महाविस्फोट को कौन रोक सकता है? भाग-१
महाविस्फोटसे क्या अभिप्रेत है?
हिन्दु और मुस्लिमके बीचमें गृहयुद्ध यानी कि व्यापक दंगा.
इनको कौन रोक सकता है?
भारतमें सन १९४७से भी अधिक व्यापक दंगे होनेकी संभावना है. यदि आप सुज्ञ है और तथापि भी न मानने वालोंमेंसे है, तो आप व्यापक दंगा होने पर, अपनी मान्यता पर पश्चाताप करनेवाले है. या तो आपकी संतान आपकी मानसिकता पर थूंकेगी.
दंगा शब्द का हिन्दीमें (संस्कृतमें) पर्यायवाची शब्द नहीं है. उपद्रव शब्द है. किन्तु उपद्रव तो मच्छरोंका भी होता. वहां हम “दंगा” शब्दका प्रयोग नहीं कर सकते. एक शब्द है नरसंहार (जिसमें नारी भी समाविष्ट है). दंगा और नर संहारमें भीन्नता है. नरसंहार शब्द, कर्ता के अभावमें स्पष्ट नहीं होता. नरसंहार किसने किया, यानी कि, कर्ता कौन है यह प्रश्न उठता है. दंगा शब्द यह प्रदर्शित करता है कि दो जुथोंके बीच परस्पर संहार हुआ.
हमारा ध्येय इन प्रवर्तमान दंगोंके विषयमें चर्चा करनेका है.
हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीचमें दंगा भी होता है और मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओंका नरसंहार भी होता है. जब पानी सरसे उपर जाता है तो हिन्दु भी क्वचित् मुस्लिमोंका अल्प मात्रामें नरसंहार कर लेते हैं. शत प्रतिशत हिन्दु लोग, संत महात्मा नहीं बन सकते. और ऐसी अपेक्षा भी किसीको रखनी नहीं चाहिये.
भारतीय संस्कृतिका चरित्र
दंगा शब्दके समकक्ष शब्द भारतीय भाषामें न होना हिन्दुओंकी संस्कृतिकी शालिनता और उच्चता प्रदर्शित करता है. क्यों कि भारतीयोंके इतिहासमें कभी दंगा होता ही नहीं था. समाजकी व्यवस्था ही ऐसी थी कि सनातन धर्म के दो समुदायोंके बीच कभी हिंसक संघर्ष होता ही नहीं.
यदि हमें ऐसी घटना देखना है तो हमें रामके पूर्वकालमें जाना पडेगा, जब परशुरामने क्षत्रिय राजाओंके सामने युद्ध छेडा था. उन युद्धोंमे उन्होंने क्षत्रिय राजाओंको अव्हाहन करके युद्ध किया था और उनका कत्ल किया था. उनमें भी धार्मिक राजा जनक जैसे राजाओंको छोड दिया था. एक बात और भी है कि ब्राह्मणोंने बादमें अपना राज्य क्षत्रियोंको दे दिया था. भारतके इतिहासमें “दंगा”का पर्यायवाची या समकक्ष शब्द है ही नहीं.
मुस्लिम आक्रमणकारीयोंके आनेके पश्चात्, भारतमें नरसंहार शब्द जनतामें प्रचलित बना. क्यों कि मुस्लिम आक्रमणकारी सेना, अपनी जितके बाद पराजित राजाकी जनताको लूटती थीं और स्त्रीयोंके उपर अत्याचार करती थीं, स्त्रीयोंको गुलाम बनाती थीं और पुरुषोंका धर्म परिवर्तन या तो संहार करती थीं.
इतना सब कुछ होते हुए भी शेरशाह, अकबर, कुछ दाराशिकोह (जैसे विद्वान), बहादुर शाह जफर जैसे व्यक्तियोंके कारण १८५७ के अंतर्गत सब हिन्दु-मुस्लिम हिलमिल गये थे और वे दोनों साथ मिलकर अंग्रेजोंके सामने लडे थे. इस घटनाके विषयमें वितंडावाद हो सकता है.
१८५७के पश्चात् अंग्रेजोने मुस्लिम-बिनमुस्लिम, सवर्ण-असवर्ण, आर्य-अनार्य (द्र्विड) और फर्जी इतिहास पढाकर भारतदेशकी जनताको अनेक भागोंमे विभाजित किया. अंग्रेज शासकोंके एजन्डा और एजन्डाके ऐतिहासिक लिखित प्रमाण उपलब्ध भी है. अंग्रेजोंने भारतकी जनतामें विभाजन की एक सुक्ष्म दिवार बनाई और १९४७ आते आते एक कठोर वज्रसी दिवार बना दी गयी.
अंग्रेजोंने सिखोंको हिन्दुओंसे विभाजित किया. क्यों कि १८५७के संग्राममें सिखोंने अंग्रेजोंकी सहायता की थी. यानी कि वे, अंग्रेजोंकी तरफसे लडे थे. इसलिये अंग्रेजोंने केवल सिखोंको सेनाकी भरतीमें प्राथमिकता देना प्रारंभ किया. सिखोंको पढाया कि आप तो हिन्दुओंसे भीन्न है. खालिस्तानकी मांगकी कल्पनाका मूल यहां पर है.
ये सब चर्चा लंबी है. इसकी चर्चा अभी हम नहीं करेंगे.
आतंकवादकी उत्पत्ति
वैसे तो आतंकवाद अमेरिकाने चालु करवाया था. मुस्लिमोंको आतंकवादी बनानेका काम अमेरिकाने किया था. उन मुस्लिम आतंकवादीयोंको सहाय भी दी थी. और प्रायः अभी भी अमेरिका अपने मनपसंद आतंकवादी जुथोंको सहाय कर रहा है. किन्तु यदि आप सुज्ञ है, तो सुज्ञ होते ही आतंकवादके विरुद्ध हो सकते है. मुस्लिम लोग भी इस वास्तविकताको जानते है. किन्तु इसका नतीजा वे केवल यही निकालते है कि अमेरिका (युएसए) तो कमीना है. मुस्लिमोंके हर प्रकारके और स्तरके लोग, चाहे वे धर्मांध, धार्मिक, सुज्ञ, विद्वान, विश्लेषक … या कोई भी हो, यही मानते है, कि अमेरिकन सरकार कमीनी है. केवल तटस्थ और सुज्ञ लोग ही आतंकवादीयोंका विरोध करते है. ऐसा विरोध भी, वे लोग आवश्यकता और अनिवार्यता लगने पर ही करते है.
तटस्थ एवं सुज्ञ लोगोंमें भी आतंकवादके विरोधमें सक्रिय कितने हैं?
संभवतः आप अपनी अंगुलीयोंसे इन मुस्लिम व्यक्तियों की गणना कर सकते है.
वैसे तो आम जनता जो मध्यम वर्गी है वह मिलजुल कर रहेना चाहती है. तथापि वे आतंकवादीयोंके प्रति संवेदनशील है, यानी कि उनका आतंकवादीयोंके प्रति सोफ्ट कोर्नर रहेता है, उतना ही नहीं यदि इस्लाम सारी दुनियामें विस्तरित हो जाय तो उनसे वे आनंदित है. चाहे हिंसासे फैले तो भी.
हमारे कुछ मूर्धन्य और कई सारे समाचार माध्यमके स्वामी, हमेशा हिन्दुनेताओंके उच्चारणोंके विरुद्ध लिखकर हिन्दुओंको हिंसाके लिये परोक्ष रुपसे प्रेरित करते है. और वे ही लोग मुस्लिम नेताओंके, हिन्दुओंके प्रति तिरस्कार युक्त उच्चारणोंके उपर, मौन धारण करते है. इनको पता नहीं है कि विदेशोमें मुस्लिम लोबी पूराने समयसे सक्रिय है. और यही लोबी हमारे मोदी/बीजेपी –विरोधी नेताओंके उच्चारणोका आधार लेकर विदेशोंमें भारतकी वर्तमान सरकारकी विरुद्ध लिखती है और बीजेपीकी नीतियोंको हिन्दुवादी सरकार मानते है.
डी.बी. भाई (दिव्यभास्कर दैनिक) क्या लिखता है?
दिल्लीमें जो दंगे या नरसंहारकी घटनाएं हुई उनका कारण डीबीभाईके हिसाबसे निम्न नंबरवाले पेरा है.
कारणोंकी तर्क हीनता भी देख लो.
(१) कपिल मिश्राके ट्वीट द्वारा उच्चारणः “आम आदमी पक्ष” और “कोंगी” ने शाहीन बाग जैसे मीनी पाकिस्तान उत्पन्न किया है, तो उनके उत्तरमें हिन्दुस्तान खडा होगा.
शाहीनबाग क्या पाकिस्तान बना था? जि हाँ, वहाँ वे प्रदर्शनकारीयोंका कोई अधिकृत सदस्य अनुमति दे तभी कोई बाहरी व्यक्ति जा सकता था. कहेनेका तात्पर्य यह था कि वह एक भीन्न देशके समान आचरण था. वे सब मुस्लिम थे. पाकिस्तानका भारतके साथ दोघला मापदंड है. इसलिये उस क्षेत्रको पाकिस्तानकी उपमा दे दी. क्या सार्थक उपमा देना भी हिन्दुओका अपराध है? यदि कपिल मिश्राने “… हिन्दुस्थान खडा होगा …” कहा, तो क्या हुआ? यदि आप धर्मके नाम पर अपनी मांगे रखते है और चर्चाके लिये भी सज्ज नहीं तो यदि आप ही के तर्क के आधार पर ऐसा काम हिन्दु भी कर सकते है. और आप जानते है कि ऐसा करनेसे अराकता ही फैल सकती है. और देशको इससे नुकशान हो सकता है. कहेनेका तात्पर्य यह है कि आप मुस्लिम लोग अराजकता फैलानेमें मानते है क्यों कि आप जनतासे संवाद भी करना नहीं चाहते. और आप असीमित काल तक जनताको कष्टमें रखना चाहते हो.
(२) बीजेपीके मनीष चौधरीने कहा कि, “देशके गद्दारोंको गोली मारो.” यानी कि सरकारको गद्दरोंको गोली मारे ऐसा उनका कहेनेका अर्थ है.
यदि यह भी दंगे प्रेरित करनेका नारा है तो डीबी भाईने महात्मा गांधीको पढा नहीं है. महात्मा गांधीने स्वयं कहा था कि, यदि भारतमें रहनेवाला कोई मुसलमान, देशको वफादार नहीं रहा, तो भारत सरकार उसको गोली मारेगी.
(३) भाजपके दिलीप घोषने शाहीन बागके लोगोंको अशिक्षित कहा.
यह भी डीबीभाई को दंगा प्रेरित करनेका उच्चारण लगता है.
अरे भाई डीबी, यदि शाहीन बाग वाले बिना सोचे और बिना अन्योंकी कठीनायोंको लक्ष्यमें लिये मार्गके अवरोधक बन रहे है तो आपने संविधान ही नहीं पढा है.
क्या डीबीभाई भी यही मानते है कि शाहीन बागके प्रदर्शन वालोंका असीमित अधिकार है?
क्या आप ऐसा सोचते है कि दिलीप घोषका वक्तव्य इन लोगोंके अधिकारों पर आक्रमण है? क्या इस कारणसे इनका वक्तव्य भी मुस्लिमोंको दंगेके लिये उत्तेजित करनेवाला है?
डीबीभाई आप तो कमाल है!!
(३) डीबीभाई तो अपनेको तटस्थ मानते है, तो यह सिद्ध करनेके लिये उन्होंने वारिस पठानके कथनका भी उल्लेख किया कि शाहीन बागकी महिलाएं तो शेरनीयां है, और जब शेर आयेंगे तो इन हिन्दुओंका पसीना छूटा जायेगा.
अभी इस कथनका अर्थ डीबीभाई क्या निकालते है? डीबीभाईने इसके उपर विवरण नहीं दिया है.
किन्तु उपरोक्त कथनका संदेश यह है कि अय हिन्दु लोग, अब तो समज़ जाओ. अल्लाह बडा दयालु है. CAA, NRC और NRP, खतम करो. नही तो कत्लेआम होगा. अल्लहका फरमान है…
(४) कपिल मिश्राने यह कहा कि मुस्लिम लोग यह चाहते है कि दिल्लीमें आग लगी रहे. इसीलिये इन मुस्लिमोंने मार्गका यातायात बंद करवा दिया, ताकि दंगेका माहोल बना रहे. हमारा कहेना है हम तो (देशकी आबरुके खातिर जब तक ट्रम्प है हम शांत है लेकिन) उसके जानेके बाद हम पोलीसकी भी नहीं सूनेंगे.
इस कथनमेंसे यह भी संदेश है कि मुस्लिम लोग, आतायात को लगातार अवरोध करके विरोधकरनेवाला प्रदर्शन न करे. हरेक प्रदर्शन की सीमा होती. देशमें महामुल्यवान महेमान है इसलिये जनता देशहितके लिये यह सब सहन कर रही है. ऐसे असंवैधानिक प्रदर्शन यदि आप जारी रक्खेंगे तो जनता अपने स्वयंके संवैधानिक सुविधाके अधिकारकी प्राप्तिके लिये पूलीसकी अकर्तव्यताके कारण, जनता स्वयं पूलीसका कर्तव्य अपने हस्तक ले लेगी.
क्या इस संदेशकी संभावना नहीं है?
उत्तर है कि अवश्य यही संभावना है. जो लोग, नासमज़ के कारण या तो किसीके उकसानेके कारण, अन्य लोगोंको कष्ट दे रहे है, वे प्रदर्शनकारी लोग, यह बात जानते भी है. तो भी ये लोग अन्य लोगोंके कष्टको अपना शस्त्र बनाते है. इन लोगोंको उनके कर्मोंके के फलस्वरुप जो संभावनाएं है, उन संभावनाओंकी दीशामें अंगुली निर्देश करना एक सर्वोत्तम मार्ग है.
किन्तु हमारे डीबीभाई अपना दिमाग चलाना नहीं जानते ….
देशमें व्यापक दंगे करवाना और उसके लिये पूर्व निर्धारित रुपके दंगे हो सके, उसके लिये शाहीन बाग एक प्रयोग था. इस प्रयोगके हर परिबल के परिणाम पर अभ्यास करके आगामी महा कार्यकी परिकल्पनाको (प्रोजेक्टको) अंतीम स्वरुप दे सकेंगे. इससे हमारा हेतु सिद्ध होगा. और हम कारावास जानेसे बच सकेंगे.
हमारे डीबीभाईने आगे चलकर उपरोक्त घटनाके कारणको सशक्त बनानेके लिये कुछ हिंसक घटनाओंके लिये “रमखाण” शब्द का उपयोग किया है.
उन तथा कथित दंगोंकी केवल शिर्ष रेखा ही देख लें.
१९८४ सिख विरोधी तूफानः
(तूफान को आप दंगेका का पर्यायवाची शब्द समज़ सकते है)
उसका कारण था इन्दिराका खून. और फिर डीबीभाईने आरोपीयोंका नाम दिया है. लेकिन इस घटना पर न्यायिक जांच कब प्रारंभ हुई उसके उपर मौन रक्खा है. ऐसा क्यूँ?
अरे भाई, किसका नमक किस स्वरुपमें खाया है?
१९९१ बाबरी ध्वंसः कारण बाबरी मस्जिदका ध्वंस करना.
(यहां कौन मरे, और किसने मारे उसके उपर डीबीभाईका मौन)
जो आरोपी है वे आरोपी तो ध्वंसके आरोपी है. वे तो किसीको मारडालनेवाले है ही नहीं.
२००२ गुजरातके कोमी रमखाण.
डीबीभाई के हिसाबसे इसका कारण था गोधरा रेल्वेस्टेशन पर कुछ “असामाजिक” तत्वो द्वारा कुछ डीब्बे जला दिये. कितने यात्री जला दिये उसके उपर डीबीभाईने मौन रक्खा है.
यदि आप गुजरातकी इस घटनासे ज्ञात नहीं है तो आप ऐसा ही समज़ेंगे कि कुछ असामाजिक तत्त्वोंने रेल्वेको नुकशान करनेके लिये कुछ डीब्बे जला दिये होगे.
यदि आप इस घटनासे अवगत है तो इस घटनामें मुसलमानोंने, बाल, महिला सहित ५९ हिन्दुओंको जिन्दा जला दिया था .
“असामाजिक तत्व” शब्द प्रयोग में एक अप्रच्छन्न हेतु भी है.
क्या हेतु है?…
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे