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Archive for February, 2020

क्या भारतको गृहयुद्धके प्रति ले जा रहा है कोंगी पक्ष?

क्या भारतको गृहयुद्धके (आंतरिक युद्ध)के प्रति ले जा रहा है कोंगी पक्ष?

कुछ मुस्लिमनेता लोग यह प्रदर्शित करनेका प्रयत्न कर रहे कि भारतमें मुस्लिम सुरक्षित तो नहीं ही है, किन्तु नरेन्द्र मोदी और अमित शाहकी सरकार उनको येन केन प्रकारेण नागरिकता अधिकारसे विमुख करेगी. ऐसा भी हो सकता है कि मोदी सरकार हमें देशके बाहर निकाल दें.

वास्तविकता क्या है?

वैसे तो सारे मुस्लिम नेतागणको और मुस्लिमोंको बहेकाने वाले विपक्षी नेतागणोंको  वास्तविकता तो ज्ञात ही है कि मुस्लिम जनताको नागरिकतासे विमुख करने की बात या तो उनके कुछ अधिकारोंको हानि पहोंचाना …  ऐसा कुछ है ही नहीं.

उनको यह भी ज्ञात है कि, भारत एक उत्कृष्ट लोकशाहीवाला देश है, और मुस्लिम जनता जगतके अन्य देशोंकी अपेक्षा भारतमें मुस्लिम अति सुरक्षित है. भारतीय संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जो सर्वाधिक धर्मनिरपेक्ष है और हर धर्मके प्रति सद्‌भावना रखती है. उतना ही नहीं भारतीय हिन्दु जनता आवश्यकता से ही कहीं अधिक सहिष्णु और शांति प्रिय है.

मुस्लिम और ख्रीस्ती ( ख्रीस्ती से मतलब है आम ख्रीस्ती जनता नहीं, किन्तु केवल ख्रीस्तीयोंके धर्मगुरुलोग) जनताको यही बात अखरती है कि ऐसा क्यूँ  है?

इन भारतीय हिन्दुओंको गृहयुद्ध के प्रति कैसे उत्तेजित किया जाय!! हमने सदीयों तक इस भारत और इन हिन्दुओं के उपर शासन किया तथापि भारतमें हम, अपना बहुमत क्यों नहीं कर पायें? हम इन हिन्दुओंको हिंसा के लिये उत्तेजित करना ही पडेगा. मुस्लिम लोग तो गृहयुद्धके लिये आतुर है.

ये हिन्दु केवल कभी कभी हम अल्पसंख्यकोंके प्रति और खास करके मुस्लिमोंके प्रति, और कभी कभी ख्रीस्तीयोंके प्रति, कठोर शब्द प्रयोग कर लेते है. हम और हम जिनकी वॉट बेंक है, उनके नेता गण, इन कठोर शब्द प्रयोगको तोड मरोड कर, ये हिन्दु लोग अति असहिष्णु है वह सिद्ध करनेका प्रयत्न करते रहेते है. हम सर्वदा इन बातोंको ट्रोल करके ऐसी हवा उत्पन्न करते है कि, मोदी और बीजेपी कट्टरवादी है.

“यदि न.मो. की यह बीजेपी सरकार एक के बाद एक, हमने उत्पन्न की हुई पूरानी समस्याओंको, जिनको हम सुलझा नहीं सकें, उनको सुलझाया करेगा तो हमे मुश्किले हो सकती है. वैसे तो हम इन बातोंको लेकर भी उनकी निंदा करते है और ये लोग तानाशाही चलाते है ऐसा भी ट्रोल करते है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.

कोंगी और उनकी गेंग, जिनमें कटारीया (कटार लेखक = कोलमीस्ट्स) भी संमिलित है वे लोग सोचते हैं कि हम तटस्थ माने जाने वाले मूर्धन्योंको भी भ्रममें डाल देते है तो भी न.मो.के पक्षके और नेताओंके कान में जू तक नहीं रेंगती. तो अब गृह युद्ध कैसे करवाया जाय?

Gruha yuddha

क्या गृहयुद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं?

कोंगी और उसके सहयोगी सोचमें पडे है और उनको समज़में नहीं आता है कि क्या किया जाय?

हिंमते मर्दा तो मददे खुदा!!

दिल्ली पर तो कब्जा कर लिया. अब मीथ्या मुद्दोंको ट्रोल करते रहो. हमारे मूर्धन्य लोग पर जो तटस्थताका धून है उनका भरपूर लाभ लो.

निम्न लिखित मुद्दोंको ट्रोल करो. तटस्थताकी धून जिनके उपर सवार है वे मूर्धन्य हमें अवश्य मदद करेंगे.

विरोधी विचार कोई गद्दारी नहीं है  

“जे.एन.यु. के कुछ विद्यार्थी, वैसे तो वे गरीब है और ऐसे लोगोंके लिये ही तो हमने लंबा सोच कर जे.एन.यु.को बनाया था. पर्देके पीछे हमने साम्यवादी, अर्बन नक्षलवादी छात्रोंको भी प्रवेश दिया था या तो ऐसी विचारधारा बढानेके लिये प्रवेश दिया था. किन्तु ये बातें छोडो.

सर्वाधिक सरकारी सहाय पर अधार रखनेवाली संस्थामें विद्यार्थीकी अधिकतम अवधि कितनी होनी चाहिये?

“ऐसे प्रश्न मत उठाओ.  कथित विद्यार्थी २८ से ४० साल तक जे.एन.यु. में पढते रहे तो क्या हुआ?

“अरे भाई, मनुष्यको अपने आपको हमेशाके लिये विद्यार्थी ही तो समज़ना चाहिये. यदि उनके उच्चारणोंसे आप संमत नहीं होते है तो क्या हुआ? क्या आपसे कुछ भीन्न विचारधारा ही नहीं होनी चाहिये. आप तो बिलकुल नाज़ीवादी है.

“यदि जे.एन.यु. के या तो जामीया वालोंने या तो शाहीनबाग वालोंने निम्न लिखित बोला तो क्या हुआ?

