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Archive for February, 2019

कोंगी गेंग पुलवामा हमले पर अपनी रोटी शेकने लिये सज्ज है

कोंगी गेंग पुलवामा हमले पर अपनी रोटी शेकने लिये सज्ज है

सावधान भारत

जब पुलवामा पर आतंकी हमला हुआ था तो पूरे देशमें पाकिस्तानके विरोधमें आक्रोश प्रकट हुआ, तो अधिकतर जनता को लगा कि, कोंगी पक्ष इस हमले को सियासती मुद्दा नहीं बनायेगी.

लेकिन जो लोग कोंगीका चरित्र जानते है उनको तो मालुम ही था कि, कोंगी गेंग, इस घटनासे सियासती लाभ लेनेकी चेष्टा ही नहीं किन्तु भरपुर लाभ लेनेके लिये अफवाहें तक फैलाएगी.

वास्तवमें पुलवामा-हमला एक पूर्वनियोजित सुनियोजित हमला है इस बातको नकारा नहीं जा सकता.

जो जवान शहीद हो गये उनके शव अपने घर पहुंचे और उनका अग्निसंस्कार हो जाय, उसके पहेले ही कुछ कोंगी-गेंग के सदस्योंने (रणवीर सुरजेवाला, शशि थरुर, ओमर, केज्री … ) बीजेपी पर आक्रमण करनेका प्रारंभ कर दिया है.

जूठ बोलना कोंगीयोंकी और उनके मीडीया मूर्धन्योंकी लिये जन्मजात आदत है.

मैं शपथ लेता हूँ

फर्जी घटनाएं पैदा करना भी कोंगी गेंगके लिये स्वभाव जन्य है.

(१) आपने देखा होगा कि राफेल मामलेमें मीडीया गुरु “हिन्दु”ने बेशर्मीसे पीएमओ के एक अधिकारीकी भ्रमित करनेवाली टिपणी को दिखाया, और सुरक्षा मंत्री स्वयंकी टिपणीको छिपाया. रा.गा.को  (रा.घा. राहुल घांडीको) लगा कि उसको ब्रह्मास्र मिल गया. और रा.घा.ने उसको ले के पत्रकार परिषद भी बुलाई. मोदीको बदनाम करनेका परिपूर्ण प्रयत्न किया. ये पूरा नाटक जनताको गुमराह करने वाला आयोजनका एक हिस्सा था. “हिन्दु” के मालिकने तो कहा कि क्या दिखाना और क्या नहीं दिखाना वह उसकी मुनसफ्फी की बात है. यह कुछ दिखाना और कुछ न दिखाना और अपनी कार्यसूचिके अनुसार जनताको गुमराह करना कोंगी गेंगकी पूराना चारित्र है. बीजेपी ने इसका पर्दाफास किया.

(२) “भारतमें इतना काला धन है कि यदि उसको वितरित किया जाय तो हर भारतवासीको १५ लाख रुपये मिल सके” नरेन्द्र मोदीके इस कथनका इस प्रकार प्रसार किया कि बीजेपीके सत्ता पर आनेसे कालाधान पकडा जायेगा और भारतवासीयोंमे यह धन बाँटा जायेगा. “हर भारतवासीको १५ लाख रुपये मिलेगा”.

(३) गुजरातके २००२ दंगेके बाद जब अटलजी गुजरात आये तो तो उन्होंने बोला था कि “मुख्य मंत्रीका फर्ज होता है राजधर्म बजाना” बाजपाईके बगलमें पास बैठे नरेन्द्र मोदीने कहा “हम राजधर्म ही बजा रहे हैं”. तब अटलजीने कहा “हमें विश्वास है कि मोदीजी राजधर्म बजा रहे है”.

लेकिन मोदी विरोधियोंने “मुख्यमंत्रीका फर्ज होता है राजधर्म बजाना” इस बातको ही पकड लिया और वे हमेशा  बार बार इसीबातका प्रचार करते रहे और यही कहेते रहे कि मोदीने राजधर्म का पालन नहीं किया. ऐसी अफवाह फैलानेमें कोंगी-गेंग और बीजेपी-विरोधी अन्य गेंगे भी सामेल हो गयी थीं. आज तक ये जूठ चल रहे हैं.

(४) इन्दिरा गांधीने कोंगीका विभाजन करनेके समयमें ऐसा ही प्रचार किया कि; “मेरे पिताजीको तो बहुत कुछ करना था लेकिन ये बुढ्ढे लोग (कामराज, अतुल्य घोष, सादोबा पाटिल, मोरारजी देसाई … अदि) उनको करने नहीं देते थे. इन्दिरासे किसीने यह नहीं पूछा कि वह इसके आधारमें कुछ उदाहरण तो दें.  नहेरुका जनहित का कौनसा काम था  जो नहेरु करना चाहते थे, पर “उन बुढ्ढे लोगोंने नहेरुको न करने दिया हो.” मीडीयाको खिलाना पीलाना तबसे इन्दिरा गांधीने शुरु कर दिया था.

“मोदीको हटाना है” कोंगीका पुराना प्लान है

मणीशंकर अय्यर पाकिस्तान गये थे, और उन्होंने पाकिस्ताको खुलेआम कहा था कि, आपको मोदीको हटाना है. जब पाकिस्तानमें गवर्नमेन्ट, आतंकवादी संगठन, दाउद, आई.एस.आई. और सेना एक साथ हो तब “आपको मोदीको हटाना है” उसका मतलब साफ है कि भारतमें दंगा करवाओ, भारतमें आतंकवादी हमले करवाओ, भारतमें मोदी विरुद्ध माहोल बनवाओ या मोदीको मार दो.

कोंगी कहेती है;

“फर्जी बाते करना, निराधार आरोप करना और भारतके मीडीयाको खरिद लेना तो हमें खूब आता है, और आप यदि हमने दिखाये काम करोगे तो हमारा बीजेपीको हरानेका  काम अति आसान हो जायेगा.

“यदि मोदीको हम लोग कैसे भी हटा पाये तो, हमारी दुकाने फुलफेज़में चालु हो जायेगी और हमारे उपर जो न्यायिक कार्यवाही चल रही है वह भी समाप्त हो जायेगी.

“सी.बी.आई., न्यायतंत्र, चूनाव आयुक्त, ब्युरोक्रसी आदि तो हमारे पालतु पोपट है क्यों कि हमने इनके अधिकारीयोंका बहुत काम किया है और हमने उनकी सहायता भी बहूत की है. इसी लिये तो हम जनताको कहेते है और परोक्ष रुपसे इन संस्थाओंके अधिकारीओंको चेतावनी भी देते हैं कि यदि आपने हमारे विरुद्ध गंभिर कार्यवाही की तो याद रक्खो हम तुम्हें छोडेंगे नहीं. क्यूं कि हमने इनको पोपट बना दिया था, हमें डर है कि बीजेपीके ये लोग पोपट न बन जाय. इस लिये हम बीजेपी उपर (भले ही निराधार) आरोप लगा रहे है कि बीजेपीने इन संस्थाओंकी स्वतंत्रता छीन ली है. हम कैसे है, वह तो इन अधिकारीयोंको खूब मालुम है. हम जब पुरा “शाह जाँच आयोग”को और उनके संबंधित सभी दस्तावेजोंको तहस नहस कर सकते है तो ये न्यायालय, ब्युरोक्रसी, चूनाव आयोग, सी.बी.आई. क्या चीज़ है?  हमने क्या ६५ वर्ष के हमारे शासनमें जख मारा है?

“अब देखो हम क्या करने वाले है!!

“हमारे मूर्धन्य लोग चालाकी पूर्वक समाचार पत्रोंमें लेख लिखते रहेंगे;

“हमारे समाचार पत्र, हमारी लिये हमारे अनुकूल समाचारकी  शिर्ष रेखाएं प्रकाशित करेंगे या तो बीजेपीके प्रतिकुल समाचारों की शिर्ष रेखाएं बनाएंगे,

“हमारे कुछ लोग प्रो-बीजेपीका मुखवटा पहेनके कई सालोंसे बीजेपीमें घुसे हुए है;

ये बीजेपीके मुखवाटे वाले मोदीके उपर राम मंदिर निर्माणमें वचन न निभाना, वेद अनुरुप शिक्षाका प्रबंध न करना, वेदोंके अनुरुप संविधान न बनाना, उर्दु का सर्वनाश न करना, गौ-हत्या बंधी के अमल पर निस्क्रिय रहना, आदि के समर्थनमें लगातार चर्चा करते रहेंगे,   दुरात्मा गांधीको महात्मा क्यूँ कहेना, उसको राष्ट्र पिता क्यूँ कहेना?, गांधीने देशको विभाजित किया, गोडसेकी वीरताको पुनःस्थापित करो, शहीद भगत सिंहकी और गोडसेकी छबीको करन्सी नोटों पर स्थापित करो …. ऐसी चर्चा भी लगातार चलाया करेंगे,. बीजेपी, आरएसएसमें भी कई अल्पज्ञ, और अशिक्षित लोग है, उनका हमें सहारा मिलेगा और इससे हमारा उल्लु सीधा होगा. हम कोंगी गेंगवाले कोई कम नहीं है. हमने क्या वैसे ही हमारे बाल धूपमें सफेद किया है क्या? समज़ गये न, हम कौन है?

“हम कोंगी गेंगवाले राक्षस है. हम मायावी है. हमारा उल्लु सीधा कैसे करना वह हम खूब जानते है.

“आतंकवादी हमला करवाने तो हम सफल हुए. लेकिन थोडी हलकी रही.

“हम तो पूरे देशमें कोमी दंगा करवाने की ठानके बैठे थे. हमारे शासित राज्योंमें तो हमने थोडे दंगे करवानेकी कोशिस की, लेकिन हमारे शासित राज्योंमें हम अधिक दंगा नहीं करवा शकते यदि वे बीजेपी शासित राज्योंमें प्रसरते नहीं. इस लिये अभी यह काम हमने ठंडे बक्सेमें रक्खा है.

“हम कोंगी गेंगवाले सरासर जूठ द्वारा मोदीकी बुराई करते रहेंगे.

“ “राफेल” के विषयमें हम नरेन्द्र मोदीको चोर कहेते रहेंगे,

“नरेन्द्र मोदीने कोई भी विकास  नहीं किया और वह विकासका जूठ फैलाता रहेता है ऐसा कहेते रहेंगे,

“नरेन्द्र मोदीने दलित, किसान, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकोंके लिये कुछ भी नहीं किया ऐसा बोलते रहेंगे,

“नरेन्द्र मोदीने बेकारी बढाई ऐसा कहेते रहेंगे,

और खासम खास तो हम पुलवामा हमलेके बाद भी मोदीकी आँखें नहीं खूली, नरेन्द्र मोदी सिर्फ वाणीविलास करता रहा है और पुलवामा हमले बाद भी उसने निस्क्रियता दिखाई है. जब हमारे जवान मरते थे तब नरेन्द्र मोदी  नौका विहार करता था …  जब देशकी जनताने अपने चूल्हे बंद रक्खे थे तब नरेन्द्र मोदी गेस्टहाउसमें ज्याफत उडा रहा था … ऐसी तो कई बातें हमारे दिमागमें है उसको उजागर करते ही रहेंगे. कश्मिरकी स्थिति बिगाडने के लिये नरेन्द्र मोदी ही उत्तरदायी है. जब हमारा शासन था तब कश्मिरमें परम शांति थी और वह कश्मिरके लिये स्वर्णीम समय था. अब देखो, कश्मिरमें हररोज कोई न कोई मरता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – ३

पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदीऔर …. –

पाकिस्तान के आतंकवादीयोंने स्थानिक लोगोंकी मददसे भारतकी सेना पर बोम्ब ब्लास्ट किया इससे अस्थायी रुपसे बीजेपी/मोदी विरोधीयोंने हिन्दुओंकी एवं बीजेपी समर्थकोंकी असहिष्णुताके बारेमें बोलना बंद किया है.

