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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – २

पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – २

दो चूहे मारके बील्ली शेरसे लडने चली

हमारे बुद्धिजीवी नरेन्द्र मोदीको हटाना चाहते है. कैसी है विधिकी वक्रता?

हमारे पूराने कोलमीस्ट जो मोदी फोबीया और बीजेपी फोबीयासे पीडित थे उनका मोदी विरुद्ध लिखना जारी है. लेकिन जैसे हमने पूर्व प्रकरणमें देखाकी  हमारे मीडीया मालिकोंको उनकी संख्या कम पडती है. और आपको तो मालुम ही है कि ये नेतागण जिनमेंसे कई स्वयंको मूर्धन्य मानते है उनमेंसे कई अपनी विद्वत्ता दिखानेको उत्सुक है और कोंगी तो इसमें विशेषज्ञ है कि मीडीयामें कैसे पैसे वितरित किया जाय? आखिर हमने पैसे ईकठ्ठे किये है किसलिये?

हमने यह भी देखा कि यदि वर्नाक्युलर भाषाके (स्थानिक भाषाके) विद्वानोंके लेख कम पडे तो एक भाषाके लेख दुसरी भाषामें भाषांतरित करके भी प्रकाशित किया जा सकता है.

तो ऐसे विद्वान कौन है?

शेखर गुप्ताजी तो है ही. दिलिप सरदेसाई है, चेतान भगत है जो लोग कोंगी भक्तोंकी श्रेणीमें आते हैं. इन्होंने नरेन्द्र मोदीको बदनाम करने की भरपुर कोशिस की थी. जैसे कि सरदेसाईजीने २००२में गुजरात के दंगेके बारेमें कहा था कि “ … पूरा गुजरात दंगोंमें जल रहा है …”.

फिर क्या हुआ? जब नतीजे आये तो पता चला कि कुछ विस्तारमें बीजेपीको अच्छा फायदा हुआ, तो सरदेसाईने कहा कि दंगावाले विस्तारोंमें  मोदीको  फायदा हुआ है. नरेन्द्र मोदीने एक साक्षात्कारमें कहा कि पहेले ये लोग कह रहे थे कि “पूरा गुजरात दंगोसे जल रहा था” तो अब क्यों कह रहे है कि “दंगे वाले हिस्सोंमें ही हमे अधिक बैठके मिलीं?” मतलब कि “मोदी-फोबिया-पीडित” बुद्धिजीवी महानुभाव लोगोंको यह याद नहीं रहेता कि उन्होंने पहेले कौनसा जूठ बोला था. ऐसा एक स्वयं प्रमाणित बुद्धिजीवी और कोंगी हाईकमान्ड द्वारा प्रताडना रुप अपना मंत्री पद खोने वाला है शशि थरुर.

शशि थरुरः

हाँ जी, इस शशि थरुरने कोंगीके महामहिम, अविद्यमान नहेरुकी अर्थ नीति के विरुद्ध, बोला था. शशि थरुरको मंत्री पदसे च्यूत होना पडा था. लेकिन कोंगीयोंमे तो प्रताडनका असर कम समयके लिये रहेता है या रहेता ही नहीं है. क्यों कि;

संस्कृतमें एक श्लोक है;

सारमेयस्य च अश्वस्य, रासभस्य विशेषतः।

मुहूर्तात्‌ परतो नास्ति, प्रहार जनिता व्यथा ॥

(कुत्तेमें और घोडेमें, और खास कर के गधेमें, मार खानेसे हुई पीडा, एक मुहूर्तसे ज्यादा समय नहीं रहेती) कोंगीमें तो ऐसी घटनाके बेसुमार उदाहरण मिलते है. भारतके यह शशि थरुर भी नहेरुवंशकी सेवामें अटल रहे हैं. वैसे तो कई लोग जिनमे स्वयंको महात्मा गांधी वादी प्रमाणित करने वाले भी है. ये लोग भी इन्दिरा गांधी द्वारा प्रताडित है, ये लोग भी प्रताडनाकी व्यथा कभीकी ही भूल गये है और वे मोदी-फोबियासे पीडित है.

ये लोग समज़ते है कि;

“अब तो हमारे मूर्धन्यत्वके अस्तित्व का प्रश्न है. और हमने जो बाल्यकालमें संघको अछूत बनाया था (लेकिन जयप्रकाश नारायणको साथ देनेके लिये हम उनके गले मिले थे वह बात अलग है). जब जयप्रकाश नारायण नहीं रहे तो, और जब ढेबरभाई, कृष्णवदन जोषी जैसे नेतागण १९८०/१९८४में कोंगीमें मिल जाते है तो हम कमसे कम कोंगीके सहायक तो रह ही सकते है न? नवनिर्माण आंदोलन द्वारा विख्यात नेतागण स्वयं, कोंगीको शोभायमान कर रहे है तो हमें कमसे कम कोंगीकी सहायता तो करना ही चाहिये न?

“कोंगीयोंने यदि “घर घर अफज़ल” पैदा करने का और भारतके टूकडे टूकडे करनेका, भारतका सर्वनाश, आदि करनेका स्वप्न दिखाने वालोंका समर्थन किया है तो इससे क्या कोंगी अस्पृष्य बन जायेगी?

“महात्मा गांधीने क्या कहा था? महात्मा गांधीने तो कहा था तूम दुश्मनसे भी प्यार करो (लव धाय एनीमी). महात्मा गांधी तो अस्पृष्यताके विरुद्ध थे. तो हमे अफज़ल प्रेमी गेंग, भारतके टूकडे टूकडे करनेवाली गेंगोंको, जातिवादके आधार पर और धर्म के आधार पर जनताको विभाजित करनेवाली गेंगोंको अस्पृष्य क्यूँ समज़ना? हम असहिष्णु थोडे है? हमें जो कोंगीसे धनलाभ होता है वह क्या कम है? हमें ये सब भूल जाके क्या कृतघ्न बनना है?

सर्वोच्च न्यायालयका आदेशः

सीबीआई, राजिवकुमार (कलकत्ताके पूलिस आयुक्त जो गुमशुदा घोषित हुए थे) के घर गई. फिर शिघ्र ही ममता राजिवकुमारके घर पहूँची साथमे पूलिसकी एक गेंग भी पहूँची. मानो कि (आतंकवादी स्वरुप) सी.बी.आई. राजिवकुमारका एन्काउन्टर करने वाली है.

बादमे  ममताने जो धरना वाली नौटंकी किया, तो सीबीआईको सर्वोच्च न्यायालयमें जाना पडा. क्यूँ कि सीबीआई तो, सर्वोच्च न्यायालयके आदेश के अनुसार, राजिव कुमारसे पूछताछ करने गयी थी.

हमने प्रकरण–१ में, एक सोच और प्रश्न रक्खा था कि क्या सर्वोच्च न्यायालय अनिर्वचनीय है?

“अनिर्वचनीय मणझे काय?”

“अनिर्वचनीय” का अर्थ क्या होता है?

शंकराचार्यने ब्रह्माण्डको अनिर्वचनीय कहा है. इसका तात्पर्य यह है कि आप कितनी ही खोज करो, लेकिन वास्तवमें विश्व कैसा है उसका संपूर्ण ज्ञान आपको नहीं हो सकता.

मराठी लोग, गुजरातीके बारेमें यह सोचते है कि कोई घटना घटनेके पश्चात्‌ “गुजराती” क्या करेगा उसका पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता. गुजराती अनिर्वचनीय है.

उसी प्रकार जैसे कि कोई “पागल”के कभी क्या कर बैठेगा, यानी की पागलके प्रतिभावका अनुमान नहीं लगाया जा सकता, (अनिवार्य रुपसे तो नहीं किन्तु) उसी प्रकार सर्वोच्च अदालत क्या करेगी उसके बारेमें भी पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता.

जिसका पूर्वानुमान न लगाया जा सकता हो, उसको अनिर्वचनीय माना जाता है.   

सर्वोच्च न्यायालयने कहाः

(१) पूलिस आयुक्तको, सीबीआईके समक्ष, उसकी पूछताछमें संपूर्ण सहयोग देना पडेगा,

(२) यदि आयुक्तने दस्तावेजी साक्ष्य (डॉक्युमेन्टरी एवीडन्स) से छेडखानी की होगी या /और उनको नष्ट किया होगा तो हम उसको गंभीरतासे लेंगे. और ऐसे करनेवालोंको उनकी नानी याद करवायेंगे.

(३) (यदि आयुक्तको सीबीआईसे डर लगता है तो और यदि सीबीआई को ममतासे डर लगता है तो)आयुक्तकी पूछताछ शिलोंगमें हो.

