यदि मुसलमान बेवफा होगा तो हकुमत गोली मारेगी
यह उच्चारण गांधीजीका है. गांधीजीने यह बात २५ नवेम्बर १९४७ बृहस्पति वार को न्यु दिल्ही बिरला हाउससे कही थी.
अनपढ सी कोंगीको, चाहिये कि वह गांधीजीको पढें. कोंगीके सांस्कृतिक साथी, लुटीयन गेंग, स्थानिक आतंकवादी, उनकी सहायक गेंगोंके स्वयं प्रमाणित मूर्धन्य लोगोंको भी गांधीजीको पढना चाहिये. इन लोगोंको “दिल्हीमें गांधीजी” पार्ट-१ और पार्ट-२ पुस्तकको तो कमसे कम पढना ही चाहिये ताकि वे गांधीजीका नाम लेना बंद करे. मनुबेन गांधीने, महात्मा गांधीकी दिन प्रतिदिन की दिनचर्या (रोजनीशी) और उच्चारणके रुपमें पुस्तकको लिखा है. मनुबेन गांधी, गांधीजीकी अंतेवासी थीं. उन्होंने इस पुस्तकको लिखा है. नवजीवन पब्लीकेशन है.
क्या गांधीजी कोमवादी थे?
लुटीयन गेंगोंके तर्क के अधार पर तो गांधीजी सरासर कोमवादी थे. उन्होने कहा कि मुसलमान यदि गद्दार हुआ तो हकुमत उसको गोली मारेगी. आप देखते है कि गांधीजीने केवल मुसलमानका उल्लेख किया है. उन्होंने ऐसा तो नहीं कहा कि सरकार को हर गद्दारको गोली मारना है. महापुरुष लोग तो एक एक शब्द विचार कर कर के बोलते है. मानो कि उनको संविधान लिखना है. प्रत्येक शब्दकी किमत होती है.
अब प्रवर्तमान महाजन लोग, जो सी.ए.ए.के विषय में ऐसा बोलते हैं कि “बीजेपी तो कोमवादी है. क्यों कि उसने तो सी.ए.ए.में पाकिस्तानकी सरकार द्वारा धर्मके आधार पर प्रताडित हिन्दु, सिख, …. आदि के लिये ही सामुहिक प्रक्रियासे नागरिकता देनेका प्रावधान किया है. यह तो मुस्लिमों (पाकिस्तान स्थित)के उपर किया गया भारत सरकार का सरासर अन्याय है, चाहे इन्ही मुसलमानोंको नागरिकता देने के लिये अन्य प्रावधानीय व्यवस्था क्यूँ न हो.”
गांधीजीको तब नहीं तो अब ही सही
क्या गांधीजीको तब नहीं तो अब ही सही, चाहे गांधीजी यदि विद्यमान नहीं है, तो वे नहीं तो उनकी छवी ही सही, कोंगी महाजन गोली मारेंगे? जी हाँ. कोंगी और उनकी गेंगोंको आगे आना ही चाहिये यदि वे अपने तर्क पर कायम है.
आपको हँसी आयी होगी. अवश्य. क्यों कि गांधीजीकी छवीको गोली मारने के लिये ये कोंगी या तो उनके सांस्कृतिक साथीयोंमेसे कोई भी आगे नहीं आयेगा, चाहे उसने/उन्होंने गांधीजीके सिद्धांतोकी कितनी ही अवहेलना करके गांधीजीके उपर मनोमन कितनी ही बार गोलियाँ क्यूँ न चलायी हो.
गांधीजी तो आर्ष दृष्टा थे. उनको ठीक तरह से मालुम था कि नहेरुकी कोंग्रेस सत्ताके लिये कुछ भी कर सकती है. किन्तु बेचारे गांधीके पास ऐसी आर्ष दृष्टि नहीं थी कि वे यह सोच सके के नहेरुकी कोंग्रेस सत्ताके लिये गद्दारी भी कर सकती है.
हर गद्दारको गोली मारो.
गोली मारनेकी क्रियाको हमें सेक्युलर करना पडेगा.
केवल मुस्लिम ही, गद्दार नहीं होते हैं. कई और भी गद्दार होते है.
गांधीजीके उपरोक्त कथन को सेक्युलराईज़ करना पडेगा.
