Archive for November, 2021
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ५
Posted in Uncategorized on November 24, 2021| Leave a Comment »
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ३
Posted in Uncategorized on November 10, 2021| Leave a Comment »
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ३
गत प्रकरणमें हमने लिखा था, चाचूओंका और बुआ/आंटिओंकी सामान्य प्रवृत्ति रही है कि; असली गांधीको पढो नहीं, किसीने जो बोलदिया उसको या तो स्वयंने कुछ गांधीजीके उपर सुनिश्चित और पूर्वनिश्चित तारतम्य निकाला उसके उपर ही बोलो.
जूठका एक नकली किला बनाओ … बोलो कि यही असली किला है. फिर उस नकली किलेको तोडो. लोगोंको बोलो कि हमने कैसे असली किला तोडा.
लेकिन इससे फायदा क्या …? यदि इससे फायदा भी है तो किसको फायदा?
ऐसे प्रश्न अवश्य उठते है. यह अवश्य संशोधनका विषय है. लेकिन वह हम बादमें देखेंगे कि इसका असर खास करके हिंदुओं पर और देशके उपर क्या पडने वाला है.
अभी तो हम कुछ चाचूओंको और बुआओंको देख लें. हम कभी “रोमीला थापर” जैसी बुआ, और “करण थापर” जैसे चाचूओंकी बात नहीं करेंगे, क्यों कि ऐसे लोग प्रमाणित देश द्रोही है.
आपको फिरसे एक बार बता देता हूंँ कि चाचूएं और बूआएं अनेक है. वैसे तो बुआएं कम है, लेकिन चाचूएं अगणित है.
हम किसीका नाम नहीं लेंगे. हमसे चर्चित बिंदुओंवाली (टोपिकवाली) टोपी/पगडी जिन चाचूओंको और बुआओंको फीट होती है तो वे लगाले. यदि उनको फीट नहीं भी होती है फिर भी जिन चाचूंओ और बुआओंको वह लगानी है तो भी वे लगा सकते है. हमे इससे कोई समस्या नहीं है.
आप कहोगे कि जो बुआएं है, वे कैसे टोपी/पगडी लगाएगी !!!
अरे भाईसाब, आज तो फर्जी सच बोलनेकी फैशन है. क्या यह असंभव नहीं है कि महिलाएं जूठ नहीं बोल सकतीं !
अब मुद्देकी बात करेंगे.
दो चाचू थे. एक बुआजी थीं.
तीनो एक विषय पर चर्चा कर रहे थे. उस चर्चामें जो भी कथन बोले जाते थे, और तारतम्य निकाले जाते थे उनमें ये तीनों, उन प्रस्तूतियोंका आनंद लेते थे.
संस्कृतका एक श्लोक याद आगया, मानो ऐसा लगता था;
ऊष्ट्राणां च गृहे लग्नं, गर्दभाः शांतिपाठकाः ।
परस्परं प्रशंसंते अहो रुपं अहो ध्वनिः ॥
ऊंटोंके घरमें लग्न हो और गधे शांति पाठ कर रहे हो
ये सब परस्पर एक दुसरेकी प्रशंसा कर रहे है; क्या मीठा आपका सूर है !!! … वाह क्या सुंदर रुप है … !!!
(इसको दो चाचू और एक बुआ तीनोंने जिन शब्दोंका चयन किया था उनमें उनकी परस्पर स्विकृतिके थी. इस बात पर कोई शक नही)
इन तीनोंका संवाद सूनके कोई एक बच्चूने उनको लिखा (संक्षिप्त) विस्तृत के लिये इस इमेलके संलग्न फाईल देखिये; या मुज़े इमेल करें, या यहां पर लिखें.
प्रिय चाचूएं और बुआजी,
आपके संवाद का शिर्षक है “गांधीसे मोह भंग”. आप तीनों परस्परके कथनोंसे संमत दिखाई देते है .
