Archive for May, 2019
REVOLUTION IN TELECOMMUNICATION IN INDIA: False Credit to Rajiv and Pitroda
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged Assistant Engineer, Auto Exchange, CB multiple, CB Nonmultiple, Cross bar telephone exchnage, Director, Divisional Engineer, Engineering Supervisor, General Manager, Magneto, Spare parts, Step by Step system, Strowger system, Technician, Telegraphs, Telephone District Manager, Telephonne on May 19, 2019| Leave a Comment »
हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः – २
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, Social Issues, tagged अनीतिमत्ता, अभिषेक सींघवी, अर्बन नक्षली, आझम, आम कोटि, उफ़, कट्टरवादी मुस्लिम, कसाब, कोम्युनीस्ट, क्रीस्टल क्लीयर, चिदंबरं, जू तक नहीं रेंगती, जैसे थे, टूकडे टूकडे गेंग, तुलना करनेकी क्षमता, दीग्विजय, परिवर्तन, पित्रोडा, प्रयंका, मणी अय्यर, मनुष्यकी कोटि, ममता, महात्मा गांधी-फोबिया, महेश करकरे, माया, मूर्धन्य, मोतीलाल वोरा, मोदी-फोबिया, राहुल, विभाजनवादी, विवेकशीलता, व्यंढ, शशि, श्रेय चंचूपात, संदर्भ, साध्वी प्रज्ञा, सामाजिक, सोनिया on May 15, 2019| Leave a Comment »
हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः – २
कोई भी मनुष्य आम कोटिका हो सकता है, युग पुरुषसे ले कर वर्तमान शिर्ष नेता की संतान या तो खुद नेता भी आम कोटिका हो सकता है.
“आम कोटिका मनुष्य” की पहेचान क्या है?
(कार्टुनीस्टका धन्यवाद)
जो व्यक्ति आम विचार प्रवाहमें बह जाता है, या,
जो व्यक्ति पूर्वग्रह का त्याग नहीं कर सकता,
जो व्यक्ति विवेकशीलतासे सोच नहीं सकता,
जिस व्यक्तिमें प्रमाण सुनिश्चित करके तुलना करनेकी क्षमता नही,
जिस व्यक्तिमें संदर्भ समज़नेकी क्षमता नहीं,
जिस व्यक्तिमें सामाजिक बुराईयोंसे (अनीतिमत्तासे) लडनेकी क्षमता नहीं,
जिस व्यक्तिमें अनीतिमत्ताको समज़नेकी क्षमता नहीं.
इन सभी गुणोंको, यदि एक ही वाक्यमें कहेना है तो, जिसमें समाजके लिये सापेक्षमें क्या श्रेय है वह समज़ने की क्षमता नहीं वह आम कोटिका व्यक्ति है. जो व्यक्ति स्वयं अपनेको आम कोटिका समज़े वह आम कोटिसे थोडा उपर है. क्यों कि वह व्यक्ति जिस विषयमें उसका ज्ञान नहीं, उसमें वह चंचूपात नहीं करता है.
हमारे कई मूर्धन्य आम कोटिके है.
प्रवर्तन मान समयमें देशके मूर्धन्य तीन प्रकारमें विभाजित है.
(१) मोदीके पक्षमें
(२) मोदीके विरुद्ध
(३) तटस्थ.
मोदीके पक्षमें है वे लोग, यदि हम कहें कि वे देश हितमें सोच रहे है, तो वह प्रवर्तमान स्थितिमें, सही है. लेकिन बादमें इनमेंसे कई लोगोंको बदलना पडेगा. इनमें मुस्लिम-फोबिया पीडित लोग और महात्मा गांधी-फोबिया पीडित लोग आते है. इसकी चर्चा हम करेंगे नहीं. लेकिन इन लोगोंका लाभ कोंगी प्रचूर मात्रामें लेती है.
कोंगीनेतागण स्वकेन्द्री और भ्रष्ट है. यह बात स्वयं सिद्ध है. यदि किसीको शंका है तो अवश्य इस लेखका प्रतिभाव दें.
कोंगीको आप स्वातंत्र्यका आंदोलन चलानेवाली कोंग्रेस नहीं कह सकते. क्यों कि वह कोग्रेस साधन शुद्धिमें मानती थी. और १९४८के पश्चात्य कालकी कोंग्रेस (कोंगी) साधन शुद्धिमें तनिक भी मानती नहीं है. कोंगीके नेताओंकी कार्यसूचिके ऐतिहसिक दस्तावेज यही बोलते है.
आतंकवादके साथ कोंगीयोंका मेलमिलाप या तो सोफ्ट कोर्नर, कोंगीयोंका कोमवाद और जातिवादको उत्तेजन, मोदीके प्रति कोंगीयोंकी निम्न स्तरकी सोच, कोंगीयोंका मीथ्या वाणीविलास … ये सब दृष्यमान है. कुछ मुस्लिम नेताओंकी सोच जैसे हिन्दुके विरुद्ध है उसी प्रकार इन कोंगीयोंकी सोच भी खूले आम विकृत है.
