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Archive for May, 2015

नहेरुवीयन कोंग्रेसका वानरपन या विकास यज्ञमें हड्डीयां?

जब हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका नाम लेते हैं तब हमें उनमें उनके सांस्कृतिक साथी पक्ष, ममता, माया, जया, लालु, करुणा, मुल्लायम, फारुख, आदि सभीको संम्मिलित समझना है. क्यों कि ये सब उनके सांस्कृतिक साथी है, जिनका उद्देश केवल येन केन प्रकारेण पैसा बनाना है, चाहे देशको कितना ही हानि क्यूं न हो. तदुपरांत सत्ताका दुरुपयोग भी करना ताकि अपने देशी विदेशी साथीयोंके साथ जो ठग विद्या द्वारा असामाजिक और सहदुःष्कर्म किये है उनसे उनकी भी रक्षा की जा सके. जैसेकी खुदके नेताओं अतिरिक्त इनकी जैसे कि धरम तेजा, मुंद्रा, सुकर बखीया, युसुफ पटेल, दाउद, एन्डरसन, क्वाट्रोची, वाड्रा आदिकी भी रक्षा करनी होती है.

किन्तु अभी तो हम वार्ता करेंगे भूमि अधिग्रहण विधेयक प्रस्तावकीः

भूमि विषयक और स्थावर संपत्ति विषयक समस्याओंका समाधान हो सकता है.

भूमि विषयक मानसिकता क्या है?

प्रणालीगत मानसिकता क्या है?

१ भारत एक कृषिप्रधान देश है,

२ किसान जगतका तात है,

३ किसान गरीब है,

४ भारत एक ग्राम्य संस्कृति वाला देश है.

५ ग्राम्य संस्कृति भारतकी धरोहर है,

६ भारत अपनी धरोहरका त्याग नहीं कर सकता.

यह ग्राम्य संस्कृति क्या है?

७ ग्राम्यप्रजा सीधे सादे प्राकृतिक वातावरणमें रहेती है,

८ उसकी प्राकृतिकताको हमें नष्ट नहीं करना है,

९ गांवमें बैल, गैया, भैंस, बकरी, गधा आदि मनुष्य समाजके उपर आश्रित पशुधन होता है,

गांवमें बैलगाडीयां होती है,

१० गौचर की भूमि होती है, पेड होते हैं, खेत होते है, गृह उद्योग होते है, आदि आदि

११ अब शासनका धर्म बनता है कि शासन ग्राम्य संस्कृतकी रक्षा करें. हां इतना परिवर्तन जरुर करें कि, उनको विद्युत उर्जा घरमें, ग्राम्य मार्ग पर, खेतमें भी मिलें.

१२ शासनका धर्म यह भी है कि उनको पीनेका शुद्ध पानी और खेतके लिये अदुषित पानी भी मिले, अन्न पकानेके लिये ईंधन वायु भी मिले. आवश्यकता होने पर उसको ऋण भी प्राप्त करवाया जाय.

१३ वैसे तो इनमेंसे कई चिजें ग्राम्य संस्कृतिकी धरोहर नहीं है, फिर भी शासनको सिर्फ नगरोंका ही विकास नहीं करना है, किन्तु ग्राम्यप्रजाका भी विकास करना है. इसके अतिरिक्त हमारी ग्राम्य संस्कृतिकी भी रक्षा करना है. इन सबमें किसानकी भूमिकाको उपेक्षित करना नहीं है.

१४ इसी प्रकार हमारी वन्य संस्कृतिकी भी रक्षा करना है,

यह वन्यसंस्कृति क्या है?

१५ वन्य संस्कृतिमें छोटे बडे वृक्ष है, वनवासी होते है, जो वन्य उपज पर अपना निर्वाह करते है. ये भी हमारी भारतीय संस्कृतिका एक अविभाज्य अंग है. हमें उनकी संस्कृतिकी भी रक्षा करनी है. हमें इन सबको शिक्षित भी करना है.

क्यों कि भारतीय संस्कृति महान है.

अवश्य हम महान है या थे. किन्तु हमे निर्णय करना पडेगा कि

१ हमें किसानोंके और वनवासीयोंके आर्थिक स्तरको उंचे लाना है या नहीं?

२ हमें उनको स्वावलंबी करना है या नहीं?

३ हमें ग्राम्य और वनवासी जनताको सरकार पर ही अवलंबित रहें ऐसा ही करना है या उसको इसमेंसे मूक्त भी करना है?

याद करो.

