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Archive for November, 2021

नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ५

यदि आप देश प्रेमी और राष्ट्र वादी है तो आपका कर्तव्य क्या है?

आपको एक बात समज़ना चाहिये की कोंगी,जिसको, कुछ लोग अज्ञानतावश और तर्कहीनता (राजकीय पक्षकी परिभाषा समज़नेका अभाव) के कारण “कोंग्रेस” कहेते है. उनकी यह बात जो लोग जनतंत्रकी परिभाषा और पक्षकी परिभाषा समज़ते है उनके लिये अस्विकार्य है. हमारा इस ब्लोगका विषय वह नहीं है. इसलिये हम इसकी चर्चा करेंगे नहीं.

हमें “कोंगी मानसिकता” समज़ना चाहिये कि कोंगी (कोंग्रेस) कोई भी हथकंडे अपना सकती है. जो पक्ष खुले आम कोमवादी आचरण करता है एवं खुले आम देशद्रोही आचरण करता है वह पक्ष हिंदुओंका विभाजन, हर मुद्दे पर कर ही सकता है.

कोंगीकी रणनीतिका यह एक अविभाज्य अंग है कि गांधीजीके सिद्धांतोंका खून तो हमने बार बार किया और करते रहेंगे, किंतु हमें गांधीजीकी निंदा भी करवाना है और उसको फैलाना भी है. कोंगीयोंको मालुम है कि गांधीजी एक महात्मा थे और उसके लाखों चाहनेवाले मध्यम स्तरके ज्ञानी और अज्ञानी दोनों है. इनमें विभाजन करना शक्य है. क्यों कि मूर्खता कोई कोम्युनीटीकी मोनोपोली नहीं है. यह काम हम दुसरोंसे करवायेंगे.

कुछ लोग इस बातको समज़ नहीं सकते है. भारतमें इस परिस्थितिका होना एक विडंबना है और अफसोस की बात है.

नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार यह बात समज़ती है. लेकिन कुछ लोगोंको यह बात हजम नहीं होती है. इससे देशको अवश्य हानि हो सकती है.

कोंगीयोंकी लुट्येन गेंगके लिये कोई भी निंदास्पद व्यवहार असंभव नहीं है. उनके अधिकतर मतदाता अटल है.

यह बात समज़ लो, कोंगीने राक्षस होनेके नाते, जब भी कोंगीके उपर प्रहार पडता है तो जो रक्तबिंदुएं धरती पडते है उनमेंसे और राक्षस पैदा होते है.

इसका आरंभ राक्षस नहेरुसे हुआ है. उसके बीज राक्षस नहेरुने ही १९४६में बोयें थे.

“किसीभी राज्यकी समितिने पक्ष प्रमुखके पद पर नहेरुके नामका प्रस्ताव पास किया नहीं है” ये समाचार जब गांधीजीने उस मानवरुपधारी, राक्षस नहेरुको बताया, तब नहेरुने अपना पक्ष-प्रमुख बनने का आवेदन वापस नहीं लिया. यदि नहेरु जनतंत्रवादी होते तो उनका कर्तव्य था कि वे अपना आवेदन वापस लेेले. नहेरु मौन रहे. वे अन्यमनस्क मूंँह बनाके वहांसे निकल गये. इस राक्षसके मनमें क्या था, वह गांधीजीने भांप लिया कि नहेरु कोई साहस करनेवाले है.

उस समयकी परिस्थिति को याद करो. केबीनेट मीशन देशका विभाजन करने पर तुला था. पाकिस्तान, खालिस्तान, दलितस्तान, द्रवीडीस्तान … की मांगे तो थी ही. उस समयकी कोंग्रेसका प्रयास था कि भारतका विभाजन कमसे कम हो.

नहेरुको तो हर हालतमें प्रधान मंत्री बनना ही था.

भारतकी संस्कृतिमें राक्षसका अर्थ क्या है? प्राचीन अर्थ भीन्न है. लेकिन प्रचलित अर्थ यह है कि जो स्वार्थके लिये यज्ञ (कर्म) करता है वह राक्षस है. जो विश्व हितमें यज्ञ करता है वह मानव है. जब स्वार्थ ही ध्येय है, तो जूठ तो बोलना ही पडेगा … सत्यको गुह्य रखना पडेगा … प्रपंच करना पडेगा … माया फैलानी पडेगी…

नहेरुने प्रारंभसे ही कोंग्रेसके भीतर एक समाजवादी-गुट बनाके रक्खा था. समाजवादी होना एक फैशन था. जैसे आजके युवाओमें दाढी रखनेका फैशन ३/४ सालसे चलता है. राक्षस नहेरुकी एक माया थी कि वे नौटंकी करनेके उस्ताद थे. इसलिये नहेरु (सुभाषचंद्रके अभावमें) जनतामें काफि लोकप्रिय थे.

यदि कोंग्रेसका विभाजन उस समय होता तो कोंग्रेस, केबीनेट मीशनके साथ सियासती परिसंवादमें अवश्य कमजोर बनती. नहेरु कमसे कम, उत्तरांचल राष्ट्र के प्रधान मंत्री बनते. देशी राज्योंके कई राजा भी अपना स्वतंत्र राष्ट्र मांगते ही थे. ऐसी परिस्थिति बननेका संभव था. गांधीजी ऐसा साहस करना नहीं चाहते थे. गांधीजीने सरदारसे वचन ले लिया कि सरदार पटेल ऐसी हालतमें कोंग्रेसको तूटने नहीं देंगे. सरदार पटेलने वचन दिया भी.

गांधीजीको मालुम था कि, लोकशाहीमें कोई भी व्यक्ति (जबतक सूरज-चांद रहे तब तक) कोई होद्दा पर आजीवन तक रह नहीं सकता. व्यक्तिको चूनावसे गुजरना पडता है.

गांधीजीको यह भी मालुम था, कि नहेरु मायावी है. और वे कुछ भी कर सकते है. स्वतंत्रता मिलनेके बाद इसीलिये गांधीजीने कोंग्रेसका विलय करनेको कहा. क्यों कि गांधीजी जानते थे कि नहेरु नौटंकी बाज है, और सत्ताके लिये कुछ भी कर सकते है. वैसे तो १९४८में सरदार पटेल का कद असीम बढ गया था. लेकिन वे आमचूनाव तक जिंदा नहीं रह पाये. यदि वे जिंदा रहेते तो १९५२के बाद, भारतके विकास का एक भीन्न स्वरुप होता.