कोंगीयोंको की तो हम अवगणना कर सकते है. क्यों कि यह कोई नयी बात नहीं है. लेकिन मूर्धन्य लोग जो अपनेको तटस्थ मानते है वे भी प्रमाणकी तुलना किये बिना केवल एक दिशामें ही लिखते है.
साध्वी प्रज्ञा के उपर कोंगी सरकारने जो असीम अत्याचार करवाया वे हर नापदंडसे और निरपेक्षतासे घृणास्पद है. उसको पढके हर सद्व्यक्ति का खून उबल सकता है. साध्वी प्रज्ञाके उपर किये गये अत्याचार किससे प्रेरित थे. इस बात पर एक विशेष जाँच टीमका गठन करना चाहिये. और संबंधित हर पूलिसका, अफसरका और सियासती नेताओंकी पूछताछ होनी चाहिये.
यदि ऐसा नहीं होगा तो इन्दिरा गांधीकी तरह हर कोंगी और उसके हर सांस्कृतिक पक्षका नेता सोचेगा कि हमें तो किसीको भी कुछ भी करने की छूट है, जैसे इन्दिरा गांधीने १९७५-१९७६में किया था.
हमारे मूर्धन्योंको देखो. एक भी माईका लाल निकला नहीं जिसने इस मुद्दे पर चर्चा की हो. हाँ, इससे विपरीत ऐसे कटारीया (कोलमीस्ट) अवश्य निकले जिसने साध्वी प्रज्ञाकी बुराई की. ऐसे कटारीया लेखक साध्वी प्रज्ञाकी शालिन भाषासे भी उसकी सांस्कृतिक उच्चताकी अनुभूति नही कर पाये. और देखो कटारिया लेखककी विकृतिकी कल्पना शीलता देखो कि उसने तो अपनी कल्पनाका उपयोग करके “साध्वी प्रज्ञाने एन्टी टेररीस्ट स्क्वार्ड के हेड हेमंत करकरे जब वे कसाबको गोली मार रहे थे तो साध्वी प्रज्ञाने हेमंत करकरेको श्राप दिया कि उस मासुम आतंकवादीको क्यों मारा? अब तुम भी मरोगे.” और हेमंत करकरे मारे गये.
यह क्या मजाक है? कल्पना कटारीया की, कल्पना चढाई साध्वी प्रज्ञाके नाम. प्रज्ञा – कसाब बहेन भाई, कौन कब कहाँ मरा और किसने मारा … इसके बारेमें कटारियाका घोर अज्ञान और घालमेल. एक साध्वी प्रज्ञाके उपर पोलिस कस्टडीमें घोर अत्याचार हुआ. लंबे अरसे तक अत्याचार होता रहा, अत्याचारकी जांच के बदले, अत्याचारको “मस्जिदमें गीयो तो कौन” करके एक मजाकवाला लेख लिख दिया ये कटारिया भाईने.
जिस साध्वी प्रज्ञाको न्यायालय द्वारा क्लीन चीट मीली है,लेकिन इस बातसे तो उनके उपर हुए अत्याचार का मामला और अधिक गंभीर बनता है. साध्वी प्रज्ञाने कभी कसाब को मारनेके कारण करकरे तो श्राप दिया ऐसा कभी सुना पढा नहीं. साध्वी प्रज्ञाने स्वयंके उपर करकरेके कहेनेसे हुई यातना से करकरे को श्राप दिया ऐसा सूना है. कसाबको तो न्यायालयमें केस चला और उसको फांसीकी सज़ा हुई. कसाबकी फांसीके जल्लाद करकरे नहीं थे. करकरे तो कसाबसे पहेले ही आतंकवादीयोंके साथ मुठभेडमें मर गये थे. कसाब को मृत्युदंड २१ नवेम्बर २०१२ हुआ. और करकरे मुठभेडमें मरा २६ नवेम्बर २००८.
साध्वी प्रज्ञाके कथनोंको पतला करनेके लिये कटारीयाभाईने उसको एक मजाकका विषय बना दिया. यह है हमारे मूर्धन्योंकी मानसिकता. ऐसी भद्दी मजाक तो कोंगीप्रेमी ही कर सकते है. किन्तु इससे क्या कोंगीका पल्ला भारी होता है?
अरुण शौरी लो या शेखर गुप्ता लो या प्रीतीश नंदी लो या अपनके स्वयं प्रमाणित शशि थरुर लो. या तो गीता पढाओ या तो इनको डॉ. आईनस्टाईन एन्ड युनीवर्स पढाओ या तो उनको कहो कि आपका पृथ्वीपरका करतव्य पूरा हुआ है और आप अब मौन धारण करो.