हर गद्दारको गोली मारो,
उन सब गद्दारोंको गोली मारो, चाहे वह नहेरुकी कोंग्रेसका सदस्य हो, आम पक्ष का सदस्य हो, साम्यवादी विचारधारा वाला हो, स्थानिक आतंकवादी हो, आतंकवादीयोंका सहायक हो, मूर्धन्य हो, मीडीया कर्मी हो, कोलमीस्ट हो, सेना पर पत्थरबाजी करनार हो … कोई भी व्यक्ति यदि गद्दार हो, उसको गोलीसे उडा दो. यही सच्चा महात्मा गांधीवाद है. महात्मा गांधीके सिद्धांतो के अनुसार देशकी सुरक्षा सर्व प्रथम है
गांधीजी खुद वकिल थे.
जब भी वकिल कोई दस्तावेज तैयार करता है तो, जो भी शब्दका प्रयोग करता है उसकी परिभाषा भी लिखता है. यदि कोई शब्दकी परिभाषा नहीं लिखी तो उसका शब्दकोषका अर्थ ग्रहण करना पडता है. कुछ महाशयोंको इस बातका ज्ञान नहीं होता है और वे बोल उठते है कि क्या उनकी उस शब्दकी बनायी परिभाषा अंतीम है? जी हाँ. यदि वकिलने या और किसीने भी, कोई शब्द के प्रयोग करनेसे पहेले उसकी परिभाषा बता दी, तो वही परिभाषा न्यायालयको भी मान्य करना पडता है. इसकी सीमा उस दस्तावेज तक सीमित है. एक बात अवश्य है कि वह परिभाषा हम्प्टी डम्प्टी की न हो. जैसे कि इन्दिरा गांधीने कहा हमारा ध्येय सबसे नम्र व्यवहार और आचारणमें उसने हजारोंको बिना कारण बताएं कारावासमें भेज दिया था. वैसे तो उसने व्याख्या भी नहीं की थी.
उसी प्रकार गांधीजीने यदि, अपनी अहिंसाकी परिभाषा कर दी, तो गांधीजीके सामने वही परिभाषा चलेगी. यानी कि कमसे कम हिंसा, वह है अहिंसा.
कोरोना वायरसकी महामारी और सरकारके आदेश
भारत सरकारने तो आदेश घोषित कर दिया कि २१ दिनतक जहाँ भी हो उस स्थान पर ही रहो. उनके मालिकोंको कहा कि उनका वेतन मत काटो. यदि बाहर जाना है तो केवल राशन, दूध और शब्जी के लिये ही निकलो. यह आदेश संचारबंधीसे भी अधिक कठोर है.
भारतमें एक खास वर्ग है जिसमें कोंगी भी सामेल है, उसका ध्येय एक मात्र ही है, कि प्रवर्तमान बीजेपी सरकारको हर हालतमें बदनाम करो चाहे जूठ ही बोलना क्यूँ न पडे, चाहे गद्दारी ही क्यूँ न करनी पडे, चाहे देशमें करोडों लोग ही क्यूँ न मर जाय? यदि इस सरकारको हटाना है तो हमें इस सरकारके विरुद्ध व्यापक आंदोलन करना पडेगा. हम सरकारसे हजार प्रश्न करते रहेंगे, हमारे वकिल लोग पी.आई.एल. के साथ न्यायालयमें जाते रहेंगे, हम अर्बन नक्षलनेता बनेंगे, मुस्लिम बिरादर हिंसा पर उतरेंगे और हम उनका वितंडावादसे बचाव करते रहेंगे.
लुटीयन गेंग सोचती है कि “पूरानी बातें जानने वाले मूर्धन्य और कोलमीस्ट्स या तो वे खुदाके प्यारे हो गये है, या उनको स्मृति दोष भी हो सकता है, या तो वे अपनी तटस्थता सिद्ध करनेकी धूनमें प्रमाणभान खो चूके है. उनको पथभ्रष्ट करना सरल ही है. जो इक्के दुक्के बचे उनको तो कौन पूछता ही है. जब ख्यातनाम महानुभावोंका यह हाल है तो आम जनता क्या चीज़ है. आम जनता को तो असंमंजसमें डालना आसान है.”
बीजेपी सरकार द्वारा अनुच्छेद ३७० / ३५ए के हटानेसे इस लुटीयन गेंग के होश उड गये है. आतंकवाद पर सरकारने पर्याप्त अंकुश पा लिया है. अब इस लुटीयन गेंगके सदस्योंको आतंकीयोंसे पर्याप्त मदद नहीं मिलने वाली है. लेकिन पाकिस्तान के नेताओंने कई बार कहा है कि पाकिस्तानकी ताकत, पाकिस्तानके जो परमाणु बॉम्ब है, वह नहीं है, लेकिन भारतमें बसे मुस्लिम है. तो लुटीयन गेंगने सोचा अरे भाई, इस बेवकुफ पाकिस्तानी नेताओंको जो बात मालुम है वह हमारे दिमागमें क्यूँ नहीं आयीं?