(१) पाकिस्तान जिंदाबाद,

(२) हमें चाहिये आज़ादी,

(३) छीनकर लेंगे आज़ादी,

(४) कश्मिर मांगे आज़ादी,

(५) नोर्थ ईस्ट मांहे आजादी,

(६) भारत तेरे टूकडे होगे,

(७) अफज़ल हम शर्मींदा है, तेरे कातिल जिंदा है,

(८) घरघरसे अफज़ल निकलेगा,

(९) मोदीको डंडा मारेंगे,

(१०) मोदीको गोली मारेंगे,

(११) मोदी चोर है, मैं बोलुंगी मोदी, आप को उंची आवाज़से बोलना है “चोर है” बोलो बच्चों “मोदी” … “चोर है”.

और भी कई सूत्र है जो, जे.एन.यु., जामीया, अलीगढ आदि शिक्षण संस्थाओंके कुछ विद्यार्थीयोंने कई बार पूकारे है. शाहीन बाग के मार्गके कब्जा करने वालोंने ऐसे सूत्र पुकारते है.

“अरे सूत्रोच्चार करनेसे क्या होता है?

“किसीने किसीको मारा तो नहीं है. यदि मारा है, आग लागाई भी है, कोई जख्मी भी हुआ है, कोई मर भी गया है … तो क्या हुआ? यह तो लो एन्ड ओर्डरका प्रश्न है. हम तो अहिंसामें मानते है, देखो हमारे पास भारतका संविधान है, हम तो भारतका राष्ट्रगीत भी गाते हैं, हम तो महात्मा गांधीवादी है, हम तो अहिंसक है. अहिंसक विरोध करना हमारा अधिकार है, आप यदि हमारे विचारोंसे सहमत नहीं है तो क्या हुआ? क्या आपसे हमारा मत भीन्न है तो हम देशद्रोही बन गये? कमाल है यार, आप तो बडे नाझी विचारधारा वाले है.

केज्रीवालकी जित

(१) केज्रीवालजी दील्लीका चूनाव जीत गये. तो हमारे एक मूर्धन्य उनसे प्रभावित हो गये. क्यों कि बहूत सारे लोग मानते है कि जीतमें सत्य छीपा हुआ है.

वैसे तो सत्य कभी बहुमतसे सिद्ध नहीं होता. बहुमतसे सरकार बनती है और चलती है. इसका कोई विकल्प नहीं है. लेकिन वह सरकार समयकी सीमासे बद्ध है.

प्राचीन भारतमें सत्य क्या है वह ऋषियों पर छोड दिया जाता था. राजा अपने सुज्ञ ऋषियोंकी / मंत्रीमंडल की सलाह लेता था. विनोबा भावे कहेते हैं कि आचार्य लोग सत्यको समज़ायेंगे. वर्तमान समयमें न्यायका काम सुज्ञ, सक्षम और विद्वान न्यायाधीश लोग करते है.

ऐसे एक न्यायधीशनने गोडसेके उपर चले न्यायिक कार्यवाहीके बाद, न्याय घोषित करनेके पूर्व, कहा था कि “आप जो लोग यहां बैठे है उनके निर्णय के अनुसार यदि मुज़े निर्णय लेना होता तो मैं गोडसे को अपराधसे मूक्ति देकर “वह निर्दोष है” ऐसा निर्णय दे देता. किन्तु, न्याय देनेकी ऐसी प्रणाली स्थापित नहीं है. इस लिये मैं ऐसा नहीं कर सकता.”

(२) केज्रीवालजी अन्ना हजारेके साथ (सरकार विरुद्ध केस चालाने के लिये) लोकपाल की नियुक्तिके लिये आंदोलन कर रहे थे.

जब वे स्वयं सत्ता पर आये तो वे लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर सके. चलो यह बात तो छोडो.

केज्रीवालने कहा था कि मैं जब सत्ता पर आउंगा तो सभी निर्णय जनताको पूछ कर लूंगा. जब ये केज्रीवाल सत्ता पर आये तो उन्होंने नुक्कड पर कुछ लोगों को इकठ्ठे किये और उनसे पूछा “आप मेरे ‘क…ख… ग…’ निर्णयसे संमत है? यदि हां तो हाथ उठाईये. … यदि असहमत है तो हाथ मत उठाईए. …”, …. “हाथ उठानेवाले ज्यादा है … तो … मेरा निर्णय पास है…”    

अरे भाई केज्री, जनतंत्रमें क्या ऐसे निर्णय लिये जाते है? जनतंत्रमें निर्णय लेनेकि सुग्रथित प्रणालियां होती है. उनका तो कुछ खयाल करो.

(३) केज्रीवालजीने कहा था कि हमने चूनावके लिये जो प्रत्याषी घोषित किये थे उनकी हमने पूरी जांच की थी.

अरे भाई, यह तो ऐसी बात हुई कि राजिव गांधीको “मीस्टर क्लीन” की उपाधी कोंगीयोंने और समाचार माध्यमोंने दे दी थी. फिर क्या हुआ? … शाह बानो, बोफोर्स और सुरक्षा मंत्री को सरकारी चीठ्ठी लेके स्वीट्ज़रलेन्डमें भेजना की जांच शिघ्र नहीं चलाना…”

(४) जब जे.एन.यु. के विद्यार्थीयोंने देशविरोधी सूत्रोच्चार किये तो यह केज्रीवालजी और रा.गा.जी वहां पहूंच गये और उनसे कहा कि “आप आगे बढो, हम आपके साथ है…” (अब आप उपरोक्त सूत्रोच्चारोंमेंसे, १ से ८ तक पढो.) इन सूत्रोंसे सरकार, नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके नेता सहमत नहीं है. दुसरोंकी बात तो छोडो, आप ही बताओ कि, क्या ये देशप्रेमके सूत्र है या देश द्रोहके सूत्र हैं?

फिर देखो …  

(५) केज्रीवालजीने बोला था कि वे सरकारके हर निर्णयका विरोध करेंगे. क्यों कि “हमारा पक्ष एनार्की (अराजकता) उत्पन्न करनेमें मानता है”

यदि आप सुज्ञ है तो समज़ जाओगे कि यह सिद्धांत साम्यवादीयोंका है कि आप क्रांतिके लिये सर्व प्रथम हर तरहसे अराजकता पैदा करो.

