कोंगीके सहयोगी कोलमीस्ट कहाँ अपना मूँह छिपाएंगे?
हम, हालकी कोंग्रेसके लिये, कोंग्रेस शब्दका उपयोग करनेमें मानते नहीं है.
हम कोंगी [ कोंग्रेस (आई) अर्थात् इन्दिराई कोंग्रेस अर्थात लगातार जूठ बोलनेवाली इन्दिराके संस्कारयुक्त कोंग्रेस, जिसको गलतीसे भी स्वातंत्र्यके लिये आंदलन करनेवाली कोंग्रेस कहा नहीं जा सकता वह कोंग्रेस ] ही कहेंगे.
विशेषतः एक कारण अन्य भी है कि, अभी भी कुछ मूर्धन्य लोग विद्यमान है जो इसी कोंग्रेस (आई) को सबसे पूरानी पार्टी मानते है और स्वातंत्र्यका आंदोलन चलाने वाली कोंग्रेस ही मानते है और उसको नष्ट होते देखना नहीं चाहते. वास्तवमें यह उनकी मीथ्या मान्यता है. पार्टी अपने सिद्धांतोसे और आचारोंसे बनती है. जब सिद्धांत और आचारमें ही १८० डीग्रीका परिवर्तन आ जाता है तो उसको वही पार्टी कैसे कहा जा सकता?
नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकारने अपना प्रगतिपत्रक तो दे ही दिया है. वैसे भी उसका प्रगति पत्रक ओन–लाईन उपलब्ध है. जो भी पढना चाहे वह पढ सकता है. राहुल गांधी (जो वास्तवमें घांडी है. घांडी सरनेम आज भी भारतमें प्रचलित है) भी पढ सकता है. उसके उपर एक एक करके सारी उपलब्धियों पर चर्चा हो सकती है.
यदि राहुल घांडी इन उपलब्धियोंको पढना न चाहे, तो वह उसके स्वाभावके अनुरुप है. लेकिन जो लोग खास करके स्वयंको मूर्धन्य मानते है, और समाचार पत्र चलाते है या तो उसके कोलमीस्ट (कटार लेखक) है उनका तो कर्तव्य बनता है कि वे नरेन्द्र मोदीके सरकारकी उपब्द्धियां पढे और यदि वे इनको नकारते है तो उसकी चर्चा करे और जनताके सामने तथ्य लानेका प्रयास करें. यही तो सुचारु पत्रकारित्व है.
हमारे डीबी (“दिव्य भास्कर गुजराती प्रकाशन”)भाई ने शेखर गुप्ता, अरुण शौरी, प्रीतीश नंदी, योगेन्द्र यादव (“आप–पक्ष”वाला), वेद प्रताप ऐसे लेखकोंके लेख, जो अन्यत्र प्रकाशित हुए होते है उसका भाषांतर गुजराती प्रकाशनमें लाते है.
लेकिन डी.बी.भाई को यह भी तो दिखाना है कि वे तटस्थ है.
उपरोक्त लेखक गण तो नरेन्द्र मोदीके विरोधी है ही. लेकिन तटस्थ बिन्दुको यदि मध्यमें माना जाय तो कुछ लेखक गण जो, तटस्थ बिन्दुसे कोंगीसे बिलकुल नज़दिक नहीं लेकिन दूर भी नहीं है. वे वर्नाक्युलर भी हो सकते है.
नरेन्द्र मोदी कैसा है?
नरेन्द्र मोदी खूब परिश्रम करता है, कठोर निर्णय लेके वह अपनी क्षमता दिखाता है, सरकारी संस्थाओंकी कार्यवाहीमें हस्तक्षेप नहीं करता है, अति नीतिमान है, अपने संबंधीयोंको पदोंकी खेरात या तो अन्य तरिकोंसे उनको मालदार नहीं बनाता है, १८ घंटे काम करता है, विदेशोंमें भारतका मान बढाता है, जिन्होंने दशकोंसे देशके अर्थतंत्रके साथ ठगाई की थी और कोंगी–स्थापित व्यवस्था अंतर्गत वे देश छोडके भाग गये थे, नरेन्द्र मोदी उनको देशमें ला रहा है, इन तथ्योंके कारण, नरेन्द्र मोदी, विदेश स्थित भारतीयोंमें भी अति लोक प्रिय है, देशमे अंतीम ७० सालमें जो तेज़ीसे विकास नहीं हुआ था वह विकास अब तेज़ीसे होते दिख रहा है, तो भी कई मीडीया मूर्धन्य लोग इस नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध क्यूँ है?
नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध होनेके कारण निम्न लिखित हो सकते है.
(१) नरेन्द्र मोदी वर्नाक्युलर (स्थानिक गुजराती भाषा) माध्यममें पढा है. नरेन्द्र मोदी स्नातक अवश्य है और उनके विषय भी इतिहास और राज्यशास्त्र (पोलिटीक्स) है, लेकिन उन्होंने, ये सब गुजराती माध्यम में ही पढा है. कुछ विद्वान लोगोंको बीन–अंग्रेजी माध्यमसे पढे लोगोंके बारेमें पूर्वग्रह होता है.
गुजरातीयोंको अंग्रेजी नहीं आती है ऐसा माहोल १९५७से बनाया गया है. क्यों कि गुजरात विश्वविद्यालयमें १९५७से महाविद्यालयों में प्रथम दो वर्ष गुजराती माध्यमसे पढाया जाना प्रारंभ हुआ था. वैसे तो गुजरातमें बरोडा और विद्यानगर ऐसी दो और भी युनीवर्सीटीयां है, लेकिन तो भी, गुजराती मतलब, गुजराती माध्यम, ऐसी मान्यता दृढ करवा दी गई. ऐसी मान्यता अन्य राज्योंके लिये अनुकुल भी थी. हम इसकी चर्चा नहीं करेंगे लेकिन कमसे कम पश्चिम भारतमें महानुभावोंकी मान्यता थी कि नरेन्द्र मोदी “बीलो–एवरेज” है.
(२) नरेन्द्र मोदी, गुजरातका एक अविकसित विस्तारका, एक पछात जातिका, व्यक्ति है. और वह न तो ब्राह्मण है, न तो बनिया है, न तो क्षत्रीय है. नरेन्द्र मोदी पीछडी जातिका है. (याद रहें कि, उसने आरक्षणका लाभ कहीं भी नहीं लिया है). नरेन्द्र मोदीने, चाहे कैसे भी, मुख्य मंत्री पद प्राप्त कर लिया होगा, लेकिन प्रधान मंत्रीके पदके लिये वह योग्य और काबिल नहीं है. प्रधान मंत्रीके पदके लिये तो “एरीस्टोक्रेट कक्षा”का ही व्यक्ति चाहिये.
याद करो, जो भी बडे बडे नेता थे वे सब या तो बेरीस्टर थे. एफ.आर. (फोरीन रीटर्न्ड) थे और पाश्चात्य रहन सहनसे गुजरे हुए थे. गांधीजी और आंबेडकर, वैसे तो, हमें देशी/दलित लगते है लेकिन वे बेरीस्टर थे और पर्याप्त समय विदेशमें रहे थे. और कई लोग विदेशीयोंसे प्रमाणित थे या तो अंग्रेजी भाषाके भी पंडित थे.
(३) नरेन्द्र मोदी आर.एस.एस. का सदस्य था. आर.एस.एस.का सदस्य होना एक अपराध है ऐसी मान्यता देशके उच्च पंडित समुदायमें व्यापक है. क्यों कि सामान्यतः आर.एस.एस. वाले, महात्मा गाँधीके विरोधी होते है. ऐसी हवा नहेरुके शासनने प्रसारित की हुई है. आर.एस.एस. वाले हिन्दुत्व वाले होते है और वे मुस्लिमोंके दुश्मन होते है. ऐसी भी हवा उसी शासनकी देन है.
(४) गुजराती माध्यमसे पढा, कभी बहुश्रुत नहीं हो सकता है. इसलिये नरेन्द्र मोदी भी बहुश्रुत नहीं है.
और भी कई कारण होगे, लेकिन नरेन्द्र मोदीको निम्नकक्षाका माननेमें इन कारणोंका आधार है.
हमारे एक वर्नाक्युलर लेखक कैसे अपना लेख लिखते है;
यह है कान्तिभाई भट्ट. वैसे तो कान्तिभाई अच्छे लेखक है जब तक वे मोदी और बीजेपी के विषयमें नहीं लिखते तब तक वे विश्वसनीय लगते है.
कान्तिभाई लिखते है;
“राजकारण (सियासत) का व्यक्ति खुल्ला दिलवाला होना चाहिये, नेक दिल वाला होना चाहिये.”
उपरोक्त कथन किसके लिये लिखा गया है, मालुम है?
प्रायंका वाईदरा (उर्फ प्रियंका गांधी) के लिये.
हमारे कान्तिभाई प्रियंका पर औरोंकी तरह ही आफ्रिन है.
वह आगे लिखते है; “कोंग्रेसमें एक नयी शक्ति पैदा हो रही है. अब मोदीको नये तिकडम शोधना पडेगा”
कहेनेका तात्पर्य यह है कि नरेन्द्र मोदी तिकडम चलाता है. मतलब की नरेन्द्र मोदीने ठोस काम किया ही नहीं है. नरेन्द्र मोदी जो कुछ भी बोलता है वह सब फरेब है.
कान्तिभाई, आगे चलकर लिखते है कि जनताको कम होंशियार, लेकिन प्रबळ और निर्दोष हृदयवाला राजकर्ता चाहिये.
यानी कि, कान्तिभाईने मान ही लिया है कि भूमि कौभाण्डवाले रोबर्ट वाईदरा (वाड्रा)की पत्नी, प्रियंकामें वाईदरामें ये गुण है. और प्रियंका अब उभर रही है.
क्यों? क्यों कि;
उसका हृदय स्त्री हृदय है, इस लिये वह सक्षम है. चाहे कोंगी भक्त, कान्तिभाई इन्दिरा गांधी, जिस इन्दिरा गांधीने, जयप्रकाश नारायणको कारवासमें डालके मरणासन्न कर दिया हो, और लोग प्रियंकामें इन्दिराई चहेरा आत्मसात करके उसकी क्वालीटी देखते हो, लेकिन उन्ही की विचार राह पर चलनेवाले कान्तिभाईने अपने आपको अ–तर्कसे संतुष्ट कर दिया है कि, प्रियंका योग्य है.
वह आगे लिखते है “विधाताने आदेश दिया है कि “गांधी” अटकको सार्थक करो.” “अरुण जेटलीकी कीडनी खराब हो गयी वह इस आदेशका संकेत है.
क्या बात है कान्तिभाई !! गधेको भी बुखार आ जाय. ऐसी बात है आपकी.
एक गलत मान्यता बनाओ फिर वह गलत मान्यताको ही आधार बनाओ और एक और गलत निष्कर्ष निकालो. आम जनताको भ्रमित करनेका यह एक तरिका है.
कान्तिभाई भट्ट कहेते है कि;”नरेन्द्र मोदीकी सर्वोपरितासे बीजेपीका खून दुषित हुआ है. बीजेपीकी सिर्फ किडनी ही शुद्ध करना पर्याप्त नहीं है, उसका समग्र स्वास्थ्य सुधारना है. अब तक कोंग्रेसके कुकर्मोंकी फलश्रुति आपने देखी अब जनताको उनके कुकर्मोंका शुभ परिणाम देखनेका आवसर आया है.”
अरे कान्तिभाई, नहेरु भी तो सर्वोपरी थे और वे तो १७ साल प्रधान मंत्री रहे थे. जब “जीप–स्केन्डल”में उन्होनें तो विपक्षको कहा था कि मैं इसके लिये जाँच बैठाने वाला नहीं हूँ. आप चूनावमें इसको मुद्दा बनावो और चाहे वह कर लो”
नहेरुने तो स्वतंत्र्यके बाद कई हिमालयन ब्लन्डर्स की. आपने तो कहीं भी लिखा नहीं कि कोंगी दुषित हो गयी? नरेन्द्र मोदीने तो ऐसा कुछ भी किया नहीं है.