ममता तो धरना पर बैठी थी. उसने इस आदेशको सून कर धरना समाप्त कर दिया.

ममताने तो अपने पूर्वालेखके (स्क्रीप्टके) अनुसार, इस आदेशकी घटनाको अनुष्ठानके साथ अपनी विजय के स्वरुपमें घोषित किया. जुलुस निकाला … पुष्प वर्षा करवायी … फुलहार पहेनवाये … पटाखे फोडे … नृत्य करवाये … मानो कि अश्वमेघके अपराजित अश्वका पुनरागमन हुआ.

ये सब कोंगीयोंका संस्कार है. और कोंगीयोंके सहवाससे उनके सांस्कृतिक सहयोगी भी उनके संस्कार आत्मसात्‌ करने लगे हैं. ये ममता और ममताके लोग भी गधोंके साथ रहेनेसे वे लात मारना ही नहीं भोंकना भी सीख गये है.

लालु यादवको जब कारावासकी सज़ा हुई तो उन्होंने भी एक जुलुस निकाला था जैसे कि वे युद्ध भूमिमें जा रहे है. यहाँ पर भी ममताने वैसा ही किया मानो वह केस जित गयी हो और सामनेवाले अपराधी घोषित कर दिया और उसको सज़ा भी मिल गयी हो.

इसके पीछे कौनसी मानसिकता होती है?

यह एक सियासती क्रिडा और चाल है कि अपराधी अपने प्रदर्शन की प्रसिद्धिसे, वास्तविक सत्यको ढक देनेकी कोशिस करता है.

इसका प्रयोजन आमजनता और अबूध जनतामें भ्रम (कन्फ्युज़न) पैदा करना है, ताकि जो अपराधी है उसके अपराधसे जनताका ध्यान हट जाय. वे दिखाना चाहते है कि, अपराधी अब भी लोकप्रिय है और उसके विरुद्ध जो कुछ भी है वे सब जूठ है. यानी कि, शारदा चीट-फंडकी जांचमें, जो महानिदेशक, पूलिस आयुक्त, संसदस्य, विधानसभा सदस्य, मंत्रीयोंकी मिलीभगत का खुलासा हुआ है वह सब जूठ है… सीबीआई संविधानके विरुद्ध कार्यवाही कर रही है. सत्रह लाख लोगोंके, ३५०० करोड रुपये ये लोग जो खा गये है वह सब गलत है.

वैसे तो ये सत्रह लाख लोगोंकी सत्रह लाख कहानीयां होगी.

यदि मीडीया, मानवता लक्षी होता, तो सत्रह लाख लोंगोंमें से कमसे कम सत्रह करुण कहानीयां उपलब्ध करवा सकता था. किन्तु जो मीडीया, कश्मिरके पांच लाख लोगोंकी पांच लाख शारीरिक और जैविक करुणांतिकाओंके प्रति असंवेदनशील बन सकता है, उतना ही नहीं, कश्मिरी हिन्दुओंके नरसंहारके विषयमें उनके (मीडीयाके) कानोंमें जू तक नहीं रेंगती, वह भला इन  बातोंमें क्या अन्वेषण करें? इन बातोंका अवमूल्यांकन तो सामान्यीकरण करके ही होना चाहिये. जैसे कि, “दुनियामें कौन व्यक्ति है जो कभी ठगविद्यासे ठगाया नहीं गया?”

मीडीयामें आप उपरोक्त ठगाईसे पीडितोंकी एक भी बात नहीं देख पाओगे. क्यों कि मीडीयाके लिये तो ममता, केन्द्र सरकार और सी.बी.आई. ही गर्म गर्म मुद्दा है. और इसमें अब चूनावी आयामोंका प्रक्षेपण और उनका बुरा प्रभाव बीजेपी पर कैसे पड सकता है वही उनको दिखाना है. मीडीया कहेता है हमें बस वही दिखाना है जो कोंगी चाहती है. यही हमारा एजन्डा है. ऐसे एजन्डेके कारण हम एक ऋणात्मक वातावरण (माहोल) बनानेकी अधिकतम प्रयत्न करेंगे. फिर माहोल के कारण गत चूनावमें क्या असर पडा था उसका फरेबी विवरण करके मोदीके विरुद्ध माहोल बनायेंगे. हम कृतघ्न और बेईमान थोडे हैं?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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