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Archive for December, 2018

क्या आजके जयचंदोंको मालुम है कि वे जयचंद है? – २

how we create news

कार्टुनीस्टके सौजन्य और आभार

(३) “ब” भी क्रोधित होके “अ” को थप्पड मारेगा

यदि “अ” हिन्दु है और “ब” मुस्लिम है तो हिसाब बराबर हो गया.

यदि “अ” मुस्लिम है और “ब” हिन्दु है, तो “ब”को असहिष्णु माना जायेगा. मुस्लिम ने तो मारा, लेकिन हिन्दुने क्यों मारा? हिन्दुने कायदा अपने हाथमें क्यूँ लिया. यह तो “आँख” के बदले “आँख” ले लेना वाला मामला हुआ.

यदि “अ” और “ब” दोनों मुस्लिम है तो जिक्र तक नहीं होगा.

यदि दोनों हिन्दु है तो “हिन्दु तो ऐसे ही असहिष्णु होते है.” दोनोंको पूलिस हिरासतमें ले लेगी. या तो पैसे वसुल करके छोड देगी. या तो न्यायोचित कार्यवाही करेगी.  

(४) “ब” क्रोधित होकर “अ”के तूट पडेगा और एकसे अधिक थप्पड मारेगा,

यदि “अ” हिन्दु है और “ब” मुस्लिम है तो हिसाब हो गया. यह हिसाब शाश्वत बराबर ही रहेगा चाहे “ब” कितनी ही बार लगातार थप्पड मारता ही रहे तो भी हिसाब तो बराबरी का ही माना जायेगा. बाबरी मस्जिद ध्वंश के बाद का मुस्लिमों द्वारा किया गया कई हिन्दु मंदिरोंका ध्वंश और लगातार हिन्दुओंका नर संहार.

यदि दोनों हिन्दु है तो “ब”के उपर न्यायिक कार्यवाही होगी.

यदि दोनों मुस्लिम है तो यदि फरियाद हुई तो न्यायिक कार्यवाही होगी.  

 (५) “ब” हमेशा क्रोधित ही रहेगा और जब जब “अ” सामने दिखाई देगा तब तब उसको थप्पड मारेगा. और मौका ढूंढता ही रहेगा.

यदि “अ” हिन्दु है और “ब मुस्लिम है तो समाचारको छीपानेकी कोशिस होगी. समाचारोंको नकारा जायेगा. जैसे कि “केराना” जैसे मुस्लिम संख्यक विस्तार.

यदि “अ” मुस्लिम है और “ब” हिन्दु है. यह होना संभव ही नहीं.

(६) “ब” है वह “अ”का खून कर देगा.

यदि “अ” हिन्दु है, और “ब”मुस्लिम है तो हिसाब बराबर हो गया.

यदि “अ” मुस्लिम है और “ब” हिन्दु है. ऐसी घटना हो ही नहीं सकती. यदि “अ” असामाजिक तत्व है या तो आतंकवादी है, तो “ब” ने एनकाउन्टर किया ऐसा मानकर “ब”के उपर एनकाउन्टर करने कि कार्यवाही होगी.

ये “अ” और “ब” व्यक्ति और जूथ दोनोंको लागु पडता है.

और यह जो फर्जी कोंग्रेस है और उसके जो सांस्कृतिक साथी है वे ऐसा विधेयक लानेवाले है जिससे भारतके हिन्दु रसाताल हो जाये.

यह बात तनिक भी असंभव नहीं है. कश्मिरमें हजारो हिन्दु महिलाओं पर बलात्कार हुआ, हजारों हिन्दुओंका कत्ल हुआ और लाखों हिन्दुओंको बेघर किया तो भी इस देशव्यापी फर्जी कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथी फारुख ओमर अब्दुल्ला और उनके पालतु समाचार माध्यमोंके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. और जब नरेन्द्र मोदी की बीजेपी सरकार कश्मिरमें हिन्दुओंके लिये आवास बना रही है तो यही लोग “कश्मिरकी डेमोग्राफी बदल जायेगू” ऐसा शोर मचाते है. और यही लोग मुस्लिम घुसखोरोंके कारण जो उत्तर-पूर्व भारतकी “डेमोग्राफी” बदल गई है उस घटनामें घुसखोरोंको नागरिकता देनेका आंदोलन कर रहे है. ईतना ही नहीं उनको रोहिंग्या मुस्लिम जो कश्मिरमें बडी मात्रामें घुसखोरी करके बस गये है तो भी उनको “काश्मिरकी डेमोग्राफीके बदलावकी परवा नहीं. इससे यह साफ निष्कर्ष निकलता है कि यह फर्जी कोंग्रेस, उसके सहयोगी फारुख ओमर अब्दुल्ला, मुस्लिम आतंकवादीयोंकी तरह ही कोमवादी ही है और वे व्यक्ति और व्यक्ति समूहको धर्मके आधारसे ही पहेचानते है, विचारते है और आचरण करते है.

आघातके विरुद्ध प्रत्याघात यह प्राकृतिक है (यह प्राकृतिक अधिकार भी है)

यदि मुस्लिम मौलवी लोग और ख्रीस्ती प्रीस्ट लोग अपने धर्म वालोंको कोंगी को वोट देनेका अनुरोध कर सकते है, तो हिन्दुओंको चाहे हिन्दुओंके धर्मगुरु बीजेपीको वोट देनेका अनुरोध करें या न करें, हिन्दुओंको बीजेपी प्रत्याषीको वोट देना ही चाहिये. इसमें कोई असहिष्णुता या कोमवाद नहीं है. यह एक प्रत्याघात है. हिन्दुओंको कोमवादके लेबल से गभराना नहीं चाहिये. क्यों कि हिन्दु कभी कोमवादी है ही नहीं और वह असहिष्णु भी नहीं है. लेकिन यदि अन्य धर्मके लोग एक खास  पक्षके विरुद्ध वोट देनेकी मानसिकता बना सकते है तो हिन्दुओंको प्रत्याघातके रुपमें बीजेपीको ही श्रेष्ठ पक्षके नाते और नीतिमान होनेके कारण वोट देना ही चाहिये.

तो क्या हिन्दु मूर्ख है कि वे “आ बैल मुज़े मार” ऐसा सोचके इस फर्जी कोंग्रेसको वोट देते हैं?

I will stop writing

Curtsy of Cartoonist

कुछ हिन्दु अवश्य केवल और केवल स्वकेन्द्री है.

स्वकेन्द्री होने से वे स्वयंको अभी अभी ही क्या मिलने वाला है वे सोचते हैं. वे कलका सोचते नहीं है. इसके कारण वे जातिवादका सहारा लेते हैं. कोंगीके ६५ सालके शासनने समाजकी नीतिमत्ताका विनीपात कर दिया.

यदि कोई “एक बातको” माननेसे देशको “कल” लाभ होनेवाला है और उससे “हम सबको” भी लाभ होनेवाला है. ऐसी बात ये लोग नहीं समज़ सकते.

लेकिन यदि दुसरी कोई बातसे “आज ही मुज़े लाभ” मिलने वाला है तो वह देशकी परवाह नहीं करेगा.

जो “लाभ आज ही” मिलने वाला है वह बात मानी जाएगी. चाहे वह लाभ वचनके रुपमें क्यों न हो!! चाहे “आजका लाभका वचन” देनेवाला उसे “बारबार उल्लु बनानेवाला ही” क्यों न हो? यह फर्जी कोंग्रेसने बारबार ऐसा ही तो ६५ वर्ष तक किया है.

ऐसा क्यूँ होता है?

वास्तवमें ये बेवकूफ लोग यह समज़ते है कि, “चाहे उनका आखरी हो यह सीतम, यह सोचके, सह लिये है हर सीतम.”

बहुतेरे समाचार पत्र और उनके कटार लेखक (कोलमीस्ट्स) क्यों बीजेपीके विरोधी है? क्या उनको ज्ञात नहीं कि बीजेपीके सामने कोई अन्यपक्ष नीतिमत्तामें बहूत ही पीछे है? क्या उनके पास सापेक्षतासे सोचने कि क्षमता नहीं है.

“स्वार्थ, अहंकार और पूर्वग्रह” के कारण ये लोग विवश है? स्वार्थसे मतलब है पेईड आलेखन. अहंकार से मतलब है, मैं कभी गलत हो ही नहीं सकता. बीजेपी वाले मुज़े कहां बुलाते है? बीजेपी वाले जो कोंगीके शासनसे जो भयानक परिस्थितियां बननेवाली है वह सही नहीं है. वे लोग बढा चढाके बोलते है.  यह है उनका पूर्वग्रह. इन लोगोंने कोंगीका शासन देखा है. लेकिन अपना उल्लु सीधा करने के लिये ये लोग धारणाओंके आधार पर बीजेपीकी विरुद्ध है.

ओके. आप बीजेपीके विरुद्ध है तो मौन रहो. लेकिन जूठ और फरेबी बाते मत लिखो.

अभी जो बीजेपीकी पराजय हुई तो इसका तथ्य क्या है. जातिवाद और कोमवादका सहारा कोंगीने तो लिया ही है. प्रारंभ भी उसने ही किया था. अशिष्ट भाषाका प्रयोग तो कोंगीके सर्वोच्च रा.गा.ने ही “मोदी चोर है”का नारा लगाया था. अब इसके प्रत्याघत तो होगा ही. तो बीजेपीके कोई छोटे मोटे नेता कुछ न कुछ तो बोलेंगे ही. तो इस बात पर दोनोंकी समान तुलना तो हो ही नहीं सकती.