हवाला निष्णात यह लुटीयन गेंग
हवाला निष्णात यह लुटीयन गेंगने अब सीना तान लिया है. अफवाहे फैलाओ, मुसलमानोंको डराओ. दिल्लीके चूनावमें केज्रीवालने वही किया था. उसने मुस्लिमोंको घर घर जाके कहा कि आपका दुश्मन नरेन्द्र मोदी, संविधान बदलने वाला है. बीजेपीको हराना अनिवार्य है. केज्रीवालने मुस्लिम औरतों द्वारा, सी.ए.ए.के विरुद्ध शाहीन बाग करवाया. व्युहरचना करके आगजनी करवाया, हत्याएं करवायीं, लेकिन विदेशमें प्रचार ऐसा करवाया कि यह सब आगजनी हिन्दुओंने की.
केज्रीवालने कौनसी गद्दारी नहीं की एक संशोधनका विषय
केज्रीवालने कोरोनाको अधिक फैलाने के लिये रातको युपी-बिहारके श्रमिकोंको जगाया और कहा कि यह लोकडाउन तो लंबा होनेवाला है. तुम्हारे लिये युपी-बिहारकी सीमा तक जानेके लिये डीडी-बसें तयार है. तुम चले जाओ. केज्रीवालने कोरोना फैलाने का यह तरिका उपयोगमें लिया. सारे श्रमिकोंके लिये बसें तो पर्याप्त नहीं हो सकती. तो बडी मात्रामें बाकीके श्रमिक पैदल चल पडे.
लुटीयन गेंगोंको तो सुनहरा मौका मिल गया. कि देखो बेचारे क्षुधातुर, तृषातुर गरीब श्रमिक पैदल चल पडे है. बीजेपीको उनके दुःख दर्दका खयाल ही नहीं है.
इसी समय दरम्यान, योजना अनुसार विदेशसे तबलीघी जमातवाले मुस्लिम धर्मके प्रचारक आये हुए थे. वे कोरोनाके आयोजनमें पड गये. उस समय दुनियामें कोरोना वायरस प्रसारित था. एक महा संमेलन चालु था. पुरा गेम प्लान बाहर आना बाकी है. दिल्ली और देशमें योजनाबद्ध रुपसे दंगा फैलाना और कोरोना वायरस देशमें दूर दूर तक इन मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा फैलाना यह उन गेंगोंका काम था.
कोरोनाके कारण तो शाहीनबाग प्रदर्शन तो रोक देना पडा था, लेकिन मुस्लिम नेताओंने, मुस्लिमोंको उकसाया कि कोरोना तो खुदाकी देन है और उसका काम बिन-मुस्लिमोंको खतम करना है. यह खुदाका आदेश है. इस लिये सामुहिक नमाज़ पढो, सामुहिक खाना खाओ, गले मिलो और सरकारके आदेशको मत मानो. सरकारसे बडा खुदा है. और कोरोना मुस्लिमोंका कुछ भी बिगाडने वाला नहीं है. कोरोना फैलाओ. कैसे कोरोना फैलाना उसकी कई वीडीयो क्लीप सोसीयल मीडीया पर उपलब्ध है.
सरकारने अपना राजधर्म निभाया. कितने मुस्लिम लोग कहाँसे आये थे, कितने धर्मगुरु किन किन देशोंसे आये थे. वे कहाँ कहाँ गये है. कौनसे टाईपके वीसा पर आये थे, सब लोगोंको ट्रेस-आउट किया जा रहा है. सबका कोरोना संक्रमणका टेस्ट हो रहा है. कई सारे मुस्लिम कोरोना संक्रमित पाये गये है. और भी कोरोना संक्रमित मिलने वाले है. कहा जाता है अधिकतर कोरोना संक्रमित होनेका कारण ये मुस्लिम लोग और उनके धर्मगुरु है. ये लोग अब क्वारेन्टाईन में रक्खे गये है. लेकिन फिर भी देखो. ये लोग सरकारके आदेशोंका पालन नही करते है. वे इकठ्ठे होते है, समूहमें नमाज़ पढते है, चिकित्सक स्टाफको सहयोग नहीं देते है, ये सब बातें तो छोडो, ये लोग जहाँ तहाँ थूंकते है, ये लोग चिकित्सक स्टाफके उपर भी थूंकते है, ये लोग परिचारिकाओंसे अभद्र चेष्टाएं करते है, ये लोग अभद्र शब्दप्रयोग करते है, इनमेंसे कई, नंगा बनकर घुमते है, …… इनसे अधिक अघटित व्यवहार कोई क्या कर सकता है? इनमें केवल विदेशी ही नहीं है. देशी मुस्लिम भी है.
