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Posts Tagged ‘किस मुद्दे पर विश्वास’

क्या भारतको गृहयुद्धके प्रति ले जा रहा है कोंगी पक्ष?

क्या भारतको गृहयुद्धके (आंतरिक युद्ध)के प्रति ले जा रहा है कोंगी पक्ष?

कुछ मुस्लिमनेता लोग यह प्रदर्शित करनेका प्रयत्न कर रहे कि भारतमें मुस्लिम सुरक्षित तो नहीं ही है, किन्तु नरेन्द्र मोदी और अमित शाहकी सरकार उनको येन केन प्रकारेण नागरिकता अधिकारसे विमुख करेगी. ऐसा भी हो सकता है कि मोदी सरकार हमें देशके बाहर निकाल दें.

वास्तविकता क्या है?

वैसे तो सारे मुस्लिम नेतागणको और मुस्लिमोंको बहेकाने वाले विपक्षी नेतागणोंको  वास्तविकता तो ज्ञात ही है कि मुस्लिम जनताको नागरिकतासे विमुख करने की बात या तो उनके कुछ अधिकारोंको हानि पहोंचाना …  ऐसा कुछ है ही नहीं.

उनको यह भी ज्ञात है कि, भारत एक उत्कृष्ट लोकशाहीवाला देश है, और मुस्लिम जनता जगतके अन्य देशोंकी अपेक्षा भारतमें मुस्लिम अति सुरक्षित है. भारतीय संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जो सर्वाधिक धर्मनिरपेक्ष है और हर धर्मके प्रति सद्‌भावना रखती है. उतना ही नहीं भारतीय हिन्दु जनता आवश्यकता से ही कहीं अधिक सहिष्णु और शांति प्रिय है.

मुस्लिम और ख्रीस्ती ( ख्रीस्ती से मतलब है आम ख्रीस्ती जनता नहीं, किन्तु केवल ख्रीस्तीयोंके धर्मगुरुलोग) जनताको यही बात अखरती है कि ऐसा क्यूँ  है?

इन भारतीय हिन्दुओंको गृहयुद्ध के प्रति कैसे उत्तेजित किया जाय!! हमने सदीयों तक इस भारत और इन हिन्दुओं के उपर शासन किया तथापि भारतमें हम, अपना बहुमत क्यों नहीं कर पायें? हम इन हिन्दुओंको हिंसा के लिये उत्तेजित करना ही पडेगा. मुस्लिम लोग तो गृहयुद्धके लिये आतुर है.

ये हिन्दु केवल कभी कभी हम अल्पसंख्यकोंके प्रति और खास करके मुस्लिमोंके प्रति, और कभी कभी ख्रीस्तीयोंके प्रति, कठोर शब्द प्रयोग कर लेते है. हम और हम जिनकी वॉट बेंक है, उनके नेता गण, इन कठोर शब्द प्रयोगको तोड मरोड कर, ये हिन्दु लोग अति असहिष्णु है वह सिद्ध करनेका प्रयत्न करते रहेते है. हम सर्वदा इन बातोंको ट्रोल करके ऐसी हवा उत्पन्न करते है कि, मोदी और बीजेपी कट्टरवादी है.

“यदि न.मो. की यह बीजेपी सरकार एक के बाद एक, हमने उत्पन्न की हुई पूरानी समस्याओंको, जिनको हम सुलझा नहीं सकें, उनको सुलझाया करेगा तो हमे मुश्किले हो सकती है. वैसे तो हम इन बातोंको लेकर भी उनकी निंदा करते है और ये लोग तानाशाही चलाते है ऐसा भी ट्रोल करते है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.

कोंगी और उनकी गेंग, जिनमें कटारीया (कटार लेखक = कोलमीस्ट्स) भी संमिलित है वे लोग सोचते हैं कि हम तटस्थ माने जाने वाले मूर्धन्योंको भी भ्रममें डाल देते है तो भी न.मो.के पक्षके और नेताओंके कान में जू तक नहीं रेंगती. तो अब गृह युद्ध कैसे करवाया जाय?

Gruha yuddha

क्या गृहयुद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं?

