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महाविस्फोट को कौन रोक सकता है? भाग-१

महाविस्फोटसे क्या अभिप्रेत है?

हिन्दु और मुस्लिमके बीचमें गृहयुद्ध यानी कि व्यापक दंगा.

MAHA VISFOT

इनको कौन रोक सकता है?

भारतमें सन १९४७से भी अधिक  व्यापक दंगे होनेकी संभावना है. यदि आप सुज्ञ है और तथापि भी न मानने वालोंमेंसे है, तो आप व्यापक दंगा होने पर, अपनी मान्यता पर पश्चाताप करनेवाले है. या तो आपकी संतान आपकी मानसिकता पर थूंकेगी.

दंगा शब्द का हिन्दीमें (संस्कृतमें) पर्यायवाची शब्द नहीं है. उपद्रव शब्द है. किन्तु उपद्रव तो मच्छरोंका भी होता. वहां हम “दंगा” शब्दका प्रयोग नहीं कर सकते. एक शब्द है नरसंहार (जिसमें नारी भी समाविष्ट है). दंगा और नर संहारमें भीन्नता है. नरसंहार शब्द, कर्ता के अभावमें स्पष्ट नहीं होता. नरसंहार किसने किया, यानी कि, कर्ता कौन  है यह प्रश्न उठता है. दंगा शब्द यह प्रदर्शित करता है कि दो जुथोंके बीच परस्पर संहार हुआ.

हमारा ध्येय इन प्रवर्तमान दंगोंके विषयमें चर्चा करनेका है.

हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीचमें दंगा भी होता है और मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओंका नरसंहार भी होता है. जब पानी सरसे उपर जाता है तो हिन्दु भी क्वचित्‌ मुस्लिमोंका अल्प मात्रामें नरसंहार कर लेते हैं. शत प्रतिशत हिन्दु लोग, संत महात्मा नहीं बन सकते. और ऐसी अपेक्षा भी किसीको रखनी नहीं चाहिये.

भारतीय संस्कृतिका चरित्र

दंगा शब्दके समकक्ष शब्द भारतीय भाषामें न होना हिन्दुओंकी संस्कृतिकी  शालिनता और उच्चता प्रदर्शित करता है. क्यों कि भारतीयोंके इतिहासमें कभी दंगा होता ही नहीं था. समाजकी व्यवस्था ही ऐसी थी कि सनातन धर्म के दो समुदायोंके बीच कभी हिंसक संघर्ष होता ही नहीं.

यदि हमें ऐसी घटना देखना है तो हमें रामके पूर्वकालमें जाना पडेगा, जब परशुरामने क्षत्रिय राजाओंके सामने युद्ध छेडा था. उन युद्धोंमे उन्होंने क्षत्रिय राजाओंको अव्हाहन करके  युद्ध किया था और उनका कत्ल किया था. उनमें भी धार्मिक राजा जनक जैसे राजाओंको छोड दिया था. एक बात और भी है कि ब्राह्मणोंने बादमें अपना राज्य क्षत्रियोंको दे दिया था. भारतके इतिहासमें “दंगा”का पर्यायवाची या समकक्ष  शब्द है ही नहीं.

मुस्लिम आक्रमणकारीयोंके आनेके पश्चात्‌, भारतमें नरसंहार शब्द जनतामें प्रचलित बना. क्यों कि मुस्लिम आक्रमणकारी सेना, अपनी जितके बाद पराजित राजाकी जनताको लूटती थीं और स्त्रीयोंके उपर अत्याचार करती थीं, स्त्रीयोंको गुलाम बनाती थीं और पुरुषोंका धर्म परिवर्तन या तो संहार करती थीं.

इतना सब कुछ होते हुए भी शेरशाह, अकबर, कुछ दाराशिकोह (जैसे विद्वान), बहादुर शाह जफर   जैसे  व्यक्तियोंके कारण १८५७ के अंतर्गत सब हिन्दु-मुस्लिम हिलमिल गये थे और वे दोनों साथ मिलकर अंग्रेजोंके सामने लडे थे. इस घटनाके विषयमें वितंडावाद हो सकता है.

१८५७के पश्चात्‍ अंग्रेजोने मुस्लिम-बिनमुस्लिम, सवर्ण-असवर्ण, आर्य-अनार्य (द्र्विड) और फर्जी इतिहास पढाकर भारतदेशकी जनताको अनेक भागोंमे विभाजित किया. अंग्रेज शासकोंके एजन्डा और एजन्डाके ऐतिहासिक लिखित प्रमाण उपलब्ध भी है. अंग्रेजोंने भारतकी जनतामें विभाजन की एक सुक्ष्म दिवार बनाई और १९४७ आते आते एक कठोर वज्रसी दिवार बना दी गयी.

अंग्रेजोंने सिखोंको हिन्दुओंसे विभाजित किया. क्यों कि १८५७के संग्राममें सिखोंने अंग्रेजोंकी सहायता की थी. यानी कि वे, अंग्रेजोंकी तरफसे लडे थे. इसलिये अंग्रेजोंने  केवल सिखोंको सेनाकी भरतीमें प्राथमिकता देना प्रारंभ किया. सिखोंको पढाया कि आप तो हिन्दुओंसे भीन्न है. खालिस्तानकी मांगकी कल्पनाका मूल यहां पर है.

ये सब चर्चा लंबी है. इसकी चर्चा अभी हम नहीं करेंगे.

आतंकवादकी उत्पत्ति

वैसे तो आतंकवाद अमेरिकाने चालु करवाया था. मुस्लिमोंको आतंकवादी बनानेका काम  अमेरिकाने किया था. उन मुस्लिम आतंकवादीयोंको  सहाय भी दी थी. और प्रायः अभी भी अमेरिका अपने मनपसंद आतंकवादी जुथोंको सहाय कर रहा है. किन्तु यदि आप सुज्ञ है, तो सुज्ञ होते ही आतंकवादके विरुद्ध हो सकते है. मुस्लिम लोग भी इस वास्तविकताको जानते है. किन्तु इसका नतीजा वे केवल यही निकालते है कि अमेरिका (युएसए) तो कमीना है. मुस्लिमोंके हर प्रकारके और स्तरके लोग, चाहे वे धर्मांध, धार्मिक, सुज्ञ, विद्वान, विश्लेषक … या कोई भी हो, यही मानते है, कि अमेरिकन सरकार कमीनी है. केवल तटस्थ और सुज्ञ लोग ही आतंकवादीयोंका विरोध करते है. ऐसा विरोध भी, वे लोग आवश्यकता और अनिवार्यता लगने पर ही करते है.

तटस्थ एवं सुज्ञ लोगोंमें भी आतंकवादके विरोधमें सक्रिय कितने हैं?

संभवतः आप अपनी अंगुलीयोंसे इन मुस्लिम व्यक्तियों की गणना कर सकते है.

वैसे तो आम जनता जो मध्यम वर्गी है वह मिलजुल कर रहेना चाहती है. तथापि वे आतंकवादीयोंके प्रति संवेदनशील है, यानी कि उनका आतंकवादीयोंके प्रति सोफ्ट कोर्नर रहेता है, उतना ही नहीं यदि इस्लाम सारी दुनियामें विस्तरित हो जाय तो उनसे वे आनंदित है. चाहे हिंसासे फैले तो भी.

हमारे कुछ मूर्धन्य और कई सारे समाचार माध्यमके स्वामी, हमेशा हिन्दुनेताओंके उच्चारणोंके विरुद्ध लिखकर हिन्दुओंको हिंसाके लिये परोक्ष रुपसे प्रेरित करते है. और वे ही लोग मुस्लिम नेताओंके, हिन्दुओंके प्रति तिरस्कार युक्त उच्चारणोंके उपर, मौन धारण करते है. इनको पता नहीं है कि विदेशोमें मुस्लिम लोबी पूराने समयसे सक्रिय है. और यही लोबी हमारे मोदी/बीजेपी –विरोधी नेताओंके उच्चारणोका आधार लेकर विदेशोंमें भारतकी वर्तमान सरकारकी विरुद्ध लिखती है और बीजेपीकी नीतियोंको हिन्दुवादी  सरकार मानते है.

डी.बी. भाई (दिव्यभास्कर दैनिक) क्या लिखता है?

दिल्लीमें जो दंगे या नरसंहारकी घटनाएं हुई उनका कारण डीबीभाईके हिसाबसे निम्न नंबरवाले पेरा है.

कारणोंकी तर्क हीनता भी देख लो.

(१) कपिल मिश्राके ट्वीट द्वारा उच्चारणः “आम आदमी पक्ष” और “कोंगी” ने शाहीन बाग जैसे मीनी पाकिस्तान उत्पन्न किया है,  तो उनके उत्तरमें हिन्दुस्तान खडा होगा.

