाका अभाव और कामका अभाव है. इसलिये दो प्राथमिकता बननी चाहिये. एक है, शिक्षासे कौशल्य, और दुसरा है भूमिगत संरचना यानी कि, उर्जा, मार्ग, परिवहन, जल संचय, जलवितरण आदिके विकाससे उत्पादनमें वृद्धि. इस प्रकार विकास करनेसे हर समस्याका निवारण हो जायेगा चाहे वह जातिगत हो या आर्थिक हो.
नरेन्द्र मोदीके पास इन सबकी दृष्टिके उपरांत विदेशी संबंधोंके बारेमें और सुरक्षा संबंधित प्रश्नों के बारेमें सुनिश्चित आयोजन है. उत्पादन, कार्य, और प्रबंध के विषयमें नरेन्द्र मोदीके पास निर्धारित और सुनिश्चित प्रणालीयोंका आयोजन है. बीजेपी एक मात्र ऐसा पक्ष है जिसके पास नरेन्द्र मोदी जैसा एक मात्र नेता है जो बिना थके निस्वार्थ भावसे १८ घंटा काम करता है. सुभासचंद्र बोस, दयानंद सरस्वती, विवेकानन्द, महात्मा गांधी और सरदार पटेलके बाद केवल नरेन्द्र मोदी ही एक मात्र नेता भारतको उपलब्ध हुआ है जो अन्य सबसे एक हजार मिल आगे है.
बीजेपीकी पराजयको वक्र दृष्टिसे मुल्यांकन करनेवाले स्वार्थ परायण दल समूहः
जो महाठगबंधनवाले पक्ष थे उनका हित तो स्वयंका विजय पाना हो यह बात तो स्वाभाविक है. किन्तु जो विद्वज्जन अपनेको तटस्थ मानते है और जो दृष्य श्राव्य और वाच्य समाचार माध्यम है उनको चाहिये था कि वे केवल समाचार ही दें, और अपनी तरफसे तारतम्य वाली समाचार शिर्ष पंक्तियां न बनावें. जो मूर्धन्य लोग समाचार माध्यममें या तो एंकर है या कोलमीस्ट (कटार लेखक) है वे तर्कबद्धतासे और प्रमाणभानकी प्रज्ञाका उपयोग करके समाचारोंका विश्लेषण करें और मूल्यांकन करनेमें मापदंड भी समान ही रखें.
समाचार माध्यमों द्वारा कौनसी बातें उछाली गई?
बीजेपी नेतागणसे संबंधितः
(१) शेतानको लालुजीकी जीभ पर बैठने का एड्रेस किसने दिया?
(२) ‘ ‘-वाले शर्म करो. पहेले अपना ४० सालका हिसाब बताओ.
(३) मैं क्या बाहरी हुं. मैं क्या पाकिस्तानका प्रधान मंत्री हुं …. …. ?
(४) अनामत पर पुनर्विचारणा होनी चाहिये
(५) मैं स्वयं पीछडी जातिका हुं और मुझपर क्या गुजरी है वह मैं जानता हुं..
(५) लालुजी किस कारणसे चूनावमें प्रत्याशी नहीं बने, इसका कारण तो बताओ लालुजी,
(७) यदि एनडीए की पराजय हुई तो पटाखे पाकिस्तानमें फूटेंगे
(८) यह महागठबंधन एक स्वार्थबंधन है. डीएनए चेक करना चाहिये. ये तीनों पक्षके नेता एक मंच पर क्यों नहीं आ सकते हैं?
(१०) नीतीश कुमारने जनतंत्रमें “मंत्र तंत्र”का आश्रय लिया है. यह वीडीयो क्लीप सोसीयल मीडीया पर बहुत चली.
(११) जिनको गोमांस खाना हो वे पाकिस्तान चले जाय.
(१२) यदि यहां गोमांस खाया तो मैं गला काट दूंगा.
महागठबंधन के उच्चारणः
(१) नीतीशकुमारने २००२ के गुजरातके दंगोंका उल्लेख किया
(२) बिहारीयोंको बाहरी चाहिये कि बिहारी?
(३) काला धनके डेढलाख हमारे एकाउन्टमें अभीतक जमा क्यों नहीं हुए,
(४) मांस खाने वाले असंस्कारी होते है, ऐसा जब मैंने कहा तब मेरी जबानपर शेतान बैठा था.
(५) गौमांस तो हिन्दु भी खाते है.
(६) मांस तो मांस ही है चाहे वह गायका हो, घोडेका हो या कुत्तेका हो.
(७) मुझे शेतान कहा,
(८) अमित शाह नरभक्षी है, वह नरपिशाच है,
(९) बीजेपीवालोंने काला जादु करके मुझ पर फैन गिराया. मैं काला जादु जानता हुं और “काला कबुतर” मीर्च मसाले मंत्र पढके उसको भगाउंगा.
(१०) देखो यह फोटो जिसमें नरेन्द्र मोदी अपना हाथ ज्योतीषीको दिखाते है.
नरेन्द्र मोदीका चूनाव मंत्र “विकास” था. लेकिन महागठबंधनके नेता हमेशा जातिवादकी बातें करते थे और आरएसएसके एक नेताने कहा कि “अनामत” पर पुनर्विचारणा होना चाहिये. यह सुनकर महागठबंधनके नेताओंमे लड्डु फूटने लगे. वैसे भी उनका गठबंधन “जातिवाद”के आधार पर ही हुआ था. और विकासके आधार पर प्रचार करना उनके लिये कठिन था. क्यों कि बिहारके कई विस्तारोमें, मकान, पानी, मार्ग, बीजली और शिक्षासंस्थाओंकी सुविधाएं नहीं है. उद्योग भी इसके कारण अल्प मात्रामें है. बीजेपीको कोमवाद परस्त कह्ना और कोमवादका मुद्दा उठाना यह तो वैसे भी फैशन है.
दाद्रीनामके एक देहातमें जो हुआ, चूं कि वह हिन्दुओंने किया था, ये सब इस बात पर तूट पडे. और उसको गौमांसके साथ, नागरिक स्वतंत्रता और हिन्दुओंकी असहिष्णुता के साथ जोड दिया. इस बातको जिस सीमातक ले गये इससे ऐसा लगता है कि यह एक सोची समझी व्यूहरचना थी जिसको नकारा नही जा सकता.
सियासती महानुभावोंका एवोर्ड वापसीका सीलसीला
इस घटनाको लेके बीजेपी–आरएसएस विरोधी और नहेरुवीयन कोंग्रेस परस्त, अभिनेता, कवि, लेखक, विवेचक, समाजसेवी, आदि तथा कथित महानुभावोंने, सरकार तरफसे दिये गये पुरस्कार एक के बाद एक ऐसा करके लौटाने लगे, ताकि, समाचार माध्यम, चूनावप्रचार अंतर्गत समयमें पूरा वातावरण बीजेपी–आरएसएस की असहिष्णुताके विरोधमें बना हुआ रख सके.