अभी ये कटारीया लोग भारतकी पराजयको को

“बीजेपी को उल्टे मूँहकी खानी पडी…”

“बीजेपीकी घोर पराजय हुई …”

“बीजेपीका सूपडा साफ …”

“बीजेपी को अहंकार नडा …”

“बीजेपी के पाँव ज़मीनसे उखड गये …

“बीजेपी मूँह दिखानेके योग्य नहीं रहा …

“मोदीकी धज्जीयाँ उड गई …

“बीजेपीका कारमा (करुण) पराजय,     

 ऐसा जो भी शब्द प्रयोग दिमागमें उपलब्ध था कर दिया.

चलो बीजेपी मध्य प्रदेशका चूनाव देखें

पूरे एमपीमें बीजेपीको १०८१० वोट कोंगीसे कम मिले. 

बीजेपीने ३४ सीट ३०० से कम वोटोंसे हारी

बीजेपीने ६ सीट १० वोटोंसे हारी

बीजेपीने २ सीट १ वोटसे हारी

नोटा वोट ४१५०००

४१५ ००० मतदाता मीडीया प्रचारसे और जो  स्वयंको प्रो-बीजेपी,  मूर्धन्य और विश्लेषक  मानते है और फिरभी वे स्वयं कितने तटस्थ है वह दिखानेके लिये बीजेपी को/नरेन्द्र  मोदीको  सोसीयल मीडिया पर और समाचार माध्यमोमें  अपने मनगढंत मान्यतासे सलाह देते थे, ऐसे लोगोंसे , ये कुछ लोग असमंजसमें पड गये और नोटा दबाया.

कोंगीकी एक चाल यह भी थी कि वह अपनेको नीतिमान तो सिद्ध नहीं कर पायेगा लेकिन बीजेपीके विरुद्ध तो अफवाह फैलाके कुछ लोगोंको असमंजसकी स्थितिमें (कन्फ्युज़्ड अवस्थामें) ला ही सकते है.

इसके कारणमे वही घीसेपीटे बाते करेंगे … कि जीएसटी फेईल, नोटबंधी फेईल …

लेकिन जीएसटीसे करप्रणाली सरल हो गई, और इससे सही रास्ते पर चलने वालोंको लाभ है और कर-अधिकारी अब उनके साथ मनमानी नहीं कर सकते. इसकी चर्चा ये माईके लाल नहीं करेंगे.

विमूद्रीकरणसे, पान नंबर और आधार कार्डके कारण

(१) ३ लाख फर्जी कंपनीयाँ सामने आई, अब उनके उपर कार्यवाही चल रही है,

(२) ११४५ एन जी ओ, को रद किया जिन्होंने २.५ लाख भारतीय गरीबोंका धर्म परिवर्तन करवाया था.

(३) सभी काला धन की नोट, सरकारी रेकर्ड पर आ गयी, अभी फर्जी एकाउन्ट पर कार्यवाही चल रही है,

(४) पान-कार्ड को और आधार कार्डको लींक करनेसे हजारो करोडके बेनामी व्यवसायोंका पता चला है और उसके उपर कार्यवाही चल रही है,

(५) १५० करोडकी खादी सब्सीडी पकडी गयी.

(६) आतंकवादी और नक्षलवादीयोंकी कमर तूट गयी,

(७) १३००० फर्जी शिक्षक पाये गये

(८) १.४३ करोड फर्जी रेशन कार्ड बंद हो गये

(९) ५ करोड घरोंको गेस मिला,

(१०) ५० करोड लोगोंको मेडीकल सुविधा,

(११) १८४५० देहातोंको बीजली.

(१२) १.५ करोड नये आय करदाता

(१३) १५ प्रतिशत आयकरमें वृद्धि

ये सब तो बीजेपीकी उपलब्धीयोंकी हिमशीलाकी टोच मात्र है. १२५००० अतिरिक्त आयकर अधिकारी नियुक्त किये गये है वे सब वीत्तीय गोलमाल करनेवालोंको कारावास ले जानेकी व्यवस्था कर रहे है.

NO NEED FOR THIS WE HAVE SCAM SCHEME

Curtsy of Cartoonist

अब ये जयचंद लोग मोदीके विदेशी दौरोंके बारेमें खर्चका हिसाब करेंगे. अब उसकी तुलना मनमोहनसे करें. ६५ सालके शासनमें कई गुनाहगार विदेश सदाके लिये भाग गये. उनमेंसे कमसे कम एन्डरसन और क्वॉट्रोची को तो राजिव और अर्जून सिंघ खुदने सरकारी गाडीमें भगाये. दाउदको कोंगीने और एनसीपीके शिर्षनेताओंने मिलकर भगाये. ६५ सालके अपने शासनके दरम्यान एक भी भगौडेको कोंगी देशमें वापस न ला सकी. यह भी कोंगीका एक कमाल है.

इन सब उपलब्धीयोंका जिक्र तक नहीं करने वाले, विदेश नीतिमें भारतकी शाख सर्वोच्चस्तर पर ले जाने वाले नरेन्द्र मोदीके अथाक परिश्रमको अनदेखी करने वाले जयचंद नहीं है तो क्या है?

यह वंशवादी कोंगी व्युह रचनामें चूनावी व्युह रचनामें होंशियार है. वह २०१४ चूनावमें हार गयी क्यों कि उसका भ्रष्टाचार असीम था. सुरक्षा और विकासके कार्यक्रममें तब तक निर्णय लिया नहीं जात जब तक उसका खुदका हिस्सा तय नहीं हो जाता. रफेल का सौदाकी कार्यवाही तो २००६से चलती थी, लेकिन यह वंशवादी कोंग्रेस उसके उपर २०१४ तक निर्णय नहीं ले पायी, क्यूँ कि वंशवादीयोंका हिस्सा तय नहीं हो रहा था. राहुलका और उसके सहयोगीयोंका जूठ सर्वोच्च न्यायालयने नकार दिया, तो भी इन लोगोंको शर्म नहीं. क्योंकि बेशर्मी इन्होंने हजम कर ली है. १९५०के बाद, नहेरुसे ले कर रा.गा. तकके नहेरुवीयन जूठ बोलनेके आदी है. यह बात ऐतिहासिक सत्य है. और इन्दिरा गांधीसे तो उनका जूठ बोलना एक प्रकृति बन गया है. सोनिया रा.गाने तो हर सीमा पार कर दी है. इन कोंगीयोंका जूठ तो देखो …

fake news

Curtsy of Cartoonist

अटल बिहारी बाजपाई अंग्रेजोंकी क्षमा मांगके कारावाससे मूक्त हुए थे,

मोरारजी देसाई सी.आई.ए.के एजन्ट थे,

वी.पी. सिंहका सेंटकीट्समें अवैध एकाउंट था,

फर्नाडीसने कोफिनमें भ्रष्टाचार किया था,

बाबा रामदेव और अन्ना हजारे सरसे पाँव तक भ्रष्टाचारी है,

किरन बेदी हवाई जहाजकी टीकटमें पैसे खा गयी,

मोदीने ५००० करोड एकड जमीन रीलायन्स को दान कर दी,

राफेलमें “xxxxx”हजार करोड मोदी खा गया है. (हर समय भ्रष्टाचारका अंक बदलता रहता है.

यह कोंग्रेस तो जयचंदोंसे हजारगुना खतरनाक है. इस कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस कहेना देशके शहीदोंका अपमान है.  यदि आप शहीदोंके अपमान कर्ताओंके ये मूर्धन्य कटारीया कोलमीस्ट्सके साथ है तो अवश्य आप भी देशके दुश्मन है.

इस देश द्रोही कोंगी कौन कौनसे जूठका प्रचार करना और कैसे करना उसकी एक विशाल परिकल्पना तयार की है.

मोदी जैस प्रधान मंत्री और उसके जैसा मंत्रीमंडल, विद्यमान पक्षोंसे नेताओंमेंसे कोई भी नहीं दे सकता. यह सत्य समज़ो.

सियासतमें सापेक्षताको समजो. यदि आपने नहीं समज़ा तो भविष्यकी जनता आपको क्षमा नहीं करेगी. वे आपके उपर थूंकेगी. 

शिरीष मोहनलाल दवे

 

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क्या आजके जयचंदोंको मालुम है कि वे जयचंद है? – १

जयचंदकी परिभाषा क्या है?

जैचन्द

(१) वैसे तो जयचंद वास्तवमें क्या था वह हमे ज्ञात नहीं लेकिन जिस अर्थमें यह शब्द प्रचलित है उस भावसे हम उसको लेंगे. जो व्यक्ति इतनी हद तकस्वकेन्द्री होता है कि वह समग्र देशके हितकी अवगणना करके अपने हितके लिये देशके दुश्मनोंकोसहाय करता है. वह जयचंद है.

क्या भारतमें देशद्रोह परंपरा प्राचीन समयसे चली आती है?

इस विषय पर चर्चा करना अनावश्यकहै. लेकिन भारत एक अलग विस्तारसे पहेचाना जाता था. देशमें परंपरा यह थी कि ॠषि राजाकेसलाहकार होते थे. ॠषि लोग राजाके लिये प्रणालि स्थापित करते थे. शासनके लिये एक सलाहकारमंडळ रहेता था और उसका मुखिया प्रधान कहेलाता था. न्याय करनेवाला राजा था. राजा सलाहअवश्य ले सकता था. देश छोटे बडे राज्योंमें बटा हुआ था लेकिन देशकी परिकल्पना अवश्यथी. भारत देश की सीमा का विवरण सबसे पुराना पुराण “वायु पुराण”मे “भुवन विन्यास”केछे अध्यायोंमें मिलता है. जंबुद्वीप के वर्णनसे ऐसा लगता है कि वह बृहद भारत था. भारतको देवोंका प्रिय देश बताया गया है. जंबुद्वीपमें, भारत देश भारतीय संस्कृतिका केन्द्रथा.