“चाचू – १”जी, आपने एम.के. गांधीकी हत्याको “गांधी-वध” शब्द से प्रस्तूत किया. “वध” शब्दका आपके द्वारा चयन होना यह दिखाता है कि जैसे “जयद्रथ वध”, “कंस वध”, “शिशुपाल वध” … हुआ वैसे “गांधी-वध” हुआ. क्या यह माता सरस्वति पर दुस्कर्म नही है?
फिर आपने “राष्ट्र पिता” शब्द जो गांधीजी के लिये कहा जाता है उसके उपर भी विरोध जताया. क्यों कि भारत तो हजारों साल पूराना राष्ट्र है. उसका पिता (उन्नीसवी शताब्दीका) गांधी कैसे हो सकता है?
आप जानते है इटलीके लिये राष्ट्रपिता कौन था? इटलीका राष्ट्रपिता “गेरीबाल्डी” था. आपका क्या कहेना है? इटली भी तो दो हजार सालसे अधिक पूराना है.
आप आगे आईए, और दिखाईए, कि, आपके हिसाबसे, सबसे प्रभावशाली मुद्दा कौनसा है, जिसके लिये गांधीजी ही सबसे अधिक जीम्मेवार है, और उससे देशको सबसे अधिक नुकशान हुआ है.
लिखित बच्चू
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(चाचू का उत्तर )
“गांधी की अहिंसा और राजनीति” और “गांधीके ब्रह्मचर्यके प्रयोग” ये दोनों बुक एक साल पहेले प्रकाशित हुई है. वे दोनों “कलेक्टेड वर्कस ओफ महात्मा गांधी पर आधारित है. इन पर आप क्षति निकालीये.
जो हमारी तीनोंकी चर्चामेंसे आपको एक भी बात अच्छी नहीं लगी तो आगे चर्चा व्यर्थ है.
लिखित चाचू
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फिर बच्चूने क्या लिखा?
बच्चूने प्रत्युत्तर लिखा
क्या आप “गांधी – वध” में “वध” शब्दके औचित्यको सिद्ध कर सकते है?
“राष्ट्र पिता” की परिभाषा पर आप प्रकाश डाल सकते हैं? “राष्ट्र पिता”का प्रणालीगत “पिता” के अतिरिक्त क्या अर्थ है?
मैं आपको “फलां फलां पुस्तक पढो,” ऐसा नहीं कहूंँगा.
मैं आपके साथ इन दो शब्द प्रयोग पर ही चर्चा करना चाहता हूंँ.
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चाचूने लिखा
मैंने न तो मेरी बुकमें “वध” शब्दका उपयोग किया है न तो मेरे लेखमें उपयोग किया है.
“राष्ट्रपिता” एक मूर्खता पूर्ण शब्द है.
यदि आप फिर भी आपके प्रश्नका उत्तर चाहते है तो निम्न दर्शित वीडीयो देखो.
“मैंने गांधीको क्यूंँ मारा”गोडसे का बचाव. कोएनराड एल्स्ट.
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बच्चूने लिखा
हमारी जो बात है वह “गांधीसे मोह भंग” वीडीयोमे आप तीनोंके संवादकी बात है.
आपको “गांधीवध” और “राष्ट्रपिता” के मेरे प्रश्न पर उत्तर देना है.
आप द्वारा प्रेषित वीडीयोकी तो बात ही नहीं है.
यदि आप गांधीकी हत्याको उचित मानते है तो मेरे कुछ प्रश्न है;
“हांँ” या “ना” में उत्तर दजिये.
भाग-१
(१) कया आप गांधीजीके खून पर चल रही न्यायिक प्रक्रियामें जो बातें बताई, उन का अनुमोदन करते है?
(२) क्या आप गोडसेकी बातोंका अनुमोदन करते है?
(३)क्या गोडसेने जो बातें कही वे, और किसीको पता ही नहीं था?