यदि इस घटनापर विश्लेषण किया जाय तो भूतकालमें ऐसी ही नहीं किन्तु इससे हजारों लाखों दफा बडी कई मानव हनन और मानव अधिकार हननकी घटनाएं घटी तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
नहेरुकी नीतिके कारण और भारतीय सीमाको असुरक्षित रखनेसे और हमारे जवानोंको शस्त्रोंसज्ज न करनेके कारण १९६२में हजारों जवानोंको बेमौत शहीद होना पडा. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९७२में सिमला समझौता अंतर्गत इन्दिरा गांधीने भारतकी जितको पराजयमें परिवर्तित करके हजारों शहीदोंके बलिदानोंपर पानी फेर दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९७५–१९७६ मे आपतकाल घोषित करके विरोधी आवाजको बंध करने के लिये ६००००+ लोगोंको कारावासमें अनियत कालके लिये बंद कर दिया. समाचार माध्यमों पर सेन्सरशीप डाल दी. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इन्दिराने युनीयन कार्बाईडसे क्षतियुक्त डील किया और भोपालगेस दुर्घटना हुई और सेंकडो मौत हुई और हजारों लोग, शरीरसे स्थायी रुपसे अपंग हुए. इन गेसकांड पीडितोंको, क्षतियुक्त डील के कारण मुआवझा नही मिला. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इस घटनाके दोषी एन्डरशनको अर्जुनसिंह और राजीवगांधीने भगा दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इन्दिरा गांधीने, खालिस्तानी आतंकवादी भींदराणवालेको संत घोषित करके उसको बढावा दिया, इससे खालिस्तानी आतंकवाद और सीमापारके आतंकवादको बढावा मिला. इसी कुकर्मके कारण इन्दिराकी हत्या हुई. इस नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने हजारों निर्दोष शिखोंका कत्लेआम किया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
सीमापारका आतंकवाद कश्मिरमें बढने लगा और जो हिन्दु कश्मिरमें १५% थे उनके उपर अत्याचार होने लगे और हिन्दु जनसंख्या १९८९ तक ५% हो गयी. तब तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९९०में खुले आम, वर्तमान पत्रोंमें इस्तिहार देके, मस्जिदोंमेंसे लाऊडस्पीकर द्वारा घोषणा करवाके, दिवारों पर पोस्टरों लगाके, हिन्दुओंको चेतावनी दी, कि निश्चित दिनांकके अंतर्गत या तो इस्लाम कबुल करो या कश्मिर छोड दो. यदि यह स्विकार्य नहीं है तो मौत के लिये तयार रहो. ६०००+ हिन्दुओंका कत्लेआम हुआ. ५००००० हिन्दुओंको अपना घर और राज्य छोडने पर विवश किया जो आज २५ सालके बाद भी, वे या तो तंबुमें रहेते है या खोलीमें रहेते है. १९९० पहेले भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनका साथी “एन. एफ” कश्मिर में राज करते थे, और १९९०के बाद नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने १५ साल राज किया तो भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथी पक्षोंके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. इन शासकोंने कश्मिरी हिन्दुओंके मानव अधिकारोंके सतत होते हुए हननके विषयमें केवल उपेक्षा की. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
और अब देखो यहां क्या हुआ? दाद्री देहातमें एक गरीब मुस्लिमकी हत्या हुई. युपी जो नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्ष द्वारा शासित राज्य है तो उत्तर दायित्वतो उसका ही बनता है, किन्तु इन सियासती महानुभावोंने इस घटनाका उत्तर दायित्व बीजेपी केन्द्रकी बीजेपी सरकार पर डाल दिया. चूं कि मृत व्यक्ति मुस्लिम था और चूं कि मारने वाले हिन्दु थे. यदि मारने वाले हिन्दु है तो बीजेपी को उत्तरदायी बता दो. क्या इसमें कोई तर्क है? यहा क्या बुद्धिगम्य है?
वास्तवमें महानुभावोंका तारतम्य और प्रतिभाव निरपेक्ष रुपसे एक प्रपंच है और निरपेक्ष रुपसे कोमवादको उकसाना है. ये सभी महानुभाव को कोमवाद फैलाने के आरोप पर न्यायिक कार्यवाही करनी चाहिये. और उनको कारावास में रखना चाहिये.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्ज़ः बिहार चूनाव, प्रक्रिया, परिणाम, बीजेपी, जय प्रकाश नारायण, भारतीय संविधान, बहुमत, सत्यका आधार, श्रेय, नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, आर्षदृष्टा, नीतिवान, प्राथमिकता भारतका हित, कुशल, ठगबंधन, गठबंधन, आरजेडी, लालु, जंगल राज, जेडीयु, नीतीश, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरु, इन्दिरा, वंशवादी, स्वकेन्दी, सत्ता, जवान, शहीदी, दाद्री, नहेरुवीयन कोंग्रेसका साथी पक्ष, महानुभाव, एवोर्ड वापसी, सियासत, परस्त, संवेदनहीन , नींभर, कश्मिर, हिन्दु, शिख, भीन्दरानवाले, खालिस्तान, आतंकवाद, कत्लेआम, हिन्दुओंको चेतावनी
गोब्बेल्स अन्यत्र ही नहीं भारतमें भी जिवित है
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अघटित, अफवाह, आतंक, आपात् काल, इन्दिरा, कश्मिरी, गुजरात, जनश्रुति, तहस नहस, नरसंहार, नहेरु, नहेरुवीयन, प्रमाण, प्रसार, माध्यम, मुस्लिम, मोरारजी देसाई, रुमर, संविधान, हिन्दु, २००२ on April 9, 2015| Leave a Comment »
गोब्बेल्स अन्यत्र ही नहीं भारतमें भी जिवित है.
रामायण में ऐसा उल्लेख है कि रावणने राम के मृत्युकी अफवाह फैलायी थी. किन्तु सभी रामकाथाओंमें ऐसा उलेख नहीं है. रावणने अफवाह फैलायी थी ऐसी भी एक अफवाह मानी जाती है. सर्वप्रथम विश्वसनीयन अफवाहका उल्लेख महाभारतके युद्धके समय मिलता है, जब भीमसेन एक अफवाह फैलाता है कि “अश्वस्थामा मर गया”. यह बात अश्वस्थामाके पिता द्रोणके पास जाती है. किन्तु द्रोणके मंतव्यके अनुसार, भीमसेन विश्वसनीय नहीं है. द्रोण इस घटनाकी सत्यताके विषय पर सत्यवादी युधिष्ठिरसे प्रूच्छा करते है. युधिष्ठिर उच्चरते है “नरः वा कुंजरः वा (नरो वा कुंजरो वा)”. लेकिन नरः शब्द उंचे स्वरमें बोलते है और कुंजरः (हाथी) धीरेसे बोलते है जो द्रोणके लिये श्रव्य सीमा से बाहर था. तो इस प्रकार पांण्डव पक्ष, अफवाह फैलाके द्रोण जैसे महारथी को मार देता है.
अर्वाचिन युगमें गोब्बेल्स नाम अफवाहें फैलानेवालोंमे अति प्रख्यात है. ऐसा कहा जाता है कि, उसने अफवाहें फैलाके शत्रुसेनाके सेनापतियोंको असमंजसमें डाल दिया था.
अफवाह की परिभाषा क्या है?
अफवाहको संस्कृतभाषामें जनश्रुति कहेते है. जनश्रुति का अर्थ है एक ऐसी घटना जिसके घटनेकी सत्यताका कोई प्रमाण नहीं होता है. इसके अतिरिक्त इस घटनाको सत्यके रुपमें पुरष्कृत किया जाता है या तो उसका अनुमोदन किया जाता है. और इस अनुमोदनमें भी किया गया तर्क शुद्ध नहीं होता है. एक अफवाहकी सत्यताको सिद्ध करने के लिये दुसरी अफवाह फैलायी जाती है. और ऐसी अफवाहोंकी कभी एक लंबी शृंखला बनायी जाती है कभी उसकी माला भी बनायी जाती है.