एक तरफ मोदी है, जिसने कभी संपत्ति संचयका सोचा नहीं, जिसने अपने संबंधीयोंको भी दूर रक्खा, वह अपने परिश्रमसे आगे आया और वह देशके हितके अतिरिक्त कुछ सोचता नहीं,
दुसरी तरफ है (१) कोंगीके नहेरुवीयनसे प्रारंभ करके, यानी कि सोनिया, राहुल, चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, मोतीलाल वोरा, साम पित्रोडा जैसे नेतागण जो बैल पर है, (२) मुलायम, अखिलेश, मायावती जिनके उपर अवैध तरीकोंसे संपत्ति प्राप्तिके केस चल रहे है, (३) ममता और उसके साथीयोंके उपर शारदा ग्रुप चीट फंडके कौभान्डके केस चल रहे है, और ममताका नक्षलवादीयोंके साथकी सांठगांठके बारेमें कभी भी खुलासा हो सकता है, (४) लालु प्रसाद कारावासके शलाखेकी गीनती कर रहे है और उसके कुटुंबीजन अवैध संपतिके केस चल रहे है.
उपरोक्त लोगोंने जे.एन.यु. के विभाजन वादी टूकडे टूकडे गेंगका और अर्बन नक्षलीयोंका खुलकर समर्थन किया है जिसमें कश्मिरके विभाजनवादी तत्त्व भी संमिलित है. ये योग आतंकवादीयोंके मानव अधिकारका समर्थन करनेमें कूदकर आगे रहेते है, लेकिन हिन्दुओंकी कत्लेआम और विस्थापित होने पर मौन है. देश की सुरक्षा पर भी मौन है.
यह भेद क्रीस्टल क्लीयर है. इसमें कोई विवादकी शक्यता नहीं. तो भी हमारे मूर्धन्य कटारीयाओंकी कानोंमे जू तक नहीं रेंगती. दशको बीत जाते है लेकिन उनके मूँहसे कभी “उफ़” तक नहीं निकलता. और जब कोई बीजेपी/मोदी फोबिया पीडित नेता जैसा कि राहुल, पित्रोडा, प्रयंका, सोनिया, मणी अय्यर, आझम, दीग्विजय, चिदंबरं, शशि, माया, ममता आदि कोई कोमवादी या जातिवादी टीप्पणी करता है और बीजेपीके कोई नेता उसका उत्तर देता है तो वे सामान्यीकरण करके एन्टी-बीजेपी गेंगकी कोमवादी जातिवादी टीप्पणीको अति डाईल्युट कर देते है. “इस चूनावमें नेताओंका स्तर निम्न स्तर पर पहूँच गया है ऐसा लिखके अपनी पीठ थपथपाते है कि स्वयं कैसे तटस्थ है.
मूर्धन्योंकी ऐसी तटस्थता व्यंढ है और ऐसे मूर्धन्य भी व्यंढ है जो अपनी विवेकशीलतासे जो वास्तविकता क्रीस्टल क्लीयर है तो भी, उसको उजागर न कर सके. इतनी सीमा तक स्वार्थी तो कमसे कम मूर्धन्योंको नहीं बनना चाहिये.
इसके अतिरिक्त कोम्युनीस्ट पार्टी और कट्टरवादी मुस्लिम पक्ष है जिनकी एलफेल बोलनेकी हिमत कोंगीयोंने बढायी है. इनकी चर्चा हम नहीं करेंगे.
“जैसे थे” वाली परिस्थिति मूर्धन्योंको क्यूँ चाहिये?
क्यूँ कि हमें पीला पत्रकारित्व चाहिये, हमें मासुम/मायुस चहेरेवाले लचीले शासकके शासनमें हस्तक्षेप करना है. हमें हमारे हिसाबसे मंत्रीमंडलमें हमारा कुछ प्रभाव चाहिये, हम एजन्टका काम भी कर सकें, हमे सुरक्षा सौदोमें भी हिस्सा चाहिये ताकि हमारा चेनल/वर्तमानपत्र रुपी मुखकमल बंद रहे. अरे भाई, हमे पढने वाले लाखों है, तो हमारा भी तो महत्त्व होना ही चाहिये न?
स्वयम् प्रमाणित महात्मा गांधीवादीयोंका और गांधी-संस्था-गत क्षेत्रमें महात्मा गांधीके विचारोंका प्रचार करने वाले अधिकतर महानुभावोंका क्या हाल है?