शाहीनबाग क्या पाकिस्तान बना था? जि हाँ, वहाँ वे प्रदर्शनकारीयोंका कोई अधिकृत सदस्य  अनुमति दे तभी कोई बाहरी व्यक्ति जा सकता था. कहेनेका तात्पर्य यह था कि वह एक भीन्न देशके समान आचरण था. वे सब मुस्लिम थे. पाकिस्तानका भारतके साथ दोघला मापदंड है. इसलिये उस क्षेत्रको पाकिस्तानकी उपमा दे दी. क्या सार्थक उपमा देना भी हिन्दुओका अपराध है? यदि कपिल मिश्राने “… हिन्दुस्थान खडा होगा …” कहा, तो क्या हुआ? यदि आप धर्मके नाम पर अपनी मांगे रखते है और चर्चाके लिये भी सज्ज नहीं तो यदि आप ही के तर्क के आधार पर ऐसा काम हिन्दु भी कर सकते है.  और आप जानते है कि ऐसा करनेसे अराकता ही फैल सकती है. और देशको इससे नुकशान हो सकता है. कहेनेका तात्पर्य यह है कि आप मुस्लिम लोग अराजकता फैलानेमें मानते है क्यों कि आप जनतासे संवाद भी करना नहीं चाहते. और आप असीमित काल तक जनताको कष्टमें रखना चाहते हो.

(२) बीजेपीके मनीष चौधरीने कहा कि, “देशके गद्दारोंको गोली मारो.” यानी कि सरकारको गद्दरोंको गोली मारे ऐसा उनका कहेनेका अर्थ है.

यदि यह भी दंगे प्रेरित करनेका नारा है तो डीबी भाईने महात्मा गांधीको पढा नहीं है. महात्मा गांधीने स्वयं कहा  था कि, यदि भारतमें रहनेवाला कोई मुसलमान, देशको वफादार नहीं रहा, तो भारत  सरकार उसको गोली मारेगी.

(३) भाजपके दिलीप घोषने शाहीन बागके लोगोंको अशिक्षित कहा.

यह भी डीबीभाई को दंगा प्रेरित करनेका उच्चारण लगता है.

अरे भाई डीबी, यदि शाहीन बाग वाले बिना सोचे और बिना अन्योंकी कठीनायोंको लक्ष्यमें लिये मार्गके अवरोधक बन रहे है तो आपने संविधान ही नहीं पढा है.

क्या डीबीभाई भी यही मानते है कि शाहीन बागके प्रदर्शन वालोंका असीमित अधिकार है?

क्या आप ऐसा सोचते है कि दिलीप घोषका वक्तव्य इन लोगोंके अधिकारों पर आक्रमण है? क्या इस कारणसे इनका वक्तव्य भी मुस्लिमोंको दंगेके लिये उत्तेजित करनेवाला है?

डीबीभाई आप तो कमाल है!!

(३) डीबीभाई तो अपनेको तटस्थ मानते है, तो यह सिद्ध करनेके लिये उन्होंने वारिस पठानके कथनका भी उल्लेख किया कि शाहीन बागकी महिलाएं तो शेरनीयां है, और जब शेर आयेंगे तो इन हिन्दुओंका पसीना छूटा जायेगा.

अभी इस कथनका अर्थ डीबीभाई क्या निकालते है? डीबीभाईने इसके उपर विवरण नहीं दिया है.

किन्तु उपरोक्त कथनका संदेश यह है कि अय हिन्दु लोग, अब तो समज़ जाओ. अल्लाह बडा दयालु है.  CAA, NRC और NRP, खतम करो. नही तो कत्लेआम होगा. अल्लहका फरमान है…

(४) कपिल मिश्राने यह कहा कि मुस्लिम लोग यह चाहते है कि दिल्लीमें आग लगी रहे. इसीलिये इन मुस्लिमोंने मार्गका यातायात बंद करवा दिया, ताकि दंगेका माहोल बना रहे. हमारा कहेना है हम तो (देशकी आबरुके खातिर जब तक ट्रम्प है हम शांत है लेकिन) उसके जानेके बाद हम पोलीसकी भी नहीं सूनेंगे.

इस कथनमेंसे यह भी संदेश है कि मुस्लिम लोग, आतायात को लगातार अवरोध करके विरोधकरनेवाला प्रदर्शन न करे. हरेक प्रदर्शन की सीमा होती. देशमें महामुल्यवान  महेमान है इसलिये जनता देशहितके लिये यह सब सहन कर रही है. ऐसे असंवैधानिक प्रदर्शन यदि आप जारी रक्खेंगे तो जनता अपने स्वयंके संवैधानिक सुविधाके अधिकारकी प्राप्तिके लिये पूलीसकी अकर्तव्यताके कारण, जनता स्वयं पूलीसका कर्तव्य अपने हस्तक ले लेगी.

क्या इस संदेशकी संभावना नहीं है?

उत्तर है कि अवश्य यही संभावना है. जो लोग, नासमज़ के कारण या तो किसीके उकसानेके कारण, अन्य लोगोंको कष्ट दे रहे है, वे प्रदर्शनकारी लोग, यह बात जानते भी है. तो भी ये लोग अन्य लोगोंके कष्टको अपना शस्त्र बनाते है. इन लोगोंको उनके कर्मोंके के फलस्वरुप जो संभावनाएं है, उन संभावनाओंकी दीशामें अंगुली निर्देश करना एक सर्वोत्तम मार्ग है.