३०० वर्ष इसा पूर्वसे लेकर इ.सन. १७०० वर्ष तकके विदेशी यात्रीयोंने भारतके बारेमें लिखा है कि, भारतमें कभी अकाल पडता नहीं था.

उसका कारण क्या था?

भारतमें वन संपदा थी. यानी कि पर्वत और समतल भूमि पर वृक्ष थे. खेतोंके आसपास भी वृक्ष थे. नगरमें उपवन थे. इसके कारण नदीयोंमें हमेशा पानी रहता था. प्रत्येक ग्राममें सरोवर थे और इन सबमें पानी रहेनेसे कुओंका जलस्तर उंचा रहता था. वृक्षोंके होनेसे पर्वतों पर वर्षा का पानी अवरोधित रहेता था इसलिये पूर नहीं आते थे. वृक्षोंसे अवरोधित पानी धीरे धीरे नदीयोंमें जाता था. इसलिये नदियां पानीसे भरपूर रहेती थीं. भूमिगत पानीकी स्थिति भी ऐसी ही रहेती थी. कुओंमेसें पानी बैलके द्वारा निकाला जा सकता था.

पशुधन मूख्य माना जाता था. और इसके कारण प्राकृतिक खाद गोबरके रुपमें आसानीसे मिलजाता था. वृक्षकी कटाई घरेलु वपराशके लिये ही होती थी इसलिये वृक्षोंकी दुर्लभता नहीं बनती थीं. गोबरका भी इंधनके रुपमें उपयोग होता था.

सभी ग्राम्यसमाज प्रतिदिनकी आवश्यकताओंके लिये स्वावलंबी थे.

इसलिये आयात निकास की वस्तुंओंका  परिवहन न्यूनतम था. यंत्र और उपकरण संकिर्ण नहीं थे और पशु-शक्तिका उपयोग भी होता था. हम ग्राम्य समाजको एक संकुल के रुपमें समझ सकते हैं. जिनमें भीन्न भीन्न व्यवसायके लोग व्यवसायके अधार पर समूह बनाके रहेते थे. आज भी ऐसी रचना नकारी नहीं जाती. सब्जी मार्केट, कपडा मार्केट, रेडीमेड गार्मेन्ट मार्केट, हीरा बजार, विद्या संकुल, आवास, चिकित्सा संकुल आदि प्रकार विदेशोंमे भी बनाये जाते हैं.   

भारत एक विशाल देश था. जनसंख्या कम थी. उत्पादनका निकास हो सकता था. हर वसाहतमें व्यवसायीओंका एक महाजनमंडल रहेता था. जो अपने व्यवसाय की नीतिमत्ता पर निरीक्षण करता था.

किन्तु अठारवीं शताब्दीके अंतर्गत क्या हुआ?

भारतीय कारीगरोंकी उंगुलियां काट दी गई. ताकि हुन्नर मृतप्राय हो गया. भारत कच्चे मालकी निकास करने लगा और बना बनाया माल अयात करने लगा. गरीबी बढ गई. यह वार्ता  सुदीर्घ है. किन्तु इसका तारतम्य यह कि भारतकी अवनति हुई. प्राकृतिक आपत्तियोंमे भी वृद्धि हुई. वर्षा अनियमित होने लगी. अकाल पडने लगे.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विघातक नीतियां

नहेरुवीयन कोंग्रेसने अंग्रेजोंकी नीति चालु रक्खी. समाजवादके नाम पर नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंने मनमानी की. इतना ही नहीं किन्तु अत्यधिक प्रमाणमें अवैध रुपसे वनोंकी कटाई हुई. वन संपत्ति और उत्पादन नष्टप्राय हो गया. नदियां शुष्क हो गईं. वर्षा चक्र अनियमित हो गया. अकाल पडने लगे. आर्थिक असमानता बढ गई. नियम द्वारा चलने वाला शासन छीन्नभीन्न हो गया. कोतवाल चोरके साथ मिल गया और रक्षक भक्षक बन गया. कोंगीके सर्वोच्च नेताओं द्वारा किये गये भ्रष्ट आचारोंके असंख्य उदाहरण, हमने (१९७७-१९७९ और १९९९-२००४ के कालखंडोंको छोड कर) १९५१से २०१४ तक देखे हैं. हम उन ठगोंकी चर्चा नहीं करेंगे.

ग्राम्य रचनाकी पूरातन शैलीमें परिवर्तन लाना पडेगा.

