“आपत्तिको अवसरमें बदलना हमें खूब आता है” ल्युटीयन नेता उवाच – (२)
याद करो, गत वर्षमें अन्य देशोंका क्या हाल था. वह कोरोना संक्रमणका प्रथम वेव था.
भारतमें कोरोना संक्रमणका दुसरा वेव
कोरोनाका दुसरा वेव (उछाल) जिनको कोम्युनीटी स्प्रेड कहा जाता था, वह भारतमें विलंबसे आया.
भारतमें कोम्युनीटी स्प्रेड आनेमें समय लगा.
क्यूँ कि मोदीने प्रारंभमें ही मध्यम अवधिका लॉकडाउन लगा दिया था, और उस लॉकडाउनको, धैर्यसे, धीरे धीरे अनलॉक किया.
इस समयके अंतर्गत हमारे डोक्टरोंने, फार्माकंपनीयोंने और संशोधन कर्ताओंने कोरोनाके गुणधर्मोंको पहेचाननेका समय मिल गया और उसको नष्ट करनेकी प्रक्रिया भी अवगत कर ली. उपकरणोंका और दवाईओंके उत्पादनका आयोजन भी बना लिया था. वे लोग वेक्सीनेशनके संशोधनमें भी जूट गये थे और अंतमें आविष्कार भी कर दिया.
कोरोनाका कोम्युनीटी प्रसारण की शक्यताका निर्मूलन किया जा सकता था यदि जिन राज्योंमें विधान सभा की अवधि खत्म हो गई थी, और उनके लिये चूनाव न करवाया जाता.
लेकिन हमारा विपक्ष हमेशा सरकारका विरोध करनेकी ही मानसिकता रखता है चाहे देशके लाखों लोग मर ही क्यूँ न जाय. गतवर्ष ये विपक्षी महानुभाव अर्थतंत्रकी कथा कथित स्तर पर चोधार अश्रुपात कर रहे थे.
जो अन्य मार्ग उपलब्ध था वह यह था कि अस्पतालें और उनके संलंग्न कर्मचारीगण (डॉक्टर सहित) अपना धर्म सुचारु रुपसे निभाते. और राज्य सरकार उनके उपर और जनताके उपर कठोर निगरानी रखतीं.
नरेन्द्र मोदी तो राज्योंके मुख्य मंत्रीके साथ कमसे कम हर मासमें एक वीडीयो कोन्फरन्ससे संवाद करता था. लेकिन राज्यके मुख्य मंत्री जहां पर कोंगीकी स्वयंकी या तो मिलीजुली सरकारें थीं उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया नहीं. ममता तो इन कोन्फरन्सोंमे उपस्थित भी नहीं होती थी. बेशरमीकी और उद्दंडताकी सीमा पार करना ममता का स्वभाव है.
राज्योंका का क्या कर्तव्य था?
सभी राज्योंकी प्रकृति भीन्न भीन्न है. इसी लिये प्रत्येक राज्यकी एक भीन्न वेबसईट और माहिति प्रणाली होनी चाहिये. इसके साथ उस राज्यके सभी प्राईवेट और सरकारी चिकित्सालय संमिलित होने चाहिये.
राज्योंकी सरकारके मुख्यमंत्रीओंका और स्वास्थ्य मंत्रीयोंका कर्तव्य था कि वे सातत्य रुपसे अपने राज्यके कोरोना ग्रस्त लोगोंकी संख्या, चिकीत्सालयोंकी आवश्यकताओं पर और चिकित्सालयोंकी कार्यप्रणाली पर नीगरानी (अनुश्रवण) रक्खें और समय समय पर आवश्यक सूचना और आदेश दें. एक सप्ताहमें कमसे कम दो बार जिला स्वस्थ्य अधिकारीयोंसे एवं बडे अस्पतालोंसे कोन्फरन्स करके संवाद करें
चिकीत्सालयोंकी संख्या हजारोंमें होती है. राज्यका स्वास्थ्यमंत्री इन हजारों चिकीत्सालयोंके साथ संवाद नहीं कर सकता. लेकिन वह अपने हर जिल्ला प्रशासनके आरोग्य अधिकारीके साथ संवाद कर सकता है.
चिकीत्सालयोंका क्या कर्तव्य था?
चाहे चिकित्सालय सरकारी हो या ट्रस्ट संचालित हो, उनको अपनी एक सक्षम वेब साईट प्रणाली रखना आवश्यक है. इस वेब साईट राज्य और जिले आरोग्य प्रशासनसे संलग्न हो, और उसमे हर प्रकारकी माहिति लाईव अपडेट रखना आवश्यक है. जिससे जिला स्वास्थ्य अधिकारी चिकित्सालयकी कार्यवाही पर दृष्टि रख सकें. चिकित्सालयकी आवश्यकता पर वह चिकित्सालय, अपने राज्यके स्वास्थ्य मंत्रालयको अवगत करवा सकें.
कौनसी माहिति महत्त्वपूर्ण है?
उदाहरणः
कोरोनाके दर्दी के बेड की संख्या,
कोरोना दर्दीकी सूचि और संख्या जिनको बेड उपलब्ध किया गया,
प्रवर्तमान कोरोना दर्दीके लिये आरक्षित खाली बेडकी सख्या,
कितने दर्दीको प्रवेशके लिये नकारा,
प्रति दर्दीका नकारनेका कारण
कितने दर्दीके आवेदन प्रतिक्षामें है, उनके क्रमकी सूचि.