इनमेंसे अधिकतर महानुभाव लोग आर.एस.एस. फोबियासे पीडीत होनेके कारण, एक पूर्वग्रहसे भी पीडित है. आर.एस.एस.में तो आपको नरेन्द्र मोदी और उनके साथी और कई सारे लोग मिल जायेंगे जो महात्मा गांधीके प्रति आदरका भाव रखते है और उनका बहुमान करते है. महात्मा गांधी के विचारोंका प्रसार करनेका जो काम कोंगीने नहीं किया, वह काम बीजेपीकी सरकारोंने गुजरात और देशभरमें किया है. इस विषय पर महात्मा गांधीवादी महानुभावोने नरेन्द्र मोदीका अभिवादन या प्रशंसा नहीं किया. लेकिन ये पूर्वग्रहसे पीडित महानुभावोंने ऐसे प्रश्न उठाये वैसे प्रश्न कोंगी शासन कालमें कभी नही उठाये गये. जैसे कि “मोदीको अपने कामका प्रचार करनेकी क्या आवश्यकता है? वह प्रचार करता है वही अनावश्यक है. काम तो अपने आप बोलेगा ही. मोदी स्वयं अपने कामोंकी बाते करता है यही तो उसका कमीनापन है.” “ मोदीने अंबाणीसे प्रचूर मात्रामें पैसे लिये. ऐसे पैसोंसे वह जीतता है.” कोंगीयोंकी तरह ये लोग भी प्रमाण देना आवश्यक नहीं समज़ते.
मा, माटी और मानुष
हमारे कथित गांधीवादी (दिव्यभास्कर के गुजराती प्रकाशन के दिनांक १६-०५-२०१९) मूर्धन्यको ममताके “मा माटी” में भावनात्मक मानस दृष्टिगोचर होता है, चाहे ममता पश्चिम बंगालमें प्रचारके लिये आये अन्य भाषीयोंको, “बाहरी” घोषित करके देशकी जनताको विभाजित करे.
पूरी भारतकी जनता एक ही है और उसमें विभाजनको अनुमोदन देना और बढावा देना “अ-गांधीवाद” है. गांधीजी जब चंपारणमें गये थे, तब तो किसीने भी उनको बहारी नहीं कहा था. और अब ये कथित गांधीवादी, “बाहरी”वाली मानसिकता का गुणगान कर रहे है.
यदि नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें ऐसा किया होता तो?
तब तो ये गांधीवादी उनके उपर तूट पडते.
अब आप देखो और तुलना करो… नरेन्द्र मोदीने कभी “अपन” और “बाहरी’ वाला मुद्दा बनाया नहीं. तो भी ये लोग २००१से, मोदी प्रांतवादको उजागर करता है ऐसा कहेते रहेते है. वास्तवमें मोदी तो परप्रांतियोंका गुजरातके विकासमें दिये हुये योगदानकी सराहना करते रहेते है. लेकिन इन तथा-कथित गांधीवादीयोंका मानस ही विकृत हो गया है. इन लोंगोंको पश्चिम बंगालकी टी.एम.सी. द्वारा प्रेरित आपखुदी, सांविधानिक प्रावधानोंकी उपेक्षा, और हिंसा नहीं दिखाई देती. तब तो वे शाहमृगकी तरह अपना शिर, भूमिगत कर देते हैं. उपरोक्त गांधीवादी महानुभाव लोगोंने विवेक दृष्टि खो दी है. ईश्वर उनको माफ नहीं करेगा, चाहे उनको ज्ञात हो या नहीं. उपरोक्त गांधीवादीयोंके लिये इस सीमा तक कहेना इस कालखंडकी विडंबना है. तथाकथित महात्मा गांधीवादीयोंके वैचारिक विनीपातसे, हमारे जैसे अपूर्ण गांधीवादी शर्मींदा है. १९६४-१९७७में तो इन्दिरा नहेरु कोंग्रेस (आई.एन.सी.)की गेंगसे देशकी जनताको सुरक्षा देने के लिये जयप्रकाश नारायण, मैदानमें आ गये थे, किन्तु प्रवर्तमान समयमें, ये जूठसे लिप्त और भ्रष्टाचारसे प्लवित कोंगी, और उसके सांस्कृतिक साथीयोंकी अनेकानेक गेंगसे बचाने के लिये कोई गांधीवादी बचा नहीं है और जो है वे अक्षम है. यह युद्ध जनता और बीजेपीको ही लडना है.
शिरीष मोहनलाल दवे
हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, Social Issues, tagged आयोजन, आर्थिक क्षेत्र, उत्क्रांति, कल्पना, गुजरात, चीन. १९४९, जैसे थे वाद, दिनेश त्रीवेदी, नरेन्द्र मोदी, न्यायिक क्षेत्र, परिकल्पना, परिवर्तन, प्रकृति, प्रक्रिया, ब्रॉड गेज, भावनगर – तारापुर, मशीन टुल्स, मानसिकता, मीटर गेज, मूर्धन्य, मूलभूत संरचना, रेल मत्री, वंशवाद, विलंब, शिघ्रता, शैक्षणिक क्षेत्र, संकल्प, सामाजिक क्षेत्र, साम्यवाद, १९६२ on May 9, 2019| Leave a Comment »
with a curtsy to the cartoonists
हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः
(मूर्धन्याः उचुः = विद्वान लोगोंने बोला)
परिवर्तन क्या है? और “जैसे थे” वाली परिस्थिति से क्या अर्थ है?