पहेले जिन शब्दोंके उच्चारणोंका ये अफज़ल प्रेमी गेंग अपना हक्क और अपने इस हक्कको  लोकशाहीका एक अभिन्न अंग मानते है, और उसकी दुहाई देते थे उन्ही लोगोंने उनके पुनः उच्चारण पर एक अल्पविराम लगा दिया है. वे लोग दिखाना यह चाहते है कि हम भी सिपाईयोंके कुटुंबीयोंके दर्दमें सामील है. क्या यह इन अफज़लप्रेमी गेंगका विचार परिवर्तन है?

जिन शब्दोंको पहेले अभिव्यक्तिकी आज़ादी माना जाता था वे शब्द कौनसे थे?

पाकिस्तान जिंदाबाद,

भारत तेरे टूकडे होंगे

कश्मिरको चाहिये आज़ादी,

छीनके लेंगे आज़ादी,

बंदूकसे लेंगे आज़ादी,

अफज़ल हम शर्मिंदा है, कि तेरे कातिल जिन्दा है,

कितने अफज़ल मारोगे… घर घरसे अफज़ल निकलेगा,

आज इन्ही लोगोंमें इन सबका पुनः उच्चारण करनेकी शौर्य नहीं है.

ऐसा क्यों है?

पाकिस्तानके, आई.एस.आई.के, पाकिस्तानी सेनाके और आतंकवादीयोंके चरित्रमें तो कोई बदलाव आया नहीं है. फिर भी ये लोग अपने विभाजनवादी उच्चारणोंकी पुनरुक्ति क्यों नहीं करते? पहेले तो वे कहेते थे कि उच्चारणोसे गद्दारी सिद्ध नहीं होती है. ये नारे तो जनतंत्रका अभिन्न हिस्सा है. मोदी/बीजेपी वाले तो संविधानका अनादर करते है और यह मोदी/बीजेपी जैसे जनतंत्रके विध्वंशक है और वे हमारी अभिव्यक्तिकी आज़ादी  छीन रहे है.

यदि कोई समज़े कि ये स्वयंप्रमाणित स्वतंत्रताके स्वयंप्रमाणित सेनानीयोंको मोदी/बीजेपीकी विचारधारा समज़में आ गयी है तो आप अनभिज्ञतामें न रहे. पाकिस्तान प्रेरित ये आतंकवादी आक्रमणसे जो पाकिस्तान विरोधी वातावरण बना है इस लिये इन विभाजनवादी गेंगोंमें फिलहाल हिमत नहीं कि वे पाकिस्तान का समर्थन करे. उन्होंने एक अल्प समयका विराम लिया है. अब तो यदि कोई इस हमलेको “पाकिस्तानकी भारतके उपर सर्जिकल स्ट्राईक कहे … इतना ही नहीं पाकिस्तान जिन्दाबाद कहे और भारत सरकार उसके उपर कारवाई करें तो भी ये लोग अभिव्यक्तिकी आज़ादी के समर्थनमें चूँ तक नहीं बोलेंगे. हाँ जी अब आप पाकिस्तान जिंदाबाद तक नहीं बोल सकते.

विभाजनवादी गेंगोंका मौन रहना और सरकारके उच्चारणोंका और कदमोंके विरुद्ध न बोलना और मौन द्वारा समर्थन प्रदर्शित करना ये सब हकिकत क्या है?

हम जानते ही है कि पुरस्कार वापसी, हिन्दुओंकी अन्य धर्मोंके प्रति असहिष्णुता, बीजेपी सरकार द्वारा जनतंत्रका हनन, नारे लगानेसे गद्दारी सिद्ध नहीं होती… आदि वाक्‌चातुर्य दिखाने वालोंका समर्थन, वंशवादी कोंगी नेताओंने, टीवी चेनलओंने, मूर्धन्योंने विवेचकोंने, विश्लेषकोंने, कोंगीके सांस्कृतिक सहयोगीओंने उनके पास चलकर जाके किया था.

क्या ये सब तो कोंगीयोंकी एक बडी गेम का हिस्सा था?

कोंगीयोंकी और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंकी गेम क्या है?

हम जानते हैं कि जूठ बोलना कोंगीयोंकी पूरानी आदत है. चाहे वह नहेरु हो, इन्दिरा घांडी हो, राजिव घांडी हो, सोनिया घांडी हो या रा.घा. (रा.गा.) हो. अमान्य तरिकोंसे पैसे कमाना यह भी इन्दिराने आत्मसात्‌ की हुई आदत है. इन सबसे सत्ता प्रप्त करना और सत्ता प्रप्तिके बाद भी यह सब चालु रखना यह उनका संस्कार है.

अब हुआ क्या, कि कौभान्डोंके कारण कोंगीकी सत्ता चली गई. और नरेन्द्र मोदीने अवैध तरिकोंसे प्राप्त संपत्तिके लिये जाँच बैठा दी. वैसे तो कई किस्से पहेलेसे ही न्यायालयमें चलते भी थे. इन जाँचोंमेंसे निष्कलंक बाहर आना अब तो मुश्किल हो गया है, क्यों कि अब तो उनके पास सत्ता रही नहीं.

तो अब क्या किया जाय?

सत्ताप्राप्त करना अनिवार्य है. हमारा मोटो सत्ताप्राप्त करना. क्यों कि हमे बचना है. और बचनेके बाद हमारी दुकान चालु करनी है.

सबने मिलकर एक महागठबंधन बनाया. क्योंकि अवैध संपत्ति प्राप्ति करनेमें तो उनके सांस्कृतिक साथी पक्ष और कई मीडीया कर्मी भी थे. अब इस मोदी/बीजेपी हटाओके “गेम प्लान”में सब संमिलित है.

चूनाव उपयुक्त माहोलसे (वातावरण बनानेसे) जिता जाता है. मोदी/बीजेपीके विरुद्ध माहोल बनाओ तो २०१९का चूनाव जिता जा सकता है.

जूठ तो हम बोलते ही रहे है, हमारा रा.घा. (रा.गा.) तो इतना जूठ बोलता है कि वह सुज्ञ जनोंमे अविश्वसनीय हो गया है. लेकिन हमें सुज्ञ जनोंसे तकलिफ नहीं है. उनमेंसे तो कई बिकाउ है और हमने अनेकोंको खरिद भी लिया है. मीडीया भी बिकाउ है, इस लिये इन दोंनोंकी मिलावटसे हम रा.घा. को महापुरुष सिद्ध कर सकते है. अभी अभी जो मध्यप्रदेश, और राजस्थान और छत्तिसगढ में जित हुई है उसको हम मीडीया मूर्धन्योंकी सहायतासे रा.घा.के नाम करवा सकते है. रा.घा.के लगातार किये जा रहे जी.एस.टी., विमुद्रीकरण और राफेल प्रहारोंको हम अपने मीडीया मूर्धन्यों के द्वारा जिन्दा रखेंगे. प्रियंका को भी हम समर भूमिमें उतारेंगे और उसके सौदर्यका और अदाओंका सहारा लेके उसको महामाया बनाएंगे.

कोंगीके सीमा पारके मित्रोंका क्या प्लान है?

मणीशंकर अय्यर ने पाकिस्तान जाके कहा था कि, “मोदी को तो आपको हटाना पडेगा” जब तक आप यह नहीं करोगे तब तक दोनों देशोंके पारस्परिक संबंध और वार्ता शक्य नहीं बनेगी.

इसका सूचितार्थ क्या है?

“हे पाकिस्तानी जनगण, आपके पास मूर्धन्य है, आपके पास आइ.एस.आइ. है, आपके पास सेना है, आपके पास कई आतंकवादी संगठन है. याद करो… आपने उन्नीसौ नब्बे के दशक में कश्मिरके हमारे सहयोगी पक्षके मंत्रीकी पूत्री तकका हरण कर सकनेका सामर्थ्य दिखाया था. तो हमने आपके कई आतंकवादी महानेताओंको रिहा किया था. हमारे शासनके बाद की सरकारने भी कुछ आतंकवादी नेताओंको रिहा किया था. आपके पास हरकत उल जिहाद, लश्करे तोइबा, जैश ए मोहमद, हिजबुल मुज़ाही दीन, हरकत उल मुज़ाहीन, अल बद्र, जे एन्ड के लीबरेशन फ्रन्ट जिसको फुलेफलने हमने ही तो आपको मौका दिया था. आपके समर्थक  

अब्दुल गनी लोन, सैयद अली गीलानी, मिरवाज़ ओमर फारुख, मोहमद अब्बास अन्सारी, यासीन मलिक आदि कई नेताओंको, हमने पालके रक्खा है और हमने उनको जनतंत्रका और संविधानका फर्जी बहाना बनाके श्रेष्ठ सुविधाएं दी है. तो ये सब कब काम आयेंगे? और देखो … आपके खातिर ही हमने तो इज़राएलसे राजद्वारी संबंध नहीं रक्खे थे. आपको तो हम, हर प्रकारकी मदद करते रहे हैं और कश्मिरकी समस्या अमर रहे इस कारणसे हमने आपकी हर बात मान ली है. मुफ्ति मोहमद, फारुख अब्दुल्ला और ओमर अब्दुल्ला आदि तो हमारे भी मित्र है.

“अरे भाई, आपकी सुविधा के लिये आपके लोगोंने जब कश्मिरमें हजारों हिन्दु स्त्रीयों पर बलात्कार किया, ३०००+ हिन्दुओंका कत्ल किया जब ५ लाख हिन्दुओंको कश्मिरसे १९८९-९०मे बेघर किया तो हमारी कानोंमें और हमारे पेईड आदेशोंके प्रभावके कारण हमारी मीडीयाकी कानोंमे जू तक रेंगने नहीं दी थी. क्या ये सब आप भूल जाओगे?

“अरे भाई, ये फारुख और ओमर को तो हमने मुख्य मंत्री भी बना दिया था. और हमने भरपूर कोशिस की थी कि फिरसे ये साले कश्मिरी हिन्दु, कश्मिरमें, फिरसे बस न पाये. ये भी क्या आप भूल गये? हमने आपको मोस्ट फेवर्ड राष्ट्रका दरज्जा दिया है, हमने आपके दाउदको भारतसे भागनेकी सुविधा दी थी. और भारतके बाहर रखकर भी भारतमें अपने संबंधीओ द्वारा अपना कारोबार (हवाला-वाला, तस्करी, हप्ता, बिल्डरोंकी समस्या आदि आदि) चला सके उसके लिये भरपूर सुविधाएं दी है उनको भी क्या आप भूल जाओगे? अरे भाई आपके अर्थतंत्रमें  तो दाउदका गणमान्य प्रभाव है. क्या आप इसको भी भूल जाओगे?

“अरे मेरे अय्यर आका, आपको क्या चाहिये वह बोलो न..!!” पाकिस्तान बोला

मणीशंकर अय्यर बोले; “ देखो, मुज़े तो कुछ नहीं चाहिये. लेकिन आपको पता होगा कि मुज़े भी किसीको जवाब देना है … !!

“हाँ हाँ मुसलमान ख्रीस्ती भाई भाई … यही न !! अरे बंधु, वैसे तो हम मुसलमान, ख्रीस्ती और दलित भाई भाई भाई वैसा प्रचार, आपके यहाँ स्थित हमारे नेताओंसे करवाते है, लेकिन हमसे वह जमता नहीं है, वैसे भी हिन्दुओंको जातिके आधार पर विभाजित करनेका काम तो आप कर ही रहे हो न? जरा और जोर लगाओ तो मुसलमान, ख्रीस्ती दलित, पटेल, जट, यादव सब भाई, भाई, भाई, भाई भाई हो जायेगा ही न?” पाकिस्तान बोला.