कोंगी और उसके सहयोगी सोचमें पडे है और उनको समज़में नहीं आता है कि क्या किया जाय?

हिंमते मर्दा तो मददे खुदा!!

दिल्ली पर तो कब्जा कर लिया. अब मीथ्या मुद्दोंको ट्रोल करते रहो. हमारे मूर्धन्य लोग पर जो तटस्थताका धून है उनका भरपूर लाभ लो.

निम्न लिखित मुद्दोंको ट्रोल करो. तटस्थताकी धून जिनके उपर सवार है वे मूर्धन्य हमें अवश्य मदद करेंगे.

विरोधी विचार कोई गद्दारी नहीं है  

“जे.एन.यु. के कुछ विद्यार्थी, वैसे तो वे गरीब है और ऐसे लोगोंके लिये ही तो हमने लंबा सोच कर जे.एन.यु.को बनाया था. पर्देके पीछे हमने साम्यवादी, अर्बन नक्षलवादी छात्रोंको भी प्रवेश दिया था या तो ऐसी विचारधारा बढानेके लिये प्रवेश दिया था. किन्तु ये बातें छोडो.

सर्वाधिक सरकारी सहाय पर अधार रखनेवाली संस्थामें विद्यार्थीकी अधिकतम अवधि कितनी होनी चाहिये?

“ऐसे प्रश्न मत उठाओ.  कथित विद्यार्थी २८ से ४० साल तक जे.एन.यु. में पढते रहे तो क्या हुआ?

“अरे भाई, मनुष्यको अपने आपको हमेशाके लिये विद्यार्थी ही तो समज़ना चाहिये. यदि उनके उच्चारणोंसे आप संमत नहीं होते है तो क्या हुआ? क्या आपसे कुछ भीन्न विचारधारा ही नहीं होनी चाहिये. आप तो बिलकुल नाज़ीवादी है.

“यदि जे.एन.यु. के या तो जामीया वालोंने या तो शाहीनबाग वालोंने निम्न लिखित बोला तो क्या हुआ?

(१) पाकिस्तान जिंदाबाद,

(२) हमें चाहिये आज़ादी,

(३) छीनकर लेंगे आज़ादी,

(४) कश्मिर मांगे आज़ादी,

(५) नोर्थ ईस्ट मांहे आजादी,

(६) भारत तेरे टूकडे होगे,

(७) अफज़ल हम शर्मींदा है, तेरे कातिल जिंदा है,

(८) घरघरसे अफज़ल निकलेगा,

(९) मोदीको डंडा मारेंगे,

(१०) मोदीको गोली मारेंगे,

(११) मोदी चोर है, मैं बोलुंगी मोदी, आप को उंची आवाज़से बोलना है “चोर है” बोलो बच्चों “मोदी” … “चोर है”.

और भी कई सूत्र है जो, जे.एन.यु., जामीया, अलीगढ आदि शिक्षण संस्थाओंके कुछ विद्यार्थीयोंने कई बार पूकारे है. शाहीन बाग के मार्गके कब्जा करने वालोंने ऐसे सूत्र पुकारते है.

“अरे सूत्रोच्चार करनेसे क्या होता है?

“किसीने किसीको मारा तो नहीं है. यदि मारा है, आग लागाई भी है, कोई जख्मी भी हुआ है, कोई मर भी गया है … तो क्या हुआ? यह तो लो एन्ड ओर्डरका प्रश्न है. हम तो अहिंसामें मानते है, देखो हमारे पास भारतका संविधान है, हम तो भारतका राष्ट्रगीत भी गाते हैं, हम तो महात्मा गांधीवादी है, हम तो अहिंसक है. अहिंसक विरोध करना हमारा अधिकार है, आप यदि हमारे विचारोंसे सहमत नहीं है तो क्या हुआ? क्या आपसे हमारा मत भीन्न है तो हम देशद्रोही बन गये? कमाल है यार, आप तो बडे नाझी विचारधारा वाले है.

केज्रीवालकी जित

(१) केज्रीवालजी दील्लीका चूनाव जीत गये. तो हमारे एक मूर्धन्य उनसे प्रभावित हो गये. क्यों कि बहूत सारे लोग मानते है कि जीतमें सत्य छीपा हुआ है.

