अस्पतालोमें नवजात शिशुओंकी बदल जानेकी शक्यता कितनी है? – १
May 10, 2022 by smdave1940
अस्पतालोमें नवजात शिशुओंकी बदल जानेकी शक्यता कितनी है? – १
हम देखते हैं कि कभी कभी संतानकी प्रकृति माता-पितासे, किसी भी प्रकारसे मिलती जुलती नहीं है. तब इस बातके उपर अन्वेषण करना आवश्यक बन जाता है.

सामान्यतः पिताके गुण और माताके गुण संतानमें आते है. बच्चीयोंमे अधिकतर माताके गुण आते है. और बच्चोंमे पिताके गुण आते है. वैसे तो कई अवयव (फेक्टर) बच्चोंकी प्रकृति पर असर करता. बच्चोंकी प्रकृतिमें उनका अभिगम (टेंडंसी) पिताके डीएनए पर निर्भर है. मतलब कि, कौनसे विषय पर सोचना, कैसे सोचना, तर्क कैसे लगाना, ये सब, बच्चेके पिताके डीएनए पर एवं घटनाओं पर निर्भर है. यदि बालक पिताके साथ ही अपना काल व्यतीत करता है तो घटनाओंका असर एक समान रहेता है. उसी प्रकार बच्चीयोंके उपर माताकी प्रकृतिका प्रभाव अधिक रहता है. बच्चोंको माता-पिता के लिये कितना आदर है, उसका प्रभाव भी बच्चोंकी प्रकृति पर पडता है. यदि बच्चा अपने पिताके उपर अधिक आदर रखता है तो उसकी प्रकृति भी अपने पिताके समान होती है. यदि बच्चा किसी भी कारणसे (कभी कभी माताएं शिशुकी उपस्थितिमें अपने पतिके सामने झगडती है तो शिशु, क्यों कि, वह माता पर अवलंबित है, वह पिताके विरुद्ध हो जाता है. लेकिन जब वह बाल्यावस्थामें या तो किशोरावस्थामें पहोंचता तब उसको पता चलता है कि पिताजी सही है तो वह पिताके प्रति आदर रखता है. बच्चा जब तरुण अवस्थामें आता है तब उसको माताका स्त्री होनेके नाते सोचनेका तरिका भीन्न है इसका पता चल जाता है. वह माताका भी आदर करता है और माताको समज़ाता भी है.
पूराने जमानेमें बच्चेका जन्म दायन (दायी) करती थी. उस जमानेमें बच्चोंका फेरबदल शक्य नहीं था. यदि जानबुझ कर किया जाय वह अलग बात है. अंग्रेजोके शासनकालमें बच्चोंका अस्पतालमें जन्म होना प्रारंभ हुआ. अंग्रेज सरकार तो कानूनसे चलने वाली सरकार थी, इसलिये वह प्रक्रिया बनानेमें और उसके पालन करनेमें/करवानेमें सक्षम थी.
फिर आयी हमारी कोंगी सरकार. कोंगी कालमें बच्चोंका अस्पतालमें जन्म होना “सामान्य होना” प्रारंभ हुआ. लेकिन कोंगी सरकार के शिर्षनेतागण में ऐसी मानसिकता भी आने लगी कि यदि कानून अपने आप चलता है तो चलने दो. हम “नेता” मतलब कि, “अति-उच्च-शिर्षस्थ” नेताओंके लिये और उनके फरजंदोंके लिये एवं उनकी ईच्छापूर्तिके लिये, यदि, कानून एक अवरोध बनता है तो कानून की ऐसी तैसी.
जब सैयां बने कोतवाल, तो फिर कहेना क्या? अरे भैया, यह तो एक आम कानून पालनकी बात है. अस्पतालमें बच्चोंको जन्म देने वाले कानून की बात नहीं है. हाँ जी, अस्पतालमें बच्चेका जन्म होता है उसी क्षणसे लेकर, माता और बच्चा अस्पतालसे विदाय (सामान्यतः एक सप्ताह के बाद) लेता है तब तक उसकी एक कानूनी प्रणाली है. इससे बच्चोंका फेरबदल होना असंभव बनता है. लेकिन हम जो ठहरे कोंगी शासनके गुलाम. “हम” से मतलब है सामान्यतः अस्पतालमें कामकरनेवाले. क्षति तो हो भी सकती है. मुलायम सिंहने कहा था न! बच्चें है … गलती हो जाती है… तो अस्पतालका स्टाफ भी किसीके तो बच्चे होते ही है न!! यदि अब बच्चे नहीं है तो क्या हुआ !! उनके माता-पिताके लिये तो अब भी वे बच्चे ही है न!