अफवाह उत्पन्न करो और प्रसार करो
कई बार अफवाह फैलाने वाला दोषित नहीं होता है. वह मंदबुद्धि अवश्य होता है. जिन्होंने अफवाहका जनन किया है वे लोग, ऐसे मंदबुद्धि लोगोंका एक प्रसारण उपकरण (टुल्स), के रुपमें उपयोग करते है. ऐसा भी होता है कि ऐसे प्रसार–माध्यम–व्यक्ति अपने स्वार्थके कारण या अहंकारके कारण अफवाह को सत्य मान लेता है और प्रसारके लिये सहायभूत हो जाता है.
अफवाहें फैलानेमें पाश्चात्य संस्कृतियां का कोई उत्तर नहीं.
वास्तवमें तो स्वर्ग, नर्क, सेतान, देवदूत, क्रोधित होनेवाला ईश्वर, प्रसन्न होनेवाला ईश्वर, कुछ लोगोंको “ ये तो अपनवाले है” और दुसरोंकों “पराये” कहेने वाला ईश्वर, यही धर्म श्रेष्ठ है, इसी धर्मका पालन करनेसे ईश्वरकी प्राप्ति हो सकती है, इस धर्मको स्विकारोगे तो तुम्हारा पाप यह देवदूत ले लेगा, ये सभी कथाएं और मान्यताएं भी अफवाह ही तो है.
कामदेव, विष्णु भगवानका पुत्र था. “काम”का यदि प्रतिकात्मक अर्थ करें तो नर–मादामें परस्पर समागमकी वृत्ति को काम कहा जाता है.
भारतीय संस्कृतिमें तत्वज्ञानको प्रतिकात्मक करके, काव्य के रुपमें उसको लोकभोग्य बनानेकी एक प्रणाली है. इस तरहसे जन समुदायको तत्वज्ञान अवगत करानेकी परंपरा बनायी है.
काम भी एक देव है. देवसे प्रयोजित है शक्ति या बल.
कामातुर जिवकी कामेच्छा कब मर जाती है?
जब कामातुर व्यक्तिको अग्निकी ज्वालाका स्पर्ष हो जाता है, तब उसकी कामेच्छा मर जाती है. लेकिन काम मरता नहीं है. इस प्राकृतिक घटनाको प्रतिकात्मक रुपमें इस प्रकार अवतरण किया कि रुद्रने (अग्निने) कामको भष्म कर दिया. किन्तु देव तो कभी मर नहीं सकता. अब क्या किया जाय? तो तत् पश्चात् इश्वरने उसको सजिवोंमे स्थापित कर दिया. बोध है कि कामदेव सजिवमें विद्यमान है.
“जनश्रुति” यानीकी अफवाह भी जनसमुदायोंमे जिवित है. हांजी, प्रमाण कितना है वह चर्चा का विषय है.
इतिहासमें जनश्रुति (अफवाहें रुमर);
पाश्चात्य इतिहासकारोंने भारतके पूरे पौराणिक साहित्यको अफवाह घोषित कर दिया. पुराणोमें देवोंकी और ईश्वरकी जो प्रतिकात्मक या मनोरंजनकी कथायें थी उनकी प्रतिकात्मकताको इन पाश्चात्य इतिहासकारोंने समझा नही या तो समझनेकी उनकी ईच्छा नहीं थी क्योंकि उनका ध्येय अन्य था. उनको उनकी ध्येय–सूची (एजन्डा)के अनुसार, कुछ अन्य ही सिद्ध करनेका था. उस ध्येय सूचि के अनुसार उन्होंने इन सब प्रतिकात्मक ईश्वरीय कथाओंको मिथ्या घोषित कर दिया. और उनको आधार बनाके भारतमें भारतवासीयोंके लिखे इस इतिहासको अफवाह घोषित कर दिया.
भारत पर आर्योंका आक्रमणः
पराजित देशकी जनताको सांस्कृतिक पराजय देना उनकी ध्येय–सूची थी. अत्र तत्र से कुछ प्रकिर्ण वार्ताएं उद्धृत करके उसमें कालगणना. भाषाकी प्रणाली, जन सामान्यकी तत्कालिन प्रणालीयां, प्रक्षेपनकी शक्यता, आदि को उपेक्षित कर दिया.
आर्य, अनार्य, वनवासी, आदि जातियोंमें भारतकी जनताको विभाजित करके भारतीय संस्कृतिको भारतीय लोगोंके लिये गौरवहीन कर दिया. ऐसी तो कई बातें हैं जो हम जानते ही है.
ऐसा करना उनके लिये नाविन्य नहीं था. ऐसी ही अफवाहें फैलाके उन्होने अमेरिकाकी माया संस्कृतिको और इजिप्तकी महान संस्कृतिको नष्ट कर दिया था. पश्चिम एशियाकी संस्कृतियां भी अपवाद नहीं रही है.
आप कहोगे कि इन सब बातोंका आज क्या संदर्भ है?
संदर्भ अवश्य है. भारतीय संस्कृतिकी प्रत्येक प्रणालीयोंमें इसका संदर्भ है और उसका प्रास्तूत्य भी है.
अफवाहें फैलाके दुश्मनोंमें विभाजन करना, दुश्मनोंकी सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट करना, दुश्मनोंकी प्रणालीयोंको निम्नस्तरीय सिद्ध करना और उसका आनंद लेना ये सब उनके संस्कार है. आज भी आपको यह दृष्टिगोचर होता है.
भारतमें इन अफवाहोंके कारण क्या हुआ?
भारतकी जनतामें विभाजन हुआ. उत्तर, दक्षिण, पूर्वोत्तर, हिन्दु, मुस्लिम, ख्रीस्ती, भाषा, आर्य, अनार्य, ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र, वनवासी, पर्वतवासी, अंग्रेजीके ज्ञाता, अंग्रेजीके अज्ञाता आदि आदि… इनमें सबसे भयंकर भेद धर्म, जाति और ज्ञाति.
मुस्लिमोंमें यह अफवाह फैलायी कि वे तो भारतके शासक थे. उन्होने भारतके उपर १२०० साल शासन किया है. उन्होंने ही भारतीयोंको सुसंस्कृत किया है. भारतकी अफलातुन इमारतें आपने ही तो बनायी. भारतके पास तो कुछ नहीं था. भारत तो हमेशा दुश्मनों से २५०० सालोंसे हारता ही आया है. सिकंदरसे लेके बाबर तक भारत हारते ही आया है.
ख्रीस्ती और मुसलमानोंने भारतके निम्न वर्णको यह बताया कि आपके उपर उच्च वर्णके लोगोंने अमानवीय अत्याचार किया है. दक्षिण भारतकी अ–ब्राह्मण जनताको भी ऐसा ही बताया गया. इन कोई भी बातोंमे सत्यका अभाव था.
सबल लोग, निर्बल लोगोंका शोषण करे ऐसी प्रणाली पूरे विश्वमें चली है और आज भी चलती है. केवल सबल और निर्बलके नाम बदल जाते है. भारतमें शोषण, अन्य देशोंके प्रमाणसे अति अल्प था. जो ज्ञातियां थी वे व्यवसाय के आधार पर थी. और पूरा भारतीय समाज सहयोगसे चलता था.
धार्मिक अफवाहेः
धर्मकी परिभाषा जो पाश्च्यात देशोंने बानायी है, वह भारतके सनातन धर्म को लागु नहीं पड सकती. किन्तु यह समझनेकी पाश्चात्य देशोंकी वृत्ति नहीं है या तो उनकी समझसे बाहर है.