नरेन्द्र मोदी स्वयं परिवर्तन लाना चाहता है. यह बात तो सिद्ध है क्यों कि उसने जिन क्षेत्रोमें परिवर्तन लानेका संकल्प किया है उनके अनुसंधानमें उसने कई सारे काम किये है.
परिवर्तन क्या है. परिवर्तन तो प्रकृति भी करती है.
वास्तवमें परिवर्तनमें शिघ्रताकी आवश्यकता है. क्यों कि शिघ्रताके अभावमें जो परिवर्तन होता है उसको परिवर्तन नहीं कहा जाता. शिघ्रतासे हुए परिवर्तनको क्रांति भी बोलते है.
“होती है चलती है… पहले अपना हिस्सा सुनिश्चित करो …“
ऐसी मानसिकता रखके जो परिवर्तन होता है उसमें विलंबसे होता है और विलंबसे अनेक समस्या उत्पन्न होती है. वे समस्या प्राकृतिक भी होती है और मानव सर्जित भी होती है. और अति विलंबको परिवर्तन कहा ही नहीं जा सकता. वैसे तो प्रकृति स्वयं परिवर्तन करती है. ऐसे परिवर्तनसे ही मानव, पेडसे उतरकर कर भूमि पर आया था. पेडसे भूमि की यात्रा एक जनरेशन में नहीं होती है. इस प्रकार अति विलंबसे होने वाले परिवर्तन को उत्क्रांति (ईवोल्युशन) कहा जाता है.
कोंगीयोंने भी परिवर्तन किया है. किन्तु उनका परिवर्तन उत्क्रांति (ईवोल्युशन) जैसा है.
(ईवोल्युशनमे कभी प्रजातियाँ या तत्त्व नष्ट भी हो जाते है.)
उदाहरण के लिये तो कई परिकल्पनाएं है (केवल गुजरातका ही हाल देखें).
(१) जैसे कि नर्मदा योजना (योजनाकी कल्पना वर्ष १९३६. योजनाका निर्धारित समाप्तिकाल २० वर्ष. वास्तविक निर्धारित समाप्ति वर्ष २०२२).
(२) मीटर गेज, नेरो गेज का ब्रोड गेजमें परिवर्तन (परिकल्पना की कल्पना १९५२)
वास्तविकताः महुवा-भावनगर नेरोगेज उखाड दिया, डूंगर – पोर्ट विक्टर उखाड दिया, राजुला रोड राजुला उखाड दिया, गोधरा- लुणावाडा उखाड दिया, चांपानेर रोड पावागढ उखाड दिया, मोटा दहिसरा – नवलखी उखाड दिया, जामनगर (कानालुस) – सिक्का उखाड दिया. अब यह पता नहीं कि ये सब रेल्वे लाईन ब्रॉडगेजमें कब परिवर्तित होगी.
भावनगर-तारापुर, मशीन टुल्सका कारखाना ये कल्पना तो गत शतकके पंचम दशक की है. जिसमे स्लीपरका टेन्डर भी निकाला है ऐसे समाचार चूनावके समय पर समाचार पत्रोंमे आया था. दोनों इल्ले इल्ले. ममताके रेल मंत्री दिनेश त्रीवेदीने गत दशकमें रेल्वेबजटमें उल्लेख किया था. किन्तु बादमें इल्ले इल्ले.
परिवर्तनके क्षेत्र?
नरेन्द्र मोदीकी सरकारने काम हाथ पर तो लिया है, लेकिन कोंगीके शासकोंने जो ७० वर्षका विलंब किया है वह अक्षम्य है.
चीन १९४९में नया शासन बना. १४ वर्षमें वह भारत देश जैसे बडे देशको हरा सकनेमें सक्षम हो गया. आप कहोगे कि वहां तो सरमुखत्यारी (साम्यवादी) शासान था. वहां जनताके अभिप्रायोंकी गणना नहीं हो सकती. इसलिये वहां सबकुछ हो सकता है.
अरे भाई सुरक्षासे बढकर बडा कोई काम नहीं हो सकता. सुरक्षाका काम भी विकासका काम ही है. विकासके कामोंमे कभी भारतकी जनताने उस समय तो कोई विरोध करती नहीं थी. आज जरुर विकासके कामोंमें जनता टांग अडाती है. लेकिन इसमें सरकारी (कर्मचारीयोंका) भ्रष्टाचार और विपक्षकी सियासत अधिक है. ये सब कोंगीकी देन है. विकासके कामोसे ही रोजगार उत्पन्न होता है.
मूलभूत संरचना का क्षेत्रः
इसमें मार्ग, यातायात संसाधन, जलसंसाधन, विद्युत उत्पादन, उद्योग (ग्रामोद्योग भी इनमें समाविष्ट है). नरेन्द्र मोदीने इसमें काफि शिघ्रगतिसे काम किया है. इसके विवरणकी आवश्यकता नहीं है.
उत्पादन क्षेत्रः उद्योगोंके लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया, यातायातकी सुविधा, विद्युतकी सुविधा, जल सुविधा और मानवीय कुशलता आवश्यक है.