(६) जब नरेन्द्र मोदी सरकारने आतंकवादीयों पर सकंजा कसा, और पत्थरका उत्तर ईंटसे देने लगी तो कुछ सुरक्षाकर्मी भी मरे. यानी कि, आतंकवादी हमलेमें कुछ जवान भी मरे, तो यह केज्रीवाल चीख चीख कर बोलने लगा था कि “ओ मोदी तुम यह बताओ कि तुम कितने जवानोंका भोग लेना चाहते हो… तुम्हारा दिल कब भरेगा? … तुम्हें शांति पाने के लिये कितना बलिदान चाहिये? …”

ये केज्रीवाल उन्ही लोगोंमेंसे है जिन्होंने आतंकवादियोंसे लड रहे हमारे जवानोंके उपर पत्थर फैंकने वालोंके समर्थनमें रहे थे. जब एक सेना-अफसरने जवानोंकी सुरक्षाके लिये एक पत्थरबाजको जीप पर बांधा और जवानोंको पत्थरबाजोंके हमले से बचाया तो इन नेताओंको पीडा होने लगी थी और उन पत्थरबाजों की सुरक्षाकी चिंता करने लगे थे.

(७) ये केज्रीवाल और कुछ लोग ऐसा सोचते है और मनवाते है कि, कश्मिर आज़ादि मांगे, और हममेंसे कोई उनको सपोर्ट करें, इसमें कोई बुराई नहीं है. क्यों कि हमारी अंग्रेज सरकारसे आज़ादीके आंदोलनको कई अंग्रेज लोगोंने भी समर्थन किया था. तब अंग्रेज सरकारको तो बुरा नहीं लगता था. तो हमारी सरकारसे यदि कश्मिरी लोग आज़ादी मांगे तो उसमें बुराई क्या है?

लेकिन इनकी मति भ्रष्ट है.

भारत और ब्रीटन समान नहीं थे. हमारा जनप्रतिनिधि ब्रीटीश संसदका प्रतिनिधि नहीं बनता था. कश्मिरसे चूना हुआ लोकसभाका सदस्य, भारतके केन्द्रीय मंत्रीमंडलका सदस्य भी बन सकता है और बना भी है और वह भी गृहमंत्री.

दो असमान राजकीय व्यवस्थाकी तुलना करना दिमागी दिवालियापन है. लेकिन क्या करें, हमारे मूर्धन्योंका ऐसा हाल है!!

गद्दारी कब माना जाता है?

वैसे तो पाकिस्तान जिंदाबाद कहेनेमें कोई बुराई या गद्दारी नहीं है. लेकिन किस परिस्थितिमें “पाकिस्तान जिंदाबाद” बोला जाता है इसके उपर, गद्दारी तय की जा सकती है.

 चीनने १९६२में भारतके उपर आक्रमण किया था. उस समय पश्चिम बंगालमें साम्यावादीयोंने एक जुलुस निकाला था कि “मुक्तिसेनाका स्वागत है”. क्या यह गद्दारी नहीं थी?

पाकिस्तानने भारत पर चार बार आक्रमण किया. उसको पता चल गया है कि भारतको वह प्रत्यक्ष युद्ध में जित नहीं सकता. इसलिये वह आतंकवादीयोंको घुसपैठ करवाके बोम्ब ब्लास्ट करवाता है. क्या आपमें अक्ल नहीं है कि यह भी एक युद्ध ही है. हाँ जी यह एक प्रच्छन्न युद्ध है.

ऐसे युद्ध के समयमें, पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाना गद्दारी नहीं है तो,  क्या है?

पृथ्विराज चौहान के राज्यमें यदि कोई महम्मद घोरी जिंदाबादके नारे लगावे, तो पृथ्विराज चौहान, उस नारेबाज़को गद्दार नहीं समज़ेगा क्या?

लेकिन हमारे तड-फड वाले मूर्धन्य भी मतिभ्रष्ट हो गये है.

वे बोलते है कि नरेन्द्र मोदी बोलता है कि “हम सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास”के लिये काम करते हैं. लेकिन नरेन्द्र मोदी सबका विश्वास नहीं जित पाया”. “तड-फड”वाले मूर्धन्य “नरेन्द्र मोदी, किसका विश्वास?” और “किस मुद्दे पर विश्वास” नहीं जित पाया उसके उपर मौन है. क्या यह सियासी मौन है?

नरेन्द्र मोदीको “किसका विश्वास” किस मुद्दे पर जितना है इस बातका यदि मूर्धन्यभाई विवरण करते तो आम जनताकी समज़में वृद्धि होती. लेकिन आम जनता की समज़में वृद्धि करना, एतत्कालिन समाचार माध्यमोंका धर्म नही रहा है. उनका धर्म तो अपना एजन्डा है, कि मोदी/बीजेपी सरकारके विरुद्ध हवा कैसे बनाना और जनताको भ्रमित कैसे करना.

अनिर्णायकता के कैदी

क्या कोंगी नेतागण और उनके सांस्कृतिक साथीयोंको संसदमें अपनी बात रखनेका समय नहीं दिया था? दिया ही था. वैसे तो CAA, NCR, NCP के उपर भूतकालमें कोंगी मंत्रीयोंने जो निवेदन दिये थे वे, जो नरेन्द्र मोदीने किया उनके समर्थन में ही थे. लेकिन वे अनिर्णायकताके कैदी थे. इसलिये उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया था. अब वे वितंडावाद करके विरोध करते है. क्यों कि उनका एजन्डा है “मत बेंक सलामत रक्खो”. इसलिये वे मुस्लिमोंको भी उकसाते है.

अधिकतम मुस्लिम लोग तो उकसनेके लिये तयार ही है.

“तड फड” वाले मूर्धन्य इस बातको कहेना चाहते है कि मोदीने इनको (कोंगीयोंको) विश्वासमें नहीं लिया?

“तड-फड” वाले मूर्धन्य यह भी कहेना चाहते है कि मोदीने मुस्लिमोंको विश्वासमें नहीं लिया.

क्या संसदमें कोई मुस्लिम वक्ताको बोलने नहीं दिया था? जो सियासत करने वाले मुस्लिम है वे सब ना समज़ है. क्या वे समज़ाने पर समज़ने वाले है? जो सोता है उसको तो जगाया जा सकता है. जो सोनेका ढोंग कर रहा है उसको क्या कोई जगा सकता है?