भारतीय संस्कृतिकी पहेचान उसके शास्त्रोंसे है. शास्त्रोंके आधारसे सब व्यवहार चलता था. राजा कोई भी हो लेकिन संस्कृति वही रहेती थी. भारतवर्ष, जंबुद्वीपका गुरु था. देशकी परिभाषा संस्कृति थी.

अंग्रेजोने “देश”की परिभाषा शासकके “राज्यकी सीमा” की. हमारे पराधीन मानसिकता वाले मूर्धन्योंने इस परिभाषाको मनबुद्धिसे स्विकृत किया.

भारतकी संस्कृति शास्त्रपर आधारित थी. जैसे कि, नाट्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, योगशास्त्र, आरोग्यशास्त्र, युद्धशास्त्र, न्यायशास्त्र, दंड शास्त्र, वेद, नृत्य शास्त्र, तर्कशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, इतिहास (पुराण), धर्मशास्त्र …. ये सब शास्त्र “संहिता” भी कहेलाते है.

(२) भारतका सर्वप्रथम जयचंद, आंभीका राजा था. इसने सिकंदरका साथ दिया था. दुसरा जयचंद , पोरसका भतीजा था जिसने  सेल्युकसका साथ दिया था.

जो स्व हितके लिये देशके दुश्मनको साथ देता है उसको भारतका राज्यशासन क्षमा नहीं करता. चाहे वह कितना ही निर्बल क्यों न हो. उच्च कोटीके कुलका क्यों न हो! इसलिये कौटील्यने पोरसके भतीजेको हाथीके पैरों तले कुचलवा दिया था.

(३) कौटील्यने क्या कहा था;

कौटील्यने उसके पूर्वके शास्त्रोंके आधार पर अर्थशास्त्र लिखा है. इस शास्त्रमें उसने साफ साफ कहा कि दुश्मनको कभी छोटा नहीं समज़ना. इसीलिये पोरस जो महान था, और जिसने सिकंदरको और उसकी सेनाको “नानी याद करवा दी” थी, और सिकंदरको ऐसी स्थितिमें ला दिया था कि,  उसको पोरससे संधि करनी पडी. सिकंदर और उसकी सेना, हतप्रभ हो गया था.  वह भारतके उस समयके विराट साम्राज्यके साम्राट धननंदसे युद्ध करने कि हिमत नहीं कर पाया था. वह अपनी सेना जो, हरेक भौगोलिक और वातावरणकी परिस्थितिमें युद्ध करनेमें सुशिक्षित और सज्ज थी, उस सेनाको नानी (अपना वतन) याद आने लगी थी. इसके परिणाम स्वरुप सिकंदर भारतसे लौट गया. वैसे तो उसने लौटते समय भी रास्तेमें बीचमें आनेवाले कुछ राज्योंके साथ युद्ध किया था.

जिसको ऐतिहासिक युग कहेते है उसयुगमें (ई.पू. ५००से पश्चात) तो भारत एक देश था ही. वैसे तो वेदकालमें भी (ई.पू. १२५००+)में भी भारत एक देश था ही जो ईरान से लेकर ब्रह्मदेश और तिबटसे लेकर श्रीलंका तक फैला हुआ था. जंबुद्वीपके अन्य देश भारतसे प्रेरणा लेते थे.

भारत कैसे एक देश है?

भारतीय संस्कृति अपने शास्त्रोंसे सनातन है. आज भारत छोटा हो गया है. क्यों कि सभीने देशकी पाश्चात्य पंडितोकी परिभाषित व्याख्या स्विकृत कर ली है. हमारा भारतीय संविधान विभाजित भारतमें लागु पडता है. हमारा संविधान, पाकिस्तान, ब्रह्मदेश, श्रीलंका, बंग्लादेश आदिमें चलता नहीं है.

कई लोग प्रवर्तमान भारतमें, समानता के स्थान पर, भीन्नता देखते है. लेकिन जो श्रेष्ठ और असरकारक है वे हमारे भारतीय शास्त्र है.

(४) जो लोग इन शास्त्रोंकी समानताको नकारते है और अन्य भीन्नताओंकी बातें करते हैं और भारतीयोंको विभाजित करनेका काम करते है उनमें कोंगी प्रथम है. कोंगीका मतलब है कोग्रेस (इन्दिराइ संस्कृतिवाला पक्ष)

(५) जो लोग १९४७में जिसका विभाजन हुआ, उसका एक बार और, विभाजन करनेके लिये कृतनिश्चयी तत्त्वोंको परोक्ष और प्रत्यक्षरुपसे, जानबुझकर या तो अज्ञात होनेसे, ज्ञानी होने से या अज्ञानी होनेसे, अल्पज्ञ होनेसे या निरक्षर होनेसे, स्वार्थसे या कोई और एजन्डासे, सहयोग करते है वे देशके दुश्मन है और उनको भी जयचंद ही मानना चाहिये.

मोदी के एक भी मंत्रीने मंत्री होनेके नाते कोई लाभ नहीं लिया है. मंत्री-मंडलमें किसीने भी कभी लाभ लिया नहीं है.  सर्व प्रथम मोदीको समज़ो. उसके करीबी रीस्तेदारोंने क्या मोदीके नामका लाभ लिया है?

अन्य पक्षोंके नेताओंको देखलो.

(६) सोनिया रा.गा. गेंगके सदस्योंके खुद पर आपराधिक मामला दर्ज है. और वे जमानत पर है. उनके करीबी रीस्तेदार भी जमानत पर है या तो उनके उपर न्यायिक कार्यवाही चल रही है.

इस पक्षके अन्य नेता जैसे कि एहमद पटेल, कपिल सिब्बल, पी. चिदम्बरम, अभिषेक मनु सिंघवी, शीला दिक्षित … आदिके बारेमें सुज्ञ लोग अज्ञात नहीं है. जो पक्ष मीडीया को ४० करोड रुपये एक “हेलीकोप्टरके डीलमें स्कॅमको प्रसिद्धि न दे”, उसके लिये दे सकता है वह क्या नहीं सकता?

उसके साथी पक्षोंका चरित्र भी कोंगी जैसा ही है. इससे भी कही बदतर उनका आर्थिक चारित्र्य है.

(७) जूठ और सिर्फ जूठ

रा.गा के उच्चारण देख लो. जूठ बोलनेकी कोई सीमा नहीं.  “नरेन्द्र मोदीने रीलायन्सको खरबों  रुपया दान दे दिया, ५००० करोड एकड भूमि भी रीलायन्सको दानमें दे दी. नोटबंदीमें सेंकडो लोग लाईनमें खडे रहेनेसे मर गये, हाजारों लोगोंको अस्पतालमें दाखिल होना पडा इनमेंसे कई लोग अस्पतालमें मर गये. किसीकी जेबमें १५ लाखा आया नहीं. …”

किसानोंकी हालत बदतर किसने रक्खी?

इस कोंगीने तो ६५ साल शासन किया. तो किसानकी ऐसी प्रवर्तमान हालातके लिये कौन जिम्मेवार हुआ? अवश्य कोंगी ही है. यह कोंगी जब उसका शासन नहीं है तब नरेन्द्र मोदीके उपर किसानकी हालतका ठीकरा फोडता है. जो गुनाह खुद कोंगीने किया उसका जिम्मेवार यह कोंगी बीजेपी को मनवाती है.

(८) भारत विरोधी नारे लगानेवाले लोगोंका समर्थन कौन करता है?, यह कोंगीके सर्वोच्च नेता रा.गा. ही तो पक्ष लेता है. इस पक्षका एक नेता नरेद्न मोदीको हटानेकी तरकिबें पर गुफ्तगु करनेके लिये पाकिस्तान जाता है. वहां जाके सरेआम टीवी चेनल पर पाकिस्तानकी मदद मांगता है.  इस पक्षका एक नेता पाकिस्तान जाके खालिस्तानी आतंकवादी से बंध कमरेमें मुलाकात करता है, पाकिस्तानी सेनाके मुखीयाको गले मिलता है. और यह सब वह रा.गा.की सूचना पर करता है.

(९) दंगोंका शहेनशाह कोंगी; दंगा करवाना बांये हाथका खेल

यही लोग देशको जातिवाद पर बांटनेमें हमेशा सक्रिय रहते है और “चोर कोतवालको दंडे”. ये लोग बीजेपीको जातिवादी और कठोर हिन्दुत्व वादी है ऐसे नारे लगाते है. इस कोंगीके लिये दंगा करवाना बांये हाथका खेल है, १९६९, १९७२, १९८२-१९८४में गुजरातमें दंगे करवाये, १९८१-१९८८में पंजाबमें आतंकवाद फैला दिया, १९८९-९०में कश्मिरको हिन्दुमुक्त करदिया, उसके बाद सारे देशमें बोंब धमाके करवाये.

काश्मिरके हिन्दुओंकी कहानी क्या है?

ये कोंगी लोग बोलते है कि काश्मिरमें अशांति बीजेपीने करवाई.

(१०) १९८९-९० +++ काश्मिरमें हिन्दुओंका मानवसंहार किसने करवाया?