कोंगीको तो मानव संसाधनके विषयमें खास ज्ञान ही नहीं था. उसने तो ब्रीटीश शिक्षा प्रणाली के अनुसार ही आगे बढना सोचा था. पीढीयोंकी पीढीयों तक जनताको निरक्षर रखा था. समय बरबाद किया.
नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य किया था. स्कील डेवेलोप्मेन्टकी संस्थाएं खोली. बेटी बचाओ, बेटी बढाओ अभियान छेडा.
न्याय का क्षेत्रः
कोंगीने तो न्यायिक प्रक्रीया ही इतनी जटील कर दी कि सामान्य स्थितिका आदमी न्याय पा ही न सके. नरेन्द्र मोदीने कई सारे (१५००) नियमोंको रद कर दिया है. इसमें और सुधार की आवश्यकता है.
शासन क्षेत्रः
भारतमें कोंगीका शासन एक ऐसा शासन था कि जिसमें साम्यवाद, परिवारवाद, सरमुखत्यार शाही और जनतंत्रका मिलावट थी. इससे हर वादकी हानि कारक तत्व भारतको मिले. और हर वादके लाभ कारक तत्त्व कोंगीके संबंधीयोंको मिले.
सामाजिक क्षेत्रः
कोंगीने जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, आर्थिक स्थिति … आदिके आधार पर विभाजन कायम रक्खा. उतना ही नहीं उसको और गहरा किया. समाजको विभाजित करने वाले तत्त्वोंको महत्त्व दिया. लोगोंकी नैतिक मानसिकता तो इतनी कमजोर कर दी की सामान्य आदमी स्वकेन्द्री बन गया. उसके लिये देशका हित और देशका चारित्र्य का अस्तित्व रहा ही नहीं. आम जनताको गलत इतिहास पढाया और उसीके आधार पर देशकी जनताको और विभाजित किया.
कोंगीने यदि सबसे बडा राष्ट्रीय अपराध किया है तो वह है मूर्धन्योंकी मानसिकताका विनीपात.
मूर्धन्य कौन है?
वैसे तो हमे गुजरातीयोंको प्राथमिक विद्यालयमें पढाया गया था कि जिनका साहित्यमें योगदान होता है वे मूर्धन्य है. अर्वाचीन गुजरातके सभी लेखक गण मूर्धन्य है.
माध्यमिक विद्यालयमें पढाया गया कि जो भी लिखावट है वह साहित्यका हिस्सा है.
हमारे जयेन्द्र भाई त्रीवेदी जो हिन्दीके अध्यापक थे उन्होंने कहा कि जो समाजको प्रतिबिंबित करके बुद्धियुक्त लिखता है वह मूर्धन्य है. तो इसमें सांप्रत विषयोंके लेखक, विवेचक, विश्लेषक, अन्वेषक, चिंतक, सुचारु संपादक, व्याख्याता … सब लोग मूर्धन्य है….
कोंगीने मूर्धन्योंका ऐसा विनीपात करने में क्या भूमिका अदा की है?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
कोंगीयोंका दंभ और उनका फीक्सींग
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कोंगीयोंका दंभ और उनका फीक्सींग
दंभकी असीमता
कोंगीयोंमे और नहेरु-वंशीयोंमे प्रचूर मात्रामें दंभ है. जैसे कि, उनका जूठ बोलना उनकी एक पहेचान है वैसे ही दंभ और आत्मश्लाघा भी उनका ताद्रूप्य (पहेचान Identity) है.
अभी आपने देखा होगा कि चूनाव आयुक्तने नरेन्द्र मोदीकी बायोक्लीप पर प्रतिबंध लगा दिया. इतना ही नही. लेकिन अक्षय कुमारके नरेन्द्र मोदीके साक्षात्कार पर भी कोलाहल मचा दिया. लेकिन जो नहेरुवीयन कोंग्रेसके स्थापक, श्रीमान नहेरु स्वयं, अपने मूँह अपनी आत्मश्लाघा करवाते थे और वे भी सरकारी पैसे से.
याद करो पूराने जमानेमें जब, हालके कोंगी भक्त, और सरकारी मीडीया वाले क्या करते थे. सरकारी मीडीया तो कोंगीयोंकी जागीर था. ऑल ईन्डिया रेडियो मतलब ऑल इन्दिरा रेडियो.