शाहीन बाग पर खास करके मुस्लिम महिलाएं मार्गका कब्जा करके प्रदर्शन करने बैठी है. ये महिलाएं, व्यक्तिगत रुपसे या बीस बीसके जुथमें भी संवाद करना नहीं चाहती, उनका प्रदर्शन गैर कानूनी है. उनका शाहीनबागके   मार्ग पर, बिना संवाद प्रदर्शन करना कोई असीमित अधिकार नहीं है, उनको कारावास भेजा जा सकता है, उनके उपर जूर्माना लगाया जा सकता है, उनके उपर कोमवाद को उकसानेका अपराध लागु किया जा सकता है, उनके उपर बच्चोंको पीडा देना और उनको गुमराह करनेका आरोप लगाया जा सकता है, उनके उपर कई क्रिमीनल केस भी लागु किया जा सकता है.

याद करो;

बाबा रामदेव और उनकी मांगके समर्थकोंने रामलीला मैदानमें प्रदर्शन किया था. उसमें उन्होंने कोई मार्गके उपर कब्जा किया था न तो यातायात रोका था. उन्होंने तो उस समयकी कोंगी सरकारसे प्रदर्शनके लिये अनुमति भी ली थी. उनकी मांगके समर्थनमें सर्वोच्च न्यायालयका आदेश भी था. तो भी कोंगी सरकारने मध्यरात्रीको पोलीस आक्रमण करके प्रदर्शन कारीयोंको मारपीट करके भगाया था. बाबा रामदेवको भी पीटा था. और यही कोंगी अपनेको तानाशाह के बदले लोकशाहीकी रक्षक, संविधानकी रक्षक और विरोधी सुरों की सहिष्णु बता रही है.

और इसके विपरित, शाहीनबाग, जामीया, अलीगढ आदिमें चल रहे प्रदर्शनकारी, जो संवादके लिये तयार नहीं है, मार्गका अवैध कब्जा करके बैठे है, आम जनताको असुविधा और आर्थिक नुकसान करते है तो भी ये केज्रीवाल और कोंगी लोग, मोदीको तानाशाह कहेते है और असंबद्ध “हम देखेंगे …” कविता पाठ करके अपनेको लोकशाहीवादी, गांधीवादी और अहिंसक मार्गी कहेते है. और हमारे मूर्धन्य ऐसे केज्रीवालोंसे, अर्बन नक्षलवादीयोंसे, फर्जी मानवाधिकार वादीयोंसे, कोंगीनेताओंसे मंत्र मुग्ध है.

यदि गांधीजी जिंदा होते तो आत्महत्या कर लेते.

जो लोग अपने को सुज्ञ मानते है उनको यह समज़ लेना चाहिये कि, जिस प्रकारसे विपक्षी मुस्लिम नेतागण बे-लगाम भाषाका उपयोग कर रहे है और कोंगी और उनके सांस्कृतिक पक्ष या तो मौन रहेते है या तो वितंडावादसे समर्थन करते है, तो उनका ध्येय एक ही हो सकता है कि वे भारतमें गृहयुद्ध हो.

क्यों कि गृहयुद्धके पश्चात्‌ ये लोग आसानीसे कह पायेंगे कि देखो हमने तो पहेलेसे ही कहा था कि मोदी तो कोमवादी, असहिष्णु और तानाशाह है. उसके शासनमें ही इन सभी प्र्कारकी अराजकता पैदा हुई. मोदीके कारण सबकुछ बिगडा. अब हमें फिरसे कमसे कम ७० साल तो शासन करना ही पडेगा तब हमारा देश १९९०की स्थिति पर पहोंचेगा.

आपको तो मालुम होगा ही १९९०में और उसके बाद १५ सालोंतक कोंगीने शासन किया, उस समय उन्होंने कश्मिरके गृहमंत्रीकी पुत्रीके और अन्योंके अपहरण (नाटक) करवाके, दो दर्जन आतंकवादीयोंको रीहा किया, हिन्दुओंके उपर असीम अत्याचार करवाये, हजारो हिन्दु स्त्रीयों पर रेप करवाया, हजारों हिन्दुओंका कत्ल करवाया, ५ लाख हिन्दुको अपने घरोंसे भगाया. कभी मुस्लिम अपराधीयोंके उपर कदम उठाना सोचा तक नहीं, ये कोंगी और उनके सांस्कृतिक सहयोगी कहेते है कि हमारे शासनमें तो सर्वत्र खुशहाली खुशहाली ही थी. कश्मिर और पूरे देशमें आनंद मंगल था. जो भी आतंकवादी हमले हुए वे तो सब भगवा आतंकवाद के कारण ही था. हमारे नेता रा.गा. जीने विदेशी डिप्लोमेटसे जो चिंता प्रगट की थी कि “देशको मुस्लिम आतंक वादसे कहीं अधिक भगवा आतंकवादसे डर है”, वह क्या जूठ था?

चाहे, महाविद्वान, प्रमाण पत्रधारी, महा नीतिमान श्रीमान राजराजेश्वर मनमोहन सिंहने ऐसा कहा हो कि “भारतके संसाधनों पर हिन्दुओंसे ज्यादा मुसलमानोंका हक्क है” तो भी, “सबका साथ सबका विकास (और सबका विश्वास)” कहेने वाला और उस प्रकारसे आचरण करनेवाला नरेन्द्र मोदी ही कोमवादी है.

ऐसा कहेनेवाले के उपर भी हमारे कई विश्वसनीय मूर्धन्य चूपकी साधे बैठे है तो समज़ना कि, मामला गंभीर है.

अब आपको सिर्फ यही समज़ना है “सावधान भारत”, छीपे हुए गद्दारोंसे, चाहे वे गद्दार ना समज़ भी हो और बादमें यदि जिंदा रहे तो पछताने वाले भी हो.

शिरीष मोहनलाल दवे

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Is it that the Shaheen bag area is a privet property?

Can the protesters and their supporters reply to the point?

ANARCHY IN SHAHEEN BAGIs it that the Shaheen bag area or a single property?

(1) What is Shaheen Bag?