नहेरुने अगणित गोलमाल करके और जूठकी दुकान खोलके कई जगह पर जीते हुए प्रत्याशी को हरा दिया. चूनाव की प्रणाली ही अपार क्षतियुक्त थी.

क्या करें?

नहेरुकी टीमके सदस्य नहेरु जैसे बुरे नहीं थे. नहेरु ही अपने पोर्टफोलीयोमें विफल रहे लेकिन अन्य मंत्रीयोंने अच्छा काम किया. नहेरुने विदेशनीतिमें अपने आर्षदृष्टिके अभावके कारण और वैचारिक धूनके कारण असीम गलतियां की जो आज भी देश भूगत रहा है.

लेकिन कोंगी राक्षसोंकी माया अपार है.

इन मायामें हमारी कई बुआएं और चाचूएं फंसे हुए है. वे नहेरुसे कहीं अधिक गांधीजीकी निंदा करते है. क्यों कि गांधीजी तो मर गये है.

नहेरुवीयन तो जिंदा है. उनके सहायक राक्षसोंने (जैसे कि ममता, शरद, उद्धव, केज्री, मुल्लायम, अखिलेश, फारुख, ओमर, डिएमके, एडीएमके के राक्षस, सीपीआईएमके राक्षसोंने … आदि अगणित नेताओंने) अपने विरोधीयोंका (जैसे कि साध्वी प्रज्ञा, बाबा रामदेव, अमित शाह, अर्णव गोस्वामी, कंगना रणोत, ममताको वोट न देनेवाले हजारों दलितोंका) क्या हाल किया था वह तो उनको मालुम ही है.

इसलिये ये चाचूएं और बुआएं, प्रवर्तमान समस्याओंमें इन राक्षसोंकी बुराई करनेका छोड कर, गांधीजीकी बुराई करनेमें व्यस्त रहेतीं हैं. हमारा नाम “देशभक्तोंकी लीस्ट”में होना आवश्यक है इसलिये नहेरुकी भी थोडी बहोत बुराई कर लेते है, लेकिन अधिकतर बुराई, मुघल, तैमूर, अल्लाउदीन, मोहम्मद तघलख, मोहम्मद घोरी, … इस्लाम, कुरान, शरीयत … आदि की बुराई करते रहेंगें. इससे मुस्लिम मतका धृवीकरण होता है. कोंगीयोंको और उनके साथीयोंको यही तो चाहिये.

तर्क शुद्धता और चर्चा किस बलाका नाम है?

शिरीष मोहनलाल दवे

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नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ४

(१) हमने पहेले ही देख लिया है कि कुछ लोग “एम. के. गांधीजीकी बुराई करनेमें क्यों सक्रीय है?

अधिकतर किस्सोंमे जो वीडीयो-लेख प्रस्तूत करनेवाले होते हैं उनको यह देखाना है कि वे किस सीमा तक निडर राष्ट्रवादी है कि वे, अपना राष्ट्रवादत्त्व दिखानेके लिये गांधीजी तकको छोडते नहीं है. इन लोगोंके अनुयायी लोग, गांधीजी के लिये जो भी गाली याद आयी उस गालीको कोमेंटमें लिख देते है.

(२) गांधीजीकी बुराई करनेमें बुराई क्या है?

गांधीजीकी निंदा करनेमें कोई बुराई नहीं है, यदि यह चर्चा तर्कशुद्ध और ज्ञानवर्धक हो. लेकिन ऐसा कभी भी होता नहीं है. एक फर्जी बात करो, वाणी विलासवाला विवरण दो, जूठ को ही सच मानके चलो, और उस फरेबी सचसे गांधीजीके व्यक्तित्त्वको ध्वस्त कर दो.

जैसे कि; गांधीजीके रामको पुतला वाला राम कहेना , गांधीजीका भगत सिंह के प्रति द्वेष था ऐसा मान लेना, गांधीजीका सुभाष के प्रति द्वेष था ऐसा मान लेना, गांधीजीकी मुस्लिमोंके प्रति तुष्टिकरणकी नीति थी ऐसा मान लेना, … गांधीजीकी अहिंसा फरेबी थी ऐसा मानना, गांधीजीने देशको तोडा ऐसा मानना, गांधीजी तो अंग्रेजोंके पालतु कुत्ते थे ऐसा मानना, एकाधिकारवादी गांधीजीने नहेरुको कोंग्रेसका प्रमुख बनाया …. ऐसी तो कई बातें है, जिनसे गांधीजीको मरणोत्तर गालीयां मिलती रहेतीं हैं.

लेकिन यदि कोई गांधीजी प्रति आदर करनेवाला, प्रश्न करें और चर्चाका आहवाहन करें, तो ये लोग उसके उपर गाली प्रहार करेंगे, यदि चर्चामें उतरे तो मुद्दे बदलते रहेते हैं, असंबद्ध बातें करेंगे, … एक वीडीयो या/और पुस्तककी लींक देके चर्चासे भाग जायेंगे. यदि उनकी तबियत गुदगुदाई तो दो तीन गालीयां भी दे देंगे.

(३) गांधीजीकी बुराई करने वाले है कौन?

गांधीजीकी बुराई करनेवाले लोग कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथी है.

कोंगीयोंने पहेलेसे ही सत्ताके लिये लोगोंको विभाजित करनेका काम करते रहे हैं.

मुस्लिमोंको तो एक बाजु पर छोड दो.

(३.१) हिंदुओंकोभी विभाजित करनेका काम कोंगीयोंने ही किया है.

सत्ताके लिये कोंगीने शिवसेना की स्थापना की थी.

(३.२) कोंगीयोंने मुस्लिम तुष्टीकरणके लिये साध्वी प्रज्ञाका क्या हाल किया था?