फिल्म डीवीज़न ऑफ ईन्डीया
उस समय इन्डियन न्यूज “फिल्म डीवीज़न ऑफ ईन्डीया”, हमेशा फिलम चालु होनेके पूर्व, देशके समाचार दिखाता था. १९५७में चूनावके समय “हमारे प्रधान मंत्री” का कैसा दया स्वरुप है उसको कोमेन्ट्रीके साथ दिखाते है? उनकी दिनचर्या दिखाते है. उनके मासुम बच्चोंको (प्रपौत्रोंको) दिखाते है. नहेरुका प्राणी संग्रहालयमें प्राणीयोंको जीवदया प्रेमी नहेरु कैसे खाना खिलाते दिखाई देते है. अपने मासुम बच्चों (राजिव संजय)के साथ कैसे प्यारभरी बातें करते थे. उदाहरणके तौर पर एक पांडा को खिलाते है. भारतकी जनता ही नहीं लेकिन नहेरुके पालतु प्राणी मात्र भी नहेरुको पहेचानते है. और यह पांडाभाई तो यदि नहेरु न खिलाते तो वह उपवास करता है ऐसा भी कोमेंट्रीमें दिखाते है. वैसे तो यह एक संशोधनका विषय है. क्यों कि इसका मतलब तो यह हुआ कि नहेरु यदि एक सप्ताहके लिये विदेश जाते तो जीव-दया प्रेमी नहेरुका पांडा क्या करता होगा? एक सप्ताह या उससे भी अधिक समय पर्यंत भूखा रहेता होगा? तो फिर नहेरु जिवदया प्रेमी कैसे कहेला सकते? जाने भी दो यारों…
नहेरुके साथ गांधी बापुकी फोटो
नहेरुजीके साथ कभी गांधीबापु दिखाते है … नहेरुजीके साथ कभी गरीब मनुष्य होता है … नहेरुजी कैसे अपने काममें जूटे रहेते है, इसको भी दिखाते है. कोमेंट्री द्वारा ही सब कुछ होता है. फिर नहेरु फेमीलीका ब्रेक फास्ट दिखाते है. अभी तो नहेरुकी हिमालयन ब्लन्डर बनी नहीं है इसलिये पूरी दुनिया उसके सामने नतमस्तक है ऐसा कोमेंटेटर बेधडक कहेता है. वैसे भी जूठ बोलनेमें हर्ज ही क्या है? रात्रीके दश बजे से रातके दो बजे तक नहेरुके कार्यालयकी बत्तीयाँ जलती है. फिर जब बत्तीयां बंद हो जाती है तो समज़ना है कि नहेरु सो गये है.. और सुबह आठ बजे फिर नहेरुजी अपने कार्यालयमें काम करते दिखाई देते है. लोक तंत्रके रक्षक नहेरु अपनी पूत्री उनकी अनुगामी बनें ऐसी सुनिश्चित व्यवस्था कर जाते है.
खून क्या होता है?
नहेरु ही नहीं, इन्दिराका जमाना भी ऐसा ही था. इन्दिरा अपने मासुम बच्चोंसे कैसे बाते करती है. जब उनका एक बच्चा खानेसे मना करता है तब इन्दिरा उससे कहेती है कि यदि खाओगे नहीं तो खून कैसे बनेगा. तो उनका बच्चा कहेता है “खून क्या होता है?”
अनुसंधानः https:/youtu.be/nN0X9-6HYSg
(अंजली बहेन द्वारा प्रेषित पंकज राय के संदेश पर आधारित)
हमारे डी.बी. (दिव्य भास्कर गुजराती प्रकाशन) ने भी अब एक नया तरिका निकाला है. उसको लोकप्रिय करनेके लिये उसमें इनाम भी रक्खा है.
वैसे तो आपने देखा होगा कि प्रियंका वांईदरा (वाड्रा का काठियावाडीकरण व अपभ्रंश) के डाचा (मुखमंडलका कच्छीकरण) को इन्दिरा नहेरुघांडीके डाचा के साथ तुलना मीडीया कर्मीयों द्वारा की जाती है तो साथमें संदेश यह है कि उसके दिमागका भी वही हाल होगा. वैसे तो इन्दिराका दिमाग खास असाधारण नहीं था. इसका पता तो हमें सिमला करारकी विफलतासे ही पड जाता है. मीडीया कर्मीयोंने डरसे या तो स्वकेन्द्री हेतुओंके कारण इन्दिराकी कमीयोंको प्रदर्शित नहीं किया है. ये सब बातें जाने दो.
मासुमियत का प्रदर्शन और बीक्री
हमें तो नहेरुवीयन फरजंदोंकी मासुमीयत दिखाना है. यदि फारुख, ओमर, महेबुबा मुफ्ती कई आतंक वादीयोंको और पत्थरबाजोंको मासुम घोषित कर सकते है तो क्या हम कोंगीप्रेमी लोग और कोंगीलोग और उनके सांस्कृतिक साथी लोग, नहेरुवीयन फरजंदोंको मासुम नहीं दिखा सकते क्या?