प्रत्येक दर्दीकी पहेचान आधारकार्डके नंबरसे होगी,
औषधोंके वर्गीकरणके साथ;
प्रवर्तमान औषधोंका जत्था
हरेक औषधकी प्रतिदिनकी हर दर्दी पर औसत खपत, गत कल के हिसाबसे, परसोंके हिसाबसे, नरसोंके हिसाब से …. गत सप्ताहके हिसाबसे और गत ३० दिनके हिसाबसे … ,
औषधका प्राप्ति समय (सप्लाय पीरीयड),
औषधके प्राप्ति समयके अंतर्गत औषधकी औसत खपत
चिकित्सकोंका लीस्ट,
चिकित्सकके मददकर्ताओंके उनकी केडरके हिसाबसे लीस्ट
दर्दीका चिकित्सा रीपोर्ट;
हरेक दर्दी का चिकित्सा रीपोर्ट कार्ड जिसमें, दर्दी कैसे आया, आनेके समय पर उसकी स्थिति (ओक्सीजन लेवल, हार्ट बीट, प्रेसर आदि), उसको आबंटित बेड नंबर, दर्दीको देखनेवाला चिकित्सक, दी हुई दवाईयोंका नाम और जत्था, वजह, समय, देनेवालेका नाम केडर, और दर्दीकी स्थिति, ये सब होना चाहिये. दर्दीके रीपोर्ट कार्ड, दर्दीका नाम, आधारकार्ड के हिसाबसे होना आवश्यक है.
जब दर्दीका निष्कासन हो, तब उसकी स्थिति और प्रक्रिया यह सब भी होना अनिवार्य है.
न्याय तंत्र क्यों मौन है? संशोधनका और जाँच का विषय है?
न्यायतंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली अवयव पर मौन है.
वैसे तो न्याय तंत्र, राज्यको और केन्द्रको किसीभी घटना पर डांटनेका मौका छोडता नहीं है. ऐसा करके न्यायतंत्र अपनी संवेदनशीलता और सक्रियता दिखाता है. किन्तु निम्न लिखित सर्वाधिक प्रभावशाली अवयवका उल्लेख तक नही करता.
भारतका निवासी करदाता है. यदि वह गरीब नहीं है तो वह चिकित्सा भी पैसे दे कर करवाता है. भारतका निवासी परोक्ष या और अप्रत्यक्ष रुपसे सरकारको पैसा देता है.
यदि कोई भारतवासी व्यक्तिने चिकित्सालयमें चाहे सरकारी हो या प्राईवेट प्रवेश लिया तो उसका अधिकार बनता है कि उसके उपर जो चिकित्सा हो रही है वह उसको अवगत हो. अस्पताल (या चिकित्सक या अन्य चिकित्सा कर्मी) का व्यवहार पारदर्शी होना आवश्यक है.
यदि दर्दी अपनी अवस्थाके कारण स्वयं, ये सब माहिति मांगनेमें असमर्थ है तो उसके समीपी संबंधीको यह अधिकार दे सकता है. दर्दी अपने स्वास्थ्यके विषय पर अपने समीपी को अपने पास रख सकता है. वह अपना प्रवर्तमान (लाईव) रीपोर्ट अपने समीपी संबंधीको अवगत करवा सकता है. यह उसका केवल उपभोक्ता अधिकार ही किन्तु मौलिक अधिकार भी है. दर्दीके सामने एक सीसीटीवी केमेरा रखना चाहिये और दर्दीका लाईव रीपोर्ट वेब साईट पर होना अनिवार्य है.
दर्दीके उपरोक्त अधिकारके विरुद्ध चिकित्सालयों कि आपखुदी देखो ;
चिकित्सालय दर्दीकी स्थितिपर अपार्दर्शिता रखता है. यदि दर्दी मर भी गया तो उसको सेनीटाईज़ भी नहीं करतें है.
सरकार मृतदेहकी अंतीम क्रियाके स्थल और समय पर उपस्थित रहेनेवालोंकी संख्या पर भी नियंत्रण करती है. वास्तवमें सरकार और चिकित्सालयोंको प्रत्येक स्थितिमें संपूर्ण पारदर्शिता रखना चाहिये और सरकारको स्मशान को बार बार सेनीटाईज़ करना चाहिये.
न्यायालय, चिकित्सालय द्वारा दवाईयोंको प्राप्त करनेका काम दर्दीके उपर छोड देता है उसके उपर क्यूँ मौन और असंवेदन शील रहेता है? हम और क्या अपेक्षा, उससे रख सकते हैं?
दवाईयां प्राप्त करना चिकित्सालयका कर्तव्य है. इसमें जरा भी छूट नहीं देना चाहिये. हो सकता है कल ये चिकित्सालय, दर्दीके समीपी संबंधीयोंको बोले, हमारे पास ओक्सीजन नहीं है, आप लेके आओ, हमारे पास फलां कैंची नहीं है, हमारे पास फला चाकु नहीं है, हमारे पास फलां स्पाईक नहीं है, …. हम स्पेसीफीकेशन लिख देते है, आप वे सब लेके आओ. बेड, गदले, चद्दर, पीलो भी चिकित्सालय मंगवा सकता है
क्या न्यायालय ऐसा न करके चिकित्सालयोंको, चिकित्सकोंको और सरकारके स्वास्थ्य मंत्रालयके संबंधित कर्मीयोंको लूट का और कालाबज़ारीको छूट देना चाहता है. “लूटो और लूटने दो … किसका मुद्रालेख है!!!
शिरीष मोहनलाल दवे
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