हिंदुओंको भगवा आतंकवादी सिद्ध करनेके लिये बंबई ब्लास्टकी घटनाको, हिंदुओ पर ठोक देनेके लिये, एक कोंगीनेताने एक पुस्तक लिख दी थी.

(३.३) ममता, बीन बंगालीयोंको बाहरी बताती है, वह दलित हिंदु औरतोंपर अत्याचार करवाती है और उनके घर जला देती है, उतना ही नहीं हिंदुओंको राज्यसे बाहर खदेड देती है. ममता फिर मीट्टीका मानुस का गीत गाती है.

(३.४) महाराष्ट्रका नेता मराठाओंको अन्यसे अलग करवाता है, और माराठाओंको आरक्षण दिलानेके लिये आंदोलन करते हैं.

(३.५) आपको कोंगीकी लुट्येन गेंगमें अब, काका कालेलकर जैसा सवाई गुजराती नेता ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा. सौराष्ट्रके झवेरचंद मेघाणी शिवाजीके गुणगान वाली कविता रचते थे.

(३.६) गुजराती और मराठी जनता हिलमिलकर रहेती थीं. नहेरुने मराठी-गुजरातीमे विभाजन १९५६में किया.

(३.७) कर्नाटकमें कोंगी, “लिंगायत”को (जो शिवके उपासक है) उनको अल्पसंख्यकका दरज्जा देना चाहती है. यदि शिव ही हिंदु धर्ममेंसे निकल गये तो हिंदुधर्ममें बचा क्या?

(३.८) गुजरातका एक कोंगी पटेल नेता पाटीदारोंके आरक्षण के लिये आंदोलन चलाता है.

(३.९) जब कोंगीयोंकी सत्तामें हिस्सेधारी होती है तब वे विपक्षीनेताओं पर बेबुनियाद आरोप और फर्जी केस चलाते थे. रामलीला मैदानमें बाबा रामदेवके अहिंसक आंदोलन पर आधी रातको आक्रमण करवाया. अहिंसक आंदोलनकारी लोगोंको पीटा गया. ऐसे तो अगणित घटनाएं हैं.

(३.१०) भारतमें लोकशाहीमूल्योंका हनन कोंगी शासित राज्योंमें होता है.

(४) दलितोंको वोटके लिये टार्जेट करना, एक नया तरिका ममताने निकाला है.

(४.१) वोट न देनेके कारण, दलितों के प्रति ममताका रुख कैसा रहा? ममता, इन दलितोंको अपने घरमें वापस आने के लिये दलितोंसे पैसे मांगती है.

(४.२) दलित लोग गरीब है और वे प्रतिकार नहीं सकते, न तो वे न्यायालयमें जा सकते है. पूलिस तो ममताके आधिन है. इस लिये ममताने दलितों पर ही आक्रमण करवाया, यह एक ल्युट्येन गेंगकी नयी खतनाक चाल है.

(४.३) सरकारी अफसरोंको और न्यायाधीशोंको धमकी देना कि “आप भी तो निवृत्त होनेवाले है, फिर आपका क्या हाल होगा वह सोच लो.” गवर्नरको बोला जाता है कि “दिल्ली जाते हो तो वापस मत आना”.

जनतंत्रको अवहेलना करने की मनमानी करनेकी इससे अच्छी मिसाल विश्वमें कहीं नहीं मिलेगी.

ग़ांधीजीकी बुराई करनेवालोंको यह सब नहीं दिखाई देता है.

(५) गांधीजीकी निंदा करने वाले प्रच्छन्नरुपसे कोंगीके हितैषी है.

(५.१) जाति-वर्ण के आधार पर भी विभाजित किया आ सकता है. भाषा और क्षेत्रके आधार पर भी विभाजित किया जा सकता है.

(५.२) कोंगी लोग यह भी समज़ते है कि हिंदुओंको गांधीके नाम पर भी विभाजित किया जा सकता है.

(५.३) एक फर्जी नेरेटीव्ज़ चलाया गया है कि गांधीजीने ही नहेरुको गद्दी पर बैठाया और इस नहेरुके कारण देशकी यह दुर्दशा हुई. तो अब नहेरुको और नहेरुवीयनोंको बाजु पर रख दो, और गांधीके उपर ही तूट पडो.

आप पूछोगे लेकिन इससे क्या होगा?

(५.४) कोंगी समज़ती है कि वैसे तो आर. एस. एस. के कुछ अज्ञ लोग उनको गांधीजीकी हत्यासे कुछ भी लेना देना नहीं है, तो भी “आर. एस. एस.”वाले कुछ लोग तो मैदानमें उतर आयेंगे और गांधी-निंदाको सपोर्ट करेंगे. कमसे कम गांधीको एक गाली देके अपना फर्ज निभाया ऐसा मानेंगे.

आप कहोगे कि; “आर. एस. एस.”का गांधीकी हत्यासे लेना देना क्यों नहीं है?

अरे भैया, गांधीजीकी हत्या करनेवाला आर.एस.एस. का सदस्य था ही नहीं. वह तो हिंदु महा सभा का सदस्य था.

“तो फिर “आर.एस.एस.” वाले क्य़ूंँ कूद पडते है?

क्यूंँ कि आर.एस.एस.” पर राहुल गांधी आरोप लगाता है कि “आर.एस.एस.” वाले गोडसे वाले है. यदि जब राहुल गांधी जैसा, महामानव, आरोप लगाता है तो उसका आदर तो करना पडेगा ही न. राहुल गांधी कौई ऐसा वैसा आदमी थोडा ही है?

(६) गांधीजी की निंदा करनेमें कौन कौन प्रकारके लोग है ?

गांधीजीकी निंदा करनेमें ऐसे लोग है जो अपनेको सुज्ञ मानते है लेकिन वे लोग गांधी-साहित्य को पढनेका कष्ट उठाना चाहते नहीं है.

ये छोटा मोटा पदधारक, विश्लेषक … होने के कारण लिखते रहेना / बोलते रहेना उनका व्यवसाय है. क्या करें ख्याति भी तो कोई चीज़ है!! यदि हम तर्कशुद्ध नहीं बोलते तो क्या हुआ? कौन तर्क शुद्ध बोलता है? बीबीसी ? न्यु योर्क टाईम्स?