“सही कहा आपने” अय्यर आगे बोले; “हमारा काम तो हम कर ही रहे है. हम कुछ दंगे भी करवा रहे है, आपको तो मालुम है कि दंगे करवानेमें तो हमे महारथ हांसिल है, लेकिन यह साला मोदी, बीजेपी शासित राज्योंमें दंगे होने नहीं देता. हम हमारे महागठबंधनवाले राज्योंमें तो दंगे करवाते ही है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है. आप कुछ करो न…? कुछ बडे हमले करवाओ न…? हम आपको, जो भी भूमिगत सहाय चाहिये, वह देगें. हम ऐसे आतंकी हमले मोदी/बीजेपी/आरएसएस/वीएचपी ने करवाये वैसी व्युह रचना करवाएंगे. लेकिन यदि आप बोंम्बे ब्लास्ट जैसा, हमला करवायेंगे तो ठीक नहीं होगा. वह साला कसाब पकडा गया, तो इससे हमारा पुरा प्लान फेल हो गया. वह ब्लास्ट आपके नाम पर चढ गया. इसलिये आप हमेशा आत्मघाती आतंकीयोंको ही भेजें. हमने जैसे मालेगाँव बोम्ब ब्लास्ट, हिन्दुओंने करवाया था, ऐसा प्रचार सालों तक हमने किया था और २००९के चूनावमें हमने जित भी हांसिल कर ली थी. आपका आदमी जो पकडा गया था उसको हमने भगा भी दिया था. क्यों कि हमारी सरकार थी न, जनाब.

“तो अभी आप हमसे क्या चाहते है? “ पाकिस्तानने बोला

“आपके पास दो विकल्प है” कोंगीनेताने आगे बोला “आपके पास कई आतंकवादी संगठन है. आप उनको कहो कि वह मोदीकी गेम कर दें. हमने गत चूनावमें बिहारमें मोदीको मारनेका प्लान किया था. मोदीकी पटनाकी रेली में हमने मोदीकी गेमका प्लान बनाया था. लेकिन साला मोदी बच गया. अब आप ऐसा करो कि यदि मोदीकी गेमका फेल हो जाय तो भी दुसरे विकल्पसे हमें मदद मिलें. आप कुछ बडे आतंकवादी हमले करवा दो, कोई और जगह नही तो तो कश्मिरमें ही सही.

“इससे क्या फायदा” पाकिस्तान बोला.

“देखो बडे हमले से भारतमें बडा आक्रोष पैदा होगा. बदले कि भावना जाग उठेगी. समय ऐसा निश्चित करो कि, मोदीके लिये बदला लेनेका मौका ही न रहे. मोदी न तो युद्ध कर सकेगा न तो सर्जीकल स्ट्राईक कर सकेगा. यदि मोदीने सर्जीकल स्ट्राईक कर भी दी तो वह विफल हो जायेगा,  क्यों कि आप तो सुरक्षाके लिये तयार ही होगे. मोदीके फेल होनेसे हमे बहोत ही फायदा मिल जायेगा. कमसे कम एक मुद्दा तो हमारे पास आ जायेगा कि मोदी १००% फेल है. वैसे तो हम, मोदी हरेक क्षेत्रमें फेल है, ऐसी अफवाहें फैलाते ही रहेतें है. लेकिन इस हमले के बाद मोदीकी जो पराजय होगी, इस फेल्योरको तो मोदी समर्थक भी नकार नहीं सकेंगे. हमारी मीडीया-टीम तो तयार ही है.

“बात तो सोचने लायक है” पाकिस्तान बोला.

“अरे भाईजान अब सोचो मत. जल्दी करो. समय कम बचा है. चूनावकी घोषणाका एक मास ही बचा है. जैसे ही एक बडा ब्लास्ट होगा, हमारे कुछ मीडीया मूर्धन्य दो तीन दिन तो सरकारके समर्थनमें और आपके विरुद्ध निवेदन बाजी करेंगे. धीरे धीरे चर्चाको मोदी की विफलताकी ओर ले जायेंगे.

बडा ब्लास्ट करना है तो पूर्व तयारी रुप काम करना ही है.

जम्मु कश्मिर राज मार्ग पर एक आतंकी/आतंकी समर्थक गाडी ले के निकला. रास्तेमें तीन चेक पोस्ट आये. दो चेक पोस्ट वह तोडके निकल गया. लेकिन जब तीसरा चेकपोस्ट उसने तोडा और भागा तो तीसरे चेकपोस्टवाले सुरक्षा कर्मीने गोली छोडी और वह आदमी अल्लाहका प्यारा हो गया. फिर तो कोंगी गेंग वाले मीडीया मूर्धन्य और फारुख, ओमर और महेबुबा आदि तो अपना आक्रोष प्रदर्शित करनेके लिये तयार ही थे. उन्होंने “एक सीटीझन को मार दिया, एक निर्दोष मानवीकी हत्या की, एक बेकसुरको मार दिया, एक मासुम को मार दिया…” मीडीया मूर्धन्योंने इस घटनाकी भर्त्सना करनेमें पूरा साथ दिया और कोंगी शासनकी कृपासे बने हुए नियमों से उस जवान को कारावासमे भेज दिया.  फिर यह सब चेक पोस्ट हटवा लिया. इसका फायदा पुलवामा में ब्लास्ट करनेमें आतंकीयोंने लिया.

अब कोंगीयोंका क्या चाल है?

कोंगीके सहायक दलोंने दो दिन तक तो मगरके आंशुं बहाये. लेकिन उसके कुछ मीडीया मूर्धन्य और मीडीया मालिक अधीर है. गुजरात समाचारकी बात तो छोडो. उसने तो पहेले ही दिन मोदीका ५६” की छातीपर मुक्का मार दिया. यह अखबार हमारी कोमेंट के लिये योग्य स्तर पर नहीं है. वह तो टोईलेट पेपर है

लेकिन तीसरे दिन डीबीभाईने (“दिव्य भास्कर” अखबारने) मैदानमें आगये. उन्होंने मोदीको   प्रश्न किया “अब तो मुठ्ठी खोलो और बताओ कि बदला कब लोगे?

मतलब की किस प्रकारका बदला कब लोगे वह हमें (“हमें” से मतलब है जनता को) कब कहोगे?

डीबीभाईकी बालीशता या अपरिपक्वता?

“आ बैल मुझे मार”

सरकार अपने प्रतिकारात्मक कदम पहेलेसे दुश्मनको बता दें, वह क्या उचित है? कभी नहीं. यदि कोई बेवकुफ सरकारने ऐसा किया तो वह “आ बैल मुज़े मार” जैसा ही कदम बनेगा. क्या ऐसी आसान समज़ भी इस अखबारमें नहीं है? शायद सामान्य कक्षाकी जनता, इस बातको समज़ नहीं सकती, लेकिन यदि एक विशाल वाचक वर्ग वाला अखबार, मोदीके विरुद्ध माहोल बनाने के लिये ऐसी बेतुकी बाते करे वह अक्षम्य है. वास्तवमें अखबार का एजन्डा, आम कक्षाकी जनताको गुमराह करनेका है. ताकि जनता भी मोदी पर दबाव करे कि मोदी तुम अपना प्रतिकारात्म प्लान खुला करो.

डीबीभाई के मीडीया मूर्धन्य कोलमीस्ट भी डीबीभाई से कम नहीं.

शेखर गुप्ताने तो एक परोक्ष मुक्का मार ही दिया. “क्या मोदी ‘इस कलंक’ के साथ चूनाव लड सकता है.?” मतलब कि शे.गु. के हिसाब से यह ब्लास्ट, “मोदीके लिये कलंक है.” याद करो कोंगी के नेतृत्ववाली सरकारमें तो आये दिन आतंक वादी, देशके भीतरी भागोंमें घुस कर बोम्ब ब्लास्ट किया करते थे तो भी इन महानुभावोने कोंगी उपर लगे वास्तविक कलंकको अनदेखा किया था. और प्रमाणभान रक्खे बिना, बीजेपी के विरुद्ध प्रचारको कायम रक्खा था. कोंगी अनगीनत कौभान्डोसे आवरित होने पर भी कोंगी के नेतृत्व वाली सरकारको जितानेमें भरपुर सहयोग दिया था. आज मोदीने आतंकवाद को काश्मिरके कुछ इलाकों तक सीमित कर दिया है और जो हमला हुआ उसके लिये तो, महेबुबा मुफ्ति, ओमर अब्दुल्ला, फारुख और कोंगीके नेतागण उत्तरदेय है. उनके उपर ही कार्यवाही करना चाहिये. इस हकिकतका तो, शे.गु. जिक्र तक नहीं करता है. उनका दिमाग तो जनताको उलज़नमें डालनेका है.

ममताने तो अभी से बोल ही दिया कि बिना सबुत पाकिस्तान स्थित आतंकवादी नेताओं पर कार्यवाही करनेको कहेना सही नहीं है. ममता का माइन्ड-सेट कैस है इस बातको आपको देखना चाहिये. कोंगीके कार्यकालमें और उरी एटेकमें सबुत दिये तो उसपर कार्यवाही क्यों नहीं की? इस तथ्यका ममता जिक्र नहीं करेगी. क्यों कि वह चाहती है कि अधिकतर मुसलमान और नेता आतंकवादी हमलेसे खुश है और उनको मुज़े नाराज करना नही चाहिये. केज्रीवाल और ममता एक ही भाषा बोलते है क्यों कि मुसलमान उनकी वोट-बेंक है.

सुज्ञ मुसलमानोंको ऐसे कोमवादी पक्षोंको वोटदेना नहीं चाहिये.

कोंगी और उसके सांस्कृतिक अहयोगी थोडे ही दिनोंमें “पुलवामा” एपीसोड के बीजेपी पर आक्रमण करने लगेंगे. क्यों कि सब उनके आयोजनके हिसाबसे आगे बढ रहा है.

यदि पाकिस्तान मोदीको हटाने पर तुला हुआ है. तो “पाकिस्तानको एक मोदी चाहिये” उसका मतलब क्या?

वास्तवमें पाकिस्तानकी जनता उनकी भ्रष्ट सियासतसे, सेनासे और आतंकवादीयोंसे तंग आ गई है. पाकिस्तानकी जनताका स्वप्न है उन्हे मोदी जैसा इमानदार, त्यागी, ज्ञानी, काम करनेवाला और होशियार प्रधान मंत्री मिले.

और भारतकी जनताको स्वप्नमें भी खयाल नहीं था कि उसको इमानदार, त्यागी, ज्ञानी, काम करनेवाला और होशियार प्रधान मंत्री मिल सकता है. वास्तवमें ऐसा प्रधान मंत्री भारतकी जनता को मिला, तो भारतके तथा कथित मीडीया मूर्धन्य, भारतकी जनता कैसे मोदी-मूक्त बने उसके बारेमें कारवाईयां कर रही है. यह भी एक विधिकी वक्रता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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भारत माँ का लाल:
लेखक: डॉ. मधुसूदन
(University of Massachusetts) 
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डॉ. मधुसूदन
 
(एक)लेखनी वीरों को अवसर ही अवसर:
 
जबान फडफडाकर या लेखनी घिसड घिसड कर आलोचना करने में क्या जाता है?
आलोचना आसान है। आराम कुर्सी में मेंढक (प्रेक्षक)बन बैठे रहो;और टर्राते रहो।
अपने व्यवसाय में डूबे पैसा कमाने से जिन्हें फुरसत नहीं, वे दूर से मज़ा देखकर जबान की चर्पट पंजरी चलाते रहते हैं,और मोदी की कार्यवाहियों में मीन मेख निकालते रहते हैं; मार्गदर्शन करते हैं।
 
जानते नहीं, कि, नरेन्द्र मोदी के सामने अनगिनत समस्याएँ हैं;काफी गम्भीर समस्याएँ! टंगी तलवारों-सी लटकती गम्भीर समस्याएँ-जो दशकों से लटकी पडी हैं।
 
फिर भी, यह भारत माता का विनम्र सेवक दुर्दम्य ऊर्जा से दिन-रात माँ की सेवा में, लगा हुआ है। जो इसे अंतरबाह्य जानना चाहें, वें इसकी लिखी कविताओं की(गुजराती)पुस्तक *साक्षी भाव* पढें। भारतीय संस्कृति में श्रद्धा रखनेवाला, और उसके लिए दिन-रात कर्मठता से प्रयास करनेवाला, कर्मयोगी प्रधान मंत्री,आज तक के भारत के इतिहास में देखा नहीं; झूठ बोले कौआ काटे।(दो)भारत माँ का लाल:
यह भारत माँ का लाल,प्रति दिन,४-५ घण्टे सोता है; योग-ध्यान भी करता है; अम्बा माँ का भक्त है।अम्बा माँ को लिखी इसकी गुजराती कविताएँ जिन्हों ने पढी होगी, वें जानते हैं। इसे, तितर-बितर करके घोंसला सौंपा गया था; उसे ही ठीक करने में लगा है।सारे चूहे जहाज डुबाकर भाग गए; और उपर से राष्ट्र की प्रगति में, बाधाएँ खडी कर रहें हैं। साथ साथ,अनपढ जनता को भरमा रहे हैं। बिकाउ मीडिया भी साथ दे रहा है।
पर, डूबते जहाज को बचाने ये भगीरथ अथक प्रयास कर रहा है। यह शुद्ध चारित्र्य वाला बन्दा योग करता है; शराब नहीं पीता; शाकाहारी है; और *कृण्वन्तो विश्वमार्यम* का आदर्श ले के चलता है। जानता है, भारत की वैश्विकता, विश्वगुरूता आधिपत्यवादी, संघर्षवादी  या वर्चस्ववादी नहीं है, समन्वयवादी है, सुसंवादवादी है। यही भारत की विशेषता है।

दुर्भाग्य है, संघर्षवादी शक्तियाँ भी भारत को अपने दर्पण में, स्वयं के संघर्षवादी प्रतिबिम्ब की भाँति देखती है।
पर मोदी, भारत में भी सभीका साथ चाहता है, सभी के विकास के लिए।
डाक्टर की औषधि भी पथ्यापथ्य में साथ दिए बिना परिणाम करती नहीं; तो यहाँ साथ दिए बिना,
सभी का विकास कैसे होगा? फिर यही लोग पूछेंगे कि, सबके  विकास का क्या हुआ? सारे बालटी में अपना पैर गाडकर मोदी से बालटी उठवा रहें हैं।और उपरसे पूछेंगे कि सबके विकास का क्या हुआ?
साथ काला धन वाले भ्रष्टाचारी, साथ देंगे नहीं, और कहेंगे, कि,मोदी तू विकास कर के तो दिखा।

(तीन)किस कलंक पर लिखोगे?
रक्षात्मक उपायों से उसने,अपने चारित्र्य पर,आक्रात्मकता से (?) बचने के लिए, स्वयं को किलेबन्द कर सुरक्षित कर लिया है। अरे, जिन कार्यकर्ताओं और मित्रों ने दिनरात घूम घूम कर चुनाव में प्रचार किया था; उनसे भी मिलता नहीं है। मित्र भी समझदार है। समझते हैं, कि, भय है,कहीं विरोधक उंगली उठाएंगे तो?

(चार)पर कौनसे कलंक पर आप उंगली उठाओगे?
भ्रष्टाचार के? तो टिकेगा नहीं।
भाई भतिजावाद के?
परिवार के सदस्यों से भी दिल्ली में मिलता हुआ सुना नहीं।
काला धन आरोप ?
विशेष सफेद धन भी पास नहीं है।
स्विस बँक अकाउण्ट का आरोप ?
कोई प्रमाण नहीं।
कांचन और कामिनी?
न कांचन है, न कामिनी है।

(पाँच)भगवान बुद्धका आदर्श:
इसने भी भगवान बुद्ध की भाँति विवाहित जीवन का त्याग किया है।
बुद्ध ने तो पुत्र जन्म के बाद विवाहित जीवन का त्याग किया था।
इसने उसके पहले ही।

और, महाराष्ट्र के स्वामी रामदास ने भी विवाह के मंत्रोच्चारण में *शुभ मंगल सावधान* सुनकर सावधान हो कर,पलायन किया था।
तब विवाह के समय नरेंद्र की आयु भी(सुना है) १७ की ही थीं-नाबालिग और निर्दोष था।

उसको विवश करनेवालों को दोष देना छोडकर नरेंद्र को ही दोषी मानना गलत है।

(छः)सूट पर कव्वालियाँ:
पर, जब टिकाकारों को कुछ हाथ नहीं लगता; तो फिर उसके सूट पर कव्वालियाँ लिखते हैं।और दुनिया भर के प्रवास पर संपादकीय (एडिटोरियल),लिखे जाते हैं।
पर, परदेश से निवेश की संभावना और सांख्यिकी अंधों को दिखती नहीं है।
इसने दो ही वर्षॊं में, दुनियाभर में भारत का सर ऊंचा उठा दिया है। जिस अमरिका ने बरसों तक प्रवेश (विसा) नहीं दिया था; उसने लाल दरी बिछाकर स्वागत किया था। (पर इन निन्दकों को यह दिखता नहीं है।}

(सात) नरेन्द्रके दोष: 
कालाधन जिस शासन के रहते हुए स्विस बँन्क में पहुंचा था; उनका कोई दोष नहीं माना ? पर इस नरेन्दरवा का दोष है; क्यों कि, उसने काला धन  वापस नहीं लाया।  उसी पर लिख्खो और उसी काले धन का हिस्सा पाओ।यह बिका हुआ मीडिया भी एक दिन पकडा जाएगा-भगवान करे, ऐसा ही हो।

(आठ)असहिष्णुता?
 जिस सेक्युलर पार्टी नें अनुनय का आश्रय लेकर देशको बांट दिया; उसका दोष नहीं।असहिष्णुता का झूठा आधार लेकर, मोदी शासन का दोष प्रमाणित करने अवार्ड वापस हुए। ऐसी विभाजनवादी विचारधारा ने, सहिष्णुता का प्रमाण पत्र देने,राष्ट्रीय निष्ठा को असहिष्णु  बना दिया।
भारत को चाहनेवालों को समझना होगा; कि, हिन्दुत्व के वट वृक्ष तले ही सभी सुरक्षित रह पाएंगे। सहिष्णुता हिन्दुत्व की ही देन है।
जरा निम्न समीकरण का उत्तर दीजिए।


(नौ)भारत – हिन्दुत्व = ?
 भारत – हिन्दुत्व = ?
भारत से हिन्दुत्व हटा तो सहिष्णुता समाप्त हो जाएगी।
बिना हिन्दुत्व का भारत भारत ही नहीं होगा।
युनानो मिस्रो रूमा जैसे भारत भी मिट जाएगा।
भारत की पहचान हिन्दुत्व से ही है। बिना हिन्दुत्व भारत एक जमीन का टुकडा रह जाएगा।

(दस) मोदी को श्रेय:

दूर सुरक्षित और आरक्षित स्थान पर बैठे बैठे,आप मोदी को, प्रमाण पत्र देते रहिए।और कहीं उसकी गलती होने पर, अपनी ही पीठ ठोकते रहिए।अकर्मण्य मूर्ख तालियाँ बजानेवाले स्वयं को उस भगीरथ से बडा समझते हैं। और बताते हैं,कि कैसे (परिश्रमी भगीरथ की ठोकरों की)इन्होंने  पहले ही  भविष्य़वाणी की थी।बिलकुल प्रेडिक्ट कर दिया था।पर, श्रेय आपका नहीं, श्रेय(क्रेडिट) उसका है, जो रणक्षेत्रमें जूझ रहा है।

(ग्यारह)रूजवेल्ट का कथन:
रूजवेल्ट===>कुछ अलग शब्दों में यही कहते हैं। जिसका चेहरा धूल, पसीने और खून से लथपथ  है; जो वीरता  का परिचय दे रहा है। उससे  गलतियाँ भी हो सकती हैं। क्योंकि
त्रुटि और क्षतियों  के बिना कोई प्रयास होता ही नहीं । लेकिन बंदा फिरसे
अपने आप को सुधार भी लेता है। यह मौलिक नेतृत्व है। किसी सुनिश्चित रेखापर चलकर कोई
मौलिक नहीं हो सकता। ईश्वर करे, मोदी सफल हो; जो इस भगीरथ अभियान में स्वयं को खपा रहा है। धन्य है। क्या मोदी को भी स्विस अकाउण्ट में काला धन जमा करना है?

आराम से बैठे बैठे कभी तालियाँ बजाकर तालियों को ही सफलता का श्रेय देनेवाले सज्जनों और यदि असफल हुआ, तो उसका  ठीकरा मोदी के सर फोडनेवाले वाकपटुओं को रुझवेल्ट का उद्धरण देख लेना चाहिए। कहते हैं, जो क्रियावान है, वही पण्डित है । (यः क्रियावान् स हि पण्डितः)
भारत में आलोचकों की त्रुटि नहीं। पैसे के पसेरी मिल जाएँगे। पहलवान कैसे हारा का,विश्लेषण करनेवाले को कोई श्रेय नहीं दिया जा सकता।

(बारह)मूल अंग्रेज़ी:
It is not the critic who counts; not the man who points out how the strong man stumbles, or where the doer of deeds could have done them better. The credit belongs to the man who is actually in the arena, whose face is marred by dust and sweat and blood; who strives valiantly; who errs, who comes short again and again, because there is no effort without error and shortcoming; but who does actually strive to do the deeds; who knows great enthusiasms, the great devotions; who spends himself in a worthy cause; who at the best knows in the end the triumph of high achievement, and who at the worst, if he fails, at least fails while daring greatly, so that his place shall never be with those cold and timid souls who neither know victory nor defeat. 

(बारह)साथ किसका?
 साथ तो उसका दिया जाए, जो अथाह  परिश्रम  कर रहा है। दिनरात भारत के भव्य स्वप्न को सामने रख कर जूझ रहा है। ऐसे कर्म योगी भगीरथ पर मैं मेरी सारी साख दाँव पर लगाने के लिए सिद्ध हूँ।
दो वर्ष पूर्व अमावस्या की अंधकारभरी दारूण निराशा को इस लाल ने  आज आशा में बदल दिया है। यह किसी भी चमत्कार से कम नहीं। 
इस सच्चाई को अस्वीकार करनेवाले पूर्वाग्रह दूषित, कालाधन वाले, भ्रष्टाचार से लिप्त लोग हैं। सारे विरोधक अपने अपने स्वार्थ से प्रेरित हो, छद्म विरोधका चोला ओढे हैं।
दुर्भाग्य है, कुछ अज्ञानी जनता को, उकसाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवाले, और देश को गर्त में ढकेलनेवाले नाटकी नौटंकीबाज भी साथ है।
महा-भ्रष्टाचारी कांग्रेस और सटरं-पटरं  पार्टियों की देश-घातकी अदूरदर्शी घोर स्वार्थी नीतियों से भी उसे निपटना है। देश विरोधी एन जी ओ ज़ भी इनके साथ है। एन जी ओ तो छद्म रीतिसे भारत को खोखला करने सुसज्जित है। साथ है, अज्ञानी अनपढ जिन्हें भ्रष्ट नेता उकसाकर राजनीति कर रहे हैं।

(तेरह) संसार की पाँच शक्तियाँ


संसार की  बडी पाँच शक्तियाँ  दोहरी नीतियाँ अपनाती रहेंगी। अंतर्राष्ट्रीय कूट नीति की पुस्तकें स्पष्ट कहती हैं। ये पांच हमारी (कॉम्पिटिटर) स्पर्धक भी हैं, और हमारी समृद्धि से लाभ उठाने के लिए लालायित भी, इस लिए मित्रता का दिखावा भी करती रहेंगी। जब साथ देंगी तो शब्दों के फूल बिखेरेगी। यह हृदय परिवर्तन नहीं है।  जब साथ नहीं होगी, तो, फिलॉसॉफी झाड कर उदासीनता (Neutrality ) का अभिनय करेंगी। जिससे उनका अपना कम से कम नुकसान होगा। Politics Among Nations नामक हॅन्स मॉर्गन्थाउ लिखित Text book पाठ्य पुस्तक ऐसा ही कहती है।

(चौदह) कृष्ण की चतुराई 

पर हमारे बंदे को, कृष्ण की चतुराई से काम लेना है। राम के आदर्श को सामने रखने का यह अवसर नहीं है। उसे चतुर भी होना है। सभीका साथ भी चाहिए। और सभीका विकास भी चाहिए।
इस घोर कलियुग में भ्रष्ट भारतीय राजनैतिक परिस्थिति में, अकेला  भगीरथ जूझ रहा है।
 सामने सांडों का संगठित विरोध है। साथ घर के भेदी भी हैं। अपनत्व की छद्म पहचान  बनाकर  भी आए हैं। 
आश्चर्य है, कि,मोदी सभी पर भारी है।एक मित्र मोदी की टिका कर रहे थे।

मैंने पूछा आप के मत में मोदी से अच्छा चुनाव जीतने की क्षमता वाला कौन सा नेता है?
उन्होंने बहुत सोचा। कोई उत्तर नहीं दे पाए।

 मैं इस भारत माँ के पुत्र पर दाँव लगाने तैयार हूँ।

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – २

पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – २

दो चूहे मारके बील्ली शेरसे लडने चली

हमारे बुद्धिजीवी नरेन्द्र मोदीको हटाना चाहते है. कैसी है विधिकी वक्रता?