भूमि अधिकार संबंधित मानसिकतामें परिवर्तन लाना पडेगा

भूमि संबंधित उत्पादनकी प्रणालीमें परिवर्तन लाना पडेगा,

ग्राम्य रचना कैसी होनी चाहिये? आवासोंकी रचना कैसी होनी चाहिये?

१ हमें आवासमें क्या चाहिये?

१.१ आवासमें खुल्लापन होना चाहिये,

१.२ आकाश दिखाई देना चाहिये,

१.३ छोटे बालकोंके लिये खेलनेकी जगह होनी चाहिये,

१.४ बडोंके लिये घुमनेकी जगह होनी चाहिये,

१.५ युवाओंके लिये खेलने की जगह होनी चाहिये,

१.६ अडोशपडोशके साथ संवादिता होनी चाहिये, यानी कि, कोम्युनीटी टाईप घरोंकी रचना होनी चाहिये,

१.७ प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षाका प्रबंध होना चाहिये,

१.८ उच्च शिक्षाके लिये सुदूर जाना न पडे ऐसा होना चाहिये,

१.९ प्रतिदिनकी आवश्यक वस्तुएं सरलतासे उपलब्ध होनी चाहिये,

१.१० शासकीय सेवाएं सरलतासे उपलब्ध होनी चाहिये,

१.११ जनसुरक्षा सेवा उपलब्ध और विश्वसनीय होनी चाहिये,

१.१२ व्यवसाय, सेवा, आवास और शिक्षणमें मानवीय अभिगम होना चाहिये,

१.१३ पर्यावरणमें संतुलन होना चाहिये.

हमें इन सभी आवश्यक बंधनोंसे ठीक तरहसे अवगत होना पडेगा. इस विषयमें अवगत होनेके लिये हमें खुल्लापन रखना पडेगा. यदि  आजकी स्थिति और आजकी मानसिकता चालु रही तो भविष्य कैसा भयानक हो सकता है वह समझना पडेगा.

भारत विभाजित हो गया है. जनसंख्यामें अधिक वृद्धि हुई है. जनसंख्याके उपर नियंत्रण लानेमें कुछ और दशक लग सकते है. कुछ धर्मके लोग स्वयंकी जनसंख्याके नियंत्रणमें मानते नहीं है. उनकी कार्यसूचि भीन्न है. उनकी मानसिकता में परिवर्तन करनेमें दो तीन दशक लग सकते हैं. सभीको साक्षर करना पडेगा और सबको काम देना पडेगा. उत्पादन बढाना पडेगा. असामाजीक तत्वोंको नष्ट करना पडेगा.

भूमिके महत्वसे अवगत होना आवश्यक है

भूमिका व्यय

१.१ पृथ्वीपर भूमिमें वृध्धि नहीं हो सकती. किन्तु भूमिमें सुधार हो सकता है. बंजर, क्षारयुक्त, उबडखाबड भूमिको नवसाध्य कर सकते हैं. मार्गों और रेल्वेकी आसपासकी भूमिको सब्जी भाजी के लिये उपयोगमें ले सकते है. छोटे बडे टापूओं पर बिनवपराश की भूमिको साध्य कर सकते है.

१.२ भूमिका व्यय बंध कर सकते है.

१.३ झोंपडपट्टी भूमिका व्यय है, एकस्तर, द्विस्तर, त्रीस्तर, आदि कमस्तरवाले आवास और संनिर्माण भूमिका व्यय है.

१.४ इतना ही नहीं भूमि पर अन्नपैदा करना भी भूमिका व्यय है.

१.५ अन्न और घांस एक स्तरीय उत्पादन है. जैसे लघुस्तरीय आवास निर्माण और लघुस्तरीय व्यवसाय वाले संकुल निर्माण, भूमिका व्यय है उसी तरह अन्न जैसे एक स्तरीय उत्पादनके लिये भूमिका उपयोग भी, भूमि संपदाका व्यय है.

१.६ आवास और व्यवसाय संकुल निर्माणको बहुस्तरीय बनाओ.

१.७ अन्न और घांस के उत्पादन के लिये बहुस्तरीय कृषि-संकुल बनाओ.

१.८ भूमिका उपयोग केवल वृक्षके लिये करो. वृक्ष हमेशा बहुस्तरीय उत्पादन देता है. तदुपरांत वह प्राणवायु देता है, जलसंचय करता है, भेज-उष्माका नियमन करता है,और उसका समूह् मेघोंको खींचता है. पक्षी, जिव जंतुओंको आश्रय देता है और ये जिव जंतु परागनयन द्वारा फल, सब्जी और अन्नका उत्पादन बढाता है. वृक्ष इसके अतिरिक्त मधु, गुंद, खाद और लकडी देता है.

अन्नका और घांसका उत्पादन कैसे करेः

१ आज कस्बों में और उसके समीपकी भूमिका भाव रु. १००००/- (दश सहस्र) प्रति मीटरसे कम नहीं है. यदि आप सुचारु प्रणालीसे बहुस्तरीय व्यवसायिक और आवासीय संकुलका निर्माण करो तो संनिर्माणका मूल्य (कंस्ट्रक्सन कोस्ट) रु ५०००/- से ६०००/- प्रति चोरस मीटर होता है. इसका अर्थ यह हुआ कि अन्न और घांसके उत्पादन के लिये बहुस्तरीय संनिर्माण लघुतर मुल्यका है.

ऐसे बहुस्तरीय कृषि संनिर्माण बनाना आवश्यक है.

१.२ बहुस्तरीय कृषि संकुल निर्माणके को लघुतर मूल्यका कैसे किया जाय? सुचारु प्रणाली क्या हो सकती है?

पूर्व निर्मित ईकाईयां (प्रीकास्टेड एलीमेन्टस) अनिवार्य है

१.३ पूर्व निर्मित ईकाईयां (प्रीकास्टेड एलीमेन्टस) जैसे कि स्तंभ इकाई (पीलर युनीट), फलक दंड इकाई (बीम युनीट), फलक इकाईयां (स्लेब एलीमेन्टस), असिबंध (आयर्न ग्रील), आदि, यदि निर्माण संसाधन उद्योगिक एकमोंमे पूर्व निर्मित किया जाय और उनका कद और मान शासननिश्चित प्रमाणसे उत्पादन किया जाय तो इन इकाईयोंका मूल्य अल्पतर बनेगा. संनिर्माणका समय, श्रम मूल्य भी कम भी लगेगा.

१.४ भूमि पर अधिकार केवल शासनका रहेगा.

शासन उसके उपयोगका अधिकार देगा. उपयोगके अधिकारका हस्तांतरण, उपयोग कर्ता कर सकेगा. किन्तु शासन के द्वारा वह हस्तांतरण होगा. इस प्रकार भूमिके सारेके सारे न्यायालयस्थ विवाद समाप्त हो जायेंगे.

१.५ आवास संकुल बहुस्तरीय रहेंगे और हरेक कुटूंबको खंडसमूह दिया जायेगा. जिनको मासिक अवक्रय (मोन्थली रेन्ट)के रुपमें या अवक्रय आधारित स्वामित्व (हायर परचेझ स्कीम) के रुपमें दिया जायेगा. स्वामित्वका हस्तांतरण भी शासनके द्वारा ही होगा.

१.६ उसी प्रकार कृषि संकुलके भी खंड समूह (प्रकोष्ठ समूह) होंगे और उसका हस्तांतरण भी उपरोक्त नियमोंसे होगा.

१.७ अद्यतनकालमें जो जर्जरित, या झोंपड पट्टीयां या कम स्तरवाले निर्माण है, उन सबका नवसंरचना करके आवास और व्यावसायिक संकुलोंका मिश्र संकुल बनाना पडेगा ताकि भूमिके व्ययके स्थान पर हमें अधिक भूमि उपलब्ध होगी और उसका हम सुचारु रुपसे वृक्षोंका उत्पादन कर सकेंगे.

१.८ आवास संकुलके निम्न स्तरोंमें व्यावसायिक वाणीज्य, गृहउद्योग, बाल मंदिर, प्राथमिकशाळाएं, माध्यामिक शाळाएं. उच्चमाध्यमिक शाळाएं, चूनाव व नोंधणी व जनगणना व सुरक्षा अधिकारीका कार्यालय रहेगा. हर स्तर पर एकसे अधिक सीसी टीवी केमेरा रहेगा.

१.९ जो अयुक्त (अनएम्प्लोईड बेकार) है, आवससे भी अयुक्त बने क्योंकि वे अपना उपकर नहीं दे पाये उनको सोने की जगह दी जायेगी और उनको कोई न कोई काम देके उनसे सोनेका और नहानेका उपकर प्रत्यावरुध (रीकवरी ओफ रेन्ट) किया जायेगा. यदि वह व्यक्ति विदेशका घुसपैठ है तो वो कारावासमें जायेगा और वहां उसके उपर स्थानिक सुरक्षादल कार्यवाही करेगा. जो अन्य राज्य से आता है उसको यदि वह निराश्रित है तो सोनेकी सुविधा मिलेगी.

१.१० जो कृषि-संकुल है, उसके निम्न स्तरोमें गौशाला रहेगी. उसके उपरके स्तरोमें घांस, अन्न, सब्जी, पुष्प, मधु, आदि का उत्पादन होगा.

१.११ आवस संकुलसे जो भी पानी आता है, उसको योग्य मात्रामें शुद्ध करके उसका भूमिगत उत्पादनमें उपयोग हो सकता है.

स्थावर संपत्ति के नियमोंमें आमूल परिवर्तन ही देशकी ९० प्रतिशत समास्याओंका समाधान है.

उपसंहारः

भूमि पर किसीका स्वामीत्व नहीं.

भूमि के उपर केवल उपयोगका अधिकार. उपयोगका प्रकार, शासन निश्चित करेगा. उपयोगके प्रकारमें परिवर्तनका अधिकार केवल शासनका रहेगा.

भूमिके उपयोगके प्रकारः

वृक्ष लगाना और उत्पादन करना.

वन, उपवन, भूमिगत क्रीडांगण

भूमिगत मार्ग, रेल मार्ग, जलमार्ग

सरोवर,

नहेरें,

विमान पट्टी,

नमक उत्पादन,

खनिज उत्पादन,

नये धार्मिक स्थल बनाने पर निषेध. केवल ऐतिहासिक धर्मस्थलोंका शासकीय अनुमतिके आधार पर विकास.

बहुस्तरीय संकुल जिसमें आवास संकुल, सेवा संकुल, गृह उद्योग संकुल, शैक्षणिक संकुल, लघु उद्योग संकुल, आदि. यदि शक्य है तो एक ही संकुल अनेक प्रकारके संकुलोंका समुच्चय हो सकता है.

बहुस्तरीय कृषि संकुल जिसमें अन्न, घांस, गौशाला, अप्रणालीगत उर्जा, सब्जी, मध, पुष्प, गोपाल आवास, कृषक आवास, कृषि आधारित गृह उद्योग,

बहुस्तरीय कृषि उत्पादन को प्राकृतिक आपदासे सुरक्षा मिलेगी. अन्य संकुलोके निस्कासित जलको शुद्ध करके टपक और फुहार सिंचाई द्वारा कृषि उत्पादन सुगम बनेगा.

एक ग्रामकी जनसंख्याके आधार पर एक ग्राम एक या दो संकुलका बना हुआ होगा. कोई भी संकुल १० स्तरसे कम नहीं होगा.

संकुल पर्यावरण सुरक्षाके आधार पर बना होगा. सभी शासकीय सुविधाएं और आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होगी.

बहुस्तरीय कृषि संकुलके अपने हिस्सेको व्यक्ति हस्तांस्तर कर सकता है. किन्तु हस्तांतरण की प्रक्रिया शासनके द्वारा ही होगी. ठीक उसी प्रकार निवासके अपने हिस्सेको व्यक्ति हस्तांतरण कर सकता है. शासन, संकुलका वेब साईट रखेगा. और संकुलकी संपूर्ण अद्यतन माहिति उसके उपर उपलब्ध रहेगी.

शिरीष मोहनलाल दवे

अनुसंधानः  गुजरातीमें नव्य सर्वोदयवाद भाग १ से ५, एचटीटीपीः//डबल्युडबल्युडबल्यु.त्रीनेत्रं.वर्डप्रेस.कॉम टेग्झः भूमि, आवास, स्वामीत्व, उपयोग, शासन, सुरक्षा, सेवा, चूनाव बुथ विस्तार, संकुल, कृषि, घांस, वृक्ष, वन, स्वावलंबन, मानसिकता, ग्राम्य, पशु, गृह, उद्योग, प्रकोष्ठ, पूर्व निर्मित, इकाईयां, एलीमेन्ट संकुलकी कुछ आकृतियां

पूर्व निर्मित इकाईयां

STRUCTURE 04 village complex 04 AN ALREADY EXISTING SELF SUSTAINABLE COMPLEX VILLAGE Drg03 उपरोक्त व्यवस्था कृषि और आवास संकुलके लिये भी हो सकती है. एक कुटूंब एकसे ज्यादा सुनिश्चित नियमोंके अंतर्गत एक से अधिक प्रकोष्ठ ले सकता है. Drg01

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