वे समज़ते है कि मौका मिला है तो लिख ही दो. अनुपद्रवी लिखनेके बदलेमें उपद्रवी लिखनेेसे अधिक लाईक और कोमेंट मिलती है. आपने देखा नहीं क्या, कि आचार्य रजनीश, अकबरुद्दीन औवैसी, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, िप्रयंका वांईदरा, टीकैत, अखिलेश, एमएमएस, नवाब मलिक, ममता, केज्री … आदि लोग उपद्रव कारी नहीं बोलते तो उनकी पहेचान कैसे बनती?

(७) गांधीजीकी निंदा करनेसे फायदा किसको होगा?

(७.१) गांधीजीकी निंदा करनेसे ल्युटेन गेंगोंको (यानी कि, बीजेपीके विरोधीयोंको) फायदा होगा.

क्यूंँ कि  काफि अज्ञ हिंदु  लोग मानते है कि गांधीकी निंदा करना वह नहेरुकी निंदा करना ही है. (वैसे तो नहेरु और गांधीके बीच आकाश पाताल का भेद है. लेकिन पढना किसको है? समज़ना किसको है?).

(७.२) नरेंद्र मोदीने गांधीजीको पढा है. लेकिन ये अज्ञ लोग शुक्र करो कि, नरेंद्र मोदीको गांधीजीके संबंधमें गालीयां देते नहीं है. क्यूंँ कि तब तो वे एक्सपोज़ हो जायेंगे कि वे प्रो-कोंगी है.

(७.३) कुछ सियासत से अज्ञ लोग है, लेकिन वे गांधीको तो जानते है और उनके उपर श्रद्धा रखनेवाले है, ये लोग समज़ेंगे कि गांधी-निंदक (वे इनको आरएसएस वाले) तो जूठ बोलते है और विश्वसनीय नहीं है. इसलिये बीजेपी भी विश्वसनीय नहीं है.

(७.४) आम जनतामें भी ऐसे लोग है, जो लोग द्विधामें पड जाते है. वे ऐसा समज़ने लगते है कि सियासतमें सभी लोग एकसे होते है.

इससे क्या होता है?

(७.५) ये लोग “नोटा” बटन दबाते हैं, या वॉट देनेको ही नहीं जाते है.

(७.६) कई सारे लोग उपरोक्त द्विधाके कारण वॉट देनेको जाते नहीं है.

(८) इस बातको हमेशा याद रक्खो कि;

(८.१) राष्ट्रवादीओं द्वारा वॉटके लिये जाना नहीं, गद्दारोंको वोट देने के बराबर है.

(८.२) राष्ट्रवादीओं द्वारा बीजेपीको वोट नहीं देना या “नोटा” बटन दबाना, गद्दारोंको वॉट देनेके बराबर है.

(९ ) ओ! गांधीजीकी निंदा करनेवाले महानुभाव लोग, यदि तनिक भी समज़दारी भी है तो समज़ जाओ. युद्ध केवल शस्त्रोंसे जिता जाता नहीं है. व्युहरचना भी करना पडता है.

आप कमसे कम गद्दारोंकी व्युह रचनामें मत फंसो.

(९.१) जितना फर्क आर.एस.एस. और आई. एस. आई. एस. में है, उनसे कहीं अधिक फर्क गांधीजी और नहेरुमें है. इस विषय पर एक पुस्तक भी उपलब्ध है.

(९.२) कोंग्रेसका विलय करो यही गांधीका अंतिम आदेश था.

एम. के. गांधीकी निंदा करनेमें और करानेमें कोंगीयोंका ध्येय क्या है?

गांधीजीकी बुराई करने के फलस्वरुप क्या परिणाम आने वाले है?

गांधीजीकी बुराई करनेमें भयंकर बात क्या है?

यदि आप देश प्रेमी और राष्ट्र वादी है तो आपका फर्ज धर्म क्या है.

गांधीजीकी निंदा करना और उसको फैलाना, यह बात कोई व्यूह रचना का भाग हो सकता है क्या?

कोंगीयोंकी लुट्येन गेंगके लिये कोई भी निंदास्पद व्यवहार असंभव नहीं.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ३

गत प्रकरणमें हमने लिखा था, चाचूओंका और बुआ/आंटिओंकी सामान्य प्रवृत्ति रही है कि; असली गांधीको पढो नहीं, किसीने जो बोलदिया उसको या तो स्वयंने कुछ गांधीजीके उपर सुनिश्चित और पूर्वनिश्चित तारतम्य निकाला उसके उपर ही बोलो.
जूठका एक नकली किला बनाओ … बोलो कि यही असली किला है. फिर उस नकली किलेको तोडो. लोगोंको बोलो कि हमने कैसे असली किला तोडा.

लेकिन इससे फायदा क्या …? यदि इससे फायदा भी है तो किसको फायदा?

ऐसे प्रश्न अवश्य उठते है. यह अवश्य संशोधनका विषय है. लेकिन वह हम बादमें देखेंगे कि इसका असर खास करके हिंदुओं पर और देशके उपर क्या पडने वाला है.
अभी तो हम कुछ चाचूओंको और बुआओंको देख लें. हम कभी “रोमीला थापर” जैसी बुआ, और “करण थापर” जैसे चाचूओंकी बात नहीं करेंगे, क्यों कि ऐसे लोग प्रमाणित देश द्रोही है.

आपको फिरसे एक बार बता देता हूंँ कि चाचूएं और बूआएं अनेक है. वैसे तो बुआएं कम है, लेकिन चाचूएं अगणित है.

हम किसीका नाम नहीं लेंगे. हमसे चर्चित बिंदुओंवाली (टोपिकवाली) टोपी/पगडी जिन चाचूओंको और बुआओंको फीट होती है तो वे लगाले. यदि उनको फीट नहीं भी होती है फिर भी जिन चाचूंओ और बुआओंको वह लगानी है तो भी वे लगा सकते है. हमे इससे कोई समस्या नहीं है.

आप कहोगे कि जो बुआएं है, वे कैसे टोपी/पगडी लगाएगी !!!

