Posted in Uncategorized, tagged अर्बन नक्षल, अल्पसंख्यक, असहिष्णु, आतंकवादीका मानवाधिकार, आदित्य नाथ योगी, आनंद प्रिय, औरतों पर दुष्कर्म, कर्णयुग्म, कश्मिर, काहेका सुओ मोटो, गुण्डोंका जाल, दिमाग नहीं लगाना, दुष्कर्म, देश द्रोही, धर्म निरपेक्ष, नियम चाहिये, निर्मम हत्या, निवृत्त मुख्य न्यायाधीश, परिभाषा हम्प्टी डम्प्टी, पालघर, प्रच्छन्न दबाव, फर्जी सेक्युलर, बडे बडे वकील, बहुमत, बहुसंख्यक, बुर्ज़वा जैसे थे वादी, भू माफिया, भ्रातृभाव के गुणोंसे लिप्त, मारकर मिटानेवाले, युपीका संस्कार, लव धाय नेबर, लीबरल, लुट्येन गेंग्ज़, वंशवादी पक्ष, वकिलकी प्रज्ञा, वयोवृद्ध संत, शांति प्रिय, शासक पक्ष, श्वानोंकी तरह, संयुक्त राष्ट्र संघ, सुओ मोटो, हम टीवी नहीं देखते, हमसे प्रमाणित, हमारा प्रिय समुदाय, ५ प्रतिशत, ९५ प्रतिशत on October 25, 2020|
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हम लुट्येन गेंगोमेंसे एक है … अंग है
“सुओ मोटो?
यह तो लुट्येन गेंगोंको सहाय करनेके लिये ही आरक्षित है”
हम ही तो लुट्येन गेंगका अभीन्न भाग है …
आप समज़ते क्यूँ नहीं हो?
हम फर्जी सेक्युलर पक्ष बनाते है, हम सरकारी नौकरीके लिये मरते है, यदि कोई आतंकवादी मर गया तो हम उसके मानव हक्कके लिये संयुक्त राष्ट्र संघ और मानव अधिकार सुरक्षा संघ तक पहूँच जाते है,
हमारी (हम्प्टी डम्प्टी प्रकारकी) परिभाषा
भारतके कश्मिरमें यदि ९५ प्रतिशत जनसंख्या वालोंको हम अल्पसंख्यक मानते है,
वहाँकी ५ प्रतिशत जनसंख्या वाले समुदायको हम बहुसंख्यक मानते है,
हमने इन ५ प्रतिशतकी हजारों औरतोंके उपर दुष्कर्म किया … हमने, इनकी हजारोंकी खुले आम हत्या की … हमने लाखोंको बेघर किया … हमारे कानोमें जू तक नहीं रेंगती, बकवास है सुओ मोटो …
किन्तु हाँ, यदि हमसे प्रमाणित इन ९५ प्रतिशत जनसंख्या वाले कश्मिरमें, कोई शासक पक्ष, जनतंत्रकी स्थापना करें तो हमारे हरेकके कर्ण–युग्म, श्वानोंकी तरह, उंचे हो जाते है. इतना ही नहीं हम एकसुरमें सहगान करके, मौका मिले या न मिले, आपके शासकको काट भी लेतें है.
हमारे पास क्या कया नहीं है?