वैसे तो सत्य कभी बहुमतसे सिद्ध नहीं होता. बहुमतसे सरकार बनती है और चलती है. इसका कोई विकल्प नहीं है. लेकिन वह सरकार समयकी सीमासे बद्ध है.

प्राचीन भारतमें सत्य क्या है वह ऋषियों पर छोड दिया जाता था. राजा अपने सुज्ञ ऋषियोंकी / मंत्रीमंडल की सलाह लेता था. विनोबा भावे कहेते हैं कि आचार्य लोग सत्यको समज़ायेंगे. वर्तमान समयमें न्यायका काम सुज्ञ, सक्षम और विद्वान न्यायाधीश लोग करते है.

ऐसे एक न्यायधीशनने गोडसेके उपर चले न्यायिक कार्यवाहीके बाद, न्याय घोषित करनेके पूर्व, कहा था कि “आप जो लोग यहां बैठे है उनके निर्णय के अनुसार यदि मुज़े निर्णय लेना होता तो मैं गोडसे को अपराधसे मूक्ति देकर “वह निर्दोष है” ऐसा निर्णय दे देता. किन्तु, न्याय देनेकी ऐसी प्रणाली स्थापित नहीं है. इस लिये मैं ऐसा नहीं कर सकता.”

(२) केज्रीवालजी अन्ना हजारेके साथ (सरकार विरुद्ध केस चालाने के लिये) लोकपाल की नियुक्तिके लिये आंदोलन कर रहे थे.

जब वे स्वयं सत्ता पर आये तो वे लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर सके. चलो यह बात तो छोडो.

केज्रीवालने कहा था कि मैं जब सत्ता पर आउंगा तो सभी निर्णय जनताको पूछ कर लूंगा. जब ये केज्रीवाल सत्ता पर आये तो उन्होंने नुक्कड पर कुछ लोगों को इकठ्ठे किये और उनसे पूछा “आप मेरे ‘क…ख… ग…’ निर्णयसे संमत है? यदि हां तो हाथ उठाईये. … यदि असहमत है तो हाथ मत उठाईए. …”, …. “हाथ उठानेवाले ज्यादा है … तो … मेरा निर्णय पास है…”    

अरे भाई केज्री, जनतंत्रमें क्या ऐसे निर्णय लिये जाते है? जनतंत्रमें निर्णय लेनेकि सुग्रथित प्रणालियां होती है. उनका तो कुछ खयाल करो.

(३) केज्रीवालजीने कहा था कि हमने चूनावके लिये जो प्रत्याषी घोषित किये थे उनकी हमने पूरी जांच की थी.

अरे भाई, यह तो ऐसी बात हुई कि राजिव गांधीको “मीस्टर क्लीन” की उपाधी कोंगीयोंने और समाचार माध्यमोंने दे दी थी. फिर क्या हुआ? … शाह बानो, बोफोर्स और सुरक्षा मंत्री को सरकारी चीठ्ठी लेके स्वीट्ज़रलेन्डमें भेजना की जांच शिघ्र नहीं चलाना…”

(४) जब जे.एन.यु. के विद्यार्थीयोंने देशविरोधी सूत्रोच्चार किये तो यह केज्रीवालजी और रा.गा.जी वहां पहूंच गये और उनसे कहा कि “आप आगे बढो, हम आपके साथ है…” (अब आप उपरोक्त सूत्रोच्चारोंमेंसे, १ से ८ तक पढो.) इन सूत्रोंसे सरकार, नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके नेता सहमत नहीं है. दुसरोंकी बात तो छोडो, आप ही बताओ कि, क्या ये देशप्रेमके सूत्र है या देश द्रोहके सूत्र हैं?

फिर देखो …  

(५) केज्रीवालजीने बोला था कि वे सरकारके हर निर्णयका विरोध करेंगे. क्यों कि “हमारा पक्ष एनार्की (अराजकता) उत्पन्न करनेमें मानता है”

यदि आप सुज्ञ है तो समज़ जाओगे कि यह सिद्धांत साम्यवादीयोंका है कि आप क्रांतिके लिये सर्व प्रथम हर तरहसे अराजकता पैदा करो.