सोसीयल मीडीया पर, इन लोगोंके वैचारिक स्तरका, मुस्लिमोंकी धर्मांधताकी मात्रा कहां तक पहोंच गयी है उनकी अगणित प्रमाणित वीडीयो क्लीप उपलब्ध है.
लेकिन हमारी लुटीयन गेंगके लोग इन घटनाओं पर गद्दारी मौन धारण किये हुए है. इन लोगोंके हिसाबसे ये लोग नरेन्द्र मोदीके लोक-आउटके कारण निर्दोष फंसे हुए लोग है. ये तो विद्वान, मूर्धन्य
त्यागी, अमन परस्त और शांतिके दूत है.
हम यह भी जानते है कि कश्मिमें आतंकवादीयोके साथ मूठभेडमें व्यस्त हमारे जवानों पर पत्थरबाजी करने वाले, दाढीवाले मुस्लिम लडके मासुम बच्चे थे. जिनको समज़ानेके लिये महात्मा गांधीके तथा-कथित और स्वयंप्रमाणित धरोहर वाला एक भी कोंगीका नेता या कश्मिरी नेता आया नहीं था. और आये भी कैसे? जब ५०००००+ कश्मिरी हिन्दुओ पर कश्मिर के मुसलमानोने आतंकवादीयोंके साथ मिलकर आतंक फैलाया और हजारोंकी कत्ल करके उनको भगाया तब ये फारुख और ओमर कश्मिर छोडके भाग गये थे. यह है उनकी असंवेदनशीलता की परिसीमा. वास्तवमें ये परिस्थित उनके ही शासनकी ही प्रोडक्ट थी और है.
क्या इस्लाम ऐसा है?
तारिक फतह, हस्सन निसार, आरिफ मोहम्मद खान, मुख्तार, अब्बास नक्वी, सइद शाह नवाज़ हुसैन, एम. जे. अकबर. …. आदिका इस्लाम जो कहेते है कि कुरानका इस्लाम है,
लेकिन इस इस्लामको कौन मानता है?
कोई नहीं. क्यों कि कोई मुसलमान डोक्टरोंको और परिरिकाओंको बचाने नहीं आया, लेकिन ढेर सारे, पत्थर बाज आ गये और हमला किया. पुलिस पर भी और उनके वाहनों पर भी पत्थरबाजोंने हमला कर उनको भगा दिया. क्यों कि वे लोग मुस्लिमोंकी जांच करने आये थे कि उनमें कोई कोरोनाग्रस्त है या नहीं. ऐसी घटनाएं कई जगह हुई.
धर्मकी पहेचान वास्तवमें तो उस धर्मकी आम जनता कैसे आचरण करती है और वह भी आपत्तिकालमें कैसा आचरण करती है वह ही है.
अभी भी नरेन्द्र मोदी ने अपनी आशा नहीं खोई है. उन्होंने तबलीघी जमातके मकानमें इन मुस्लिमोंको समज़ानेके लिये अजित दोवल को भेजा. क्या यह आवश्यक था? जरा भी नहीं. वास्तवमें यह मामला तो कानून और व्यवस्था का है. कानून के सामने सब समान है. इसमें कोई भी छूट, किसीको भी नहीं देना चाहिये. तभी ये मुस्लिम लोग सीधा चलेंगे.
कोंगीने मुस्लिमोंकी आदतें बिगाडी है और भारतकी खास करके हिन्दु जनता उसको भुगत रही है. यदि कोंगीनेताओंके और उनके सांस्कृतिक साथीयोंके विरुद्ध चल रहे अपराधी मामले न्यायालयमें घोंघेकी (स्नेईल ) गति से ही चलते रहेंगे तो वे तो आश्वस्त है कि मरते दम तक उनको कुछ होनेवाला नहीं है. कोंगीओंने ७० सालके शासन दरम्यान व्यवस्था ही ऐसी बनायी है कि “पैसेसे समर्थ” यानी कि समरथको नहीं दोष गुंसाई. सत्ता चली जाय लेकिन संपत्ति रहे तो निरंकुश ही रहो. आपका बाल तक बांका होनेवाला नहीं है. आप अपना आतंकवादी और गुन्डागर्दीका नेटवर्क फैलाते रहो. मुसलमानोंकी तरह.
शिरीष मोहनलाल दवे