यदि कोंगीके शासनमें कश्मिरमें शांति थी तो अपने ही राज्य काश्मिरमें विस्थापित हिन्दुओंको पुनर्स्थापित क्यों नहीं किया? और जब बीजेपीकी सरकार इन विस्थापित हिन्दुओंके लिये आवासें  बनवा रही है तो ये लोग उसके विरुद्ध “ काश्मिरकी डेमोग्राफी बदल जायेगी वह हम किसी भी हालातमें बरदास्त नहीं करेंगे…“ ऐसा क्यों कह रहे हैं?

ये कोंगी लोग तो जयचंदसे भी बदतर है. जयचंदने तो एक ही बार आक्रमण करवाया था लेकिन ये कोंगी लोग तो लगातार विदेशी ताकतोंकी मददसे भारतको विभाजित करनेमें व्यस्त रहेते हैं.

रा.गा.ने हिन्दुत्व धारण किया है?

ओके, वेल कम टु हिन्दुधर्म. चाहे तुमने विधिवत हिन्दु धर्म स्विकारा हो या नहीं. उससे हमें कोई मतलब नहीं. तुम कहेते हो तुम्हारी नानी भी हिन्दु थी. ओके. नो प्रोब्लेम. हमने माना कि तुम सब हिन्दु हो.

तुम हिन्दु हो तो तुमने राम मंदिरके लिये क्या किया?

क्या तुम्हारा फर्ज नहीं बनता कि तुम इस मुद्देको आगे ले जाओ? तुम बीजेपीको क्यूँ पूछते हो कि उसने राम मंदिरके लिये क्या किया? तुम भी तो हिन्दु हो.

तुम्हारे पक्षके तो भारतके मुस्लिमोंके साथ और उनके नेताओंके साथ तो अच्छे संबंध है. इतना ही नहीं तुम्हारे पक्षके तो पाकिस्तानके साथ भी सुहाने संबंध है. तो तुमने ६५ सालमें जब सत्तामें थे तब भी तो राम मंदिरका मुद्दा हल कर सकते थे न. तुमने यह मुद्दा हल क्यों नहीं किया?

हे कोंगी लोग, अरे तुम तो सत्तामें थे तब तो तुमने कहा था कि “राम तो एक दंतकथा” है. राम ऐतिहासिक पुरुष है ही नहीं. यह बात, तुमने क्रीडा करते हुए नहीं  कहा था. तुमने तो यह बात प्रतिज्ञापूर्वक कही थी. प्रतिज्ञापूर्वक तुमने न्यायालयके न्यायाधीश समक्ष कहा था कि राम तो एक दंतकथाका पात्र है..

ये कोंगी जो है, वे ऐसे है. कोंगी पक्ष कौभान्डोंका, लूटका, जूठका और फरेबोंका एक महासागर है.

इस कोंगीको जो असली कोंग्रेस मानते है वे भी जयचंद है. इस कोंगीका जो जानबुझकर सहयोग करते हैं वे भी उसके समकक्ष जयचंद है. जो अनजान हो के इस कोंगीका सहयोग करते है वे यातो मूर्ख है या तो स्वार्थी है और वे यदि आत्म खोज न करें तो वे भी जयचंद है.

यदि देशका विकास होगा तो सबका विकास होगा. देशका विकास तकनिकीसे होता है और श्रमसे होता है. तकनिकी का विकास ज्ञान और विद्या प्राप्ति होता है. कोंगीने विकासको रोकके रक्खा था. और लोगोंको अशिक्षित रक्खा था. ताकि ऐसे लोग उसकी जाल में फंसे रहे.

बडेसे बडे देश और छोटेसे छोटे देश जो आंतर्विग्रहमें या तो विश्वविग्रहमें ध्वस्त हो गये थे वे भी हमसे आगे निकल गये. लेकिन कोंगीके द्वारा ६५ वर्ष शासित हमारा देश क्यों विकसित देशोंके क्रममें नहीं आ पाया? इसका उत्तर कोंगीसे ही मांगना पडेगा.

हालके राज्योंके चूनावमें कोंगीका हालत सुधरा और बीजेपी बहुमत नहीं ला पाया उसका कारण कोंगीकी जातिवाद और कोमवादको उकसाया वह ही.

हिन्दुओंमें ४० प्रतिशत लोग तो सुनिश्चित पक्षके मतदाता ही होते है.

अ-हिन्दुओमें यह प्रमाण ७० प्रतिशत होता है.

क्यों कि हिन्दु कोमवादी नहीं होते है इसलिये बाकी के ६० प्रतिशत हिन्दुओंके मत विभाजित हो जाते है.

अ-हिन्दुओंके भी ३० प्रतिशत मत विभाजित हो जाते है. इसका अन्य करण यह भी है कि हिन्दुओमें धर्म एक केन्द्री होता नहीं है. हिन्दु धर्ममें तो लोक शाही है, जिसको जो ठीक लगे वह करनेकी उसको स्वतंत्रता है. कोई लोग लग्नविधि तीन दिनकी चलाते है, कुछलोग एक घंटेमें उसकी पूर्णाहुति कर देते है. कुछलोग तो सिर्फ पूजा करानेवाले का सिर्फ हस्ताक्षर ले लेते है.  और पूजा करानेवाला भी कोई सरकारी प्रमाणपत्रवाला होता नहीं है. इसके विरुद्ध अ-हिन्दुओंमे स्थिति विरुद्ध है. इसका कारण यह है कि हिन्दुओमें कोई आदेश नहीं दे सकता. हिन्दुओंमे धर्म गुरु, पूजारी, कथाकार, पंडित, ज्योतिषी, शास्त्री सब भीन्न भीन्न होते है, वे भी भीन्न भीन्न मतवाले होते है. इनके आदेशोंको मानना आवश्यक नहीं है. उनका कोई विशेष दरज्जा न होने के कारण, वे सब केवल भारतके आम नागरिक ही माने जाते है. और यही तो हिन्दुओंकी पहेचान है, कि वे इस प्रकार सहिष्णु है. लेकिन उसके उपर आक्रमण करने वालोंकी कमी नहीं. जब ये आक्रमक अपनी सीमा पार कर देतें है तब एक आम हिन्दु प्रतिकार करता है. अपराजित एवं  समग्रतया जनतंत्रवादी  हिन्दुधर्म इसलिये तो सनातन धर्म मानाजाता है. ऐसे हिन्दु धर्मसे जलने वाले लोग,  इन हिन्दुओंकी असहिष्णुता बताते है. और असामाजिक तत्त्वोका सहारा लेके मोब लींचींग करवाते है. फिर हिन्दुओंको बदनाम करते है जैसे कि, “भारत एक हिन्दु पाकिस्तान बनता जा रहा है”, “भगवा आतंकवाद”, “भारतको सबसे  अधिक खतरा, मुस्लिम आतंकवादसे नहीं परंतु  हिन्दु आतंकवादसे है”.

दो व्यक्ति थे. “अ” और “ब”. दोनोंके बीचमें किसी कारण विवाद हुआ, या नहीं हुआ. “अ” व्यक्ति उग्र हो गया और उसने “ब”को एक थप्पड मार दिया. तो अब जरा सोचिये कि “ब” क्या कर सकता है?

(१) बे वजह थप्पड खाने पर भी “ब” कुछ नहीं करता

यदि “अ” हिन्दु है और “ब” मुस्लिम है.

यह हो ही नहीं सकता. लेकिन सियासती लोग ऐसी अफवाह फैलानेकी कोशिस करेंगे लेकिन असफल रहेंगे.

यदि “अ” मुस्लिम है और “ब” हिन्दु है, तो इसका जिक्र तक नहीं होगा. और यदि आवश्यकता पडी तो इतिहासमें ढूढके खोज की जायेगी “ब”ने कुछ न कुछ तो किया ही था.

यदि “अ” और “ब” दोनों हिन्दु है और पूलिसको पता चला या तो फरियाद हुई तो पूलिस अपने चरित्रके अनुसार कार्यवाही नीपटायेगी.

यदि दोनों मुस्लिम है तो जिक्र तक नहीं होगा.

(२) “ब” अपनी प्रतिक्रिया के स्वरुपमें अपना दुसरा गाल उसके समक्ष रखेगा.

यदि “अ” हिन्दु है और ब मुस्लिम है तो यह शक्य नहीं है. लेकिन यदि हुआ भी तो, “ब” की अनियतकाल तक जय जयकार होगी. उसके यारोंकी भी जयकार होगी.

यदि “अ” मुस्लिम है और ब हिन्दु है तो हिन्दुको इसकी चर्चा नहीं होगी.

यदि दोनों हिन्दु है, तो दोनोंको असामाजिक तत्व माना जायेगा

यदि दोनों मुस्लिम है तो “यह तो आपसी मामला है”

(३) “ब” कुछ किये बिना चला जायेगा.

यदि “अ” हिन्दु है और “ब” मुस्लिम है तो हिन्दुको जंगली और नीच कोटीका माना जायेगा. और मुस्लिमको सुसंस्कृत माना जायेगा. उसकी जय जयकार होगी और उसकी मिसाल लगातार दिजायेगी.

यदि दोनों हिन्दु है तो उसका आपसी मामला माना जयेगा और उन के आर्थिक स्थितिके अनुसार उनके बारेमें सोचा जायेगा.

यदि दोनों मुस्लिम है तो इसका जिक्र तक नहीं होगा.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

 

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ફોબીયા પીડિત મીડીયા મૂર્ધન્યો સજ્જ છે મોદીને હરાવવા

ફોબીયા પીડિત મીડીયા મૂર્ધન્યો સજ્જ છે મોદીને હરાવવા

રાજકારણમાં એવું મનાય છે કે જો કોઈપણ પક્ષને હરાવવો હોય તો બીજા પક્ષોએ ભેગા થવું જોઇએ.