किन्तु हमारे डीबीभाई अपना दिमाग चलाना नहीं जानते ….

देशमें व्यापक दंगे करवाना और उसके लिये पूर्व निर्धारित रुपके दंगे हो सके, उसके लिये शाहीन बाग एक प्रयोग था. इस प्रयोगके हर परिबल के परिणाम पर अभ्यास करके आगामी महा कार्यकी परिकल्पनाको  (प्रोजेक्टको) अंतीम स्वरुप दे सकेंगे. इससे हमारा हेतु सिद्ध होगा. और हम कारावास जानेसे बच सकेंगे.

हमारे डीबीभाईने आगे चलकर उपरोक्त घटनाके कारणको सशक्त बनानेके लिये कुछ हिंसक घटनाओंके लिये “रमखाण” शब्द का उपयोग किया है.

उन तथा कथित दंगोंकी केवल शिर्ष रेखा ही देख लें.

१९८४ सिख विरोधी तूफानः

(तूफान को आप दंगेका का पर्यायवाची शब्द समज़ सकते है)

उसका कारण था इन्दिराका खून. और फिर डीबीभाईने आरोपीयोंका नाम दिया है. लेकिन इस घटना पर न्यायिक जांच कब प्रारंभ हुई उसके उपर मौन रक्खा है. ऐसा क्यूँ?

अरे भाई, किसका नमक किस स्वरुपमें खाया है?

१९९१ बाबरी ध्वंसः कारण बाबरी मस्जिदका ध्वंस करना.

(यहां कौन मरे, और किसने मारे उसके उपर डीबीभाईका मौन)

जो आरोपी है वे आरोपी तो ध्वंसके आरोपी है. वे तो किसीको मारडालनेवाले है ही नहीं.

२००२ गुजरातके कोमी रमखाण.

डीबीभाई के हिसाबसे इसका कारण था गोधरा रेल्वेस्टेशन पर कुछ “असामाजिक” तत्वो द्वारा कुछ डीब्बे जला दिये. कितने यात्री जला दिये उसके उपर डीबीभाईने मौन रक्खा है.

यदि आप गुजरातकी इस घटनासे ज्ञात नहीं है तो आप ऐसा ही समज़ेंगे कि कुछ असामाजिक तत्त्वोंने रेल्वेको नुकशान करनेके लिये कुछ डीब्बे जला दिये होगे.

यदि आप इस घटनासे अवगत है तो इस घटनामें मुसलमानोंने, बाल, महिला सहित ५९ हिन्दुओंको जिन्दा जला दिया था .

“असामाजिक तत्व” शब्द प्रयोग में एक अप्रच्छन्न हेतु भी है.

क्या हेतु है?…

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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पी.के. ने पीके किया नशा? कथांक – २

विश्वमें एक हिन्दु धर्म ऐसा है कि जिसमें विज्ञान जैसा खुलापन है. यह खुलापन हजारों सालसे है.

हिन्दु धर्ममें वेद प्रमाण है. किन्तु वेदोंको समझना कठिन है. इसलिये उपनिषद है. उपनिषद विशेषज्ञोंके लिये है. इस लिये कृष्ण भगवानने वेदोंके आधारपर उपनिषदोंका दोहन किया और उस दूधका दहीं बनाके तक्रका मंथन करके गीताके स्वरुपमें मक्खन बनाके आम जनताको प्रस्तूत किया. अगर गीतामें वेदोंके साथ कोई विरोधाभाष है तो वेद प्रमाण है. किन्तु वेदप्रमाण और प्रत्यक्ष प्रमाणमें यदि कोई विरोधाभाष है तो जो प्रत्यक्ष है वह प्रमाण है. ऐसा आदि शंकराचार्यने कहा है.

यह हिन्दुओंका खुलापन है. जब ज्ञातिप्रथा अत्यंत जड थी तब भी उसके विरुद्धमें विद्रोह उठाने वाले लोग थे. हिन्दु लोग अपनी प्रणालीयोंमें यदा कदा क्षति पाते है तो वे उन क्षतियोंको सुधारने के लिये सक्षम भी है. उसमें अन्य धर्मीयोंको चंचूपात करनेकी जरुरत नहीं है. अन्य धर्मी स्वयंकी क्षतियों पर आत्मखोज करें वह हि उनके लिये योग्य है.

पी. के. का उद्देश क्या था?
वास्तवमें पी. के. का उद्देश अंधश्रद्धा निर्मूलन है ही नहीं.
हिन्दु धर्ममें एक खुलापन होनेसे वह चर्चाके लिये एक आसान लक्ष्य बनता है. उसके विरोधियोंके लिये यह एक आनंदका विषय बनता है.
हिन्दु धर्म एक भीन्न प्रकारका धर्म है.

अन्य धर्मोंने अपने धर्मोंके आधार पर, धर्मकी जो परिभाषा की है, उस व्याख्या के अनुरुप हिन्दु धर्म नहीं है.

इस लिये अन्य धर्मी लोग हतःप्रभः है.
ये विधर्मी जहां कहीं भी गये उन्होने सौ वर्ष के अंतर्गत उन देशोंके ९५ से १०० प्रतिशतको अपने धर्ममें परिवर्तित कर दिये. किन्तु भारतवर्ष जहां विधर्मी जातियोंनें २०० से ८०० साल तक शासन किया तो भी ८० प्रतिशत भारतवासी हिन्दु धर्मी ही रहे. हिन्दुंओंकी तथा कथित क्षतियों को भरपूर हवा देने पर भी वे हिन्दु ही रहे. यह बात इन लोगोंके लिये आघातजनक है. ये लोग आत्म खोज करने के स्थान पर, बिना सोचे समझे, और बिना हिन्दु धर्मकी गहनताका अभ्यास किये, हिन्दुओंके आचार पर आक्रमण करना पसंद करते है.
सामान्य जनतामें धर्म, ज्ञान के उपर चलता नहीं है किन्तु श्रद्धाके आधार पर चलता है. इन अन्य धर्मीयोंकी व्युह रचना यह है कि अगर सामान्य जनताको हिन्दु धर्मके ज्ञानीयोंसे अलग की जाय तो फिर संख्या के आधार पर इन ज्ञानी लोगोंसे तो निपटा जा सकता है.

मुस्लिमोंने ६०० वर्षतक हिन्दु राजाओंसे संघर्ष किया. ऐसा करते करते वे खुद आधे हिन्दु बन गये. जो मुस्लिम राजा आधे हिन्दु नहीं बने और धर्मांध भी थे उन्होने गरीबोंको और आशितोंको मुस्लिम बनानेके प्रयास किये. कुछ लोगों पर जबरदस्ती भी की, हत्याएं भी की, थोडे सफल भी रहे. किन्तु जितना वे अन्य देशोमें सफल हुए उतना यहां नहीं हो पाये.
इस बातका मुस्लिमोंको अफसोस भी नहीं था. क्यों कि ६०० वर्षके अंतरालमें खुदका राज बचाने की नौबत उनको आगयीं थीं. जब औरंगझेब मृत्युशैया पर था तब मुगल साम्राज्य तहस नहस हो गया था.
अंग्रेजोंने कूट नीति चलायी. भारतीयोंको गलत और विभाजनवादी इतिहास पढाया. अंग्रेजी भाषाको भारतीयों पर ठोक दी. अंग्रेजी भाषाके जाननेवालोंको नौकरीयोंकी सुविधाएं दी. उनका मान बढाया. पाश्चात्य शिक्षाको ही स्विकृति दी. हिन्दुधर्म के पुरस्कर्ताओंको धर्मांध ठहेराया. हिन्दुओंके लिखे पुस्तकोंको सर्वांश नकार दिया.
इतना करने के बावजुद भी, हिन्दुओंके सामने इन लोगोंकी पराजय हर मोड पर निश्चित थी. उन्होने ऐसे हाथोंमें स्वतंत्र भारतका सुकान दिया कि जो संस्कारमें उनकी योजना आगे चलायें.

वह था नहेरु.

उसने विभाजन वादी प्रक्रियाएं चालु रक्खी. और पाश्चात्य पंडितोंने लिखा हुआ इतिहास भी चालु रक्खा. हिन्दुओंको अपमानित करना चालु रक्खा. मुसलमानोमें यह भावना रक्खी की वे हिन्दुओंसे भीन्न है.

मुसलमान समझने लगे कि उनका इतिहास अधुरा है. ख्रिस्ती भी ऐसा समझने लगे कि उनका इतिहास भी भारतमें अधुरा है. क्यों कि दोनों भारत को ९५-१०० प्रतिशत अ-हिन्दु कर नहीं पाये.

मुसलमानोंका इतिहास क्या है?
जहां भी उनका शासन हुआ वहां उन्होने १०० प्रतिशत जनताका धर्म परिवर्तन किया और सबको मुस्लिम बना दिया. यहां तक कि ईजिप्त, सुमेरु बेबीलोनकी सुसंस्कृत संस्कृतियोंका पतन किया. उनके धर्मस्थानोंको तोड दिया. उन धर्मस्थानोंके उपर अपने धर्मस्थान बनाये. वहांकी जनताका जबरदस्तीसे धर्म परिवर्तन किया. मुस्लिम शासकोंने हर जगह ऐसा ही किया था. भारतमें भी उन्होने हजारों देवस्थानोंको नष्ट किया. नालंदा, तक्षशीला, वलभीपुर जैसे विश्वविद्यालयोंको भी पूरी तरह नष्ट किया था. किन्तु भारतमें कई राजाओंने उनको पराजित किया इस लिये वे अपने ध्येयमें १०० प्रतिशत सफल नहीं रहे.