(४) क्या गोडसे कोई खास गुप्तचर सेवा चलाता था जो सरकारसे चलती गुप्तचर सेवासे भी उत्कृष्ट थी?
(५) गोडसेने गांधीको मारनेका कारण बताया कि, गांधी ५५ करोड रुपया पाकिस्तानको दिलवानेके लिये आमरणांत उपवास पर बैठे थे. क्या इस बातका आप अनुमोदन करते है?
भाग-२
(१) न्यायाधीशने इस मतलबका कहा कि, “यदि मुज़े यहांँ उपस्थित जनताके बहुमतसे न्याय करना है तो मुज़े गोडसेको बरी कर देना है.” क्या आप मानते है कि न्याय देना बहुमतके आधारसे मान्य करना चाहिये?
(२) आप मानते है कि जिसके उपर (गांधी) आरोप है उसको सज़ा देनेसे पहेले उसको क्या कहेना है वह सूनना चाहिये?
(३) गोडसेने गांधीजीको सज़ा देनेसे पहेले गांधीजीको सूना था?
(४) क्या धारणाओंके आधार पर किसीको सजा देना योग्य है?
मैं मेरी बात दोहराता हूंँ. आप, अपने हिसाबसे, सबसे प्रभावशाली मुद्दा कौनसा है जिसके लिये, गांधीजी ही सबसे अधिक जीम्मेवार है और उससे देशको सबसे अधिक नुकशान हुआ है?
आपने जो वीडीयो “मैंने गांधीको क्यूंँ मारा”गोडसे का बचाव. कोएनराड एल्स्ट. भेजा है.
(मुझे, एक से एक संवाद चाहिये. मैं कुछ पूछुं और सामने वाला एक विडीयो भेज दे, जिसमें, कोएनराड लिखित गांधीके जीवनका अपना नेरेटीव्ज़ भेजे, उसका कोई मतल ही नहीं. यदि आप बुकके पन्नोंके फोटोका वीडीयो बनाके भेजो और फिर कहो कि यह तो बुक है वीडीयो नहीं. ) यह कोई चर्चा नहीं है.
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चाचूने लिखा
आप वीडीयो और बुकका भेद समज़ते नहीं.
आप अतिरेक करते है वह समज़में नही आता.
आप शब्दोंके उपर विरोध करते है.
आपके साथ संवाद नहीं हो सकता.
मैं संवाद रोक देता हूंँ
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बच्चूने लिखा
“गांधीसे मोहभंग” वाला आपका तीनोंका संवाद एक कलाक तक सूना. आप तीनों हर बात पर एक दुसरेसे सहमत दिखाई देते थे, और सहमत है भी. किसीने किसीका किसी बातका विरोध नहीं किया है.
आपका संवाद अतार्किक था. मैंने दो शब्द-प्रयोगवाले दो कथन पकडे.
वे दोनों कथन, गांधीजी के उपरके आपके अभिप्राय को उजागर करते थे. उन पर चर्चाके लिये मैंने प्रश्न किये है.
उपसंहार
गांधी-विरोधीयोंमें एक प्रतिक्रिया समान रुपसे है कि, या तो विषयको बदल देना, या तो कोई लेख या विडीयो-लींक सामने वालेको दे देना. आपने वही किया. गांधी-विरोधीयोंको “वन टु वन” चर्चा करनेका कोई कष्ट लेना नहीं है.
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बुआ जी की बात;
गांधी-फोबिया पीडीतोंका दुसरा एक वीडीयो सामने आया.
इस वीडीयोमें एक यंग महिला, अपने हिसाबसे रामराज्यका विश्लेषण कर रही थी. और वही बुआजी, उसमेंसे, गांधीजीकी समज़ का रामराज्य पर, अपना अर्थघटन लगाके, गांधीजीकी बुराई करना चाहती थीं. बुआजी इसके लिये उत्सुक, एवं प्रयत्नशील रहती थीं. बुआजी, उस महिलाके शाब्दिक एवं अप्रच्छन्न समर्थनके लिये प्रयत्नशील रहती थीं.