બધા જુદીજુદી જગ્યાએ જુએ છે અને નિશાન અલગ અલગ છે

કારણ કે સૌથી મોટો દુશ્મન સમાન છે. આમ તો દરેક પક્ષ એકબીજાના નાના મોટા દુશ્મન તો હોય છે પણ જે સૌથી મોટો દુશ્મન છે તે તો એવો જોરાવર છે કે તે તો આપણને ખતમ કરી શકે એવો છે અને જો હવે તે ફરી વખત જીતી ગયો તો આપણું તો અસ્તિત્ત્વ જ મટી જશે.

શા માટે અસ્તિત્વ મટી જવાનો ડર તેમને સતાવે છે?

આનું કારણ તો તેઓ પોતે પણ જાણે છે. તેઓ ભ્રષ્ટાચારથી ખરડાયેલા છે અને તે ઉપરાંત તેમના અનેક સમાજ વિરોધી કાર્યો તેમને ફસાવી શકે છે.

અરે ભાઈ રાજકારણમાં તો બધા ખરડાયેલા જ હોય છે. અને આવો રીપોર્ટ તો સૌથી વધુ ભ્રષ્ટ એવા કોંગ્રેસ પક્ષે નીમેલી સમિતિએ જ ઓગણીસો નેવુંના દશકામાં આપેલો છે. તો પછી ગભરાવવું શા માટે?

ભાઈ, આ તો એવો પ્રધાન મંત્રી આવ્યો છે જે ફસાવ્યો ફસાય એવો નથી. અને તેના મંત્રીમંડળમાં પણ એવા કોઈ સદસ્ય નથી કે જેમને ફસાવી શકાય. બનાવટી ઘટનાઓ અને વિવાદાસ્પદ ઘટનાઓ ઉભી કરી તો પણ તેમાંનું કોઈ ફસાયું નથી.

હા એક વસ્તુ જરુર છે કે આપણે મોદી અને તેના પક્ષની જ્યાં જ્યાં સરકારો છે ત્યાં તેની વિરુદ્ધ વાતાવરણ નિર્માણ કરી શકીએ. આવા કામ વિવાદો ઉભા કરીને કરવા. દેશમાં અને રાજ્યોમાં બનતી ઘટનાઓનો લાભ લેવો. હવે આપણો દેશ તો અતિવિશાળ છે એટલે ઘટનાઓ તો તૂટો નથી. આમેય બાળકો ઉપર થતા દુષ્કર્મો તો એવી ઘટના છે કે (નામ આપવાની જરુર નથી એટલે) આપણે બનાવટી પણ ઉભી કરી શકીએ. એટલે એક વખત જ્યારે સરકાર વિરુદ્ધ વાતાવરણ બનશે એટલે આપો આપ આપણી દાળ ગળશે.

હા. પણ આ માટે તો ઘણા મૂર્ધન્યોની જરુર પડશે.

અરે ભાઈ મોટા ભાગના તો વેચાવા તૈયાર જ છે. કેટલાક પોતે તો તટસ્થ હોવા જ જોઇએ એવું માને જ છે. કોઈ તેમને “તમે તટસ્થ નથી” એવો ટોણો મારી જાય તે તેમને ન ચાલે. તેઓ ઈચ્છે છે કે આવો કોઈ આભાસ પણ ઉભો ન થવો જોઇએ. આવી માનસિકતા વાળા “ડબલ ઢોલકીયા” હોય છે. હવે આવા મૂર્ધન્યો ભલે પ્રમાણમાં ઓછા હોય છે. તેઓ તો આપો આપ પ્રસંગોપાત તેઓ આપણી તરફમાં પણ ઢોલકી બજાવતા હોય, પણ આપણે તેમને તેવા વધુને વધુ મોકા આપતા રહીશું.  જેઓ વાસ્તવિકરીતે તટસ્થ છે તેમની દરકાર આપણે કરવાની જરુર નથી કારણ કે તેવા મૂર્ધન્યોનો ઘણા જ અલ્પ છે. અને જેઓ બીજેપી તરફી છે તેમને તો આપણે સ્પર્શવાના પણ નથી. આવાઓને આપણે અનેક વિશેષણો થી નવાજી શકીશું.

હા. એકવાત ખરી કે જેઓ વિવેક બુદ્ધિવગરના છે તો પણ વિખ્યાત બની ગયા છે તેઓ આપણી મહાન સંપત્તિ છે. તેમને તો આપણે સાચવી લેવા જ પડશે. તેમને આપણે વધુને વધુ ખ્યાતિ આપવી પડશે.

આ વાત ખ્યાતિ ધરાવતા સમાચાર પત્રોને પણ લાગુ પડે છે.

આવા બહુ વાચક વર્ગ ધરાવતા સમાચાર પત્રોને આપણે ખાસ સાચવી લેવા પડશે. ઈલેક્ટ્રોનિક મીડીયા આવી ગયું છે પણ પ્રીન્ટ મીડીયાનો પણ દબદબો એટલો બધો ઘટી ગયો નથી કે તેને આપણે અવગણી શકીએ. જોકે તેઓ ડબલ ઢોલકી વગાડશે (એમ કહીને કે “અરે ભાઈ અમે પણ તટસ્થ છીએ તેવું લાગવું તો જોઇએ ને!!” ) પણ તેઓ આપણી તરફની ઢોલકી વધુ વગાડશે. શું સમજ્યા?

સૌથી વધું કાળું નાણું ક્યા જમા થાય છે અને વપરાય છે?

સ્થાવર મિલ્કતના કારોબારમાં.

“દરેક સમાચાર પેઈડ સમાચાર છે.” આ એક બ્રહ્મ સૂત્ર છે. સિવાય કે માલિક, મહાત્મા ગાંધીવાદી હોય. પણ મહાત્મા ગાંધીવાદીઓનો હવે જમાનો નથી. મહાત્મા ગાંધીનું નામ લઈ લઈને જીભનો કૂચો કરનારી નહેરુવીયન કોંગ્રેસે પણ તેમના વિચારોને અડવાનું ક્યારનુંય છોડી દીધું છે. દરેક સમાચાર પેઈડ સમાચાર હોય છે. અને આ નાણાં કાયમ કાળાં હોય છે. એટલે તો ઘણા સમાચાર પત્રોએ “બીલ્ડર”ના ધંધામાં ઝંપલાવેલ. પણ સાલી આ મોદી સરકાર, મોટી નોટો બદલી નાખે છે. તેથી આપણી ઘાણી થાય છે.

ચલો જે થઈ ગયું એ થઈ ગયું. કાળાં નાણાં ધીમે ધીમે વાપરવાં. આમાં કોઈ તકલીફ નથી. અને ઇશ્વર પણ આમાં તકલીફ ઉભી કરી શકે તેમ નથી. માટે ઝીકે રાખો બાપલા.

તો હવે સજ્જ થઈ જાઓ.

કેવી રીતે સજ્જ થઈશું?

રાઈનો પર્વત બનાવીને અને પર્વતની રાઈ બનાવીને.

એવા પ્રસંગો શોધો અને એવા મૂર્ધન્યો શોધો કે જે બીજેપી વિરુદ્ધ અને અથવા રાહુલ ગાંધીની તરફમાં લખી શકે.

બીજેપીની વિરુદ્ધ તો લખીશું એમાં તો આપણને ફાવટ છે. આપણે બીજેપી વિરુદ્ધ બનાવટી ઘટનાઓ ઉભી કરીશું. અથવા તો દેશ માટે નાની પણ પ્રદેશમાટે કંઈક અંશે ઠીક ઠીક, એવીને ઘટનાને આલ્પ્સને જો હિમાલયની ઉપર મૂકીએ તો જે પર્વત બને એવડી મોટી બનાવીને એવી ખૂબીલીટીથી પ્રકાશિત કરીશું કે બોમ્બે બ્લાસ્ટ પણ ફીકા પડે.

તો હવે ડીબીભાઈએ (દિવ્ય ભાસ્કર સમાચાર પત્રે) શું કર્યું તે જોઇએ.

લોકરક્ષક દળ ની ભરતી માટેની પરીક્ષા

ગુજરાત રાજ્યમાં લોક રક્ષક દળમાં નોકરીઓ હતી. એટલે કે લોકરક્ષક દળની ભરતીની પરીક્ષા હતી. તેની પરીક્ષાનો દિવસ નક્કી કર્યો. તેના પરીક્ષા કેન્દ્રો નક્કી થયા. બધા પરીક્ષાર્થીઓ પરીક્ષા આપવા બેસવાના હતા. પણ પરીક્ષા પ્રશ્નપત્રકો વહેંચાય તે પહેલાં ખબર પડી કે પ્રશ્નપત્ર તો ફૂટી ગયું છે.

એટલે સરકારે પરીક્ષા રદ કરી એટલે કે મુલતવી રાખી.

હવે ડીબીભાઈને થયું કે આ ઘટનાને મોટામાં મોટું સ્વરુપ કેવી રીતે અપાય? આ ઘટનાને ઈમોશનલ પણ બનાવવી પડશે. એટલે પરીક્ષાર્થીઓ પાસે થી જુદી જુદી વાર્તાઓ પણ બનાવવી પડશે અને તેને પણ ઇમોશનલ બનાવવી પડશે. કોઈ પરીક્ષાર્થીની માતા માંદી હતી અને તે કેવી રીતે મુશ્કેલીથી આવ્યો હતો. કોઈ પરીક્ષાર્થી રાતોની રાતોના ઉજાગરા કરીને આવ્યો હતો. કોઈ પરીક્ષાર્થી, ઉધાર પૈસા લઈને ટીકીટ કઢાવીને આવ્યો હતો. કોઈ પરીક્ષાર્થી વાહન ઉપર લટકીને માંડ માંડ આવ્યો હતો. કોઈ પરીક્ષાર્થી ખેતી છોડીને આવ્યો હતો … આવી તો અનેક વાર્તાઓનું અન્વેષણ કરવાની જવાબદારી ડીબી ભાઈને માથે આવી હતી. અને તેમણે તે હોંશે હોંશે નિભાવવાની હતી.