मोतिलाल की संतान जवाहरलाल नहेरु थी. मोतिलाल नहेरु के पास आपकमाई थी. मोतिलालने सोचा कि मेरे बच्चे को बापकमाई से चल जायेगा. फिर भी प्रमाणपत्र तो चाहिये ही. उसके सिवा बुढा (एम. के. गांधीजी) मानेगा नही. इस लिये इसको बारीस्टरसे आगे कुछ पढाना पडेगा. मोतिलालने जवाहरको आई.सी.एस. की स्पर्धात्मक परीक्षाके लिये पढने को कहा. कई महानुभाव स्पर्धा एवं श्रममें मानते नहीं है. जवाहरलालजी फेल हो गये. मोतिलालने सोचा चलो “आई. सी.एस. फेल” भी तो एक अप्रमाणपत्रित प्रमाणपत्र है. जैसे नोन-मेट्रीक, नोन-ग्रेज्युएट. अब तो बुढा मान जायेगा. और वह मान भी गया. उनको १९२९ एवं १९३०में कोंग्रेसका प्रेसीडेंट भी बना दिया. “सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयंते”.
तो क्या जवाहरलाल, मोतिलालकी औरस (सही डी.एन.ए. वाली) संतान थी?
अरे भैया, जब किसीने ऐसा प्रश्न ही नहीं उठाया है तो हमें क्यों “गोबर पर बिच्छू चढाना”? [गोबर पर बिच्छू चढाना एक “गुजराती” मूँहावरा है. “छाणे वींछी चढाववो”] मतलबकी और आफत पैदा करके बढाना.
बाला ठाकरेको “हिंदुओंका हृदय सम्राट”का खिताब उनके भक्तों द्वारा दिया गया था. इस खिताबका प्रचार इस हदतक हुआ मानो वह समस्त भारतकी जनताने दिया हो.
चलो हमें कोई फर्क नहीं पडता यदि वह सही राह पर है. अलबत्त यह सही राह एक विवादका विषय है. किंतु हम इसमें पडना चाहते नहीं है. और मान लेते है कि बाला ठाकरे हिंदुओंके हृदय साम्राट थे.
बाला साहेब ठाकरेने एक पक्षकी स्थापना की. उसका नाम रक्खा शिव सेना (शिवाजी सेना). इसका नाम शिवसेना क्यूँ रक्खा गया, किस लिये स्थापना हुई और पर्दे के पीछे कौन कौन थे … इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. लेकिन बीसवी शताब्दीके अंतसे बीजेपीके साथ उसका गठ बंधन रहा.
२०१२से जब उद्धव ठाकरे जो बाला साहब ठाकरे के पुत्र थे वे शिवसेनाके प्रमुख यानी कि, उत्तराधिकारी बने, तो कालांतरमें उनकी भाषा बदलने लगी. वैसे तो शिव सेना और बीजेपीका गठबंधन था फिर भी शिवसेनाके कुछ नेताओंने अनापसनाप बोलना शुरु किया. जैसे कि, “जब चूनाव आता है तो बीजेपीको राममंदिर याद आता है.”
ऐसा क्यूँ? यदि शिवसेना बीजेपीका गठबंधनका साथी था तो उसको तो बीजेपीके मार्गको (जो न्यायालयाधिन था) एक साथी होनेके नाते सराहना चाहिये था. लेकिन यह साथी पक्ष तो कुछ उल्टा ही कर रहा था. २०१४के विधानसभाके चूनावमें बीजेपीको स्वयंको बहुमत मिला, तबसे तेज़ीसे शिवसेनाका रुख बदलने लगा. फिर भी बीजेपीने गठबंधन चालु रक्खा. बीजेपीने २०१९में भी चूनाव के समय भी गठबंधन चालु रक्खा. लेकिन इस समय चूनावके बाद, शिवसेनाने पल्टी मारी और बीजेपीके साथका जो गठ्जबंधन था वह तोड दिया.
ऐसा क्यूँ हुआ? वास्तवमें शिवसेनाकी जन्मदाता कोंगी थी. पहेले से ही, मुंबई भारतकी आर्थिक राजधानी थी. साम्यवादीयोंका लेबर युनीयनका बोलबाला था. दत्ता सामंतको हटाना था. कोंगीयोंको एक ऊंटकी आवश्यकता थी. तो उन्होंने मराठी माणुस की एक पार्टीकी स्थापना की जिसका हेतु दक्षिण भारतीयोंको हटानेका था. बात बहूत लंबी है. लेकिन बादमें शिवसेना ने हिंदुत्त्वका मास्क पहन लिया.
शिवसेना प्रारंभसे ही वास्तवमें हप्तावसुली पक्ष है.
जब वह बीजेपीके साथ गठबंधनमें आई और बीजेपी छोटे भाउ मेंसे बडा भाउ बन गया तो शिवसेनाकी हप्तावसुलीमें काफी कमी आ गयी. यह परिस्थिति शिवसेनाके लिये असह्य थी. शिवसेनाने मौके का लाभ उठाके शरद पवारकी एन.सी.पी. के साथ चूनावके पश्चात गठबंधन किया. शरद पवारने कोंगीको मना लिया.