हमारे पूराने कोलमीस्ट जो मोदी फोबीया और बीजेपी फोबीयासे पीडित थे उनका मोदी विरुद्ध लिखना जारी है. लेकिन जैसे हमने पूर्व प्रकरणमें देखाकी  हमारे मीडीया मालिकोंको उनकी संख्या कम पडती है. और आपको तो मालुम ही है कि ये नेतागण जिनमेंसे कई स्वयंको मूर्धन्य मानते है उनमेंसे कई अपनी विद्वत्ता दिखानेको उत्सुक है और कोंगी तो इसमें विशेषज्ञ है कि मीडीयामें कैसे पैसे वितरित किया जाय? आखिर हमने पैसे ईकठ्ठे किये है किसलिये?

हमने यह भी देखा कि यदि वर्नाक्युलर भाषाके (स्थानिक भाषाके) विद्वानोंके लेख कम पडे तो एक भाषाके लेख दुसरी भाषामें भाषांतरित करके भी प्रकाशित किया जा सकता है.

तो ऐसे विद्वान कौन है?

शेखर गुप्ताजी तो है ही. दिलिप सरदेसाई है, चेतान भगत है जो लोग कोंगी भक्तोंकी श्रेणीमें आते हैं. इन्होंने नरेन्द्र मोदीको बदनाम करने की भरपुर कोशिस की थी. जैसे कि सरदेसाईजीने २००२में गुजरात के दंगेके बारेमें कहा था कि “ … पूरा गुजरात दंगोंमें जल रहा है …”.

फिर क्या हुआ? जब नतीजे आये तो पता चला कि कुछ विस्तारमें बीजेपीको अच्छा फायदा हुआ, तो सरदेसाईने कहा कि दंगावाले विस्तारोंमें  मोदीको  फायदा हुआ है. नरेन्द्र मोदीने एक साक्षात्कारमें कहा कि पहेले ये लोग कह रहे थे कि “पूरा गुजरात दंगोसे जल रहा था” तो अब क्यों कह रहे है कि “दंगे वाले हिस्सोंमें ही हमे अधिक बैठके मिलीं?” मतलब कि “मोदी-फोबिया-पीडित” बुद्धिजीवी महानुभाव लोगोंको यह याद नहीं रहेता कि उन्होंने पहेले कौनसा जूठ बोला था. ऐसा एक स्वयं प्रमाणित बुद्धिजीवी और कोंगी हाईकमान्ड द्वारा प्रताडना रुप अपना मंत्री पद खोने वाला है शशि थरुर.

शशि थरुरः

हाँ जी, इस शशि थरुरने कोंगीके महामहिम, अविद्यमान नहेरुकी अर्थ नीति के विरुद्ध, बोला था. शशि थरुरको मंत्री पदसे च्यूत होना पडा था. लेकिन कोंगीयोंमे तो प्रताडनका असर कम समयके लिये रहेता है या रहेता ही नहीं है. क्यों कि;

संस्कृतमें एक श्लोक है;

सारमेयस्य च अश्वस्य, रासभस्य विशेषतः।

मुहूर्तात्‌ परतो नास्ति, प्रहार जनिता व्यथा ॥

(कुत्तेमें और घोडेमें, और खास कर के गधेमें, मार खानेसे हुई पीडा, एक मुहूर्तसे ज्यादा समय नहीं रहेती) कोंगीमें तो ऐसी घटनाके बेसुमार उदाहरण मिलते है. भारतके यह शशि थरुर भी नहेरुवंशकी सेवामें अटल रहे हैं. वैसे तो कई लोग जिनमे स्वयंको महात्मा गांधी वादी प्रमाणित करने वाले भी है. ये लोग भी इन्दिरा गांधी द्वारा प्रताडित है, ये लोग भी प्रताडनाकी व्यथा कभीकी ही भूल गये है और वे मोदी-फोबियासे पीडित है.

ये लोग समज़ते है कि;

“अब तो हमारे मूर्धन्यत्वके अस्तित्व का प्रश्न है. और हमने जो बाल्यकालमें संघको अछूत बनाया था (लेकिन जयप्रकाश नारायणको साथ देनेके लिये हम उनके गले मिले थे वह बात अलग है). जब जयप्रकाश नारायण नहीं रहे तो, और जब ढेबरभाई, कृष्णवदन जोषी जैसे नेतागण १९८०/१९८४में कोंगीमें मिल जाते है तो हम कमसे कम कोंगीके सहायक तो रह ही सकते है न? नवनिर्माण आंदोलन द्वारा विख्यात नेतागण स्वयं, कोंगीको शोभायमान कर रहे है तो हमें कमसे कम कोंगीकी सहायता तो करना ही चाहिये न?

“कोंगीयोंने यदि “घर घर अफज़ल” पैदा करने का और भारतके टूकडे टूकडे करनेका, भारतका सर्वनाश, आदि करनेका स्वप्न दिखाने वालोंका समर्थन किया है तो इससे क्या कोंगी अस्पृष्य बन जायेगी?

“महात्मा गांधीने क्या कहा था? महात्मा गांधीने तो कहा था तूम दुश्मनसे भी प्यार करो (लव धाय एनीमी). महात्मा गांधी तो अस्पृष्यताके विरुद्ध थे. तो हमे अफज़ल प्रेमी गेंग, भारतके टूकडे टूकडे करनेवाली गेंगोंको, जातिवादके आधार पर और धर्म के आधार पर जनताको विभाजित करनेवाली गेंगोंको अस्पृष्य क्यूँ समज़ना? हम असहिष्णु थोडे है? हमें जो कोंगीसे धनलाभ होता है वह क्या कम है? हमें ये सब भूल जाके क्या कृतघ्न बनना है?

सर्वोच्च न्यायालयका आदेशः

सीबीआई, राजिवकुमार (कलकत्ताके पूलिस आयुक्त जो गुमशुदा घोषित हुए थे) के घर गई. फिर शिघ्र ही ममता राजिवकुमारके घर पहूँची साथमे पूलिसकी एक गेंग भी पहूँची. मानो कि (आतंकवादी स्वरुप) सी.बी.आई. राजिवकुमारका एन्काउन्टर करने वाली है.

बादमे  ममताने जो धरना वाली नौटंकी किया, तो सीबीआईको सर्वोच्च न्यायालयमें जाना पडा. क्यूँ कि सीबीआई तो, सर्वोच्च न्यायालयके आदेश के अनुसार, राजिव कुमारसे पूछताछ करने गयी थी.

हमने प्रकरण–१ में, एक सोच और प्रश्न रक्खा था कि क्या सर्वोच्च न्यायालय अनिर्वचनीय है?

“अनिर्वचनीय मणझे काय?”

“अनिर्वचनीय” का अर्थ क्या होता है?

शंकराचार्यने ब्रह्माण्डको अनिर्वचनीय कहा है. इसका तात्पर्य यह है कि आप कितनी ही खोज करो, लेकिन वास्तवमें विश्व कैसा है उसका संपूर्ण ज्ञान आपको नहीं हो सकता.

मराठी लोग, गुजरातीके बारेमें यह सोचते है कि कोई घटना घटनेके पश्चात्‌ “गुजराती” क्या करेगा उसका पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता. गुजराती अनिर्वचनीय है.

उसी प्रकार जैसे कि कोई “पागल”के कभी क्या कर बैठेगा, यानी की पागलके प्रतिभावका अनुमान नहीं लगाया जा सकता, (अनिवार्य रुपसे तो नहीं किन्तु) उसी प्रकार सर्वोच्च अदालत क्या करेगी उसके बारेमें भी पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता.

जिसका पूर्वानुमान न लगाया जा सकता हो, उसको अनिर्वचनीय माना जाता है.   

सर्वोच्च न्यायालयने कहाः

(१) पूलिस आयुक्तको, सीबीआईके समक्ष, उसकी पूछताछमें संपूर्ण सहयोग देना पडेगा,

(२) यदि आयुक्तने दस्तावेजी साक्ष्य (डॉक्युमेन्टरी एवीडन्स) से छेडखानी की होगी या /और उनको नष्ट किया होगा तो हम उसको गंभीरतासे लेंगे. और ऐसे करनेवालोंको उनकी नानी याद करवायेंगे.

(३) (यदि आयुक्तको सीबीआईसे डर लगता है तो और यदि सीबीआई को ममतासे डर लगता है तो)आयुक्तकी पूछताछ शिलोंगमें हो.

ममता तो धरना पर बैठी थी. उसने इस आदेशको सून कर धरना समाप्त कर दिया.

ममताने तो अपने पूर्वालेखके (स्क्रीप्टके) अनुसार, इस आदेशकी घटनाको अनुष्ठानके साथ अपनी विजय के स्वरुपमें घोषित किया. जुलुस निकाला … पुष्प वर्षा करवायी … फुलहार पहेनवाये … पटाखे फोडे … नृत्य करवाये … मानो कि अश्वमेघके अपराजित अश्वका पुनरागमन हुआ.

ये सब कोंगीयोंका संस्कार है. और कोंगीयोंके सहवाससे उनके सांस्कृतिक सहयोगी भी उनके संस्कार आत्मसात्‌ करने लगे हैं. ये ममता और ममताके लोग भी गधोंके साथ रहेनेसे वे लात मारना ही नहीं भोंकना भी सीख गये है.

लालु यादवको जब कारावासकी सज़ा हुई तो उन्होंने भी एक जुलुस निकाला था जैसे कि वे युद्ध भूमिमें जा रहे है. यहाँ पर भी ममताने वैसा ही किया मानो वह केस जित गयी हो और सामनेवाले अपराधी घोषित कर दिया और उसको सज़ा भी मिल गयी हो.

इसके पीछे कौनसी मानसिकता होती है?

यह एक सियासती क्रिडा और चाल है कि अपराधी अपने प्रदर्शन की प्रसिद्धिसे, वास्तविक सत्यको ढक देनेकी कोशिस करता है.

इसका प्रयोजन आमजनता और अबूध जनतामें भ्रम (कन्फ्युज़न) पैदा करना है, ताकि जो अपराधी है उसके अपराधसे जनताका ध्यान हट जाय. वे दिखाना चाहते है कि, अपराधी अब भी लोकप्रिय है और उसके विरुद्ध जो कुछ भी है वे सब जूठ है. यानी कि, शारदा चीट-फंडकी जांचमें, जो महानिदेशक, पूलिस आयुक्त, संसदस्य, विधानसभा सदस्य, मंत्रीयोंकी मिलीभगत का खुलासा हुआ है वह सब जूठ है… सीबीआई संविधानके विरुद्ध कार्यवाही कर रही है. सत्रह लाख लोगोंके, ३५०० करोड रुपये ये लोग जो खा गये है वह सब गलत है.

वैसे तो ये सत्रह लाख लोगोंकी सत्रह लाख कहानीयां होगी.

यदि मीडीया, मानवता लक्षी होता, तो सत्रह लाख लोंगोंमें से कमसे कम सत्रह करुण कहानीयां उपलब्ध करवा सकता था. किन्तु जो मीडीया, कश्मिरके पांच लाख लोगोंकी पांच लाख शारीरिक और जैविक करुणांतिकाओंके प्रति असंवेदनशील बन सकता है, उतना ही नहीं, कश्मिरी हिन्दुओंके नरसंहारके विषयमें उनके (मीडीयाके) कानोंमें जू तक नहीं रेंगती, वह भला इन  बातोंमें क्या अन्वेषण करें? इन बातोंका अवमूल्यांकन तो सामान्यीकरण करके ही होना चाहिये. जैसे कि, “दुनियामें कौन व्यक्ति है जो कभी ठगविद्यासे ठगाया नहीं गया?”

मीडीयामें आप उपरोक्त ठगाईसे पीडितोंकी एक भी बात नहीं देख पाओगे. क्यों कि मीडीयाके लिये तो ममता, केन्द्र सरकार और सी.बी.आई. ही गर्म गर्म मुद्दा है. और इसमें अब चूनावी आयामोंका प्रक्षेपण और उनका बुरा प्रभाव बीजेपी पर कैसे पड सकता है वही उनको दिखाना है. मीडीया कहेता है हमें बस वही दिखाना है जो कोंगी चाहती है. यही हमारा एजन्डा है. ऐसे एजन्डेके कारण हम एक ऋणात्मक वातावरण (माहोल) बनानेकी अधिकतम प्रयत्न करेंगे. फिर माहोल के कारण गत चूनावमें क्या असर पडा था उसका फरेबी विवरण करके मोदीके विरुद्ध माहोल बनायेंगे. हम कृतघ्न और बेईमान थोडे हैं?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और ….

नरेन्द्र मोदीकी कार्यशैलीके बारेमें अफवाहोंका बाज़ार अत्याधिक गरम है. क्यों कि  अब मोदी विरोधियोंके लिये जूठ बोलना, अफवाहें फैलाना, बातका बतंगड करना और कुछ भी विवादास्पद घटना होती है तो मोदीका नाम उसमें डालना, बस यही बचा है.

लेकिन, ऐसा होते हुए भी …

हाँ साहिब, ऐसा होते हुए भी … पाकिस्तानके (१०० प्रतिशत शुद्ध) बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. बोलो. पाकिस्तान जो मोदीके बारेमें जानता है वह हमारे स्वयं प्रमाणित बुद्धिजीवी नहीं जानते.

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पाकिस्तानके १००% शुद्ध बुद्धि वाले हसन निस्सार साहिबने अपनी इच्छा प्रगट की है कि पाकिस्तानको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी. हमारे १०० प्रतिशत शुद्ध बुद्धिजीवी “मोदी चाहिये” इस बात बोलनेसे हिचकिचाते है.

बुद्धिजीवी

हमारे वंशवादी पक्षोंको ही नहीं किन्तु अधिकतर मूर्धन्यों, विश्लेषकों, कोलमीस्टोंको, चेनलोंको तो चाहिये अफज़ल गुरु. एक नहीं लेकिन अनेक. अनेक नहीं असंख्य. क्यों कि इनको तो भारतके हर घरसे चाहिये अफज़ल गुरु.

हाँजी, यह बात बिलकुल सही है. जब जे.एन.यु. के कुछ तथा कथित छात्रोंने (जिनका नेता २८ सालका होनेके बाद भी भारतके करदाताओंके पैसोंसे पलता है तो इसके छात्रत्व पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है ही)  भारतके टूकडे करनेका, हर एक घरसे एक अफज़ल पैदा करनेका,  भारतकी बर्बादीके नारे लगाते थे तब उनके समर्थनमें केज्री, रा.गा., दीग्गी, सिब्बल, चिदु, ममता, माया, अखिलेश, अनेकानेक कोलमीस्ट, टीवी चेनलके एंकर और अन्य बुद्धिजीवी उतर आये थे.  तो यह बात बिलकुल साफ हो जाती है कि उनकी मानसिकता अफज़ल के पक्ष में है या तो उनका स्वार्थ पूर्ण करनेमें यदि अफज़ल गुरुका नाम समर्थक बनता है तो इसमें उनको शर्म नहीं.

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जो लोग यु-ट्युब देखते हैं, उन्होने ने पाकिस्तानके हसन निस्सार को अवश्य सूना होगा. जिनलोंगोंने उनको नहीं सूना होगा वे आज “दिव्य भास्कर”में गुणवंतभाई शाहका लेख पढकर अवश्य हसन निस्सार को युट्युब सूनेंगे.

हमारा दुश्मन नंबर वन, यानी कि पाकिस्तान. वैसे ही पाकिस्तानका दुश्मन नंबर वन यानीकी भारत. तो पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको भी उनके लिये चाहिये नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. और देखो हमारे तथा कथित बुद्धिजीवी हमारे समाचार माध्यमोंमें विवाद खडा करते है कि नरेन्द्र मोदी आपखुद है, नरेन्द्र मोदी कोमवादी है, नरेन्द्र मोदी जूठ बोलता है, नरेन्द्र मोदीने कुछ किया नहीं ….

पाकिस्तानको जो दिखाई देता है वह इन कृतघ्न को दिखाई देता नहीं.

अब हम देखेंगे ममताका नाटक और उस पर समाचार माध्यमोंका यानी कि कोलमीस्ट्स, मूर्धन्य, विश्लेषक, एंकर, आदि महानुभावोंला प्रतिभाव.

घटनासे समस्या और समस्याकी घटना

ममता स्वयंको क्या समज़ती है?

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उनका खेल देखो कि वह किस हद तक जूठ बोल सकती है. पूरा कोंगी कल्चरको उसने आत्मसात्‍ कर लिया है.

यह वही ममता है. जिस जयप्रकाश नारायणने, भ्रष्टाचारके विरुद्ध इन्दिरा गांधीके सामने, आंदोलन छेडा था उस जयप्रकाश नारायणकी जीपके हुड पर यह ममता नृत्य करती थी. एक स्त्रीके नाते वह लाईम लाईटमें आ गयी. आज वही ममता कोंगीयोंका समर्थन ले रही है जब कि कोंगीके संस्कारमें कोई फर्क नहीं पडा है.

ऐसा कैसे हो गया? क्योंकि ममताने जूठ बोलना ही नहीं निरपेक्ष जूठ बोलना सीख लिया है. सिर्फ जूठ बोलना ही लगाना भी शिख लिया है. निराधार आरोप लगाना ही नहीं जो संविधान की प्रर्कियाओंका अनादर करना भी सीख लिया है. “ चोर कोटवालको दंडे”. अपनेको बचाने कि प्रक्रियामें यह ममता, मोदी पर सविधानका अनादर करनेका आरोप लगा रही है.

ऐसा होना स्वाभाविक था.

गुजरातीभाषामें एक मूँहावरा है कि यदि गाय गधोंके साथ रहे तो वह भोंकेगी तो नहीं, लेकिन लात मारना अवश्य शिख जायेगी. लेकिन यहां पर तो गैया लात मारना और भोंकना दोनों शिख गयी.

ममता गेंगका ओर्गेनाईझ्ड क्राईमका विवरणः

ममताके राजमें दो चीट-फंडके घोटाले हुए. कोंगीने अपने शासनके दरम्यान उसको सामने लाया. ममताने दिखावेके लिये जाँच बैठायी. कोंगी यह बात सर्वोच्च अदालतमें ले गयी. सर्वोच्च अदालतने आदेश दिया कि सीबीआई से जाँच हो. सीबीआईने जाँच शुरु की. जांचमें ऐसा पाया कि टीएमसी विधान सभाके सदस्य, मंत्री, एम. पी. और खूद पूलिसके उच्च अफसरोंकी घोटालेके और जाँचमें मीली भगत है. सीबीआईने पूलिससे उनकी जाँचके कागजात भी मांगे थे जिनमें कुछ काकजात,  पूलिसने गूम कर दिये. इस मामलेमें और अन्य कारणोंसे भी सीबीआई ने कलकत्ताके पूलिस आयुक्तकी पूछताछके लिये नोटीस भी भेजी और समय भी मांगा. पूलिस आयुक्त भी आरोपोंकी संशय-सूचिमें थे.

गुमशुदा पूलिस आयुक्तः

आश्चर्यकी बात तो यह है कि पूलिस आयुक्त खूद अदृष्य हो गया. सीबीआईको पुलिस आयुक्तको “गुमशुदा” घोषित करना पडा. तब तक ममताके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. हार कर सीबीआई, छूट्टीके दिन,  पूलिस आयुक्त के घर गई. तो पुलिस आयुक्तने सीबीआई के अफसरोंको गिरफ्तार कर दिया और वह भी बिना वॉरन्ट गिरफ्तार किया और उनको पूलिस स्टेशन ले गये. किस गुनाहके आधार पर सी.बी.आई.के अफसरोंको गिरफ्तार किया उसका ममताके के पास और उसकी पूलिसके पास उत्तर नही है. यदि गिरफ्तार किया है तो गुनाह का अस्तित्व तो होना ही चाहिये. एफ.आई.आर. भी फाईल करना चाहिये.

यह नाटकबाजी ममताकी पूलिसने की. और जब सभी टीवी चेनलोंमे ये पूलिसका नाटक चलने लगा तो ममताने भी अपना नाटक शुरु किया. वह मेट्रो पर धरने पर बैठ गयी. उसके साथ उसने अपनी गेंगको भी बुला लिया. सब धरने पर बैठ गये. पूलिस आयुक्त भी क्यों पीछे रहे? यह चीट फंड तो “ओर्गेनाईझ्ड क्राईम था”. तो ममताआकाको तो मदद करना ही पडेगा. तो वह पूलिस आयुक्त भी ममताके साथ उसकी बगलमें ही धरने पर बैठ किया.

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धरना काहेका है भाई?

ममता कौनसे संविधान प्रबोधित प्रावधान की रक्षाके लिये बैठी है?

ममता किसके सामने धरने पर बैठी है?

पूलिस कमिश्नर जो कायदेका रक्षक है वह  कैसे धरने पर बैठा है?

पूलिस आयुक्त ड्युटी पर है या नहीं?

कुछ टीवी चैनलवाले कहेते है कि वह सीवील-ड्रेसमें है, इसलिये ड्युटी पर नहीं?

अरे भाई, वह वर्दीमें नहीं है तो क्या वह छूट्टी पर है?

इन चैनलवालोंको यह भी पता नहीं कि वर्दीमें नहीं है इसका मतलब यह नहीं कि वह ड्युटी पर नहीं है. पूलिओस आयुक्त कोई सामान्य “नियत समयकी ड्युटी” वाला सीपाई नहीं है कि उसके लिये, यदि वह वर्दी न हो तो ड्युटी पर नहीं है ऐसा निस्कर्ष निकाला जाय.

सभी राजपत्रित अफसर (गेझेटेड अफसर) हमेशा २४/७ ड्युटी पर ही होते है ऐसे नियमसे वे बद्ध है. यदि पूलिस आयुक्त केज्युअल लीव पर है तो भी उसको ड्युटी पर ही माना जाता है. यदि वह अर्न्ड लीव (earned leave) पर है तभी ही उनको ड्युटी पर नहीं है ऐसा माना जाता है. लेकिन ऐसा कोई समाचार ही नहीं है, और किसी भी टीएमसीके नेतामें हिमत नहीं है कि वह इस बातका खुलासा करें.

ममता ने एक बडा मोर्चा खोल दिया है. सी.बी.आई. के सामने पूलिस. वैसे तो सर्वोच्च अदालतके आदेश पर ही सी.बी.आई. काम कर रही है तो भी.

इससे ममताके पूलिस अफसरों पर केस बनता है, ममता पर केस बनाता है चाहे ममता कितनी ही फीलसुफी (तत्त्व ज्ञानकी) बातें क्यूँ न कर ले.

कुछ लोग समज़ते है कि प्र्यंका (वाईदरा) खूबसुरत है इसलिये उसकी प्रसंशा होती है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. प्रशंसाके लिये तो बहाना चाहिये. हम यह बात भी समज़ लेंगे.

अब सर्वोच्च न्यायालयमें मामला पहूँचा है.

लेकिन सर्वोच्च अदालत क्या है?

सर्वोच्च अदालतके न्याय क्या अनिर्वचनीय है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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साहिब (जोकर), बीबी (बहनोईकी) और गुलाम(गण)

जोकर, हुकम (ट्रम्प) और गुलाम [साहिब, बीबी (बहनोईकी) और गुलाम]

गुजरातीमें एक कहावत है “भेंस भागोळे, छास छागोळे, अने घेर धमाधम”

एक किसानका संयुक्त कुटुंब था. भैंस खरीदनेका विचार हुआ. एक सदस्य खरीदनेके लिये शहरमें गया. घरमें जोर शोर से चर्चा होने लगी कि भैंसके संबंधित कार्योंका वितरण कैसे होगा. कौन उसका चारा लायेगा, कौन चारा  डालेगा, कौन गोबर उठाएगा, कौन दूध निकालेगा, कौन दही करेगा, कौन छास बनाएगा, कौन  छासका मंथन करेगा ….? छासके मंथन पर चिल्लाहट वाला शोर मच गया. यह शोरगुल सूनकर, सब पडौशी दौडके आगये. जब उन्होंने पूछा कि भैंस कहाँ है? तो पता चला कि भैस तो अभी आयी नहीं है. शायद गोंदरे (भागोळ) तक पहूँची होगी या नहीं पता नही. … लेकिन छास का मंथन कौन करेगा इस पर विवाद है.

यहां इस कोंगीके नहेरुवीयन कुटुंबकवादी पक्षका फरजंदरुपी, भैंस तो अमेरिकामें है, और उसको कोंगी पक्षका एक होद्दा दे दिया है, तो अब उसका असर चूनावमें क्या पडेगा उसका मंथन मीडिया वाले और कोंगी सदस्य जोर शोरसे करने लगे हैं.

कोंगीलोग तो शोर करेंगे ही. लेकिन कोंगीनेतागण चाहते है कि वर्तमान पत्रोंके मालिकोकों समज़ना चाहिये कि, उनका एजन्डा क्या है! उनका एजन्डा भी कोंगीके एजन्डेके अनुसार होना चाहिये. जब हम कोंगी लोग जिस व्यक्तिको प्रभावशाली मानते है उसको समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी प्रभावशाली मानना चाहिये और उसी लाईन पर प्रकाशन और चर्चा होनी चाहिये.

कोंगी नेतागण मीडीया वालोंको समज़ाता है कि;

“हमने क्या क्या तुम्हारे लिये (इन समाचार माध्यमोंके लिये) नहीं किया? हमने तुमको मालदार बनाये. उदाहरणके लिये आप वेस्टलेन्ड हेलीकोप्टरका समज़ौता ही देख लो हमने ४० करोड रुपयेका वितरण किया था. सिर्फ इसलिये कि ये समा्चार माध्यम इस के विरुद्ध न लिखे. हमने जब जब विदेशी कंपनीयोंसे व्यापारी व्यवहार किया तो तुम लोगोंको तुम्हारा हिस्सा दिया था और दिया है. तुम लोगोंको कृतज्ञता दिखाना ही चाहिये.

हमारी इस भैसको कैसे ख्याति दोगे?

मीडीया मूर्धन्य बोलेः “कौन भैस? क्या भैंस? क्यों भैंस? ये सब क्या मामला है?

कोंगीयोंने आगे चलाया; “ अरे वाह भूल गये क्या ?हम कोंगी लोग तो साक्षात्‌ माधव है.

“मतलब?

“मा”से मतलब है लक्ष्मी. “धव”से मतलब है पति. माधव मतलब, लक्ष्मी के पति. यानी कि विष्णु भगवान. हम अपार धनवाले है. हम धनहीन हो ही नहीं सकता. इस धनके कारण हम क्या क्या कर सकते हैं यह बात आपको मालुम ही है?

नहिं तो?

मूकं कुर्मः वाचालं पंगुं लंगयामः गिरिं

अस्मत्‍ कृपया भवति सर्वं, अस्मभ्यं तु नमस्कुरु

[(अनुसंधानः मूकं करोति वाचालं, पंगुं लंगयते गिरिं । यत्कृ‌पा तं अहम्‌ वन्दे परमानंदं माधवं ॥ )

उस लक्ष्मीपति जो अपनी कृपासे  “मुका” को वाचाल बना सकता है और लंगडेको पर्वत पार करनेके काबिल बना देता है उस लक्ष्मी पतिको मैं नमन करता हूँ.]   

लेकिन यदि लक्ष्मीपतियोंको, खुदको ऐसा बोलना है तो वे ऐसा ही बोलेंगे कि हम अपनी कृपासे मुकोंको वाचाल बना सकते है और लंगडोंको पर्वत पार करवा सकते है, इस लिये (हे तूच्छ समाचार माध्यमवाला, हम इससे उलटा भी कर सकते हैं), हमें तू नमन करता रह. तू हमारी मदद करेगा तो हम तुम्हारी मदद करेंगे. धर्मः रक्षति रक्षितां.

भैंसको छा देना है अखबारोंमें

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आर्टीस्टका सौजन्य

वाह क्या शींग? वाह क्या अंग है? वाह क्या केश है? वाह क्या पूंछ है…? वाह क्या चाल है? वाह क्या दौड है? वाह क्या आवाज़ है? इस भैंसने तो “भागवत” पूरा आत्मसात्‌ किया ही होगा…!!!

“हे मीडीया वाले … चलो इसकी प्रशंसा करो…

और मीडीया वालोंने प्रशंसाके फुल ही नहीं फुलोंके गुलदस्तोंको बिखराना चालु कर दिया. अरे यह भैंस तो अद्दल (असल, न ज्यादा, न कम, जैसे दर्पणका प्रतिबिंब) उसके दादी जैसी ही है.  जब दिखनेमें दादी जैसी है तो अवश्य उसकी दादीके समान होशियार, बुद्धिमान, चालाक, निडर …. न जाने क्या क्या गुण थे इसकी दादीमें …. सभी गुण इस भैंसमें होगा ही. याद करो इस भैंसके पिता भैंषाको, जिसको, हमने ही तो “मीस्टर क्लीन” नामके विशेषणसे नवाज़ा था. हालाँ कि वह अलग बात है कि बोफोर्सके सौदेमें उसने अपने  हाथ काले किये. वैसे तो दादीने भी स्वकेन्द्री होने कि वजहसे आपात्काल घोषित करके विरोधीयोंको और महात्मा गांधीके अंतेवासीयोंको भी  कारावासमें डाल दिया था. इसीकी वजह से इसकी दादी खुद १९७७के चूनावमें हार गयी थी वह बात अलग है. और यह बात भी अलग है कि वह हर क्षेत्रमें विफल रही थीं. और आतंकवादीयोंको पुरस्कृत करनेके कारण वह १९८४में भी हारने वाली थी. यह बात अलग है कि वह खुदके पैदा किये हुए भष्मासुरसे मर गई और दुसरी हारसे बच गई.  

गुजराती भाषामें “बंदर” को “वांदरो” कहा जाता है.

लेकिन गुजरात राज्यके “गुजरात”के प्रदेशमें “वादरो”का उच्चारण “वोंदरो” और “वोदरो” ऐसा करते है. काफि गुजराती लोग “आ” का उच्चारण “ऑ” करते है. पाणी को पॉणी, राम को रॉम …. जैसे बेंगाली लोग जल का उच्चार जॉल, “शितल जल” का उच्चार “शितॉल जॉल” करते है. 

सौराष्ट्र (काठीयावाड) प्रदेशमें “वांदरो” शब्दका उच्चारण “वांईदरो” किया जाता है.

अंग्रेज लोग भी मुंबईके “वांदरा” रेल्वेस्टेशनको “बांड्रा” कहेते थे. मराठी लोग उसको बेंन्द्रे कहेते थे या कहेते है.

तो अब यह “वाड्रा” आखिरमें क्या है?

वांईदरा?  या वांद्रा?  या वोंदरा?

याद करो …

पुर तो एक ही है, जोधपुर. बाकी सब पुरबैयां

महापुरुषोंमें “गांधी” तो एक ही है, वह है महात्मा गांधी, बाकी सब घान्डीयां

हांजी, ऐसा ही है. अंग्रेजोंके जमानेसे पहेले, गुजरातमें गांधी एक व्यापारी सरनेम था. लेकिन अंग्रेज लोग जब यहां स्थायी हुए उनका साम्राज्य सुनिश्चित हो गया तब “हम हिन्दुसे भीन्न है” ऐसा मनवाने के लिये पारसी और कुछ मुस्लिमोंने अपना सरनेम “गांधी”का “घान्डी” कर दिया. वे बोले, हम “गांधी” नहीं है. हम तो “घान्डी” है. हम अलग है. लेकिन महात्मा गांधीने जब नाम कमाया, और दक्षिण आफ्रिकासे वापस आये, तो कालक्रममें  नहेरुने सोचा कि उसका दामात “घांडी”में से वापस गांधी बन जाय तो वह फायदएमंद रहेगा. तो इन्दिरा बनी इन्दिरा घान्डीमेंसे इन्दिरा गांधी. और चूनावमें उसने अपना नाम लिखा इन्दिरा नहेरु-गांधी.

तो प्रियन्का बनी प्रियंका वाड्रा (या वांईदरा, या वांदरा या वादरा या वाद्रे)मेंसे बनी प्रियंका वांइन्दरा गांधी या प्रियंका गांधीवांइन्दरा.

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आर्टीस्टका सौजन्य

हे समाचार माध्यमके प्रबंधको, तंत्री मंडलके सदस्यों, कोलमीस्टों, मूर्धन्यों, विश्लेषकों … आपको इस प्रियंका वांईदराको यानी प्रियंका गांधी-वांईदराको राईमेंसे पर्वत बना देनेका है. और हमारी तो आदत है कि हमारा आदेश जो लोग नहीं मानते है उनको हम “उनकी नानी याद दिला देतें है”. हमारे कई नेताओने इसकी मिसाल दी ही है. याद करो राजिव गांधीने “नानी याद दिला देनेकी बात कही थी … हमारे मनीष तीवारीने कहा था कि “बाबा रामदेव भ्राष्टाचारसे ग्रस्त है हम उसके धंधेकी जाँच करवायेंगे” दिग्वीजय सिंघने कहा था “सरसे पाँव तक अन्ना हजारे भ्रष्ट है हम उसकी संस्था की जांच करवाएंगे, किरन बेदीने एरोप्लेनकी टीकटोंमें भ्रष्टाचार किया है हम उसको जेलमें भेजेंगे”, मल्लिकार्जुन खडगेने कहा “ हम सत्तामें आयेंगे तो हर सीबीआई अफसरोंकी फाईल खोलेंगे और उसकी  नानी याद दिला देंगे, यदि उन्होने वाड्राकी संपत्तिकी जाँच की तो … हाँजी हम तो हमारे सामने आता है उसको चूर चूर कर देतें हैं. वीपी सिंह, मोरारजी देसाई, और अनगीनत महात्मागांधीवादीयोंको भी हमने बक्षा नहीं है, तो तुम लोग किस वाडीकी मूली हो. तुम्हे तुम्हारी नानी याद दिला देना तो हमारे बांये हाथका खेल है. सूनते हो या नहीं?

“तो आका, हमें क्या करना है?

तुम्हे प्रियंका वादरा गांधीका प्रचार करना है, उसका जुलुस दिखाना है, उसके उपर पुष्पमाला पहेलाना है वह दिखाना है, पूरे देशमें जनतामें खुशीकी लहर फैल गई है वह दिखाना है, उसकी बडी बडी रेलीयां दिखाना है, उसकी हाजरजवाबी दिखाना है, उसकी अदाएं दिखाना है, उसका इस्माईल (स्माईल) देखाना है, उसका गुस्सा दिखाना है, उसके भीन्न भीन्न वस्त्रापरिधान दिखाना है, उसका केशकलाप दिखाना है, उसके वस्त्रोंकी, अदाओंकी, चाल की, दौडकी स्टाईल दिखाना है और उसकी दादीसे वह हर मामलेमें कितनी मिलती जुलती है यह हर समय दिखाना है. समज़े … न … समज़े?

“हाँ, लेकिन आका! भैंस (सोरी … क्षमा करें महाराज) प्रियंका तो अभी अमेरिकामें है. हम यह सब कैसे बता सकते हैं?