हमारे पास सब कुछ है,
हमारे पास बडे बडे वकील है,
हमारे पास भू–माफिया है,
हमारे पास ड्रग माफिया है,
हमारे पास गुन्डोंका जाल है,
हमारे पास, केवल मरनेका ठान कर, इस दुनियामें आने वाले, जिनको हमने शांति प्रिय, आनंद प्रिय, भ्रातृभाव के गुणोंसे लिप्त … आदि जैसे अनेक गुणोंसे प्रमाणित किया है, वे है. ये लोग नीले रंगको प्यार करने वाला जन समूह है,
हमारे पास, केवल ध्येय प्राप्तिके लिये, मार मिटाने (किसीको भी मारकर मिटाने) वाले लाल रंगका, प्यारा जन समूह है,
हमारे पास केवल सत्ता और संपत्तिको पानेके लिये, चाहे देश रसाताल क्यों न होय जाय, ऐसा ठानने वाले, जिनका सारा अंग विषमय है, ऐसे वंशवादी पक्ष भी है,
हम हर प्रकारसे कोमवादसे लिप्त होते हुए भी है, हम अपनोंसे प्रमाणित धर्मनिरपेक्ष और लीबरल है,
अरे हमारा सांस्कृतिक क्षेत्र, केवल भारत ही नहीं पाकिस्तान और चीन ही नहीं, युएसए और यु.के. तक विस्तरित है. आप हमें देशद्रोही (लुट्येन गेंगवाले), प्रतिशोधवादी, पूर्वग्रह वाले और भ्रष्ट माना करो, किन्तु हम, स्वयं प्रमाणित जनतंत्र वादी, मानवता वादी, उदारमतवादी है.
अरे आपको मालुम नहीं … हमे कोई फर्क नहीं पडता, चाहे कोई सर्वोच्च न्यायालयका निवृत्त मुख्य न्यायाधीश हमें लुट्येनगेंग वाले कहें. हमें क्या? हमें कोई फर्क नहीं पडता.
आदित्यनाथ योगीजी महाराज, आप हमें कोई भी नामसे बुलाओ, चाहे न्यायालय ही क्यों नहीं?
अरे योगीजी, क्या आप युपीके संस्कारमें परिवर्तित करना चाहते हो?
अबे बच्चु, हमसे पंगा मत लो. युपीका संस्कार तो जो १९५०से हमारे कोंगीयों द्वारा और उनके सांस्कृतिक साथीयोंके द्वारा सुसर्जित है. हम वही रखने वाले है.
हम परिवर्तनमें मानते नहीं. हम “जैसे थे वादी” है. हम बुर्ज़वा लोग है. लेकिन हम आपको ही बुर्ज़वा कहेंगे और मीडीया वाले भी ऐसा ही कहेंगे,
सुओ मोटो … ?
यदि आपने दुष्कर्म करनेवालोंकी छवी मुख्य स्थानों पर प्रदर्शित की तो हम आपको पूछेंगे ही, कि नियम कहां है? क्यों कि हम तो केवल नियमसे ही चलते है. नियम नहीं तो कुछ भी नहीं.
हमें तो नियम चाहिये. हमें अधिक सोचनेकी आदत नहीं. हम दिमाग चलानेमें मानते नही. वकीलको किस लिये रक्खा है? यदि हम दिमाग चलायेंगे तो वकिल क्या करेगा?
हम समाचार पत्र नहीं पढते है, हम टीवी चेनल नहीं देखते हैं, हम कानून भी नहीं पढते है. ऐसा आपको कभी कभी लगता होगा. अरे हम तो अपने आप अपना निर्णय भी नहीं लिखते. या तो हमारा स्टेनो लिखता है, या तो कोई और लिखता है जिसका हमारे पर प्रच्छन्न दबाव है.. अरे हम तो कभी कभी सुओ मोटो भी किसीकी प्रच्छन्न अनुज्ञासे लेते है.
काहेका सुओ मोटो … ?
पालघरमें, शस्त्रसे सुसज्ज दर्जनें पूलिस थीं … पूलिस अधिकारी थे … एन.सी.पी. का नेता था … फिर भी एक अफवाह के फर्जी नाम पर दो हिन्दु संतोकी हत्या की. जी हाँ हम लुट्येन गेंगके सदस्य कुछ भी कर सकते है. और खास तौर पर जब हमारा शासन होता तब तो अवश्य ही करते हैं.
हमारे प्रिय समुदायके एक जुथ ने (जिनको हम “लव धाय नेबर” वाला जुथ कहेते हैं) हिन्दुके दो संतोंको मार डाला जिनमें एक संत वयोवृद्ध था,
तो क्या हुआ?
उसके ड्राईवरको भी तो मारा है. ऐसी निर्मम हत्या करना हमारे लिये आम बात है. ड्राईवरको भी तो मारा है. उसका तो आप लोग कुछ बोलते नहीं है. हिन्दुओंके संतोको मारा … हिन्दुओंके संतोंको मारा … ऐसा ही आप लोग बोला करते है. आप लोगोंको ड्राईवरको जो मारा, उसका तो केवल उल्लेख करके चूप हो जाते है. आप हिन्दु लोग असहिष्णु ही नहीं, संकूचित मानसिकता वाले भी है.
अरे भाई, न्यायालय इसमें क्या करें !! हम तो लुट्येन गेंगके वकीलकी प्रज्ञा पर निर्भर है. वह यदि हमारे हिसाबसे जोरदार तर्क करे तो हमे तो उपरोक्त अभियुक्तोंको जमानत देनी ही पडेगी न?
अरे वाह! आप कैसी बातें करते है?
आप हमसे प्रश्न करते हैं कि “यदि हमने ये जिनके उपर हत्याका मामला दर्ज है उनको जमानत दे दी तो अर्णव गोस्वामीके सहायकोंको क्यूँ जमानत नहीं दी?
अरे भैया, अर्णव गोस्वामीने क्या गुस्ताखी की थी मालुम है आपको?
अर्णव गोस्वामीके सहायक तो महाराष्ट्रके मुख्य मंत्रीके करनाल स्थित फार्महाउस पर गये थे. और उस फार्महाउसके चौकीदारसे प्रश्न कर रहे थे कि यह फार्म हाउस किसका है?
मुख्य मंत्रीके उपर तो शासनकी धूरा है. जनतंत्रकी परिभाषा आपको ज्ञात है या नहीं? जनतंत्रमें जनताके प्रतिनिधिके विशेष अधिकार होते है. और मुख्यमंत्री तो ठहेरा सरकारका उच्च पदधारी.
क्या अर्णव गोस्वामीके कोई जनतंत्र प्रतिनिधि हो ऐसा मित्र नहीं है? प्रश्न पूछना है तो विधानसभामें पूछो. चौकीदारसे प्रश्न पूछनेकी क्या आवश्यकता है? तुम लोगोंको जनतंत्र क्या होता है वह मालुम ही नहीं … अरे भैया …, अब तो फर्म हाउस किसका था वह पता चल गया न … मुख्य मंत्रीके फार्महाउस पर जाके चौकीदारसे प्रश्न करने वाले को जमानत कैसे मिल सकती है … !! क्या वह जनताका अपमान नहीं होगा …? जनताके प्रतिनिधिका और विधान सभामें बहुमत होनेवाली सरकारके मुखीयाका अपमान करना जनताका ही अपमान है … हम जनताको अपमानित करनेवालोंको जमानत कैसे देख सकते … ? बोलो बोलो … !! चूप क्यूँ हो गये ? … बडे आये है हमें शिखाने वाले … !!
अर्णव गोस्वामीको हमने दश मीनटमें ही विधान सभा समक्ष उपस्थित होनेका आदेश दे दिया … !! देखा न हमारा कमाल … !
सुओ मोटो … काहेका सुओ मोटो … ?
हम तो असंभव करनेका भी आदेश देते है. देख लिया न …!! जो बात इन्दिरा गांधीके दिमागके बसकी बात नहीं थी वह भी हमने करके दिखायी … और वह भी बिना आपात्काल घोषित किये … ?
सुओ मोटो … ? काहेका सुओ मोटो … !!
अरे भैया अभी तो तुमने हमारा जनतंत्रका प्यार और नियमोंके प्रति हमारी प्रतिबद्धता देखा नहीं … हम तो हजार हजार एफ.आई.आर., अर्णवके हजार हजार सहयोगीयों पर दर्ज करेंगे … उनके दायें, बायें, उपर, नीचे स्थित पडौशीयोंसे ले कर, फोन करनेवालोंसे लेकर, फोन रीसीव करनेवालों तक, सबकी पूछताछ करेंगे … अर्णव और उसके सहायकोंको त्राही माम् त्राही माम् बुलवा देंगे …
सुओ मोटो … ? काहेका सुओ मोटो … !!