भारतके अंग्रेजी–ज्ञाताओंकी मानसिकता पराधिन है. इतिहास, धरोहर, प्रणालीयां, तत्वज्ञान, वैश्विक भावना, आदिको एक सुत्रमें गुंथन करके भारतीय विद्वानोंने भारतकी संस्कृतिमें सामाजिक लयता स्थापित की है. लयता और सहयोग शाश्वत रहे इस कारण उन्होंने स्थिति–स्थापकता भी रक्खी है.
किन्तु इन तथ्योंको समझना और आत्मसात् करना पाश्चात्य विद्वानोंके मस्तिष्कसे बाहर की बात है. इस लिये उन्होंने ऐसी अफवाहें फैलायी कि, हिन्दु देवदेवीयां तो बिभत्स है. उनके उपासना मंत्र और पुस्तकें भी बिभत्स है. वे लोग जननेन्द्रीयकी पूजा करते है. उनके देव लडते भी रहेते है और मूर्ख भी होते है. भला, देव कभी ऐसे हो सकते हैं? पाश्चात्य भाषी इस प्रकार हिन्दु धर्मकी निंदा करके खुश होते हैं.
वेदोंमे और कुछ मान्य उपनिषदोंमे नीहित तत्वज्ञानका अर्क जो गीतामें है उनको आत्मसात तो क्या किन्तु समझनेकी इन लोगोंमें क्षमता नहीं है.
शास्त्र क्या है? इतिहास क्या है? समाज क्या है? कार्य क्या है? इश्वर क्या है? आत्मा क्या है? शरीर सुरक्षा क्या है? आदि में प्रमाणभूत क्या है, इन बातोंको समझनेकी भी इन विद्वानोंमे क्षमता नहीं है. तो ये लोग इनके तथ्योंको आत्मसात् तो करेंगे ही कैसे?
राजकीय अफवाहेः
दुसरों पर अधिकार जमाना यह पाश्चात्य संस्कृतिकी देन है.
भारतमें गुरु परंपरा रही है. गुरु उपदेश और सूचना देता है. हरेक राजाके गुरु होते थे. राजाका काम सिर्फ गुरुनिर्देशित और सामाजिक मान्यता प्राप्त प्रणालियोंके आधार पर शासन करना था. भारतका जनतंत्र एक निरपेक्ष जनतंत्र था. गणतंत्र राज्य थे. राजाशाही भी थी. तद्यपि जनताकी बात सूनाई देती थी. यह बात केवल महात्मा गांधी ही आत्मसात कर सके थे.
भारतकी यथा कथित जनतंत्रको अधिगत करनेकी नहेरुमें क्षमता नहीं थी. नहेरुको भारतीय संस्कृति और संस्कारसे कोई लेना देना नहीं था. उन्होंनें तो कहा भी था कि “मैं (केवल) जन्मसे (ही) हिन्दु हूं. मैं कर्मसे मुस्लिम हूं और धर्मसे ख्रीस्ती हूं. नहेरुको महात्मा गांधी ढोंगी लगते थे. किन्तु यह मान्यता उन्होंने गांधीजीके मरनेके सात वर्षके पश्चात्, केनेडाके एक राजद्वारी व्यक्तिके सामने प्रदर्शित की थी.
नहेरुकी अपनी प्राथमिकता थी, हिन्दुओंकी निंदा. नहेरुने हिन्दुओंकी निंदा करनेकी बात, आचारमें तभी लाया, जब वे एक विजयी प्रधान मंत्री बन गये.
हिन्दु महासभा को नष्ट करनेमें नहेरुका भारी योगदान था.
वंदे मातरम् और राष्ट्रध्वजमें चरखाका चिन्ह को हटानेमें उनका भारी योगदान था. गौ रक्षा और संस्कृतभाषाकी अवहेलना करना, मद्य निषेध न करना, समाजको अहिंसाकी दिशामें न ले जाना, अंग्रेजीको अनियत कालके लिये राष्ट्रभाषा स्थापित करके रखना, समाजवादी (साम्यवादी) समाज रचना आदि सब आचारोंमे नहेरुका सिक्का चला. उन्होंने तथा कथित समाजवाद, हिन्दी चीनी भाई भाई, स्व कथित और स्व परिभाषित “धर्म निरपेक्षता”की अफवाहें फैलायी. इन सभी अफवाहोंको अंग्रेजी ज्ञाता–जुथोंने स्वकीय स्वार्थके कारण अनुमोदन भी किया.
जनतंत्र पर जो प्रहार नहेरु नहीं कर पाये, वे सब प्रहार इन्दिरा गांधीने किया.
इन्दिरा गांधी, अफवाहें फैलानेमें प्रथम क्रम पर आज भी है.
इन्दिरा गांधीने जितनी अफवाहें फेलायी थी उसका रेकॉर्ड कोई तोड नहीं सकता. क्यों कि अब भारतमें आपात् काल घोषित करना संविधानके प्रावधानोंके अनुसार असंभव है.
सुनो, ऑल इन्डिया रेडियो क्या बोलता था?
एक वयोवृद्ध नेता, सेनाको और कर्मचारीयोंको विद्रोहके लिये उद्युत कर रहा है. (संदर्भः जय प्रकाश नारायणने कहा था कि सभी सरकारी कर्मचारी संविधानके नियमोंसे बद्ध है. इसलिये उनको हमेशा उन नियमोंके अनुसार कार्य करना है. यदि उनका उच्च अधिकारी या मंत्री नियमहीन आज्ञा दें तो उनको वह आदेश लेखित रुपमें मांगना आवश्यक है.) किन्तु उपरोक्त समाचार ‘एक वयोवृद्ध नेता, सेनाको और कर्मचारीयोंको विद्रोहके लिये उद्युत कर रहा है” सातत्य पूर्वक चलता रहा.
उसी प्रकार “आपातकाल अनुशासन है”का अफवाहयुक्त अर्थघटन यह किया गया कि, “आपातकाल एक आवश्यक और निर्दोष कदम है और विनोबा भावे इस कदमसे सहमत है.”
विनोबा भावेने खुदने इस अयोग्य कदमके विषय पर स्पष्टता की थी, “यदि वास्तवमें देशके उपर कठोर आपत्ति है तो यह, एक शासककी समस्या नहीं है, यह तो पुरे देशवासीयोंकी समस्या है. इस लिये देशको कैसे चलाया जाय इस बात पर सिर्फ (सत्ताहीन) आचार्योंकी सूचना अनुसार शासन होना चाहिये. क्योंकि आचार्योंका शासन ही अनुशासन है. “आचार्योंका अनुशासन होता है. सत्ताधारीयोंका शासन होता है.”
विनोबा भावे का स्पष्टीकरण दबा दिया गया. सत्यको दबा देना भी तो अफवाहका हिस्सा है.
“एक वयोवृद्ध नेता (मोरारजी देसाई) के लिये प्रतिदिन २० कीलोग्राम फल का खर्च होता है.” यह भी एक अफवाह इन्दिरा गांधीने फैलायी थी. मोरारजी देसाईने कहा कि यदि मैं प्रतिदिन २० कीलोग्राम फल खाउं तो मैं मर ही जाउं.
ऐसी तो सहस्रों अफवायें फैलायी जाती थी. अफवाहोंके अतिरिक्त कुछ चलता ही नहीं था.
समाचार माध्यमों द्वारा प्रसारित अफवाहें
आज दंभी धर्मनिरपेक्षताके पुरस्कर्ताओंने समाचार पत्रों और विजाणुंमाध्यमों द्वारा अफवाहें फैलानेका ठेका नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंके पक्षमें ले लिया है.