(2) Is there any public road in Shaheen Bag?

(3) Who are the protesters?

(4) Do the protesters have any leader or representative?

(5) If there is a leader or a representative/s what is his name?

(6) If the protesters have a representative/s then how he/she has been selected? What is his/her duty?

(7) If the protest is for the awareness of public on any issue, then why the protesters are not making it open to the public and media?

(8) If the protesters have leader, then who is he/she?

(9) Why is he/she not coming forward to explain his/her demand and the justification?

(10) Is it that the leader and the protesters have right of way in that property?

(11) Who has given the right to the leader and the protesters, to prevent other citizens from entering into Shaheen Bag?

(12) Has the leader taken necessary permission to demonstrate their protest?

(13) If yes, then what are the details? Put them to public.

Media should ask above questions to the protesters? Why the media does not ask such questions?

What is the duty of the SC/HC?

(1) Does the HC/SC understand that the protesters have unlimited right to protest without knowing the issue?

(2) Does the HC/SC understand that the protesters have unlimited rights to protest against any issue anywhere?

(3) Does the HC/SC understand that the protesters have unlimited rights to protest against any government institution at any place?

(4) Does the HC/SC understand that the protesters have unlimited rights to protest against any government institution for unlimited time?

(5) Does the HC/SC understand that the protesters have every right to encroach any property of public use, and to prevent others to use it?

(6) Does the HC/SC understand that the protesters have every right to put the public to a continuous loss of time and money?

(7) Does the HC/SC understand that HC/SC should hesitate to issue an order to immediately vacate the road and open it for public?

(8) Does the HC/SC understand that HC/SC agrees that the protesters have absolute right to fully occupy public road and public property and also to deny others to use it as if the property is their own private property?

(9) Does the HC/SC understand that to vacate the said public property, which is fully occupied by the protesters since several months and they have prevented others from the usage, should not be got vacated for public use? Has the HC/SC any justification which has convinced the HC/SC from giving an interim order of vacation of the road to enable the public to use it?

(10) Does the HC/SC want to allow the protesters to use it for protests and to allow to play the kids, the kid brought to protest by the women protesters, and to sell eatables by hawkers to feed protesters?

(11) Does the HC/SC is of the opinion that even the case of the issue is sub judicial, the protesters’ protest should not be stopped?

(12) Does the HC/SC is of the opinion that the protesters are not supposed to make their opinion to public with justification, because the public has no right to know the justification of their protests?

(13) Is it that the HC/SC has been convinced to the priority to try out the suggestion to allow mediators to talk to the protesters, instead of calling the protesters to present themselves before court or asking the protesters to vacate the space for public usage immediately?

(14) Is it that the HC/SC is of the of the opinion that now on wards, any lot, can protest, against any act of the Government, with an absolute right for selecting public place with unlimited period of time including the place the Airports  air strips and runways?    

If the practical action of the HC/SC till date is affirmative, then

Is there not any scope to receive a message by the public that the integrity of SC/HC is not beyond doubt?

Shirish Mohanlal Dave

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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

नज़ारा ए शाहीन बाग

कोंगी लोग सोच रहे है कि अब हम मर सकते है. अब हमे अंतीम निर्णय लेना पडेगा. इसके सिवा हमारा उद्धार नहीं है. यदि हम ऐसे ही समय व्यतीत करते रहे … नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को गालियां देतें रहें तो ये सब प्रर्याप्त नहीं है.

यह तो हमने देख ही लिया कि, जो न्यायिक प्रक्रिया चल रही है उसमें हमारी लगातार हार हो रही है.  हमारे लिये कारावासके अतिरिक्त कोई स्थान नहीं. यदि हम सब नेतागण कारावासमें गये तो कोई हमारा ऐसा नेता नहीं बचा है जो हमारे पक्षको जीवित रख सकें और हमे कारावाससे बाहर निकाल सके. हमने पीछले ७० सालमें जो सेक्युलर, जनतंत्र और भारतीय इतिहास को तो छोडो, किन्तु जो नहेरु और नहेरुवीयनोंके विषयमें जूठ सिखाया है और पढाया है, उसका पर्दा फास हो सकता है.

अब हमारे पास तीन रास्ते है.

नवजोत सिध्धु, मणीशंकर अय्यर और शशि थरुर जैसे लोग यदि भारत में काममें न आये तो वे पाकिस्तानमें तो काममें आ ही सकते है. हमारे मुस्लिम लोगोंके कई रीस्तेदार पाकिस्तानमें है. इस लिये पाकिस्तानके उन रीस्तेदारों द्वारा हम भारतके मुस्लिमोंको उकसा सकते है. बोलीवुडके कई नामी लोग हमारे पक्षमें है और वे तो दाउदके पे रोल पर है. इस लिये ये लोग भी बीजेपीके विरुद्धमें वातावरण बनानेमें काममें आ सकते है. इस परिबल को हमें उपयोगमें लाना पडेगा. अभी तक तो हमने इनका छूटपूट उपयोग किया है लेकिन यह छूटपूट उपयोगसे कुछ होने वाला नहीं हैं.    

(१) मुस्लिम जनतासे हमें कुछ बडे काम करवाना है.

(२) जिन समाचार माध्यमोंने हमारा लुण खाया है उनसे हमे किमत वसुल करना है. यह काम इतना कठिन नहीं है क्यों कि हमारे पास उनकी ब्लेक बुक है. हमने इनको हवाई जहाजमें बहूत घुमाया है … विदेशोंकी सफरोंमे शोपींग करवाया है, फाईवस्टार होटलोंमें आरामसे मजा करवाया है, जो खाना है वो खाओ, जो पीना है वह पीओ, जहां घुमना हैं वहा घुमो … इनकी कल्पनामें न आवे ऐसा मजा हमने उनको करवाया है और इसी कारण वे भी तो नरेन्द्र मोदी से नाराज है तो वैसे भी हम उनका लाभ ले सकते है. और हम देख भी रहे है कि वे बीजेपीकी छोटी छोटी माईक्रोस्कोपिक तथा कथित गलतीयोंको हवा दे रहे है जैसे की पीएम और एच एम विरोधाभाषी कथन बोल रहे है, अर्थतंत्र रसाताल गया है, अभूत पूर्व बेकारी उत्पन्न हो गयी है, जीडीपी खाईमें गीर गया है, किसान आत्म हत्या कर रहा है, देश रेपीस्तान बन गया है …. और न जाने क्या क्या …?