પણ ડીબીભાઈ માટે આ શું પૂરતું હતું?

ના ભાઈ ના…

ડીબી ભાઈને થયું કે આમાં તો બીજી ઘણી વાર્તાઓનું અન્વેષણ કરવાની શક્યતાઓ છે અને ન હોય તો પણ આપણે તે શક્ય કરવું પડશે. કમસે કમ પરીક્ષાર્થીઓને અને તેમના સગાંવહાલાંઓને તો એવું લાગવું જ જોઇએ કે તેમની આ ઘટના બહુ મોટી હતી અને તેને વાચા આપવા માટે પરદુઃખભંજનો કે શૂરવીરો, કે નિડરો ગુર્જર ધરા ઉપર વિદ્યમાન છે.

તો ડીબીભાઈનો ટાર્જેટ શો હતો?

ભાઈ ભાઈ… આપણે આ ઘટનાને એક તકમાં તબદિલ કરવો પડશે. જેમ મોદી સાહેબ પોતાના શાસન ઉપર આવેલી આપત્તિને અવસરમાં ફેરવવામાં માહેર બનતા હતા તેમ આપણે, બીજાની ઉપર આવેલી આપત્તિને આપણા માટે અવસરમાં પલટાવવી પડશે.  અને તેમાં મુખ્ય મંત્રીને એટલે કે ગુજરાતની બીજેપી સરકારને સંડોવવી જ પડશે.

ભાઈઓ આવી ઘટનાઓ કંઈ નવી નથી. ભારતમાં તેના રાજ્યોમાં આવું તો બનતું જ આવ્યુ છે. આમાં નવું શું છે કે આપણે તેને હદ બહાર ખેંચી લઈ જઈ શકીએ?

ડી.બી. ભાઈ બોલ્યા “અરે એ બધું તમે અમારા ઉપર છોડી દો. કોઈ પણ ઘટનાને કેવી રીતે ઘડવી, મરોડવી (ટ્વીસ્ટ કરવી) અને પ્રદર્શિત કરવી તેમાં તો અમારે ફાવટ કેળવવી જ જોઇએ. અને તે પણ જ્યારે બીજેપી શાસિત રાજ્ય હોય ત્યારે તો ખાસમ ખાસ.

તો તમે શું કરશો?

ડીબીભાઈ ઉવાચ “અમે ત્રણ ત્રણ દિવસ સુધી કે તેથી વધુ, બે બે પાના ભરીને ભોજન બનાવીશું. તમે જોઇ લેજો અમારું ભોજન. અમે બીજેપી વિરુદ્ધ જબ્બરજસ્ત વાતાવરણ બનાવી દઈશું. બીજેપી વિરુદ્ધ વાતાવરણ બનાવવું એ તો અમારો મુદ્રા લેખ છે. ભલે લખાણમાં મુદ્રાદોષ આવી જાય છે!! અરે ભાઈ વાચકો તો મુદ્રાદોષ ચલાવી જ લે છે ને! ગુ.સ.ભાઈએ “ફલાણા વિદેશી ડીપ્લોમેટનું હવાઈ મથકે સ્વાગત થયં” એવું મુદ્રાલેખન કરવાને બદલે “ફલાણા વિદેશી ડીપ્લોમેટનું હવાઈ મથકે અવસાન થયું” એવું મુદ્રાલેખન કરી દીધું તો વાચકોએ શું તેમને ફાંસીએ ચડાવી દીધેલા?

તો પછી … ખાલી ચિંતા શું કરવી? “અવસાન” શબ્દ વધુ આકર્ષક લાગ્યો હશે એટલે વાપરી નાખ્યો. એ કંઈ મુદ્રાદોષ થોડો હતો?

શબ્દોના અર્થ તો રા.ગા. ભાઈ પણ સમજતા નથી. અરે ભાઈ, ઇન્દિરાબેનને પણ ક્યાં વિભાજન શબ્દના અર્થની ખબર હતી? આ તો જ્યારે ઓગણીસો પચાસના દાયકામાં સંસદમાં અવારનાવર વપરાવવા લાગ્યો, એટલે બેનને થયું કે આ “વિભાજન … વિભાજન…” શું બોલ્યા કરે છે!!! “વિભાજન” એટલે વળી શું છે? એટલે એમને પૂછવું પડ્યું કે આ વિભાજન એટલે શું? કેટલાક લોકો આ વાત થી ધન્ય ધન્ય થઈ ગયા કે આપણા વડાપ્રધાન નેહરુ કેટલા સરસ પાશ્ચિમાત્ય છે કે એમના પુત્રી ઇન્દિરા બેન પણ અસલ એમના જેવાં જ છે.

ઇન્દિરાબેન અને વિભાજન યાદ આવ્યાં એટલે રા.ગા.ભાઈ પણ યાદ આવ્યા.

હાસ્તો … શબ્દો કેવી રમૂજ ફેલાવે છે અને શબ્દોના અર્થો પણ કેવી રમૂજ ફેલાવે છે.

અંગ્રેજીમાં જો જીભ થોથવાય તો ઘાણી થાય. એક તો આપણી યોગ્યતા ખતમ થાય. લાલુ પ્રસાદ ની જેમ જ સ્તો. તેમણે એક વખત સંસદમાં અંગ્રેજી બોલીને બધાને ખૂબ હસાવેલા. અને કેટલાકે આને આપણી સંસદની કક્ષાની ટીકા કરી કે સંસદમાં પણ સદસ્ય થવાની યોગ્યતાની પરીક્ષા લેવાવી જોઇએ.

પણ જો તમે ભારતીય ભાષા બોલતાં થોથવાઓ તો તમારામાં સંસદસદસ્ય થવાની યોગ્યતા આપોઆપ આવી જાય છે. દાખલો લેવા દૂર જવું પડે તેમ નથી. રા.ગા. સાહેબ હાજરા હજુર છે. ચાર વાર તેમણે વિશ્વેશ્વરૈયા બોલવાનો પ્રયત્ન કર્યો. પણ નિસ્ફળ ગયા એટલે તેમને થયું જવા દો. લોકો તો સમજી જ ગયા છે કે હું કોનું નામ બોલવા માગું છું. તો હવે સમજેલા વધુ શું સમજાવવું! હું તો નહેરુવંશી છું એટલે હું તો સંસદ સદસ્ય જ નહીં પણ વડોપ્રધાન થવાની પણ યોગ્યતા ધરાવું છું.

હમણાં વળી પાછી રા.ગા.ભાઈની ઘાણી થઈ.

રા.ગા. ભાઈએ કહ્યું “અશોક ગેહલોતજીને કુંભકરણ લીફ્ટ યોજનાકા પૈસા દિયા…” રા.ગા. ભાઈને તો ખબર જ ન હતી કે તેમણે વાંચીને વાંચીને પણ બોલવામાં કંઈ ભૂલ કરી છે. એટલે તેઓશ્રી તો જાણે કંઈજ થયું ન હોય, અને બધું નોર્મલ જ છે એમ જ માનીને આગળ બોલવા જ જતા હતા. તેવે સમયે કોઈ માઈનો લાલ સ્ટેજ ઉપર હતો, તેણે તેમને અટકાવ્યા. અને કુંભકરણ નહીં પણ કુંભારાણા એમ સુધરાવ્યું.

તમને કોઈ ઉંઘમાંથી જગાડીને પણ પૂછે, તો પણ તમે, સિદ્ધરાજ જયસિંહને બદલે સિદ્ધરાજ જયચંદ ન બોલો. પણ રા.ગા. ભાઈ કે જેઓ દત્તાત્રેય ગોત્રના છે તેમને માટે બધું શક્ય છે. તેમને ક્યારેય એ ટ્યુબલાઈટ ન થાય કે કુંભકર્ણ એ એક અણગમતું પાત્ર છે અને કુંભારાણા એક મનગમતું પાત્ર છે. એમને લાગ્યું કે કુંભકર્ણ હોઈ શકે કારણ કે કુંભકર્ણ, એ શાબ્દિક રીતે વધુ સુસંસ્કૃત લાગે છે.

આપણા શેખર ગુપ્તાજી તો રા.ગા.ભાઈ પર ફીદા છે.

શે.ગુ. (શેખર ગુપ્તા) ભાઈના કહેવા પ્રમાણે રા.ગા. ભાઈ, હમણાં હમણા જે કંઈ કરી રહ્યા છે તે તેમની એક જબ્બરજસ્ત ચતુર ચાલ છે. એટલે કે તેઓશ્રી એટલે કે રા.ગા. ભાઈ એક ચક્રવ્યુહ બનાવી રહ્યા છે. રા.ગા. ભાઈ ધર્મપ્રેમી હિન્દુ હોવા ઉપરાંત ઉચ્ચવર્ણના બ્રાહ્મણ છે. અને આ શોધદ્વારા રા.ગા.ભાઈએ બીજેપી ભાઈઓને ચક્કર ખવડાવી ચત્તાપાટ પાડી દીધા છે. સંઘવાળાએ પૂછ્યું કે તમે બ્રાહ્મણ છો તો તમારું ગોત્ર કયું છે. રા.ગા. ભાઈએ તો જનોઈધારી બ્રાહ્મણ ઉપરાંત તેમનું ગોત્ર પણ જણાવ્યું. દત્તાત્રેય ગોત્ર.