(६) जब नरेन्द्र मोदी सरकारने आतंकवादीयों पर सकंजा कसा, और पत्थरका उत्तर ईंटसे देने लगी तो कुछ सुरक्षाकर्मी भी मरे. यानी कि, आतंकवादी हमलेमें कुछ जवान भी मरे, तो यह केज्रीवाल चीख चीख कर बोलने लगा था कि “ओ मोदी तुम यह बताओ कि तुम कितने जवानोंका भोग लेना चाहते हो… तुम्हारा दिल कब भरेगा? … तुम्हें शांति पाने के लिये कितना बलिदान चाहिये? …”

ये केज्रीवाल उन्ही लोगोंमेंसे है जिन्होंने आतंकवादियोंसे लड रहे हमारे जवानोंके उपर पत्थर फैंकने वालोंके समर्थनमें रहे थे. जब एक सेना-अफसरने जवानोंकी सुरक्षाके लिये एक पत्थरबाजको जीप पर बांधा और जवानोंको पत्थरबाजोंके हमले से बचाया तो इन नेताओंको पीडा होने लगी थी और उन पत्थरबाजों की सुरक्षाकी चिंता करने लगे थे.

(७) ये केज्रीवाल और कुछ लोग ऐसा सोचते है और मनवाते है कि, कश्मिर आज़ादि मांगे, और हममेंसे कोई उनको सपोर्ट करें, इसमें कोई बुराई नहीं है. क्यों कि हमारी अंग्रेज सरकारसे आज़ादीके आंदोलनको कई अंग्रेज लोगोंने भी समर्थन किया था. तब अंग्रेज सरकारको तो बुरा नहीं लगता था. तो हमारी सरकारसे यदि कश्मिरी लोग आज़ादी मांगे तो उसमें बुराई क्या है?

लेकिन इनकी मति भ्रष्ट है.

भारत और ब्रीटन समान नहीं थे. हमारा जनप्रतिनिधि ब्रीटीश संसदका प्रतिनिधि नहीं बनता था. कश्मिरसे चूना हुआ लोकसभाका सदस्य, भारतके केन्द्रीय मंत्रीमंडलका सदस्य भी बन सकता है और बना भी है और वह भी गृहमंत्री.

दो असमान राजकीय व्यवस्थाकी तुलना करना दिमागी दिवालियापन है. लेकिन क्या करें, हमारे मूर्धन्योंका ऐसा हाल है!!

गद्दारी कब माना जाता है?

वैसे तो पाकिस्तान जिंदाबाद कहेनेमें कोई बुराई या गद्दारी नहीं है. लेकिन किस परिस्थितिमें “पाकिस्तान जिंदाबाद” बोला जाता है इसके उपर, गद्दारी तय की जा सकती है.

 चीनने १९६२में भारतके उपर आक्रमण किया था. उस समय पश्चिम बंगालमें साम्यावादीयोंने एक जुलुस निकाला था कि “मुक्तिसेनाका स्वागत है”. क्या यह गद्दारी नहीं थी?

पाकिस्तानने भारत पर चार बार आक्रमण किया. उसको पता चल गया है कि भारतको वह प्रत्यक्ष युद्ध में जित नहीं सकता. इसलिये वह आतंकवादीयोंको घुसपैठ करवाके बोम्ब ब्लास्ट करवाता है. क्या आपमें अक्ल नहीं है कि यह भी एक युद्ध ही है. हाँ जी यह एक प्रच्छन्न युद्ध है.

ऐसे युद्ध के समयमें, पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाना गद्दारी नहीं है तो,  क्या है?

पृथ्विराज चौहान के राज्यमें यदि कोई महम्मद घोरी जिंदाबादके नारे लगावे, तो पृथ्विराज चौहान, उस नारेबाज़को गद्दार नहीं समज़ेगा क्या?

लेकिन हमारे तड-फड वाले मूर्धन्य भी मतिभ्रष्ट हो गये है.