अरे भाईसाब, आज तो फर्जी सच बोलनेकी फैशन है. क्या यह असंभव नहीं है कि महिलाएं जूठ नहीं बोल सकतीं !

अब मुद्देकी बात करेंगे.

दो चाचू थे. एक बुआजी थीं.

तीनो एक विषय पर चर्चा कर रहे थे. उस चर्चामें जो भी कथन बोले जाते थे, और तारतम्य निकाले जाते थे उनमें ये तीनों, उन प्रस्तूतियोंका आनंद लेते थे.

संस्कृतका एक श्लोक याद आगया, मानो ऐसा लगता था;

ऊष्ट्राणां च गृहे लग्नं, गर्दभाः शांतिपाठकाः ।
परस्परं प्रशंसंते अहो रुपं अहो ध्वनिः ॥

ऊंटोंके घरमें लग्न हो और गधे शांति पाठ कर रहे हो
ये सब परस्पर एक दुसरेकी प्रशंसा कर रहे है; क्या मीठा आपका सूर है !!! … वाह क्या सुंदर रुप है … !!!

(इसको दो चाचू और एक बुआ तीनोंने जिन शब्दोंका चयन किया था उनमें उनकी परस्पर स्विकृतिके थी. इस बात पर कोई शक नही)

इन तीनोंका संवाद सूनके कोई एक बच्चूने उनको लिखा (संक्षिप्त) विस्तृत के लिये इस इमेलके संलग्न फाईल देखिये; या मुज़े इमेल करें, या यहां पर लिखें.

प्रिय चाचूएं और बुआजी,

आपके संवाद का शिर्षक है “गांधीसे मोह भंग”. आप तीनों परस्परके कथनोंसे संमत दिखाई देते है .

“चाचू – १”जी, आपने एम.के. गांधीकी हत्याको “गांधी-वध” शब्द से प्रस्तूत किया. “वध” शब्दका आपके द्वारा चयन होना यह दिखाता है कि जैसे “जयद्रथ वध”, “कंस वध”, “शिशुपाल वध” … हुआ वैसे “गांधी-वध” हुआ. क्या यह माता सरस्वति पर दुस्कर्म नही है?

फिर आपने “राष्ट्र पिता” शब्द जो गांधीजी के लिये कहा जाता है उसके उपर भी विरोध जताया. क्यों कि भारत तो हजारों साल पूराना राष्ट्र है. उसका पिता (उन्नीसवी शताब्दीका) गांधी कैसे हो सकता है?

आप जानते है इटलीके लिये राष्ट्रपिता कौन था? इटलीका राष्ट्रपिता “गेरीबाल्डी” था. आपका क्या कहेना है? इटली भी तो दो हजार सालसे अधिक पूराना है.

आप आगे आईए, और दिखाईए, कि, आपके हिसाबसे, सबसे प्रभावशाली मुद्दा कौनसा है, जिसके लिये गांधीजी ही सबसे अधिक जीम्मेवार है, और उससे देशको सबसे अधिक नुकशान हुआ है.

लिखित बच्चू

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(चाचू का उत्तर )

“गांधी की अहिंसा और राजनीति” और “गांधीके ब्रह्मचर्यके प्रयोग” ये दोनों बुक एक साल पहेले प्रकाशित हुई है. वे दोनों “कलेक्टेड वर्कस ओफ महात्मा गांधी पर आधारित है. इन पर आप क्षति निकालीये.

जो हमारी तीनोंकी चर्चामेंसे आपको एक भी बात अच्छी नहीं लगी तो आगे चर्चा व्यर्थ है.

लिखित चाचू
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फिर बच्चूने क्या लिखा?

बच्चूने प्रत्युत्तर लिखा

क्या आप “गांधी – वध” में “वध” शब्दके औचित्यको सिद्ध कर सकते है?

“राष्ट्र पिता” की परिभाषा पर आप प्रकाश डाल सकते हैं? “राष्ट्र पिता”का प्रणालीगत “पिता” के अतिरिक्त क्या अर्थ है?

मैं आपको “फलां फलां पुस्तक पढो,” ऐसा नहीं कहूंँगा.

मैं आपके साथ इन दो शब्द प्रयोग पर ही चर्चा करना चाहता हूंँ.

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चाचूने लिखा

मैंने न तो मेरी बुकमें “वध” शब्दका उपयोग किया है न तो मेरे लेखमें उपयोग किया है.
“राष्ट्रपिता” एक मूर्खता पूर्ण शब्द है.

यदि आप फिर भी आपके प्रश्नका उत्तर चाहते है तो निम्न दर्शित वीडीयो देखो.

“मैंने गांधीको क्यूंँ मारा”गोडसे का बचाव. कोएनराड एल्स्ट.
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बच्चूने लिखा

हमारी जो बात है वह “गांधीसे मोह भंग” वीडीयोमे आप तीनोंके  संवादकी बात है.

आपको “गांधीवध” और “राष्ट्रपिता” के मेरे प्रश्न पर उत्तर देना है.
आप द्वारा प्रेषित वीडीयोकी तो बात ही नहीं है.
यदि आप गांधीकी हत्याको उचित मानते है तो मेरे कुछ प्रश्न है;

“हांँ” या “ना” में उत्तर दजिये.

भाग-१

(१) कया आप गांधीजीके खून पर चल रही न्यायिक प्रक्रियामें जो बातें बताई, उन का अनुमोदन करते है?
(२) क्या आप गोडसेकी बातोंका अनुमोदन करते है?
(३)क्या गोडसेने जो बातें कही वे, और किसीको पता ही नहीं था?
(४) क्या गोडसे कोई खास गुप्तचर सेवा चलाता था जो सरकारसे चलती गुप्तचर सेवासे भी उत्कृष्ट थी?
(५) गोडसेने गांधीको मारनेका कारण बताया कि, गांधी ५५ करोड रुपया पाकिस्तानको दिलवानेके लिये आमरणांत उपवास पर बैठे थे. क्या इस बातका आप अनुमोदन करते है?