શે.ગુ. ભાઈ, તેમના રા.ગા.ભાઈના આ કથનને રા.ગા.ભાઈનો માસ્ટર સ્ટ્રોક ગણાવે છે.

આમ તો શે.ગુ.જી ના કહેવા પ્રમાણે રા.ગા.ભાઈએ તો ડાબેરીઓ, (તથા કથિત) ધર્મનિરપેક્ષ અને લિબરલ (ગેંગ) ને છક્કડ ખવડાવી દીધી છે. એટલે કે રા.ગા. ભાઈ એ બધા કરતાં વધુ ચાલાક નિકળ્યા છે. રા.ગા.જીએ શું કરવું જોઇતું હતું તેમાં કોકને ટાંક્યા છે અને ઇન્દિરા ઉપર વાતવાતમાં ફૂલ પણ ચડાવી દીધું.

હવે જો બીજેપીવાળાઓ રા.ગા.ના મંદિર મંદિર પર્યટન ને પાખંડ કહેતા હોય તો શે.ગુ.જી તેનું સામાન્યીકરણ કરીને તેને મોળું બનાવી દે છે. આ કોંગી-ભક્તોની આદત છે.

સીત્તેરના દશકાના પૂર્વાર્ધમાં, ઇન્દિરા ગાંધીની આપખૂદી વિષે અને ભ્રષ્ટાચાર વિષે આરોપો લાગતા ત્યારે પણ તેના ભક્તો કંઈક આથી પણ વિશેષ વાત કહેતા હતા, કે આવું તો તમે પહેલેથી જ કહો છો. આમાં નવું શું છે? એટલે કે કોંગીઓના અને તેમના ભક્તોના કહેવા પ્રમાણે તમે હેલમેટ ન પહેરી હોય અને કોઈએ અવાર નવાર ધ્યાન દોર્યું હોય. પણ તમને હેલમેટ ન પહેરવાનો, પરવાનો મળી ગયો. હર હમેશ હેલમેટ ન પહેરવાથી ગુનો બનતો નથી. કારણ કે અમે હેલમેટ નથી પહેરતા એ તો તમે કહી જ દીધું છે એમાં નવું શું છે?

આપણી વાત હતી રા.ગા. ભાઈના ગોત્રની.

રા.ગા.ભાઈએ પોતાનું ગોત્ર શોધી કાઢ્યું છે. તેમનું ગોત્ર “દત્તાત્રેય” છે. હવે ન તો શે.ગુ.ભાઈને ખબર છે કે ન તો રા.ગા. ભાઈને ખબર છે કે ગોત્ર એટલે શું? તેઓ એમ સમજતા લાગે છે કે આપણા કોઈ મહાન પૂર્વજ એ આપણું ગોત્ર.

ગુરુ પરંપરા અને ગોત્ર એ ભીન્ન છે તે શે.ગુ.ભાઈને જ, ખબર ન હોય.  આ વાત તેઓશ્રી કદાચ પોતે જ ન સમજી શકતા હોય તે આપણે સહજ રીતે માની શકીએ. કારણ કે ક્ષત્રીયોમાં વંશ અને કુળ હોય છે અને બ્રાહ્મણોમાં ગોત્ર અને પ્રવર હોય છે. મહાત્માઓમાં ગુરુપરંપરા હોય છે. વાણિયાઓમાં શું હોય છે તે ખબર નથી. હા વીસા, સોળા, દશા, સ્થાનકવાસી, શ્વેતાંબર … એવું હોય છે ખરું. પણ વૈષ્ણવોમાં શું હોય છે તે ખબર નથી. એ જે હોય તે. આપણે વિષયાંતર નહીં કરીએ. મૂળ વાત પર આવીએ.

જો તમે બ્રાહ્મણ હો તો તમારી પાસે આટલી માહિતિ હોવી જોઇએ.

ગોત્રઃ આદિ ઋષિઓ દશ હતા જેમકે ભૃગુ, ગૌતમ, ભારદ્વાજ … 

પ્રવરઃ જે તે ગોત્રમાં જન્મેલા જે તે મહર્ષિઓથી શરુ થતી વંશાવળી

વેદઃ ઋગ્વેદ, યજુર્વેદ અને સામવેદ

શાખાઃ જે ઋષિઓએ ગુરુકુલો સ્થાપ્યાં હતા અને તેમની અમુક પ્રણાલીઓ હતી. જેમકે માધ્યંદની, કૌથમી, આશ્વલાયની, સાંખ્યાયની,… તેમના શિષ્યો અને તેમના વંશજો તે શાખાના નામથી ઓળખાયા. આને આપણે સંગીતમાં આવતા “ઘરાના” સાથે સરખાવી શકીએ.

કુળદેવીઃ દરેક વ્યક્તિને પોતાનાં કુળની દેવી હોય છે. જેમકે ભવાની, આશાપુરી, ચામુંડા, ક્ષેમપ્રદા, ઉમાદેવી,…

શિવઃ દરેક હિન્દુને પોતાના વિશેષ શિવ હોય છે. જેમકે નીલકંઠ, વૈજનાથ, સોમેશ્વર, શંકર, વટેશ્વર, વૃષભધ્વજ…

ગણેશઃ દરેક હિન્દુને પોતાના ગણેશ હોય છે. વિનાયક, લંબોદર, મહોદર, વિઘ્નવિનાયક, એકદંત …

ભૈરવઃ દરેક હિન્દુને પોતાના ભૈરવ હોય છે. કાળ, અસિતાંગ, રૂરૂ, ભિષણ …

દરેક બ્રાહ્મણને પોતે જે ગામમાં હોય તેના પોતાના પૂર્વજોની માહિતિ તેણે રાખવી પડે છે. ઓછામાં ઓછી બાર પેઢી તો યાદ રાખવી જ પડે છે.

દા.ત.

શિરીષ, મોહનલાલ, મહાશંકર, હરિશંકર,લીંબાશંકર, લેપજી, ત્ર્યંબકેશ્વર, વૈજનાથ, ભવાનીદત્ત, રુદેરામ, દવેશ્વર, ગોવર્ધન,

 ગોત્ર = ભાર્ગવ,

પ્રવર = ભાર્ગવ

વેદ = ઋગ્વેદ

શાખા = સાંખ્યાયની

કુળદેવી = આશાપુરી

શિવ = નીલકંઠ

ગણપતિ = ઢુંઢીરાજ

ભૈરવ = અસીતાંગ

રા.ગા. ભાઈ, જો તે ખરા બ્રાહ્મણ હોય તો પોતાની આવી વિગત તેમણે આપવી જોઇએ. જેઓ વિખ્યાત છે તેમણે તો ખાસ.

શે.ગુ. ભાઈ માને છે કે રા.ગા. ભાઈ પ્રશંસાને લાયક છે.

રા.ગા. ભાઈએ પોતાના હિન્દુત્ત્વને જે રીતે ઉજાગર કર્યું છે, તે તેમનો, બીજેપીને ફસાવવાનો ચક્રવ્યુહ છે. તેઓ એમ પણ માને છે કે આ રસપ્રદ છે પણ રા.ગા.ભાઈથી તેમના લેફ્ટીસ્ટ કે જેમને તેઓ ઉદારમતવાદી કહે છે તેઓ નારાજ છે.

આપણી મૂળ વાત હતી ડીબીભાઈની.

વાત એ હતી કે લોક રક્ષક દળની પરીક્ષાનું પેપર ફૂટ્યું છે. આ ઘટનાને કેવીરીતે ઇમોશનલ રીતે પ્રસિદ્ધિ આપીને બીજેપીની સરકારને સંડોવવી. ડી.બી. ભાઈ કૃતનિશ્ચયી હતા કે આ અમૂલ્ય લાહવો અને તક છે.

“લોભ રક્ષક” …. “ઠેર ઠેર હજારો પરીક્ષાર્થીઓનો ઉપદ્રવ”, “ચક્કાજામ”,  “મારપીટ”, “વિકાસ નિઃસહાય”, “દરેક પરીક્ષાર્થીને રૂપીયા ૭૦૦ નો ખર્ચ”, “સરકાર ફેઈલ”, “સરકાર ફુલ્લી ફેઈલ”, “૯ લાખ પરીક્ષાર્થીઓ સાથે દગો”, “નવલાખ પરીક્ષાર્થીઓના નિસાસા”, “દિલ્લીના ઠગોએ નવલાખ ગુજરાતીઓને લૂંટી લીધા”, “રૂપાણી રાજીનામું આપે”, “સીએમના બંગલાની બાજુના બંગલાના એમએલએના ભાડે આપેલા મકાનમાં થી પેપર લીક”, ”સરકારની આબરુ લીક”,  …”

બાપલા જે શબ્દો હાથવગા હોય તે મોટી મસ્સ શિર્ષ રેખાઓ બનાવવામાં વાપરી નાખો. અક્ષરો મોટામાં મોટા રાખો એટલે માહિતિ ગુપાવવી હશે કે ઓછી હશે તો વાંધો નહીં આવે. ત્રણ દિવસ સુધી કે જ્યાં સુધી ટોપીક ગરમ રહે ત્યાં સુધી દીધે રાખો.

બીજા સમાચાર ને કોણ પૂછે છે?