मोदी–फोबीयासे पीडित नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथीयोंके द्वारा कथित उच्चारणोंसे नरेन्द्र मोदी कौनसा जानवर है या वह कौनसा दैत्य है, या वह कौनसा आततायी है, इन बातों को छोड दो. यह तो गाली प्रदान है. ऐसे संस्कारवालोंने (नहेरुवीयनोंने) इन लोगोंका नाम बडा किया है.
किन्तु भूमि अधिग्रहण विधेयक, आतंकवाद विरोधी विधेयक, उद्योग नीति, परिकल्पनाएं, विशेष विनिधान परिक्षेत्र (स्पेश्यल इन्वेस्टमेंट झोन), आदि विकास निर्धारित योजनाओं के विषय पर अनेक अफवाहें ये लोग फैलाते हैं. इसके विषय पर एक पुस्तक लिखा जा सकता है.
उदाहरण के तौर पर, भूमिअधिग्रहणमें वनकी भूमि नहीं है तो भी वनवासीयोंको अपने अधिकार से वंचित किया है, ऐसी अफवाह फैलायी जाती है. कृषकोंको अपनी भूमिसे वंचित करनेका यह एक सडयंत्र है. यह भी एक अफवाह है. क्यों कि उसको चार गुना प्रतिकर मिलता है जिससे वह पहेलेसे भी ज्यादा भूमि कहींसे भी क्रय कर सकते है.
आतंकवाद विरुद्ध हिन्दु और भारत समाज सुरक्षाः
कश्मिरके हिन्दुओंने तो कुछ भी नहीं किया था.
तो भी, १९८९–९० में कश्मिरी हिन्दुओंको खुल्ले आम, अखबारोंमें, दिवारों पर, मस्जिदके लाउड स्पीकरों द्वारा धमकियां दी गयी कि, “इस्लाम कबुल करो या तो कश्मिर छोड दो. यदि ऐसा नहीं करना है तो मौतके लिये तयार रहो.” फिर ३००० से भी अधिक हिन्दुओंकी कत्ल कर दी. और उनके उपर हर प्रकारका आतंक फैलाया. ५–७ लाख हिन्दुओंको अपना घर छोडना पडा. उनको अपने प्रदेशके बाहर, तंबूओंमे आश्रय लेना पडा. उनका जिवन तहस नहस हो गया है.
ऐसे आतंकके विरुद्ध दंभी धर्मनिरपेक्ष जमात मौन रही, नहेरुवीयन कोंग्रेसनेतागण मौन रहा, कश्मिरी नेतागण मौन रहा, समाचार माध्यम मौन रहा, मानव अधिकार सुरक्षा संस्थाएं मौन रहीं, समाचार पत्र मौन रहें, दूरदर्शन चेनलें मौन रहीं, सर्वोदयवादी मौन रहें… ये केवल मौन ही नहीं निरपेक्ष रीतिसे निष्क्रीय भी रहे. जिनको मानवोंके अधिकारकी सुरक्षाके लिये कर–प्रणाली द्वारा दिये जन–निधिमेंसे वेतन मिलता है वे भी मौन और निष्क्रीय रहे. यह तो ठंडे कलेजेसे चलता नरसंहार ही था और यह एक सातत्यपूर्वक चलता आतंक ही है जब तक इन आतंकवादग्रस्त हिन्दुओंको सम्मानपूर्वक पुनर्वासित नहीं किया जाता.
एक नहेरुवीयन कोंग्रेस पदस्थ नेताने आयोजन पूर्वक २००२ में गोधरा रेल्वे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेसका डीब्बा जलाकर ५९ स्त्री, पुरुष बच्चोंको जिन्दा जला दिया. ऐसा शर्मनाक आतंक, गुजरातमें प्रथम हुआ.
गुजरात भारतका एक भाग है. वह कोई संतोंका मुल्क नहीं है, न तो वह भारत में, संतोंका एक टापु बन सकता है. यदि कोई ऐसी अपेक्षा रक्खे तो वह मूर्ख ही है.
५९ हिन्दुओंको जिन्दा जलाया तो हिन्दुओंकी प्रतिक्रिया हुई. दंगे भडक उठे. तीन दिन दंगे चले. शासनने ३ दिनमें नियंत्रण पा लिया. जो निर्वासित हो गये थे उनका पुनर्वसन भी कर दिया. इनमें हिन्दु भी थे और मुसलमान भी थे. मुसलमान अधिक थे. ३ से ६ मासमें, स्थिति पूर्ववत् कर दी गयी.
तो भी गुजरातके शासन और शासककी भरपुर निंदा कर दी गयी और वह आज भी चालु है.
मुस्लिमोंने जो सहन किया उसके उपर जांच आयोग बैठे,
विशेष जांच आयोग बैठे,
सेंकडोंको जेलमें बंद किया,
न्यायालयोंमें केस चले.
सजाएं दी गयी.
इसके अतिरिक्त इसके उपर पुस्तकें लिखी गयीं,
पुस्तकोंके विमोचन समारंभ हुए,
घटनाके विषय को ले के हिन्दुओंके विरुद्ध चलचित्र बने,
अनेक चलचित्रोंमें इन दंगोंका हिन्दुओंके विरुद्ध और शासनके विरुद्ध प्रसार हुआ. इसके वार्षिक दिन मनाये जाने लगें.
२००२ के दंगोमें क्या हुआ था?
२००० से कम हुई मौत/हत्या जिनमें पुलीस गोलीबारीसे हुई मौत भी निहित है.
इसमें हिन्दु अधिक थे. ११४००० लोगोंको तंबुमें जाना पडा जिनमें १/३ से ज्यादा हिन्दु भी थे
३ से ६ महीनेमें सब लोगोंका पुनर्वसन कर दिया गया.
इनके सामने तुलना करो कश्मिरका हत्याकांड १९८९–९०
हिन्दुओंने कुछ भी नहीं किया था.
३०००+ मौत हुई केवल हिन्दुओंकी.
५०००००–७००००० निर्वासित हुए. सिर्फ हिन्दुओंको निर्वासित किया गया था.
शून्य पोलीस गोलीबारी
शून्य मुस्लिम मौत
शून्य पुलीस या अन्य रीपोर्ट
शून्य न्यायालय केस
शून्य गिरफ्तारी
शून्य दंड विधान
शून्य सरकारी नियंत्रण
शून्य पुस्तक
शून्य चलचित्र
शून्य दूरदर्शन प्रदर्शन
शून्य उल्लेख अन्यत्र माध्यम
शून्य सरकारी कार्यवायी
शून्य मानवाधिकारी संस्थाओंकी कार्यवाही
यदि हिन्दुओंका यही हाल है और फिर भी उनके बारेमें कहा जाता है कि, “मुस्लिम आतंकवादकी तुलनामें हिन्दु आतंकवाद से देशको अधिक भय है” ऐसा जब नहेरुवीयन कोंग्रेसका अग्रतम नेता एक विदेशीको कहेता है तो इसको अफवाह नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?
अघटित को घटित बताना, संदर्भहीन घटनाको अधिक प्रभावशाली दिखाना, असत्य अर्थघटन करना, प्रमाणभान नहीं रखना, संदर्भयुक्त घटनाओंको गोपित रखना, निष्क्रीय रहना, अपना कर्तव्य नहीं निभाना … ये सब बातें अफवाहोंके समकक्ष है. इनके विरुद्ध दंडका प्रावधान होना आवश्यक है.
और कौन अफवाहें फैलाते हैं?
लोगोंमें भी भीन्न भीन्न फोबिया होता है.
मोदी और बीजेपी या आएसएस फोबीया केवल दंभी धर्मनिरपेक्ष पंडितोमें होता है ऐसा नहीं है, यह फोबीया सामान्य मुस्लिमोंमें और पाश्चात्य संस्कृति से अभिभूत व्यक्तिओमें भी होता है. ऐसा ही फोबीया महात्मा गांधी के लिये भी कुछ लोगोंका होता है. कुछ लोगोंको मुस्लिम फोबिया होता है. कुछ लोगोंको क्रिश्चीयन लोगोंसे फोबीया होता है. कुछ लोगोंको श्वेत लोगोंकी संस्कृतिसे या श्वेत लोगोंसे फोबिया होता है. वे भी अपनी आत्मतूष्टिके लिये अफवाहें फैलाते है. ये सब लोग केवल तारतम्य वाले कथनों द्वारा अपना अभिप्राय व्यक्त करके उसके उपर स्थिर रहते हैं.
शिरीष मोहनलाल दवे
हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – ३
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged आचार संहिता, आधारभूत, आनंद, उद्भव, काव्य, कृतघ्न, कृतज्ञ, कोमवाद, गुढ, जगत, तत्त्वज्ञान, धर्म, परिभाषा, पशु, प्रकृति, प्रणाली, प्राथमिकता, प्रादेशिक, मानवीय, मुस्लिम, रीलीजीयन, लघुमति, वनस्पति, वेद, वैशिष्ठ्य, व्यवहार, संतुलन, संस्कृत, संस्कृति, सजीव, हिन्दु, ८० प्रतिशत on May 12, 2014| 1 Comment »
हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – ३
इस लेखको हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – २ के अनुसंधानमें पढें.
हिन्दु और मुस्लिम जनताके बीचमें जो समस्याएं है वह कैसे दूर की जाय?
इन दोनोंको कैसे जोडा जाय?
सर्व प्रथम हम हिन्दुओंकी मुस्लिमोंकी वजहसे जो समस्याएं है उनकी बात करेंगे.
पहेले तो हिन्दुओंको यह निश्चित करना पडेगा कि उनको हिन्दुके होनेके आधार पर क्या चाहिये?
हिन्दु दृष्टि और प्रणाली
हिन्दुस्तानकी संस्कृतिमें जीवन, एक प्रणाली है. वह समय समय पर आतंरिक विचार विनीमयसे बदलती रही है. हिन्दु मानते है कि हमारी प्रणाली, किसी अन्य धर्म-प्रणालीको, जहां तक मानवीय हक्कोंका सवाल है, नुकशान करती नहीं है. हमें हमारी कोई प्रणाली बदलनी है तो वह हम खुद बदलेंको, दुसरे धर्मवालोंको, उसमें चोंच डालनेकी और हमें बदनाम करनेकी जरुरत नहीं है.
हिन्दु क्या मानते है?
हम मानते हैं कि हमारा धर्म ऐसा है जो रीलीजीयन की परिभाषामें आता नहीं है, उसको रीलीजीयनकी परिभाषामें ले कर हमारे धर्मकी प्रत्यक्ष या परोक्ष रुणात्मक टीका करनेकी दूसरोंको जरुरत नहीं है. हमारा मानना है कि हमने धर्मको दो हिस्सेमें बांटा है.
एक हैः ईश्वर, आत्मा और जगतको समझना और तर्कसे प्रतिपादन करना. हमने यह काम काव्यात्मक रीतसे किया है. और इन काव्योंको साहित्यमें अवतरित किया है. अन्य धर्म वालोंको समझना चाहिये कि वे संस्कृतभाषाका अध्ययन किये बिना और वेदोंमें रही गुढताको समझे बिना, हमारे तत्वज्ञानमें चोंच न डाले.
दुसरा हैः हमारी जीवन शैलीः हमने जगतको एक सजीव समझा है. हमारा सामाजिक व्यवहार प्राकृतिक तत्वोंका आदर, संतुलन और आनंदका संमिश्रण है. हम मानते हैं कि जिन तत्वोंके उपर हमारा जीवन निर्भर है उनका हम आदर करें और उनकी कृतज्ञता (अभार) व्यक्त करते रहें ताकि हमारा मन कृतघ्न (डीसग्रेसफुल, नमकहराम) न बने.
उदाहरणः हमारे समाजमें गायका दूध पिया जाता है. बैलसे खेती करते हैं. घोडे से सवारी की जाती है, हिंसक पशु जंगल की रक्षा करता है, वनस्पतिसे खाद्य पदार्थ लेते हैं आदि आदि.. इन सबको हम पूज्य मानते हैं क्यों कि इन सब पर हमारा जीवन निर्भर है. हम इनकी पूजा करेंगे हम उनकी रक्षा करेंगे. मानव समाजका अस्तित्व भयमें आजाय तो अलग बात है.
इसी प्रकार, जिनको निर्जीव समझे जाते है उनको भी हम पूज्य मानेंगे और ऐसे सभीके प्रति हम, कृतज्ञता व्यक्त करनेके हेतु, उत्सव मानायेंगे और आनंद करेंगे. ये आदर्शके प्रति हमारी गति है. हम इसमें आगे जायेंगे किन्तु पीछे नहीं जायेंगे. आपको हमारे उत्सव मनाना हो तो मनाओ और न मनाना हो तो मत मनाओ.
इतिहासिक मान्यताएंः
हम समझते हैं कि हमारी संस्कृतिका और भाषाका उद्भव और विकास यहां भारत वर्षमें ही हुआ. हम समझते हैं कि हम बाहरकी संस्कृति लेकर भारतमें आये नहीं. हम बाहर जरुर गये. हमारे पास इसका आधारभूत तर्क है. अगर इतिहासमें इन बातोंका समावेश करें तो उसमें कोई अयोग्य बात नहीं है. हमारी इन बातोंको हमारी धर्मांतता या कोमवादके साथ जोडना आवश्यक नहीं. हमने दुसरोंसे क्या अपनाया, दुसरोंने हमसे क्या अपनाया ये सब बातें हम हमारे इतिहासमें हमारा तर्क संमिलित करेंगे. हमारी इन बातोंको, धर्मांतता या कोमवादके साथ जोडना अतार्किक है. हम दुसरोंकी मान्यता और तर्क भी इतिहासमें संमिलित करेंगे.
यह हमारी परंपरा है और हम भारतमें उनको कोई भी किमत पर क्षति होने नहीं देंगे. इस परंपरा वाले हम, हमारे देशमें ८० प्रतिशत है. हम किसीके ऐसे कोई कदम उठाने नहीं देंगे और मान्य करने नहीं देंगे जो इनमें क्षति करे.
१९५१में हम हिन्दु जनसंख्यामें ८० प्रतिशत के बारबर थे. इस ८० प्रतिशतसे मतलब है कि हम विधर्मियोंको विदेशोंसे, हमारे देशमें कोई भी हालतमें इस सीमासे उपर घुसने नहीं देंगे कि हम ८० प्रतिशत से कम हो जाय. मुस्लिम अपने धर्मके आधार पर चार पत्नीयां कर नहीं पायेंगे. कुटुंब नियोजन एक समान रुपसे लागु किया जायेगा.
समान आचार संहिताः
नागरिक आचार संहिता और आपराधिक संहिता समान रहेगी. धर्म और जातिके आधार पर कोई राज्य, जिला, नगर, तेहसिल, ग्राम, संकुल आदि की रचना या नव रचना करने दी जायेगी नहीं.
प्रादेशिक वैशिष्ठ्यः
भूमि पुत्रोंको ८० प्रतिशत तक हर क्षेत्रमें प्राथमिकता रहेगी. इसमें अगर कभी अ-पूर्त्ति रही तो यह अ-पूर्त्ति आगे बढायी जायेगी. भूमिपुत्रोंमें धार्मिक भेद नहीं रक्खा जायेगा.
मुस्लिम जनता, हिन्दुओंके बारेमें यह न माने कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दु परिषद, बजरंग दल मुस्लिम विरोधी संस्थाएं है. मुस्लिम जनता यह भी न माने कि, बीजेपी का संचालन यह संस्थाएं करती है. क्योंकि नागरिक और आपराधिक आचार संहिता समान है.
हिन्दु जनता, मुस्लिम जनतासे यह भी चाहती है कि, वे भी पारसी और यहुदीयों की तरह हिंदुओंसे मिलजुल कर रहें. हिन्दुओंका ऐतिहासिक सत्य है कि वे अन्य धर्मोंके प्रति सहनशील, आदरभाव और उनकी रक्षाका भाव रखते है, फिर मुस्लिम जनता पारसी, यहुदी आदि के जैसी मनोवृत्ति क्यों नहीं रख सकती?
भारतकी मुस्लिम जनता हिन्दुओंसे क्या अपेक्षा रखती है?
मेरे मन्तव्यसे उनको अमन, शांति और सुरक्षा चाहिये. इसके अतिरिक्त कुछ हो तो वे बतायें.
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः
हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – २
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अरबस्तान, असंतुलन, आनंद, इस्लाम, ईमान, ईश्वर, कार्य, जगत, ज्ञान, दयानंद सरस्वती, दारु, निमित्त, प्रणाली, प्रतिकार, फल, ब्रह्म, महोम्मद साहब, मुस्लिम, मूर्त्तिपूजा, युथ, लयबद्ध, विक्रमादित्य, विज्ञान, विद्रोह, व्यवस्था, शंकराचार्य, शक्ति, संचालन, संवाद, समाज, हिन्दु on May 11, 2014| 2 Comments »
हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – २
जब देशकी जनता गरीब होती है वह किसीभी बात पर झगडा करने के लिये तैयार हो जाती है. और जिनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता और पैसा है वह हमेशा दुसरोंकी अज्ञानताका लाभ लेकर देशको और मानवजातको चाहे कितना ही नुकशान क्युं न होजाय, दुसरोंको गुमराह करके मत बटोरके अपना उल्लु सीधा करती है.
लेकिन वास्तवमें ये हिन्दु और मुस्लिम कौन है और कैसे है?
और ये दोनो क्यों बेवकुफ बनते रहते है?
मुस्लिम और हिन्दु वास्तवमें एक ही जाति है. इसाकी प्रथम सदी तक हिन्दु राजाएं इरान तक राज करते थे. विक्रममादित्यने अरबस्तान तक अपना साम्राज्य फैलाया था. अगर आर्योंके आगमन वाली कल्पनाको सही माने तो भी अरबस्तान वाले भी आर्य जाति के है. अगर भारतसे लोग बाहर गये इस थीयेरीका स्विकार करे तो भी अरबस्तानके लोग और भारतके लोग एक ही जातिके है. एक ही जातिके हो या न हो अब जाति कोई महत्व रखती नहीं है.
फिर टकराव क्युं?
इस्लाम क्या है?
इससे प्रथम यह विचार करो कि इस्लाम क्यों आया? जब कोई भी प्रणालीमें अतिरेक होता है तो एक प्रतिकारवाला प्रतिभाव होता है.
प्रणालीयां समाजको लयबद्ध जिनेके लिये होती है. प्रणालीयां संवादके लिये होती है. प्रणालीयां आनंदके लिये होती है. अगर इसमें असंतुलन हो जाय और समाजके मनुष्योंकी सुविधाओंमें यानी कि आनंदमें असंतुलन हो जाय तब कोई सक्षम मनुष्य आगे आ जाता है और वह विद्रोहवाला प्रतिकार करता है.
इश्वरकी शक्तियों पर समाज निर्भर है. इन शक्तियोंको आप कुछ भी नाम दे दो. आप उनका भौतिक प्रतिक बनाके उनको याद रखो और उसकी उपासना करो. उस उपासनाओंकी विधियां बनाओ. उनकी विधियोंके अधिकारीयोंको सत्ता दो. यह पूरा फिर एक प्रपंच बन जाता है. समाजके युथोंके सुखोंमें असंतुलन हो जाता है. कोई न कोई कभी न कभी ऐसा व्यक्ति निकलेगा जो इनका विरोध करेगा.
अरबस्तानमें महोम्मद साहब हुए. और भारतमें दयानंद सरस्वती हुए. दयानंद सरस्वतीसे पहेले भी कई लोग हुए थे. शंकराचार्यने कर्मकांडका विरोध किया था. भारतमें किसी विद्रोहीने तिरस्कार और तलवारका उपयोग किया नहीं था. क्यों कि भारतमें धर्म-चर्चा एक प्रणाली थी. अरबस्तानमें मोहम्मद साहबके जमानेमें ऐसा कुछ था नहीं. उस समय शासकके हाथमें सर्व सत्ता थी.
मोहम्मद साहबने मूर्त्तिपूजाका और विधियोंका विरोध किया. और वैज्ञानिक तर्कसे सोचनेका आग्रह किया. उस समय जो उच्च लोग थे वे लोग जो अनाचार दुराचार करना चाहते थे वे इश्वरके नामपर करते थे. दारु पीना है? ईश्वरको समर्पित करो और फिर खुद पीओ. जुआ खेलना है? तो ईश्वरके नाम पर करो.
भारतमें भी आजकी तारिखमें ऐसा ही है. कृष्ण भगवानके नाम पर जुआ खेला जाता है. देवीके नाम पर दारु पीया जाता है. ईश्वरके नाम पर भंग पी जाती है. देवदासीके नाम पर व्यभिचार किया जाता है. आचार्य रजनीशने संभोगसे समाधि पुरस्कृत किया है. जब मानव समाजमें समुहोंके बीच सुखोंमे असंतुलन होता है तब दंगा फसाद और विद्रोह होता है.
मोहम्मद साहबने अपने जमानेमें जो जरुरी था वह किया.
इस्लाम यह कहता है
ईश्वर एक है. उसका कोई आकार नहीं. उसकी कोई जाति नहीं. वह किसीका संबंधी नहीं. वह जगतकी हर वस्तुसे नजदिकसे नजदिक है. वह सर्वत्र है और सबकुछ देखता है. वह ज्योतिके रुपमें प्रगट होता है. आपका कर्तव्य है कि आप सिर्फ उसकी ही उपासना करें. यह उपासना नमाजकी विधिके अनुसार करो. और दिनमें पांच बार करो. ईश्वर दयावान है. अगर आप, उनसे, अपने कुकर्मोंकी सच्चे दिलसे माफी मांगोगे तो वह माफ कर देगा.
ईश्वरको ईमान प्रिय है. इसलिये ईमानदार बनो.
वैज्ञानिक अभिगम रक्खो,
आप सुखी है? तो इसका श्रेय ईश्वरको दो.
आपने कुछ अच्छाकाम किया है? तो समझो की ईश्वरने आप पर कृपा है की है, कि उसने इस अच्छे कामके लिये आपको पसंद किया. आप इसका श्रेय ईश्वरको दो.
आप देखो कि आपका पडोसी दुःखी तो नहीं है न? उसको मदद करो. उसको भोजन करानेके बाद आप भोजन करो.
आप संपन्न है तो इसका एक हिस्सा इश्वरको समर्पित करो.