भाग-२

(१) न्यायाधीशने इस मतलबका कहा कि, “यदि मुज़े यहांँ उपस्थित जनताके बहुमतसे न्याय करना है तो मुज़े गोडसेको बरी कर देना है.” क्या आप मानते है कि न्याय देना बहुमतके आधारसे मान्य करना चाहिये?
(२) आप मानते है कि जिसके उपर (गांधी) आरोप है उसको सज़ा देनेसे पहेले उसको क्या कहेना है वह सूनना चाहिये?
(३) गोडसेने गांधीजीको सज़ा देनेसे पहेले गांधीजीको सूना था?
(४) क्या धारणाओंके आधार पर किसीको सजा देना योग्य है?

मैं मेरी बात दोहराता हूंँ. आप, अपने हिसाबसे, सबसे प्रभावशाली मुद्दा कौनसा है जिसके लिये, गांधीजी ही सबसे अधिक जीम्मेवार है और उससे देशको सबसे अधिक नुकशान हुआ है?

आपने जो वीडीयो “मैंने गांधीको क्यूंँ मारा”गोडसे का बचाव. कोएनराड एल्स्ट. भेजा है.

(मुझे, एक से एक संवाद चाहिये. मैं कुछ पूछुं और सामने वाला एक विडीयो भेज दे, जिसमें,  कोएनराड लिखित गांधीके जीवनका अपना नेरेटीव्ज़ भेजे, उसका कोई मतल ही नहीं. यदि आप बुकके पन्नोंके फोटोका वीडीयो बनाके भेजो और फिर कहो कि यह तो बुक है वीडीयो नहीं. ) यह कोई चर्चा नहीं है.
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चाचूने लिखा

आप वीडीयो और बुकका भेद समज़ते नहीं.

आप अतिरेक करते है वह समज़में नही आता.

आप शब्दोंके उपर विरोध करते है.

आपके साथ संवाद नहीं हो सकता.

मैं संवाद रोक देता हूंँ

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बच्चूने लिखा

“गांधीसे मोहभंग” वाला आपका तीनोंका संवाद एक कलाक तक सूना. आप तीनों हर बात पर एक दुसरेसे सहमत दिखाई देते थे, और सहमत है भी. किसीने किसीका किसी बातका विरोध नहीं किया है.

आपका संवाद अतार्किक था. मैंने दो शब्द-प्रयोगवाले दो कथन पकडे.

वे दोनों कथन, गांधीजी के उपरके आपके अभिप्राय को उजागर करते थे. उन पर चर्चाके लिये मैंने प्रश्न किये है.

उपसंहार

गांधी-विरोधीयोंमें एक प्रतिक्रिया समान रुपसे है कि, या तो विषयको बदल देना, या तो कोई लेख या विडीयो-लींक सामने वालेको दे देना. आपने वही किया. गांधी-विरोधीयोंको “वन टु वन” चर्चा करनेका कोई कष्ट लेना नहीं है.
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बुआ जी की बात;

गांधी-फोबिया पीडीतोंका दुसरा एक वीडीयो सामने आया.

इस वीडीयोमें एक यंग महिला, अपने हिसाबसे रामराज्यका विश्लेषण कर रही थी. और वही बुआजी, उसमेंसे, गांधीजीकी समज़ का रामराज्य पर, अपना अर्थघटन लगाके, गांधीजीकी बुराई करना चाहती थीं. बुआजी इसके लिये उत्सुक, एवं प्रयत्नशील रहती थीं. बुआजी, उस महिलाके शाब्दिक एवं अप्रच्छन्न समर्थनके लिये प्रयत्नशील रहती थीं.

महिला भी चालाक थी. जब बुआजी अपना उपद्रव गांधीके उपर दिखाती थीं, तब वह महिला मंद मंद मुस्कराती थीं. वह बुआजीका अपमान करना चाहती नहीं थीं ऐसा स्पष्ट दिखाई देता है.

बुआजी बार बार गांधीजीके रामको “पुतलावाला राम” स्थापित करना चाहती थी.

बुआजीने पुतलावाला राम शब्द कहांँसे निकाला? इस बातको तो राम ही जाने.

वाल्मिकीका राम लो, या तुलसीदासजीका राम लो, या गांधीजीके राम लो … तीनों पुरुष तो एक ही है. तीनो राम, दशरथ राजाके ज्येष्ठ पुत्र है. लेकिन रामके दो स्वरुप है.  एक ईश्वर और एक राजा राम.  वाल्मिकीके राम विष्णुके अवतार है. तुलसीदासके राम ब्रह्म स्वरुप है. और महात्मा गांधीके राम सबके हृदयमें रममाण परम तत्त्व है. जब “राजा राम” की बात होती है तब आदर्श राजा (शासक) की बात होती है. 

कुछ मुस्लिम लोग हिंदुओंकी बुराई करनेके लिये, हिंदुओंको बुत – परस्त कहेते हैं. संभव है कि, यह बुआजी भी गांधीजीको अपमानित करनेके लिये, गांधीजीके रामको “पुतलावाला राम” नामसे पहेचान करवाती है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – २

हमने गत अध्याय (चेप्टर)में देखा कि, नकली यदि एक व्यक्तित्त्व होता है, तो उसको जूठ/ विवादास्पद वर्णन/फर्जी/अर्ध सत्य/वितंडावाद प्रचारका सहारा लेके, असलीके रुपमें प्रदर्शित किया जाता है. क्यों कि उस सुनिश्चित व्यक्तिके व्यक्तित्वको नष्ट करना ही कुछ लोगोंका हेतु होता है. “नकली” व्यक्तित्त्व के निर्माताओं का आखरी हेतु एक नहीं किंतु, परस्पर भीन्न भीन्न, एवं प्रच्छन्न भी होता है.

तो चलो हम देखें चाचू, चाची, दादू, बच्चू, असली, नकली कैसे प्रदर्शित होते हैं !!!

आखिर इन लोगोंका ध्येय क्या है? ये लोग कौन है यह मुद्दा भी संशोधनका विषय है !!

ये लोग चाहते हैं कि जनता इन लोगोंके ध्येय सत्य, तथ्य, श्रेय … एवं विशुद्ध तर्क इन सबकी चचामें न पडें. इन लोग द्वारा जो पुरस्कृत होता है वह अपने आपमें परिपूर्ण है ऐसा मान लिया जाय, क्यों कि वे अंकल/आंटी/बुआ सेम या सारा है.