महिला भी चालाक थी. जब बुआजी अपना उपद्रव गांधीके उपर दिखाती थीं, तब वह महिला मंद मंद मुस्कराती थीं. वह बुआजीका अपमान करना चाहती नहीं थीं ऐसा स्पष्ट दिखाई देता है.
बुआजी बार बार गांधीजीके रामको “पुतलावाला राम” स्थापित करना चाहती थी.
बुआजीने पुतलावाला राम शब्द कहांँसे निकाला? इस बातको तो राम ही जाने.
वाल्मिकीका राम लो, या तुलसीदासजीका राम लो, या गांधीजीके राम लो … तीनों पुरुष तो एक ही है. तीनो राम, दशरथ राजाके ज्येष्ठ पुत्र है. लेकिन रामके दो स्वरुप है. एक ईश्वर और एक राजा राम. वाल्मिकीके राम विष्णुके अवतार है. तुलसीदासके राम ब्रह्म स्वरुप है. और महात्मा गांधीके राम सबके हृदयमें रममाण परम तत्त्व है. जब “राजा राम” की बात होती है तब आदर्श राजा (शासक) की बात होती है.
कुछ मुस्लिम लोग हिंदुओंकी बुराई करनेके लिये, हिंदुओंको बुत – परस्त कहेते हैं. संभव है कि, यह बुआजी भी गांधीजीको अपमानित करनेके लिये, गांधीजीके रामको “पुतलावाला राम” नामसे पहेचान करवाती है.
शिरीष मोहनलाल दवे
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – २
Posted in Uncategorized on November 8, 2021| Leave a Comment »
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – २
हमने गत अध्याय (चेप्टर)में देखा कि, नकली यदि एक व्यक्तित्त्व होता है, तो उसको जूठ/ विवादास्पद वर्णन/फर्जी/अर्ध सत्य/वितंडावाद प्रचारका सहारा लेके, असलीके रुपमें प्रदर्शित किया जाता है. क्यों कि उस सुनिश्चित व्यक्तिके व्यक्तित्वको नष्ट करना ही कुछ लोगोंका हेतु होता है. “नकली” व्यक्तित्त्व के निर्माताओं का आखरी हेतु एक नहीं किंतु, परस्पर भीन्न भीन्न, एवं प्रच्छन्न भी होता है.
तो चलो हम देखें चाचू, चाची, दादू, बच्चू, असली, नकली कैसे प्रदर्शित होते हैं !!!
आखिर इन लोगोंका ध्येय क्या है? ये लोग कौन है यह मुद्दा भी संशोधनका विषय है !!
ये लोग चाहते हैं कि जनता इन लोगोंके ध्येय सत्य, तथ्य, श्रेय … एवं विशुद्ध तर्क इन सबकी चचामें न पडें. इन लोग द्वारा जो पुरस्कृत होता है वह अपने आपमें परिपूर्ण है ऐसा मान लिया जाय, क्यों कि वे अंकल/आंटी/बुआ सेम या सारा है.
हमने “दुरात्मा गांधी एवं विनाश पुरुष मोदी” विषय के संदर्भमें गत ब्लोगमें इन लोगोंकी समज़ को देखा. उनके तर्क को देखा. उनके तारताम्योंको भी देखा.
उनकी मानसिकता यह है, कि वे जो संदर्भ प्रस्तूत करे उसको ही ग्राह्य समज़ना, विरोधीने जो संदर्भ प्रस्तूत किया उसके उपर ध्यान देना ही नहीं.
एक महानुभावने प्रचलित और तथा कथित कथन के समर्थनमॅ एक लेख लिखा. “मुस्लिम तुष्टीकरणका प्रारंभ गांधीजीने किया.”