“દુબઈથી બ્રીટનનો નાગરિક ક્રીસ્ટીન મીશેલ, ભારતને અર્પણ કરવામાં આપ્યો. અને હવે ઓગસ્ટાવેસ્ટલેન્ડ ની કટકી જે ખાધાનો કોંગી ઉપર આરોપ છે તેની તપાસ ઝડપી બનશે … વિગેરે સમાચાર તમને ડીબીભાઈના છાપામાં ગોત્યા નહીં જડે. કદાચ ક્યાંક અંદરના પાને ખૂણામાં હોય તો કહેવાય નહીં.

ભાઈ. આમાં તો એવું છે ને કે મોદી જે વિદેશોમાં દોડા દોડ કરે છે અને તે માટે આપણે તેને વગોવીએ છીએ, તો હવે જો મોદીની દોડા દોડ, ફળદાઈ બને તો આપણી ટીકાઓની કિંમત શું?

વાડ્રા કે રા.ગા.-સોનિયાની ઇન્કમની ફેરતપાસણીને ન્યાયાલયની મંજુરી, વિષે પણ એવું જ સમજવું.

એક વાર મોદી સાહેબે કહેલું કે સરકારી વર્ગ ત્રીજા માટેની ભરતી માટે કોઈ પરીક્ષા લેવામાં નહીં આવે. તો પછી આ લોક રક્ષકની પરીક્ષા આવી ક્યાંથી?

આ બાબતનો કોઈ પ્રશ્ન નથી તો ચર્ચા તો હોય જ ક્યાંથી?

પરીક્ષા માત્ર લાગવગ ચલાવવા માટે હોય છે. પેપર તપાસનાર પાસે ઢગલો ભલામણ આવતી હોય છે. જી.આર.ઈ. જેવી નેશનલ કોંપીટીશન જેવી પરીક્ષાના પેપર આપણા ભારતીયો ફોડી શકતા હોયસ તો લોક રક્ષક જેવી રાજ્ય પૂરતી મર્યાદિત પરીક્ષાનું પેપર ફૂટે તેની નવાઈ નથી. બીજ રાજ્યોમાં પણ ઢગલા બંધ પેપરો ફૂટે છે. પણ તેની ઉપર કાગારોળ થતી નથી. અને પરીક્ષા રદ પણ થતી નથી કે તપાસ પણ થતી નથી. એટલે “પેપર ફૂટ્યું” એ સમાચાર જ બનતા નથી. પછી પેપર રદ થવાની તો વાત જ ક્યાં થી ઉદભવે? અરે દશમા બારમાની પરીક્ષા વખતે ચાર માળના મકાનની બારીઓ ઉપર ઉભા રહીને પરીક્ષાર્થીઓના હિતેચ્છુઓ કોપી કરાવે અને નીચે પોલીસ ઉભી હોય તો પણ તે કંઈ કરે નહીં અને તેના ધ્યાન ઉપર આ વાત લાવવામાં આવે તો તે એમ કહે કે “મારું કામ તો તોફાન ન થાય એ જ જોવાનું છે”.

દશમા બારમાની પરીક્ષા શું ઓછા મહત્વ ની છે? ડીબીભાઈ મૌન રહેશે!! કાગારોળ તો નહીં જ કરે. કારણ કે ભારતમાં ફક્ત ગુજરાતનો જ સમાવેશ થાય છે.

ચોરી કરવી એ ગુનો નથી. ચોરી કરીને પકડાઈ જવું એ પણ ગુનો નથી. પણ ચોરી કરી હોય અને ન્યાયાલય સજા કરે તો જ ગુનો બને છે.

પેપર ફૂટે એ વાત કોઈ નવી નથી. ફૂટવાની ક્રિયા ખાનગીમાં થાય. પણ ગુજરાત સરકાર કોઈપણ રીતે “પેપર ફૂટવાની કોઈ એક કડીને પકડે” અને તેની તપાસ કરાવે, એ જ ગુજરાત સરકારની નિસ્ફળતા છે. આવું આપણા ડીબી ભાઈ માને છે અને વાચકોએ પણ આમ જ માનવું જોઇએ.

સાલું … આ તો નવલાખ પરીક્ષાર્થીઓનો સવાલ છે. કોઈ પરીક્ષાર્થી જીલ્લા હેડક્વાર્ટરમાં રહેતા ન હતા. બધા જીલ્લા મથકની જ બહાર રહેતા હતા. ટેક્ષી કરીને આવ્યા હશે. એટલે તો દરેક પરીક્ષાર્થીને ૭૦૦ રુપીયાનો ખર્ચો થયો. આપણાથી મૂંગા કેમ રહેવાય?

પરીક્ષાનું પેપર ફૂટ્યું. તેમાં સડયંત્ર હતું. તે સડયંત્ર ગુજરાતની બહાર હતું. પણ ગુજરાતે પકડ્યું એટલે સરકાર એનો લાભ ખાટી જવી ન જોઇએ એ આપણો મુદ્રલેખ છે.

ડીબીભાઈ જાહેર કર્યું કે હવે અમે પરીક્ષા લઈશું અને સરકાર અને તેના ખાતાઓ સહિતના બધા સંડાવાયેલાઓને માર્ક્સ આપીશું.

તપાસ સમિતિ તો તપાસ કરી રહી છે. હજી તો તપાસની શરુઆત છે. એટલે કે હજી તો પેપરની ઉત્તરવાહીઓ લખાઈ રહી છે અને ડીબીભાઈએ તો માર્ક્સ આપવાનું ચાલુ કરી દીધું છે. પેપર સો માર્કસનું છે. સંડોવણી દશની કરવી પડશે. દરેક વિભાગને દશમાં થી માર્ક આપો. ભલે સરકારી તપાસ ચાલુ હોય, પેપરની ઉત્તરવાહીઓ લખવાની હજુ તો શરુઆત છે. કોણ કેટલું સંડોવાયેલું છે તેની તો આપણને ખબર પણ નથી. પણ બાપલા આપણે જે પેપરની આન્સરબુક હજી લખાઈ નથી તેના માર્ક્સ આપવાનું ચાલુ કરી દો. હા ભાઈ આ તો ડીબીભાઈએ પ્રયોજેલી પરીક્ષા છે. એ તો એવીજ હોય ને? કોને પાસ કરવા અને કોને પાસ ન કરવા એ તો આપણે સુનિશ્ચિત રીતે પૂર્વ નિશ્ચિત કરી દીધું છે. એટલે પરીક્ષાના આન્સર પેપર લખાયા છે કે નહીં તે મહત્વનું છે જ ક્યાં?

બધી સંસ્થાઓને પરીક્ષા લેવાનો શોખ હોય છે અને તેમાં પણ સરકારી સંસ્થઓને તો ખાસ. ચોથા વર્ગની ભરતી માટે પણ રેલ્વે ખાતું પરીક્ષા લે છે. ગુજરાતની ભરતીઓની જાહેર ખબર ગુજરાતના છાપાં આવે કે ન આવે પણ બિહાર અને યુપીમાંના છાપાંઓમાં તો અચૂક આવે. અને ગુજરતના રેલ્વે ડીવીઝનના શહેરોના સ્ટેશનો ઉત્તરભાઈઓથી ઓવરફ્લો થાય.

શું કામ? ભાઈ પરીક્ષા લેનારા તો એ જ હોય છે ને.

પેપર ફૂટે અને પરીક્ષા રદ થાય, તેમાં અનીતિ કે ગુનો કે પરીક્ષામાં કોપીઓ થાય અને પેપર તપાસવામાં લાગવગ થાય તેમાં વધુ અનીતિ કે ગુનો?

અરે ભાઈ ગુજરાતને વગોવવું, અને તે પણ જ્યારે, ગુજરાતમાં બીજેપી સરકાર હોય ત્યારે તો, ખાસ જ અમારો મહામાનવોનો ધર્મ બની જાય છે કે ગુજરાતને વગોવો.

મધ્યપ્રદેશનું મતદાન થયા પછી જો સેન્સેક્સ હજાર અંક ઉછળે તો અમે તેને બીજેપીની જીતની શક્યતા સાથે સાંકળીશું નહીં. પણ રાજસ્થાન અને તેલંગણાના પ્રચાર પડઘમ શાંત થાય અને સેન્સેક્સ ૫૦૦ અંક ડાઉન જાય, ભલેને પછી મતદાન જ બાકી હોય અમે તે “૫૦૦ ડાઉન”ને બીજેપીની હારનો સૂચકાંક ગણાવીશું.

વેપાર વૃદ્ધિ એ પ્રગતિની નિશાની ખરી કે નહી? તો પછી ૨૦૦૪માં જ્યારે કોંગી આવી ત્યારે શેર માર્કેટ ધ્વસ્ત થઈને સેન્સેક્સે એનએસસીનો સૂચકાંક કેમ લઈ લીધેલો? અને એનએસસીનો સૂચકાંક ત્રણ ડીજીટામાં કેમ આવી ગયેલો?

ભારતની સામાન્ય જનતા બધું જ જાણે છે. હજાર ડીબીભાઈઓ, કે હરિભાઈઓ, ભગતભાઈઓ કે શે.ગુ.ભાઈઓ કે પ્રકાશભાઈઓ ભેગા થાય અને લખવામાં ગમે તેટલી બીજેપીની કે નરેન્દ્ર મોદીની બુરાઈઓ પ્રત્યક્ષ કે પરોક્ષ રીતે કરે, જનતા તો સત્ય અને અસત્યનો વિવેક પારખી જ લે છે. હવે નહેરુ કે ઈન્દિરાનો જમાનો નથી કે તમે સત્યને ઢાંકી શકો. હવે તો સોસીયલ મીડીયા પણ પટમાં આવી ગયું છે.

શિરીષ મોહનલાલ દવે

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