हमने “दुरात्मा गांधी एवं विनाश पुरुष मोदी” विषय के संदर्भमें गत ब्लोगमें इन लोगोंकी समज़ को देखा. उनके तर्क को देखा. उनके तारताम्योंको भी देखा.

उनकी मानसिकता यह है, कि वे जो संदर्भ प्रस्तूत करे उसको ही ग्राह्य समज़ना, विरोधीने जो संदर्भ प्रस्तूत किया उसके उपर ध्यान देना ही नहीं.

एक महानुभावने प्रचलित और तथा कथित कथन के समर्थनमॅ एक लेख लिखा. “मुस्लिम तुष्टीकरणका प्रारंभ गांधीजीने किया.”

मैंने लिखा कि आप एक मुद्दा बताओ कि जिससे आपका निष्कर्ष प्रमाणित हो जाय कि, गांधीजी मुस्लिमोंकी मार से डरते थे इसलिये उनका तूष्टिकरण किया करते थे.

न्यायिक अनिवार्यता

न्याय करने कि प्रक्रियाकी एक अनिवार्यता है, कि जब हम किसीके उपर आरोप लगावें और उसको सही भी मान ले तो उसके पूर्व हमारा धर्म बनता है कि जिसके उपर हमने आरोप लगाया है, उसको हम सूने कि उसको इस घटनाके बारेमें क्या कहेना है.

उसकी बातको सूनना चाहिये. फिर उसके कथन का तर्क संगत विश्लेषण करके, उसके उपर हमें निर्णय करना चाहिये.

उपरोक्त महानुभाव ने कोई उत्तर दिया नहीं. मैंने इन महानुभावके लेखके प्रथम दो पेरेग्राफ पढे. एकमें लिखा था “ मुस्लिमोंने द. आफ्रिकामें गांधीजीके आंदोलनको सपोर्ट नहीं किया था. वे उनसे नाराज थे.” मैंने उनको कहा कि गांधीजी कि आत्मकथामें मुझे ऐसा कोई उल्लेख मिला नही है.

ये महानुभावने अपने लेखके दुसरे पेरेग्राफमें बाबा साहेब आंबेडकर का कथन का उल्लेख किया है किया है कि गांधीजी मुसलमानोंकी मारसे डरते थे. इसलिये उनका तूष्टीकरण करते थे.

मैंने लेखक महाशयको दिखाया कि यदि गांधीजी मुस्लिमसे डरते थे यदि यह बात सही है तो गांधीजी ख्रिस्तीयोंसे भी डरना चाहिये. क्यों कि गांधीजी ख्रिस्ती मॉबसे भी पीटे गये थे. ख्रिस्ती मॉबने गांधीजी को इतना पीटा था कि उनको चक्कर आने लगे थे और वे खडा नहीं रह पाये थे. (गांधीजीकी ओटोबायोग्राफी भाग – ३, प्रकरण-३).

गांधीजी को एक मुस्लिमने यहां तक पीटा था कि वे मारकी पीडासे बेहोश हो गये थे. गांधीजीने इस प्रसंग से कहा है कि; ” जब मैं बेहोश था मेरी पीडा चली गयी. मैं समज़ता हूंँ कि आत्मा जब शरीरसे अलग होती है तो पीडाका दुःख नहीं होता. जब शरीरके साथ होती है तो पीडा होती है. इससे मेरी हिमतमें वृद्धि हो गयी. “(संदर्भ “कलेक्टेड वर्क ऑफ महात्मा गांधी भाग – ८ पेज १५५”).

लेखक महाशय को समज़ना चाहिये कि बाबा साहेब आंबेडकरने जो कहा वह उनका अभिप्राय था. अभिप्राय और एवीडंस (प्रमाण), दोनों भीन्न भीन्न है.

इतना सब प्रदर्शित करने पर भी लेखक महाशयने कहा कि लेखक महाशय स्वयंने उनके सभी तर्कोमें प्रमाण दिये है. और प्रतिपक्षवाला मैंने, एक भी प्रमाण दिया नहीं है.

इस तरह स्वयं गलत होने पर भी मुज़े गलत बताया.

क्या किसीको जूठा कहेना गली नहीं है? “जूठा” शब्द गाली नहीं है तो क्या है? अवश्य यह गाली ही है. यदि कोई व्यक्तिने संदर्भ प्रस्तूत किया है, और फिर भी उसको कहेना कि तुमने एक भी संदर्भ प्रस्तूत नहीं किया, तो “जूठा (गलत)” एक गाली ही है. गालीकी परिभाषा यही तो है.

लेखक महाशयने मेरे इ-मेलोंका उत्तर नहीं दिया.

चाचू, बच्चू, दादू, बुआ, चाची … संवाद श्रेणी के ब्लोग “दुरात्मा गांधी और विनाशपुरुष मोदी” में, अनेक चाचूओंके विषयमें लिखा है. एक टोपी, इन लेखक महाशयको फीट हो गयी. तो फिरसे ये महाशय मुज़े नयी (उम्रसे संबंधित) “बिनविवादास्पद सही गाली” दे कर भाग गये.

“महानुभाव बननेके लिये ये सब करना आवश्यक है”

संस्कृतमें एक श्लोक है, कि ;

“अकृतोपद्रव कश्चिद्‍ महानपि न पूज्यते” तो चाचूओंका तो क्या कहेना … ?

यदि आपको पूजनीय बनना है तो थोडा बहोत उपद्रव तो करना ही पडेगा.

गांधीजी हिंदु और मुस्लिमके बीच भेदभाव नहीं रखते थे. वे जो हिंदुओंको कहेते थे वही बात वे मुस्लिमोंको भी कहेते थे. कोंग्रेसी नेताओंके प्रति वे अवश्य भीन्न थे. लेकिन कई महाशय लोग, “इधरसे कुछ उठाओ, …  उधरसे कुछ उठाओ, … छूट पूट उठाओ …. फिर उनकी अपने हिसाबसे रचना बनाओ. और अपना ध्येय सिद्ध हुआ ऐसा मानो और मनवाओ.

