सुलेमान नहीं सुधरेगा.
“सुलेमान नहीं सुधरेगा” यह एक मूंहावरा है. इसको जातिगत आधार पर कृपया मत देखें.
इस ब्लोगका तात्पर्य सुलेमान मतलब नहेरुवीयन्स और उनकी कोंग्रेसके नेतागणसे संबंधित है.
सुलेमान मतलब नहेरुवीयन्स यानी कि सोनिया, उसका पुत्र राहुल और उसके पूर्वज.

नहेरुवीयन कोंग्रेसका शिलान्यास नहेरुने किया.
१९४७में महात्मा गांधीको नहेरु का रवैया देखके आत्मसात हो गया था कि यह नहेरु खुद सुधरनेके काबिल नहीं है. वह और उसके संतान कोंग्रेसको भारतको बरबाद और रसाताल कर देंगे. इसलिये उन्होने कहा था कि अब कोंग्रेसका विलय कर दो. उन्होने यह भी भयस्थान बताया था कि, यदि कोंग्रेसका विलय नहीं किया तो एक समय ऐसा आनेवाला है कि;
भारतकी जनता कोंग्रेसीयोंको चून चून कर मारेगी.
ऐसा समय गुजरतमॅ तो १९७३-७४में आया ही था कि गुजरातकीजनताने नवनिर्माण आंदोलनमें कोंग्रेसी नेताओंको चून चूनके मारा था.
नरेन्द्र मोदीने भी एक सूत्र दिया है कि;
“भारतको कोंग्रेस मूक्त बनावे”.
क्यों कि कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेसको) सिर्फ हराना पर्याप्त नहीं है. यदि उनके संसद सदस्य कम भी हो जाय और यदि केवल एक हाथ कि अंगुलीयोंकी संख्या के बराबर हो जाय तो भी इनके पास इतने पैसे है कि वे समाचार माध्यमोंको अपना तोता बना सकते हैं.
कुछ कोलमीस्ट और मूर्धन्य ऐसा मानते है कि कोंग्रेसको मूक्त भारतके स्थान पर नहेरुवीयन वंश मूक्त भारत किया जाना चाहिये. प्रवर्तमान परिस्थितिमें सीबीआईने केज्रीवालके एक अफसरके कार्यालय पर छापे मारे और उसके प्रत्याघात स्वरुप केज्रिवालने, केन्द्रके अर्थमंत्री अरुण जेटली पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये और नरेन्द्र मोदी को अभद्र गालीप्रदान किया, उसको एक गुज्जु समाचार पत्रके एक कटारीया (कोलमीस्ट) ने योग्य बताया.
एक कटारीयाने (कोलमीस्टने) कहा कि “वर्तमान बीजेपी शासनका आचार इन्दिरा गांधीके आपात कालसे भी बदतर है. क्यों कि इन्दिरा गांधीने तो खूल्ले आपातकाल लगाया था और उसने खूल्ले आम लोगोंको कारावासमें डाले थे. अरुण जेटलीने तो चूपचाप सीबीआई द्वारा बदले कि कारवाई की. इसलिये यह तो अघोषित आपातकाल है.” आब आप देखिये जिस कोलमीस्टका ज्ञान इतना कम हो और उसकी प्रज्ञा इतनी निम्न कक्षाकी हो तो उसका कारण क्या हो सकता है? वह तोता ही तो है.
दूसरे एक कटारीयाने बताया कि, जिस गुस्सेसे केज्रीवालमें अभद्र भाषा प्रयोग किया, वह योग्य है, क्यों कि फलां युरोपीय महान व्यक्तिने फलां अवसर पर ऐसे गालीप्रदान की क्रियाकी प्रशंसा की थी. तो यहां पर एक केज्रीवाल मुख्य मंत्रीने जो मोदीको कहा वह भी देशके हितमें है. साध्यं इति सिद्धं. खुश रहो कांतिभाई (भट्ट). मोदीके बारेमें पूर्वग्रह वाले सर्वदा मोदी-निंदासे अति प्रसन्न होते है चाहे वह तथ्यहीन, मटीरीयल हीन, संस्कार हीन भी क्यों न हो.
ऐसे सुलेमानोंको आप कभी सुधार नहीं सकते.

सुलेमान – १ जे एल नहेरु
तो क्या नहेरुवीयन कोंग्रेसके नहेरुवीयनोंको और उसके नेताओंको सुधार सकते है?
नहीं जी. जो सुधरनेके काबिल है ऐसा कुछ विद्वानो द्वारा माना जाता था वह जे.एल. नहेरु स्वयं सरदार पटेलकी चीनकी गतिविधीयोंके बारेमें दी गइ चेतावनीसे न सुधरा, वह चीनकी सेनाकी घुसपैठ से संसदके बताये जाने पर भी न सुधरा, जो चीन द्वारा भारतको दी गई पराजयसे भी न सुधरा, और राष्ट्रपतिके कहेने पर भी सुरक्षा मंत्रीको पदच्यूत नहीं किया, ऐसे नहेरुके फरजंदी सुलेमानोंसे सुधरनेकी आशा कैसे रक्खी जा सकती है?
सुलेमान – २ इन्दिरा फिरोज नहेरु गांधी
प्रकिर्ण सुलेमान सामाचार माध्यम के एंकर और कोलमीस्ट
इन्दिरा तो स्वयं सिद्ध न सुधरने वाली सुलेमानी थीं. उपरोक्त हमारे बालीश कटारीया (कोलमीस्ट)ने जो कहा कि ” … इन्दिरा गांधीने तो खूल्लं खूला आपातकाल लगाया था और उसने खूल्लं खूल्ला आम लोगोंको कारावासमें डाले थे. अरुण जेटलीने तो चूपचाप सीबीआई द्वारा बदले कि कारवाई की. इसलिये यह तो अघोषित आपातकाल है.” ऐसा कहेने वाले कोलमीस्टोंकी अज्ञानता पर दया आती है.
ऐसे कोलमीस्टको ज्ञात नहीं है कि जो खुल्लं खुल्ला निर्दोष जनताको और नेताओंको बीना न्यायिक कार्यवाही किये कारावासमें डाल सकता है वह नेपथ्यके पीछे तो काफि कुछ कर सकता है और करता भी है और किया भी है. इन्दिरा गांधीने कई सर्वोदय संस्थाओं पर जांच बैठायी थी. उसने पर्देके पीछे कैसे गुजरातके खाद्य तैलोंके कारखानेदारोंसे पैसे जमा किया था उस विषय पर चिमनभाई पटेलने एक पुस्तक भी लिखी थी. ऐसे तो हजार किस्से थे जो इन्दिरा गांधीने नेपथ्यके पीछे किये थे.
यह इन्दिरा गांधी बंग्लादेशी गैर-मुस्लिमोंकी घुसपैठसे जो कलकत्ता और उत्तर पूर्वी राज्यों का सामान्य जन जीवन त्रस्त हुआ उससे भी वह कुछ सुधरी नहीं. दुश्मनोंके (पाकिस्तानके) विश्वासघातोंसे कुछ शिखी नहीं और उसने एक व्यंढसिमला करार किया.
सुलेमान – ३ राजिव गांधी
वंशवादी राजाओंकी प्रणाली की तरह इस नहेरुवीयन कोंग्रेस आरोपित राष्ट्रपतिने राजिव गांधीका राज्याभिषेक किया. राजीव गांधीने भी बिना जनतंत्र और संविधानका खयाल किये प्रधान मंत्रीका मूगट पहन लिया. ऐसे नहेरुवीयनोंसे आप सुधार की क्या आशा रख सकते है. नहेरुवीयन कोंग्रेसमें जहां भी हाथ डालो उपरसे नीचे तक भ्रष्टाचार ही मिलता है.
नहेरुवीयन कोंग्रेसी नेता गण और उनके सांस्कृतिक साथी टीवी चैनल एक ही सहगान करते है. २-जी घोटला, कोमन वेल्थ गेम कौभान्ड, कोयला आबंटन घोटाला आदि पर उस समय विपक्ष बीजेपीने संसद चलनेमें विरोध किया था. क्यों कि नहेरुवीयन सरकार वह जांच रिपोर्टको अनदेखी कर रही थी. विपक्ष बीजेपी संसदमें चर्चा की मांग कर रहा था. नहेरुवीयन कोंग्रेस संसदमें चर्चा ही नहीं करने देता था. जो कौभान्ड थे वे सब क्वान्टीफाईड (सूचित, प्रमाणभूत और मात्रावाले थे). संसदका उद्देश ही चर्चा करना है. किन्तु यदि चर्चाको ही न करने दिया जाय और सूचित प्रमाणभूत और मात्रासे भ्रष्टाचारके लिये उत्तरदायी मंत्रीका त्यागपत्र न लिया जाय तो विपक्ष के पास क्या विकल्प रहेता है?
नहेरुवीयन कोंग्रेसके मापदंड स्वयंके लिये और उसके प्रतिपक्षके लिये भीन्न है.
१९८० मे जब नहेरुवीयन कोंग्रेस फिरसे सत्ता पर आयी तो वह विपक्षके सदस्य जब बोलते तो शोर मचाते रहती थी. विपक्षको बोलने ही नहीं देती थीं. प्रकिर्ण सुलेमान, समाचार माध्यम के तोते यह बात तो याद ही नहीं करते हैं
आधारभूत विरोधकी तुलना निराधार विरोधके साथ नहीं हो सकती
आज जब वह स्वयं विपक्षमें है तो वह संसदमें चर्चा करना ही नहीं चाहती है. उसके पास बीजेपी के कोई नेताके कथा कथित भ्रष्टाचारके बारेमें क्वान्टीफाईड (सूचित, प्रमाणभूत और मात्रावाले) कौभान्डके विषय पर कोई आधार नहीं है. इतना ही नहीं यह नहेरुवीयन्स और उनके सांस्कृतिक नेतागण संसदमें चर्चा भी नहीं चाहते हैं. उनके लिये देशके विकासके लिये किये गये समझौतें, हिन्दु कश्मिरीयोंकी और बाढ पीडितोंकी निर्वासितोंकी व्यथा, या दुष्कर्म पीडिताओंकी व्याथा और नियममें सुधार आदि का कोई महत्व नहीं.