हाँ. नरेन्द्र मोदी लोकप्रिय अवश्य है. और आम जनता उसका भारी आदर करती है. यह क्या नरेन्द्र मोदीका गुनाह है? वह लोक प्रिय है, लेकिन वह सबको साथ ले के चलता है. वह कहेता भी है कि “सबका साथ सबका विकास”. श्रेष्ठ उदाहरण उसका “जीएसटी” है.
वास्तवमें देखा जाय तो कान्तिभाईके सब कथन अर्थहीन ही नहीं तर्कहीन ही नहीं, किन्तु साथ साथ वाणीविलास भी है. संदेश तो यही निकलता है.
कटारीया भाई, प्रियंका गांधीके उपर आफ्रिन
प्रियंका गांधीकी योग्यता कैसे सिद्ध करें? यह समस्या कान्तिभाई के लिये है ऐसा लगता है. तो कान्तिभाईने सोचा कि चलो कुछ ऐसे गुण प्रियंकामें स्थापित करें.
कान्तिभाई प्रियंका गांधीकी योग्यताकी बात करें, उसके पूर्व, हम प्रधान मंत्री में कैसे गुण होने चाहिये और कैसे नहीं होने चाहिये उसका अव्यवस्थित विवरण दे देंगे.
कान्तिभाईकी मानसिकताकी बात करें उसके पहेले १९६५में मीडीया कर्मी मूर्धन्य लोग कैसा लिखते थे उसका एक सिंहावलोकन कर लें.
प्रधान मंत्री कैसा होना चाहिये?
क्या प्रधान मंत्री ज्ञानी होना चाहिये? “नहीं तो … ज्ञान तो हमेशा अपर्याप्त ही होता है. क्यों कि ज्ञानके विषय तो अगणित है. उसमें कोई भी व्यक्ति, सभी विषयोंमें विशारद हो ही नहीं सकता. प्रधान मंत्री विभिन्न, क्षेत्रोंके ज्ञाताओंको सलाहकार रख सकता है. स्वयंको विशारद बनने की आवश्यकता नहीं”
क्या प्रधान मंत्री डीग्रीधारी होना चहिये? “नहीं तो … रावण तो रामसे भी अधिक पढा लिखा था ही न … “
क्या प्रधान मंत्री अनुभवी होना चाहिये? “नहीं तो … अनुभव होने से क्या होता है. वह अनुभवी लोगोंकी सलाह भी ले सकता है न …”
क्या प्रधान मंत्री वयस्क होना चाहिये? “नहिं तो … अरे तुम देखो … विदेशमें बडी बडी संस्थाओंमे युवान लोग होते है…”
क्या प्रधान मंत्री वरिष्ठता क्रममें आगे होना चाहिये? “नहीं तो … ऐसी वरिष्ठता देखते रहोगे तो सियासतमें एक स्थगितता आ जायेगी… हमें आगे बढना है या नहीं …?
इसमें, नहेरु वंशके समर्पित होने की दुर्गंध नहीं आती है क्या?
कान्तिभाई आगे चल कर कहेते है कि देशको भला–भोला राजकर्ता चाहिये.
वाह क्या अदा है !!
क्यों भाई? भला भोला क्यूँ?
कान्तिभाई उसका विवरण नहीं देंगे. जब तर्क हीन तारतम्य निकालने हो तो विवरण देना आवश्यक नहीं है.
व्यक्ति कहीं न कहीं तो अज्ञानी होता है. अज्ञानी और “भला भोला” में कोई अधिक फर्क नहीं है.
नहेरुने चीनके साथ भला बनके अच्छी मैत्री निभाई. सुरक्षा समितिमें जगह दिलाई. और चीन ने भोले नहेरुको अपनी दुश्मनी दिखाई. भोले नहेरुने कहा, हमें दुश्मनने दगा दिया. अरे भाई दुश्मन दगा नहीं देगा तो कौन देगा?
भारतीय सेनाने १९७१ के युद्ध अंतर्गत अभूतपूर्व विजय दिलाई.