एक जूठका एक नकली किला बनाओ … बोलो कि यही असली किला है. फिर उस नकली किलेको तोडो. लोगोंको बोलो कि हमने कैसे असली किला तोडा.

लेकिन इससे फायदा क्या?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – १

लोग हमें पूछते है …

बच्चू क्या है?

दादु क्या है?

चाचू क्या है?

चाची या आंटी क्या है?

असली, नकली किला क्या है? …

बच्चूसे मतलब है कोमन मेन

लेकिन कोमन मेनके बारेमें तो एक मूंँहावरा है कि कोमन सेंस इज़ कोमनली अनकोमन. [ common sense (the sense to understand common matters) is commonly (generally) uncommon. That means common men generally does not have common sense] यानी कि, सामान्यतः सामान्य बुद्धि (सामान्य बातोंको समज़ने वाली बुद्धि) , सामान्य व्यक्तिमें न होना सामान्य है.लेकिन यह तो शक्यताका सिद्धांत है. इसीलिये शक्यताके सिद्धांतके आधार पर असामान्यतः यानी कि सामान्यव्यक्तिमें सामान्यबुद्धि हो भी सकती है. हमारा यह बच्चू, सामान्यबुद्धि रखता है.

यह सामान्य बुद्धि है क्या?

पूरा विज्ञान, मतलब कि, भौतिक शास्त्र, सामान्य बुद्धि पर, अवलंबित है, जो सामान्य सिद्धांतोंके आधारके उपर असामान्य निष्कर्ष निकालता है.

ओके चलो. ये सब बादमें देखेंगे.

यह दादू क्या है

दादू से मतलब है “निष्णात”. सुज्ञ.महानुभाव, महापुरुष, सुचारुरुपसे सत्य, श्रेय और आनेवाली घटनाओंको, और उनकी असरोंको समज़नेवाला.

यह चाचू क्या है?

चाचूका मतलब है … जो स्वयंको (अपनी सोसीयल मीडीयावाली सामाजिक कवरेज के कारण) दादू समज़ता है वह चाचू है. “अंकल सेम” कौन है मालुम है?

हांँ जी, सूना है. “अंकल सेम” से मतलब है अमेरिका यानी कि यु.एस.ए. का राष्ट्रप्रमुख.

सही कहा. चाहे अंकल सेम किसीभी पार्टीका हो वह यदि यु.एस.ए.का प्रेसीडेंट बन गया, तो अंकलसेम स्वयंको विश्वका चाचा समज़ता है. वह पूरे विश्वके देशोंको सूचनाएं सलाह और एवं आदेश दे सकता है. उसी प्रकार यदि किसी व्यक्तिको अपनी योग्यतासे अधिक प्रसिद्धि मिल गयी हो तो वह अपनेको चाचू (अंकल सेम), समज़ने लगता है और अन्य सामान्य जन को बच्चू समज़ता है. जैसे कि फिलमके क्षेत्रके अभिनेता, निर्माता, वितरक, लेखक, … या तो वर्तमान पत्रके तंत्री, कोलमीस्ट्स, विश्लेषक, … एवॉर्डधारी, कोई संस्थाके पदधारी [कोंगीके पद धारी रा.गा., सोनिया, मीसेज़ प्रियंका वाईदरा (घांडी)] …

यह असली नकली किला क्या है?

“असली” यदि एक निर्माण/स्थापत्य है तो वह जिस प्रयोजनसे बना है या बनाया गया है वह असामान्यरुपसे शक्तिमान है. वह अनियत और प्रलंबित काल तक प्राकृतिक प्रहार सहन कर सकता है. कभी कभी असली यह भी होता है जो तूट कर भी फिर से बन जाता है. बार बार तूट कर बार बार बन जाता है. “असली”को बनानेमें कालमींढ पत्थर, चूना और पानीका उपयोग होता है. इन तीनोंसे मिलकर स्थापत्यका यथेच्छ आकार बनता है. चूना और पानी मिलकर प्रारंभमें केल्स्यम हाईड्रोक्साईड बनता है और समयांतरमें वह केल्स्यम कार्बोनेट पत्थर बन जाता है. कालमींढ पत्थर और केल्स्यम कार्बोनेट एकदुसरेके साथ एकजूट पत्थर जैसा बन जाता है. समय साथ वह मजबुतसे अतिमजबुत बनने लगता है.

यदि “असली” एक व्यक्तित्त्व है, तो वह तार्किक सिद्धांत/विचारधारा और आचार संहितासे बनता है. सिद्धांत/विचारधारा पर यदि “ कलुषित मानवजुथ सर्जित”, आक्रमण एवं विसंवादित विचार धाराओंके प्रहार होते हैं तो वह झेल सकता है. क्यों कि ये “मानव जुथ” वास्तवमें, परस्परमें भी और स्वयंमें भी विरोधाभासी एवं विसंवादी होते है.

नकली क्या होता है?

नकली एक “ प्रतिकृति” होती है. वह अस्थायी और कमजोर होती है. वह खास हेतुसे बनायी जाती है. उसको नष्ट करनेके लिये बनाया जाता है. उसको रेत, मीट्टी और तेल या पानीसे बनाया जाता है. रेतका उपयोग, प्रतिकृतिको कमजोर रखनेके लिये, किया जाता है, मीटी और पानी/तेल का उपयोग, रेतको चीपकाके, प्रतिकृति/ संरचनाको “असली”वाला आकार देनेके लिये होता है.

नकली यदि एक व्यक्तित्त्व होता है, तो उसको जूठ, विवादास्पद वर्णन/फर्जी/अर्ध सत्य और वितंडावादी प्रचारका सहारा लेके, असलीके रुपमें प्रदर्शित किया जाता है. क्यों कि उस सुनिश्चित व्यक्तिके व्यक्तित्वको नष्ट करना ही उनका हेतु होता है. “नकली” व्यक्तित्त्व के निर्माताओं का आखरी हेतु, परस्पर भीन्न भीन्न, एवं प्रच्छन्न भी होता है.

तो चलो हम देखें चाचू, चाची, दादू, बच्चू, असली, नकली कैसे प्रदर्शित होते हैं !!!

( क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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