(३) क्या मूर्धन्य लोगोंको हम असंजसमें डाल सकते हैं? जी हाँ. यदि मुसलमान लोग अपना जोर दिखाएंगे और हला गुल्ला करेंगे तो ये लोग अवश्य इस निष्कर्स पर पहोंचेंगे कि यह सब अभी ही क्यों हो रहा है …? पहेले तो ऐसा नहीं होता था …!! कुछ तो गडबड है …!! गुजरातीमें एक कहावत है “हलकुं लोहीं हवालदारनुं” मतलब की हवालदार ही जीम्मेवार है.

शशि थरुर और राजदीप सरदेसाई के वाणी विलासको तो हम समज़ सकते है कि उनका तो एक एजन्डा है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपीके बारेमें अफवाहें फैलाओ और एक ॠणात्मक हवा उत्पन्न करो तो जनता बीजेपीको हटाएगी. इन लोगोंसे जनता तटस्थता की अपेक्षा नहीं रखती.

अब देखो हमारे मूर्धन्य कटारीया लोग [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला यानी कोलमीस्ट)] क्या लिखते है?

प्रीतीश नंदीः

“घर छोडके विकास तो भाग गया है” “बीजेपी द्वारा हररोज मुश्केलियां उत्पन्न की जाती है”, यह मुश्केलियां हिंसक भी होती है”, “आखिरमें हमने इस सरकारको वोट क्यों दिया?” “हर महत्त्वकी बातको सरकार भूला देती है” “पागलपन, बेवकुफी भरी उत्तेजना सरकार फैला रही है”, “बीजेपीने चूनावमें बडे बडे वचन दिये थे”, “बीजेपीने चूनावमें युपीएके सामने कुछ सही और कुछ काल्पनिक कौभाण्ड  उजागर करके  सत्ता हांसिल की थी,” “प्रजाकी हालत “हिरन जैसी थी” … “नरेन्द्र मोदीके आक्रमक प्रचारमें जनता फंस गई थी”, “नरेन्द्र मोदीने इस फंसी हुई जनताका पूरा फायदा उठाया” और “मनमोहन जैसे सन्मानित और विद्वान व्यक्तिको  ऐसा दिखाय मानो वे दुष्ट और भ्रष्टाचारी …” “ कारोबारीयोंका संचालन कर रहे हो” “छात्रोंके नारोंकी ताकतको कम महत्त्व नहीं देना चाहिए.”

इस प्रीतीश नंदीकी अक्लका देवालीयापन देखो. वे पाकिस्तानके झीया उल हक्कके कालका एक कवि जो झीयाके विरुद्ध था, उसकी एक कविताका  उदाहरण देते है “हम देखेंगे …”. इसका नरेन्द्र मोदीके शासनके कोई संबंध नहीं. फिर भी यह कटारीया [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला कोलमीस्ट)] उसको उद्धृत करते है और मोदीको भय दिखाता है कि इस कविकी इस कवितासे लाखो लोग खडे हो जाते है.

यह कटारीयाजी इस काव्यका विवरण करते है. और कहेते है कि हे नरेन्द्र मोदी तुम्हारे सामने भी लाखो लोग खडे हो जायेंगे. फिर यह कटारीयाजी ढाकाके युवानोंका उदाहरण देते है. उनका भी लंबा चौडा विवरण देते है.

क्या बेतुकी बात करते है ये कटारीया नंदी. नंदी कटारीया का अंगुली निर्देश जे.एन.यु. के युवाओंके प्रति है. नंदी कटारीया, जे.एन.यु. के किनसूत्रोंको महत्त्व देना चाहते है? क्या ये सूत्र जो अर्बन नक्षल टूकडे टूकडे गेंग वाले थे?  क्या जे.एन.यु. अर्बन नक्षल वाले ही युवा है? बाकिके क्या युवा नहीं है? अरे भाई अर्बन नक्षल वाले तो ५% ही है. और वे भी युवा है या नहीं यह संशोधनका विषय है. ये कौनसी चक्कीका आटा खाते है कि उनको चालीस साल तक डॉक्टरेट की डीग्री नहीं मिल पाती? जरा इसका भी तो जीक्र करो, कटारीयाजी!!! 

नंदी कटारीयाजीका पूरा लेख ऐसे ही लुज़ टोकींगसे भरा हुआ है. तर्ककी बात तो अलग ही रही, लेकिन इनके लेखमें किसी भी प्रकारका मटीरीयल भी आपको मिलेगा नहीं.

यदि सही ढंगसे सोचा जाय तो प्रीतीश नंदीके इस लेखमें केवल और केवल वाणी विलास है. अंग्रेजीमें इनको “लुज़ टोकींग”कहा जाता है. कोंगी नेतागण लुज़ टॉकींग करे, इस बातको तो हम समज़ सकते है क्यों कि उनकी तो यह वंशीय आदत है.

शेखर गुप्ता (कटारीया)

शेखर गुप्ता क्या लिखते है?

मोदीने किसी प्रदर्शनकारीयोंके जुथको देखके ऐसा कहा कि “उनके पहेनावासे ही पता लग जाता है कि वे कौन है?”

यदि कोई मूँह ढकके सूत्र बाजी या तो पत्थर बाजी करता है तो;

एक निष्कर्ष तो यह है कि वह अपनी पहेचान छीपाना चाहता है, इससे यह भी फलित होता है कि वह व्यक्ति जो कर रहा है वह काम अच्छा नहीं है किन्तु बूरा काम कर रहा है.

दुसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि वह अपराधवाला काम कर रहा है. अपराध करनेवालेको सज़ा मिल सकती है. वह व्यक्ति सज़ासे बचनेके लिये मूँह छीपाता है.

तीसरा निष्कर्ष में पहनावा है.  पहनावेमें तो पायजामा और कूर्ता आम तौर पर होता ही है. यह तो आम जनता या कोई भी अपनेको आम दिखानेके लिये पहेनेगा ही.