नहेरुवीयन फरजंदोंके पूराने फोटो निकालो. युवा नहेरुके साथ बालिका इन्दिरा कैसी मासुम थी. इन्दिरा के साथ बाल राजिव, कैसे मासुम दिखते है, युवा राजिव और युवा सोनियाके साथ बाल राहुल और बाल प्रियंका कैसे मासुम दिखते है. अभी जो शरीर दिख रहा है वे सोनिया, राहुल, प्रियंकाका ही तो है. कितने मासुम है उसकी कल्पना तो करो. आप सब क्या अष्टम् पष्टम् सोचते हो. उनकी मासुमियतको याद करो. इस प्रकार डीबीभाई ऐसे पूराने फोटो दिखाते है. लेकिन डीबीभाईको तो अपनी तटस्थता भी दिखाना है, तो क्या करेंगे? अरे भाई … उसमें क्या है … !!! मोदी, लालु, लालुके बेटे, मुलायम सभीके बाल्यकालके फोटो दिखादो… क्या करें ! फोटोग्राफीका आविष्कार तो उन्नीसवीं शताब्दीमें ही हुआ, और वह प्रचलित तो बीसवीं शताब्दीमें ही हुआ. और सर्व सामान्य उपलब्धता तो बीसवीं शताब्दीके उत्तरार्धमें हुई. अगर यदी हजारों लाखों वर्षकी उपलब्धता होती तो हम इन नहेरुवीयनोंके पूर्वज मासुम वनमानवकी और होमोसेपीयनकी भी फोटो उपलब्ध करातें.
फीक्सींग का मामला और नहेरुवीयन संस्कारः
जो पाप हमने किया है उसके उपर हमारे विरोधी पक्ष द्वारा हमारी बुराई की जाय, उससे पहेले हम विपक्षी तथा कथित वैसी चाहे वह विवादास्पद बातें ही क्यों न हो, हम उनके उपर आरोपित कर दें. इन्दिरा गांधीने ए.एन. रे. को सी.जे.सी. बना दिया. वह क्या था? एस.सी. जब अपने पर आता है तो गहेराई तक जाना चाहता है और वह भी शिघ्रातिशिघ्र. कमीटेड ज्युडीसीयरी किसका फीक्सींग था?
धर्मके आधार पर भेदभाव रखनेके लिये “सेक्युलर” शब्दका संविधानमें प्रक्षेप किसका फीक्सींग था. वैसे तो संविधानमें बुनियाद तो नहीं बदली जा सकती, ऐसा ही तो सर्वोच्च न्यायालयने ताल ठोकके कहा था.
कपिल सिब्बलने कहा रामजन्म भूमिके उपर चूनावके बाद ही न्याय करो. अब क्या हो रहा है? यह कैसा फीक्सींग है?
राम मंदिरके केस पर १० साल तक सोये रहेना वह किसका फीक्सींग है?
पी.चिदंबरं की गिरफ्तारी पर एक सालसे रोक लगी है, यह किसका फीक्सींग है?
पत्नीकी हत्याके आरोपमें शशि थरुर चार सालसे जमानत पर है, यह किसका फीक्सींग है?
साध्वी प्रज्ञा जिसके उपर आरोप भी न्यायालयने सुनिश्चित नही किया उसको हर हालातमें जमानत नहीं मिल सकती और उसके उपर जो शारीरिक और मानसिक अत्याचार हुआ उसकी जाँचके आदेश नहीं दिया जा सकता, यह किसका फिक्सींग है?
यदि पी.आई.एल. हिन्दुओंके विरुद्ध है तो बेंच भी बैठ जाती है … उदाहरण … सबरीमाला, महाकाल पर अभिषेक,
एक लाख छहत्तर करोडके घोटालेके सभी अभियुक्त बिना फीक्सींग बरी हो जाते है क्या …?
अरुणाचालके मुख्य मत्रीका स्युसाईड नोट … यह कोई चिंताका विषय है भला? कोई कार्यवाही नहीं …, यह क्या फीक्सींग का मामला नहीं है? इसमें एस.आई.टी. द्वारा जाँच नही क्युँ?
२००२से लेकर बारा साल तक नरेन्द्र मोदीको फसाने की कोशिस कैसे की गई? अरे सूनी सूनाई सफेद दाढी, काली दाढीकी वाली बात पर भी केबिनेट बैठ सकती है तो फीक्सींग क्या चीज़ है. कोंगीकी सरकारने अपने निर्णय कैसे समय समय पर बदले … हेडलीके निवेदनोंको भी नजरांदाज किया यह क्या फीक्सींग था? आतंकवादीयोंके अधिकार, उनसे संलग्न शहेरी नक्सलीयोंकी प्रधान मंत्रीको मारनेका षडयंत्र, रातको तीन बजे याकुब मेमन के लिये अदालत खोलना, पक्षकी पहेचान, पक्षकी पोलीसी और पक्षकी पोलीसी में जनतंत्रीय प्रक्रिया के आधार पर निर्णय लेना उसके लिये गवर्नरके निर्णयको नकारना … यह क्या फिक्सींग नहीं हो सकता है? ऐसे तो हजारो मामले है. इनके अतिरिक्त अन्य मामले अधिक विस्तारसे इसी ब्लोगसाईट पर उपल्ब्ध है.
शिरीष मोहनलाल दवे
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