जिसको धनकी जरुरत है उसको धन दो और मदद करो. उससे व्याज मत लो.
अगर कोई गलत रास्ते पर जा रहा है और समझाने पर भी सही रास्ते पर नहीं आता है, तो समझलो कि यह ईश्वर की इच्छा है. ईश्वर उसको गुमराह करेगा और सजा देगा.
ईश्वरने तुम्हारे लिये वृक्षोंपर और पौधोंपर सुंदर भोजन बनाया है. तुम उसको ईश्वरकी कृपाको याद करते करते आनंदसे खाओ. (अगर इनकी कभी कमी पड गई तो) जिंदा रहेनेके लिये फलां फलां प्राणीयोंका मांस इश्वरको समर्पित करके खाओ.
यह है इस्लामके आदेश जो मोहम्मद साहबने अपने लोगोंको राह पर चलनेके लिये बतायें.
और भी कई बाते हैं लेकिन वह सब उस जमानेमें अनुरुप होगी ऐसा प्रस्तूत करने वालोंको लगा होगा इसलिये प्रस्तूत किया होगा. लग्न कैसे करना, किससे करना, कितनी बार करना, कितनोंके साथ करना चाहिये आदि आदि. यह कोई चर्चा और कटूताका विषय बनना नहीं चाहिये.
वैसे तो मनुस्मृतिकी कई बाते हम आज मानते नहीं है.
हिन्दु धर्म क्या है?
सत् एक ही है. वह ब्रह्म है. वह निराकार, निर्विकार और निर्गुण है. वह पूर्ण है. पूर्णमेंसे पूर्ण लेलो तो पूर्ण ही बचता है.
उसको कोई जानता नहीं न तो कोई जान सकता है न कोई वर्णन कर सकता है. जो भी कहो वह ऐसा नहीं है. वह ईन्द्रीयोंसे पर है.
ब्रह्ममेंसे ज्योतिरुप अग्नि निकला और जगत बनाया. यह अग्नि (महोदेवो) ईश्वर है. वह सर्वत्र है और वह ही सब है. वह अग्रमें (आरंभमें) है, मध्यमें है और अंतमें भी वही है.
सब क्रियाओंका कारण है. लेकिन ब्रह्ममेंसे जगत क्यों बना, सिर्फ इसका कारण नहीं है.
ईश्वर ब्रह्म ही है. ईश्वर जगतका संचालन करता है. उसने व्यवस्था बनाई है. और सबको कर्मके अनुसार फल मिलता है.
ईश्वर अनुभूतिका विषय है. भक्ति, कर्म, योग और ज्ञान के द्वारा आप उनको पा सकते है.
आप उसकी किसीभी रुपमें उपासना कर सकते है.
सभी चीजें सजिव है. वनस्पति भी सजीव है. वृक्षमें बीज है और बीजमें वृक्ष है. रसादार फल खाओ और बीजको वृक्ष होने दो. पर्ण खाओ लेकिन वृक्षको जिन्दा रखो. सबको जीनेका अधिकार है. सबका कल्याण हो. सबको शांति हो.
सत्य और अहिंसा अपनानेसे ध्येयकी प्राप्ति होती है.
ईश्वरीय शक्तियोंका आदर करो. और उनको उनका हिस्सा दो. उसके बाद उपभोग करो.
माता प्रथम शक्ति है. द्वीतीय शक्ति पिता है. तृतीय शक्ति जो तुम्हारे घर महेमान आया है वह है. तुम्हारा शिक्षक चतुर्थ शक्ति है. और पंचम शक्ति ईश्वर है.
यह पृथ्वी तुम्हारा कुटुंब है. कोई पराया नहीं है.
तुमने जो काम पसंद किया उसको निभाना तुम्हारा कर्तव्य (धर्म) है. तुमने जिस कामका अभ्यास नहीं किया उस काममें चोंच डालना ठीक नहीं है (अधर्म है). तुमने जिस कामका अभ्यास किया उसमें तुम्हारी मृत्यु हो जाय तो चलेगा. लेकिन अगर तुम अपने केवल स्वार्थको केन्द्रमें रखकर जिसका तुम्हे अभ्यास नहीं उसको करोगे तो समाजके लिये वह भय जनक है.
तुम जो भी कर्म करते हो वह अलिप्त भावसे करो.
कुछ भी तुम्हारा नहीं है. न तुम कुछ लाये हो न तुम कुछ ले जाओगे. तुम तो निमित्त मात्र हो.
तुम कुछ भी करते नहीं हो. सब कुछ ईश्वर करता है. कार्य करनेवाला ईश्वर है, कार्य भी ईश्वर है और क्रिया भी ईश्वर है. हम सब एकमात्र परमात्मा के अंश है. लेकिन अज्ञानताके आवरणके कारण हम अपनेको दुसरोंसे अलग है ऐसा अनुभव करते है.
विगतके लिये पढेः
NOT EVEN TWO. ONE AND ONE ONLY
https://treenetram.wordpress.com/2012/05/08/547/
“जो खुदको भले ही नुकशान हो जाय तो भी दुसरोंके लाभके लिये काम करता है वह सत्पुरुष है.
“जो दुसरोंको नुकशान न हो इस प्रकारसे अपने लाभका काम करता है वह मध्यम कक्षाका पुरुष है.
“जो अपने लाभके लिये दुसरोंका नुकशान करता है वह राक्षस है.
“जो ऐसे ही (निरर्थक ही) दुसरोंको नुकशान करता है वह कौन है वह हमें मालुम नहीं. (भर्तृहरि).
जो उपकार करनेवालेको भी (जनताको) नुकशान पहुंचाके अपना उल्लु सीधा करता है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथी हैं.
देशने नहेरुवीयनोंको क्या क्या नहीं दिया. ६० साल सत्ता दी, अरबों रुपये दिया, अपार सुविधाएं दी, तो भी उन्होने देशको लूटा और देशकी ७० प्रतिशत जनताको गरीब और अनपढ रक्खा, ता कि वह हमेशा उनके उपर आश्रित रहे. ये राक्षसके बाप है.
जो हिन्दु और मुस्लिम जनताके बीचमें जो समस्याएं है वह कैसे दूर की जाय? इन दोनोंको कैसे जोडा जाय?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
smdave1940@yahoo.com
टेग्झः हिन्दु, मुस्लिम, अरबस्तान, विक्रमादित्य, इस्लाम, प्रणाली, समाज, लयबद्ध, आनंद, संवाद, असंतुलन, विद्रोह, प्रतिकार, ईश्वर, शक्ति, युथ, महोम्मद साहब, विज्ञान, ईमान, दयानंद सरस्वती, शंकराचार्य, मूर्त्तिपूजा, दारु, ब्रह्म, जगत, कार्य, फल, व्यवस्था, संचालन, निमित्त, ज्ञान
विस्तृत जानकारी के लिये निम्न लिखित लींकके लेखको पढे.
हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – १
Posted in Uncategorized, tagged अत्याचार, अधिकारी, अफवाह, अवसर, असंतुलन, असत्य, आर्य, इन्दिरा, इस्लाम, ईसाई, औरंगझेब, कोमवाद, जाति, द्रविड, न्याय, प्रजा, बहादुरशाह, भेदभाव, मानसिकता, मुस्लिम, मेकोले, मेक्स मुलर, यातना, लघुमती, वध, विकास, शासक, शाह आयोग, शिक्षण, शियां सुन्नी, शिवाजी, सत्ता, सत्य, सरदार, सार्वभौमत्व, सुबेदार, स्रोत, हिन्दु, १८५७ on May 9, 2014| Leave a Comment »