इन्दिराने भोले बनके सिमला करार के अंतर्गत सेनाकी जीती हुई भूमि वापस कर दी और कई सारे भला–भोलापन दिखाके भारतीय सेनाकी जीतको घोर पराजयमें परिवर्तित कर दी. आज भी हम उसके फल भूगत रहे है. कान्तिभाईको देखते हुए भी यह सब दिखाई नहीं देता. और वे भला–भोला की इमोशन बाते करकें मोदी ही नहीं चाणक्यकी उपलब्धियों को मीथ्या बना देते है. इसको हम क्या समज़ेंगे?
कान्तिभाईका मीथ्या “सियासती काव्य”, या भारत देशकी “विडंबना”?
नरेन्द्र मोदी जो परिवर्तन कर रहे है, उनमें इस कटारीयाभाई(कोलमीस्ट) को परिवर्तन दिखाई देता नहीं है. भूमिगत विकास, सबको घर, नैपुण्यताकी शिक्षा, स्त्रीयोंको शिक्षा और बहुमान, पर्यावरण सुरक्षा, सफाई, हर घर संडास, उत्पादनमें वृद्धि, आर्थिक अपराधीयों पर कार्यवाही, भ्रष्टाचार मुक्त समाज करने के लिये प्रणालीयोंमें सुधार, और पारदर्शिताके लिये सभी सेवाएं ऑन–लाईन पर उपलब्ध कराना… ये सब कान्तिभाईको परिवर्तन नहीं लेकिन गढ्ढेका पानी दिखाई देता है.
कटारीयाभाईको, जो कोंगी [इन्दिरा नहेरु (पारिवारिक) कोंग्रेस (आई.एन.सी.)] जिसके लिये खुलेमें शौच, गंदकी, भ्रष्ट प्रणालीयां, भ्रष्टाचार, स्त्री–पर अत्याचार … आदि कोई समस्या है वैसा उनके दिमागमें भी नहीं था. वैसी पार्टीका परिवर्तनके नाम पर गुणगान सूनाते है.
कटारीयाभाईको लगता है कि, जो नेक दिल वाला मोदी कर रहा है वह स्थगितता है और जो ५५ सालमें इन्दिरा नहेरु कोंग्रेसने किया वह परिवर्तन था?
लेखके अंतमें लेखक स्वयं निश्चित कर पा नहीं रहे है क्या लिखा जाय.
मोदीने जो कालेधनके जत्थेका अनुमान लगाके कहा था कि काला धन इतना है कि यदि उसको बांटा जाय तो हरेककी जेबमें १५ लाख आवें. लेकिन कुछ मूर्धन्य लोग इसको मोदीका १५ लाख देनेका वचन माना और, ऐसा अर्थघटन करते रहे है मोदीने १५ लाख देनेका वादा किया है. लेकिन यही लोग राहुल के आलुमेंसे सोना बनानेकी मशीनकी बात पर चूप है.
प्रीतीश नंदी चौकीदारकी परिभाषा करते है. शब्दार्थ पर जाते है. उसका विवरण करते है. फालतु बातें करते है. जो बातें विवादास्पद है, उनको सत्य मानके तारतम्य निकालते है. उनको एक मोदी विरुद्ध माहोल बनाना है. प्रीतीश नांदी बोलते है “मोदी एक पंथ” है. और उसने ५ साल बिगाड दिया.
बिगाड दिया मतलब क्या?
इस बातकी तार्किकता पर वे मौन है. क्यों कि ऐसे कोलमीस्ट, तर्कमें नहीं मानते है. उनको तो सिर्फ अपन जो मानते है उसको ही प्रगट करना है और उनके दिमागमें जो आया वह स्वयंसिद्ध है.
वे आगे लिखते हैं सब निर्णय मोदी ही करते थे. वृद्धोंको एक बाजु पर कर दिया. शाहको आगे किया. मोदीने विरोधीयोंको देशद्रोही कहेना चालु कर दिया.
देश द्रोही कौन है?
मोदीने तो कभी कुछ कहा नहीं. हाँ अवश्य ही, सोस्यल मीडीयामें मोदी समर्थकोंने कुछ लोगोंको देशद्रोही कहेना शुरु किया ही है.