लेकिन हमारे शे.गु.ने यह निष्कर्ष  निकाला की नरेन्द्र मोदीने मुस्लिमोंके प्रति अंगूली निर्देश किया है. इस लिये मोदी कोम वादी है और मोदी कोमवादको बढावा देता है. शे.गु. कटारीयाका ऐसा संदेश जाता है.

शे.गु.जी ऐसा तारतम्य निकालनेके लिये, अरुंधती रोय और माओवादी जुथके बीचके डीलका उदाहरण देते है. गांधीवाद और माओवाद का समन्वय किस खूबीसे अरुंधती रोय ने किया है कि शे.गु.जी आफ्रिन हो गये. शे.गु.जी कहेते है कि, क्यूं कि प्रदर्शनकारी पवित्र मस्जिदमेंसे आ रहे है, क्यूँ कि उनके हाथमें त्रीरंगा है, क्यूँ कि वे राष्ट्रगान गा रहे है, क्यूँ कि उनके पास महात्मा गांधीकी फोटो है, क्यूं कि उनके पास आंबेडकर की फोटो है … आदि आदि .. शे.गु. जी यह संदेश भी देना चाहते है कि ये बीजेपी सरकार लोग चाहे कितनी ही बहुमतिसे निर्वाचित सरकार क्यूँ न हो इन (मुस्लिमों)के प्रदर्शनकी उपेक्षा नहीं करना चाहिये.

वास्तवमें शे.गु.जीको धैर्य रखना चाहिये. रा.गा.की तरह, बिना धैर्य रक्खे, शिघ्र ही कुछ भी बोल देना, या तो बालीशता है या तो पूर्वनियोजित एजन्डा है. तीसरा कोई विकल्प शे.गु. कटारीयाके लिये हो ही नहीं सकता.

शे.गु.जी ने आगे चलकर भी वाणी विलास ही किया है.

चेतन भगतः

चेतन भगत भी एक कटारीया है. वे लिखते है कि

“उदार मानसिकतासे ही विकास शक्य है.”

“हम चोकिदार कम और भागीदार अधिक बनें, इससे देश शानदार बनेगा”

श्रीमान चे.भ. जी (चेतन भगत जी), भी एक बावाजी ही है क्या? बावाजी से मतलब है संत रजनीश मल, ओशो आसाराम. बावाजी है तो उदाहरण तो देना ही आवश्यक बनता है न!! वे अपने बाल्यावस्थाका उदाहरण देते है. वे फ्रीज़ और नौकरानीका और बील गेट्सका उदाहरण देते है. परोक्ष में “चे.भ.”जी मोदीजी की मानसिकता अन्यों के प्रति अविश्वासका भाव है. फिर उन्होंने कह दिया कि, नरेन्द्र मोदीने कुछ नियम ऐसे बनाये कि लोग भारतमें निवेश करने से डरते है. कौनसे नियम? इस पर चे.भ.जी मौन है. शायद उनको भी पता नहीं होगा.

चे.भ.जी अपनी कपोल कल्पित तारतम्य को स्वयं सिद्ध मानकर मोदीकी बुराई करते है.

“मुस्लिमोके विरुद्ध हिन्दुओंमें गुस्सा है. इसका कारण हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता है.

“अप्रवासीयोंपर हुए हमले भी हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता कारण भूत है,

“मुस्लिमोंको बहुत कुछ दे दिया है, अब वह वापस ले लेना चाहिये,

“मुस्लिमोंका बहुत तुष्टीकरण किया है अब उनको लूट लेना चाहिये

चे.भ.जी इस बातको समज़ना नहीं चाहते कि, किसी भी जनसमुदायमें कुछ लोग तो कट्टर विचारधारा वाले होते ही है. लेकिन किस समुदायमें इस कट्टरतावादी लोगोंका प्रमाण क्या है? इतनी विवेकशीलता तो मूर्धन्य कटारीयाओंमें होना आवश्यक है. लेकिन इन कटारीयाओंमे विवेक हीनता है. तुलनात्मक विश्लेषणके लिये ये कटारीया लोग अक्षम ही नहीं अशक्त है. वे समज़ते है “… वाह हमने क्या सुहाना शब्द प्रयोग किया है. फिलोसोफिकल वाक्य बोलो तो हमारी सत्यता अपने आप सिद्ध हो जाती है…”चे.भ.जी जैसे लोगोंको तुलनात्मक सत्य दिखायी ही नहीं देता है.

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंके शिर्ष नेताओंके उच्चारणोंको देख लो. “चोकिदार चोर है, नरेन्द्र मोदी नीच है, नरेन्द्र मोदीको डंडा मारो, नरेन्द्र मोदी फासीस्ट है, नरेन्द्र मोदी हीटलर है, नरेन्द्र मोदी खूनी है, बीजेपी वाले आर.एस.एस.वादी है, वे गोडसे है…” न जाने क्या क्या बोलते है. पक्षके प्रमुख और मंत्री रह चूके और सरकारी  पद पर रहेते हुए भी उन्होंने ऐसे उच्चारण किये है. लेकिन ये उपरोक्त मूर्धन्य कटारीया लोग इन उच्चारणों पर मौन धारण करते है. उनका जीक्र तक नहीं करतें.

आखिर ऐसा क्यूँ वे लोग ऐसा करते हैं?

यदि बीजेपीके या तो आर.एस.एस.के तृतीय कक्षाके लोग उपरोक्त उच्चारणोसे कम भी बोले तो ये लोग बडे बडे निष्कर्ष निकालते है. अपना कोरसगान (सहगान) चालु कर देते हैं.     

अपराध कब सिद्ध होता है?

“आप अपनी धारणाओंके आधार पर किसीको दोषी करार न ही दे सकते. न्यायिक प्रक्रियाके सिद्धांतोसे यह विपरित है. किसीको भी दोषी दिखानेके लिये आप अपनी मनमानी और धारणाओंका उपयोग नहीं कर सकते. किन्तु महान नंदीजी, शे.गु.जी, चे.भ. जी … आदि क्यूँ कि उनका एजन्डा कुछ और ही है, वे ऐसा कर सकते है. कोंगी लोग यही तो चाहते है.

इन कटारीया लोगोंको वास्तवमें पेटमें दुखता है क्या?