मैंने लिखा कि आप एक मुद्दा बताओ कि जिससे आपका निष्कर्ष प्रमाणित हो जाय कि, गांधीजी मुस्लिमोंकी मार से डरते थे इसलिये उनका तूष्टिकरण किया करते थे.
न्यायिक अनिवार्यता
न्याय करने कि प्रक्रियाकी एक अनिवार्यता है, कि जब हम किसीके उपर आरोप लगावें और उसको सही भी मान ले तो उसके पूर्व हमारा धर्म बनता है कि जिसके उपर हमने आरोप लगाया है, उसको हम सूने कि उसको इस घटनाके बारेमें क्या कहेना है.
उसकी बातको सूनना चाहिये. फिर उसके कथन का तर्क संगत विश्लेषण करके, उसके उपर हमें निर्णय करना चाहिये.
उपरोक्त महानुभाव ने कोई उत्तर दिया नहीं. मैंने इन महानुभावके लेखके प्रथम दो पेरेग्राफ पढे. एकमें लिखा था “ मुस्लिमोंने द. आफ्रिकामें गांधीजीके आंदोलनको सपोर्ट नहीं किया था. वे उनसे नाराज थे.” मैंने उनको कहा कि गांधीजी कि आत्मकथामें मुझे ऐसा कोई उल्लेख मिला नही है.
ये महानुभावने अपने लेखके दुसरे पेरेग्राफमें बाबा साहेब आंबेडकर का कथन का उल्लेख किया है किया है कि गांधीजी मुसलमानोंकी मारसे डरते थे. इसलिये उनका तूष्टीकरण करते थे.
मैंने लेखक महाशयको दिखाया कि यदि गांधीजी मुस्लिमसे डरते थे यदि यह बात सही है तो गांधीजी ख्रिस्तीयोंसे भी डरना चाहिये. क्यों कि गांधीजी ख्रिस्ती मॉबसे भी पीटे गये थे. ख्रिस्ती मॉबने गांधीजी को इतना पीटा था कि उनको चक्कर आने लगे थे और वे खडा नहीं रह पाये थे. (गांधीजीकी ओटोबायोग्राफी भाग – ३, प्रकरण-३).
गांधीजी को एक मुस्लिमने यहां तक पीटा था कि वे मारकी पीडासे बेहोश हो गये थे. गांधीजीने इस प्रसंग से कहा है कि; ” जब मैं बेहोश था मेरी पीडा चली गयी. मैं समज़ता हूंँ कि आत्मा जब शरीरसे अलग होती है तो पीडाका दुःख नहीं होता. जब शरीरके साथ होती है तो पीडा होती है. इससे मेरी हिमतमें वृद्धि हो गयी. “(संदर्भ “कलेक्टेड वर्क ऑफ महात्मा गांधी भाग – ८ पेज १५५”).
लेखक महाशय को समज़ना चाहिये कि बाबा साहेब आंबेडकरने जो कहा वह उनका अभिप्राय था. अभिप्राय और एवीडंस (प्रमाण), दोनों भीन्न भीन्न है.
इतना सब प्रदर्शित करने पर भी लेखक महाशयने कहा कि लेखक महाशय स्वयंने उनके सभी तर्कोमें प्रमाण दिये है. और प्रतिपक्षवाला मैंने, एक भी प्रमाण दिया नहीं है.
इस तरह स्वयं गलत होने पर भी मुज़े गलत बताया.
क्या किसीको जूठा कहेना गली नहीं है? “जूठा” शब्द गाली नहीं है तो क्या है? अवश्य यह गाली ही है. यदि कोई व्यक्तिने संदर्भ प्रस्तूत किया है, और फिर भी उसको कहेना कि तुमने एक भी संदर्भ प्रस्तूत नहीं किया, तो “जूठा (गलत)” एक गाली ही है. गालीकी परिभाषा यही तो है.