अभी आप देखो. जे.एन.यु.में राष्ट्रविरोधी नारे लगे थे. वे नारे क्या थे?
“भारत तेरे टूकडे होगे, कश्मिरको चाहिये आज़ादी, नोर्थ इस्टको चाहिये आज़ादी,
“लडके लेंगे आज़ादी, तल्वारसे लेंगे आज़ादी,
“अफज़ल हम शर्मींदा है कि तेरे कातिल जिन्दा है,
“कितने अफज़ल मारो गे, हर घरसे अफज़ल निकलेगा …
इस प्रकारके नारोंका विरोध होना ही था… और विरोध हुआ ही…
तो फिर क्या हुआ?
इन्दिरा नहेरु कोंग्रेसके राहुल, केज्रीवाल … अदि कई सारे नेताएं, मीडीया कर्मी, सेंकडो लोग जे.एन.यु. पहूंच गये और उन तथा कथित विद्यार्थीयोंको कहेने लगे कि हे युवागण तुम आगे बढो … हम तुम्हारे साथ है. यही लोग तो आतंकवादीयोंके मानव अधिकार और सुरक्षाकी बात पर शासनको लताड रहे है. इन्ही लोगोंके कारण नारे बाजी और अलगतावाद अन्य जगह भी होने लगा.
जिन्होंने ऐसे नारोंका विरोध किया और उनके समकक्ष या उससे बदतर विधानोंका विरोध किया, उन सबको इन नेताओंने और मीडीया कर्मीयोंने एक “लेबल” लगा दिया. और वह लेबल था “अतिराष्ट्रवाद”.
मतलब कि देशविरोधी नारे लगाना, नारे लगानेवालोंका वाणीस्वातंत्र्य का हक बनता है. लेकिन इन नारोंका विरोध करनेवालोंका कोई वाणी स्वातंत्र्यका हक नहीं है.
ऐसी अवस्थामें आप देशद्रोहीयों की परिभाषा क्या करोगे?
शेखर गुप्ता और प्रीतीश नंदीका एजन्डा एक ही लगता है. शे.गु. समज़ते है कि मोदी समज़ता है कि सीमा पारका जो है वह दुश्मन है. ये बात शे.गु.ने बिना अभ्यास किये मान ही ली. वास्तवमें पाकिस्तानके सिवा मोदीने किसीको दुश्मन नहीं माना. “पाकिस्तान”से मतलब है पाकिस्तानी सेना, आतंकवादी, आई.एस.आई. और इनसे मजबुर पाकिस्तानकी सरकार, और इनका गठबंधन. पाकिस्तानकी जनताको दुश्मन नहीं माना. लेकिन यदि गठबंधन दुराचारी है तो पाकिस्तानकी जनताको सहन करना ही पडता है.
इन्दिरा–नहेरु–कोंग्रेस (आई.एन.सी.) जो स्वयं भ्रष्ट है और भ्रष्टताके कारण न्यायालयने प्रारंभिक जाँचके अनुसार उनको गुनाहगार होनेके सबूत पाये और न्यायालयके आदेशसे जमानत पर है (जो महात्मा गांधीके सिद्धांतोसे विपरित है. महात्मा गांधीने कभी भी जमानत पर जानेका आवेदन नहीं दिया), गफलाबाज है, नोटबंदीके कारण उनका कैश मनी पस्ती हो गया इससे पीडित है, वे लोग चौकीदार चोर है ऐसे नारे लगाते है.
ये कोंगी लोग कौन है जो कहेते है
हम दिलायेंगे न्याय
हम दिलायेंगे अधिकार
यदि मूर्धन्य लोग देशको इन कोंगी ठगोंसे और उनके सांस्कृतिक साथीयोंसे न बचा सकें तो आम जनताको ही आगे आना पडेगा.
इन्दिरा–नहेरु–कोंग्रेसने सर्वप्रथम देशकी आम जनताको किस सीमा तक स्वकेन्द्री बना दिया है उसका पता २२ मई २०१९को पड ही जायेगा.
शिरीष मोहन लाल दवे