वास्तवमें कोंगी लोग और उनके सहयोगी लोग समज़ गये है कि,

नरेन्द्र मोदी, और भी समस्याएं हल कर सकता है. वैसे तो, जी.एस.टी. तो हमारा ही प्रस्ताव था, “विमुद्रीकरण करना” इस बातको तो हम भी सोच रहे थे, पाकिस्तानमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हो और वे पीडित होके भारतमें आवे तो, हमे उनको नागरिकता देनी है, यह बात भी हमारे नहेरु-लियाकत अली समज़ौताका हिस्सा था, १९७१के युद्धसे संबंधित जो शरणार्थी प्रताडित होकर भारतमें आये उनमें जो पाकिस्तानके अल्पसंख्यक थे उनको नागरिकता देना, और बांग्लादेशके आये बिहारी मुस्लिमोंको वापस भेजना यह तो हमारे पक्षके प्रधान मंत्रीयोंका शपथ था.  किन्तु हममें उतनी हिंमत और प्रज्ञा ही नहीं थी कि हम अपने शपथोंको पुरा करे. मोदीके विमुद्रीकरण और जी.एस.टी.के निर्णयोंको तो हमने विवादास्पद बनाके विरोध किया और जूठ लगातार फैलाते रहे. बीजेपी के हर कदमका हम विरोध करेंगे चाहे वह मुद्दे हमारे शासनसे संलग्न क्यूँ न हो?

कोंगी और उनके साथी लोगोंको अनुभूति हो गई है कि, “अब तो मोदीने उन समस्याओंको हाथ पे ले लिया है जो हमने दशकों और पीढीयों तक अनिर्णित रक्खी”.

कोंगीने उनके सांस्कृतक साथी पक्षके नेतागणको आत्मसात्‌ करवा दिया है कि “मोदी सब कुछ कर सकता है. अब तक हम उसको हलकेमें ले रहे थे. किन्तु मोदी आतंकी गतिविधियोंको अंकूशमें रख सकने के अतिरिक्त और सर्जीकल स्ट्राईकके अतिरिक्त, अनुछेद ३७० और ३५ऍ तकको खतम कर सकता है. वह जम्मु – कश्मिर राज्यश्रेणी भी बदल सकता है. हमे खुलकर ही मुस्लिम नेताओंको और मुस्लिमोंको अधिकसे अधिक बहेकाना पडेगा.”

कोंगीके सांस्कृतिक साथी कौन कौन है?

कोंगी पक्ष कैसा है?

कोंगी वंशवादी है, वंशवादको स्थायी रखने के लिये अवैध मार्गोंसे संपत्तिकी प्राप्त करना पडता है, शठता करनी पडती है,

सातत्यसे जूठ बोलना पडता है,

असामाजिक तत्त्वोंको हाथ पर रखना पडता,

दुश्मनके दुश्मनको मित्र बनाना पडता है,

जनताको मतिभ्रष्ट और पथ भ्रष्ट करना पडता. और कई समस्याओंको अनिर्णायक स्थितिमें रखना पडता है चाहे ये अनिर्णायकता देशके लिये और आम जनताकाके लिये कितनी भी हानिकारक क्यूँ न हो!!

अनीतिमत्ता वंशवादका एक आनुषंगिक उत्पादन है.

कोंगी जैसा सांस्कृतिक चरित्र और किनका है?

 ममताका TMC, शरदका NCP, लालुका RJD, बाल ठकरे का Siv Sena, मुल्लायमका SP, शेख अब्दुल्लाके फरजंद फारुक अब्दुल्लाका N.C. और सबसे नाता जोडने और तोडने वाले साम्यवादी. अब हम इन सभी पक्षोंके समूह को कोंगी ही कहेंगे. क्योंकि इन सभीका काम येन केन प्रकारेण, बिना साधन शुद्धिसे, बिना देशके हितकी परवाह किये नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को फिलहाल को बदनाम करो.

संवाद मत करो और तर्कयुक्त चर्चा मत करो केवल शोर मचाओ

संवाद करेंगे तो सामनेवाला तर्क करेगा. इस लिये संवाद मत करो, बार बार जूठ बोलो, असंबद्ध उदाहरण दो, सब नेता सहगान करो.

कहो… मोदी चोर है. अपने अनपढ श्रोताओंसे सूत्रोच्चार करवाओ मोदी चोर है. मोदीको चोरे सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी हीटलर है.  सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी खूनी है… सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

बीजेपी लोग गोडसे है. चाहे गोडसे आर.एस.एस. का सदस्य न भी हो तो भी. हमें क्या फर्क पडता है!!!  सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

विमूद्रीकरणमें मोदीने सेंकडो लोगोंको लाईनमें खडा करके मार दिया. बोलनेमें क्या हर्ज है? (वचनेषु किं दरिद्रता?). सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

जी.एस.टी. गब्बर सींग टेक्ष है. (चाहे वह हमारा ही प्रस्ताव क्यों न हो. किन्तु हममें उतना नैपूण्य कहाँ कि हम उसको लागु करें). यह सब चर्चा करना कहाँ आवश्यक है? सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

“भारतीय संविधान”को हमारे पक्षमें घसीटो, “मानव अधिकार और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” को भी हमारे पक्षमें घसीटो, रास्ता रोको, लगातार रास्ता रोको, आग लगाओ, फतवे निकालो, जनताको हो सके उतनी असुविधाओंमें डालो, कुछ भी करो और सब कुछ करो … मेसेज केवल यह देना है कि यह सब मोदीके कारण हो रहा है.

यदि इतना जूठ बोलते है तो “महात्मा गांधी”को भी हमारे पक्षमें घसीटो. गांधीजीका नाम लेके यह सब कुछ करो.

कोंगीयों द्वारा गांधीका एकबार और खून

कोंगीओंको, उनके सांस्कृतिक साथीयों और समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी छोडो, भारतमें विडंबना यह है कि अब मूर्धन्य कटारीया लोग भी ऐसा समज़ने लगे है कि अहिंसक विरोध और महात्मा गांधीके सिद्धांतों द्वारा विरोध ये दोनों समानार्थी है.

महात्मा गांधीके अनुसार विरोध कैसे किया जाता है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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