लेखक महाशयने मेरे इ-मेलोंका उत्तर नहीं दिया.
चाचू, बच्चू, दादू, बुआ, चाची … संवाद श्रेणी के ब्लोग “दुरात्मा गांधी और विनाशपुरुष मोदी” में, अनेक चाचूओंके विषयमें लिखा है. एक टोपी, इन लेखक महाशयको फीट हो गयी. तो फिरसे ये महाशय मुज़े नयी (उम्रसे संबंधित) “बिनविवादास्पद सही गाली” दे कर भाग गये.
“महानुभाव बननेके लिये ये सब करना आवश्यक है”
संस्कृतमें एक श्लोक है, कि ;
“अकृतोपद्रव कश्चिद् महानपि न पूज्यते” तो चाचूओंका तो क्या कहेना … ?
यदि आपको पूजनीय बनना है तो थोडा बहोत उपद्रव तो करना ही पडेगा.
गांधीजी हिंदु और मुस्लिमके बीच भेदभाव नहीं रखते थे. वे जो हिंदुओंको कहेते थे वही बात वे मुस्लिमोंको भी कहेते थे. कोंग्रेसी नेताओंके प्रति वे अवश्य भीन्न थे. लेकिन कई महाशय लोग, “इधरसे कुछ उठाओ, … उधरसे कुछ उठाओ, … छूट पूट उठाओ …. फिर उनकी अपने हिसाबसे रचना बनाओ. और अपना ध्येय सिद्ध हुआ ऐसा मानो और मनवाओ.
एक जूठका एक नकली किला बनाओ … बोलो कि यही असली किला है. फिर उस नकली किलेको तोडो. लोगोंको बोलो कि हमने कैसे असली किला तोडा.
लेकिन इससे फायदा क्या?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – १
Posted in Uncategorized on November 6, 2021| Leave a Comment »
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – १
लोग हमें पूछते है …
बच्चू क्या है?
दादु क्या है?
चाचू क्या है?
चाची या आंटी क्या है?
असली, नकली किला क्या है? …
बच्चूसे मतलब है कोमन मेन
लेकिन कोमन मेनके बारेमें तो एक मूंँहावरा है कि कोमन सेंस इज़ कोमनली अनकोमन. [ common sense (the sense to understand common matters) is commonly (generally) uncommon. That means common men generally does not have common sense] यानी कि, सामान्यतः सामान्य बुद्धि (सामान्य बातोंको समज़ने वाली बुद्धि) , सामान्य व्यक्तिमें न होना सामान्य है.लेकिन यह तो शक्यताका सिद्धांत है. इसीलिये शक्यताके सिद्धांतके आधार पर असामान्यतः यानी कि सामान्यव्यक्तिमें सामान्यबुद्धि हो भी सकती है. हमारा यह बच्चू, सामान्यबुद्धि रखता है.
यह सामान्य बुद्धि है क्या?
पूरा विज्ञान, मतलब कि, भौतिक शास्त्र, सामान्य बुद्धि पर, अवलंबित है, जो सामान्य सिद्धांतोंके आधारके उपर असामान्य निष्कर्ष निकालता है.
ओके चलो. ये सब बादमें देखेंगे.
यह दादू क्या है
दादू से मतलब है “निष्णात”. सुज्ञ.महानुभाव, महापुरुष, सुचारुरुपसे सत्य, श्रेय और आनेवाली घटनाओंको, और उनकी असरोंको समज़नेवाला.
यह चाचू क्या है?
चाचूका मतलब है … जो स्वयंको (अपनी सोसीयल मीडीयावाली सामाजिक कवरेज के कारण) दादू समज़ता है वह चाचू है. “अंकल सेम” कौन है मालुम है?
हांँ जी, सूना है. “अंकल सेम” से मतलब है अमेरिका यानी कि यु.एस.ए. का राष्ट्रप्रमुख.