“अरे बेवकुफों … तुम्हारे पास २०१३-१४की वीडीयो क्लीप्स और तस्विरें होंगी ही न … उनको ही दिखा देना. बार बार दिखा देना … दिखाते ही रहेना … यही तो काम है तुम्हारा … क्या तुम्हें सब कुछ समज़ाना पडेगा? वह अमेरिकासे आये उसकी राह दिखोगे क्या? तब तक तुम आराम करोगे क्या? तुम्हे तो मामला गरम रखना है … जब प्रियंका अमेरिकासे वापस आवें तब नया वीडीयो … नयी सभाएं … नयी रेलीयां … नया लोक मिलन… नया स्वागत …  ऐसी वीडीयो तयार कर लेना और उनको दिखाना. तब तक तो पुराना माल ही दिखाओ. क्या समज़े?

“हाँ जी, आका … आप कहोगे वैसा ही होगा … हमने आपका नमक खाया है …

और वैसा ही हुआ… प्रियंका गांधी आयी है नयी रोशनी लायी है …. वाह क्या अदाएं है … अब मोदीकी खैर नहीं ….

प्रियंका वादरा अखबारोंमें … टीवी चैनलोंमें … चर्चाओंमे ..,. तंत्रीयोंके अग्रलेखोंमें … मूर्धन्योंके लेखोंमें … कोलमीस्टोंके लेखोमें … विश्लेषणोंमें छाने लगी है …

प्रियंका वादराको ट्रम्प कार्ड माना गया है. वैसे तो यह ट्रम्प कार्ड २०१३-१४में चला नहीं था … वैसे तो उसकी दादी भी कहाँ चली थीं? वह भी तो हारी थी. वह स्वयं ५५००० मतोंसे हार गयी थी. वह तो १९८४में फिरसे भी हारने वाली थी … लेकिन मर गयी तो हारनेसे  बच गयी.

प्रियंका वांईदरा ट्रम्प कार्ड है. ट्रम्प कार्डको उत्तरभारतके लोग “हुकम” यानी की “काली” या कालीका ईक्का  केहते है. प्रियंका ट्रम्प कार्ड है. कोंगीके प्रमुख जोकर है. कोंगीके बाकी लोग और मीडीया गुलाम है.

साहिब यानी कोंगी पक्ष प्रमुख (यानी जोकर), (वांईदराकी) बीबी और दर्जनें गुलाम कैसा खेल खेलते है वह देखो.

“आँखमारु जोकर” गोवामें पूर्व सुरक्षामंत्री (पनीकर)से मिलने उनके घर गया था. उसने बोला कि “ … मैं पनीकरसे कल मिला. पनीकरने बताया कि राफेल सौदामें जो चेन्ज पीएम ने किया वह उसको दिखाया नहीं गया था.” ताज़ा जन्मा हुआ बच्चा भी कहेगा कि, इसका अर्थ यही होता है कि “जब रा.गा. पनीकरको मिलने गया तो पनीकरने बताया कि राफैल सौदामें जो चेन्ज किया वह पीएमने तत्कालिन रक्षा मंत्रीको दिखाया नहीं था.”

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आर्टीस्टका सौजन्य

ऐसा कहेना रा.गा.के चरित्रमें और कोंगी संस्कारमें आता ही है. रा.गा.के सलाहकारोंने रा.गा.को सीखाया ही है कि तुम ऐसे विवाद खडा करता ही रहो कि जिससे बीजेपी के कोई न कोई नेताके लिये बयान देना आवश्यक हो जाय. फिर हम ऐसा कहेगें कि हमारा मतलब तो यही था लेकिन बीजेपी वाले गलत अर्थमें बातोंको लेते हैं, और बातोंका बतंगड बनाते हैं. उसमें हम क्या करें? और देखो … मीडीया मूर्धन्य तो हमारे सपोर्टर है. उनमेंसे कई हमारे तर्क का अनुमोदन भी करेंगे. कुछ मूर्धन्य जो अपनेको तटस्थता प्रेमी मानते है वे बभम्‌ बभम्‌ लिखेंगे और इस घटनाका सामान्यीकरण कर देंगे. मीडीयाका कोई भी माईका लाल, रा.गा.के उपरोक्त दो अनुक्रमित वाक्योंको प्रस्तूत करके रा.गा.का खेल बतायेगा नहीं. 

कोंगीकी यह पुरानी आदत है कि एक जूठ निश्चित करो और लगातार बोलते ही रहो. तो वह सच ही हो जायेगा. १९६६ से १९७४ तक कोंगी लोग मोरारजी देसाईके पुत्रके बारेमें ऐसा ही बोला करते थे. इन्दिराका तो शासन था तो भी उसने जांच करवाई नहीं और उसने अपने भक्तोंको जूठ बोलने की अनुमति दे रक्खी थी. क्यों कि इन्दिरा गांधीका एजन्डा था कि मोरारजी देसाईको कमजोर करना. यही हाल उसने बादमें वीपी सिंघका किया कि, “वीपी सिंहका सेंटकीट्समें अवैध एकाउन्ट है”. “मोरारजी देसाई और पीलु मोदी आई.ए.एस. के एजन्ट” है….

ऐसे जूठोंका तो कोंगीनेताओंने भरपूर सहारा लिया है और जब वे जूठे सिद्ध होते है तो उनको कोई लज्जा भी नहीं आती. सत्य तो एक बार ही सामने आता है. लेकिन मीडीयावाले जो सत्य सामने आता है, उसको,  जैसे उन्होंनें असत्यको बार बार चलाया था वैसा बार बार चलाते नहीं. इसलिये सत्य गीने चूने यक्तियोंके तक ही पहूँचता है और असत्यतो अनगिनत व्यक्तियों तक फैल गया होता है. इस प्रकार असत्य कायम रहेता है. 

“समाचार माध्यम वाले हमारे गुलाम है. हम उनके आका है. हम उनके अन्नदाता है. ये लोग अतार्किक भले ही हो लेकिन आम जनताको गुमराह करने के काबिल है.

ये मूर्धन्य लोग स्वयंकी और उनके जैसे अन्योंकी धारणाओ पर आधारित चर्चाएं करेंगे.

जैसे की स.पा. और बस.पा का युपीका गठन एक प्रबळ जातिवादी गठबंधन है. हाँ जी … ये मूर्धन्य लोगोंका वैसे तो नैतिक कर्तव्य है कि जातिवाद पर समाजको बांटने वालोंका विरोध करें. लेकिन ये महाज्ञानी लोग इसके उपर नैतिकता पर आधारित तर्क नहीं रखेंगे. जैसे उन्होंने स्विकार लिया है कि “वंशवाद” (वैसे तो वंशवाद एक निम्न स्तरीय मानसिकता है) के विरुद्ध हम जगरुकता लाएंगे नहीं.

हम तो ऐसी ही बातें करेंगे कि वंशवाद तो सभी राजकीय दलोंमे है. हम कहां प्रमाणभान रखनेमें मानते है? बस इस आधार पर हम सापेक्ष प्रमाण की सदंतर अवगणना करेंगे. उसको चर्चाका विषय ही नहीं बनायेंगे. हमें तो वंशवादको पुरस्कृत ही करना है. वैसे ही जातिवादको भी सहयोग देना है. तो हम जातिवादके विरुद्ध क्यूँ बोले? हम तो बोलेंगे कि, स.पा. और ब.स.पा. के गठबंधनका असर प्रचंड असर जनतामें है.  ऐसी ही बातें करेंगे. फिर हम हमारे जैसी सांस्कृतिक मानसिकता रखनेवालोंके विश्लेषणका आधार ले के, ऐसी भविष्यवाणी करेंगे कि बीजेपी युपीमें ५ से ७ सीट पर ही सीमट जाय तो आश्चर्य नहीं.

यदि हमारी भविष्यवाणी खरी न उतरी, तो हम थोडे कम अक्ल सिद्ध होंगे? हमने तो जिन महा-मूर्धन्योंकी भविष्यवाणीका आधार लिया था वे ही गलत सिद्ध होंगे. हम तो हमारा बट (बटक buttock) उठाके चल देंगे.

प्रियंका वांईदरा-घांडी खूबसुरत है और खास करके उसकी नासिका इन्दिरा नहेरु-घांडीसे मिलती जुलती है. तो क्यों न हम इस खुबसुरतीका और नासिकाका सहारा लें? हाँ जी … प्रियंका इन्दिरा का रोल अदा कर सकती है.

“लेकिन इन्दिरा जैसी अक्ल कहाँसे आयेगी?

“अरे भाई, हमें कहां उसको अक्लमान सिद्ध करना है. हमें तो हवा पैदा करना है. देखो … इन्दिरा गांधी जब प्रधान मंत्री बनी, यानी कि, उसको प्रधान मंत्री बनाया गया तो वह कैसे छूई-मूई सी और गूंगी-गुडीया सी रहेती थी. लेकिन बादमें पता चला न कि वह कैसी होंशियार निकली. तो यहां पर भी प्रियंका, इन्दिरासे भी बढकर होशियार निकलेगी ऐसा प्रचार करना है तुम्हे. समज़ा न समज़ा?

“अरे भाई, लेकिन इन्दिरा तो १९४८से अपने पिताजीके साथा लगी रहती थी और अपने पिताजीके सारे दावपेंच जानती थी. उसने केरालामें आंदोलन करके नाम्बुद्रीपादकी सरकारको गीराया था. इन्दिरा तो एक सिद्ध नाटकबाज़ थी. प्रारंभमें जो वह, संसदमें  छूई-मूई सी रहती थी वह भी तो उसकी व्युहरचनाका एक हिस्सा था. सियासतमें प्रियंकाका योगदान ही कहाँ है?

“अरे बंधु,, हमे कहाँ उसका योगदान सिद्ध करना है. तुम तो जानते हो कि, जनताका बडा हिस्सा और कोलमीस्टोंका भी बडा हिस्सा १९४८ – १९७०के अंतरालमें, या तो पैदा ही नहीं हुआ था, या तो वह पेराम्बुलेटर ले के चलता था.

“लेकिन इतिहास तो इतिहास है. मूर्धन्योंको तो इतिहासका ज्ञान तो, होना ही चाहिये न ?

“नही रे, ऐसी कोई आवश्यकता नहीं. जनताका बडा हिस्सा कैसा है वह ही ध्यानमें रखना है. हमारे मूर्धन्य कोलमीस्टोंका टार्जेट आम जनता ही होना चाहिये. इतिहास जानने वाले तो अब अल्प ही बचे होगे. अरे वो बात छोडो. उस समयकी ही बात करो. राजिव गांधीको, तत्कालिन प्रेसीडेन्ट साहबने, बिना किसी बंधारणीय आधार, सरकार बनानेका न्योता दिया ही था न. और राजिव गांधीने भी बिना किसी हिचकसे वह न्योता स्विकार कर ही लिया था न? वैसे तो राजिवके लिये तो ऐसा आमंत्रण स्विकारना ही अनैतिक था न? तब हमने क्या किया था?  हमने तो “मीस्टर क्लीन आया” … “मीस्टर क्लीन आया” … ऐसा करके उसका स्वागत ही किया था न. और बादमें जब बोफोर्स का घोटाला हुआ तो हमने थोडी कोई जीम्मेवारी ली थी? ये सब आप क्यों नहीं समज़ रहे? हमे हमारे एजन्डा पर ही डटे रहेना है. हमें यह कहेना है कि प्रियंका होशियार है … प्रियंका होंशियार है … प्रियंकाके आनेसे बीजेपी हतःप्रभः हो गयी है. प्रियंकाने तो एस.पी. और बी.एस.पी. वालोंको भी अहेसास करवा दिया है कि उन्होंने गठबंधनमें जल्दबाजी की है. … और … दुसरा … जो बीजेपीके लोग, प्रियंकाके बाह्य स्वरुपका जिक्र करते हैं और हमारे आशास्वरुप प्रचारको निरस्र करनेका प्रयास कर रहे है … उनको “ नारी जातिका अपमान” कर रहे … है ऐसा प्रचार करना होगा. हमे यही ढूंढना होगा कि प्रियंकाके विरुद्ध होने वाले हरेक प्रचारमें हमें नारी जातिका अपमान ढूंढना होगा. समज़े … न समज़े?

कटाक्ष, चूटकले, ह्युमर किसीकी कोई शक्यता ही नहीं रखना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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