हम आखिरमें सरकार है. हमारी जनताके प्रति, प्रतिबद्धता होती है … समज़े न समज़े … !!
कंगना रणौत?
कंगना रणौतका हमने क्या किया ? देख लिया न … !!
जब यह कंगना, मुंबईसे बाहर थी तब ही हमने उसको, २४ घंटेकी नोटीस देदी कि जवाब देदो …
(वैसे तो उसने हमारी पहेलेकी नोटीसका जवाब दे ही दिया था … लेकिन हमारी सरकार तो सरकार है. सरकारमें तो पूरी की पूरी फाईले गुम हो जाती है, तो एक पत्र को गुम कर देना क्या बडी बात है!)
वह कंगनाबाई हमें जवाब न दें,और वह न्यायालयमें जा के स्टे ओर्डर लावे, उससे पहेले ही हमने, यंत्र सरंजाम ला के, उसका मकान तोड दिया. हमने कह दिया कि उसके मकानमें अवैध निर्माण कार्य हुआ था और हो रहा था.
क्या हम जूठ बोलते है? हमने जो कहा वही सच है. यह बात तो न्यायालयको भी मानना पडेगा. क्यों कि राजपत्रित अधिकारीसे भी हम यही बात बुलवायेंगे. संविधानमें ही लिखा है कि राजपत्रित अधिकारी जो बोले वह सत्य माना जायेगा.
दाउदके मकान क्यूँ नहीं तोडे ऐसा आप के मनमें है न?
अरे वह तो हमारे मातोश्री, पितोश्री जैसे आकोश्री है.
वोरा कमीशनका रीपोर्ट मांगने की गुंजाईश है आपमें? आप तो बडे नादान है.
हम इस कंगना रणौत, जो महाराणी लक्ष्मीबाई बननेका घमंड रखती है उसको तो हम खुले आम कहेते है कि,
तुम्हे सुरक्षा काहेकी? तुम्हारीतो टांग और कमर तोड देंगे यदि मुंबईमें पैर रक्खा तो …
हम मराठी है … मुंम्बई महाराष्ट्रमें है … मुंबईका अपमान … महाराष्ट्रका अपमान है … महाराष्ट्रका अपमान शिवाजी महाराजका अपमान है …
(शिवाजी महाराज एक ही तो बचे है हमारे पास … हमारी केवल शिवाजी महाराजसे ही बनती है.)
सुओ मोटो ? काहेका सुओ मोटो …!!
अरे आपने देखा नहीं कि हमारे पुलिस आयुक्तसे हमने क्या क्या बुलवाया?
सुओ मोटो ? काहेका सुओ मोटो …!!
जब आम आदमी पक्षने दिल्लीमें खुले आम अफवाह फैलाई कि यु.पी. – बिहारके श्रमजीवीयोंके जानेके लिये बसें तयार है सब वहाँ इकट्ठा हो जाओ …
वैसे ही शरदके पक्षके नेताने बांद्रा पश्चिमकी मस्जिदके पास यु.पी. – बिहारके श्रमजीवीयोंके जानेके लिये रेल्वे ट्रेन तयार है ऐसी अफवाहें फैलाई,
और प्रयंका वाड्राने यु.पी. – बिहारके श्रमजीवीयोंके जानेके लिये १०० बसें तयार है ऐसी अफवाह फैलाई,
दिल्लीमें नीजामुद्दीन मर्कज़में विदेशी मुस्लिम धर्मगुरुओंने अधिवेशन बुलाया और खुले आम कहा कि कोरोना मुस्लिमोंका कुछ बिगाडने वाला नहीं है, वह तो खुदाकी देन है काफिरोंको मारनेकी …
और इस प्रकार, भारत देशमें खुले आम हमने कोरोनाको फैलाया और देशके विकासशील अर्थतंत्रको पटरी परसे उतार दिया ……
सुओ मोटो ? काहेका सुओ मोटो …!!
शिरीष मोहनलाल दवे
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