सही कहा. चाहे अंकल सेम किसीभी पार्टीका हो वह यदि यु.एस.ए.का प्रेसीडेंट बन गया, तो अंकलसेम स्वयंको विश्वका चाचा समज़ता है. वह पूरे विश्वके देशोंको सूचनाएं सलाह और एवं आदेश दे सकता है. उसी प्रकार यदि किसी व्यक्तिको अपनी योग्यतासे अधिक प्रसिद्धि मिल गयी हो तो वह अपनेको चाचू (अंकल सेम), समज़ने लगता है और अन्य सामान्य जन को बच्चू समज़ता है. जैसे कि फिलमके क्षेत्रके अभिनेता, निर्माता, वितरक, लेखक, … या तो वर्तमान पत्रके तंत्री, कोलमीस्ट्स, विश्लेषक, … एवॉर्डधारी, कोई संस्थाके पदधारी [कोंगीके पद धारी रा.गा., सोनिया, मीसेज़ प्रियंका वाईदरा (घांडी)] …
यह असली नकली किला क्या है?
“असली” यदि एक निर्माण/स्थापत्य है तो वह जिस प्रयोजनसे बना है या बनाया गया है वह असामान्यरुपसे शक्तिमान है. वह अनियत और प्रलंबित काल तक प्राकृतिक प्रहार सहन कर सकता है. कभी कभी असली यह भी होता है जो तूट कर भी फिर से बन जाता है. बार बार तूट कर बार बार बन जाता है. “असली”को बनानेमें कालमींढ पत्थर, चूना और पानीका उपयोग होता है. इन तीनोंसे मिलकर स्थापत्यका यथेच्छ आकार बनता है. चूना और पानी मिलकर प्रारंभमें केल्स्यम हाईड्रोक्साईड बनता है और समयांतरमें वह केल्स्यम कार्बोनेट पत्थर बन जाता है. कालमींढ पत्थर और केल्स्यम कार्बोनेट एकदुसरेके साथ एकजूट पत्थर जैसा बन जाता है. समय साथ वह मजबुतसे अतिमजबुत बनने लगता है.
यदि “असली” एक व्यक्तित्त्व है, तो वह तार्किक सिद्धांत/विचारधारा और आचार संहितासे बनता है. सिद्धांत/विचारधारा पर यदि “ कलुषित मानवजुथ सर्जित”, आक्रमण एवं विसंवादित विचार धाराओंके प्रहार होते हैं तो वह झेल सकता है. क्यों कि ये “मानव जुथ” वास्तवमें, परस्परमें भी और स्वयंमें भी विरोधाभासी एवं विसंवादी होते है.
नकली क्या होता है?
नकली एक “ प्रतिकृति” होती है. वह अस्थायी और कमजोर होती है. वह खास हेतुसे बनायी जाती है. उसको नष्ट करनेके लिये बनाया जाता है. उसको रेत, मीट्टी और तेल या पानीसे बनाया जाता है. रेतका उपयोग, प्रतिकृतिको कमजोर रखनेके लिये, किया जाता है, मीटी और पानी/तेल का उपयोग, रेतको चीपकाके, प्रतिकृति/ संरचनाको “असली”वाला आकार देनेके लिये होता है.
नकली यदि एक व्यक्तित्त्व होता है, तो उसको जूठ, विवादास्पद वर्णन/फर्जी/अर्ध सत्य और वितंडावादी प्रचारका सहारा लेके, असलीके रुपमें प्रदर्शित किया जाता है. क्यों कि उस सुनिश्चित व्यक्तिके व्यक्तित्वको नष्ट करना ही उनका हेतु होता है. “नकली” व्यक्तित्त्व के निर्माताओं का आखरी हेतु, परस्पर भीन्न भीन्न, एवं प्रच्छन्न भी होता है.
तो चलो हम देखें चाचू, चाची, दादू, बच्चू, असली, नकली कैसे प्रदर्शित होते हैं !!!
( क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे