Archive for December, 2020
अनपढोंका और गूंगोंका वाणीस्वातंत्र्य – २
Posted in Uncategorized on December 30, 2020| Leave a Comment »
अनपढोंका और गूंगोंका वाणीस्वातंत्र्य – १
Posted in Uncategorized on December 20, 2020| Leave a Comment »
अनपढोंका और गूंगोंका वाणीस्वातंत्र्य – १
अनपढकी परिभाषा क्या है?
(१.१) जो पढ सकता नहीं है या जो पढता नहीं है या तो जो पढना चाहता ही नहीं है. ये तीनोंको वैसे तो हम अनपढ कह सकते है.
लेकिन सत्यसे सबसे समीप, जो पढना नहीं चाहता वह अनपढ है.
क्यों?
जो पढ सकता नहीं है वह सून तो सकता है. और वह सत्यको समज़नेकी कोशिस कर सकता है.
जो पढता नहीं है, हो सकता है पढनेका साहित्य उसके पास उपलब्ध नहीं है, इसलिये वह पढता नहीं है. आप यदि उसके लिये साहित्य उपलब्ध कर दो तो वह पढेगा.
जो पढना ही नहीं चाहता वह सचमुच अनपढ है. क्यों कि इसका कारण वह प्रतिपक्षकी बात सूनना ही नहीं चाहता. वह अपनी बात पर कायम रहेना चाहता है. और लोकतंत्रके लिये यह बात घातक है.
(१.२) गूंगेकी परिभाषा क्या है.
जो बोलना चाहता है किन्तु जीभ की अक्षमता के कारण बोल नहीं सकता है, या जो आवश्यकता पडने पर भी बोलता नहीं है, वह गूंगा है.
जीभकी यदि अक्षमता है तो गूंगोकी भी सांकेतिक भाषा है और वे अपनी बात संकेतो द्वारा प्रकट कर सकते है.
लेकिन यदि कोई आवश्यकता पडने पर भी बोलता नहीं है उसका अर्थ क्या है?
यदि व्यक्ति दबावमें है तो वह दबावके कारण बोलता नहीं है. इसका कारण साम, दाम, भेद और दंड हो सकता है. इनके एक या अधिक कारणसे व्यक्ति, जो बोलना आवश्यक है, वह नहीं बोलता, किन्तु उसके अतिरिक्त सबकुछ बोलता है. याद करो शोलेका संवाद … “सरदार !! हमने आपका नमक खाया है !!”
(२) सांप्रत कालमें हमारी मूलभूत समस्या क्या है?
भारतकी समस्या है आंदोलनकारीयोंकी तथा कथित वाणी स्वातंत्र्यके नाम पर आमजनताको कष्ट देते रहेनेकी और वह भी अनियतकालके लिये.
(३) इस समस्याके मूलमें क्या है?
समस्या तो यही है कि जब आनंदोलनकारीयोंको स्वयं ज्ञात नहीं है कि वास्तवमें उनकी समस्या क्या है !!
(४) यदि आंदोलनकारीयोंको आंदोलनका हेतु ज्ञात नही है, तो उनके नेताओंको पूछो कि आंदोलनका हेतु क्या है?
आंदोलनकारीयोंके नेता, आंदोलनकर्ताओंके समूहमें होते नहीं है. जो होते है वे आंदोअलनके व्यवस्थापक होते है. जो समाचार माध्यमोंके संवाद दाताओंके सामने आते है, परंतु, वे अपने गोदी-मीडीयाके अतिरिक्त किसी भी मीडीयासे संवाद करना नहीं चाहते है.
(५) चलो ये भी समज़ा कि ये तथा कथित नेता, अपने चहितोंसे ही संवाद करना चाहते है, तो वे अपने चहिते यानी कि अपने गोदी-मीडीयाको भी तो बताते होंगे न कि, उनके आंदोलनकी वजह क्या है?
अरे भाई, यह भी तो एक समस्या है…
ये आंदोलनकारी लोग बोलते है … “हमारा आंदोलन और फैलेगा … सरकार हमे लूटना चाहती है … हम सुनिश्चित करके आये है कि सरकार अपना कानून वापस लें … इसके अतिरिक्त हमे कुछ भी मंजुर नहीं … हमारा आंदोलन जारी रहेगा चाहे हमे कुछ भी करना क्यों न पडे? हम सरकारको अपनी ताकत दिखाना चाहते है कि हम अब हटने वाले नहीं है. हम दिल्लीको चारों दिशाओंसे घेराबंदी करेंगे और दिल्लीवालोंका जीना हराम कर देंगे … सरकारको समज़ना चहिये कि यह मामला देशकी सुरक्षासे भी संबंधित है …
(६) लेकिन पत्रकार चाहे तो, वे आंदोलनकारीयोंके चहिते ही क्यूँ न हो, … वे पूछते तो होंगे कि आंदोलनकी वजह क्या है?
नहीं भैया, ये पत्रकार ऐसे प्रश्न करते ही नहीं है वे नये सरकारी कानूनोंके कारण क्या क्या हो सकता है या होनेवाला है वही पूछते है. ये पत्रकार लोग आंदोलनकी व्यापकता और व्यवस्थाके विषयमें ही प्रश्न करते है. आंदोलनकारीयोंको पडतें कष्टोंके बारेमें प्रश्न करते है. ये संवाददाताओंको तार्किक संवाद करना ही नहीं है, आंदोलनकारीयों और गोदी-मीडीयाके संवाददाताओंके बीच ऐसा समज़ौता हो गया है ऐसा लगता है.
(७) चलो यह भी सही. लेकिन जो समाचार पत्र है उनके कोलमीस्ट, विश्लेषक, तंत्री या तजज्ञ होते है वे भी तो कुछ विवरण करते होंगे न?
वे लिखते तो है लेकिन वे वही लिखते है कि आंदोलनकारी कितने अधिकमात्रामें आ रहे है, आंदोलन कैसे फैलता जा रहा है… आंदोलनकारी कितने कृतनिश्चयी है, उन्होंने कैसा ठान लिया है कि अब तो आरपारकी लडाई ही लडनी है, ये लोगआपखुद सरकारसे डरने वाले नहीं है, सरकार व्यर्थ ही जीद पर अडी हुई है. सरकार समज़ती नहीं है कि ये किसान लोगोंको इतनी ठंडमें आंदोलन करनेका शौक तो होता नहीं है. एक दो आंदोलनकारी तो मर भी गये लेकिन सरकार आंखे नहीं खोलती. क्या आंदोलन कारीयोंको मरनेका शौक होता है? इन आंदोलनकारीयोंका आंदोलन कितना व्यवस्थित है, इन लोगोंने लंबे आंदोलनका आयोजन किया है, ढेर सारा अनाज, सब्ज़ी, मक्खन, घी की व्यवस्था की है, गेस सीलीन्डर, चुल्हा, लकडियां, बडे बडे बरतन, पानीके टेन्कर, इत्यादिकी परिपूर्ण व्यवस्था की है, एम्ब्युलन्स, मोबाईल आई.सी.यु, ओक्सीजन, चिकीत्सालय, दवाईयाँ आदि की भी व्यवस्था की है.
(८) गोदी-मीडीया क्या कहेता है?
गोदी-मीडीया के हिसाब से इन आंदोलनकारीयोंका आंदोलन पूर्णरुपसे अहिंसक है. आंदोलनकारी लोग सूत्रोच्चार ही करते है, ये लोग न तो पूलिससे झगडते है, न तो तो बसें जलाते हैं, न तो कारे जलाते हैं, न तो दुकाने जलाते हैं. इन आंदोलनकारीयोंका आंदोलन पूरा अहिंसक है.
मतलब यह है कि इन मूर्धन्योके हिसाबसे आंदोलनकारीयोंकी व्यवस्थितता, (चाहे इन आंदोलनकारीयोंने अनियतकालके लिये रास्ते रोक रक्खा हो, रेलसेवाएं रोक रक्खी हो, दुकान वालोंका बीज़नेस ठप्प कर दिया हो तो भी) और ठंडमें आंदोलन करनेकी सहनशीलता के कारण, और खास करके चाकू छूरी या दंगा, न करनेके कारण, आंदोलन पूरा अहिंसक है इस लिये उनकी मांगे सही है और सरकार इन समज़दारोंको समज़ानेमें विफल रही है.
मतलब यह है कि ये सब मूर्धन्य विश्लेषक लोग चाकू, छूरी, बंदूक, तल्वारके उपयोगको और संपत्ति तोडना, उनको जलाने … आदिको … ही हिंसा कहेते है.
जब देशके महा मूर्धन्योंकी मानसिकता यही हो तो आंदोलनकारीयोंका क्या दोष?
(९) ज्युडीसीयरी? काहेका सुओ मोटो?
आश्चर्य इस बातका है कि मुद्दा तो न्यायालयके आधिन भी है. लेकिन ज्युडीसीयरीके लिये अन्य नागरिकोंको लगातार आर्थिक नुकशान होता हो, समयकी बरबादी होती हो, मानसिक तनाव हो, ये कोई संविधानीय और मानवीय हक्कोंका हनन नहीं है.
जी हाँ, ज्युडीसीयरीको यह बात अचूक और पुनः पुनः उच्चारित करनेमें मज़ा आता है कि “हम आंदोलनकारीयोंके वाणी-स्वातंत्र्यके हक्क का स्विकार करते है.
अरे भाई न्यायाधीश, तुम जरा केस को पढा तो करो. कोई ऐसा “प्रेयर” तो है नहीं कि, प्रेयरमें ऐसा लिखा हो कि हमारा वाणी-स्वातंत्र्यका हनन हो रहा है. प्रेयर तो यह है कि वाहन व्यवहार ठप्प पडा है और उसको खुला करो. वास्तवमें न्यायालयकी यह रीमार्क अनकोल्ड (uncalled, अनावश्यक, आवेदनकार्ताने मांगी ही न हो और मीथ्या ) है. लेकिन न्यायालयको ऐसी कोमेंट करनेमें मानो मजा आता है. वे शायद सोचते है कि हम “आंदोलनकारीयोंके विरोध प्रदर्शन और उनके वाणीस्वातंत्र्यके लिये कैसे सजग (कोन्सीयस है और सोये हुए नहीं) है.
न्यायालयको “प्रेयर”से अधिक आंदोलनकारीयोंके विरोध प्रदर्शनके अधिकारके बारेमें अपनी सजगता प्रदर्शित करनेमें अधिक दिलचस्पी है.
न्यायालय अपना मध्यावर्ती आदेश दे सकता है कि;
“आंदोलनकारी लोगोंको गिरफ्तार करो और अन्य नागरिकोंको कष्ट देनेके कारणसे और अन्योंका समय बरबाद करनेके लिये उनके उपर न्यायिक कार्यवाही करो”
ऐसा आदेश देनेसे न्यायालयको किसने रोका है?
(१०) आम तौर पर, आम जनता और महानुभाव लोग भी दो कोम्युनिटीके विरुद्ध बोलनेसे बचते है.
एक है जवान. क्यों कि जवान देशके लिये आवश्यकता पडने पर अपने प्राणकी आहुति दे देता है. लेकिन लुट्येन गेंग्स जवानके विरुद्ध बोलनेसे कतराती नहीं.
दुसरा है किसान जो जगतका तात माना जता है. लालबहादुर शास्त्रीने एक नारा दिया, कि जय जवान और जय किसान.
अरे भैया किसान, तुम्हे यदि कृषिकानून पसंद नहीं है तो उस कानूनका तुम “सविनय कानून भंग”का आंदोलन चलाओ न. तुम्हे किसने रोका है?
(११) मजेकी बात यह है कि इस कृषिकानूनके विरुद्ध “सविनय कानून भंग”का आंदोलन करें भी तो कैसे करें, वह न तो लुट्येनगेंगोंमेंसे किसीको मालुम है, न तो किसी किसान को मालुम है.
गोदी-मीडीयाके विश्लेषक, मूर्धन्य और तजज्ञोंका भी दिमाग शून्य हो गया है.
हाँ जी, यदि आप इस कृषिकानूनके विरुद्ध है तो आप इस कानूनका सविनय भंग कीजिये न?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
चमत्कृतिः
एक जमाना था. स्त्रीयोंके लिये विधवा विवाह पर निषेध था. ज्ञातिप्रथा सख्त थी.
सरकारने कहा कि हम विधवा विवाहका निषेध रद करते है. और ज्ञातिप्रथाको भी रद करते है.
मतलब की यदि चाहे तो विधवा स्त्री पुनर्लग्न कर सकती है. और जिनको ज्ञातिप्रथा में न मानना हो तो वह ज्ञातिप्रथाका इन्कार कर सकता है.
इसके विरुद्ध हे कोंगी और उनके सांस्कृतिक गेंगवाले लोग, आप रास्ता, रेल, रोको आंदोलन चालु करो, बसोंको, सरकारी इमारतोंको, सरकारी वाहनोंको जलाओ …
आपको तो केवल आंदोलनका बहाना ही चाहिये न?
Can we say that Congress is 135+ year old party? Part – 3
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