ख्रिस्ती शासकोंने क्या किया?
उन्होनें वही किया जो मुस्लिमोंने आतंकवादी बनके अन्यत्र किया था. उसके उपरांत ख्रिस्ती शासकोंने वहांके आदिवासीयोंका करोडोंकी संख्यामें कत्ल किया. उनकी भाषा भी नष्ट की. आज अमेरिकाके बचे हुए आदिवासी सब ख्रिस्ती है. उनकी मूल भाषा भी विलुप्त हो गयी है. माया-संस्कृतिका और उस धर्मको माननेवालोंका एक आदमी आपको कहीं भी मिलेगा नहीं. केवल इतिहासके पन्नों पर माया संस्कृति और उसकी भाषा आपको मिलेगी.

THEY ARE ENDED UP

किसी भी संस्कृतिको अगर नष्ट करना है तो उसकी भाषा, प्रणालीयां और धर्मस्थानोंको नष्ट करदो तो वह अपने आप नष्ट हो जायेगी.

भारतमें अब तक नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन था. इन्होने हिन्दु धर्मको धर्म निरपेक्षताके नाम पर कई सारे आघात किये. जो विधर्मी शासकोंने भारत पर शतकों वर्ष तक शासन किया था उनके धर्मको माननेवालोंको रीयायतें दी. वे लोग हिन्दुओंका धर्म परिवर्तन कर सके, उसके लिये भी सुविधायें दी. उनके लिये अलग नागरिक नियम बनायें. बहारसे पैसे लाके ये विधर्मी लोग भारतीय जंगलवासीयोंको, पर्वतवासीयोंको और समूद्रके किनारेके वासीयोंको हिन्दुमेंसे परधर्मी कर सके उसके लिये सुविधायें दी.
अगर कोई विधर्मी, हिन्दु धर्मके विरुद्ध बोलें, तो सरकारका रवैया रहा कि, भारत तो, एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है इसलिये सरकार उसमें दखल नहीं करेगी. वाणीस्वातंत्र्य और अपने धर्मका प्रचार करना विधर्मीयोंका अधिकार माना गया. लेकिन कोइ हिन्दु अगर ऐसा कुछ करें तो उसको धर्मांध कहेना, उसकी हर बातको भगवाकरण मानना, और उसकी निंदा करना एक फेशन मनवायी गयी. भगवाकरण शब्दको गाली के रुपमें प्रस्तूत किया ग्या. आदि आदि
हिन्दुओंको नष्ट करनेका अब यही एक उपाय बचा है कि, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको असंजसमें डालो, अपमानित करो, उनकी यातनाओंकोके प्रति दूर्लक्ष्य दो, विभाजित करो.

जो मूर्धन्य है उनमेंसे अधिकतरोंको तो भ्रष्ट करना आसान है. बाकि जो हिन्दु बचें, उनके विरुद्धमें विवाद खडा करके बदनाम किया जायेगा तो वे तो वैसे ही आम जनताकी नजरोंमेंसे गीर जायेंगे. नरेन्द्र मोदीको क्या किया गया? उसके इतिहास के संदर्भमें दिये गये उदाहरणोंको तोडमोड के प्रदर्शित किया गया, और उनको खुब उछाला. उसकी अंग्रेजी भाषाके उपर बेवजह ही मजाक उडाया. वह अगर किसी बात पर प्राथमिकता दें तो उसके उपर विवाद खडा किया जाता है.

एक बार अगर हिन्दु जनसंख्या ६० प्रतिशत हो जाय तो फिर उनको नष्ट करना आसान है.

सत्तालोलुप विधर्मीयों जिनमें कुछ प्रच्छन्न विधर्मी भी है, उनके लिये यह तो बायें हाथ का खेल है. क्यों कि विधर्मी ख्रिस्ती और मुस्लिम संस्कारमें तो एक समान ही है. दोनों समझते है कि उनका ही धर्म ईश्वरको मंजुर है. और विधर्मीयोंको किसीभी साधनसे नष्ट करना ईश्वरको मंजुर है.

फिलहाल विधर्मीयोंने भारतके कई राज्योंमें अपने बहुमत वाले टापु बना दिये है. ये लोग उनमें बसे हिन्दुओंके उपर आतंक करके उनका धर्म परिवर्तन कर देते हैं. अगर उन्होने धर्म परिवर्तन नहीं किया तो उनको घर छोडके भाग जाने पर मजबुर कर देते हैं. केराला, तामिलनाडु, पश्चिम बंगालके कई कस्बोंका यही हाल है. उत्तरपूर्वी राज्यों पर तो इन्होंनें कबजा जमा ही लिया है.

भारतका सामान्य जन विधर्मीयोंके इस प्रकारके आचारोंसे अज्ञात है. क्यों?

क्यों कि,

समाचार माध्यमों पर इन विधर्मीयोंका कब्जा है.

विधर्मी संचालित समाचार माध्यम अपने धर्मकी आतंकवादकी घटनाओंको प्रसारित करते नहीं है.
कश्मिरके हिन्दुओंके उपर किये गये आतंकको किस चेनलने प्रमाणके आधार पर प्रसारित किया था या किया है? एक भी नही.
विधर्मीयोंका आतंकवाद आज भी चालु है.
लेकिन कौनसी चेनल हिन्दुओंके मानव अधिकारकी रक्षाके लिये जागृत है? प्रमाण भान रखना और विधर्मीयोंके मानव अधिकारको मान्यता देना, इन बातोंमें ये मुस्लिम और ख्रिस्ती लोग मानते ही नहीं है.
एक बात सही है कि सामान्य ख्रिस्ती लोग, हिन्दुओंके विरुद्ध वाचाल नहीं है. वे अलग वसाहत नहीं बनाते है और हमारी ही कोलोनीमें हमारी पडोसमें ही रहेते है और हमसे तदृप होके रहेते है. लेकिन उनके जो मूर्धन्य और धर्मगुरु होते है वे सक्रीय होते है. वे लोग अपनी सामान्य जनताको यही कहेते है कि आप लोग, सिर्फ हम कहें उनको ही, चूनावमें वॉट दो. बाकीका काम हम कर देंगे.

मुस्लिमोंको सही रस्ते पर लाना शायद शक्य हो सकता है. किन्तु ख्रिस्तीयोंको सही मार्ग पर लाना कठिन है. क्यों कि उनको तो समझाया गया है कि आपका उद्धार तो हमने ही किया है. इन भारतवासीयोंने तो आपको हाजारों सालों तक यातनाएं ही दी है. क्यों कि वे हिन्दु है.

आप जरुर कहेंगे कि, पी. के. जिन हिन्दुओंने देखी है उनमेंसे कई हिन्दुओंने उसकी प्रशंसा की है. उसका क्या?

यदि आप प्रशंसा करनेवालोंका वर्गीकाण करेंगे तो उसमें दो प्रकारके लोग है. एक सामान्य कक्षाके लोग, जिनमें कुछ लोगोंका एक स्वभाव होता है कि किसी भी बात को “एक साक्षीभाव”के रुपमें देखें.
जब ऐसा होता है और जब उनको हिन्दु धर्मका शास्त्रीय ज्ञान नहीं होता है तो ये सामान्य लोग, दुसरोंकी व्युह रचनाएं नहीं समझ सकते और व्युहरचना करने वालोंका हेतु भी समझ नहीं सकते. अगर उनमें प्रमाणिक प्रज्ञा और प्राथमिकताती प्रज्ञा होती तो वे व्युह रचना बनानेवालों की व्युह रचना समझ सकते.

आप कहेंगे कि, कुछ मूर्धन्योंने भी तो, पी. के. की प्रशंसा की है, जैसे कि एल के अडवाणी. उसका क्या?
आपकी बात सही है. लेकिन आपको ज्ञात होना चाहिये कि दंभी धर्मनिरेक्षता करनेवालोंने एक ऐसी हवा प्रसारित की है कि, अडवाणी एक सोफ्ट और धर्मनिरपेक्ष नेता है. भारतको एक सोफ्ट नेता पसंद है. जैसे कि अटलजी भी एक सोफ्ट नेता था इसलिये वे भारतीय जनतामें स्विकार्य बने…. आदि… आदि..
वास्तवमें यह “सोफ्ट” वाला मामला एक सियासती व्युहरचना है. भारतीय जनताको एक विकल्प चाहिये था. भारतीय जनता नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथीयोंके उनके सीमाहीन भ्रष्टाचार, ठग विद्या, दंभ और कोमवादसे त्रस्त हो गई थी. जब जब भारतीय जनताको विकल्प मिला है, उसने नहेरुवीयन कोंग्रेसको पराजित किया है.

यह बात भी समझ लो कि, नाम बडा हो जानेसे व्यक्ति बडा नहीं हो जाता.

कई बडे व्यक्तिओंमें एक निम्न कक्षाका व्यक्ति होता है.

small people Big name

लालु, माया, मुलायम, जया, करुणा, ममता, नितीश, अडवाणी, केशु, संकरसिंह वाघेला, फारुख, ओमर, मुफ्ती मोहमद, रसिकलाल, जिवराज, हितेन्द्र, ईन्दिरा, राजीव, सोनीया, राहुल …. अगर आप लिखोगे तो एक किताब बन जायेगी.

उपरोक्त लोग दुसरोंके कन्धे पर बैठके बडे नामवाले बने है.

वास्तवमें ये सब निम्न कक्षाके है, और इनलोगोंको नेता मानने वाले तो अति निम्न कक्षाके है.
उसी तरह कई छोटे लोगोंके शरीरमें, एक महान व्यक्ति बैठा हुआ होता है. जैसे नरेन्द्र मोदी, बाबा रामदेव, जोर्ज फर्नाडीस, बाबुभाई जसभाई पटेल, सरदार पटेल, महात्मा गांधी, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती … इन नेताओंकी भी एक सूची बन सकती है जो सामान्य होते हुए भी महान बने.
ऐसे भी कई लोग होते है जो महान होते हुए भी, शक्यताके सिद्धांतके अनुसार महान बन नहीं पाये.

आप कहोगे कि पी. के. में कोई व्युह रचना अगर है भी, तो वह कौन कौन सी व्युह रचना हो सकती है? और ऐसी मान्यताका आधार क्या है?

फिल्म उद्योग काले धनको सफेद करनेका एक सडयंत्र है यह बात सबको ज्ञात है.
पी. के. ने सीनेमा टीकीट का मूल्य बढा दिया था. जो सीनेमाघर खाली थे या “हाउसफुल” नहीं थे उनको भी “फाउसफुल” घोषित किये गये थे.
मान लिजिये अगर एक सीनेमा घरकी बैठकें १००० है. और टीकीटका मूल्य १४० रुपया है. और अगर वास्तवमें २०० टीकीट की ही बीक्री हुई किन्तु हाउसफुल घोषित किया गया तो कितना काला धन सफेद हुआ?
१४० में ४० रुपया सरकारी कर है.
(१) सीनेमा घरके मालिकके पास २०००० रुपये आये.
(२) किन्तु सरकारके हिसाबसे उसके पास १००००० आया.
(३) सरकार सीनेमाघरके मालिक की आवक ८००० मानेगी. उसके उपर ३० प्रतिशत आयकर लगायेगी. यह २४०० रुपये हुए. वास्तविक नफा १६०० था. और वास्तवमें उसको ४८० रुपया आयकर ही भरना था. तो भी उसने २४०० रुपया आयकर भरा. १९२० रुपया अधिक आयकर भरा.
(४) निर्माताने क्या किया? उसने ९२००० का ८ प्रतिशत यानी ७३६० नफा दिखाया, जो वास्तवमें १४७२ था. उसने ५८८८ रुपया ज्यादा दिखाया. मान लो की उसने सीनेमाघरके मालिकने जो १९२० ज्याद कर भरा था उसकी पूर्ती की या न की तो भी उसकी आयका नफा करीब ४००० रुपया हुआ. जो वास्तवमें ८०० रुपया था. ३२०० रुपया नफा ज्यादा दिखाया.
(५) यह तो एक शॉ की बात हुई और नफेकी ही बात हुई. खर्च तो इससे १२ गुना ज्यादा है. वह भी तो काले धनमेंसे खर्च किया था.
युपी और बिहार की जनताने टेक्ष फ्री किया. तो उनको भी हिस्सा मिला होगा जो दानके स्वरुपमें या उनके काले धनमें जायेगा.

यह काला धन सिर्फ काला ही नहीं है. वह लाल भी है. लाल धनसे मतलब है, असामाजीक तत्वोंकी कमाई, जो सुपारी, आउटओफ कॉर्ट प्रोपर्टी सेटलमेन्ट, ड्रग्झ, हवाला आदि सब है. नहेरुवीयन कोंग्रेसने पैदा की हुई दाउद गेंगका बडा नेटवर्क है.

ईन गद्दरोंसे दूर रहो.

शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः वेद, उपनिषद, प्रमाण, गीता, प्रत्यक्ष प्रमाण, ज्ञातिप्रथा, भारत, हिन्दु धर्म, गहनता, मुस्लिम, इस्लाम, ख्रिस्ती, आक्रमण, अंग्रेज, माया-संस्कृति, नहेरुवीयन, निम्नकक्षा, धर्म परिवर्तन, भगवाकरण, मूर्धन्य, विधर्मी, मानव अधिकार, साक्षीभाव, कोमवाद, फिल्म, हाउसफुल, कालाधन, लालधन,

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