संविधान और संसदकी आत्मा पर आघात
“अ-नहेरुवीयन कोंग्रेसवादी” विपक्षने और खास करके बीजेपीने कभी भी संसदके गौरव और संसदकी आत्माका कभी हनन नहीं किया. न तो कभी इस विपक्षने न्यायालयोंकी अवमानना की. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने यह सब कुछ किया और करती रहती है. स्वयं नहेरुवीयनोंने भी ऐसे काम किये हैं और करते रहते हैं.
गत संसद सत्रमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने बीजेपी शासित राज्यके मुख्य मंत्रीके त्याग पत्र मांगे और यह नहेरुवीयन कोंग्रेस, इसी कारणसे संसदमें चर्चा करने के लिये भी तयार नहीं थी. वास्तवमें उस दुराचार के लिये स्वयं नहेरुवीयन कोंग्रेस उत्तरदायी थी. इसी कारणसे वह चर्चा करना नहीं चाहती थी. वर्तमान संसदके सत्रमें यह नहेरुवीयन्स और नहेरुवीयन कोंग्रेस वानरकी तरह संसदके लिये असंबद्ध एक मुद्देसे दुसरे मुद्दे को उछाल के संसदका काम नहीं होने देती है.
नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रमुख सोनीया और उसके साथीयोंके विरुद्ध न्यायालयमें मुकद्दमा चलता है. सुब्रह्मनीयन स्वामीने वह केस २०१२में दाखिल किया था. न्यायालयने उसको स्विकार भी किया था. यह मामला न्यायालयसे संबंधित मामला है. संसदका यह कार्यक्षेत्र नहीं है कि वह इसके पर कार्यवाही करें. इस बातको तो सामान्य बुद्धिवाला बालक भी समज़ सकता है. किन्तु नहेरुवीयन्स और उनकी कोंग्रेस इस बातको समज़ना ही नहीं चाहती क्यों कि उनको संसद चलने नहीं देना है. नहेरुवीयन कोंग्रेस हर सप्ताह विभीन्न असंबंद्ध मुद्दा उठाके संसदमें हंगामा करती है.
वंशवादके विरुद्ध कई लोग है
नहेरुवीयन कोंग्रेसमें वंशवादके विरुद्ध कई लोग है, लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेसमें रहेते हुए वे नहेरुवीयनोंके विरुद्धमें नहीं बोल सकते इसलिये अरुणाचल प्रदेश राज्यके विधानसभा सदस्योंने मिलकर विधानसभाके स्पीकरके विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया. और नया स्पीकर नियुक्त किया. इस घटना पर संसदका कोई कार्यक्षेत्र नहीं. तो भी इस मुद्देको लेके नहेरुवीयनोंने और उनकी पार्टीने संसदको चलने नहीं दिया. बीजेपी अरुणाचलकी इस घटना पर भी चर्चाके लिये तयार थी, तो भी नहेरुवीयन्स और उनकी पार्टीके सदस्योंने उस राज्यके राजपालको पदभ्रष्ट करने कि मांग की और उसके उपर अडे रहे. संसद चलने न दी. जो घटनाएं के विषय पर स्वयं नहेरुवीयन कोंग्रेस जेम्मेदार है, उन घटनाओंको वह तोड मरोड कर बीजेपीसे उत्तर मांगती है और उसके नेताओंका त्याग पत्र मांगती है और चर्चाके लिये तयार भी नहीं है.
ऐसी नहेरुवीयन कोंग्रेससे उसके खुदके सुधारकी कैसे आशा रख सकते हैं, ऐसी कोंग्रेससे देशके सुधारकी तो बात ही जाने दो.
नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा क्यूं करती है?
यह कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथी समाचार माध्यम जनता को यह सूचित करना चाहते हैं कि देखो यह बीजेपी वाले तो संसद भी चला नहीं सकते. वे सरकार क्या चलायेंगे?
विकासको स्थगित कर दो
यदि संसद न चले और नहेरुवीयन कोंग्रेसके तोते समाचार माध्यम ऐसी हवा बनावें कि सरकार संसद चलानेमें असमर्थ है, तो विदेशी संस्था और सरकार के पास ऐसा संदेश जाता है कि, नरेन्द्र मोदीने जो भी करार भारत सरकारके साथ करवाये है वे सब बेकार बनने वाले हैं. इस आधार पर विदेशी सरकारें और संस्थाएं तेजीसे आगे नहीं आयेगी और विकास स्थगित हो जायेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसको यही चाहिये. वैसे तो इस बातके लिये स्वयं नहेरुवीयन्स और उसका पक्ष है, किन्तु उनके तोते ऐसी हवा फैलाने में निपूण है कि नरेन्द्र मोदीका शासन निस्फळ और अकुशळ बन रहा है.
Shirish M. Dave
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