वे बोलते है कि नरेन्द्र मोदी बोलता है कि “हम सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास”के लिये काम करते हैं. लेकिन नरेन्द्र मोदी सबका विश्वास नहीं जित पाया”. “तड-फड”वाले मूर्धन्य “नरेन्द्र मोदी, किसका विश्वास?” और “किस मुद्दे पर विश्वास” नहीं जित पाया उसके उपर मौन है. क्या यह सियासी मौन है?

नरेन्द्र मोदीको “किसका विश्वास” किस मुद्दे पर जितना है इस बातका यदि मूर्धन्यभाई विवरण करते तो आम जनताकी समज़में वृद्धि होती. लेकिन आम जनता की समज़में वृद्धि करना, एतत्कालिन समाचार माध्यमोंका धर्म नही रहा है. उनका धर्म तो अपना एजन्डा है, कि मोदी/बीजेपी सरकारके विरुद्ध हवा कैसे बनाना और जनताको भ्रमित कैसे करना.

अनिर्णायकता के कैदी

क्या कोंगी नेतागण और उनके सांस्कृतिक साथीयोंको संसदमें अपनी बात रखनेका समय नहीं दिया था? दिया ही था. वैसे तो CAA, NCR, NCP के उपर भूतकालमें कोंगी मंत्रीयोंने जो निवेदन दिये थे वे, जो नरेन्द्र मोदीने किया उनके समर्थन में ही थे. लेकिन वे अनिर्णायकताके कैदी थे. इसलिये उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया था. अब वे वितंडावाद करके विरोध करते है. क्यों कि उनका एजन्डा है “मत बेंक सलामत रक्खो”. इसलिये वे मुस्लिमोंको भी उकसाते है.

अधिकतम मुस्लिम लोग तो उकसनेके लिये तयार ही है.

“तड फड” वाले मूर्धन्य इस बातको कहेना चाहते है कि मोदीने इनको (कोंगीयोंको) विश्वासमें नहीं लिया?

“तड-फड” वाले मूर्धन्य यह भी कहेना चाहते है कि मोदीने मुस्लिमोंको विश्वासमें नहीं लिया.

क्या संसदमें कोई मुस्लिम वक्ताको बोलने नहीं दिया था? जो सियासत करने वाले मुस्लिम है वे सब ना समज़ है. क्या वे समज़ाने पर समज़ने वाले है? जो सोता है उसको तो जगाया जा सकता है. जो सोनेका ढोंग कर रहा है उसको क्या कोई जगा सकता है?

शाहीन बाग पर खास करके मुस्लिम महिलाएं मार्गका कब्जा करके प्रदर्शन करने बैठी है. ये महिलाएं, व्यक्तिगत रुपसे या बीस बीसके जुथमें भी संवाद करना नहीं चाहती, उनका प्रदर्शन गैर कानूनी है. उनका शाहीनबागके   मार्ग पर, बिना संवाद प्रदर्शन करना कोई असीमित अधिकार नहीं है, उनको कारावास भेजा जा सकता है, उनके उपर जूर्माना लगाया जा सकता है, उनके उपर कोमवाद को उकसानेका अपराध लागु किया जा सकता है, उनके उपर बच्चोंको पीडा देना और उनको गुमराह करनेका आरोप लगाया जा सकता है, उनके उपर कई क्रिमीनल केस भी लागु किया जा सकता है.

याद करो;

बाबा रामदेव और उनकी मांगके समर्थकोंने रामलीला मैदानमें प्रदर्शन किया था. उसमें उन्होंने कोई मार्गके उपर कब्जा किया था न तो यातायात रोका था. उन्होंने तो उस समयकी कोंगी सरकारसे प्रदर्शनके लिये अनुमति भी ली थी. उनकी मांगके समर्थनमें सर्वोच्च न्यायालयका आदेश भी था. तो भी कोंगी सरकारने मध्यरात्रीको पोलीस आक्रमण करके प्रदर्शन कारीयोंको मारपीट करके भगाया था. बाबा रामदेवको भी पीटा था. और यही कोंगी अपनेको तानाशाह के बदले लोकशाहीकी रक्षक, संविधानकी रक्षक और विरोधी सुरों की सहिष्णु बता रही है.

और इसके विपरित, शाहीनबाग, जामीया, अलीगढ आदिमें चल रहे प्रदर्शनकारी, जो संवादके लिये तयार नहीं है, मार्गका अवैध कब्जा करके बैठे है, आम जनताको असुविधा और आर्थिक नुकसान करते है तो भी ये केज्रीवाल और कोंगी लोग, मोदीको तानाशाह कहेते है और असंबद्ध “हम देखेंगे …” कविता पाठ करके अपनेको लोकशाहीवादी, गांधीवादी और अहिंसक मार्गी कहेते है. और हमारे मूर्धन्य ऐसे केज्रीवालोंसे, अर्बन नक्षलवादीयोंसे, फर्जी मानवाधिकार वादीयोंसे, कोंगीनेताओंसे मंत्र मुग्ध है.

यदि गांधीजी जिंदा होते तो आत्महत्या कर लेते.

जो लोग अपने को सुज्ञ मानते है उनको यह समज़ लेना चाहिये कि, जिस प्रकारसे विपक्षी मुस्लिम नेतागण बे-लगाम भाषाका उपयोग कर रहे है और कोंगी और उनके सांस्कृतिक पक्ष या तो मौन रहेते है या तो वितंडावादसे समर्थन करते है, तो उनका ध्येय एक ही हो सकता है कि वे भारतमें गृहयुद्ध हो.

क्यों कि गृहयुद्धके पश्चात्‌ ये लोग आसानीसे कह पायेंगे कि देखो हमने तो पहेलेसे ही कहा था कि मोदी तो कोमवादी, असहिष्णु और तानाशाह है. उसके शासनमें ही इन सभी प्र्कारकी अराजकता पैदा हुई. मोदीके कारण सबकुछ बिगडा. अब हमें फिरसे कमसे कम ७० साल तो शासन करना ही पडेगा तब हमारा देश १९९०की स्थिति पर पहोंचेगा.

आपको तो मालुम होगा ही १९९०में और उसके बाद १५ सालोंतक कोंगीने शासन किया, उस समय उन्होंने कश्मिरके गृहमंत्रीकी पुत्रीके और अन्योंके अपहरण (नाटक) करवाके, दो दर्जन आतंकवादीयोंको रीहा किया, हिन्दुओंके उपर असीम अत्याचार करवाये, हजारो हिन्दु स्त्रीयों पर रेप करवाया, हजारों हिन्दुओंका कत्ल करवाया, ५ लाख हिन्दुको अपने घरोंसे भगाया. कभी मुस्लिम अपराधीयोंके उपर कदम उठाना सोचा तक नहीं, ये कोंगी और उनके सांस्कृतिक सहयोगी कहेते है कि हमारे शासनमें तो सर्वत्र खुशहाली खुशहाली ही थी. कश्मिर और पूरे देशमें आनंद मंगल था. जो भी आतंकवादी हमले हुए वे तो सब भगवा आतंकवाद के कारण ही था. हमारे नेता रा.गा. जीने विदेशी डिप्लोमेटसे जो चिंता प्रगट की थी कि “देशको मुस्लिम आतंक वादसे कहीं अधिक भगवा आतंकवादसे डर है”, वह क्या जूठ था?

चाहे, महाविद्वान, प्रमाण पत्रधारी, महा नीतिमान श्रीमान राजराजेश्वर मनमोहन सिंहने ऐसा कहा हो कि “भारतके संसाधनों पर हिन्दुओंसे ज्यादा मुसलमानोंका हक्क है” तो भी, “सबका साथ सबका विकास (और सबका विश्वास)” कहेने वाला और उस प्रकारसे आचरण करनेवाला नरेन्द्र मोदी ही कोमवादी है.

ऐसा कहेनेवाले के उपर भी हमारे कई विश्वसनीय मूर्धन्य चूपकी साधे बैठे है तो समज़ना कि, मामला गंभीर है.

अब आपको सिर्फ यही समज़ना है “सावधान भारत”, छीपे हुए गद्दारोंसे, चाहे वे गद्दार ना समज़ भी हो और बादमें यदि जिंदा रहे तो पछताने वाले भी हो.

शिरीष मोहनलाल दवे

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