आप देखते है कि दाउदके दो हाथ है. दांया हाथ और बायां हाथ. सोनीया सेना कोंगी उसका दायां हाथ है. और बायां हाथ शरद सेना एन.सी.पी. है. ये दोनों “एस.एस.” ही तो है. तो अब एक एस. एस. और ही सही. सीवेज सेना.
कोंगी और एन.सी.पी. पर्देके पीछे रहेकर इस सीवेज सेना (शिवसेना) को नचाते है. शिवसेना अब प्रदूषित पक्षोंके साथ गठबंधन करनेसे, अपने नामसे भी प्रदूषित सेना (सीवेज सेना) बन गयी है. उसने अपना घरवापसीका रास्ता नष्ट कर दिया है. उसको अब नाचनेमें कोई आपत्ति और विरोध नहीं. उसको केवल पैसा ही चाहिये और सत्ता इसलिये कि यदि सत्ता है तो कोई खतरा न आवे. सिद्धांत जाय भाडमें.
आप देखते है कि, ये तीन त्रेखड, जबसे सत्ता पर आये है उसी महीनेसे, उन्होंने बडे पैमाने पर हप्ता वसुली, चाहे वह सुरक्षा-प्रदान हप्ता वसुली, बार-डांस-हप्ता वसुली, पोस्टींग वसुली, अतिक्रमण हप्ता वसुली, असामाजिक कर्मोंके आँख मिचौली हप्ता वसुली, सुविधा वसुली … एवं प्रकीर्ण रकम वसुली (आपने फ्रीज़/एसी/सोफा/स्कुटर/कार लिया है. अच्छा किया. आप थोडा दानपूण्य भी कर दें. जो भी ठीक लगे… ₹ ५०१, ₹ १००१ … ₹ ५००१. हम चाहते है कि आप खूब तरक्की करें. आपने ट्रक/बस लिया है? उसकी सुरक्षाकी जीम्मेवारी लेना हमारा फर्ज बनता है. आप हमें प्रतिमास ₹ १००१ देतें रहे …) इनमेंसे कुछ तो उनकी पैदाशी प्रकृति है.
ये तीनों पक्ष नीपोटीज़मवाले है. नीपोटीज़म अतिआवश्यक है. क्यों कि ये विश्वासका मामला है. अपने पुत्र, पुत्री, भाई, भतीजे, मामा, भानजा … आदिको अपने गुटमें रक्खें तो विश्वास करना आसान बनता है.
बाला ठाकरे हिंदुओंके हृदय सम्राट थे. क्या यह बात एक बनावट थी? या वे भी अपने हृदयसे हिंदुप्रेमी थे? उद्धवजी तो ऐसे नहीं है.
नहेरु अपनेको जनतंत्रवादी मानते थे. उन्होंने १९५४में तत्कालिन पाकिस्तान के प्रमुखका फेडरल युनीयनका प्रस्ताव अपमान पूर्वक ठूकरा दिया था. यह कहकर कि पाकिस्तान एक लश्कर शासित देश है और भारत एक जनतांत्रिक देश है. उनको किसी पत्रकारने पूछा नहीं कि, रुस और चीन कैसे देश है! नहेरुका रुसके प्रति एवं चीन के प्रति जो प्रेम था वह काहेका था? इंदिरा गांधीने १९७५में क्या किया. वह तो पिताके पीछे परछांई कि तरह ही तो घूमा करती थी, ताकि जनतंत्रवादी नहेरु अपने कुकर्मोकों छूपानेके लिये अपनी सुपुत्रीको देशके प्रधानमंत्रीकी पोस्ट दायजेमें नहीं तो विरासतमें दे सकें. नहेरु अवश्य ही अपने दिवानखंडमें लटार मारते मारते बोलते होगे कि ये विपक्षको तो कारावासमें ठोक देना चाहिये, ये सर्वोदयकी बातें करने वाले गांधीवादीयोंकी संस्थाओं पर तो जाँच बैठा देनी चाहिये. …
ऐसा लगता है कि नहेरु दो मुखौटे वाले थे ही. यदि वे सर्वोदयवादी होते तो उनमे और इंदिराके बीच बनती ही नहीं. लेकिन हम जानते है कि इंदिराको अपने पितासे खूब बनती थी. क्यों कि वह अपने पतिको छोडकर अपने पिताके साथ ही सातत्यसे रहेती थी. इसलिये इंदिरा, जवाहरलाल नहेरुकी औरस (बायोलोजीकल – डी.एन.ए. वाली) संतान थी ही.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
Like this:
Like Loading...
Related
Posted in Social Issues | Leave a Comment
Leave a Reply